Thursday, July 18, 2019

प्यार का अहसास

रूख बदला न करो कभी मुझसे ऐ जानम,
बेरुखी में भी प्यार का अहसास होता है।

नजरों से ओझल कभी हो जाते हो  तुम,
मेरे मन में तेरे बसने का आभास होता है  

चिलचिलाती धूप में चलती तिलमिलाती हूँ,
तेरा साया , छाया बनकर मेरे पास होता है।

हवा का झोंका जब आँचल मेरा उड़ाता है,
मेरे दामन को ढकता तेरा बाहुपास होता है ।

जब भींगाती है बरसात की ये चुलबुली बुंदें,
भींगे बालों को झटकने का तेरा हास होता है।

अनगिनत  नजरें निहारा करती हैं  मुझको ,
तेरे नजरों का वो चुराना भी खाश होता है।

जब भी मैं कभी गीत कोई गुनगुनाती  हूँ,
संग तेरे सुर मिलाने का भी भास होता है।

सजाती हूँ गजरा ,मैं अपने जूड़े में कभी,
उसकी खुशबू में बस तेरा सुबास होता है।

जब कभी झाकूं मैं मन मन्दिर में तुम्हें,।
दिल के हर कोने में तेरा ही बास होता है।
                         सुजाता प्रिय

Tuesday, July 16, 2019

सिक्के का सफर

हैं जनम लेते हम जिसकी कोख से,
  नाम उस जननी का ही टकसाल है।
    पैसा ,अन्नी ,चबन्नी , अठन्नी ,रूपया,
       उसके अनेकों नाम के हम लाल हैं।

रूप - रंग बदलते  रहे  हमारे  सदा,
  आकर भी छोटा - बड़ा  होता गया।
     पुराना लगा जब कभी भी रूप यह,
         बदलकर  होता गया है  तब  नया।

गोल  है मुखड़ा  हमारा  चाँद - सा,
   रंग  सूरज  का भी थोड़ा  है मिला।
      हाथ  अथवा  पाँव  हमारे  हैं  नहीं,
         टूटे न चलने का हमारा सिलसिला।

यात्रा करते हैं गाँव-नगर-राज्य की,
   देश - विदेश  भी कभी  हम घूमते।
      खनकते हैं हम बाबुओं की जेब में,
         रूपसियों के हाथ भी हैं हम चूमते।

राजकोषों  को  भरें  हम  शान  से,
   भिक्षुओं के कटोरे भी  हैं झंकारते।
      शोभित करते सेठों की  तिजोरियाँ,
         जुआरी भी  हमसे  मात देते हारते।

कैद रहते गुल्लकों में बरसों तलक,
   बंधे हम हैं  रहते  कभी रूमाल  में।
      देव सिर पर चढ़ कभी इतराएँ हम,
         तपते कभी हम आरती की थाल में।

इस  तरह  हम  पूर्ण करते  हैं सदा,
   अपने जीवन  का यह लम्बा सफर।
      चलते हैं सदा चलना हमारा काम है,
         पता न होता कब कहाँ होगा गुजर।
                 सुजाता प्रिय

Sunday, July 14, 2019

जीयो ऐ अनाम

जियो ऐअनाम
मेरी रचनाओं को
मेरे नाम
साझा करने वाले।
वरना अपने तो
मेरी रचनाओं को
खुलेआम चुराते हैं।
छपवाकर मेरे गीत,
रचनाकार की जगह,
अपना नाम लिख जाते हैं।
                    सुजाता प्रिय

Friday, July 12, 2019

सावन आया

मौसम बड़ा सुहावन आया।
देख सखी री सावन आया।

बादल गरज रहे अंबर से,
  झूम, झमाझम पानी बरसे,
    आँगन आज बना तालाब,
      तैराते बना कागज की नाव,
        भाव बड़ा मनभावन आया।
           देख सखी री सावन आया।

बागों में कलियाँ मुस्कायी,
  पात-पात हरियाली छायी,
    चिड़ियाँ चहकी गाना गायी,
      भौरे ने भी  तान  मिलायी,
         कृष्णा  का वृंदावन आया।
           देख सखी री सावन आया।

धानी चुनरी मन को भाई,
  माथे बिंदी- सिंदूर सजाई,
    मेंहदी  हाथों में  रचवाई,
      हरी चूड़ियाँ पहन कलाई,
        मन को यह रिझावन आया।
           देख सखी री सावन आया।

पेंग बढ़ाकर झूला झूलें,
  आसमान को जाकर छू लें,
     मन में आ मीठापन घोलें
       वैर- भाव को मन से भूलें,
         उत्तम मास है पावन आया।
           देख सखी री सावन आया।
                                   सुजाता प्रिय

