Sunday, February 28, 2021

शिक्षक पति (हास्य - व्यंग्य )




मेरे पिया जी शिक्षक हैं, इंग्लिश पढ़ाते हैं।
इंग्लिश में बात करने सबको सिखाते हैं।

दिन में पिया जी हैं स्कूल जाते ‌।
रात में ए बी सी डी हमें सिखाते।
ए फोर एप्पल और बी फोर बौल।
सी फोर कैट और डी फोर डौल।
पूछती हूं जब माने तो वे नहीं बताते हैं।
मेरे पिया जी शिक्षक हैं, इंग्लिश पढ़ाते हैं।

सुबह में बोले आय एम गोइंग।
तो मैं बोली किआय एम सोइंग।
रोज सबेरे में  वे हैं घूमने जाते।
कहते हैं मार्निंग वाक पर जाते।
मेरी हर बातों को वे गलत बताते हैं।
मेरे पिया जी शिक्षक हैं, इंग्लिश पढ़ाते हैं।

नींद में जोर से कहते इडियट।
सारे बच्चों पढ़ो तुम झटपट।
जल्दी से ट्रान्सलेशन बनाओ।
पोएम याद कर हमें सुनाओ।
सपने में भी वे सदा विद्यालय जाते हैं।
मेरे पिया जी शिक्षक हैं इंग्लिश पढ़ाते हैं।

                  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                     रांची, झारखण्ड
                   स्वरचित, मौलिक

Friday, February 26, 2021

मैं तुम्हारी ताज हूं (गज़ल)

जय मां शारदे 🙏🙏
नमन मंच🙏🙏
साहित्य संगम संस्थान
झारखण्ड इकाई
दिन-गुरुवार


तुम मेरे सरताज हो और मैं तुम्हारी राज हूं।
तुम ही मेरी जिंदगी हो, मैं तेरी हमराज हूं।

सज रही महफ़िल यहां गायकी के वास्ते,
तुम मेरी संगीत बन जा, मैं तुम्हारी साज हूं।

हो रहा है गान अब, हम भी मिलकर गाएंगे,
तुम हमारी गीत बन जा, मैं तेरी आवाज़ हूं।

देखो अब सारे जहां में, प्यार का सम्राज्य है,
तुम यहां सम्राट बन जा, मैं तुम्हारी ताज हूं।

खुशनुमा लगता जहां हैं जब तुम्हारा साथ हो,
संग मेरे हर कल रहोगे,संग तुम्हारे आज हूं।

                  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                     रांची, झारखण्ड
                    स्वरचित, मौलिक

Wednesday, February 24, 2021

माउण्टेन मैन



दशरथ मांझी गहलौत का,
               बिहार राज्य का पूत।
तेरी समाज सेवा से,
              सब जन हैं अभिभूत।
पत्नी फाल्गुनी पत्थर से,
             गिरकर हो गई घायल।
कंधे पर टांग चल पड़े,
             पैदल पच्चासी माइल।छटपटा कर आधी राह में,
                पत्नी ने छोड़े प्राण।
राह बनाऊंगा पहाड़ काट,
             लिया तब तुमने ठान।
अब किसी की प्रियतमा,
            मरे न इलाज से बंचित।
अपार शक्ति हृदय में,
           कर लिया तुमने संचित।
बाईस वर्ष परिश्रम कर,
             पत्थर को तुमने काट।
राह बनाया पर्वत को,
                   दो हिस्सों में बांट।
कल्पना में फल्गुनी को,
                 देखकर पाये  चैन।
विश्व प्रसिद्ध हो गये,
          कहलाये माउण्टेन-मैन।
लोग तुम्हारी सेवा का ,
             आज भी करते वंदन।
हे वीर सच्चे साधक,
       तुम्हें शत-शत अभिनंदन।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
              स्वरचित, मौलिक

Sunday, February 21, 2021

स्वामी दयानंद सरस्वती


विधा-दोहा, चौपाई

स्वामी दयानंद सरस्वती की,लिखती हूं जीवन सार।
महान चिंतक थे युग के,किए समाज सुधार।

