Monday, December 30, 2024

गुरु जी तुम्हारे चरणों में

गुरु जी तुम्हारे चरणों में 

हम शीश नवाते हैं निश दिन गुरु जी तुम्हारे चरणों में। 
विश्वास है मन में मिलेगा सदा, आशीष तुम्हारे चरणों में।। 
हम शीश झुकाते हैं............... 
यह देश हमारा धन्य हुआ। 
जिसमें तेरा है जन्म हुआ। 
हमें मिलती रहे तेरी दिव्य प्रभा, 
गुरु जी तुम्हारे चरणों में। 
हम शीश झुकाते हैं................ 
विश्व में भारत की शान बनी। 
तुझसे संघ की पहचान बनी। 
हम सब भी सदा बुद्धिमान बने। 
गुरुजी जी तुम्हारे चरणों में। 
हम शीश झुकाते हैं................ 
उन हिन्दुओं को संगठित किये। 
थे धर्म से जो विचलित हुए। 
हम आएं हैं प्रेरित हुए। 
गुरु जी तुम्हारे चरणों में। 
हम शीश झुकाते हैं............... 

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

हम बच्चे हैं

हम बच्चे हैं

आप बडे़ हम बच्चे हैं। 
दाँत हमारे कच्चे हैं। 
मन में कोई खोट नहीं, 
हमसब कितने अच्छे हैं। 

भला- बुरा का ज्ञान सीखते, 
मन से भेद मिटाते हैं। 
ऊँच-नीच और जात-पात को, 
कभी न मन में लाते हैं। 
सबको माने एक समान, 
हम सब दिल के सच्चे हैं। 

हाथ जोड़कर, शीश नवाकर, 
नमन आपको करते हैं। 
आप हमें आशीष दीजिए, 
हम-सब आगे बढ़ते हैं। 
कल के कर्णधार बनें हम, 
अभी अक्ल के कच्चे हैं। 

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, December 29, 2024

बिन पानी सब सून

बिन पानी सब सून

जल संकट आ गया सखी री! घट रहा धरा पर पानी। 
जी भर इसे बर्बाद किये हम, करते आये मनमानी। 
बाल्टी भर पानी से रूमाल धोते, पांच बाल्टी से चादर। 
नल खोल जल खूब बहाये, इसका किया निरादर। 
अलग- अलग बर्तन में खाते, बहुत हाथ धोते थे। 
पानी आया है देख मगन हो, नल चला सोते थे। 
आज देख कुएं सुख रहें हैं, घटे जलाशय के स्तर। 
हैण्डपम्प भी जल विहिन हैं, तालाबों की हालत बदतर। 
नदियाँ बन गयीं सकते नाले, झील बने चारागाह। 
झरनों ने अपने दम तोड़, हाहाकार मचा है राह। 
नहरों का नाम- निशान मिटा है, मिट गया डोभा- पोखर। 
बैल बकरियाँ प्यासे घूमते, दिखता नहीं है आहर। 
जल हीन धरा सिसक रही है, धूल- धुसरित है गंगा। 
चित्कार कर रही मही, जल के कारण होता दंगा। 
मन में चिंतन कर देख सखी री! बिन पानी सब सुन। 
पानी बिन न अन्न उपजेंगे, खिलेंगे नहीं प्रसून। 
पानी का बचत करना ही इस समस्या का हल है। 
जल संचय हम करते जाए, यदि जीना हमें कल है। 
आओ यह संकल्प करें,बचत करना है पानी का। 
बस थोड़ा कंजूसी कर लो,जरुरत नहीं दानी का। 
हम न काटेंगे पेड़ों को, खूब सिरे पेड़ लगाएं। 
जल का स्रोत यही है,बहनों!समझें और समझाएँ। 
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, December 27, 2024

छोटा भाई

छोटा भाई
मैं तो राजा राम बनूंंगा, 
            लक्ष्मण होगा छोटा भाई। 
सुख और दुख में साथ-साथ, 
          होंगे भरत शत्रुघ्न से भाई। 
विद्यालय की छोटी कक्षा में, 
              जितने भैया करें पढ़ाई। 
उन सभी से प्यार करूँगा, 
              क्योंकि वे हैं छोटे भाई। 
खेल के मैदान में भी, 
           नहीं करूँगा कभी लड़ाई। 
हम पर भारत गर्व करेगा, 
            जग में होगी खूब बढ़ाई। 
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, December 25, 2024

कोयल काली

कोयल काली

भूरी-काली पंखों वाली। 
मधुवन की कोयल मतवाली। 
कू-कू करती फिरती आली। 
बोली इसकी बड़ी निराली। 
मन की वेदना हरने वाली। 
फुदक-फुदक कर डाली -डाली। 
फूलों जैसी खुश दिल वाली। 
लगती कितनी भोली - भाली। 
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

मैं

मैं            मैं 
             तुम्हें 
           कभी भी 
         बुलंदियों पर 
      चढ़ने  से रोक तो
         नहीं पाता हूंँ
          किन्तु  मुझे 
            सदा यह 
            भय लगा 
             रहता है 
             कि कहीं 
           ऊँची उड़ान 
             भरने हेतु 
            तुम्हारे पर न
        निकला जाए और 
    तुम मुझे छोड़कर मुझसे 
दूर और बहुत दूर न उड़ जाओ
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

नन्हें वीर हम

नन्हें वीर हम

हम भारत के बाल वीर हैं भारत माँ की शान हैं। 
भारत के आखों का तारा,भारत की संतान हैं। 
नन्हें वीर हम! भोले वीर हम! 

भारत अपनी जन्म भूमि है, माँ का मान बढा़एंँगे। 
भारत अपनी पुण्य भूमि है इसका पूण्य बढ़ाएँगे। 
इसकी मिट्टी के कण-कण में हम सोना उपजाएँगे। 
मेहनत और ताकत के बल पर, इसका अलख जगाएँगे। 
हम भारत की नूतन आशा, भारत की पहचान हैं। 
भारत के आँखों का .....................
नन्हें वीर हम! भोले वीर हम! 
भेदभाव का भरम मिटाकर,सत् का ज्योत जलाएंगे। 
धरती पर सबके सपनों का सुंदर नगर बसाएँगे। 
सबको अपने गले लगाकर, जीवन धन्य बनाएंगे। 
एक प्रेम का नाता अपने जीवन में अपनाएँगे। 
मिल-जुल कर हम रहें निरंतर,भारत के अभिमान हैं।
भारत के आँखों का तारा............... 
नन्हें वीर हम!भोले वीर हम। 

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, December 23, 2024

बोलो क्या कर पाये हो प्यारे

बोलो क्या कर पाये प्यारे 


इतने बड़े महल को पाकर,
बोलो! क्या कर पाये प्यारे।
सरल स्वच्छता त्याग दिये व,
गंदगी का अंबार लगाये प्यारे।

खोल न पाये मन की खिड़की,
दूर किया न अँधेरा।
सूरज की लाली न देखा,
देख न पाये सबेरा।
सदा अँधेरे में तुम रहकर,
मन में अंधकार फैलाये प्यारे।

निकला न कमरे से बाहर,
देखा नहीं उजाला।
काल कोठरी में तू रहकर,
बनाये अपना दिल काला।
दूर रहे रीति-नीति-प्रीती से,
संस्कार नहीं तुम पाये प्यारे।

घूमा नहीं खुले आंगन में,
ताजी हवा न पायी।
घुंटी हवा में सांस लिए तुम,
खुली 
घुट-घुट कर रहना तुम सीखे,
मन में घुटन समाये प्यारे।

सफलताओं की अनगिनत सीढियांँ,
नहीं कभी चढ़ पाये।
धीरे धीरे उन्नति नहीं कर,
ऊँची छलांग लगाये।
जा चढ़े ऊँचे कोठे पर,
उच्चता का ज्ञान न पाये प्यारे।

शीश उठाकर कभी न देखा,
ऊपर बैठा नीलाकाश।
घर की छत को ही तुमने,
माना अपना गगन उजास।
सूरज-चाँद की चमक न देखा,
देख न पाए तारे प्यारे।

निकला नहीं तुम घर से बाहर,
देखी नहीं बस्ती पूरी।
नगर-जनपदों की पहचान भी, तुम्हारी रही अधूरी।
सीमित क्षेत्र में ही रहकर,
संकुचित दिल बनाए प्यारे।
       
   सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

विश्वासघात

विश्वासघात
सुंदरवन में जामुन पेड़ पर रहता था एक बंदर।
नीचे एक नदी थी जिसमें,राहत था एक मगर।
दोनों गहरे मित्र थे,घुलमिल कर बातें करते थे।
दोनों मिल जामुन खाते,नदी का पानी पीते थे।
एक दिन बहला बंदर को,पीठ पर मगर बैठाया।
कहा मगरनी ने आज है,दावत पर तुझे बुलाया।
पहुंचे जब वे बीच नदी,मगर ने बंदर को बताया।
मैं तो दोस्ती का वास्ता दे,छल से तुझे ले आया।
कोई दावत नहीं भाई! न मगरनी ने तुझे बुलाया।
तेरा कलेजा मीठा होगा,तूने जामुन बहुत खाया।
इसीलिए तुझे मार कर मैं,कलेजा तेरा खाऊंगा।
बहुत दिनों पर मन की,हसरत आज मिटाऊंगा।
कहा मगर से झट बंदर ने,काबू रखकर भय पर।
मैंने तो कलेजे को सुखने,दिया है पेड़ के ऊपर।
जल्दी से मुझको पेड़ तक,वापस तुम पहुंचा दो।
उठा पेड़ से अपना कलेजा,झट मैं तुम्हें थमा दूं।
पेड़ तक उसको ले आया,मगर ने बातों में आकर।
झट से पेड़ पर चढ़ बैठा,बंदर ने छलांग लगाकर।
ऊंँची डाली पर चढ़कर बोला-सुन रे कपटी मित्र।
कलेजा पेड़ पर सुखता ,यह बात नहीं है विचित्र।
जो जन अपने ही मित्रों से, विश्वासघात करते हैं।
कोई उसका मित्र न होता,सभी जन दूर रहते हैं।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

आया बंदर

आया बंदर 

कूद- कूदकर आया बंदर। 
    मेरी मधु बगिया के अंदर।। 
        आमों की डाली पर झूला। 
            अपनी करनी पर खूद फूला।। 

चुटकियों में फूल मसलकर। 
    नन्हें- नन्हें पौध कुचलकर।। 
        सब तहस-नहस कर डाला। 
            पके फलों को तोड़ उछाला।।

बीच चबूतरे पर चढ़ बैठा। 
    थके देह को थोड़ा ऐठा।।
         चोरी- चोरी चुपके- चुपके। 
             धीरे -से मैं पहूँची छुप के।।

लम्बी पूंछ उसकी झट पकड़ी। 
    हथेलियों में कसकर जकड़ी।। 
         बंदर बोला खीं- खीं करके। 
             पूछ छोड़ मैं भागी डर के।।

उछल कर बंदर आगे आया। 
    आँख दिखाकर मुझे डराया।।
         चिल्लाई मैं माँ-माँ कहकर। 
            बंदर भागा तुरंत उछल कर।।

                      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, December 20, 2024

घड़ी

घड़ी

टंगी हुई दीवार पर
        टिक-टिक-टिक गाना गाती। 
अपने दोनों हाथ घुमाकर, 
         हमें समय का भान कराती। 
कभी न रुकती,कभी न थकती। 
       गतिशील होना हमें सिखाती। 
निरंतर आगे बढ़ती जाती, 
         पथ पर बढना, हमें बताती।
भोर हुआ उठ पढो सभी, 
       अलार्म बजाकर हमें जगाती। 
समय से करना,काम सीखाती, 
      समय का हमें पावंदी बनाती। 
समय से मेरे काम कराती, 
          इसीलिए हम सबको भाती। 
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

हम देश को बनाएँगे

हम देश को बनाएंँगे 

हम देश को बनाएंँगे,गुलशन से भी प्यारा। 
बन जाए हिन्द मेरा,संसार में न्यारा। ।
बन जाए हिन्द मेरा............ 
इसकी गली-गली में, बसे प्यार के ही घर हों। 
बसी प्यार की ही बस्ती,बसे प्यार के नगर हों। 
पगडंडी प्यार की हो, और प्यार के डगर हों। 
मंदिर भी प्यार की हो,पूजा जिधर- जिधर हो। 
स्वर प्यार के ही गूंजे, संकल्प हमारा।
बन जाए हिंद................ 
इसके वन- उपवन में घने वृक्ष प्यार के हों। 
पर्वतों में इसकी चोटियाँ, प्यार की हों। 
फूलवारियों खिलती कलियाँ भी प्यार की हों। 
पेड़ों की डालियों में, लदे फल भी प्यार के हों। 
नदियों के दोनों कुल में, बहे प्रेम की धारा।
बन जाए हिन्द मेरा................. 
हम रोशनी करेंगे,प्यार का दिया जलाकर। 
दूर होगें तम यहाँ से,नफरतों को मिटाकर। 
जब राह न मिले तो,नव पथ हम गढेंगे। 
हम साथ-साथ चलकर मंजिल तरफ बढेंगे। 
अपने सभी जनों को देकर के हम सहारा।
बन जाए हिन्द मेरा........... 
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, December 19, 2024

