Saturday, June 29, 2024

गणेश वंदना (हरि गीतिका छंद)

गणेश वंदना (हरि गीतिका छंद)

हे गजानन, चढ़ मूषक वाहन, गृह आप मेरे पधारिए।
प्रारंभ किया जो काज मैंने,आप उसको संवारिए आशीष देकर संवारिए।।
आये यदि कोई विघ्न तो,प्रभु आप उसको टालिए।
बिगड़े जब कोई बात तो,प्रभु आप उसको संभालिए।।

आपके चरणों में प्राणि,जब झुकाता माथ है।
आशीष हेतु आपका उठता सदा ही हाथ है।
आप ही शुभ काज करते,आप दीनानाथ हैं।
जिनका न कोई साथ देता,आप उनके साथ है।

आपके पग को पकड़ हम,विनती करते आज हैं।
मुख से जो हम बोलते हैं,यह हृदय की आवाज है।।
आपके ही हाथ में अब, भगवन् हमारी लाज है।
आपसे न है हमारा,छुपा हुआ कोई राज है।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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