Friday, June 25, 2021

जमाना झूम कर गाये (ग़ज़ल)



रचे हम गीत कुछ ऐसे, ज़माना झूम कर गाये।
वचन-मन-कर्म से खुश हो,तराना झूम कर गाये।

सभी साहित्य मणीषियों को,खुशी के पल मुबारक हो,
खुशी का गान यह सुंदर,सुहाना झूम कर गाये।

सफर यह पांच वर्षों का, मुबारक हो, मुबारक हो,
जो रचते आए हम दोहा,पुराना झूम कर गाये।

मिलाकर हाथ को अपने,गले सबको लगाएं हम,
सभी हो मस्त-मनमौजी, दीवाना झूम कर गाये।

सुभग उल्लास है उर में,जिगर में बहार है छाई,
नहीं है खुशी का कोई, ठिकाना झूम कर गाये।

खुशी की राग पर झूमें, उमंग के ताल पर नाचे,
खुशी की तान है कोमल, सुहाना झूम कर गाये।

बड़ी मुद्दत से आया है,समय संग-संग बिताने का,
कर उत्सव मनाने का, बहाना झूम कर गाये।     
        
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित, मौलिक

Wednesday, June 23, 2021

रुको नहीं आहत होकर तुम

रुको नहीं आहत होकर तुम (गीतिका)

हे पथिक बढ़ते चलो तुम।जिंदगी के रास्ते।।
मन कभी विचलित न करना।छोड़ने के वास्ते।।

माना पथ मुश्किल बढ़ी है।राह को मत छोड़ना।।
जीवन के दुर्गम पथों से।मुख कभी न मोड़ना।।

राह में कंटक मिले तो।रौंद उसको बढ़ चलो।।
हौसला रखकर हृदय में।पर्वतों पर चढ़ चलो।

मन पराजित मत करना।हिम्मत नहीं तुम हारना।।
प्रपंच से आहत न होना।मन में रखो धारना।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

आओ खुशी मना लो



आओ आम पेड़ के नीचे ,थोड़ा हम सुस्ता लें।
दिन भर खेतों में काम है करना,थोड़ा तो बतिया लें।

घर से लाई हो गुड़धानी , थोड़ा -थोड़ा खा लो।
खेतों का सुखाड़ मिटा है,उसका ज़श्न मना लो।

अहो भाग्य हमारा जानी, रिमझिम बरसा पानी।
धरती पर हरियाली छाई,पहनी है चुनरी धानी।

हरा- भरा है खेत हमारा, रुत है बड़ा सुहाना।
हवा के झोंके से निकला है, जैसे राग पुराना।

हरे-हरे पौधे के गुलदस्ते,सारे खेतों में सजे हैं।
आज हरी मखमल की चादर, धरती पर बिछे हैं

तुम भी थोड़ा ताल मिला लो, मैं भी थोड़ा गाऊं।
देख बहार वर्षा की आई, मिलकर खुशी मनाऊं।

           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
              स्वरचित, मौलिक

Tuesday, June 22, 2021

समाज के आशीर्वाद (लघुकथा, मगही भाषा में)


 


