शरद-पूर्णिमा
शरद-पूर्णिमा का चाँद निकला,
हैं चमक रहा देखो अम्बर।
आज चाँदनी का रूप सुनहला,
देखो कितना लगता सुंदर।
झीनी-झीनी कोमल किरणें,
पुष्प-लताओं से झांँक रही।
आज रात की दुधिया रंग को,
अपलक है देखो ताक रही।
राधा के संग रास रचाते,
मन मोहन कृष्ण मुरारी हैं।
वंशी की धुन पर थिरक रहे ,
आज विरज की नर-नारी हैं।
लक्ष्मी माता सुधा-कलश ले,
अहा!आईं हम-सबके आँगन।
मीठी खीर का भोग लगाओ,
कर आरती-अर्चन मनभावन।
सब मिलकर जयकार करो,
जगजननी जय माता की।
धन-संपत्ति जो सबको देती,
सुख - समृद्धि की दाता की।
अहा सभी मिल नाचो-गाओ,
झुम-झूम कर खुशी मनाओ।
वैर - द्वेष मन से विसरा कर,
सबको अपने गले लगाओ।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
No comments:
Post a Comment