लालच बुरी बलाई

लालच बुरी बलाई

चार मित्र एक बार शाम को, 
टहल रहे थे पथ पर। 
वहाँ उन्होंने जाते देखा, 
एक सेठ को रथ पर। 

रथ से पथ पर एक पोटली, 
गिर पड़ी वहाँ फिसलकर। 
रथ बढ गया आगे तब, 
मित्रों ने झट उछल कर। 

उठा लिया उस पोटली को, 
फिर देखा उसको खोल। 
उस पोटली में थे बंधे, 
रतन बड़े अनमोल। 

देख रतन को उनके मन में, 
लालच ने आ घेरा।
बड़े प्यार से उन मित्रों ने, 
हाथ रतन पर फेरा। 

झट से बेच दिए रत्नों को, 
जौहरी के घर जाकर। 
बाट लिए पैसे आपस में, 
उन चारो ने बराबर। 

इतने में आ घेरा उन्हें, 
सिपाहियों के दल ने। 
कह चोर गिरफ्तार किया, 
लगे हाथ वे मलने। 

यदि पोटली रत्न भरी वह, 
सेठ को वापस देते। 
अपनी सज्जनता पर कुछ,
इनाम भी पा लेते। 

पर लालच में आकर समाज में, 
चोर बने वे भाई। 
इसीलिए तो कहते हैं कि,
लालच बुरी बलाई। 
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

रेल

रेल 
छुक-छुक करती रेल चली। 
करती कितने खेल चली।।
इंजन दौड़े आगे-आगे।
उसके पीछे डब्बे भागे।।
 रेल हमारी बड़ी सवारी।
 ढोती माल भारी भारी।।
छुक छुक भाई छुक छुक। 
प्लेट फॉर्म पर जाती रुक।।
यात्री चढ़ने और उतरते।
फिर अपने गंतव्य पर बढ़ते।।
लोहे की पटरी पर चलती।
कभी न रुकती कभी न थकती।।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, December 18, 2024

अधूरा ज्ञान

अधूरा ज्ञान 

कहां कबूतर-सुन भाई तीतर!
              घोंसला बनाने सीखाओ।
बोला तीतर-तिनके लेकर,
                 गोल-गोल उसे घुमाओ।
थोड़ा समझकर,कहता कबूतर,
               हांँ-हाँ मैं सब समझ गया।
अधूरा पाकर, ज्ञान कबूतर,
           कभी घोंसला नहीं बना पाया।
जो जन ज्ञान अर्जित करने में,
                    चित को नहीं लगाते हैं।
वे कभी अपने जीवन में,
                     सफल नहीं हो पाते हैं।
         
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

महादेव के बारह नाम

ऊँ महादेव के बारह नाम -

                           सोमनाथ 
                        मल्लिकार्जुन 
                  महाकालेश्वर ओंकारेश्वर
             वैद्यनाथ                 भीमाशंकर 
              रामेश्वर                  नागेश्वर
            विश्वनाथ                  त्र्यम्बकेश्वर 
          केदारनाथ                  घृष्णेश्वर

तू डाल-डाल मैं पात-पात

तू डाल-डाल मैं पात-पात

नन्ही गिलहरी चुन्नु के से। 🏡
रोटी का एक टुकड़ा लायी। 🍕
बैठ डाल पर नन्हें दाँतों से, 
कुतर-कुतर कर थोड़ा खायी। 

बंदर🐒 मामा कहीं से आकर, 
छीन लिया उससे वह रोटी। 🍞
रोटी मुझको दे दो मामा, 
गिलहरी बोली रोती-रोती। 

ले जा आकर अपनी रोटी🍞
बड़े प्यार से बोला बंदर🐵
उछल-उछल कर भाग रहा था, 
इस डाली से उस डाली पर। 

नहीं पकड़ जब सकी गिलहरी, 
थक-हार चुप बैठ गयी। 
🐒बंदर से बदला लेने की, 
होंगी एक तरकीब नयी। 

एक दिन बंदर मामा भी, 
मिठाई🍮 लाकर खा रहा था। 
मजेदार😋 मिठाई हाथ✋ लगी है। 
सोंच मन में इठला रहा था। 

घात लगाए बैठी गिलहरी ने, 
झट से झपट लिया मिठाई🍬
दोनों आंखों को मटकाकर, 
जीभ दिखाकर उसे चिढ़ाई।

दे दे मुझे मिठाई तू मेरी 🙉
बंदर ने उसको पुचकारा। 
ले सकते तो ले जा आकर, 
गिलहरी ने उसको ललकारा। 

डाल- डाल पर दौड़-दौड़ कर, 
पकड़ने उसको जाता बंदर🐒
पहुँच न पाता, बैठे पाता, 
गिलहरी को चेतन पत्तों पर। 

गिलहरी रानी बोली हंसकर,
सुनो-सुनो👂 ऐ नटखट बंदर🐵
डाल-डाल तू दौड़ लगाते, 
और मैं दौडू़  पत्ते- पत्ते पर। 

सुजाता प्रिय समृद्धि

Monday, December 16, 2024

दिन बीता जाए रे


दिन बीता जाए रे

दिन बीता जाए रे ! दिन बीता जाए। 
तम घिरता जाए रे! तम घिरता जाए। 

दिन भर चलकर सूरज लौटा, फैल रहा है अंधेरा। 
खग कलरव कर उड़ते जाते,खोज रहे हैं बसेरा। 
तुम भी अपने घर को पहुंचो, मधु रजनी का बेरा। 
मन का दीप जलाओ, सुख से रैन बिताओ। 
जीवन को रंगी बनाओ, जो मन भाये रे !
दिन बीता जाए !
वस्ती-वस्ती घूम- घूम कर, देख ले दुनिया सारी। 
दुनिया की है चाल निराली, कुछ तीखी कुछ प्यारी। 
दोनों को जब ग्रहण करो तो, हो जाएगी न्यारी। 
दिल में सफाई लाओ, जीवन में सच्चाई लाओ। 
मन में अच्छाई लाओ,इससे जग जीता जाए रे। 
जग जीता जाए। 
दिन बीता जाए रे 

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, December 14, 2024

रंग-बिरंगे फूल हैं हम

रंग-बिरंगे फूल हैं हम

भारत मांँ की फुलवारी के, रंग-बिरंगे फूल हैं हम। 
वैर द्वेष हम कभी न करते, रहते सबसे मिल-जुल हम। 

नाम हमारा हिन्दू- मुस्लिम, जैना बुद्ध, सिख ईसाई। 
आपस में हम कभी न लड़ते, रहते मिल भाई- भाई। 

सुगंध फैलाते दिशा-दिशा,शोभित कर क्यारी- क्यारी। 
महकाएँगें माँ का आँचल, यह धरती प्राणों से प्यारी। 

देश हमारा चमन बिहंसता,हम बच्चे इसके माली। 
सींचेंगे हम क्यारी- क्यारी, महकाएँगें डाली-डाली। 

दमकेगा यह देश हमारा, नव प्रसून मुस्काएँगे। 
करके तन-मन-प्राण निछावर, सुंदर स्वर्ग बसाएँगे। 

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, December 13, 2024

सच्चाई तेरा हथियार

सच्चाई तेरा हथियार

कहते थे गाँधीजी बारम्बार। 
    सादा जीवन, ऊँच्च विचार। 
         अहिंसा ही जीवन का सार। 
              कर इसको मन से स्वीकार। 

मिथ्या ही  है बस तेरी हार। 
    सच्चाई ही है तेरा हथियार। 
        तुझपर जन्मभूमि का भार। 
            कभी न जाना हिम्मत हार।

सहन  करो  मत अत्याचार। 
    स्वतंत्रता  तेरा है अधिकार। 
        यही है जीवन  का  आधार।             
            भारत माँ से तू करना प्यार। 

                  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

बापू को नमन

बापू को नमन

जन्मदिवस है दो अक्टूबर। 
    जन्मस्थान  था  पोरबन्दर। 
         पुतली  वाई  इनकी माता। 
            करमचंद  गाँधी  थे  पिता। 

देश -सेवा  का  व्रत लिया। 
    आजादी  का   यज्ञ किया। 
        करो  या मरो इनका नारा। 
            जिससे जागा भारत सारा। 

सत्य-अहिंसा का ले हथियार। 
    मिटाए अँग्रेजों का अत्याचार। 
        दिलाई  भारत  को आजादी। 
            नमन  बापू  महात्मा  गॉंधी। 

                   सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

माता रानी से विनती

माता रानी की विनती 

करुँ नमन मैं बारंबार,कष्ट से दो मांँ उबार।
भँवर में नैना मेरी,कर दे माँ उस पार।।
निश दिन करुँ पुकार,हृदय से करुँ गुहार,
भंवर में नैया मेरी......
जीवन नैया तुम ही खेवैया,
अब तो पार करो हे मैया,
सारे जगत की तुम रखबैया,
तुझ बिन कोई नहीं खेबैया।
मुझ पर भी कर उपकार ।
दुनियाँ मेरी दे संवार,
भंवर में नैया मेरी......
बिगड़ी मेरी बना दो हे माता !
हे जग-जननी हे जगमाता।
द्वार तुम्हारे जो भी है आता।
पूर्ण मनोरथ सब सुख पाता।
आई हूंँ मैं तेरे द्वार, 
मुझको भी दे अपना प्यार ।
भंवर में नैया मेरी......
मांँ मैं तेरे चरणों की दासी।
आज मिटा दो सभी उदासी।
तेरी दया की मैं अभिलाषी।
तेरी कृपा की हूँ प्रत्याशी।
कर रही मैं पुकार,मेरी भी सुनो गुहार।
भँवर में नैया मेरी.......
आई हूँ मैं तेरे द्वार.......
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

कौवे की नादानी

कौए की नादानी

एक कौआ प्यास से व्याकुल
               मुश्किल से पानी पाया। 
घडे़ में थोड़ा पानी देख, 
                   उसके मन में आया। 
मेरे पूर्वज बड़े मूर्ख थे जो, 
             कठिन परिश्रम करते थे। 
एक-एक कंकड़ लाकर, 
                 घडे़ में डाला करते थे। 
मैं तो एक बड़ा-सा पत्थर, 
               उठाकर घड़े में डालूँगा।
थोड़ी-सी मेहनत कर ही, 
                   मैं पानी को पा लूंगा।
जोर लगा बड़ा-सा पत्थर, 
                 चोंच में उसने उठाया। 
झट जाकर उसने उसको, 
                  घडे़ के अंदर गिराया। 
भारी पत्थर से घटतल टूटा, 
                लगा पानी अब बहने। 
प्यासा कौआ अति विकल हो, 
                      लगा चोंच रगड़ने। 
इसीलिए करो सब काम, 
           थोड़ा तुम सोंच-समझकर, 
बड़े-बुजुर्गों के अनुभव का, 
                        पूरा लाभ लेकर। 
  
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, December 10, 2024

अकड़

अकड़ 

दो बकरियाँ पतले पुल पर, 
आमने सामने आ रही थीं। 
मैं तो उसे रास्ता नहीं दूंगी, 
सोंच दोनों इठला रही थी। 

           पहली बोली बायें हट कर, 
           तुम पहले मुझको जाने दे। 
           दूसरी बोली मै नहीं हटती,
           पहले मुझको तुम जाने दे। 

पहली बकरी अकड़ दिखा, 
बीच रास्ते पर खडी़ रही। 
दूजी भी क्या कम थी उससे, 
अपनी जिद्द पर अड़ी रही। 

        पहली बकरी ताव में आकर, 
           सींग घुमा दूसरी को मारी। 
            दूसरी भी गुस्से में आकर, 
            दे दूलत्ती पहली को मारी। 

लड़ते-लड़ते दोनों गिर गई, 
नहर के बहते जलधार में। 
डूब मरीं वे आन-शान में, 
उनकी जान गयी बेकार में। 

         सुन बच्चों!अकड़ दिखाकर।
          लड़- झगड़ मत देना जान। 
          समझदारी से ही काम लेना 
        बुद्धिमानी की होती पहचान। 
   
    सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

सहयोग और समझदारी

सहयोग और समझदारी

दो बकरियाँ पतले पुल पर, 
आमने- सामने आ रही थी। 
कैसे  रास्ता मैं पार करूँगी, 
मन में सोंच घबरा रही थी। 

           जब  दोनों  पास आईं तब, 
         पहली बोली  बहन  नमस्ते। 
          उन बकरियों- सा नहीं करेंगे, 
          मरी गिरकर जो लड़ते लड़ते। 

दूसरी बोली बहन बता दो। 
तुमने क्या सोचा है उपाय। 
रास्ता दोनों को मिल जाए, 
जान भी दोनों की बच जाय। 

            पहली बोली- मैं बैठती हूँ, 
            तुम मेरी पीठ पर चढ़कर। 
            पार कर जा रास्ता अपना, 
            चली जाऊँगी मैं भी उठकर। 

ऐसे उन्होंने सहयोग देकर, 
एक-दूजे की जान बचाई। 
समझदारी से काम किया, 
नहीं किया उन्होंने लड़ाई। 

           राह बनाना जिस तरह से, 
           बुद्धिमानी का होता काम। 
           रास्ता देना भी उसी तरह
           समझदारी का होता नाम। 

              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

श्रवण कुमार

श्रवण कुमार

माता-पिता को तीर्थ कराने,
                बहंगी लेकर चल पड़ा। 
सोलह बरस का बालक था वह
       नाम था उसका श्रवण कुमार। 

राह में माता-पिता जी बोले, 
                 प्यास लगी है जोर से। 
बेटा जाकर पानी लाना, 
              घडा़ भर किसी ओर से। 
वृक्ष के नीचे बहंगी रखकर, 
                  पानी लाने चल पड़ा। 
सोलह.बरस का बालक....... ....
घडा़ डुबाया पानी में जब, 
              आवाज हुई तब जोर से। 
दशरथ राजा हाथी समझकर, 
                    मारे उसको तीर से। 
मरणासन्न हो गिरा धरा पर, 
         मुँह से निकल पड़ा चित्कार। 
सोलह बरस का बालक................... 
मामा पहुंचे सुन चित्कार, 
              हाय रे! मैंने क्या किया। 
हाथी समझकर भांजे को ही, 
              तीर चलाकर मार दिया। 
मन ग्लानि में डूब गया और, 
            मुँह से निकला हा-हाकार, 
सोलह बरस का बालक...... 

