Tuesday, August 29, 2023

तिरंगा (दोहा छंद)

तिरंगा (दोहा छंद)

अमर तिरंगा ध्वज,भारत की पहचान ।
हम भारत के लोग को, इस झंडे पर  शान।।

तीन रंग का मान अब,समझ रहे सब लोग ।
तीन रंग काअर्थ है ,तभी मिला संयोग।।

*ऊपर रंग केसरिया, शक्ति का है प्रतीक।*
*सफेद रंग है बीच में,दें सच्चाई की सीख।*

*नीचे में है रंग हरा*, हरियाली की शान।
*बीच में यह चक्र सदा*, करता है गतिमान।

*इस तिरंगे पर ही तो*,हमको है अभिमान।
*इस झंडे की खातिर हम*, देंगे अपनी जान।।

जब तिरंगा लहराता, शोभित कर आकाश।
बढ़ती देश की समृद्धि, खुशियांँ आती पास।
 
जब-तक सूरज चाँद है, धरती गगन वितान।
तब-तक यह संसार में,रखे देश का मान।।

पकड़ तिरंगा हाथ में, बढ़ते वीर जवान।
देश की रक्षा के लिए,देते अपनी जान।।

नमन करें हम भारती, जोड़ कर अपने हाथ।
इस तिरंगे के आगे,झुका लें अपना माथ।।
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

रेशम की डोरी (लघुकथा)

रेशम की डोरी

कसीदाकारी की हुई चांँदी की सुंदर भारी राखियांँ संभालती हुई मिनाक्षी ने कहा -"सुनो जी !अब आपकी बहन नहीं आने वाली।उसे पता था कि मुझे भी अपने भाइयों को राखी बांँधने जाना है। फिर भी आने में इतनी देर की।हो सके तो मुझे स्टेशन का छोड़ दो। मैं स्वयं ही चली जाऊंगी ।
"लेकिन बच्चों का कल से टेस्ट है ?".. 
"इसीलिए ना तुम्हें छोड़ा है। तुम इनका टेस्ट दिलवाना मैं दो-तीन दिन बाद ही आउंगी ।सोचा था  दो-चार दिन तुम्हारी बहन को यहांँ रोककर आराम से मैके घूमुंगी।" फिर वह भाई-भाभियों को देने वाली महंगे संदेशों से भरा बड़े बैग को घसीटती हुई बाहर निकल गई । 
सुशील ने घड़ी देखी और मामले की गंभीरता को देखते हुए गाड़ी निकाल ली ।थोड़ी देर बाद ही वे स्टेशन पर थे। 
कुछ देर के इंतजार के बाद ट्रेन आई और मीनाक्षी उस पर सवार होकर अपने मायका चल दी।
 गाड़ी को प्लेटफार्म छोड़ते ही सुशील को ध्यान आया। सचमुच आज सुगंधा न आई और न ही फोन कर अपने आने अथवा नहीं आने की कोई सूचना ही दी।उसने फोन का नम्बर मिलाया पर फोन स्विच ऑफ।उसका मन परेशान हो उठा। आखिर बात क्या है ?
उसने दोनों बच्चों को गाड़ी में बैठाया और गाड़ी को सुगंधा के घर की ओर मोड़ ली।
उसके घर में लटक रहे ताले को देख कर उसका मन और भी घबरा उठा।
बगल वाले से जाकर पूछा तो पता ‌चला कि उन्हें गाड़ी वाले को सरकारी नर्सिंग होम ले चलने के लिए कहते सुना।
वहाँ पहुंच उसने सुगंधा सिन्हा का नाम लिया तो रिशेप्शनिष्ट ने कहा ग्यारह नम्बर कमरा।वहाँ जाकर देखा -सुगंधा बेड पर पड़ी थी और बेड के निकट पालने में फूल -सी सुंदर और कोमल बच्ची........
उसकी सासु माँ ने पुकारा -"देख बहू तेरे भैया अपनी भांजी को देखने आ गये।
भांजी ....? सुशील का मन खुशी से झूम उठा। मैंने कई बार फोन किया लेकिन...............
बहू की तबियत अचानक इतनी खराब हो गई कि हमें फोन बगैरह लेने-सुनने की सुध ही नहीं रही।
सुगंधा ने कहा -"भैया की राखी भी घर ही में रह गयी।"फिर उसने अपने हाथ में बंधी उस रेशम की डोरी को खोली जिसे सुबह पंडित जी ने सुरक्षा का आशीर्वाद-मंत्र पढ़ते हुए उसकी कलाई पर बाँधी थी।उसे खोल उसने झट उसके तीन टुकड़े कर डाले।
सासु-माँ ने कहा -क्यों थोड़ी इसे पूरा बाँध देती ?"
लेकिन उसने कहा - "एक डोरी मेरे भैया की और दो  इनकी।" उसका संकेत भतीजों की ओर था।
फिर उसने तीनों के दीर्घ और स्वस्थ जीवन की कामना के साथ बड़े प्यार से उनकी कलाइयों पर बांँध दी। सुशील ने उसे आशीष देते हुए अपने बेटों से कहा -"देखो आज तुम दोनों की भी 'राखी' बहना आ गयी।"
सभी नवजात बच्ची के नामकरण पर हँस पड़े । सुशील की नजरें अपने कलाई पर बंधी प्यारी डोरी पर ........
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, August 23, 2023

