Monday, October 26, 2020

नव इतिहास रचाएँगे

नव
भारत के
नव वृंद हम,
नई उमंग लाएँगे ।
नव
प्रभात की
नई किरण बन,
नव विश्वास जगाएँगे।
नव
युग में
नव जागृति की,
नई चेतना लाएँगे।
नव
वसंत में
नयी सभ्यता की,
नव कलियाँ बन मुस्काएँगे।
नव
जीवन की
नव प्रसून हम,
नयी रीति से खिलाएँगे।
नये -नये
अभियान
चलाकर हम
नयी स्वतंत्रता लाएँगे।
मानवता
की नई क्रांति कर,
नव इतिहास रचाएँगें।
नव
भारत के
नए गीत हम,
झूम-झूमकर गाएँगे।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित

Saturday, October 24, 2020

तेरा द्वार भवानी

छोटा सजा है तेरा द्वार भवानी।
भक्तों की नहीं है कतार भवानी।

ना ही बड़ा पंडाल सजा है।
ना ही बाजे - ढोल बजा है।
ना मेला है,ना बाजार भवानी।
भक्तों की नहीं कतार भवानी।
छोटा सजा है.......

कोरोना का डर सब में समाया।
जन- जन का है मन घबराया।
इससे तू सबको उबार भवानी।
भक्तों की नहीं है कतार भवानी।
छोटा सजा है..........

दूर-दूर सब लोग खड़े हैं।
अपने-अपने घर में पड़े हैं।
फीका हो गया त्योहार भवानी।
भक्तों की नहीं है कतार भवानी
छोटा सजा है...........

करते हम घर में आराधन।
तेरी पूजा का यही है साधन।
घर में ही करें जयकार भवानी
भक्तों की नहीं है कतार भवानी।
छोटा सजा है............

हे कष्ट हरणी  कष्ट मिटा दो।
दुनिया से यह संताप हटा दो।
सुन ले तू मेरी पुकार भवानी।
भक्तों की नहीं है कतार भवानी।
छोटा सजा है............
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
         स्वरचित, मौलिक

Thursday, October 22, 2020

बिगड़ी मेरी बना दे(माँ अम्बे गीत)

बिगड़ी मेरी बना दे। ओssss
माँ बिगड़ी मेरी बना दे।

जय माँ अम्बे, जय जगदम्बे,
जय जगजननी मैया।
तू ही मुझको पार उतारो,
भँवर बीच में नैया।
माँ अब तो पार लगा दे। ओssss
माँ बिगड़ी मेरी बना दे।

हे दुःख हरणी, संकट हरणी,
हे सुख करनी माता।
हे वरदायिनी,कष्टनिवारिणि,
बल-बुद्धि के दाता।
मन के संताप मिटा दे। ओssss
माँ बिगड़ी मेरी बना दे।

अष्टभुजा माँ, नव दुर्गा माँ,
हे काली, महाकाली।
जीवन के अँधकार मिटा दे।
हे माँ ज्योता वाली।
मैया तू राह दिखा दे। ओssss
माँ बिगड़ी मेरी बना दे।

मै तेरी दासी, दर्शन प्यासी,
सुख-अभिलाषी माता।
मुझको अपना दर्शन दे दो,
सुखकरनी, सुखदाता।
माँ मुझको दरश दिखा दे।ओsss
माँ बिगड़ी मेरी बना दिया
     
          सुजाता प्रिय'समृद्धि'
     स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

Monday, October 19, 2020

कोरोना काल का दर्द

हाल बड़ा बेहाल है।
हम गरीब फटेहाल हैं।

विपद पड़ी बड़ी भारी।
फैली है यह महामारी।

घर में रहना लाचारी है।
छा गई बेरोजगारी है।

अपने छोटे-से गाँव में।
बरगद पेड़ की छाँव में।

खेल रहे लूडो-ताश है।
मन हमारा उदास है।

बड़ी मुसीबत झेल रहे।
मन बहलाने  खेल रहे।

कब कोरोना जाएगा।
तब-तक हमें सताएगा।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
  स्वरचित ,मौलिक

Saturday, October 17, 2020

भाई रे सोंच - समझ कर चल

भाई रे! सोंच -समझ कर चल।
थोड़ा सम्हल-सम्हल कर चल।

यह मत सोंचो आकाश चढ़ूँ।
यह मत सोंचो पाताल गिरूँ।
अपनी धरती पर ही तू चल।भाई..