कहा श्रवण ने व्यर्थ में मामा! 
                  आप यहाँ रुआंसे  हैं। 
पानी पिला दें जाकर मामा, 
                माँ- पिताजी प्यासे हैं। 
प्यासे रहेंगे अगर वे मामा, 
                 अटके रहेंगे मेरे प्राण। 
सोलह बरस का बालक............. 
पाँव दबाकर दशरथ पहुंचे, 
                 उन दोनों के नजदीक। 
पानी पिलाया मुक होकर के, 
                 बेचारे को नहीं थे दृग। 
बोले -बेटा तू क्यों चुप है, 
              लगता है तुम थक गया। 
सोलह बरस का........ 
अंधे माता पिता ने सुनी जब, 
         दशरथ से यह करुण- कथा। 
बोले जला दो हम दोनों को, 
                 बेटे के संग बना चिता। 
पुत्र वियोग में तुम भी मरोगे,
              मर रहे हम जिस प्रकार। 
सोलह बरस का ...... 
   सुजाता प्रिय समृद्धि

Sunday, December 8, 2024

बुद्धिमानी

बुद्धिमानी

नहर पार के अमरूद पेड़ पर, बैठा था एक बंदर। 
उस पेड़ में अमरूद के फल, लगे हुए थे सुंदर। 
इस पार से राजू ने सोचा,कैसे अमरूद खा पाऊंँगा।
हट भी जाए बंदर तो क्या,नहर पार कर पाऊंँगा ? 
उसके मन में उपजी एक, तत्काल योजना प्यारी। 
झट उठा एक नन्हा-सा पत्थर, बंदर पर दे मारी। 
बदले हेतु बंदर को जब,मिला न पेड़ पर पत्थर। 
झट से अमरूद तोड़ पेड़ से, फेका राजू के ऊपर। 
पहले से तैयार था राजू,लपक लिया अमरूद को। 
मीठा अमरूद खा मन से,धन्यवाद दिया बंदर को। 
बुद्धिमान लोग किसी काम में,जब दिमाग लगाते। 
बुद्धि-कौशल व चतुराई से, मनचाहा फल हैं पाते। 

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, December 7, 2024

बांझ (लघुकथा)

बांझ

तुम चुमापन करने लायक नहीं हो। तुझ मनहुस का साया भी किसी पर पड़ेगा वह भी नि: संतान रह जाएगा।अभी सगुन के लिए दुल्हन की गोद में बच्चा डाला जाता है वह दम भी तुममें नहीं है।सांस ने नफरत और घृणा से मुँह बनाकर अपनी शोले उगलती आँखों से देखते हुए कहा उसके हाथों से चावल छीन कर फेंक दिया। 
दीवार पर रचित सुंदर रंगोलीनुमा कोहबर के आगे बैठी नवेली देवरानी घूँघट की ओट से उसे देखने लगी। देवर सिर झुकाए बैठा था। 
मुहल्ले और परिवार की स्त्रियों की सहानुभूति पूर्ण नजरें देख रचना की सुंदर मुखड़े पर दुख, छोभ और अपमान के मिले जुले भाव उत्पन्न हुए।डबडबा आई सुन्दर नयनों से आसुओं की धार ढलक आई। 
  क्ष अचानक उसके चेहरे पर कुछ निर्णायात्मक भाव उभरे।फिर रणचंडी- सी हाथ उठाकर रोती हुई बोली- हाँ s s s मैं चुमापन करने लायक नहीं हूँ।
लेकिन होती ! यदि आप का बेटा नामर्द नहीं होता। आपके बेटे और घर की इज्जत की खातिर मैंने अपने मन से मातृत्व भाव को भी मार दिया। बहू की जगह मुझे ऐसा कलंकित नाम देकर प्रताड़ित किया सभी कुछ सहन किया।लेकिन भरे समाज में............ 
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, December 6, 2024

मुझे पता है

                          मुझे 
                     पता है प्रिय 
                तुम्हें मेरी इच्छा नहीं 
              फिर भी मुझे सदैव ही 
          तुम्हारी प्रतीक्षा लगी रहती है
       तुम आओगे तो मेरी परछाई से भी
     दूर रहोगे, मगर एक बार मुझे निहारोगे।
नाम लेना स्वीकार नहीं पर,मन-ही-मन पुकारोगे 
      क्योंकि, न तो मैं फूलों- सी कोमल हूँ
      न सुंदर ! बस रंग- रूप-सुगंध विहिन
      तब भी  तुम आकर्षित  हो  कर यहाँ
      कुछ पल  का  सांनिध्य पाने के लिए 
      अनजानी डोर-से खिंचे चले आओगे
      फिर संकोच के आगोश में पलकें मुंद,
      मन- ही -मन कुछ तराने गुनगुनाओगे
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, November 30, 2024

हम हैं सभी के

हम हैं सभी के

हम हैं सभी के, सभी हैं हमारे। 
हम सबके प्यारे, सभी हमको प्यारे। 
हम हैं सभी के.......... 
कभी भी किसी से,हम न लडे़गें। 
अच्छाइयाँ सबकी,अंतस में धरेंगे। 
करने में भलाई, भला है हमारा। 
प्रेम से ज्यादा,नहीं कुछ है प्यारा। 
प्रेम से चमकेंगे किस्मत के तारे। 
हम हैं सभी के........ 
देखो ये धरती, हमारी है माता। 
तभी तो हमारा,है भाई का नाता। 
सभी अपने बंधू, सभी अपने भाई। 
आपस में भाई, करो न लड़ाई।
जीना है हमें, एक-दूजे के सहारे
हम हैं सभी के.............. 
हम भाई- भाई जो लड़ते रहेंगे। 
हर पल मुसीबत में पड़ते रहेंगे। 
हमारे मिले से बला भी टलेगी। 
सफलता हमारे संग में चलेगी। 
संग मिलेंगे मंजिल के किनारे। 
हम हैं सभी के............ 
दुश्मन हमारा नहीं होगा कोई। 
जागेगी अपनी किस्मत ये सोयी। 
कभी न घटेगा हमारा ये भुजबल। 
भविष्यत हमारा होगा समुज्जवल।
आओ लगा लें मिल्लत के नारे।
हम हैं सभी के............. 

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, November 29, 2024

शरणागत की रक्षा

शरणागत की रक्षा

शरणागत की रक्षा करना,रीत हमारे देश की। 
अति पुरातन कथा सुनिए,उशीनगर नरेश की। 
शरणागत की.......... 
भरी सभा में सहमा हुआ और बहुत घबराया। 
एक कबूतर उड़ते हुए,शरण शिवि के आया।
गोद में आकर बैठ उनके, कपड़ों में मुँह छुपाया।
एक बाज फिर उड़ते हुए,उसके पीछे आया। 
राजा शिवि समझ न पाये,उसके रूप विशेष को। 
अति पुरातन कथा है......... 
कहा बाज ने यह कबूतर,आज मेरा भोजन है। 
इस कबूतर को क्यों राजन!देते आप शरण हैं? 
कहा शिवि ने- यह कबूतर तुम्हें कभी न दूँगा। 
देकर अपने शरणागत का,प्राण कभी न लूंगा।
शरणागत का प्राण हरना,न्याय नहीं प्रजेश की। 
अति पुरातन सत्य-कथा............ 
कहा बाज ने-यह कबूतर,अगर मुझे न देते ? 
इसे बचाकर मुझ भूखे का,प्राण आप हैं लेते। 
कहा शिवि ने- छोड़ दे, इसकी प्राण बच जाएगी। 
तेरी भूख तो किसी मांस को खाकर मिट जाएगी। 
तो बताओ फिर क्यों न मैं,हर लूँ इसके क्लेश को? 
अति पुरातन सत्य-कथा............ 
कहा वाज ने-मैं तो केवल,पवित्र मांस हूँ खाता। 
किसी प्राणी का पवित्र मांस दें,आप अगर हैं दाता। 
कहा शिवि ने-हर-एक प्राणी,है मेरे अधिन-शरण में। 
किसी प्राणी का प्राण मैं क्यों लूँ,सोचो अपने मन में। 
देता हूँ मैं इसके बराबर,अपने ही अंग विशेष को। 
अति पुरातन सत्य-कथा.......... 
आज्ञा देकर राजा शिवि ने झट एक तुला  मंगाई। 
एक पलड़े पर कबूतर,दूजे पर अपनी काट भुजा चढ़ाई। 
पाँव चढ़ाया,फिर भी कबूतर का पलड़ा टिका भूमि पर। 
खा ले समूचा काटकर मुझको,वे चढ़ बैठे पलड़े पर। 
भरी सभा ने चकित हो देखा,उनके न्याय विशेष को। 
अति पुरातन सत्य-कथा............ 
बाज इंद्र बन और कबूतर अग्निदेव बन हुए प्रकट। 
हाथ जोड़कर राजा शिवि से बोले होकर नतमस्तक। 
हमने तो आपकी धर्म-परीक्षा हेतु यह रुप बनाया। 
बहुत सुना था आज है देखा,आप हैं कितने न्यायी।
कटे अंग को पुनः जोड़,आशीष दिये वे धर्मी नरेश को। 
अति पुरातन सत्य-कथा ........ 
                     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, November 27, 2024

प्रतियोगिता

         प्रतियोगिता 

होड़ लगी जब जंगल में, 
      कौन पहुंचता मंजिल पहले। 
खरगोश दौड़ा तेजी से, 
           कछुआ चला धीरे,-धीरे। 
बहुत ही पीछे है कछुआ, 
             सोंच खरगोश सो गया। 
धीरे धीरे चल कछुआ🐢
             मंजिल तक पहुँच गया।
लगनशील जो होते हैं। 
              सफल सदा ही होते हैं। 

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

लगनशीलता

          लगनशीलता

एक बार घने 🌲जंगल में, 
               हुयी प्रतियोगिता भाई। 
कछुआ🐢और🐇खरगोश ने
                 मिलकर दौड़ लगाई। 
जंगल के लाल🗿पत्थर पर, 
                    जो पहले पहुंचेगा। 
विजेता🏆वह कहलाएगा, 
           सिर पर 👑ताज सजेगा। 
तेजी से दौड़ा खरगोश🐇, 
    कछुआ🐢 की थी धीमी चाल। 
नतमस्तक कछुआ🐢 बेचारा, 
   खरगोश🐰 का था ऊँचा भाल। 
खरगोश को निज तीव्र गति पर, 
               था बहुत ही अभिमान। 
सोचा 🐢कछुआ बहुत दूर है, 
             कर लूँ थोड़ा मैं विश्राम। 
जा सोया वह 🌳पेड़ के नीचे, 
                   मीठी-गहरी नींद में। 
कछुआ चलता रहा निरंतर, 
               पल-पल धीमी गति में। 
नींद खुली फिर खरगोश ने, 
                  तेजी से दौड़ लगाई। 
पत्थर पर देखा पहले से, 
         पहुंचा है कछुआ🐢 भाई। 
तुम भी बच्चों अपने मन से 
                    कभी हार न मानो। 
बढ़ सकते हो सबसे आगे
                     ऐसा मन में ठानो। 
जीवन की चुनौतियों से
                  कभी नहीं घबराओ। 
रखो दृढ़ विशवास हृदय में, 
                    आगे बढ़ते जाओ। 

          सुजाता प्रिय समृद्धि

Tuesday, November 26, 2024

लालच का फल

लालच का फल

बूढ़ा बाघ  नदी के तट पर। 
   हाथ सोने का कंगन लेकर।। 
      राहगीरों से हँसकर कहता। 
         सोने का  कंकन लेता जा।। 

