Friday, November 29, 2019

गाँव मेरे तू शहर न बनना

गाँव मेरे तू शहर न बनना।।
कोलाहल का घर न बनना।।

बड़े-बड़े आवास जहाँ हो,
छल-कपट का वास जहाँ हो।
पास-पडो़स को कोई न जाने।
अपने अपनों को ना पहचाने।
ऐसा कोई तू नगर न बनना।।
गाँव मेरे तू शहर न बनना।।

भाईचारे का भाव  नहीं हो।
मेल-जोल , संभाव नहीं हो।
अतिथियों का सत्कार नहीं हो।
परहित औ परोपकार नहीं हो।
मतलबी बेअसर न बनना।।
गाँव मेरे तू शहर न बनना।।

सूरज की परवाह नहीं हो।
और चाँद की चाह नहीं हो।
नदियों का अस्तीत्व मिटेगा।
वन पर्वत का महत्व घटेगा।
प्रकृति को बेनजर न करना।
गाँव मेरे तू शहर न बनना।।

उजड़े ना खेत- खलिहान।
जहाँ न रहेगी कोई बथान।
खेतों में फैकट्रियाँ लगेंगी।
नकली अनाज जहाँ बनेगें।
ऐसे जन पर कहर न करना।।
गाँव मेरे तू शहर न बनना।।

गौशाला बन जाएगा डेयरी।
जहाँ न होगी अब गैया मेरी।
पाउडर का दूध-दही मिलेंगे।
चर्बी के मक्खन-घी मिलेंगे।
ऐसा कोई सफर न करना।।
गाँव मेरे तू शहर न बनना।।

गलियाँ बनेगी सड़के चौड़ी।
गाड़ियाँ आएगी दौड़ी-दौड़ी
पेट्रोल,डीजल के धूएँ होंगे।
ताल- तलैया ना कुएँ होंगे।
विलुप्त पोखरे नहर न करना।।
गाँव मेरे तू शहर न बनना।।

गंदगी की भरमार बढ़़ेगी।
प्लास्टिक की अंबार रहेगी।
प्रदूषित होगी जहाँ जलवायु।
घट जाएगी जीवों की आयु।
रोगों का तू घर ना बनना।।
गाँव मेरे तू शहर न बनना।।

न होंगे दातून ,पत्तल, चटाई।
तोसक ,तकिया और रजाई।
विदेशी माल से बाजार सजेगी।
कुटीर-उद्योग बेकार मिलेगी।
ऐसा कोई तू समर करना।।
गाँव मेरे तू शहर न बनना।।
                   सुजाता प्रिय

Tuesday, November 26, 2019

युग देखो

      मानवता                 
की छवि बिगड़ता     
     युग देखो।    
            
      दानवता
का रूप निखरता
      युग देखो।

    राजनीति                 
का खेल निराला        
    युग देखो।      
          
    हर जगह
हो रहा घोटाला
    युग देखो।

   फैल रही                       
महंगाई भीषण          
   युग देखो।    
             
      हो रहा
जनता का शोषण
     युग देखो।

       कहीं है                     
कीमती ऊँची कोठी       
      युग देखो।     
             
       कहीं नहीं
    है पेट भर रोटी
       युग देखो।

       पढ़े-लिखे.                     
     बेकार पड़े हैं                  
       युग देखो।      

      अनपढ़ों  की 
     कतार बनी है  
     . युग देखो।

      सुजाता प्रिय

Saturday, November 23, 2019

बिटिया जनने का जिम्मेदार कौन(कहानी)

