मेरा वृक्ष,मेरा परिवार (दोहा )
मत काटो तुम वृक्ष को,यह मेरा परिवार।
इनका भी मेरी तरह, धरती पर अधिकार।।
इनके कारण जी रहे, धरती पर सब जीव।
फिर इसको जन काटते, बातें लगे अजीब।।
यह देता भोजन हमें, इंधन देता साथ।
सांस लेने शुद्ध हवा,इसे झुकाओ मार।।
छाया देता धूप में,तब दें शुद्ध समीर।
गर्मी से व्याकुल रहें,होता जीव अधीर।।
वृक्ष हमारे मित्र हैं,ईश प्रदत्त उपहार।
काम आते हमें सदा , बनकर ये परिवार।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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