विश्वासघात
सोच समझ कर करो मित्रता,
सोच समझ कर आस करो।
आस्तीन में साँप न पालो,
सोच समझ विश्वास करो।
सामने से भोले बनते जो,
पीठ-पीछे कुछ खेल रहे।
आगे में माया खूब दिखाते,
पीछे जाकर धकेल रहे ।
सांत्वना वे बहुत हैं देते,
चौड़ी करते वे छाती हैं।
रंग बदलते गिरगिट जैसे,
जब बारी कुछ आती है।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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