Tuesday, November 26, 2024

लालच का फल

लालच का फल

बूढ़ा बाघ  नदी के तट पर। 
   हाथ सोने का कंगन लेकर।। 
      राहगीरों से हँसकर कहता। 
         सोने का  कंकन लेता जा।। 

जीवन-भर मैंने पाप किया है। 
   मार-खाकर, संताप दिया है।। 
      उसी पाप का  फल  मिला है। 
         नख-दंत सब मेरा गल गया है।। 

अब थोड़ा सा पुण्य कमा लूंँ। 
   अपने सिर का पाप मिटा लूँ।। 
     एक  बटोही  लालच में पड़। 
        चल  पड़ा झट  लेने कंगन।। 

कहा बाघ-तू जरा नहा लो। 
   ईश्वर का तो ध्यान लगा लो।। 
     चल पड़ा बटोही नदी नहाने।
         सुबह-सुबह वह कंगन पाने।। 

फँसे पाँव उसके दलदल में। 
   उठा बाघ तब उसको खाने।। 
      फंँसा बटोही भाग न पाया। 
         लालच करने पर पछताया।। 

इसीलिए तो कहते हैं भाई।
   मत कर लालच बुरी-बलाई।। 
     सोंच-समझकर करना काम। 
        लालच में पड़ मत देना जान।। 

                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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