संगीता,संजय अउर संतोष माय के साथ शहर में रहके पढ़ हलै।काहे कि गांव में कालेज नै हलै। एक बार माय कोय काम से गांव गेलै तब तक लौक डाउन लग गेलै।कनै बाहर आना-जाना बंद। घरे में रहके पढ़ाया-लिखाय करना,टी.बी.देखना,लूडो खेलना, मोबाइल पर दोस्त से बतियाना, तीनों के इहे काम हलै।
जेकरा घर में केकरो कोरोना हो जाय ओकर घर सिल कर  देल जाय। मोबाइले पर पता चललै कि जेकर घर सिल हकै ओकर घर समान घटल हकै।कोरोना बीमार के घर खाना बनाना भी मोश्किल हकै।
तब तीनों भाय-बहिन बैठकें विचार कैलकै कि थोड़ा समाज सेवा कैल जाय।अब दुनु भाय मिलके बाजार से सबके सामान लाके दुआरी पर पहुंचा देय अउर संगीता कोरोना बीमार के दुआरी पर खाना बनाके पहुंचा देय।गरबा में गांव से आबल आटा,चाउर,दाल,आलू,प्याज सब हैइए हलै।
जब लौक डाउन टुटलै तब माय-बाबुजी अइलथिन तब इ सब बात सुनके बड़ी खुश होलथिन। लेकिन उनका इ डर सताबे लगलै कि सब कोरोनामा बीमरियन के घर जाय से एहो सबके तो कोरोना के छूत नै लग गेलै। तब उनका समझाके तीनों बतैलकै कि हमनी केकरो घर चाहे बजार दू गो मास्क लगाके अउर गमछी से माथा-मुंह झाप के जा हलिऐ आउर आके सब कपड़ा के साबुन से धोके नहा हलिऐ।भोरे-सांझ गर्म पानी में सिंधा निम्मक देके गरारा कर हलिऐ। फिर पानी के भाफ नाक-मुंह से ले हलिऐ।
 उ सबके बात सुनते सामने बाली चाची ऐलथिन तो कहलथिन।
कुछो नै होतै इ बुतरुअन के।इ सबके समाज के आशीर्वाद मिललै। भला करे वाला के रछा भगवान कर हथिन।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                  स्वरचित, मौलिक

Monday, June 21, 2021

दोहे



आओ सब मिलकर गाए,योग दिवस के गीत।
योग से तन निरोग बने,मन खुश करे संगीत।

संगीत भी एक योग है,मन में भरे उमंग।
योग भी तब प्यारा लगे, संगीत बजे जब संग।

अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस एवं विश्व संगीत दिवस की हार्दिक बधाई।

          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, June 19, 2021

पिताजी

बरगद की घनी छांव से होते हैं पिताजी।
होते हैं पिताजी। सम्मान सदा उनका करो।
हर भार अपने कांधे पे ढोते हैं पिताजी।
ढोते हैं पिताजी। सम्मान सदा उनका करो।

मां अगर है जननी, पिता भी जनक हैं।
जीवन के प्रसून में पिता से महक है।
खुशियों को हर क्यारी में बोते हैं पिताजी। 
बोते हैं पिताजी। सम्मान सभी उनका करो।

मां अगर है धरती, पिता आसमान हैं।
मां अगर है आंगन पिता आलिशान हैं।


दिन-रात कड़ी मेहनत से पैसे हैं कमाते।
पाई-पाई जोड़ हमारी जरूरत हैं पुराते।
मन मार अपनी शौक को खोते हैं पिताजी। 
खोते हैं पिताजी।सम्मान सदा उनका करो।

जीवन पिताजी हैं ,अपना फर्ज  निभाते।
हमें पढ़ाने खातिर,हैं कितने कर्ज चुकाते।
चिंता में रात-रात,ना सोते हैं पिताजी।
ना सोते हैं पिताजी। सम्मान सदा उनका करो।

Friday, June 18, 2021

नमन वीरांगना लक्ष्मीबाई



नाम तुम्हारा था लक्ष्मी पर,
     थी तुम दुर्गा की अवतार।
         की भले ना बाघ सवारी,
             होकर घोड़े पर सवार।

एक हाथ में लेकर ढाल,
   दूसरे हाथ में ले तलवार।
     खदेड़ अंग्रेजी राक्षसों का,
         करती जाती थी  संहार।

देश की आजादी खातिर तू,
     दे दिया जीवन बलिदान।
        विश्व वीरांगना कहलाई तू,
           थी नारी तुम बहुत महान।

दुष्ट फिरंगियों के शोणित से,
     किया देश की धरती लाल।
        अंग्रेजो से तू लेकर टक्कर,
           किया जग में उन्नत भाल।

हे ! महान वीरता की देवी,
   हम नारियों को तुझपर शान।
      हम सब गाएं तेरी जयगाथा,
       देश को तुझपर है अभिमान।