जीवन-भर मैंने पाप किया है। 
   मार-खाकर, संताप दिया है।। 
      उसी पाप का  फल  मिला है। 
         नख-दंत सब मेरा गल गया है।। 

अब थोड़ा सा पुण्य कमा लूंँ। 
   अपने सिर का पाप मिटा लूँ।। 
     एक  बटोही  लालच में पड़। 
        चल  पड़ा झट  लेने कंगन।। 

कहा बाघ-तू जरा नहा लो। 
   ईश्वर का तो ध्यान लगा लो।। 
     चल पड़ा बटोही नदी नहाने।
         सुबह-सुबह वह कंगन पाने।। 

फँसे पाँव उसके दलदल में। 
   उठा बाघ तब उसको खाने।। 
      फंँसा बटोही भाग न पाया। 
         लालच करने पर पछताया।। 

इसीलिए तो कहते हैं भाई।
   मत कर लालच बुरी-बलाई।। 
     सोंच-समझकर करना काम। 
        लालच में पड़ मत देना जान।। 

                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, November 25, 2024

छोटा मित्र

छोटा मित्र 

एक बाघ ने पकड़ा चूहा, 
    बोला तुझको मैं खाऊँगा।
        चूहा बोला छोड़ दे मुझको, 
            कभी तुम्हारे काम आऊंगा।
            आ दोस्ती कर ले हम-तुम,
        दोनों मिलकर साथ रहेंगे। 
    एक दूजे के काम आएंँगें, 
आपस में हम नहीं लड़ेगे।
हँसकर बोला बाघ नादान, 
    क्या भला तू काम आओगे। 
       छोटे  लोग मित्र नहीं होते, 
           साथ नहीं मेरा दे पाओगे । 
            एक मौका तो देकर देखो, 
          किया चूहे ने नम्र निवेदन। 
    बाघ ने उसको छोड़ दिया, 
बडा़ दुखी कर अपना मन। 
कुछ दिन  ही बीते होगें
   वहाँ एक शिकारी आया। 
       बाघ गुफे से बाहर बैठा था, 
          जाल फेंककर उसे फँसाया। 
             फँस-बधिक जाल में बाघ, 
        खूब रोया और चिल्लाया। 
   रुदन उसका सुनकर तब, 
वह छोटा चूहा दौड़ा आया। 
कुतर- कुतर वह जाल  काटा, 
     बाघ को बंधन मुक्त किया। 
           छोटा होकर भी बाघ को, 
                मित्रता  का सूबूत  दिया। 
               तब बाघ को समझ आया, 
         मित्र छोटे भी हो सकते हैं। 
     बड़ा छोटा का भेद न करना,
   सभी से मैत्री कर सकते हैं। 

           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, November 24, 2024

समय (कविता)

                           समय (कविता)

कभी न रुकता,हरदम चलता, चलना इसका काम रे।
पल-पल बढ़ता कभी ना थकता समय बड़ा बलवान रे।
पल-पल बढ़ता.......
समय का घोड़ा दौड़ा करता हवा से करता बात रे।
सुख और दुख के दिन हो चाहे, सर्दी गर्मी बरसात रे।
समय सुबह बनकर है आता,आता बनकर शाम रे।
पल-पल बढ़ता.......
समय साथी है जीवन भर का,जो इसके संग चलता है।
उसके जीवन की बगिया में,मीठा फल हरदम पलता है।
इसकी गति से गति मिला लो,मत कर तू विश्राम रे।।
पल-पल बढ़ता.........
समय का महत्व न देने वाला, जीवन भर पछताता है।
जो करता उपयोग समय का,सुख बहुत वह पाता है।
जो इससे है हाथ हाथ मिलता, करता है उत्थान रे।
पल-पल बढ़ता..........
समय कल था,समय आज है, समय कल भी आएगा।
समय एक अनदेखा पंछी,पंख लगा उड़ जाएगा।
समय भूत है,समय भविष्य है, समय ही है वर्तमान रे।
पल-पल बढ़ता.........
  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, November 20, 2024

सिया-राम-लखन स्वागत दीपोत्सव (मतगयंद सवैया)

सिया-राम-लखन स्वागत दीपोत्सव (सवैया) 

नाम जपो रघुनाथ भजो सब,तीर चला दस मस्तक छेदे।
काल कराल घमंड मिटाकर,जीत गए लंका गढ़ भेदे।।
पुष्पक बैठ उड़े रघुनंदन,रावण राज विभीषण को दे।
चौदह साल बिताकर वापस,आज पधारे रहे मन मोदे।।

भारत में खुशियाँ भर आबत,आज सभी मिल धूम मचाओ।
देख पधार रहे रघुबर अब,वैर हिया अब तो विसराओ।। 
देख सभी दुख दूर हुआ जन,आज सभी मिल मंगल गाओ। 
जो जन रूठ गये उनको अब,प्यार दिखाकर अंग लगाओ।। 

राम-लखन घर आकर बैठत, गीत बधाब बजे शहनाई।
ढोल बजाय सखा सब नाचत,देबत ताल घनाघन भाई।।
जीव सभी निरभीक भये अब, जीवन आज लगे सुखदाई।
धीर पधार रहा उर में अति,पीर सभी अब भाग-पराई।।

भूल गए सब भोजन-जेबन, भूल गए गृह कारज सारी।
रंग -बिरंग बधाब बजाबत,आज खुशी जग में अति भारी।
फूल बिछाकर राह सजाकर,राह बुहार रहे नर-नारी।
थाल सजाकर हाथ लिए सब,आरती थाल घुमात उतारी।।

दीप जला घर आँगन में सब,आज सभी खुश हो कर भाई। 
राम-सिया घर आज पधारे,नाचत-गाबत देत बधाई।। 
आज यहाँ सबका मन हर्षित,आज अमावस रात मिताई। 
धूम मची चहुँ ओर तभी अब,खाबत हैं सब साथ मिठाई।।
          जय सियाराम 
🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित मौलिक

Friday, November 15, 2024

एकता में बल

एकता में बल

एक दिन एक शिकारी आया। 
जंगल में वह जाल  बिछाया। 
उसके ऊपर वह दाने  डाला। 
छिपकर बैठा  बन रखवाला। 
                   कबूतरों का झुण्ड तब आया। 
                  दाने देखकर  सब ललचाया।
                   कबूतरों का  राजा तब बोला। 
                   बेकार तुम सबका मन डोला। 
जंगल में अन्न कहाँ से आया। 
यहाँ किसी का छल है छाया। 
पर कबूतरों ने  बात न मानी। 
दाना खाये सब  कर नादानी। 
                  बिछे  जाल में  वे फँस चुके थे। 
                  अपराध -भाव से सिर झुके थे। 
                  कपोत राज ने फिर मुंँह खोला। 
                 बड़े प्यार से उन सबको बोला। 
एक साथ  मिल  उड़ चलें हम। 
जाल को लेकर भाग चलें हम। 
मानकर कबूतर राजा की बात। 
पहुंँच गये मुषक दादा के पास। 
                  कपोत  राज ने  कहा- मूषक से। 
                  छुड़ा दो सबको  जाल कुतर के। 
                  मुषक कुतर कर जाल को काटा। 
                  उड़ गए कबूतर कर टाटा-टाटा । 
                        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

रितिका छंद

हे पथिक चलते चलो तुम, जिंदगी के रास्ते।
मन कभी विचलित न करना, छोड़ने के वास्ते।

माना पथ मुश्किल बहुत है,पर इसे मत छोड़ना।
मुश्किलों के मुकाबले को,मुख कभी मत मोड़ना।

राह में कण्टक अगर है,रौंद कर बढ़ते चलो।
हौसला रखकर हृदय में, पहाड़ पर चढ़ते चलो।

आहत होकर ठोकरों से,हिम्मत कभी मत हारना।
हर हाल में बढ़ना तुम्हें है,मन में रख लो धारना।

मन के सारे हार होती, मन के हारे ही जीत है।
हिम्मत तुम्हारा संगी-साथी,हिम्मत ही तेरा मीत है।

तुम अगर बढ़ते चले तो,राह स्वयं मिल जाएगी।
हर मुसीबत हौसलों से, राह से टल जाएगी।

                              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, November 14, 2024

अधूरा ज्ञान

अधूरा ज्ञान 

कहा कबूतर,सुन भाई तीतर!
              पास मेरे तुम आओ ना।
कैसे घोंसला बनता है यह,
             मुझको जरा सीखाओ ना।
बोला तीतर सुनो कबूतर।
            तिनके चुन-चुनकर लाओ।
गोल-गोल सा उन्हें घुमाकर,
              एक -दूजे में अटकाओ।
थोड़ा समझकर,कहा कबूतर,
            हाँ-हाँ मैं सब समझ गया।
घोंसला पूरी कर लूंगा मैं,
              समझा आगे होगा क्या।
तिनके तीतर से ले कबूतर,
            लगा घोंसला स्वयं बनाने।
पर घोंसला बना न पाया,
          कहा तीतर को पुनः बताने।
कबूतर ने थोड़ा और बताया,
      कबूतर फिर बोला,समझ गया।
इसी तरह बार-बार पूछता,
          तुरंत कहता मैं समझ गया।
घोंसला बनाने के लिए तीतर ने,
         जब-जब उसको समझाया।
अधूरा ज्ञान पा हाँ कह देता,
         घोंसला कभी न सीख पाया।
कबूतर ही ऐसा पक्षी है जो,
           घोंसला नहीं बना पाता है।
अन्य प्राणियों के निवास में,
              वह जाकर रह जाता है।
जो जन ज्ञान अर्जित करने में,
               चित को नहीं लगाते हैं।
कभी-भी वे अपने जीवन में,
                सफल नहीं हो पाते हैं।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, November 13, 2024

काला-गोरा

काला-गोरा

एक बार कौआ राजा के,मन में विचार एक आया। 
अपने काले तन पर कौआ,मन-ही -मन झुंझलाया।

सोच-सोच कर हार गया ! पर,हल न कोई सुझा।
राजहंस के पास जा, वह नतमस्तक  हो पूछा।

क्या राज है इसका भैया! तुम गोरा मैं काला।
मुझ पर कोई नजर न डाले,तेरा जपता माला।

सुन , कौए की बात हंस,मंद - मंद  मुस्काया।
 मीठी बोली में बड़े प्यार से,उसको यूं समझाया।

कोई राज नहीं है इसका, मैं गोरा,  तू काला।
रंग के कारण नहीं किसी का,कोई जपता माला।

तन के रंग से कोई प्राणी,भला -  बुरा नहीं होता।
मन के रंग के कारण ही केवल,यश पाता और खोता।

ईश्वर की रचना  है केवल, हर रंगों का प्राणी।
रंगो का तुम भेद भूल कर,बोलो मीठी वाणी।

मीठी बोली से काली कोयल भी, सबको सदा सुहाती।
वाणी की सुंदरता से ही,जग में पहचान बनाती।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, November 11, 2024

बोलो न

ऊँ
           द्वन्द्व 
           में हो
        तुम शायद 
      अहंकार भरा 
     मन यह तुम्हारा 
   मुझे प्रगति -प्रयास 
    के पथ पर चलने 
       की आज्ञा ही
        नहीं दे रहा 
           भय है 
         तुम्हें शायद 
     मेरा साथ छूटने का
या तुम्हारा वर्चस्व टूटने का

    सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, November 10, 2024

मैं


               मैं 
              तुम्हें 
            कभी भी 
          बुलंदियों पर 
          चढ़ने से रोक
             तो नहीं 
               पाता 
                 हूंँ।
              किन्तु 
             मुझे सदा 
          यह भय लगा 
        रहता है कि कहीं 
        ऊँची उड़ान भरने 
         हेतु तुम्हारे पर न 
            निकल जाए 
               और तुम 
                  मुझे 
               छोड़कर 
           मुझसे दूर और 
      बहुत दूर न उड़ जाओ।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, October 27, 2024

उलटे -पलटे शब्द आधारित (दोहे)

उलटे पुलटे शब्द आधारित (दोहे)

*राम* नाम अनमोल है,जपो राम का नाम।
*मरा-मरा* भी बोलकर, डाकू पाया धाम।।

*राधा* रानी प्रेम से,जपती केशव नाम।
हृदय प्रेम *धारा* बहा,रटती प्रातः-शाम।।

काम करो ऐसा सुनो, दुनिया बोले *वाह*!
*हवा* ओर तेरी बहे, पूरी हो मन चाह।।

*दावा* मत कर नेह पर,रख मन में विश्वास।
*वादा* पूर्ण करो सभी,मत दो झूठी आस।।

*सदा* करे जो कर्म को,रख मन में विश्वास।
भला कर्म से भाग्य भी,हो जाता है *दास*।।

मीठी वाणी बोलकर,कर समाज पर *राज*।
*जरा* न तीखी बोलिए ,रूठे सकल समाज।।

अपने *दम* पर पाइए,जग भर में पहचान।
*मद* में चूर नहीं रहें, दूजे पर कर शान।।

*जग* झूठा है भाइयों,सुनो झुकाकर माथ।
*गज* भर भी धरती वहांँ,जाएगी ना साथ ।।

मदिरा पीने में कभी,दिखलाओ मत *शान*।
*नशा* नाश का मूल है,मत कर इसका पान।।

*मय* के प्याले में भरा, दुनिया का सब रोग।
*यम* रहता पीछे खड़ा, बात मानिए लोग।।

झूठ कभी *मत* बोलना,सच का देना साथ।
सच *तम* दूर करे सदा,मिले सफलता हाथ।।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, October 26, 2024