व्यग्रता से चहलकदमी करती हुई लक्ष्मी कभी माँ के चेहरे को गौर से निहारती , कभी कुछ बोलने को आतुर हो उठती, कभी असमंजस का भाव लिए ठिठकती। फिर इधर-उधर देखने लगती। रह-रहकर उसकी आँखों में आँसू छलक आते। उसके मन में उठ रहे सवाल बार-बार उसे कुछ बोलने को उकसा रहे थे।लेकिन माँ के ममत्व भरे चेहरे को देख वह जुबान खोलने का साहस नहीं कर पा रही थी।उसे लगता माँ ने किन कठिन परिस्थितियों में कितनी कड़ी मेहनत कर तीनों बहनों को पाल-पोसकर बड़ी किया ।पढ़ाया लिखाया ।माँ का प्यार-दुलार दिया तो पिता का फर्ज भी निभाया।कभी किसी तरह की कमी नहीं महसूस होने दिया।
उसकी माँ कौशल्या भी मशीन पर कपड़े सिलतीे हुई उसकी व्याकुलता देख रही थी।वह समझ नहीं पा रही थी कि लक्ष्मी आज इतनी परेशान क्यों है। इस तरह तो वह उस दिन भी वेचैन नहीं हुई थी जब लड़के वालों ने उसे छाँट दिया था । वह भी सिर्फ यह कहते हुए कि उसके कोई भाई नहीं। क्या पता उसकी माँ की तरह उसे भी पुत्र न हो ।
क्या बात है बिटिया! तुम इतनी परेशान क्यों लग रही? माँ ने प्यार से पुचकारते हुए पूछा तो उसकी आँखों के छलकते आँसू आँखों के बाँध तोड़ बाहर बह निकले।रुंधे गले से माँ से पूछा - माँ हम तीनों बहनें आप के लिए बोझ बन गईं।
नहीं मेरी प्यारी लाडली! यह कैसी बहकी- बहकी बातें कर रही है री तू आज।
हाँ माँ शर्मा दादी कह रही थी कि आपने हम तीनों बहनों को पाकर संतोष तो कर लिया ,पर हमारे कारण ही आपका जीवन खराब हो गया।हमारा बोझ आपको ढोना पड़ रहा है। हमारे कारण ही समाज के लोग आपको हेय दृष्टि से देखते हैं।हमारे कारण ही आपको लोगों द्वारा आपमान और अवहेलना झेलना पड़ता है।
मैं यह भी देखती आई हूँ कि पास-पड़ोस और परिवार में कोई मांगलिक कार्य होता है तो स्त्रियाँ आपका तिरस्कार करती हुई काना-फुसी करती हैं कि इसे बेटा नहीं इसलिए इससे विध - विधान न करबाना चाहिए।
जाने दे बेटी! माँ ने  उसे अपने गले लगाते हुए कहा - हम जमाने की सोंच तो नहीं बदल सकते।कौशिल्या के मन में लक्ष्मी के  जनम के समय की सारी बातें चलचित्र की भाँति घुमने लगी। जब उसका जन्म हुआ तो उसके सभी परिवारवाले खुश थे लेकिन पास-पडोस के लोग सहानुभूति पूर्वक समझाते क्या करोगी भगवान ने जो करम में लिखा वही होगा । कोई अपने मन से सांत्वना देती हुई कहती।बेटी भी क्या बुरी है ।आजकल तो बेटियाँ हवाई जहाज उड़ा रही हैं। कोई मुँह बनाती हुई कहती - क्या बात है लक्ष्मी आई है ।तो कोई तुरंत उसकी बातों का खण्डन करती हुई कहती बेटी जनम लेते ही माँ -बाप को कंगाल बना देती है ।किसे ने उसेे टोक कर कहा कमर कस लो बहू रानी ! बिटिया के विवाह में सारे गहने छिन जाएँगे। लेकिन घर के सभी लोग सचमुच उसे लक्ष्मी समझते और लक्ष्मी पुकारते।

