लक्ष्य (मुक्तक )
लक्ष्य पाने के लिए तुम,सत्य पथ पर बढ़ चलो।
राह में पर्वत भी आये, हौसला ले चढ़ चलो।
दृढ़ हृदय ले बढ़ते जाओ,राह तुम भटको नहीं-
राह कोई न दिखे तो,नव रास्ते गढ़ते चलो।
चाह रखो तुम हृदय में,राह भी मिल जाएगी।
दृढ़ हो निश्चय तुम्हारा, चट्टान भी हिल जाएगी।
ठोक कदमों से उसे तुम, दूर कर दो राह से -
पाषाण की छाती को चिर, सुंदर कली खिल जाएगी।
हृदय में हिम्मत बढ़ा चल, तुम कभी मत हारना।
जीतकर ही आयेंगे हम,मन में रखो धारना।
रास्ते के ठोकरों को, ठेलकर बढ़ते चलो-
पग कभी उसपर पड़े तो, तुम भी ठोकर मारना।
अधिकार तेरा लक्ष्य पाना, लक्ष्य पाना धर्म है।
लक्ष्य हेतु संग्राम करना, भी हमारा कर्म है।
जीत कर संग्राम को तुम, लौट कर घर आओगे-
तब तुम्हें यह ज्ञात होगा, लक्ष्य ही तो मर्म है।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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