प्रथम पुज्य गणेश

प्रथम पूज्य गणेश (मिलो न तुम तो)

गणपति बप्पा दिखते भारी,मूषक है इनकी सवारी।
अजब हैरान हूँ मैं।
लम्बोदर पर सूढ़ है भारी,दूब है इनको प्यारी।
अजब हैरान हूँ मैं।
दिखते हैं भोले-भाले, मस्तक है इनका गजराज का।
कान हैं सूप जैसे,नाम है लम्बी महाराज का।
चार हाथ में रस्सी-फरसा,परसु और कुल्हाड़ी,
अजब हैरान हूँ मैं,
एक दिन देवों ने रखी प्रतियोगिता विचार के।
तीन लोक की परिक्रमा,पहले करेगा तीन बार जो ।
प्रथम पूज्य वह देवता होगा, बात बहुत है भारी,
अजब हैरान हूँ मैं।
सुनकर देव सभी सोच में पड़े गहरा मर्म था।
काम कठिन था पर,जोर लगाना अब धर्म था।
सब देवों ने दौड़ लगाई, चढ़कर अपनी सवारी।
अजब हैरान हूँ मैं।
मूषक चढ़ गणपति,रास्ता रोके गौरी-नाथ की।
बीच बैठाकर किये परिक्रमा तीन बार वे ।
अचरज से उन्हें देख रहा था, देवों का देवों का दल भारी,
अजब हैरान हूँ मैं।
देवों ने उनसे पूछा,यह कैसा खेले तुम खेल रे ।
तीन लोक घूमना था,यह तो नहीं कोई मेल रे।
करना था परिक्रमा तुझको,करने लगे नचारी,
अजब हैरान हूँ मैं।
देवों से बोले देवा,मैंने किया भला कर्म है। 
माता-पिता की सेवा,करना हमारा शुभ-धर्म है। 
माता- पिता ही तीन लोक है,सुन लो बात हमारी
अजब हैरान हूँ मैं।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, October 16, 2024

शरद-पूर्णिमा

शरद-पूर्णिमा 

शरद-पूर्णिमा का चाँद निकला,
    हैं  चमक  रहा देखो अम्बर।
        आज चाँदनी का रूप सुनहला,
            देखो  कितना  लगता सुंदर।

झीनी-झीनी कोमल किरणें,
    पुष्प-लताओं से झांँक रही।
        आज रात की दुधिया रंग को,
            अपलक है देखो ताक रही।

राधा के संग रास रचाते,
    मन मोहन कृष्ण मुरारी हैं।
        वंशी की धुन पर थिरक रहे ,
            आज विरज की नर-नारी हैं।

लक्ष्मी माता सुधा-कलश ले,
    अहा!आईं हम-सबके आँगन।
       मीठी खीर का भोग लगाओ,
           कर आरती-अर्चन मनभावन।

सब मिलकर जयकार करो,
   जगजननी  जय माता की।
        धन-संपत्ति जो सबको देती,
           सुख - समृद्धि की दाता की।

अहा सभी मिल नाचो-गाओ,
   झुम-झूम कर खुशी मनाओ।
        वैर - द्वेष मन से विसरा कर,
            सबको अपने गले लगाओ।
       
                  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, October 9, 2024

मन के रावण को फूको

मन के रावण को फूंको 

शहर के सबसे पुराने मैदान में,
   दस मीटर ऊँचा खड़ा दशानन।
      दस हजार जनों की भीड़ लगी है,
         रावण का पुतला आज होगा दहन।

राम वेश में ,खड़े मंत्री जी ने,
   बढ़ उसपर छोड़े अग्नि तीर।
      धूं - धूं - धुं कर जल उठा वह,
         खुश होकर उछली सारी भीड़।

साधु-संतों को खूब सताना,
   यज्ञ-विध्वंस कर शान दिखाना।
      मदिरा पीना, मांस को खाना,
         पर स्त्रियों को हरकर लाना।

उसकी  बुराइयाँ खाक हो जाए,
   हर साल पुतले हम जलाते हैं।
      पर इन सारी बुराइयों को हम,
         कभी मन से मार न पाते हैं।

कर सको तो,कर लो अपने,
   तुम मन के रावण का संहार।
      राम -सा पुरोषोत्तम बन जा,
         प्रफुल्लित होगा सारा संसार।

              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, October 2, 2024

प्रथम पुज्य गणेश

प्रथम पूज्य गणेश (मिलो न तुम तो)

गणपति बप्पा दिखते भारी,
करते मूषक सवारी।
अजब हैरान हूँ मैं।
लम्बोदर पर सूढ़ है भारी,दूब है इनको प्यारी।
अजब हैरान हूँ मैं।....
दिखते हैं भोले-भाले, मस्तक है इनका गजराज का ओ s s s s
कान हैं सूप जैसे,नाम है लम्बी महाराज का ओ s s s s
चार हाथ में रस्सी फरसा,परसु और कुल्हाड़ी,
अजब .....
एक दिन देवों ने रखी प्रतियोगिता विचार के ओ s s s s
तीन लोक की परिक्रमा पहले करेगा तीन बार जो ओ s s s s
प्रथम पूज्य वह देवता होकर
गा, बात बहुत है भारी 
अजब हैरान.........
सुनकर देव सभी सोच में पड़े गहरा मर्म था।ओ s s s s
काम कठिन था यह पर,जोर लगाना अब धर्म था ओ s s s s
सब देवों ने दौड़ लगाई, चढ़कर अपनी सवारी अजब हैरान......
दौड़कर गणपति रास्ता रोके गौरी-भोलेनाथ की ओ s s s s
अचरज से उन्हें देख रहा था, देवों का देवों का दल भारी अजब हैरान.........
देवों से बोले देवा,

माता पिता ही तीन लोक है,सुन लो बात हमारी
अजब हैरान हूँ मैं......

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, October 1, 2024

बापू के सपने

बापू के सपने 

बापू ने देखे थे सपने,भारत को आजाद कराने के।
एकता और भाईचारे का, एक सुंदर देश बसाने के।

शांत- समृद्ध भारत बनने के,सपने हम साकार करें।
कपट नहीं करुणा हो मन में, क्रोध त्याग कर प्यार करें।

जाति-धर्म का भेद मिटायें,गले लगायें हरिजन को।
छल-कपट को दूर भगाएं, स्वच्छ करें अपने मन को।

सुशिक्षित व सामर्थ्य रहेंगी ,यहाँ की सारी नारियांँ।
उनके हृदय में सदा ही फूटे,आत्मरक्षा की चिनगारियांँ।

यहाँ का हर मानव, अपने देश पे मिटने वाला हो।
यहाँ का बच्चा-बच्चा भारत माता का रखवाला हो।

हर बाधा को पार करें,लेकर हम हिम्मत से काम।
कठिन राह पर बढ़े चलें,जीत लें हम सारे संग्राम।

बढ़े चलें हम कठिन राह पर,मन में लेकर दृढ़ विश्वास।
स्वच्छता का अभियान चलाएं,पूरी हो बापू की आस।

मन से लालच दूर करें हम, करते जाएं दान सदा।
श्रेष्ठ जनों के हेतु हृदय में,रखें हम सम्मान सदा।

आओ प्रण लें बापू के हम,स्वप्न नहीं टूटने देंगे।
तीन रंग का झंडा वाला,ध्वज नहीं  झुकने देंगे।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, September 28, 2024

स्वाद का फेरा

स्वाद का फेरा 

भूल गए हम स्वाद पुराने।
    चटपटे ब्यंजन लगे सुहाने।
        दूध शर्बत व छाछ न पीते।
            कोल्डड्रिंक्स-पेप्सी पी जीते।

 अन्न-फल-मेवे नहीं सुहाते।
    चाट - गोलगप्पे मन से खाते।
        लिट्टी,पकौड़े,हलवा नहीं भाये‌।
            पिज्जा-बर्गर मस्ती-से खाएं।

भाते न खाजा-लड्डू,बर्फी-पेड़े।
    चॉकलेट-टॉफी में नहीं बखेड़े।
        मुढ़ी- चना मुंगफली न खाते।
            लेज कुरकुरे नूडल्स हैं भाते।

गुड़-राबा मधु-मिश्री न खाते।
    च्युंइगम-गुटखा हैं रोज चबाते।
        खीर मलाई पनीर नहीं मांगते।
           आइसक्रीम के पीछे हैं भागते।

पूआ-गुझिया-खजूर न अच्छा।
    ब्रेड-केक बिस्किट लगे सच्चा।
         चाउमीन ने ऐसा किया कमाल।
             भूले भुजिया-सब्जी रोटी- दाल।

पिट्ठे-पिठिया देख मुँह बनाते।
    मोमो - पेटीज,गटागट खाते।
        इनको खाकर खूब अकड़ते।
            चाहे इनसे  स्वास्थ्य बिगड़ते।

भूले अपने देशी-पोषक स्वाद।
    फास्ट फूड खा हो रहे बर्बाद।
        झटपट -चटपट के इन फेरे में।
            घिर रहे  बीमारियों के  घेरे में।

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, September 22, 2024

जंजीर तोड़ उड़ चला मैं पंछी

जंजीर तोड़ उड़ चला मैं पंछी

पिंजरे का दरवाजा खोल,
        जंजीर तोड़ उड़ जा रे पंछी।
स्वर्ण कटोरा का मीठा फल,
        नीर छोड़ उड़ चला मैं पंछी।
जाने कब से हम कैद पड़े थे,
      स्वर्ण-पिंजरे में एक राजा के।
रोज मिलता खाने को मेवा,
      और पीने को मीठा फल-रस।
मनपसंद निबौरियाँ न मिलती,
          न वह पीने को नीर-सरस।
वह स्वतंत्रता के गीत न गाते,
        वृक्ष की डालियों पर चहक।
यहाँ न निर्मल वायु मिलता, 
         नहीं रंगीन पुष्पों की महक।
कहांँ आजादी स्वर्ण-पिंजरे में,
     स्व- निर्मित तृण घोंसले जैसा।
पंख हमारे लहू-लुहान हो जाते,
        क्या बतलाऊँ वेदना अपना। 
मन अवसाद से भरा है रहता,
    तरु का झूला लगता सपने-सा।
दो वालिस्त की दुनिया हमारी,
        सुध न रहता अपने तन का।
तोड़ वहांँ का सुंदर पिंजरा हम,
   अब उड़ आए हम पंख पसार ।
उन्मुक्त गगन में उड़ते जाते,
       जाना हमको क्षितिज के पार।
स्वर्ण कटोरा का मीठा-फल 
     व नीर छोड़ उड़ चला मै पंछी।
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, September 18, 2024

१ दहेज

जय मांँ शारदे 🙏🙏 💐💐
जय श्री गणेश 🙏🙏💐💐

दहेज (१)