राखी और संदेश

राखी और संदेश

धागों का  त्योहार  आया।
बहना के मन प्यार आया।
कच्चे धागे की राखी बना।
बेटों के हाथ में दिया थमा।
धरा मांँ बोली कहना मान।
चढ़ जा जाकर तू चंद्रयान।
चंदा मामा को दे आ संदेश।
अब दूर नहीं मामा का देश।
हमेशा मिलने हम आयेंगे।
तेरे घर भी झंडा फहरायेंगे।
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, August 21, 2023

क्यों रूप बदलते चंदा मामा (कविता)

क्यों रूप बदलते चन्दा मामा


आंँगन में एक खाट पड़ी थी।
  उसके ऊपर इक टाट पड़ी थी।
     रात को उसपर मैं सो रही थी।
        मीठे -स्वप्नों में मैं खो रही थी।

चंदामामा आये हैं आंँगन मेरे।
   मेरी ओर अपना मुखड़ा फेरे।
      कर रहे हैं हंँस वे मुझसे बातें।
         शिकायत मेरी क्यों ना आते।

उसी समय टूट गई मेरी नींद।
   सुस्वप्न टूट जाने की मानिंद।
      ढूंढ़ी चंदा को मैंआँंखें खोल।
         इत-उत हथेलियों से टटोल।

अनायास ऊपर उठीं निगाहें।
   रुक गई  मेरी टटोलती बाहें।
     आसमांँ में  तारे विचर रहे थे।
        चम-चम करते निखर रहे थे।

   चंदामामा भी थे उनके साथ
      हंँस-हंँस उनसे कर रहे बात।
         चंँदामामा का देख आकार।
           मेरे मन में यह उठा विचार।

कहांँ छुपाया इन्होंने आधा अंग?
   किसी के प्रहार से हुए हैं भंग?
      एक रात देखी मैं हँंसियाकार।
          एक रात दिखते थे जैसे तार।

एक रात रूप था गोल-मटोल।
   आज मैं इनकी खोलूंगी पोल।
      मांँ से पूछा मैंने  इसका राज।
      चंँदामामा आधा क्यों है आज ?

मांँ बोली-निज धूरी पर चंदा घूमता।
   सूर्य-प्रकाश पा है चाँद चमकता रद्द ।
      प्रकाश उसपर जितनी दूर पड़ता।
        उतना ही अंग उसका हमें दिखता ।
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

मेरे मन की बात (कविता)

मेरे मन की बात

ऐसी इच्छा है कुछ मन में,जनहित ऐसे काम करें।
विचलित न हों कर्मपथ से,कभी नहीं विराम करें।।
जग-प्राणि के हित-साधक हो,काम वही करते जाएँ ।
जिससे जन रोशनी पाये,अहर्निश ज्योति जलाएँ ।।
भ्रष्टाचार मुक्त हो भारत,खोखला करे न देश को।
छद्म-रूप धर जो लूटता,उतारू उसके वेश को।।
भेद-भाव को दूर करें हम,जो देश का जंजाल है।
ऊँच-नीच और जाति-धर्म,मन का माया-जाल है।।
विदेशी वस्तुओं का प्रयोग,देश से दूर भगाएंँ हम।
स्वनिर्मित सामान बनाकर,स्वदेशी अपनाएँ हम।।
नव भारत के नववृंद में, नयी चेतना लाएँ हम।
विकास की सीढ़ी गढ़,ऊंँच शिखर चढ़ जाएंँ हम।।
दलगत राजनीति त्याग,शांति-सद्भाव बनाएँ हम।
समाजिक-समता बंधुत्व के,सुंदर भाव जगाएँ हम।।
दीन-दुखी,व असहायों को, सदा ही सुख पहुंचाएँ।
झूठ-विषमता को तज,सच्चाई का अलख जगाएँ।।
हमको अपने भारत को, विकसित राष्ट्र बनाना है।
भेद-भाव को दूर भागकर,समरसता अपनाना है।।
अर्थ-व्यवस्था ऐसी हो,गरीबी की रेखा मिट जाए।
अपना प्यारा देश फिर,सोने की चिड़िया कहलाए।।
जनकल्याण,राष्ट्र-हित में,अपना कर्तव्य निभाएंँ।
पुनः हमारा भारतवर्ष ,विश्वगुरू बन छा जाए।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 17, 2023

परी ने कहा (बाल गीत)

परी ने कहा
सपने में आई एक परी।
हाथ में ले जादू की छड़ी।

सुंदर सफेद पहने कपड़े ।
बाल थे उसके बहुत बड़े ।

सिर पर था चांँदी का ताज।
बड़ी मीठी उसकी आवाज।

बात-बात में यह कह दिया।
दुनिया की  मैंने सैर किया।

है दुनिया भर में देश अनेक। 
तेरा भारत है लाखों में एक
कहकर वह पीछे मुड़ गयी।
औ पंख फैलाकर उड़ गयी।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, August 16, 2023

हम भारत के लोग (रूप घनाक्षरी)

हम भारत के लोग (रूप घनाक्षरी छंद)

