Wednesday, July 26, 2023

अपमान (रोला छंद )

अपमान (रोला छंद)

मत कर तू अपमान,किसी की सुन ले भाई।
कर सबका सम्मान, इसी में  है चतुराई।।
जिनका हो अपमान, सदा मन उनका रोता।
दिल ही नहीं दिमाग, सदा है आहत होता।।

अपमान जहाँ हो जाय,दुःख है आता मन पर।
उनके दिल की हाय,अहो लगता जीवन भर।।
हरदम रखना ध्यान, न अपमान किसी की हो।
न सम्मान की आस,अब कभी भी फीकी हो।।

            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, July 21, 2023

कुण्डलियाँ

प्रेम का कोमल बंधन,सब लोगों को भाय।
इस बंधन को तोड़कर,पल भर रहा न जाय।।
पल भर रहा न जाय,यह बंधन अति प्यारा। 
नहीं कभी टूटता,जानता है जग सारा।।
प्रेम के बंधन का,साथ हम सदा निभाए।
बंधन में जो रहे, प्यार में बंधता जाए।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, July 20, 2023

गुरु वंदना (दोहे)

गुरु वंदना

प्रातः उठकर कीजिए,गुरुवर को प्रणाम।
गुरु के श्री चरणों में,बसता गुण का धाम।।
पाकर गुरु-आशीष हम,पाते मन को चैन।
उनके ज्ञान प्रकाश से,खुलता सबका नैन।।
गुरु-ज्ञान ही आज है,जीवन का आधार।
ज्ञान-नौका चढ़ लगता,सबका जीवन पार।।
गुरुजी को ही याद कर,करें प्रारंभ काज।
सफल सदा ही आप हो,सुख से रहे समाज।।
नमन करें कर जोड़ कर,रख मन में सम्मान।
जब आरंभ काम करें,कर लें गुरु का ध्यान।।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'गुरु वदन

Wednesday, July 19, 2023

बलम परदेसिया,( हास्य )

बलम परदेसिया 

हमें अकेला छोड़ गांँव में,गए बलम परदेश।
पाती लिखकर रोज भेजते,मुझको यू संदेश।

मैं तो यहांँ कमाता हूंँ प्यारी,रुपए बीस हजार।
आकर तुम्हें घुमाऊंँगा,ले जाकर मीना बाजार।

मैं बिचारी,विरह की मारी,लगी देखने सपने।
शायद आने वाले हैं,अच्छे दिन कुछ अपने।

आए प्रीतम बैठ पलंग पर,सुलगाये सिगरेट।
 मुंँह से धुआंँ उड़ा कर बोले,सुन बुद्धु दी ग्रेट।

रोटी-भात मुझे न भाता,खिला पिज्जा-बर्गर।
 गुटका-खैनी,पान-मसाला खाता हूंँ,जी भर कर।

भूल गए कमीज व कुर्ते,भूल गये गमछी-धोती।
आधी टांग की पैंट पहन-कर,टांग दिखाते मोटी।

खड़ा किए जुल्फी अपनी,आधा जेल लगाकर।
आधा सिर चिकना करवाये,उस्तरे से मुड़ाकर।

लस्सी-शरबत छोड़,पीते कोल्ड ड्रिंक्स गटगट।
चूरमा चबेना भूल गए,खाते हैं वे मैगी चटपट।

नमस्कार-प्रणाम करना भूले,बोलते हाय-हैलो।
गाय-भैंस को देख बोलते,हाऊ आर काउ-बफैलो।

हाय विधाता मैं क्या जानूँ ,जाएंँगे बलम परदेस।
सुसंस्कार को भूलकर वे, बनाएंँगे गीदड़ वेश।

            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, July 16, 2023

लक्ष्य के लिए (गीतिका छंद मुक्तक)

लक्ष्य (गीतिका छंद मुक्तक )
लक्ष्य पाने के लिए तुम, सत्य पथ पर बढ चलो।
राह में पर्वत भी आए,हौसला ले चढ़ चलो ।
दृढ़ता से बढ़ा कदम,भटको नहीं तुम राह में -
राह कोई ना दिखे तो,नव राह तुम गढ़ चलो।