वहाँ से खिसक गये। लड़कियों को बुलाकर वे अपनी बस में चढ़ाने लगे।मयंक ने देखा तो पागलों की भांति एक बार फिर अपनी सारी शक्ति संचित कर स्वयं को मुक्त कर लिया और उनकी तरफ लपका। लेकिन फिर उसे लोगों ने जकड़ लिया।वह उनकी बाहों से छुटने का जी तोड़ प्रयास कर रहा था।
इसी उपक्रम में उसकी नजरें छत पर चली गई जहांँ मुंडेर से झांकता उसे निरमा का सिर दिखा। क्या निरमा छत पर अकेली है ? उसकी छठी इंद्री उसे कुछ संकेत दे रही थी।एक बार फिर वह जोर लगाकर छुट गया और दौड़ कर सीढियांँ चढ़ने लगा।जब वह छत पर पहुंचा तो देखा निरमा छत की मुंडेर के निकट खड़ी है।वह धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ने लगा।पर निरमा को उसके आगमन का एहसास तक नहीं हुआ था। उसने अपनी दोनों हथेलियांँ रेलिंग पर टिकाए और पैर उचकाकर रेलिंग पर चढ़ गई और फिर नीचे कूदने हेतु छलांग लगा दिए।
पर ,यह क्या ? वह कूद नहीं पाई सिर्फ लड़खड़ा कर रेलिंग पर ही अटक गई। रेलिंग की रगड़ से उसके वदन में कहीं-कहीं खरोंच भी लग गये।पर उसका उसे कोई परवाह नहीं।उसे लगा उसकी चुनरी किसी चीज में फँस गयी है। उसने हाथ बढ़ाकर उसे छुड़ाना चाहा पर उसका हाथ भी किसी ने थाम लिया।वह हड़बड़ा कर पीछे पलटी।देखा मयंक उसे हाथ पकड़कर खींच रहा था।
छोड़ दो मुझे मयंक उसने रोते हुए कहा।
मयंक बिना कुछ कहे उसे रेलिंग से नीचे उतार लिया था।
उसके चेहरे से कठोरता लुप्त हो गई और वहाँ बेचारगी का साम्राज्य स्थापित हो गया।
उसी समय बारात की बस और कारें स्टार्ट हुईं और सड़क पर चल दी। मयंक को ऐसा लगा वह गाड़ियांँ उसके सीने पर चल रही हैं।
छोड़ो मुझे मयंक !अब मैं जीकर क्या करूंगी ? निरमा बेचैनी भरे स्वर में बोल उठी।उसकी आँखों में आंँसुओं की मोटी परत थरथरा रही थी।सीसे -पारदर्शी उन आँसू- परत के पीछे निरमा की आँखों की सफेदी सुर्खी  में बदली नजर आ रही थी।
ठहरो निरमा!इन आँसुओं को गिराकर बर्बाद मत करना। मयंक तड़प कर बोल उठा।
अब किस दिन के लिए जमा करके रखने क हते हो आशु को ?
 मैं मयंक के लहू-लुहान दिल पर जोरदार गुस्सा पड़ा। निरमा की बोली से उसका समूचा वजूद थर्रा उठा। उसे याद आया शादी ठीक होने के बाद निरमा किसी बात पर रो पड़ी थी तो वह उसे चिढ़ाते हुए बोला था रो-रो कर आंसुओं को बर्बाद मत करो निरमा ? कहीं यह आसु बिल्कुल खत्म हो गया सो बिदाई के समय रोओगी भी नहीं ।
और निरमा भी अपने लजीले स्वभाव के विपरित बोल उठी थी- हंसने लगूंगी और क्या।
 मयंक पहले तो मुँह बनाया था फिर बोला यह भी ठीक ही रहेगा। अन्य लड़कियों से निराली रहेगी तुम्हारी विदाई ।
और निरमा खिलखिला कर हंस पड़ी थी ।
लेकिन मयंक की पैनी निगाहों ने उसकी आंखों की कोरों में छलकाए आंसुओं को भी देख लिया था ।लेकिन आज समय आने पर निरमा वह सुख के आंसू नहीं गिरा सकी। उसका दिल सिसक उठा । निरमा के ये आंसू कार की सीट पर गिरने चाहिए थे और गिर रहा है छत पर ।हिम्मत से काम लो निरमा! वह अपने आप इस प्रकार बुदबुदा उठा जैसे खुद को तसल्ली दे रहा हो।
 अब कहांँ से हिम्मत लाऊँ ? जबकि सारा हिम्मत जवाब दे गया निरमा सिसकती हुई बोली।अब तो मुझे मर जाने में ही भलाई है ।अच्छा हुआ जो चाचा नहीं रहे ।नहीं तो वह सहन नहीं कर पाते यह सब ।मुझे भी उन्हीं के पास जाना है। नहीं निरमा! तुम्हारे मर जाने से उन कुत्तों के सेहत में कोई गिरावट नहीं आने वाली ।तुम्हारे जैसे हजारों निरमा होने इस धरती पर अपने प्राण त्यागे हैं। पर इन दहेज लोभियों के जबड़े फैलते ही चले गए। उन निरमाओं की मृत्यु के साथ ही इन दानवों की काली करतूतें भी दफन होकर रह गई ।और तुम मर कर इनकी कृत्य को दफना दोगी। अब तुम एक नया अवतार लेकर इन असमाजिक तत्वों का नाश करोगी । इन्हें सबक सिखाओ कि इस दहेज- सागर में गोते लगाने का अंजाम कितना भयानक हो सकता है।इस दहेज- सागर में कितने बड़े-बड़े जीव अपना विशाल जबड़ा फैला कर घात लगाए हुए हैं। जो किसी भी क्षण अपने जबड़े मैं दबोचकर उसका नामोनिशान तक मिटा सकते हैं । निरमा पर उसकी बातों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उसकी मुठियां भींच गई थी और चेहरे पर ऐसी दृढता उत्पन्न हो गई थी जैसे वह दुनिया की किसी भी बड़ी से बड़ी शक्ति से टकराने का इरादा बना ली हो। उसने स्वीकारात्मक ढंग से धीरे से सिर हिलाया।ही मयंक उसका हाथ थाम कर सीढियों की तरफ बढ़ गया । अगले ही कुछ मिनटों में दोनों नीचे बारात लौटने से शोकाकुल लोगों को समझा कर ढांढस बंधा रहे थे।

Sunday, September 8, 2024

अन्याय

जमाने में आज देखो,हो रहा अन्याय है ।
जो पीड़ित हैं उन्हें, मिल न पाता न्याय है ।
जमाने में आज देखो........
बांध पट्टी आंखों पर न्याय की देवी खड़ी है।
तुलिका लिए हाथ में विवस मुद्रा में अड़ी है।
पलड़ा जिधर झुके,उनके ही हक में न्याय है ।
जमाने में आज देखो........
अन्यायी लोग सदा ही,न्याय की रट हैं लगाते।
अन्याय को न छोड़ते,अर्थ न्याय का समझ न पाते।
अन्याय करते जाते हैं कहते हैं यही तो न्याय है।
जमाने में आज देखो..........
न्याय क्या मिलेगा,बिगड़ी यहांँ की है प्रणाली। 
जनता को भटकाती है,न्याय यह वेदनावाली।
फाँसी पर लटकाना ही,नहीं यहांँ पर न्याय है।
जमाने में आज देखो............
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, September 5, 2024

वायु (कविता)

वायु 

न ही रूप है  न  रंग है।
   न आकार है  न अंग है ।
      पर हवा हमारे जीवन में-
       रहता सदा सदा ही संग है।

पांच महाभूतो में एक है।
   उपयोग इसके अनेक हैं।
      हर जगह काम आता है-
         कार्य  इसके अनेक हैं।

हवा  हमारा  जीवन है।
   इससे हमारा तन मन है 
       इसके बिन चूल्हे में भी-
          जल न  पाता इंधन है ।

आओ इसे बचाएं हम।
   धरा पर वृक्ष लगाए हम।
       सांस  संवारन वायु को -
          मिलके स्वच्छ बनाएँ हम।

इसके दम पर जीते हम।
   हर पल हैं वायु पीते हम।
      अगर हमें न मिलता वायु-
         रह जाते सदा ही रीते हम।

                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

शिक्षक (दोहे )

शिक्षक 

शिक्षक देते हैं सदा, विद्या- बुद्धि व ज्ञान।
शिक्षक से हम सीखते,साहित्य, औ-विज्ञान।।

लक्ष्य - प्राप्ति के लिए, बतलाते हैं राह।
जीवन में शिक्षक बिना,मिलता कभी न थाह।।

हम माटी की लोय हैं, शिक्षक हैं कुम्हार।
गढ़ते हमको चाक पर, देते  हैं आकार।।

शिक्षा की दें भावना,करते  हैं गुणवान।
गुरु के गुण अपनाइए,बनिए गुण की खान।।

ज्ञान की दीप को जला, देते गुरु सद्ज्ञान।
राह दिखाते ज्ञान की, शिक्षक की पहचान।।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, September 3, 2024

गणेश (दोहे)

गणेश (दोहे)

सब देवों के देव हैं, पूजो प्रथम गणेश।
माता गौरी भगवती, पिता देवा महेश।।

हाथी जैसे कान हैं, लम्बोदर पर सूढ़।
कर इनकी आराधना,होते ज्ञानी मूढ़।।

सभी बुधवार को करें,इनकी पूजा आप।
गण गणपत्यै बोलकर, करिए मन से जाप।।

लड्डू-मोदक जानिए,इनका प्यारा भोग।
नित उठ भोग लगाइए,सुख से रहिए लोग।।

मूषका पर सबार हो,घुमते तीनों लोक।
भक्त जन पर दया करें, हरते सारे शोक।।

हाथ जोड़ जो मांगिए, देते देवाशीष।
पूर्ण कर मनोकामना,देते हैं आशीष।।

विघ्न हर्ता गणेशजी,हरते उर संताप।
हरते सबकी दीनता,हरते सबके पाप।।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, September 1, 2024

मैं प्यारी भाषा हिन्दी हूँ

मैं प्यारी भाषा हिन्दी हूँ (कविता)
(चोपाई छंद आधारित मुक्तक)

मैं प्यारी  भाषा  हिन्दी हूँ।
   भारत  माता  की  बिंदी  हूँ।
      विदेशी  भाषा  को  भगाने-
         मैं  आज  हिन्द में  जिंदी हूँ।

मुझसे  प्रेरित  भाषा  सारी।
   मैं  सभी भाषियों को प्यारी।
      छंदो- कविताओं में रचकर-
         हो  जाती  हूँ  मैं तो न्यारी।।

मेरे  शब्दों     में  आकर्षण।
   है अर्थ  भरा  मेरा  चितवन।
      सुंदर - प्यारे  मधु  भावों  से -
         है भरा हुआ मेरा कण-कण।

मैं  सब  लोगों को  भाती हूँ।
   मैं  शीघ्र  समझ में आती हूँ।
       जो मुझे  प्यार  से अपनाता-
         मैं  उसकी  ही  हो जाती  हूँ।

जो मुझको तुम अपनाओगे।
   सुख  बहुत सदा ही पाओगे।
      हिन्दी भाषा - भाषी बनकर-
         तुम  देशभक्त   कहलाओगे।

               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, August 31, 2024

जय-जय हिन्दी बोलिए

जय-जय हिन्दी बोलिए 

सबसे प्यारी हिन्दी भाषा, हिन्दी में सब बोलिए।
इसके संग किसी भाषा को,पलड़े में मत तोलिए।

सीखिए कोई भी भाषा, सीखना-सीखाना धर्म है,
सबके रंग में अपनी भाषा, हिन्दी के रंग घोलिए।

चुनना हो कोई भाषा तो, हिन्दी को अपनाइए,
इससे न अच्छी कोई भाषा,इधर-उधर मत डोलिए।

सभी भाषा से सरल है,इसे सीखना आसान है,
विशेषता है हिन्दी की,यह राज सारे खोलिए।

राष्ट्रीय भाषा भी बने यह,इसका मान बढ़ाइए,
बहुत विदेशी भाषाओं को,आज तक हम ढो लिए ।

हिन्दी दिवस मनाइए, हिन्दी के गुण गाइए,
देशवासी जाग जाएंँ, नींद गहरी सो   लिए।

संस्कृत की प्यारी बिटिया, बड़ा सलोना रूप है,
हिन्द के माथे की बिंदी,जय-जय हिंदी बोलिए 
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 29, 2024

हिन्दी वर्णमाला

                    हिन्दी वर्णमाला 

अल्फाबेट बहुत सीखे हम, सीखें हिंदी वर्ण।
हर वर्ण का मान बड़ा है ,जैसे लगता स्वर्ण।।

मानक वर्ण हिन्दी केभाई,होते हैं पूरे बावन।
कभी-कभी भी आते हैं, नहीं छोड़ते दामन।।

तेरह वर्ण पहले सीखो,जिसको कहते स्वर।
स्वर की मात्राएं सदा,लगती है व्यंजन पर।।

ग्यारह वर्ण स्वर के ऐसे,जिनका पूरा थाह।
इसके दो वर्णों को, कहते हैं आयोग वाह।।

व्यंजन वर्णों के भी हैं,बहुत ही बड़ा समुह।
स्वर से मिल पूरा होते,जब भी खोलो मुँह।।

पाँच वर्णों के होते हैं,यहाँ पर पूरे पाँच वर्ग।
प्रथम वर्ण के नाम पर,कहाते कवर्ग-चवर्ग।।

चार वर्ण कहलाते हैं, जान  लें अंतस्थ वर्ण।
चार वर्ण घर्षण पा, कहलाते हैं ऊष्म वर्ण।।

चार वर्ण कहलाते यहाँ, सुनिए संयुक्त व्यंजन।
दो वर्ण नीचे बिंदु पा,कहाते उत्क्षिप्त व्यंजन ।।

हिन्दी वर्णों के इस समुह,को कहते वर्णमाला।
आसानी से इसे सीखते, हैं बालक और बाला।।

             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

हिन्दी वर्णमाला

अल्फाबेट बहुत सीखें तुम,सीखो हिन्दी वर्ण।
हर वर्ण का महत्व बहुत है, जैसे धातु स्वर्ण।
ग्यारह वर्ण स्वर के ऐसे, होता महत्व अथाह।
इसके दो वर्णों को हम,कहते हैं आयोगवाह।

Wednesday, August 28, 2024

जन्माष्टमी (मन हरण घनाक्षरी)

जन्माष्टमी (मन हरण घनाक्षरी)

अंधेरी,आधी रात में,
    भादों के बरसात में,
       शुभ दिन जन्माष्टमी,
           नाच  रहे  जन   हैं।

आये कान्हा गोद में,
   झूमों मंगल - मोद में,
        वसुदेव-देवकी का,
              पुलकित  मन  है।

विष्णु के अवतार हैं,
    करते  बेड़ा  पार हैं,
       मथुरा निवासियों का,
              खुश   चितवन  है।

कान्हा सबको तारते,
     संताप  से   उबारते,
         दीन-हीन सेवकों को,
               देते  धन - जन  हैं।

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

हिन्दी भाषा जिन्दाबाद (गीत)

हिन्दी भाषा जिंदाबाद 

हिन्दी भाषा बोलो सब मिल,
सदा ही रखना इसे आवाद।
कहो हिन्द के हिन्दी-भाषी,
हिन्दी  भाषा  जिन्दाबाद।।
कहो हिन्द के.............