अलग है बोली भाषा,
  इच्छा और अभिलाषा,
     फिर भी रखते आशा,
         हम भारत के लोग।

अलग है परिधान,
  अलग है खान-पान,
     करें सबका सम्मान,
        हम भारत के लोग।

संस्कृति में अनेकता,
   रिवाजों में अनेकता,
      रखें मन में एकता,
          हम भारत के लोग।

हिंदू या मुसलमान,
  मुगल हो या पठान,
    करते सबका मान,
     हम भारत के लोग।
     
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, August 14, 2023

तिरंगा (दोहा छंद)



तिरंगा (दोहा छंद)

तीन रंग से है बना,भारत की पहचान ।
हम भारत के लोग को, झंडे पर है शान।।

तीन रंग का मान अब,समझ रहे सब लोग ।
तीन रंग काअर्थ है ,तभी मिला संयोग।।

ऊपर रंग केसरिया, शक्ति का है प्रतीक।
सफेद रंग है बीच में,दें सच्चाई की सीख।

नीचे में है रंग हरा, हरियाली की शान।
बीच में यह चक्र सदा, करता है गतिमान।

इस तिरंगे झण्डे पर,हमको है अभिमान।
इस झंडे की खातिर हम, देंगे अपनी जान।।
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, August 13, 2023

मेहनत गरीबों की

मेहनत गरीबों की 

नजर उठा कर देख लो मेहनत गरीबों की। 
कर्म क्षेत्र ही सदा रहा है जन्नत गरीबों की

दिनभर कड़ी मेहनत कर,पसीना बहाते हैं।
तब जाकर कहीं दो जून की,रोटी वे पाते हैं।
राई से भी सूक्ष्म होती है किस्मत गरीबों की।

कर्म ही तो है पूजा-व्रत-आराधना उनकी।
कर्म ही जप-तप है, सेवा-साधना उनकी।
भण्डार नहीं हो पाता है,उन्नत गरीबों की।

कर्म पथ पर चलते,कर सुख की कामना।
सुख की लालसा में,करते दुःख का सामना।
दुःख नहीं है छोड़ता,कभी संगत गरीबों की।

सह ह्रदय की वेदना, चलाते छेनीे-हथौड़ियां ।
जानते हैं तब मिलेगी,आज उनको कौड़ियाँ।
पेट की खातिर चलता,यह जुगत गरीबों की।

रोटियों की आस में, देख रहे हैं राह जो।
मिटा चुके हैं मन से, खिलौने की चाह जो।
मन मारना ही धर्म है,या अस्मत गरीबों की।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, August 12, 2023

हमारे पंच महाभूत

हमारे पंच महाभूत

पाँच तत्वों से यह बना वदन है।
  गगन,धरा,जल,अग्नि,पवन है।
    सदा हमारा ये हैं साथ निभाते।
      इनके बिना हम रह नहीं पाते।
        ये पाँच तत्व हैं गुणों से भरपूर।
          रह नहीं सकते हम इससे दूर।

धरती माँ हमको धारण करती।
  गोद बिठाकर हो पालन करती।
     दूध सम अपना जल पिलाती।
       कंद-मूल,अन्न-फल खिलाती।
        देती हो हम सबको तुम जीवन।
           हे माते!तुमको हमारा है वंदन।

आकाश पिता बन देता छाया।
  स्वस्थ्य-सुरक्षित,निरोगी काया।
    सूरज द्वारा देता ऊष्मा-प्रकाश।
      रजनी में चंद्रमा द्वारा दे उजास।
        शरद ऋतु में शीतलता है लाता।
          वर्षा में झमाझम पानी बरसाता।

जल ही जीवन है समझो भाई।
  इससे नहाते और करते सफाई।
    जल हमारा है स्वास्थ्य बढ़ाता।
      हर कामों में है यह काम आता।
       इसके बिना हम जी नहीं सकते।
          इसके बदले कुछ पी नहीं सकते।

वायु पीकर हम सांँस हैं लेते।
  इसके कारण ही तो हैं जीते।
    हमारे तन में फूंकता है प्राण।
     सदा बचाता जीवों की जान।
        स्वच्छ रखेंगे जब हम वायु।
          तब होंगे स्वस्थ और दीर्घायु।

अग्नि जग में प्रकाश फैलाता।
  अंधकार को यह है दूर भागता।
    भोजन को ऊष्मा देकर पकाता।
      सदा ही ठंड से वह हमें बचाता।
        बुरी वस्तुओं को सदा जलाता।
          इसके बिन जीवन चल न पाता।
         
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, August 11, 2023

यह कैसा इंसाफ (लघुकथा)

यह कैसा इंसाफ (लघुकथा)