अपनी वीरता के वैभव से,
   महकाया है देश का चमन।
     हे वीर-भूमि भारत की पुत्री,
         सहस्त्र-कोटि है तुझे नमन।

            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
               स्वरचित, मौलिक

Wednesday, June 16, 2021

(नाक पर मुहावरे दार सृजन)



नाक रखने की विनती

हम नाक बचाने आए हैं,
    प्रभु नाक हमारी रख लेना।
       यह नाक बहुत ही प्यारी है,
           नाक में अच्छी महक देना।

रिपु नाक काटना चाह रहा,
    मेरी नाक नहीं कटने देना।
       इस नाक की तू मर्यादा को,
         किसी हाल नहीं घटने देना।

नाक का बाल वह था मेरा,
   अब नाक फुलाकर बैठा है।
      हर बात में नाक घुसाता था,
          अब नाक चढ़ा कर ऐंठा है।

हमें नाकों चने चबवाता है,
   मेरी नाक में दम वह करता है।
       मेरी नाक में कौड़ी डाल रहा,
        औ नाक की लज्जा हरता है।

मेरी नाक के नीचे बैठ सदा,
   मेरी नाक पर मुंग दलता है।
     बस नाक पर गुस्सा है उसको,
        मेरी नाक पर गुस्सा करता है।

रहे सदा उसकी नाक बुरी,
    पर नाक नकेल तू दे देना।
       मेरी नाक पर मक्खी ना बैठें,
           नाक की लज्जा रख लेना।

मेरी नाक सदा ऊंची रखना,
    कभी भी आंच नहीं आने देना।
        नाक की खातिर है विनती,
            यह नाक सदा बचने देना।

              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                 स्वरचित, मौलिक

मैं भी हूं एक हुनर वाली (चित्र -आधारित रचना)



हां मैं भी हूं एक हुनरवाली।
बुनती डलिया-सूप निराली।

इस विद्या में मुझे महारथ ।
मिला है जन्मजात विरासत।

इस कला में हमें निपुणता।
इसपर मेरी आत्मनिर्भरता।

बना कमाचियां बांस की मैं।
धरती की लम्बी घास की मैं।

भांति-भांति देकर आकार।
करती हूं मैं  सपने साकार।

रोज बनाती हूं सूप-टोकरी।
हाथ हमारे बने गये फैक्ट्री।

कहीं नहीं आना - जाना है।
घर में ही बैठकर बनाना है।

यह  है हमारा स्वरोजगार।
पा लेती हूं मैं उचित पगार।

 कभी नही़ बैठती हूं बेकार।
ना ही मानती कभी मैं हार।

भरकर मन में आत्मविश्वास।
आत्मसम्मान और उल्लास।

स्वरोजगार ही हमारी शान है।
यह तो अपना स्वाभिमान  है।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, June 15, 2021