बारह दो अठारह सौ चौबीस।
अवतरण लिए वे थे पर हित।
नाम उनका  था मूल  शंकर।
विद्या-बुद्धि- गुण से थे प्रखर।
पैतृक गांव उनका था  टंकारा।
जहां के थे वे आंखों का तारा।
करशन जी थे पिताजी उनके।
यशोदा वाई माता थी जिनकी।
गुरु उनके विरजानंद दण्डीश।
शिक्षा देते थे  वे उन्हें अहर्निश।
राष्ट्रीयता भारतीय,धर्म था हिन्दू।
संस्कृत भाषा थी जीवन की बिंदू।
धार्मिक पाखंडों का कर खंडन।
सहज छुड़ाए  सब  झुठा बंधन।
सत्य का उन्होंने ज्योत जलाया।
समाजिक बुराई को दूर भगाया।
ईश्वर भक्त थे सरस्वती दयानंद।
ईश्वर भक्ति से उनको था आनंद।
वेदों की ओर लौटो उनका नारा।
वेदों से होगा जीवन  उजियारा।
वेदों के भाष्य से ऋषि कहलाए।
महता वेदों की सबको बतलाए।
आर्य समाज के थे वे संस्थापक।
गुरुजनों के थे वे आज्ञापालक।
महाऋषि थे और महान चिंतक।
सदा अनुआयी रहते नतमस्तक।
सिद्धांत,पुनर्जन्म,ब्रह्मचर्य,संन्यास।
थे उनके दर्शन -  स्तम्भ ये खास। 
सत्यार्थ प्रकाश थी उनकी रचना। 
लक्ष्य आर्य समाज की  प्रचार करना।
स्वतंत्रता-संग्राम के थे प्रणेता।
इनके कारण हम बने विजेता।
अजमेर उनकी पुण्य भूमि,राज्य राजस्थान।
अंतिम सांस लिए जहां,महात्मा पूज्य महान।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
               रांची, झारखण्ड
              स्वरचित, मौलिक
             अप्रकाशित रचना

Saturday, February 20, 2021

वसंत के दोहे



मौसम बड़ा सुहावना, आया है वसंत।
लेकर आया साथ में, खुशियां है अनंत।

मुस्काई कलियां प्यारी, महक उठी सब डाल।
इस प्यारे मौसम ने, ऐसा है किया कमाल।

आम पेड़ की डाल पर,रही है कोयल कूक।
जिसे सुनकर विरहन के,दिल में मारे हूक।

उड़ रही तितलियां, भौंरे ने छेड़ी तान।
होठों पर सब लोग के, थिरक रही मुस्कान।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
            स्वरचित, मौलिक

Friday, February 19, 2021

कालू चाचा की दुकान



आजा तेरे दरवाजे पर,कालू चाचा आया हूं।
अपनी फटी कमीज़ में दुकान सजाकर लाया हूं।

दैनिक जरूरत की देखो सभी सामान लगे हैं।
कंघी जेब में,कलम बटन में, चाकू पैवंद में टंगे हैं।

टाफी-बिस्कुट,मुढ़ी-मिक्सचर हाथों में लटकाया।
पुदिना-पाचक, जलजीरे को बाहों में अटकाया।

पेस्ट-ब्रश है दातुन-मंजन,सर्फ-साबुन,शैम्पू।
छोटे-छोटे नट-बोल्ट, पेचकस, स्वीच,कलेम्पू।

चीनी-चायपत्ती भी संग में हल्दी, मिर्च-मसाला।
छोटे पैकेट के नमक-तेल हैं, छोटे चाबी-ताला।

कांटे,चम्मच,कलछूल,छननी,सड़सी-चिमटे।
सूई-धागे,हूक-बटन भी, हैं डब्बे में सिमटे।

तुमको भी आसान काम से,मेरी भी कुछ कमाई।
तेरा भी कुछ समय बचेगा, मेरी भी करो भलाई।

भीख मांगने से है अच्छा,थोड़ा काम करें हम।
प्रभात फेरी में समान बेच, फिर आराम करें हम।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
             रांची, झारखण्ड
              स्वरचित, मौलिक

वायु बिन ना जीवन रे



ना रूप है,ना रंग है।
आकार है ना अंग है।
वायु हमारे जीवन में,
रहता सदा ही संग है।

पंच महाभूतों में एक है।
उपयोग इसके अनेक हैं।
हर जगह हैं काम आता,
सब काम इसके नेक हैं।

पल-पल वायु पीते हम।
इसके दम पर जीते हम।
अगर हमें ना मिलता वायु,
तो रह जाते बस रीते हम।

वायु बिन ना है जीवन रे।
ना जीवों का तन-मन रे।
इसके बिना तो चुल्हे में भी,
ना जल पाता  है इंधन रे।

आओ अब इसे बचाएं हम।
धरती पर बृक्ष लगाएं हम।
सांस-संवारण इस वायु को,
मिलकर स्वच्छ बनाएं हम।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
       रांची, झारखण्ड
      स्वरचित, मौलिक

