कहां कबूतर-सुन भाई तीतर!
घोंसला बनाने सीखाओ।
बोला तीतर-तिनके लेकर,
गोल-गोल उसे घुमाओ।
थोड़ा समझकर,कहता कबूतर,
हांँ-हाँ मैं सब समझ गया।
अधूरा पाकर, ज्ञान कबूतर,
कभी घोंसला नहीं बना पाया।
जो जन ज्ञान अर्जित करने में,
चित को नहीं लगाते हैं।
वे कभी अपने जीवन में,
सफल नहीं हो पाते हैं।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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