चाह रखो अपने मन में, राह भी मिल जाएगी।
दृढ़ निश्चय मन में रख,चट्टान भी हिल जाएगी।
ठेल कदमों से उसे तुम,दूर कर दो राह से-
पत्थरों पर सफलता की,कलियाँ खिल जाएगी।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, July 12, 2023

गज़ल (विधाता छंद आधारित)

गज़ल  (विधाता छंद आधारित)

गरीबों की कमाई पर,जमाने की नजर क्यों है।
जरा इतना बता कोई,जमाना बेअसर क्यों है।

भरें वो जान दे पानी,उसे तुम शान से पीते,
मगर तुम शान को तजकर,न बनते हमसफ़र क्यों है।

अगर हम दे नहीं सकते किसी को भी दमड़ी,
किसी के हाथ की कौड़ी,झपटने की समर क्यों है।

गरीबी आज है उनमें,फकीरी है जमाने में,
कभी नजरे घुमा देखो,जमाना बेनजर क्यों है।

अभी सोचो सभी मन में,गरीबी रोग ना कोई,
अमीरों का लहू इतना,हुआ अब बेअसर क्यों है।

सुनों बुजदिल हमारी भी, जहांँ में राह काफी है,
इबादत आज तू तज कर,पकड़ते यह डगर क्यों है।

करो विश्वास खुद पर तुम, खजाना लूट मत लाओ,
हटा लो हाथ तुम अपने,खड़ा तुम इस कदर क्यों है।

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, July 11, 2023

हाय रे जिंदगानी

हाय रे जिंदगानी

हाय -हाय रे जिंदगानी कभी हँसे,कभी रोये।
किस्मत की कहानी कभी पाये,कभी खोये।।
हाय-हाय रे जिंदगानी........
लाख कोई भरा रहे धन वैभव से।
नींद न आये चोर-डाकू के भय से।
लूटने के भय से दिन रात नहीं सोये।
हाय-हाय रे जिंदगानी.........
कोई भरा है यहाँ पूरा परिवार से।
चिंता सताबे रोजी -रोजगार की।
भर आँखों में पानी,कभी हंसे कभी रोये।
हाय-हाय रे जिंदगानी.........
भिक्षुक बेचारा,किस्मत का मारा।
झोली फैला कर,फिरे मारा-मारा।
दो पैसे दो दानी,कह नैना भिंगोयो।
हाय-हाय रे जिंदगानी..........
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, July 10, 2023

मैं तुम्हारी राज हूँ

मैं तुम्हारी राज हूँ

तुम मेरे सरताज हो और, मैं तुम्हारी राज हूँ।
तुम ही मेरे हमसफर हो, मैं तेरी हमराज हूँ।

तुम बसे मन में मेरे,कैसे यह बतलाऊँ मैं,
तुम दिल की धड़कनें,जिसकी मैं आवाज हूँ।

मन है करता तेरे संग,आसमां में उड़ चलूँ,
तुम जहां तक पर फैलाओ, मैं वहीं अंदाज हूँ।

तुम अगर हो साथ तो,डर नहीं मुझको कोई,
तुम मेरे रखवाले हो और,मैं तुम्हारी लाज हूँ।

सज रही महफ़िल यहांँ,गायकी के वास्ते,
तुम मेरी संगीत बन जा, मैं तुम्हारी साज हूँ।

हो रहा है गान अब, हम भी मिलकर गाएँंगे,
आ तू मेरी गीत बन जा, मैं तेरी आवाज़ हूंँ।

देखो अब सारे जहां में, प्यार का सम्राज्य है,
तुम यहांँ सम्राट बन जा, मैं तुम्हारी ताज हूंँ।

खुशनुमा लगता जहां है,जब तुम्हारा साथ हो,

एक -दूजे के लिए हम, ज़हान से टकरायेंगे,
तुम पे है अभिमान मुझको, मैं तुम्हारी नाज हूँ।

हम नहीं बिछड़े कभी,मन में ऐसी कामना,
संग मेरे हर कल रहोगे,संग तुम्हारे आज हूँ।

              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                 रांची, झारखण्ड

गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा

किए इंद्र अतिवृष्टि,
   मझधार पड़ी सृष्टि,
    है आपकी कृपा दृष्टि,
         कृपा अब कीजिए ।