 प्रतिमा देवी अपनी पड़ोसन से कह रहीं थीं - मुझे माँ-बाप ने अच्छे विद्यालय में नहीं पढ़ाया अच्छे घर ब्याह नहीं किया। सारे पैसे उन्होंने बेटों को पढ़ाने एवं नौकरी-धंधा में लगा दिया।तभी मैंने सोचा था कि अपनी बेटियों को अच्छी शिक्षा दिलवाऊँगी,अच्छे घर ब्याहूंँगी।मेरा सपना पूरा हो गया।मेरी दोनों बेटियांँ पढ़-लिखकर अच्छी नौकरियांँ कर रही हैं ।अच्छे घराने में ब्याह कर दिया। मेरी बेटियाँ सुख से है।बस मेरी सारी इच्छाएंँ पूरी हो गईं। मेरा जीवन सफल हो गया।
          उनकी बातें सुन बेटा हिमेश का मन कुढ़ उठा। मन-ही-मन सोचा बेटियों को तो तूने अच्छी शिक्षा दिलवाई,सारी इच्छाएं पूरी किये, मान-सम्मान दिया, अच्छे-अच्छे घर ब्याह किया लेकिन मुझे बेटे को ? मुझे यह कहकर सरकारी विद्यालय में पढ़ाया कि बेटियों की पढ़ाई व ब्याह करने हैं।उनका जीवन सुधारने का हर संभव प्रयास किया , लेकिन मेरे लिए कभी कुछ नहीं सोचा।सारे जमीन जायदाद,जएबर-गहने बेचकर उनका अच्छे घर ब्याह कर दिया। लेकिन मेरे रहने का ठौर नहीं। शिक्षा ऐसी दिलवाई जिससे आगे का कोई रास्ता नहीं है।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

हम भारत के वीर सिपाही

हम भारत के वीर सिपाही

हम भारत के वीर सिपाही बढ़ते जाएंँगे।
भारत माँ की रक्षा करने लड़ते जाएंँगे।

जिन राहों पर कदम बढाते।
मुसीबतों से हम न घबराते।
जब तक लक्ष्य नहीं पूरे हो-
पीछे लौटकर हम नहीं आते।
लक्ष्य की खातिर नयी राह,
सदा हम गढ़ते जाएंँगे।

हम पर्वत पर चढ़ने वाले।
आसमान से लड़ने वाले।
देश पर कोई नजर न डाले-
इसके हम तो हैं रखवाले।
देश में दुश्मन कदम बढ़ाए,
उससे हम लड़ते जाएगें ।

नदियों की हम धार बदल दें।
बादल की फुहार बदल दें।
बाजू की ताकत से अपनी-
समंदर का उद्गार बदल दें।
सोने की चिड़िया है भारत-
स्वर्ण-श्रृंखला मढ़ते जाएंँगे।

पत्थर को हम मोम बना दें।
अपनी उष्मा से पिघला दें।
मेहनत का हम दीप बनाकर,
प्रेम का उसमें ज्योत जला दें।
हरकर अँधेरे देश को रोशन,
हम सब करते जाएँगे।

हम चाहें संसार बदल दें।
दुनिया की आकार बदल दें।
देश की ऊपर उठने वाले-
दुश्मन की तलवार बदल दें।
काल बनकर सारे दुश्मन से,
हम सब लड़ते जाएँगे।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

दो निशाना (लघुकथा)

दो निशाना 

मानसी का मन बड़ा विचलित था। मन के कड़वाहटों को निकालने के लिए उसने दोहरी चाल चली।भाभी के साहित्य उपलब्धियों से मन में जितनी व्यग्रता उत्पन्न हुई,ननद को मिले पुरस्कारों को देख ईर्ष्या की अग्नि ज्वाला बनकर धधक उठी।किसे सुनाएंँ अपने मन की व्यथा ।हाँ ! एक रास्ता है। मोबाइल फोन उठाया और नम्बर......... जैसे ही भाभी ने फोन उठाया , प्रणाम के बदले बहुत ही तीखी आवाज में दाँत पीसते हुए कहा -"मन बहुत खुश है सम्मान पत्र प्राप्त कर ?"
भाभी ने कुछ कहना चाहा उससे पहले ही बोल पड़ी - "तारीफ है उस फोटोग्राफर का जो सम्मान- पत्र के साथ इतना सुंदर चित्र खींचा है"
 भाभी ने कुछ बोलना चाहा उससे पहले ही बोल पड़ी -"नहीं-नहीं बड़ा सुंदर बना दिया । जानती हैं दो दिन पूर्व मेरी ननद को भी पुरस्कार मिला है। विश्वास न हो तो फेसबुक पर देख लीजिए।फिर बिना कुछ कहे फोन काट दिया।उसकी बोली का तीखापन पिघले शीशे के समान उसके कर्णपटल पर पड़ा और मन मस्तिष्क में तिलमिलाहट पैदा कर दिया।पर वह बेपरबाही से ननद को....... ननद ने भी जल्दी की फोन उठा लिया।उसके प्रणाम के जवाब में वही कड़वी बोली - "कौन बनाया था तुम्हारे काव्य-पाठ का वीडियो ? बड़ा अच्छा बनाया।"
"धन्यवाद भाभी !"
"धन्यवाद तो उस वीडियोग्राफर को कहो।जिसने तुम्हारी ऐसी-वैसी रचना का विडियो ऐसा बनाया कि तुमने पुरस्कार भी पा लिया। वैसे मेरी भाभी भी बहुत अच्छा लिख लेती हैं। सुंदर काव्य -लेखन के लिए उन्हें सम्मानित किया गया है। देखना ना फेसबुक पर। सम्मान पत्र लेकर खड़ी हैं मंच पर। ठीक।और फोन...........
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