Wednesday, February 17, 2021

हम फूल एक फुलवारी के

हम फूल एक फुलवारी के

हम  फूल एक फुलवारी के,
   हिल-मिल आपस में रहते हैं।
      सर्दी-गर्मी और वर्षा-पतझड़,
         सब कुछ मिलकर सहते हैं।

रंग-विरंगा है रूप हमारा,
    हम एक-दूजे को भाते हैं।
     अलगआकार-प्रकार हमारा,
          हम सबका साथ निभाते  हैं।

ऊंच-नीच का भेद न हममें,
    बड़ा -छोटा का भान नहीं है।
       सुंदरता की खान सभी हैं,
            पर मन में गुमान नहीं है।

आपस में हम कभी न लड़ते,
   सब पर रखते कोमल भाव।
      कभी किसी को कष्ट न देते,
          नहीं किसी पर आता ताव।

फूलों का परिवार हमारा,
     जग भर में खुशहाल है।
       किसी से  कोई द्वेष नहीं है,
            किसी से  नहीं मलाल है ‌।

               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                      स्वरचित, मौलिक

Monday, February 15, 2021

सरस्वती वंदना



क्षमा प्रार्थना 🙏🙏

हे ज्ञान दायिनी सरस्वती माता !क्षमा करो अपराध ,🙏🙏
मेरा, क्षमा करो अपराध 🙏🙏
कला-ज्ञान, विज्ञान विधाता,
क्षमा करो अपराध,🙏🙏
मेरा क्षमा करो अपराध।🙏🙏

क्षमा करो मैं जग- प्राणि के,
            अवगुण चित में लाती हूं।
गुण का आदर कर नहीं पाती,
                ईर्ष्या से भर जाती हूं।
जल-भुन कर मैं मन में अपने,
                   भर लेती हूं विषाद।
     मेरा क्षमा करो अपराध।🙏🙏
 
कंठ दिया, तूने शब्द दिया,
          पर मधुर वचन ना बोलूं मैं।
वाणी दे ऐसी मां मुझको,
           जब भी मुख को खोलूं मैं।
स्वर में पहले मधुरस घोलूं,
                      तब मैं बोलूं बात।
     मेरा क्षमा करो अपराध।🙏🙏

मुझ दुष्टा को हे जगद्रष्टा,
          ज्ञान की राह दिखाना मां।
जब मैं भटकूं,हाथ पकड़ कर,
           सतपथ पर ले आना मां।
ज्ञान-गुरु बन सर पर मेरे,
                 रखना हरदम हाथ।
     मेरा क्षमा करो अपराध।🙏🙏

क्षमा-दया, तप-त्याग की माता,
                      दे करके वरदान।
मन में ऐसी लगन लगा दे,
              करूं मैं जन-कल्याण।
सारा जग रौशन कर जाऊं,
                सत्य का देकर साथ।
     मेरा क्षमा करो अपराध।🙏🙏

           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
               रांची, झारखंड
              स्वरचित, मौलिक

सरस्वती वंदना🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🌹🌹सरस्वती वंदना🌹🌹
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  तेरी वीणा की झंकार, 
माता गूंज 
  रही।

 कर झंकृत मन के तार,
माता गूंज 
   रही।

शुभ्र वसना मां वागीश्वरी,

  गले में स्फाटिक हार,
  माता गूंज
     रही।

छेड़ रही तू राग मनोहर,

 पुलकित है संसार,
 माता गूंज
   रही।

हाथ में तेरे पुस्तक शोभे,

 ज्ञान का है भंडार,
 माता गूंज
   रही।

तेरी ममता बड़ी निराली,

 महिमा अपरम्पार,
 माता गूंज
    रही।

तेरी शरण में आई हूं मां,

 दे दो अपना प्यार,
 माता गूंज
   रही।

भक्ति भाव सेभजन करूं मैं,

 हृदय से करूं पुकार,
 माता गूंज
   रही।

मंदिर-मंदिर गूंज रही मां,

 भक्तों की जयकार,
 माता गूंज
   रही।

दिशा-दिशा वासंती छाई,

  भौरों की गुंजार,
 माता गूंज
   रही।

विद्या का वरदान दो मां अम्बे,

 गुण का कर संचार,
 माता गूंज
   रही।

नमन हमारा हंसवाहिनी,

 कर लो तू स्वीकार,
 माता गूंज
   रही।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
  स्वरचित, मौलिक
🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Saturday, February 13, 2021