बुरे स्पर्श



सुकृति की नियुक्ति शहर से काफी दूर एक गांव के विद्यालय में हुई।उस गांव के निकट गांव में उसकी मौसी रहती थी। इसलिए उसकी मां बहुत खुश थी कि वह मौसी के घर रहकर नौकरी करेगी। उसका बेटा उसी रास्ते से बाइक द्वारा बैंक में नौकरी करने जाता है।वह उसे विद्यालय में छोड़ते चला जाएगा।इस प्रकार परिवार का संरक्षण भी मिल जाएगा।
पर ,सुकृति ने वहां रहने से साफ मना करते हुए कहा-मैने अपने विद्यालय के निकट एक कमरा किराए पर ले लिया है। हम दो शिक्षिका मिलकर वहां रहेंगी। मकान मालकिन और उनकी दो बेटियां रहतीं हैं। हम सभी एक-दूसरे के संरक्षिका और सहायिका होंगी।
बेटी की दृढ़ता देख मां मना नहीं कर पाई,पर जब वह वहां रहने गयी तो उसका घर और विद्यालय देखने के लिए उसके साथ गई।
 फिर वहां से सुकृति को साथ लेकर उसकी मौसी यानि अपनी बहन के यहां गयी। वहां अपने हम-उम्र के बहन के बेटे निखिल से बात-चीत करने और पास बैठने से हमेशा की तरह सुकृति को चिढ़ते देख मां हैरान रह गयी।कब सुधरेगी यह लड़की ? बड़ा-छोटा का कोई ज्ञान नहीं, कोई इज्जत नहीं। उम्र में इतने बड़े भाई से इतना बुरा व्यवहार।
 तभी निखिल के एक चचेरे भाई ने आकर निखिल की दस साल की बेटी को अपने निकट बैठाया तो निखिल ने गुस्से से कहा-क्यों तुम अलग नहीं बैठ सकते। उससे सटकर क्यों बैठा ?
क्यों क्या हुआ ?आपकी बेटी के साथ बैठा तो क्या हुआ ? आप भी दूसरी लड़कियों के साथ ऐसे ही बैठते हैं ? सुकृति ने क्रोधित नेत्रों से उसे निहारते हुए कहा तो निखिल की निगाहें स्वत: झुक गई।
     वहां से लौटते वक्त मां ने उसे डांटते हुए कहा-तुम्हें अपने बड़े भाई से ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए सुकृति!
 भाई को भी तो बहन के साथ बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए। सुकृति ने कहा।
बुरा व्यवहार क्या करता है। तुमसे उम्र में बहुत बड़ा है इसलिए थोड़ा दुलार करता है।
दुलार नहीं करते मां! उनके स्पर्श बहुत बुरे होते हैं मां। बहुत खराब से वे मेरे शरीर को छूते हैं।उनका ऐसा व्यवहार है इसलिए उन्हें अपने चचेरे भाई से भी ऐसा भय बना रहता है।
मां सोच में पड़ गई। इतना बड़ा विश्वासघात । हम अपनों पर आंख बंद कर विश्वास करते हैं।और वही पीठ में छूरी भोंकने का काम करता है। सचमुच हमें अपनों से । अपने रिश्तेदारों-जानकारों से भी बचकर रहना चाहिए। कभी कभी वे भी.........
     मां सोच में पड़ गई।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

प्रेम दिवानी मीरा



 मीराबाई थी ,प्रेम दिवानी।
रच गई अद्भुत,एक कहानी।

व्याह हुआ उदयपुर जानी।
भोजराज की बन गई रानी।

हृदय बसा कान्हा की मूरत।
मोहनी-प्यारी सांवली सूरत।

गोपीनाथ- गिरधर गोपाला।
मोर-मुकुट औ बांसुरी बाला।

सदा ही रही कृष्ण वियोगिनी।
नाचती गाती बनकर योगिनी।

कहती न मेरा तात और माता।
नहीं रक्षा करने को नहीं भ्राता।

व्रज भाषा में काव्य रच गई।
सबके हृदय में सदा बस गई।

उनके काव्यों में बड़ी सरलता।
बड़ी तरलता और निश्छलता।

सरल पद की हैं सभी रचनाएं।
परम्परागत शैली को अपनाये।

देवर राणा ने जब विष भेजा।
पी गई पर न ,जला कलेजा।

जो जन ईश्वर में रखते भक्ति।
उनको मिलती ऐसी ही शक्ति।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
       स्वरचित, मौलिक

Sunday, June 13, 2021

जन जागरण



विद्यालय के निकट सफेद रंग की गाड़ी रुकते देख ग्राम -वासी काना-फुसी करने लगे। कहीं यह  टीकाकरण की गाड़ी तो नहीं ?
इससे बचने का क्या उपाय है?

