श्रवण कुमार
माता-पिता को तीर्थ कराने,
बहंगी लेकर चल पड़ा।
सोलह बरस का बालक था वह
नाम था उसका श्रवण कुमार।
राह में माता-पिता जी बोले,
प्यास लगी है जोर से।
बेटा जाकर पानी लाना,
घडा़ भर किसी ओर से।
वृक्ष के नीचे बहंगी रखकर,
पानी लाने चल पड़ा।
सोलह.बरस का बालक....... ....
घडा़ डुबाया पानी में जब,
आवाज हुई तब जोर से।
दशरथ राजा हाथी समझकर,
मारे उसको तीर से।
मरणासन्न हो गिरा धरा पर,
मुँह से निकल पड़ा चित्कार।
सोलह बरस का बालक...................
मामा पहुंचे सुन चित्कार,
हाय रे! मैंने क्या किया।
हाथी समझकर भांजे को ही,
तीर चलाकर मार दिया।
मन ग्लानि में डूब गया और,
मुँह से निकला हा-हाकार,
सोलह बरस का बालक......
कहा श्रवण ने व्यर्थ में मामा!
आप यहाँ रुआंसे हैं।
पानी पिला दें जाकर मामा,
माँ- पिताजी प्यासे हैं।
प्यासे रहेंगे अगर वे मामा,
अटके रहेंगे मेरे प्राण।
सोलह बरस का बालक.............
पाँव दबाकर दशरथ पहुंचे,
उन दोनों के नजदीक।
पानी पिलाया मुक होकर के,
बेचारे को नहीं थे दृग।
बोले -बेटा तू क्यों चुप है,
लगता है तुम थक गया।
सोलह बरस का........
अंधे माता पिता ने सुनी जब,
दशरथ से यह करुण- कथा।
बोले जला दो हम दोनों को,
बेटे के संग बना चिता।
पुत्र वियोग में तुम भी मरोगे,
मर रहे हम जिस प्रकार।
सोलह बरस का ......
सुजाता प्रिय समृद्धि
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