यह मत सोंचो चलूँ नहीं।
यह मत सोंचो रुकूँ कहीं।
जिस पथ पर कभी निकल।भाई..

अच्छी चाह को छोड़ो मत।
मुँह सत्पथ से मोड़ो मत।
अच्छे कर्म करो हर पल।भाई.....

लक्ष्य पंथ पर बढ़े चलो।
पर्वत पर भी चढ़े चलो।
अपने पथ पर रहो अटल।भाई....

वैसी आग न सेंको तुम।
वैसी धूप न देखो तुम।
जिसमें तन-मन जाए जल।भाई...

वस्तु पराई न छुओ तुम।
दुर्लभ बीज न बोओ तुम।
चाहे दिल जाए मचल।भाई......

जब मुख को खोलो तुम।
मीठी बोली बोलो तुम।
देखो पत्थर भी जाए पिघल।भाई.

कभी न आँखें करना नम।
काम सभी तू करना संवयं।
जीवन होगा शुद्ध-सरल।भाई.....

सुजाता प्रिय'समृद्धि'
स्वरचित (मौलिक)

Thursday, October 15, 2020

हाथों की सफाई ( लघु कथा )

विक्रम भोजन करने जा रहा था।
माँ ने पूछा- विक्की! तूने हाथ धोया ?
हाँ माँ! विक्रम ने अपने दोनों हाथ माँ को दिखाते हुए कहा।
माँ ने उसके हाथों का निरीक्षण किया और उसके साफ-सुथरे हाथों को देख चकित होती हुई बोली- वाह विक्की ! तुम्हारे हाथ तो बिलकुल साफ है।तुमने कब से अपने हाथों की सफाई करना शुरु किया।तुम तो हाथ धोने से कतराते थे।
विक्रम ने कहा- जब से कोरोना का प्रकोप छाया।अब तो हाथों की साफ और शुद्ध रखने के महत्व को सारी दुनिया समझ रही है और इसे अपनी दिनचर्या में शामिल कर रही है ।नहीँ तो वे हाथ धुलाई से अच्छा चम्मच से खाना ज्यादा पसंद करते थे।
इसके पहले हमारे संस्कार-शिक्षा के आचार्य जी ने कक्षा में शरीर के अंगों की सफाई के महत्व को समझाते हुए बताया था कि शरीर के सभी अंगों की सफाई यथोचित करना चाहिए।लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान हाथों की सफाई पर देना चाहिए। खाना खाने से पहले और खाना खाने के बाद हाथों की सफाई अवश्य करनी चाहिए।
जब मैंने पूछा- कि भोजन के पश्चात तो हमें इसलिए हाथ धोने चाहिए कि भोजन के अवशेष हमारे हाथों में लगे होते हैं ।किंतु भोजन के पूर्व हाथ धोने का क्या मतलब।उस समय तो हमारे हाथ साफ ही होते हैं।
तो आचार्य जी ने समझाते हुए कहा-हमें हाथ को देखकर ऐसा लगता है कि यह बिलकुल साफ है।किन्तु वह पूरी तरह से गंदा होता है।जाने कब-कब हम हाथों से क्या छूते हैं , हमें भी याद नहीं होता।हाथों से हम शरीर के सारे अंगों को छूते ,सहलाते, खुजलाते एवं धोते हैं।उस समय सारी गंदगी एवं कीटाणु हमारे हाथों में आ जाते हैं।अगर हम बिना हाथ धोए खाएँगे तो हाथों की सारी गंदगी एवं कीटाणु मुँह के द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश कर हमें अस्वस्थ्य बना देगा।
माँ ने खुश होते हुए कहा-बहुत ही अनुकरणीय शिक्षा दी तुम्हारे आचार्य जी ने।आज देखो न कोरोना से बचाव के लिए भी हाथ धोना आवश्यक है।
जब मेरे विक्की बेटा हाथ धोने के महत्व को समझ गया तो सारी दुनिया तो अवश्य इसके महत्व को समझेगी  और अपनाएगी  ही।
विक्की भोजन समाप्त कर पुनः हाथों की सफाई में लग गया।
     सुजाता प्रिय'समृद्धि'
     स्वरचित ( मौलिक)