तभी गांव के लठैतो ने आगे बढ़ते हुए कहा- किसी को कुछ सोचे के कोय जरूरत नै है।हमरा डंडा के आगे केकरो मजाल नै है कि जबरदस्ती टीक्का दे देगा।
साला सब सुइया देके अउरो सबके बीमार कर देता है। 
तभी गांव के मुखिया जी का बेटा, जो शहर में रहकर पढ़ाई करता है बाईक से वहां पहुंचा और बोला- नहीं , कोई भी इन टीकाकरण कर्मियों के साथ मार -पीट अथवा दुर्व्यवहार नहीं करेगा।
 मुझे पता चला कि आस-पास के गांव के लोग टीकाकरण के लिए आए चिकित्सा-कर्मियों को गालियां देने लगे और मार -पीट कर गांव से भगा दिए।
इस लिए मैं अपनी पढ़ाई हर्ज कर जन -जागरुकता फैलाने यहां आया हूं।
आप लोग टीका लगवाने से डरें नहीं।यह टीका कोविड-19नामक वैश्विक बीमारी के रोकथाम के लिए लगा था रहा है ।वह तो अपनी-अपनी शारीरिक क्षमता की बात है कि किसी को थोड़ी सर्दी-खासी अथवा बुखार हो जाता है, और किसी को कुछ भी नहीं।
 आप-सभी मन की भ्रांतियों को दूर कर  टीका लें  और  सभी जन को  टीका लेने के लिए प्रेरित करें। तभी इस बीमारी का निराकरण हो सकेगा।
गांव के लोगों के साथ आ रहे मुखिया जी अपने बेटे को लोगों को जागरूक करते देख गर्व से मुस्कुरा उठे। और लठैतों को देख संयत स्वर में बोले- सर्वप्रथम मैं टीका लूंगा।तुमलोग प्रत्येक व्यक्ति टीका लगवाने के लिए बुला लाओ। सभी को टीका देकर यह चिकित्सक दल यहां से वापस जाएंगे। फिर क्या था . . . . . . . . . . . . .
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, June 12, 2021

आया बादल



उमड़-घूमड कर आया बादल।
है आसमान में छाया बादल।
धरती से मिलने को आतुर,
अपनी बारात सजाया बादल।

चमक रही बिजली की लरियां,
फुहारों की रिमझिम फुलझडियां।
नभ में रह-रह छुटे पटाखे,
झम-झम कर हरसाया बादल।

आने वाला है अब सावन।
दृश्य सुहाना ले मनभावन।
पवन के झोंके के संग नाचे,
झूम-झूम लहराया बादल।

झम-झम-झम पानी बरसाने।
धरती पर हरियाली लाने।
तपती बसुधा के आंचल में,
नव सौगात ले आया बादल।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, June 9, 2021

आओ भरें हम गगन में उड़ान

वट सावित्री गीत



बूढ़े बरगद का पूजन ध्यान कर।
सावित्री मां के चरणों में प्रणाम
 कर।

सिन्दूर-रोली अक्षत चढ़ाकर,
फल पकवान प्रसाद चढ़ाकर,
धूप दीप और कर्पूर जलाकर,
विनती औ वंदन कीर्तन गाकर,
लपेटकर लम्बी की डोर।
कभी छूटे न इसकी छोर।
बूढ़े बरगद का................

मांग रही अखण्ड सौभाग्य,
हमारा है यही अहो भाग्य,
लम्बी उम्र की कामना करके,
मन-ही-मन आराधना करके,
मांग रही वरदान।
इतना तू दो भगवान।
बूढ़े बरगद के ..............

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
          स्वरचित, मौलिक

Monday, June 7, 2021

जीवन बड़ा अनमोल



जीवन बड़ा अनमोल,
प्राणि मधुर-मधुर बोल।
सभी से रख मेल-जोल।
प्राणि मधुर-मधुर बोल।

जब भी अपने मुख को खोलो।
सब जन से,मीठी बोली बोलो।
वाणी की कर मधुर रस लेपन,
बोली में मिश्री घोल,
प्राणि मधुर-मधुर बोल।

हर जीव पर दया तुम करना।
दीन-दुखियों का संकट हरना।
काम-क्रोध और लोभ-मोह का,
झूठा ये बंधन खोल,
प्राणि मधुर-मधुर बोल।