हिन्दी भाषा बड़ी मनोहर।
गर्व करो इसको अपनाकर।
हिन्दी ने परतंत्रता तोड़ी-
 हुआ हमारा देश आजाद।।
कहो हिन्द के.............

रच हिन्दी में छंद तुम प्यारे।
कथा-कहानी ग्रंथ तू न्यारे।
विदेशी भाषा को अपनाकर-
हिन्दी को मत कर बर्बाद।।
कहो हिन्द के............

कागद हिन्दी से सिंचित हो।
गीत-कविता से गुंजित हो।
क्षेत्रीय भाषाओं में भी तुम-
हिन्दी शब्दों को रखना याद।।
कहो हिन्द के...........

पढ़ो अगर तुम हिन्दी भाषा।
रखो मन में यह अभिलाषा।
हर भाषा के ग्रंथों का होवे-
हिन्दी भाषा में अनुवाद।।

कम न हो हिन्दी की महिमा।
सदा रहे बनी इसकी गरिमा।
हिन्दी से ही है हिन्द हमारा-
मिटाता जो मन के अवसाद।।
कहो हिन्द के..............
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, August 25, 2024

कृष्ण भजन


कृष्ण भजन 

सुन लो पुकार मेरी कृष्ण कन्हैया।
पकड़ पतवार, मझधार मेरी नैया।
सुन लो......
भटक रही आज मुझे राह नहीं सूझे।
करो न निराश मुझे आस नहीं दूजे।
दिखा दो तुम राह मुझे वंशी बजैया।
सुन लो .......
दिल की तड़प मेरी कोई न जाने।
समय पर अपने भी होते बेगाने।
मन के क्लेश मिटा रास रचैया।
सुन लो...........
एक विनती प्रभु सुन लो तू मेरी।
पूर्ण कर आज काज,लगाओ न देरी।
मेरी नौका के तुम ही हो खेवैया।
सुन लो......
हाथ जोड़ समृद्धि करती पुकार है।
दूर कर मन में जो आता दुर्विचार है।
हे कृष्ण द्रौपदी के लाज बचैया।
सुन लो......
                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, August 20, 2024

अनपढ़ बुढ़िया कहानी

अनपढ़ बुढ़िया (कहानी)

बार-बार मोबाइल में कॉल करती और रिंग होते ही काट देती।उसे हिम्मत नहीं हो रहा था कि अनुपमा मैम से बात करे। ऑनलाइन क्लास में उनकी खनकती आवाज से ही लगता है कि वह किसी खास व्यक्तित्व की मल्लिका हैं।इस कॉलोनी में रहने आई तो उसे इस बात की खुशी हुई की उसकी मैम भी इसी कॉलोनी में रहती हैं ।कॉलेज में एडमिशन होते ही लॉकडाउन लग गया और ऑनलाइन क्लासेस स्टार्ट हो गए।उससे बड़ा मुश्किल लगता ऑनलाइन क्लास में कुछ समझ में आएगा कि नहीं ?
लेकिन नहीं क्यों ? मैं इतनी संजीदगी से क्लास लेती हैं ।बहुत ही बारीकी से हर चैप्टर को पढाती हैं।
लेकिन कुछ कैप्टरों को वह फिर से मैम से पढ़ना चाहती है।इसलिए जब मॉर्निंग वॉक पर निकली तो वापसी में ख्याल आया मैं से कॉल कर पूछ लूं, किस रोड में रहती हैं ।
वाह!मैम ने जो रोड बताया वह तो उसी रोड में चल रही है। उसने हाउस-नंबर पूछा और चल पड़ी। यह क्या यह तो वह अपने ही किराए के मकान के निकट पहुंच गई।
 मैम हाउस का कोई नाम भी है ?
 हांँ है ना , "अनमोल विला" उसने पढ़कर देखा उसे अपने आप पर बड़ी जुंझलाहट महसूस हुई। इस घर में इतने महीने से रह रही है और उसका नाम तक नहीं पढ़ सकी। 
मैम से फोन पर बात करती-करती वह घर के अंदर घुसी मैम ने कहा मैं लेफ्ट साइड के बरामदे में पिंक साड़ी पहने बैठी हूंँ। वह आगे बढ़ी । मैम यहाँ रहती है, और मैंने उन्हें कभी देखा तक नहीं ? 
वह लपकती हुई मैम के सामने पहुंच गई।
अरे ! यहांँ तो उसकी मकान मालकिन बैठी मिली ।
मुझे अनुपम मैम से मिलना है ।
हांँ हांँ मैं ही हूंँ अनुपमा ।
उसके सिर पर घड़ों पानी पड़ गया ।
जिनकी वेश-भूषा देख वह उन्हें अनपढ़ बुढ़िया कहती थी, वह उसकी तेज दरार अनुपमा मैम हैं। उसे सारी बातें याद आने लगी जब वह अनुपमा मैम को कुछ पूछे जाने पर उनसे ऐठ कर उत्तर देती थी कि आपको समझ नहीं आएगा। पढ़ाई के बारे में पूछे जाने पर वह बोलती कि हमारा ऑनलाइन क्लास होता है आप क्या जानें यह सब ।वह तो भली महिला थीं जो 
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 8, 2024

देश हमारा (लघुकथा)

देश हमारा (लघुकथा)

अंतरराष्ट्रीय खेल क्रिकेट मैच का अंतिम दिन था। पिछले दिन की पारी में भारत की बढ़त से भारत के नगरों-शहरों के लोग ही नहीं बल्कि छोटे- छोटे कस्बों और गांँवों के लोग भी अत्यंत उत्साहित थे।जीत की आस  प्रत्येक क्रिकेट-प्रेमी के दिल में लगाये थे।जहाँ जाओ वहाँ क्रिकेट की ही चर्चा छिड़ी होती।सभी मना रहे थे कि अपना देश 'भारत' जीत जाए।
तभी कहीं से कुछ शोर सुनाई पड़ी।उस शोर को सुन भरत उधर देखने लगा....
"जीतेगा भई जीतेगा !
देश हमारा जीतेगा !
भारत प्यारा जीतेगा !
क्रिकेट खेल का-
विश्वगुरु भारत जीतेगा !"
तरुण वर्ग के बच्चों का समुह नारे लगाते हुए वहाँ से चले जा रहे थे ।
    उन बच्चों को उत्साह उमंग और आत्मविश्वास देख मुहल्ले वासियों हृदय प्रफुल्लित हो गया।
वहाँ बैठी तरुणा चाची ने मुँह बनाते हुए कहा-"क्रिकेट खेल का उद्गम स्थल इंग्लैंड है, फिर भारत क्रिकेट खेल का गुरु कैसे बन गया ?"
जनक दादा ने कहा -"निसंदेह क्रिकेट खेल इंग्लैंड में प्रारंभ हुआ। और,यह खेल इंग्लैंड और श्रीलंका का राष्ट्रीय खेल भी है।परन्तु भारतीय खिलाड़ी अधिक कुशलतापूर्वक इस खेल को खेलते हैं। इन्हें इस खेल में जितनी महारथ प्राप्त है उतना किसी देश के खिलाड़ियों को नहीं।"
वहीं बैठे सोहन चाचा ने कहा -"सच पूछिए तो इस खेल का उद्गम स्थल भी भारत है।"
"वह कैसे?"
"भारत के पौराणिक खेलों में अत्यंत  रोमांचकारी और प्रभावी खेल गिल्ली डंडा और पिट्टो इत्यादि रहे हैं।ये खेल भी लगभग क्रिकेट जैसा ही खेला जाता है। भारतीय खिलाड़ी इन खेलों के माध्यम से उच्च कोटि के गेंदबाज व बल्लेबाज हो जाते हैं ।इसलिए भारत निरंतर क्रिकेट मैच में न केवल जीत ही हासिल करते हैं,बल्कि क्रिकेट खेल में विश्व 'चैम्पियन' भी कहलाते हैं ।"
   "जीत गया जी जीत गया!
  विश्व गुरु भारत जीत गया S S S
सामने वाले घर में टेलीविजन पर मैच देख रहे क्रिकेट खेल के दीवाने जोर से ताली बजा कर चीख पड़े और पटाखे की आवाज से पूरा देश..
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, August 6, 2024

जटाधारी शिव (विजया घनाक्षरी)

जटाधारी शिव ( विजया घनाक्षरी )

सदाशिव विश्वेश्वर, 
   महाकाल महेश्वर, 
      पशुपति पंचवक्त्र,
         जटाधारी शिव शिव ।

नील लोहित शंकर,
   विश्वपाक्ष शुभंकर,
      शिवाप्रिय गंगाधर,
         त्रिपुरारी शिव शिव।

वीरभद्र वामदेव,
   शूलपाणि महादेव,
     ललाटाक्ष महाकाल, 
        दानी भारी शिव-शिव।

गिरिधन्वा,अनीश्वर,
    गिरिप्रिय गिरीश्वर,
      जगद्गुरु कृपानीधि,
         दुःख-हारी शिव शिव। 

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, July 26, 2024

सफलता का मंत्र

सफलता का मंत्र 

निज प्रगति मेंआप ही,होते बाधक लोग।
आलस्य इसका कारण है,कहते हैं संयोग।।

असफल होकर कोसते, व्यर्थ भाग्य को आप।
काम सदा जो टालते,रखते उर संताप।।

कभी नहीं जो मानते, गुरुजनों की बात।
पछताते जीवन भर, कुढ़ते हैं दिन रात।।

शेखी जो बघारते, मात-पिता के संग।
काहिल रहते हैं सदा,सीख न पाते ढंग।।

सक्रियता से जीवन में, करते हैं जो काम।
कर्मठता से काम कर,पाते सभी मुकाम।।

कल पर काम न टालिए, तुरंत करें सब काम।
महामंत्र है जीव की, मिलता सुख आराम।।

प्रतिस्पर्धा सबसे करें, लेकर मन में होड़।
मिले सफलता आपको , जीवन हो बेजोड़।।

          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

मुहावरा आधारित (आस्तीन का साँप )


 
 विश्वासघात

सोच समझ कर करो मित्रता,
सोच समझ कर आस करो।
आस्तीन में साँप न पालो,
सोच समझ विश्वास करो।

सामने से भोले बनते जो,
पीठ-पीछे कुछ खेल रहे।
आगे में माया खूब दिखाते,
पीछे जाकर धकेल रहे ।

सांत्वना वे बहुत हैं देते,
चौड़ी करते वे छाती हैं।
रंग बदलते गिरगिट जैसे,
जब बारी कुछ आती है।
   
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, July 25, 2024

शिव शंकर ने डमरू बजाया (गीत)

शिव-शंकर ने डमरू बजाया

शिव शंकर ने डमरू बजाया,
डम-डम,डम-डम,डम-डम-डम।
डमरू के संग ताल मिलाकर,
नाचे कहकर बम - बम - बम।
शिव शंकर.....................
डमरू की आवाज सुनी तो,
पार्वती माँ दौड़ी आईं।
डमरू के संग ताल मिलाकर,
वो भी नाचीं छम - छम - छम।
शिव शंकर.......................
डमरू की आवाज सुने तो,
गणपति बप्पा दौड़े आये।
डमरू के संग ताल मिलाकर,
वे भी नाचे धम - धम - धम।
शिव शंकर.....................
डमरू की आवाज सुने तो,
कार्तिक प्यारे दौड़े आये।
डमरू के संग ताल मिलाकर,
वे भी नाचे ढम - ढम - ढम।
शिव शंकर...................
डमरू की आवाज सुने तो,
भक्त जन सब दौड़े आये।
डमरू के संग ताल मिलाकर,
वे भी नाचे झम - झम - झम।
शिव शंकर.......................
नाच देख शिव शंकर दानी,
प्रसन्न हो मन में मुस्काते,
भक्तों के सब संकट हर लिए,
हर लिए उनके सारे ग़म।
शिव शंकर.....................
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि' 


Monday, July 22, 2024

पहला सोमवार

पहला सोमवार 

शिव के मंदिर में भक्त हजार हैं,
पहला सोमवार है जी पहला सोमवार है।
सभी मिलकर करते जयकार हैं,
पहला सोमवार है जी पहला सोमवार है।
औढरदानी शिव हैं,सभी को वर देते हैं।
भक्तों के दुखड़े,सुन हर लेते हैं।
शिवजी को भक्तों से,सुनो बड़ा प्यार है।
पहला सोमवार है जी पहला सोमवार है।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, July 18, 2024

