Saturday, June 15, 2024

रहने दो न पापा ( लघुकथा)

रहने दो ना पापा (लघुकथा)

सुनिए जी मिनी की शादी मैंने उतरा दीदी के जेठ के बेटे से पक्की कर ली है । कामिनी ने उल्लसित स्वर में खुश होते हुए रघुवीर से कहा । उनलोग बहुत खुश हैं ।उन्होंने कहा है मुझे परिवार के रूप में आप सभी बहुत पसंद हैं । विषेश रूप से मिनी बिटिया.......
तुमने बगैर मुझसे पूछे यह रिश्ता क्यों तय कर लिया ? इतना आवश्यक तो नहीं था कि उस शराबी से मेरी बेटी का रिश्ता पक्का कर लिया। वह तो मेरी मासुम मिनी बिटिया से बिल्कुल अलग विचार का है ।क्या पता कैसा बुरा व्यवहार करेगा मेरी लाडली के साथ। रघुवीर ने सहमते हुए कहा।
कोई बात नहीं पापा! अपने कमरे से निकलते हुए मिनी ने कहा -शराबी है तो क्या हुआ मांँ की तरह मैं भी झेल लूंगी उसका गुस्सा-अत्याचार,अपमान-अवहेलना, दुत्कार-फटकार ।आपकी तरह नशे में द्यूत होकर गालियाँ देगा ,मारेगा, पिटेगा।पैसे-गहने छीन लेगा बस यही न।मेरा जीवन नर्क हो जाएगा तो तुम मुझे देखकर दुखी रहना।जैसे नाना -नानी माँ को देखकर.......
रघुवीर सकते की हालत में खड़ा रह गया। अपनी पत्नी की जगह बिटिया के दुखी जीवन की कल्पना मात्र से.......
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

10 comments:

  1. वाह! सच ही कहा आपनें सखी ..

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  2. चंद लाइनों में गूढ़ बात। बहुत बढ़िया।

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद 🙏

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