दृश्य सुहावना (हाइकु)



दृश्य सुहावन

फूलों की क्यारी
बहुत ही सुंदर
लगती प्यारी।

रंग-बिरंगी 
हैं कलियां मुस्काई
मन को भाई।

तितली आई
सुंदर-फूलों पर 
है मड़राई।

भौंरे हैं गाते,
सुंदर तान वह
 हमें सुनाते।

कोयल कूके
बुझ रहे मन में,
जीवन फूंके।

चीची चहकी
दाना चुगने वह
आई बहकी।

आम की डाली 
पर है तोता -मैना
रहे चहक कर।

पपीहा कूंजे
तीतर-बटेर की 
है बोली गूंजे।

नाच दिखाती
मोरनी झूम कर
पर फैलाती।

है सुहावन
बड़ी दृश्य बाग की
मनभावन।

सुजाता प्रिय समृद्धि
  स्वरचित, मौलिक

कर्मों का फल (लघुकथा)

कर्मों का फल
सोनिया को देखते ही शशिकला जी ने बुरा सा मुंँह बनाया और दूसरी ओर मुड़ गई।पोता मोनू ने कहा -"यहीं बैठो दादी देखो मेरी दादी भी यही हैं।हम यही पार्टी मनाएंँगे।”लेकिन शशिकलाजी मोनू को खींचती हुई दूसरी ओर मुड़ गई ।यह देख दमयंती जी ने पूछा -"क्यों पड़ोसन से कुछ कहा- सुनी हो गई है ?आपको देखते ही उधर चली गईं।सोनिया ने कहा- "कुछ कहा सुनी तो नहीं हुई है। बस मोनू को लेकर ही उनके मन में विषाद रहता है। वह मुझे अपनी दादी कहता है,और मेरे पास आता है तो उन्हें लगता है वह मेरे बहकावे मैं ऐसा करता है।" दमयंती जी ने कहा -"जब आप उसकी देखभाल करती हैं, खिलाती -पिलाती हैं, गोद लेकर घुमाती हैं,प्यार-दुलार करती हैं, तो नहीं देखती। इतना करने पर तो किसी को लगाव हो जाएगा। कहते हैं -'बच्चा प्यार का भूखा होता है' फिर उन्हें आपसे शिकायत कैसी?'सोनिया ने कहा यह सब मेरी किस्मत का दोष है। मैं जिसकी भलाई करती हूँ,वह मेरा दुश्मन बन जाता है ।दमयंती जी ने कहा -"जाने दीजिए,इसमें किस्मत की कोई बात नहीं अक्सर लोग किसी की अच्छाइयों से ईर्ष्या करते हैं ,और मन के जलन के कारण किसी को भला- बुरा कहते हैं ।कर्म का फल यहांँ नहीं मिलता ।ऊपर वाले सबके कर्मों को देखते हैं, और उसी अनुसार फल भी देते हैं। आपने अच्छे कर्म किया है तो फल भी अच्छा अवश्य मिलेगा।"दमयंती जी की बातें सुन सोनिया के मन को बड़ी तसल्ली मिली।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 3, 2023

सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य

सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य 

देश की रक्षा करना सभी देशवासियों का परम कर्तव्य है। देश की सीमा रक्षा करते हुए आज देश के अनेक वीर सपूत अपने प्राणों को न्योछावर कर रहे हैं।लेकिन इस विषय संकट की घड़ी में कुछ युवा शक्ति अपने उफनते लहू के जोश का गला घोट कर घर बैठने को मजबूर हो अपने मन में एक कचोटती भावना लिए कुछ करने से असमर्थ  विवशता से हाथ मलते हुए सोचते हैं कि काश ...................
आज देश को उस देश से ही लड़ना पर रहा है जो आजादी से पूर्व भारत भू का ही अंग था ।तो कल किसी अन्य पड़ोसी देशो से भी लड़ना सकता है ।आज हमारे दुश्मन हमारे वे भाई ही बन बैठे हैं, जो स्वतंत्रता की लड़ाई में हमारे हाथों में हाथ डाल कर हमारा साथ निभाए थे ।तो कल अन्यान्य देश से वासी भी हमारा दुश्मन बन सकते हैं। कभी भी ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है जब देश की रक्षा के लिए देशवासियों को अपने प्राणों  की आहुति देनी पड़े ।इसलिए युवाओं को हर क्षण अपनी मातृभूमि की रक्षा जैसे पुनीत कार्य के लिए तत्पर रहना होगा।और यह तभी संभव है जब देश का प्रत्येक युवा एक प्रशिक्षित सैनिक हो।जब- जब देश पर खतरे के बादल मंडराते हैं हर दिशा से युवा शक्ति की पुकार होने लगती है । इसलिए जिस प्रकार अन्य देशों में युवाओं के लिए अनिवार्य सैन्य -प्रशिक्षण की व्यवस्था है।उसी प्रकार अपने देश में भी शिक्षा के साथ-साथ देश के हर युवा को सैनिक प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से देनी चाहिए। ताकि जब कभी-भी देश को अपनी रक्षा के लिए अपने वीर सपूतों की आवश्यकता पड़े, वे बहादुरी पूर्क दुश्मनों से लोहा ले सकें ,और अपनी मातृ-भूमि की रक्षा कर अमर हो जाएंँ।
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