हिन्दी की आराधना।

               हिन्दी की आराधना 

हिन्द देश के वासी कर लो, हिन्दी की आराधना।
जब मुख खोलो हिन्दी बोलो, होगी सच्ची साधना।।

अपनी है यह प्यारी हिन्दी,इसे सभी सम्मान कर।
दुनिया में जाकर हिन्दी का,खुलकर तुम गुणगान कर।
सारी दुनिया में यह छाये,मन में रख लो कामना।।
जब मुख खोलो हिन्दी बोलो, होगी सच्ची साधना।।

हर भाषा को लिखना-पढना, माना अच्छी बात है।
हर भाषा का ज्ञान बढाना,जीवन की सौगात है।
हिन्दी भाषा सबसे अच्छी,रख लो मन में भावना।
जब मुख खोलो हिन्दी बोलो,होगी सच्ची साधना।

संस्कृत की बेटी है हिन्दी, सुंदरता की खान है।
हर अच्छी बोली-भाषा को,इसपर ही अभिमान है।
देश की क्षेत्रीय भाषा की,करती  है यह सामना।
जब मुख खोलो हिन्दी बोलो, होगी सच्ची साधना।

अपने प्यारे हिंद देश की, हिन्दी से पहचान है।
हिन्दी से ही प्यार हमें है, हिन्दी पर ही शान है।
इसे तज विदेशी भाषा में, स्वयं को तुम न बांधना।
जब मुख खोलो हिन्दी बोलो, होगी सच्ची साधना।
                         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

माँ जगजननी गीत

बोल -सौ साल पहले मुझे तुम से प्यार था 

माँ जगजननी को, भक्तों से प्यार था,
आज भी है और कल भी रहेगा।

जो मैया के निकट जाता,माँ उसकी झोली भरती हैं।
जो हैं दुःख-चिंता से व्याकुल,उनका संकट भर्ती हैं।
शेरोंवाली मैया को भक्त हजार था,
आज भी है और कल भी रहेगा।
माँ जगजननी को.........
माँ के अंखियों में देखो,छवि भक्तों की बसी प्यारी।
माँ का हर रूप न्यारा,इनकी ममता है न्यारी।
मैया जी को बेटों से सदा ही दुलार था ,
आज भी है और........
सुन विनती माँ अम्बे, हमें बल-बुद्धि दो इतनी।
हम सबके हैं साथी, सहायता माँगे जो जितनी।
युग-युग पहले माँ का सजा दरबार था,
आज भी है और.........
                             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, July 17, 2024

तुलसी पूजा गीत

तुलसी गीत 
बोल जगदम्बा से लाड़ो सुहाग मांगे )

मेरे आंगन में शोभे श्याम तुलसी।
श्याम तुलसी,हरे राम तुलसी।

सोने सुराही में गंगा-जल भरके,
नित उठ पटाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की डलिया में बेली चमेली,
तोड़ -तोड़ चढ़ाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की थाली में दाख-छुहारा,
नित भोग लगाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की दीया, रेशम की बाती,
घृत डाल जलाऊँ मैं श्याम तुलसी ।

सोने की थाली कपूर की बाती,
नित आरती उतारूँ मैं श्याम तुलसी।

मेरे आँगन में शोभे......
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, July 13, 2024

मेरा वृक्ष मेरा परिवार (दोहा)

मेरा वृक्ष,मेरा परिवार (दोहा )

मत काटो तुम वृक्ष को,यह मेरा परिवार।
इनका भी मेरी तरह, धरती पर अधिकार।।

इनके कारण जी रहे, धरती पर सब जीव।
फिर इसको जन काटते, बातें लगे अजीब।।

यह देता भोजन हमें, इंधन देता साथ।
सांस लेने शुद्ध हवा,इसे झुकाओ मार।।

छाया देता धूप में,तब दें शुद्ध समीर।
गर्मी से व्याकुल रहें,होता जीव अधीर।। 

वृक्ष हमारे मित्र हैं,ईश प्रदत्त उपहार।
काम आते हमें सदा , बनकर ये परिवार।।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

बच्चे (चौपाई )

बच्चे  (चौपाई )

बच्चे सबसे अच्छे होते।
भोले -भाले सच्चे होते।।

मन में कोई कपट न लाते।
मिलजुल रहना हमें सीखाते।।

सीखते हमसे हमें सिखाते 
जैसे ढालों वह ढल जाते।।

तुतली बोली इनकी भाती।
खूब लुभाती खूब हँसाती।।

सबको भाते नटखट बच्चे।
सबको लगते हैं ये अच्छे।।
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, July 11, 2024

केवट की विनती (मगही भाषा)

केवट की विनती (मगही भाषा)

पाँव न सटैहा,हो रघुरैया।
नारी न बन जाए कहीं मोर नैया।
पाँव न सटैहा......
तू जो पथलवा में पाँव सटैला।
पल भर में ओकरा तू नारी बनैला।
पैला जग में बडै़या हो रघुरैया।
पाँव न सटैहा .........
जब तोहें चढ़बा नैया में हमर।
चरण पखारे के दें दा तू अवसर।
नै लेबो हमें चरणा-धोलैया हो......
पाँव न सटैहा.......
पहले हम रामजी के पाँव पखारब।
और सीता मैया के चरण फखारव,
फखारब तब तोर लक्ष्मण भैया 
पाँव न सटैहा...............
हँस कर रामजी नाव में बैठला।
लखन जी राम के पीछे बैठला।
संगबा में बैठली सीता मैया।
पाँव न सटैहा........
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, July 10, 2024

लक्ष्य (मुक्तक)

लक्ष्य (मुक्तक )

लक्ष्य पाने के लिए तुम,सत्य पथ पर बढ़ चलो।
राह में पर्वत भी आये, हौसला ले चढ़ चलो।
दृढ़ हृदय ले बढ़ते जाओ,राह तुम भटको नहीं-
राह कोई न दिखे तो,नव रास्ते गढ़ते चलो।

चाह रखो तुम हृदय में,राह भी मिल जाएगी।
दृढ़ हो निश्चय तुम्हारा, चट्टान भी हिल जाएगी।
ठोक कदमों से उसे तुम, दूर कर दो राह से -
पाषाण की छाती को चिर, सुंदर कली खिल जाएगी।

हृदय में हिम्मत बढ़ा चल, तुम कभी मत हारना।
जीतकर ही आयेंगे हम,मन में रखो धारना।
रास्ते के ठोकरों को, ठेलकर बढ़ते चलो-
पग कभी उसपर पड़े तो, तुम भी ठोकर मारना।

अधिकार तेरा लक्ष्य पाना, लक्ष्य पाना धर्म है।
लक्ष्य हेतु संग्राम करना, भी हमारा कर्म है।
जीत कर संग्राम को तुम, लौट कर घर आओगे-
तब तुम्हें यह ज्ञात होगा, लक्ष्य ही तो मर्म है।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

देखने को बहार

देखने को बहार, देखने को बहार ।
कान्हा चले मधुबन में,देखने को बहार,
बसंत के बहार , कान्हा चले 
आगे आगे कान्हापीछे से गोपियांँ,
हाँ जी राधा चली उनके साथ।
देखने को बहार ।
कोकिल कूके,पपीहा गाबें,
हाँ जी मोर दिखाते नाच,बीच मधुबन में 
कान्हा चले मधुबन में........
कदम पर कन्हैया, मुरली बजाबे,
हाँ जी प्यार की छेड़े तान।बीच मधुबन में,
देखने को.....
पलास तरू पर दस-दह दहके,
हाँ जी लता में खिले कचनार।
कान्हा चले मधुबन में,देखने को बहार 
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि' 

Tuesday, July 9, 2024

चपला बोली (चौपाई छंद)

चपला बोली (चौपाई छंद )

नभ  में चपला चमक रही है।
कड़-कड़,कड़-कड़ कड़क रही है।।

बादल को ललकार रही है।
बारम्बार पुकार रही है।।

कहती बादल अब तुम बरसो।
नहीं करो तुम कल औ परसों।।

अब न करो तुम आना-कानी।
चला नहीं अपनी मनमानी।।

घनघोर घटा को  बरसाओ।
तपती वसुधा को हर्षाओ।।

आ तुझको मैं राह दिखा दूँ।
कहाँ बरसना यह समझा दूँ।।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, June 29, 2024

गणेश वंदना (हरि गीतिका छंद)

गणेश वंदना (हरि गीतिका छंद)

हे गजानन, चढ़ मूषक वाहन, गृह आप मेरे पधारिए।
प्रारंभ किया जो काज मैंने,आप उसको संवारिए आशीष देकर संवारिए।।
आये यदि कोई विघ्न तो,प्रभु आप उसको टालिए।
बिगड़े जब कोई बात तो,प्रभु आप उसको संभालिए।।

आपके चरणों में प्राणि,जब झुकाता माथ है।
आशीष हेतु आपका उठता सदा ही हाथ है।
आप ही शुभ काज करते,आप दीनानाथ हैं।
जिनका न कोई साथ देता,आप उनके साथ है।

आपके पग को पकड़ हम,विनती करते आज हैं।
मुख से जो हम बोलते हैं,यह हृदय की आवाज है।।
आपके ही हाथ में अब, भगवन् हमारी लाज है।
आपसे न है हमारा,छुपा हुआ कोई राज है।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, June 28, 2024

अनुराग (सवैया)

अनुराग (सवैया)

जो मन में अनुराग धरो तुम, 
                 चाहत जो तुमको वह पाओ।
जो मन चाह रहा उसको अब, 
                 पाकर संग खुशी अपनाओ।।
रे मन मौज करो न अभी तुम, 
                 जाकर आज यही समझाओ।
जाग अभी तुम ऐ मन मूरख,
                 सोबत हो अब नींद भगाओ।।

जीवन का सब आस यहाँ पर,
                   पूरण हो तुम जोर लगा लो।
काम करो अपने मन माफिक,
               लेकिन आज नहीं यह टालो।।
के विधि से यह काज बना नहिं,
              आज जिया तुम आन बसा लो।
जो बिगड़े अब काज यहाँ पर,
               धैर्य धरो उसको सुलझा लो।।

जो मन ने तुमको समझा यह, 
                     बात वही सच है यह जानो।
उद्यम जो करते जुगती कर,
                   सिद्ध करें सब कारज जानो।।
सोच मनोरथ पूर्ण करे वह, 
                       साधन तो उसने यह मानो।
ध्यान रहे जिसके मन में यह, 
                       ले अनुराग लगा यह मानो।।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, June 15, 2024

रहने दो न पापा ( लघुकथा)

रहने दो ना पापा (लघुकथा)

सुनिए जी मिनी की शादी मैंने उतरा दीदी के जेठ के बेटे से पक्की कर ली है । कामिनी ने उल्लसित स्वर में खुश होते हुए रघुवीर से कहा । उनलोग बहुत खुश हैं ।उन्होंने कहा है मुझे परिवार के रूप में आप सभी बहुत पसंद हैं । विषेश रूप से मिनी बिटिया.......
तुमने बगैर मुझसे पूछे यह रिश्ता क्यों तय कर लिया ? इतना आवश्यक तो नहीं था कि उस शराबी से मेरी बेटी का रिश्ता पक्का कर लिया। वह तो मेरी मासुम मिनी बिटिया से बिल्कुल अलग विचार का है ।क्या पता कैसा बुरा व्यवहार करेगा मेरी लाडली के साथ। रघुवीर ने सहमते हुए कहा।
कोई बात नहीं पापा! अपने कमरे से निकलते हुए मिनी ने कहा -शराबी है तो क्या हुआ मांँ की तरह मैं भी झेल लूंगी उसका गुस्सा-अत्याचार,अपमान-अवहेलना, दुत्कार-फटकार ।आपकी तरह नशे में द्यूत होकर गालियाँ देगा ,मारेगा, पिटेगा।पैसे-गहने छीन लेगा बस यही न।मेरा जीवन नर्क हो जाएगा तो तुम मुझे देखकर दुखी रहना।जैसे नाना -नानी माँ को देखकर.......
रघुवीर सकते की हालत में खड़ा रह गया। अपनी पत्नी की जगह बिटिया के दुखी जीवन की कल्पना मात्र से.......
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, June 5, 2024

धरती कहे पुकार



धरती कहे पुकार 

  देख लो तुम
यह रेगिस्तान में,
   भरा है रेत।

     बन रहे हैं
देखो ऐसे ही अब
    हमारे खेत।

    दूर-सुदूर
दिख रहा है यहाँ
  एक ही पेड़।

    तुम मानव ,
ने बर्वाद है किया
   है हमें छेड़।

    अगर तुम 
एक-एक पेड़ भी
   यहाँ लागते।

   बसुंधरा के
आंचल में कुछेक 
  पेड़ सजाते।

  स्वच्छ रहता
पर्यावरण यहाँ
  हम हँसते।

   सूखता नहीं 
नल कूप,न पानी
   को तरसते 

सुजाता प्रिय समृद्धि