इधर लक्ष्मी के जेहन में भी कुछ दिन पूर्व की घटना याद आ रही थी।उस दिन जब वह कॉलेज से घर आई तो माँ किसी पुरुष को तिरस्कार भरे लहजे में बोल रही थी।
कौशल्या,कैकेयी तो ले आये।अब सुमित्रा भी ले आ।शायद उससे बेटा हो जाए।तुम पुरुष यही तो नहीं समझ पाते कि बेटे या बेटी पैदा करना स्त्रियों के वश की बात नहीं ।इसके लिए तो बस पुरुष ही जिम्मेवार है । स्त्री को तो प्राकृति ने एक ही क्रोमोजोन दिया ।पर तुम्हें तो दोनों क्रोमोजोन्स मिले । फिर क्यों बेटे नहीं पैदा कर लिए?तुम तीन बेटियों से घबरा गए और उन्हें बेसहारा छोड़कर भाग गए।तो लो अब चार बेटियाँ गले पड़ गयी ।अब किस- किस से पिण्ड छुड़ाओगे ? बेटी को जनमाना तुम अभिशाप समझते हो ।अगर बेटियाँ नहीं रहेंगी तो पुरुष किस से विवाह करेगा ? अगर बेटियाँ नहीं रहेंगी तो पुरुषों का जनम कैसे होगा? सृष्टि कैसे होगी?
माँ एक बात पूछूँ? लक्ष्मी ने उन बातें को याद करते हुए   संकुचित भाव से पूछा।
हाँ बेटी ! पूछ ना ।जो पूछना है ।अब तुमलोग बड़ी हो गयी  ।दुनियादारी समझती है ।इसलिए सारी बातें जाननी चाहिए तुम्हें।
माँ वह व्यक्ति कौन था जिससे उस दिन तुम्हारी बहस हो रही थी।
वह तुम्हारे पिता थे बेटी! माँ ने जैसे किसी राज पर से पर्दा हटाते हुए कहा।
पिताजी! लक्ष्मी ने आश्चर्य जनक लहजे में पूछा।सरस्वती और पार्वती भी उनकी बातें सुनकर वहाँ आ गईं । वे आवाक हो माँ को देख रहीं थी।
लेकिन तुमने तो कहा था कि-
तेरे पिताजी गुम हो गए।कौशल्या ने उसके वाक्य को पूरा किया।फिर उन्हें बताने लगी_ पहली बेटी होने से परिवार के लोग बहुत खुश थे। लेकिन दूसरी बेटी हो जाने पर तुम्हारे पिताजी और परिवार के सभी लोग औरों की तरह मुझे ही कोसने लगे कि मैं सिर्फ बेटियाँ ही जनमती हूँ।
जब पार्वती पेट में थी तो तुम्हारे पिताजी अपने परिवार वालों से मिलकर अल्ट्रासाउण्ड द्वारा भ्रुण की जाँच करवाना चाहते कि मेरा गर्भस्थ शिशु लड़का है या लड़की। मैं इसके लिए तैयार नहीं हुई।क्योंकि मैं जानती थी कि भ्रुण बिटिया का हुआ तो वे मुझे गर्भपात करने को मजबूर कर देंगे ।उसके बाद से शुरु हुआ मुझपर जुल्म- सितम का सिलसिला।आये दिन बात -बात पर मेरे साथ मार -पिट होने लगा। हर लोग मेरा तिरस्कार  करने लगे।उसी तरह प्रताड़ित होते हुए मैने पार्वती को जन्म दिया। परिवार और समाज के लोगों ने मुझे बहुत बुरा-भला कहा तथा तुम्हारे पिताजी को भी हतोत्साहित किया।शायद इसी कारण वे किसी काम से बाजार गये तो वापस नहीं लौटे।हमलोगों ने उन्हें बहुत ढुंढा-ढुंढबाया पर वे नहीं मिले।
इधर घर के लोग भी मुझपर कहर बरपाने लगे। उनकी प्रताड़ना से उबकर मैं मायके चली गई। लेकिन मायके वाले भी ज्यादा दिन हम चारो का बोझ नहीं उठा पाये।हारकर मैने अपने लिए अलग ऱास्ता चुन लिया।सिलाई-बुनाई कर मैने अपना और तुम तीनों का पेट पालने लगी।
उस दिन अचानक तुम्हारे पिताजी इस रास्ते से गुजर रहे थे तो मुझे देख रुक गये और अत्यंत दुखी हो बताने लगे कि हमारी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़कर वे दूसरे शहर जाकर कारोबार करने लगे।फिर कैकेयी नाम की युवती से विवाह कर लिया । अब उससे भी उनकी चार बेटियाँ हैं। अब वे उसे कोस रहे थे कि उसने भी सिर्फ बेटियाँ ही.........
लक्ष्मी  सरस्वती और पार्वती बड़े गर्व और आत्मीयता से अपनी माँ को देख रही थी।और सोंच रही थीं - सचमुच बेटी जनने के लिए जिम्मेवार कौन?
                          सुजाता प्रिय