नकल पड़ोसन की (कहानी )

नकल पड़ोसन की 

   सुशीला के घर का संपूर्ण छत गर्म कपड़ों से भरा हुआ था ।ऐसी बात नहीं की जेठ की इस चिलचिलाती धूप और बेशुमार गर्मी में सुशीला के घर किसी को गर्म कपड़े पहनने का शौक चर्राया है,जिसके लिए उसकी तैयारी की जा रही है बस सुशीला की छोटी बेटी रश्मि ने कमरे को धोते वक्त यह ध्यान नहीं लिया की गट्ठरों में बंधे कंबल-रजाई भीग जाएंगे अंधाधुंध पानी छिड़कती गई कमरे में।
 सुशीला कमरे की सफाई से जितना खुश हुई,रजाई और कमलों को गीला देख उतना ही खीज उठी ।रश्मि को एक गरमा- गरम डांट सुनाई और रजाई- कम्बलों को गठरियों के बंधन से मुक्त कर उन्हें धूप में फैला दी। जब धुन सवार हो ही गया तो क्यों ना संदूक से भी सारे गर्म कपड़े निकाल कर थोड़ी धूप दिखा दी जाए। इस तरह सारे गर्म कपड़े छत पर सीखने डाल दिया।
उसकी नकलची पड़ोसन विमला की नजर जब इन कपड़ों पर पड़ी तो वह व्याकुल हो उठी।
रेखा ! बिंदु !  एक साथ अपनी दोनों बेटियों को पुकार कर बुला ली थोड़ी देर बाद विमला की पूरी छत गर्म कपड़ों से भर गयी ।
सुशीला की बेटी रजनी का ध्यान जब उस ओर गया तो वह मांँ को बुला लाई और विमला चाची के छत पर फैले कपड़ों को दिखाकर बोली - यदि मैं छत पर से कूद पड़ू तो चाची रेखा , बिंदु को भी छत पर से धकेल देंगी।
 यह सब छोड़ो भी कल मुझे लकड़ी से चाय बनाते देखी तो वह भी लकड़ी की दुकान से लकड़ियांँ मंगवा ली।मैं कोई मंगाने थोड़ी गई ।वह वह तो किबाड़ बनवाने से जो कटी-छटी लकड़ियांँ बच गयी ।उसी से बनाई थी । फिर दोनों मांँ बेटी के स्मृति-पटल पर विमला और उनकी बेटियों द्वारा नकल उतारने के कई प्रयत्न तेजी से विचरण करने लगे ।
सुशीला अपने लिए जैसी साड़ी व गहने खरीदती विमला भी अपने लिए ठीक वैसे ही कपड़े व गहने कपड़े खरीद लेती ।जैसे बर्तन और सामान सुशीला के घर रहते वैसे विमला के घर भी आ जाते ।
ऐसी बात नहीं की नकल उतारने की यह प्रवृत्ति सिर्फ विमला में थी ।उसकी बेटियांँ उससे दस कदम आगे ही थी। रजनी या रश्मि जिस प्रकार चोटियाँ गुथती दूसरे दिन रेखा और बिंदु भी ठीक वैसा ही चोटी बना लेती। जैसी चप्पलें और श्रृंगार प्रसाधन खरीदती, ठीक  वैसी की वैसी वे भी ले लेती।जिस किसी से ये दोस्ती करती उससे वे भी सांठगांठ करना प्रारंभ कर देती।
नकल उतारने के इस होड़ में ईश्वर ने भी उनकी पूरी मदद की थी सुशीला के दो बेटे और दो बेटियांँ थी तो विमला के भी। सुशीला के सास-श्वसूर जिंदा थे तो विमला के भी। यहांँ तक की किसी कारणवश सुशीला के साथ बेटी के घर गई हुई थी तो विमला भी लड़-झगड़ कर अपनी सास को उलाहना दे डाली कि क्या बेटे बहू ही सब दिन मांँ-बाप को रखें बेटियांँ नहीं रख सकती ? इस प्रकार विमला की सास भी अपनी बेटी के साथ जबरन उसके घर चली गई। एक बार सुशीला अपने पिताजी को कुछ दिनों के लिए लाई थी तो विमला भी अपने पिताजी को बुला ली। पिछली बार होली के अवसर पर सुशीला ने अपने भैया- भाभी को बुलाया तो दशहरे के अवसर पर विमला ने भी अपने भैया -भाभी को बुला लिया ।सुशीला कभी मायके जाती तो एक-दो दिन के अंतराल में विमला भी अपने मायका चल पड़ती।