प्रीत न जाने रीत



मन तुमसे लगाया है प्रीत रे।
क्यों समझे न इसको मीत रे।

मुझे तेरी सूरत नजरों को भाई।
मैंने उसको है  दिल में बसाई।
दिल ने प्रीत का गीत है गाया,
मन में बजने लगा संगीत रे‌।
क्यों समझे न इसको मीत रे।

तेरा-मेरा  है  ये रिश्ता पुराना।
फिर क्यों हमको रोके जमाना।
चाहे हमसे जीतना लड़े  वो,
होगी हमारी ही जीत रे।
क्यों समझे न इसको मीत रे।

ऊंच-नीच का भेद मिटा दो।
सारी दुनिया को समझा दो।
चाहे कोई भी नियम बना ले,
पर यह प्रीत न जाने रीत रे।
क्यों समझे न इसको मीत रे।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
              रांची , झारखंड
             स्वरचित , मौलिक

Thursday, February 11, 2021

उड़िया ना छंद

शरद ऋतु बीता, वसंत ऋतु आया।
बागों की क्यारी में,फूल मुस्काया।।
मंजरियों से सज गयी,पेड़ों की डाली।
कूक रही कोकिल ,हुई  मतवाली।।

उड़ने लगी रंग-बिरंगी , तितलियां।
आज सुवासित है,गांव की गलियां।।
आओ सभी मिल,खुशियां मनाएं।
प्रेम ऋतु आया है, प्रेम धुन गाएं।।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित, मौलिक

Tuesday, February 9, 2021

किसान आंदोलन ( गीत )



बैठे धरना पर देखो किसान देश के।
चाहे  मानो ना ये हैं  , गुमान देश के।

किसान हमारे अन्नदाता हैं,
इनपर नाज है हमको।
इनके दम पर हम राजा हैं,
दिलवाते ताज में हमको।
इनके दम पर हम बनते,महान देश के।
बैठे धरना पर देखो किसान देश के।

राजनीति क्यों करते तुम,
इनकी मेहनत पर भाई।
कठिन परिश्रम ये करते हैं,
इनकी है कृषि कमाई।
लोग करते क्यों इनको परेशान देश के।
बैठे धरना पर देखो किसान देश के।

आकर कोई नियम बता दे,
कोई तो समझा दे।
अधिनियम बना है उनके हक में,
आकर तो बतला दे।
उन लोगों का होगा ,एहसान देश के।
बैठे धरना पर देखो, किसान देश के
                  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                       रांची, झारखंड
                    स्वरचित, मौलिक

Saturday, February 6, 2021

किसी का दिल नहीं तोड़ो ( गज़ल )



निज टूटे हुए दिल ले, सभी मेरे पास आते हैं।
हम जोड़ेगे इसे ठीक से, लिए विश्वास आते हैं।

भरी है टोकरी दिल के, टुकड़े से यहां देखो,
इन्हीं टुकड़ों को ले मायुस, बड़ी उदास आते हैं।

जुटाकर दिल के टुकड़े को,सजाये हैं करीने से,
न कोई उल्टा-सीधा हो, यही एहसास आते हैं।

इसे रख सामने अपने, मरम्मत करने बैठे हैं,
मगर ये तो बड़े घायल,गुमे-हवास आते हैं।

लगाते हम हैं जब टांके,लहू इनसे टपकते हैं,
जोे इनसे गिरते हैं लोहू, नहीं हमें रास आते हैं।

जोड़े ये नहीं जुटते ,भला कैसे इन्हें छोड़े,
खुदा भी हैं, तो क्या हैं हम,हो निराश जाते हैं।

अगर जुटते ये हमसेे,तो हम भी जोर कुछ करते ,
सभी जाते खुशी मन से,जो हो उदास आते हैं।

मनुज तुझसे है मिन्नत अब, किसी का दिल नहीं तोड़ो,
तुम अपने दिल में यह सोचो,ये मुद्दे खास आते हैं।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                 स्वरचित,मौलिक

नन्ही परी



खुशी का ठिकाना नहीं,
मेरे घर आई है नन्ही परी।
इसको मिटाना नहीं,
मेरे.................
मेरा ही अंश है,मेरा स्वरूप है।
मैं मां बनी वह बेटी का रूप है।
आज मेरी गोद भरी,
मेरे घर आई है नन्ही परी।
खुशी का ठिकाना नहीं,
मेरे......................
जब मैं थी मां की गोदी में आई।
मां ने भी कितनी थी खुशियां मनाई।
चाहे माने जमाना नहीं,।
मेरे घर आई है नन्ही परी
खुशी का ठिकाना नहीं,
मेरे घर..............
आज है बेटी, कल होगी माता।
बेटाऔर बेटी सबकी जन्मदाता।
की मेरी गोदी हरी,
मेरे घर आई है नन्ही परी।
खुशी का ठिकाना नहीं,
मेरे घर..................
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
            