Friday, November 22, 2019

बिटिया बोली

पेट में पलती बिटिया बोली-
मुझे न मारो माँ- पिताजी।

जनम लेते ही बिटिया बोली-
मुझे न फेको माँ-पिताजी।

दूध पीती बिटिया बोली-
गले लगा लो माँ-पिताजी।

भूख से ब्याकुल बिटिया बोली-
मझे खिला दो माँ-पिताजी।

बड़ी होकर के बिटिया बोली-
मुझे पढ़ा दो माँ-पिताजी।

पढ़ लिखकर बिटिया बोली-
मुझे कमाने दो माँ-पिताजी।

पैसे कमाकर बिटिया बोली-
मैं तेरा सहारा माँ-पिताजी।

ब्याह हुआ तो बिटिया बोली-
मुझे भूल न जाना माँ-पिताजी।
                   सुजाता प्रिय

Tuesday, November 19, 2019

परत हटाकर देखो

तेरे भीतर गुण की खान,
परत हटाकर देखो।
असीम शक्ति अथाह ग्यान,
पलक उठाकर देखो।

ऐ मानव तुम तो ईश्वर की,
रचना है सबसे सुंदर।
अकूत संपदा के तुम मालिक,
भंडार छिपा तेरे अंदर।
अपनी कीर्ति को पहचान,
परत हटाकर देखो।
पलक उठाकर देखो।

धरा पर ऐसा मनुष्य नहीं,
जिसमें कोई गुण न होता है।
गुणवानों में भी कुछ-ना
-कुछ तो अवगुण होता है।
रह मत इससे तू अनजान,
परत हटाकर देखो।
पलक उठाकर देखो।

अब सबसे जलना छोड़ो ,
मन से द्वेष हटा कर तू।
उपयोग करो अपने गुण का,
मन का क्लेश मिटाकर तू।
बन जाओगे बहुत महान,
परत हटाकर देखो।
पलक उठाकर देखो।

सुजाता प्रिय

Friday, November 15, 2019

तेरे आने की आहट (गजल)

हवा के झोंके में होती जो सरसराहट है।
यूं लगता है तेरे आने की यह आहट है।

चाँद को देख चाहत का मन लुभाता है,
ऐसा लगता है तेरे प्यार की मुस्कुराहट है ।

गुल खिलते हैं जब कभी भी गुलिस्ता में,
लगता है तेरी खुशी की खिलखिलाहट है।

भौंरे छेड़ते हैं  तान कभी बागों में मधुर,
कानों में गूंजे तेरी गीतों की गुनगुनाहट है।

जाड़े की नर्म धूप में तपन मिलती थोड़ी,
एहसासों में लगता तेरे साँसों की गरमाहट है।

जब पेड़ों पर विहग चहककर कलरव करते,
क्यूँ लगता है तेरी बातों की फुसफुसाहट है।

नजरें ढूंढती ब्याकुल हो हर तरफ तुझको,
तू कहीं पास हो या मेरे मन की आकुलाहट है।
                                सुजाता प्रिय

Tuesday, November 12, 2019

नेहरू चाचा (नेहरू चाचा के जन्म दिवस पर विशेष )

नये -नये गुब्बारे लेकर
आए नेहरू चाचा।
मैं नाची और गुड्डी नाची,
चुन्नु भैया नाचा।
नाच रहे गुब्बारे सारे,
रंगों की रंगोली।
कुछ गुब्बारे लुक-छिप
नभ में खेले आँख-मिचौनी।
गुब्बारे की शान निराली,
झूमे और इठलाये।
एक साथ सब थिरक रहे हैं
अपनी तोंद फुलाये।
वश में उनके कर रखी है
नाजुक पतली डोरी ।
भाग न जाए नीलगगन में
उड़कर चुपके-चोरी।
हरे-लाल और नीले-पीले,
है कोई चम्पइया।
जो मन भाए, जी बहलाये
सो तुम ले लो भैया ।
    सुजाता प्रिय