 दोनों के पति नौकरी करते थे सुशीला के पति किसी निजी फर्म में थे उन्हें 8:00 बजे सुबह ही दफ्तर जाना रहता था।इसलिए वह सुबह जल्दी उठकर तैयार हो जाते थे।इस पर भी अक्सर विमला का अपने पति से तकरार चलते रहता। देखो तो एक आलोक बाबू है सात बजे तक नहा धोकर तैयार हो जाते हैं ।और एक तुम हो कि आठ बजे तक पलंग पर ही डटे रहते हो।  रोज के चख-चख से तंग आकर विमला के पति इंद्रदेव जी भी 8:00 बजे नहा धोकर नाश्ते की मांँग कर देते तो विमला घर में कोहराम मचा कर रख लेती। इंद्रदेव जी कहते - आलोक बाबू को सुबह 8:00 बजे खाना मिलता है मुझे क्यों नहीं ? विमला हाथ नचाती हुई कहती -हाय! उनकी तरह इतनी जल्दी खाना मांगते हो, सुविधाएं भी झूठा रखी है उनकी  तरह? वे तो एक स्लाटोव लाकर रख दिए हैं।चट-चट चार पम्प और फट से रोटी सब्जी बनाकर खिला  देती है ।
लेकिन तुम्हें तुम्हें तो दाल चाहिए सब्जी चाहिए भाजी चाहिए और जाने क्या-क्या चाहिए ।
अरे चाहिए,चाहिए तो मैं सारा सामान ला भी तो देता हूंँ। स्टोव की क्या जरूरत है? एक साथ दो बर्नर वाले गैस के चूल्हे हैं । फिर सुशीला बहन से दो घंटे ज्यादा समय भी तो मिल जाता है तुम्हें । इंद्रदेव जी खींजते हुए कहते।
        सुशीला का नाम आते ही विमला नागिन की तरह फुफकार उठती । बस-बस तुम मर्दों में यही तो बुराई है। दूसरों की बीवियां कितनी भी बेपरवाह और कामचोर हो सुघड़ लगती हैं और अपनी बीवी कितनी ही सुशील और कार्य कुशल हो फूहड़ लगती है।
और तुम औरतों में यह कमजोरी नहीं कि दूसरे के पति कितना भी निकम्मा आलसी और मक्कार क्यों ना हो महा विष्णु के अवतार लगते हैं और अपना पति कितना भी विद्वान और जागरूक क्यों ना हो जाहिल लगता है। फिर तो दोनों में काफी तू-तू मैं-मैं हो जाती। नतीजा विमला पलंग पर, और इंद्र देव जी बेटियों से कुछ रुखा- सुखा बनवा कर खा लेते या भूखे पेट को सहलाते हुए दफ्तर का रुख लेते और दूसरे दिन से 8:00 बजे तक पलंग पकड़े रहने का अपना पुराना रवैया अख्तियार कर लेते।
 पहनावे -ओढ़ावे के मामले में भी इंद्रदेव जी को कुछ यूं ही झेलना होता। जैसा कपड़ा आलोक बाबू पहनेंगे वैसा ही उन्हें भी पहनना पड़ता।सुशीला और उसकी बेटियांँ हमेशा आपस में बोलती चाची को तो हम लोग से अच्छे कपड़े और सामान लेने चाहिए,क्योंकि चाचा को पगार भी पिताजी से ज्यादा मिलती है साथ-साथ ऊपरी आमदनी भी है।
 कई दिनों से विमला के पैर में मोच पड़े हुए थे ।घरेलू उपचार से जब कोई लाभ नहीं हुआ तो घर के सदस्यों में विचार हुआ कि अस्पताल जाकर डॉक्टर को दिखाया जाए और सुशीला रिक्शे पर सवार हो अस्पताल चल दी। उसे जाते विमला का छोटा बेटा बिट्टू ने देख लिया ।दौड़ा हाँफ्ता घर पहुंँचा और विमला से बोला - माँ !जानती हो चाची बाजार गई हैं।
 किसने कहा ?
 किसी ने नहीं । मैंने स्वयं उन्हें रिक्शे पर जाते हुए देखा है । 
हाँ माँ ! यह कहता है सिट्टू ने कहा-अभी थोड़ी देर पहले जॉनी रिक्शा लेकर आ रहा था ।
 चाची अवश्य किसी विशेष काम से बाजार गई होगी। बिंदु ने आशंका व्यक्त की ।
और विशेष काम क्या ? दशहरा निकट आ गया है। कपड़े आदि लाने गई होंगी । रेखा ने अपनी समझदारी दर्शाते हुए बात स्पष्ट की।
हांँ ऐसा ही होगा । क्योंकि कल ही जैकी बोल रहा था अब के दशहरे में मैं फुल-पैंट सिलवा लूंँगा। बिट्टू ने रेखा की बातों की पुष्टि की ।
अरे हांँ, जैकी बोल रहा था, मेले जूते फट गए हैं नए जूते लाने मांँ को बोला हूंँ। नीतू ने भी अपनी तोतली बोली में कहा।
तब तो रजनी और रश्मि के भी कपड़े आयेंगे ? रेखा माँ की ओर देखती हुई संदेश-युक्त स्वर में बोली ।
 तो क्या करूंँ मैं भी चली जाऊंँ बाजार विमला ने सभी से मशविरा लिया ।
हांँ- हांँ क्यों नहीं ? सभी के मुंँह से लगभग एक साथ ही निकला । जब चाची आज ही कपड़े ले आएंगी, तो हम भी क्यों पीछे रहें भला ? हम लोग उनसे किस बात में कम हैं ?बिंदु चुटकी बजाती हुई बोल उठी।