रक्षा हेतु दीनानाथ,
    गोवर्धन लिए हाथ,
     नवाऊँ आपको माथ,
           आशीर्वाद दीजिए।

 केशव कृष्ण मुरारी,
    गोवर्धन गिरधारी,
       सबके संकट हारी,
         कृपा अब कीजिए।

करते आपकी पूजा,
  आप सब नहीं दूजा,
     करते सदा ही रक्षा,
        धन-धान्य दीजिए।

 सुजाता प्रिय समृद्धि

Sunday, July 2, 2023

सीख (कहानी)

सीख
रश्मि नित पढ़ाई करने के बाद अपनी सहेलियों के साथ खेलने में मग्न हो जाती।आजकल उसका मुख्य खेल था तितली पकड़ना। उसकी फुलवारी में रंग-बिरंगे फूल खिलते ।उन फूलों का रस चूसने के लिए उन पर रंग-बिरंगी तितलियाँ मंडराती रहती।वे फूलों पर बैठती नहीं कि बच्चे दवे पांँव चल पड़ते उन्हें पकड़ने।थोड़ी-सी कोशिश के बाद किसी के साथ में नीली,तो किसी के हाथ में पीली। किसी के हाथ में हरी,तो किसी के हाथ में लाल और किसी के हाथ में काली तितली आ जाती। फिर क्या ! अपनी-अपनी तितलियों के पंख पीछे कर किसी कुशल प्रतिभागियों से एक-दूसरे से लड़ाते।माता पिता के लाख मना करने पर भी अपने इस प्रिय खेल को नहीं छोड़ते। एक दिन जब रश्मि तितली पकड़ रही थी तो उसके पिताजी ने भरे प्यार से उसे अपने पास बुलाया और बिना कुछ बोले उसके दोनों हाथ पीठ की ओर घुमाकर पकड़ लिए। रश्मि कुछ समझी नहीं।उसने कहा-पिताजी!मेरे हाथ छोड़िए,मैं खेलने जाउंँगी।लेकिन पिताजी ने उसके हाथ नहीं छोड़ा।उसकी मांँ ने खाना खाने के लिए उसे पुकारा। फिर भी पिताजी उसके हाथ में नहीं छोड़े। बाहर फेरी वाले ने आवाज लगाई। रश्मि का मन फेरी वाले का सामान देखने के लिए ललक उठा।बहुत करने पर भी पिताजी ने हाथ नहीं छोड़े। इतनी देर तक हाथ पीछे बंधे रहने से उसके हाथ में दर्द होने लगा।रश्मि ने गिड़गिड़ाते हुए कहा -हे मेरे हाथ छोड़ दें बहुत दर्द हो रहा है। पिताजी ने उसके घर छोड़ दिया।फिर उसके हाथ में पकड़े तितली की ओर इशारा करते हुए कहा-देखो बेटा!जिस प्रकार हाथ पीछे करने से तुम्हारे हाथ दुखने लगे,उसी प्रकार तितलियों के पंख पीछे करने से उन्हें दर्द का एहसास होता होगा। इतनी देर मैंने तुम्हारे हाथ बकड़े तो तुम्हें खेलने का मन करने लगा,भूख लगी, फेरी वाले का सामान देखने का मन करने लगा।तो सोचो तुम लोग इतनी देर तक तितलियों को पकड़े रहते हो,तो क्या इस बीच  उनका मन कहीं जाने या घूमने का नहीं करता होगा ? उन्हें भी भूख लगी लगती होगी। पिताजी ने उसे समझाते हुए कहा ।अकारण किसी को बंधनों में नहीं जकड़ना चाहिए। स्वतंत्रता हर प्राणी का जन्मसिद्ध अधिकार है। हर प्राणी अपना जीवन अपने तरीके से जीने के लिए स्वतंत्र हैं। सबकी इच्छाएं अलग-अलग होती हैं ।रश्मि को सीख मिल गयी। उसने किसी भी जीव को कष्ट नहीं देने का संकल्प लिया।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, July 1, 2023

नटखट तितलियांँ (कहानी )

