प्रथम पूज्य गणेश (मिलो न तुम तो)
गणपति बप्पा दिखते भारी,मूषक है इनकी सवारी।
अजब हैरान हूँ मैं।
लम्बोदर पर सूढ़ है भारी,दूब है इनको प्यारी।
अजब हैरान हूँ मैं।
दिखते हैं भोले-भाले, मस्तक है इनका गजराज का।
कान हैं सूप जैसे,नाम है लम्बी महाराज का।
चार हाथ में रस्सी-फरसा,परसु और कुल्हाड़ी,
अजब हैरान हूँ मैं,
एक दिन देवों ने रखी प्रतियोगिता विचार के।
तीन लोक की परिक्रमा,पहले करेगा तीन बार जो ।
प्रथम पूज्य वह देवता होगा, बात बहुत है भारी,
अजब हैरान हूँ मैं।
सुनकर देव सभी सोच में पड़े गहरा मर्म था।
काम कठिन था पर,जोर लगाना अब धर्म था।
सब देवों ने दौड़ लगाई, चढ़कर अपनी सवारी।
अजब हैरान हूँ मैं।
मूषक चढ़ गणपति,रास्ता रोके गौरी-नाथ की।
बीच बैठाकर किये परिक्रमा तीन बार वे ।
अचरज से उन्हें देख रहा था, देवों का देवों का दल भारी,
अजब हैरान हूँ मैं।
देवों ने उनसे पूछा,यह कैसा खेले तुम खेल रे ।
तीन लोक घूमना था,यह तो नहीं कोई मेल रे।
करना था परिक्रमा तुझको,करने लगे नचारी,
अजब हैरान हूँ मैं।
देवों से बोले देवा,मैंने किया भला कर्म है।
माता-पिता की सेवा,करना हमारा शुभ-धर्म है।
माता- पिता ही तीन लोक है,सुन लो बात हमारी
अजब हैरान हूँ मैं।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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