कौड़ी-कौड़ी धन को जोड़ा।
महल बनाया लम्बा- चौड़ा।
धन दौलत का गर्व न करना,
इसका न कोई मोल,
प्राणि मधुर-मधुर बोल।

यह जीवन इक नाव पुरानी।
पुरवाई है चल रही तुफानी।
कालचक्र के भवसागर में,
डगमग रहा है डोल,
प्राणि मधुर-मधुर बोल।

जीवन तेरा कहीं व्यर्थ न जाए।
तेरे कारण सब जन सुख पाए।
तेरे बाद भी तुझसे जन पाए,
तेरे ज्ञान की गठरी खोल,
प्राणि मधुर-मधुर बोल।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
          स्वरचित, मौलिक

Sunday, June 6, 2021

कर्मफल





कर्म किए जा,कर्म किए जा,
मन को कर निष्पाप रे।
फल की चिंता कभी न करना,
मिलता अपने आप रे।

कर्म का तुझको दूत बनाकर,
भेजा है मालिक जंग में।
कर्म पथ पर बढ़ते जाओ,
अवरोध नहीं लाना पड़ में।
कर्म को अपने बुरा न करना,
सबसे बड़ा यह पाप रे।
फल की चिंता.....................

कर्म ही पूजा,कर्म ही अर्चन,
जप-तप तीरथ है सारा।
कर्म से बढ़कर त्याग नहीं है,
कर्म ही है सबसे प्यारा।
कर्म से बढ़कर धर्म नहीं है,
रहे सदा ही साथ रे।
फल की चिंता.......................

हर करनी का लेखा-जोखा,
स्वयं विधाता लेते हैं।
जैसा जिसका कर्म देखते,
वैसा ही फल देते हैं।
कर्म फल के रूप में मिलता,
सबको सुख-संताप रे।
फल की चिंता...................
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित, मौलिक

गज़ल



मुझे बढ़िया तू कहते हो,तो क्या बेहतर नहीं हूं मैं।
मुझे कमजोर कहते हो मगर कमतर नहीं हूं मैं।

मुझे अच्छी-बुरी जो भी, कहो यह है तेरी मर्जी,
चाहे अच्छी भले ना हूं,मगर बदतर नहीं हूं मैं।

मैं बहती धार नदिया की,हो मदमस्त बहती हूं,
गिरूं पर्वत के ऊपर से,सुनो निर्झर नहीं हूं मैं।

सदय के साथ सुहृदया,निर्दय के साथ हूं निर्दयी,
नहीं कभी मोम-सी पिघलूं,मगर पत्थर नहीं हूं मैं।
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

पर्यावरण संरक्षण

जय मां शारदे🙏🙏

सरसी छंद

आओ पर्यावरण रक्षा हेतु, मिला लें हम सब हाथ।
पर्यावरण को स्वच्छ करें, मिलकर हम सब साथ।
जल जमीन और जंगल को,देना है हमें सुरक्षा।
पर्वत पठार हैं प्रकृति-पुत्र, करें हम इनकी रक्षा।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, June 2, 2021

मुहावरेदार दोहे



देने वाला जब भी देता,देता छप्पर फाड़।
लेकिन लेने वाले रहते, छाती पर सदा सवार।

जल में रहकर मत करो,कभी मगर से वैर।
जान जोखिम में डालकर,रख न जल में पैर।

झूठ के पुल हैं बांधकर,यहां झूठ के पुतले।
झपट्टा मार झोली भरे,झांसे देकर निकले।

टके में तीन तरबूज बिके,टके तीन सेर फूट।
टाल-मटोल कुछ लोग करे,लोग पड़े लोग कुछ टुट।

कोई ठंडी आह भरे, हंसता कोई ठठ्ठा मार।
ठिकरा कोई फोड़ रहा,ठगा खड़ा कोई यार।

जो डंके की चोट पर करते हैं कोई काम।
अपना डंका बजा-बजा,खूब कमाते नाम।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
             स्वरचित, मौलिक