नटखट तितलियांँ
 बात बहुत पुरानी है।एक बगीचे में बहुत सारी रंग-बिरंगी तितलियांँ रहतीं थीं।
उन तितलियों में एक रानी तितली थी। जिसकी बातें सभी तितलियांँ मानती थी।
 उनमें कुछ नन्हीं-नन्हीं तितलियांँ थीं।उनके पंख अभी छोटे थे।जिस कारण वे अभी उड़ नहीं पाती थी।
 नन्हीं तितलियों में कुछ चंचल तितलियांँ थीं, जो पंख छोटे होने पर भी उड़ने का प्रयास करती रहती।
उन चंचल तितलियों में कुछ नटखट तितलियाँ थीं। जो अपने नन्हें-नन्हें पंखों से उड़कर शैतानी करती थी।
 उन नटखट तितलियों में एक तितली थी सिम्मी और एक थी रिम्मी। दिन में कभी-कभी बगीचे में घूमते समय दोनों में भेंट हो जाती तो तोतली भाषा में दो चार बातें कर लेती।इस प्रकार दोनों में गहरी दोस्ती हो गई।फिर तो दोनों रोज अपने-अपने घरों से निकलकर बातें करने लगी।एक दिन बातों-बातों में सिम्मी ने रिम्मी से पूछा- रिम्मी यह तो बता हमारी मांँ रोज हमें छोड़ कर कहांँ चली जाती हैं ?
 रिमी ने कहा- मेरी मांँ तो मेरे लिए फूलों का रस लाने जाती है। वही सब की मांँ जाती होंगी। सिम्मी ने पूछा यह फूलों का रस मिलता कहांँ है ?
 रिम्मी बोली मेरी मांँ कहती है इस बगीचे से थोड़ी दूर एक सुंदर फुलवारी है।जिसमें खूब सुंदर-सुंदर रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं उन्हीं फूलों का रस चूस कर मांँ हमारे लिए लाती है।
 सिम्मी ने कहा -अगर उस फुलवारी का पता हमें चल जाए तो हम स्वयं वहांँ जाकर खूब रस पीएँ।
दोनों ने उस फुलवारी को ढूंढ निकालने की योजना बना डाली। क्योंकि वे अपने कोमल नन्हें पंखों से उड़ना सीख ली थी।
एक दिन चुपके से उड़ते हुए एक ओर चल पड़ी लेकिन उन्हें कोई फुलवारी नहीं मिली।हांँ एक छोटा सा घर जरूर दिखा।उस घर के आगे क्यारियों में कुछ सुंदर फूल खिले थे ।दोनों सहेलियों को बड़ी भूख लगी थी।उन फूलों पर बैठकर वे रस चूसने लगी।तभी घर के अंदर से एक छोटा सा बालक निकला। उसका नाम था शिल्पू।शिल्पू ने जब दोनों लाल-पीली तितलियों को देखा,तो वह उन्हें पकड़ने के लिए आगे बढ़ा।वह दोनों अभी ठीक से उड़ना नहीं जानती थी, इसलिए भाग नहीं पाईं और शिल्पू ने उसे आसानी से पकड़ लिया।
 दोनों तितलियां भागने के लिए छटपटाती रहीं और शिल्पू उनके पंख पकड़ कर उनसे खेलता रहा।
 दोनों तितलियां को अपनी- अपनी मांँ की याद आने लगी।अब उन्हें समझ में आ गया था कि माँ उन्हें अकेले बाहर निकलने के लिए क्यों मना करतीं हैं। दोनों रो रही थीं।परंतु,सिल्पू तो उसकी आवाज सुन नहीं रहा था।
इस बीच शिल्पू को प्यास लगी।वह दोनों को वहीं छोड़कर पानी पीने चला गया।सिम्मी और रिम्मी जल्दी से उड़ कर भाग चलीं। रास्ते में उन्हें उनकी मांँ मिल गईं। क्योंकि वे उन्हें ढूंढते हुए आ रही थी।मांँ उन्हें बगीचे में रानी तितली के पास ले गई।रानी तितली ने उन्हें बिना किसी से पूछे कहीं जाने के लिए खूब डांट सुनाई।सिम्मी और रिम्मी ने अपने कान पकड़कर रानी तितली से माफी मांगे और यह संकल्प किया कि कहीं भी जाऊंँगी तो मांँ से पूछ कर।

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'