लेकिन उतने पैसे तो पास में है नहीं ? मैं तो सोचती थी कि महीने की पगार मिलेगी तब ले आऊंँगी कपड़े और सामान। विमला ने आहें भरते हुए दुःखी स्वर में कहा।
     कहीं से रुपए का बंदोबस्त नहीं हो सकता ? बिंदु ने प्रश्न किया तो विमला को मानो अंधेरे में रोशनी मिल गई।
 हांँ- हांँ जा न गोलू की मांँ के पास हमारे चार हजार रुपए हैं और सोहन की मांँ को भी कहना दो चार दे दे। बहुत जरूरी काम है दस दिनों में पगार मिलेगी तब लौटा दूंगी ।
इतने पैसे से हो जाएंगे ? रेखा ने पूछा ।
क्यों नहीं होंगे बिंदु ने झट से कहा कुछ पैसे हम लोग भी दे देंगे । सभी को उनका सुझाव पसंद आया। सभी ने अपने अपने गुल्लक फोड़ डाले। विमला भी अपने बक्से से खोज-ढूंढ कर कुछ पैसे निकाल लाई। सभी के अठन्नी चवन्नी और सिक्के मिलाकर एक छोटी- मोटी पोटली तैयार हो गई ।
विमला ने तुरंत बिंदु को गोलू के घर और बिट्टू को सोहन के घर पैसे लाने भेज दिया ।

दोनों जल्द ही रूपए लेकर आ गए। रुपयों का बंदोबस्त विमला जल्दी से तैयार हो गई ।
बिट्टू ने कहा जॉनी का फूल पैंट सिलवाएगा। इसलिए मेरा भी फूल-पेंट सिला देना ।
 जैकी के नए जूते आएंगे सौ मेरे लिए भी लेते आना बिट्टू के बोलते ही निट्भीटू भी बोल पड़ा ।
और देखना न माँ चाची कौन-कौन सी दुकान जाती है उसी दुकान में जाकर तुम उन्हीं के जैसे कपड़े और सामान ले लेना बिंदु बोली ।
अरे सारे सामान लाऊंगी कैसे ? थैले-वैले भी दोगी या यूं ही ले आऊंगी । सुशीला क्या पाँच थैले से कम थोड़े  ही ले गई होगी और तू टुकुर-टुकुर देख क्या रहा है ? जैकी उसे रिक्शा ला कर दिया तू नहीं ला सकता ? वह बिट्टू को घूरती हुई बोली तो वह उछलता हुआ दौड़ पड़ा रिक्शा लाने।
तब- तक बिंदु और रेखा खोज -ढूंढ़ कर दो-चार थैले जुटा लिए।
इधर ऊपर वाले भी अपनी चांँद-सूरज जैसी बड़ी-बड़ी आंँखों से सारा तमाशा देख रहे थे। उन्होंने सोचा यह सच्चे मानव ही तो मुझ पर पूर्ण विश्वास कर कहते हैं- "जैसा मन में ध्यान ।
वैसा पूरा करें भगवान।"
इनके अआगे तो आना ही पड़ेगा ,स्वयं पर विश्वास बनाए रखने के लिए। वे शरारत से मुस्कुराए और एमवस्तु के भाव से आंखें बंद कर ली ।
बाहर रिक्शे की झनझनाहट हुई ।सभी ने झांँक कर देखा बिट्टू रिक्शा लेकर आ गया। जल्दी करो रेखा और बिंदु ने एक साथ कहा।
 विमला जल्दी से चप्पल पहन कर चल पड़ी।एक तो चप्पल भींगा हुआ,दूसरा वर्षा से आँगन में काई की फिसलन।पैर ऐसा फिसला कि धड़ाम से आंगन में चारों खाने चित गिरी ।
सभी बच्चे पकड़ कर उसे उठाए ।पर उई माँ कहती हुई फिर से गिर पड़ी। शायद पैर की कोई हड्डी टूट गई थी ।
किसी प्रकार सहारा देकर सभी ने उसे रिक्शा पर चढ़ाया।
थैला घर में ही पड़ा रह गया ।रेखा के माँ के साथ अस्पताल जाने के लिए रिक्शे पर बैठ गई और बिट्टू को पिताजी को बुलाने के लिए दफ्तर भेज दी।
 बिंदु और बिट्टू दरवाजे पर खड़े चाची की तरह मांँ को भी रिक्शे पर जाते देख रहे थे।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, August 1, 2023

प्रेम का दीप (गीत)

प्रेम का दीप

का दीप मन में जलाते चलो।
घर-घर से अंँधेरा भगाते चलो।

हम जिधर भी चले तम उधर दूर हो।
रोशनी पास आने को मजबूर हो। 
अपनी मेहनत से तुम जगमगाते चलो।
घर-घर से अंँधेरा............
हर मानव में आए नयी चेतना।
दूर हो अज्ञानता का अँधेरा घना। 
मानवों को मानवता सिखाते चलो।
घर- घर से अँधेरा.............
भेद-भाव का कोई भरम न रहे।
जीवों के लिए हम बेरहम न रहें
अन्याय को मन से मिटाते चलो।
घर-घर से अंधेरा.........
चांँद सूरज से रौशन है सारा जहाँ।
कटुता का अँधेरा क्यों छाया यहाँ।
विषमता को मन से हटाते चलो।
घर-घर से अंधेरा........
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'