          स्वरचित ,मौलिक

Friday, February 5, 2021

आम जनमानस में साहित्य का महत्व (आलेख)



यह सत्य है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है।एक सच्चा साहित्यकार सामाजिक विषमताओं, रीति-रिवाजों,छल-प्रपंचो, उच्च-नीच, भेद-भाव, उत्थान-पतन, सेवा-सद्भाव , शिक्षा-संस्कारों सभी विषयों पर अपनी लेखनी चलाकर साहित्य रचकर सच्चाई से चित्रण कर उसके परिणामों -दुष्परिणामों को आईने की भांति दर्शाता है। साहित्यकार साहित्य के द्वारा जनमानस को जागरूक कर सुधार लाता है तथा समाज का पुनरुत्थान एवं नवनिर्माण करने का प्रयास करता है।
आम जनमानस पर भी साहित्य का प्रभाव अवश्य पड़ता है ।आम जन साहित्यिक रचनाओं को पढ़कर बहुत कुछ सीखते समझते और जानते हैं ‌तथा साहित्यिक कथा -कहानियों में आनेवाले सुपरिणामों-दुषृपरिणामों से प्रेरित होकर स्वयं में सुधार लाने की कोशिश कर सामाजिक और मानसिक विसंगतियों को दूर करते हैं।आम जनमानस के लिए साहित्य  प्रेरणादायक, शिक्षक और सुधारक है।
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
               रांची, झारखंड
             स्वरचित, मौलिक

Wednesday, February 3, 2021

जावांज सिपाही भारत के



दस्तक सुनकर गुड़िया रानी, दरवाजे को खोली।
देखो मां! पिताजी आए, बड़ी चहक कर बोली।

मेरे लिए टॉफी - चॉकलेट , लाए हैं पिताजी।
हाथ में छिपाकर गुड़िया ,दिखा रहे नाराजी।

आवाज़ सुनकर आई पत्नी, जा लिपटी सीने से ‌
बोली-इंतजार कर रही हूं, मैं ग्यारह  महीने से।

पीछे का हाथ आगे ना आया ,हुआ कुछ अंदेशा।
मन की बेचैनी छिपा कर पूछी, क्या लाए संदेशा।

जब पीछे वह मुड़कर देखी, हाथ बंधी थी पट्टी।
उसे घुमा जब उसने देखा, हथेली थी पूरी कटी।

सीने पर हाथ रखकर पूछी, किसने इसको काटा।
नाम जरा उसका बतलाओ,  जाकर मारूं चांटा।

हंसकर जंग-बहादुर बोला, सीमा पर थे सोए हम।
वहां पर छुपाकर दुश्मन ,रखा था टाइम- बम।

मैंने उसे उठाकर फेंका,झटसे पहाड़ी के नीचे।
टाइम पूरी थी फटा वह,  गिरा मैं आंखें  मीचे।

इस तरह से हमने अपने, साथियों की जान बचाई।
अपना कर्तव्य निभाने में , हमने यह हाथ गवांई।

नतमस्तक हो गई सुनयना चरणों में उसके जाकर।
बोली-आज धन्य हुई मैं, जांबाज़ पति को पाकर।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                  स्वरचित, मौलिक

Tuesday, February 2, 2021

जीवन एक संघर्ष



जीवन एक संघर्ष है,हंसकर गले लगाना है।
बाधाओं को ठेल कदम से, आगे बढ़ते जाना है।

करना है उत्थान अगर तो,करता चल संघर्ष।
आनेवाली चुनौतियों को स्वीकार करो सहर्ष।
मुश्किल से ना डरना है,मन में ना घबराना है।
जीवन एक संघर्ष है,  हंसकर गले लगाना है।

हमको आगे बढ़ना है, और करना है उत्कर्ष।
मंजिल तक पहुंचना है,अब लेकर मन में हर्ष।
टेढ़ी-अनगढ राहों को,सरल-सुगम बनाना है।
जीवन एक संघर्ष है हंसकर गले लगाना है।

ऊपर चोटी पर चढ़ने की, स्वयं बनाएंगे सीढ़ी।
उच्चाई पर चढ़ना सीखें, देख हमें अगली पीढ़ी।
बुलंदियों पर चढ़कर,जीवन सफल बनाना है।
जीवन एक संघर्ष है,हंसकर गले लगाना है।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
              रांची, झारखंड
            स्वरचित, मौलिक