Monday, November 11, 2019

भगवान की विजय हुई

न राम की जय हुई,
न अयोध्या धाम की विजय हुई।
हम लड़ें नहीं फिर किस संग्राम की विजय हुई।
लाख
है विविधता,
फिर भी हममें है एकता।
हम एक थे,हम एक हैं,
हम एक ही
रहें सदा।
सौहार्द्र भाईचारे के ,
आयाम की विजय हुई।
हम जानते
हैं फूट से हैं ,
देश के टुकड़े हुए।
देश अलग लेकर भी हम,
हैं आज तक
लड़े हुए।
इतिहास ना दुहरायें, इस
पैगाम की विजय हुई।
राम ही
रहीम है,
कृष्ण ही करीम है।
एक ही माटी हमारी,
एक ही
जमीन है।
जो सबको है गढ़ता सदा,
उस भगवान की विजय हुई।
               सुजाता प्रिय
          

Friday, November 8, 2019

मौन भाषा

               भाषा तो
          बहुत है दुनियाँ में,
मौन भाषा की महिमा ही अलग।
               न अक्षर
           इसके ना मात्राएँ,
फिर भी इसकी गरिमा ही अलग।
                इसकी
         कोई आवाज नहीं,
बिन बोले सबकुछ कह जाती।
             इस भाषा
         के विशाल हृदय,
सबके फिकरे को सह जाती।
       .    बोली जाती
           न सुनी जाती,
न लिखी जाती न पढ़ी जाती।
              पर जाने
           इसके पन्नें पर,
कितनी बोलियाँ हैं गढ़ी जातीं।
              इस भाषा
         को हथियारों बना,
पराजित करते हम दुश्मन को।
            हम जीतते
           हैं संग्राम बड़े,
मिलतीे हैं खुशियाँ जीवन को।
             अम्मा के
          मौन इशारे से,
समझ जाते थे हम बात बहुत ।
            पिताजी के
         मौन नजरिये से,
हम पाते थे  सौगात  बहुत।
            पर मौन
       हमें उकसाती है,
कि सदा नहीं तुम मौन रहो।
            दुनियाँ
      बोले कड़बी बोली,
कुछ मीठी वाणी तुम भी कहो।
            जब मौन
      रहोगी हरदम तुम,
समझेगी दुनियाँ कमजोर तुझे।
            कुछ उल्टी
       -सीधी बात बना,
वह देगी सदा झकझोर तुझे।
          सुजाता प्रिय

Monday, November 4, 2019

जीवन के स्वप्न

स्वप्न
सुनहरे
जीवन के,
हो जाएँ साकार।
मानव को मानव
जन से,रहे सदा ही प्यार ।
ऊँच-
नीच का
भेद हमारा,
जड़ से ही मिट जाये।
छल-कपट -सा दुर्गुण ,
जग में,कभी न आने पाये।
सच्चाई
का स्वर्ण पताका ,
जग -भर में लहराए ।
झूठ , फरेब, मक्कारी,
जल के बुलबुले -सा ढह जाए।
शान-घमंड
विद्वेष-भावना,
कभी न आए पास।
सब पर सबको मोह
रहे, सबपर सबको विश्वास।
पर
हितकारी
कार्य में, तनिक
न हमको संशय हो।
सुख पहुँचाऊँ, सदा,
सभी को ,मन में दृढ़ निश्चय हो ।
              सुजाता प्रिय

Friday, November 1, 2019

सूर्यदेव से विनती

सात घोडें के स्वर्ण रथ पर।
आए सूर्यदेव सवार होकर।
कार्तिक  मास की  षष्ठी है।
कतार में खड़े वर्ती-कष्टी हैं
सूप में भरकर फल-पकवान।
दे रहे अर्ध्य लगाकर ध्यान।
सिर नवाकर कर रहे विनय।
हृदय तल से थोड़ा अनुनय।
हे सूर्यदेव है नमन आपको।
दूर करें जग के संताप को।
अंधा देखे और बहरा सूने।
लंगड़ा दौड़े अरध्य चढ़ाने।
गूंगा  में गाए तेरा कीर्तन।
लूला ताली दे मन भावन।
कोढ़ी को दो कंचन काया।
धरा के हर जीवों पर मा़या।
धन अपार दे हर निर्धन को।
सुनी गोद भर हर बांझन को।
हर नारी को दो अमर सुहाग।
हर पुरुष के मन में अनुराग।
हर बालक को विद्या का वर दे।
हर बाला को सम्मान से भर दे।ञ
                सुजाता प्रिय व