Tuesday, October 6, 2020

माँ कुछ तो बोलो

उठो माँ उठो! कुछ तो बोलो।
क्यों चुप्पी साध पड़ी हो।
मुँह तो खोलो।

मैं जाता था सीमा- सुरक्षा के लिए,
तुम विजय तिलक लगाती थी।
जंग जीतकर आऊँ मैं,
ईश्वर से सदा मनाती थी।
माँ भारती की रक्षा करना,
मुझको सदा समझाती थी।
होठों पर मुस्कान ला,
आँसुओं को छिपाती थी।
आज रो रहा लाल तेरा माँ,
तुम भी थोड़ा रो लो।
क्यों चुप्पी साध पड़ी हो,
कुछ तो बोलो।

क्यों शांत पड़ी धरती पर ,
आँखें दोनो मींचे।
तुम्हें दिया मैं ऊँचा आसन,
क्यों सोई हो नीचे।
क्यों बेजान पडी हो आज,
मुट्ठियाँ दोनों भींचे ।
ना ही जागती ममता तेरी,
प्यार न तुझको खींचे।
क्यों नहीं देखती एक नजर,
एक बार आँखें खोलो।
क्यों चुप्पी साध पड़ी हो,
मुँह तो खोलो।

देखो माँ तुझसे मिलने को,
कितने लोग हैं आए।
बेटी-दामाद, नाती- पोते,
बहु-बेटे सब आए।
मायके से तेरे भाई-भतीजे,
सब मिलने आए।
लोग- परिवार,रिस्तेदार,
पास-पडो़स सब आए।
सभी रो रहे तुझे देखकर,
तुम भी नयन भिंगो लो ।
क्यों चुप्पी साध पड़ी हो,
मुँह तो खोलो।
       सुजाता प्रिय'समृद्धि'
       स्वरचित ( मौलिक )

Thursday, October 1, 2020

गाँधी के सपनों का भारत

मानवता की नई किरण बन घर-घर अलख जगाएँगे।
गाँधी के सपनों का भारत,मिलकर हम बसाएँगे।

नहीं कहेंगे भारत को इंडिया,
नहीं कहेंगे हिन्दुस्तान।
भरत नाम से भारत कहलाया,
ऱखेंगे हम इसका मान।
गाँधी के सपनों की खातिर,
यह अभियान चलाएँगे।
गाँधी के सपनों का..............

विदेशी कपड़े ना पहनेंगे,
गाँधी ने कहा था पहनों खादी।
आपस में मिल्लत-प्रेम बढ़ाओ,
जीवन रखो सीधी-सादी।
सत्य अहिंसा को अपनाकर,
जीवन सुखी बनाएँगेंं।
गाँधी के सपनों का............

देशी सामानों को अपनाएँ,
जला विदेशी माल की होली।
विदेशी भाषा को त्यागें हम,
बोलेंं सरल हिन्दी बोली।
विदेशी उत्पाद का बहिष्कार कर
देशी को अपनाएँगे।
गाँधी के सपनों का............

दीन-अनाथों की सेवा कर,
सत-पथ पर चलते जाएँ।
जात-पात का भरम मिटाकर,
हरिजनों को भी अपनाएँ
ऊँचे नीच और भेद-भाव को,
कभी न मन में लाएँगे।
गाँधी के सपनों का.........
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'