Monday, July 8, 2019

मन मंजर

तू  फेर  नजर , अपने  अंदर,
ले  देख  मंजर ,अपने मन  का।
क्या पाप किया,क्या पुण्य किया,
है  क्या  कमाई , जीवन  का।       
मत  पाल  इसे,तू  टाल  इसे,
यह  काल  कहीं  न बन जाए।
अब  धर्म  करो, सत्कर्म करो,
सब भरम तुम्हारा मिट जाए।
रह तू घुलमिल,मानव बुजदिल,
सबके संगदिल तुम बन जाओ।
दिल में बस, तू अब हँस- हँस,
अपने दिल में सबको  लाओ।
दुःख  आते हैं, और  जाते हैं,
कभी दुःख से मत तू घबराओ।
दुःख बाट कभी,दुःख काट सभी,
कभी  न  इस से  कतराओ।
होंगे उन्मुख ,  जीवन के  सुख,
ले  काट दुःख  हल्का-फुल्का।
छोटे दुःख के, छोटे  मुख में,
छिपा है  सुख  तेरे  कल का।
कर नित्य विजय,मत कर संशय,
होकर निर्भीक  तू बढ़ता जा।
हिम्मत  तू कर, चढ़ पर्वत पर ,
तू राह  नयी  नित गढ़ता जा।
                        सुजाता प्रिय

Friday, July 5, 2019

पुकार किताब की

आओ बच्चों!मेरे कुछ,
      पन्नों को तुम भी पढ़ लो।
ग्यान के स्वर्णिम भूषण से,
       जीवन को तुम मढ़ लो।
मुझको पढ़कर सारे प्राणि,
        हो जाते हैं पंडित ग्यानी।
मुझमें देखो रची हुई है,
       संतों की सब मीठी वाणी।
वेद,पुराण,उपनिषद गीता,
         सभी  हैं  मेरे  ही रूप।
रामायण,गुरुग्रंथ साहिबा,
         वाईविल , कुरान , अनूप।
हर विषय का ले लो हमसे,
           तुम हर तरह का ग्यान।
राजनीति, भूगोल,गणित हो,
            चाहे साहित्य विग्यान।
मेरे विस्तृत सीने में है,
           छिपे हुए अनेकों राज।
कैसे किसनेे सत्ता पायी,
            कैसे  पाया है  ताज।
वर्तमान- भूत की सभी कथा,
             मुझमें   ही अंकित है।
दुनियाँ भर की सभी कला,
              मुझमें ही संचित है।

                     सुजाता प्रिय

Wednesday, July 3, 2019

बचपन के दिन (भाग ३ )

,कहाँ खोया रे बचपन ?

हाय कहाँ खोया रे बचपन,
खेल-खिलौने सब छोड़कर।
तुतली  बोली  से रूठकर,
भोलापन से मुख मोड़कर।

कहाँ  गए वे लट्टू - घिरनी,
और कहाँ वे गिल्ली - डंडे।
साँप-सीढ़ी,लूडो - शतरंज,
और  वे ब्यापारी  के फंडे।

इक्खट - दुक्खट  का मजा,
वह कित-कित-कित करना।
रूमाल - चोर, ओ सम्पाजी,
वो आँख-मिचौनी का छुपना।

कहाँ गया वह गेंद और पिट्टो,
कूदना और फांदना  रस्सी से।
रेल बनाकर बम्बई को घुमना,
और झूला झूलना  मस्ती  से।

लउवा - लाठी, चंदन - काठी,
आईस-पाईस, चोर - सिपाही।
अटकन-मटकन दही-चटाकन,
और वो दोस्तों  की  गलबाहीं।

आहा,क्या थे दिन बचपन के,
मन में  कोई  क्लेश  नहीं था।
ना किसी से शिकायत शिकवा,
किसी से भी वैर- द्वेष नहीं था।

बड़े  हुए  तो खेलने  पड़ते हैं,
जिम्मेदारियों के बड़े-बड़े खेल।
छूट  गए  सब   संगी - साथी,
नहीं किसी से हो पाता है मेल।
                   सुजाता प्रिय

गौ गुहार

द्वार - द्वार  घुमती  है गैया।
सारे  जग की  प्यारी मैया।
हर घर से मिलती एक रोटी।
बड़ी-छोटी और पतली-मोटी।
            भूखी  गाय  उठा खा  जाती ।
             मुं, मुं  कर   संदेश  सुनाती।
             मिलतीे  है तो खा ही जाती।
             रोटी हम को तनिक न भाती।
नाँद में मिलता भूसा-चोकर।
उसके खाती हूँ खुश  होकर।
फल-सब्जी के छिलके दे दो।
बच जाए हल्के- फुल्के दे दो।
                व्यर्थ कचड़े में नहीं सड़ाओ।
                बदबू  घर  में  मत  फैलाओ।
                हरी  घास  हम को  है प्यारी।
                उसकी टोह  में फिरती  मारी।
गली- सड़क पर हम हैं घुमती।
घास हमें अब  कहीं न मिलती।
हे रोटी दाता थोड़ी घास लगा दे।
धरती  पर अब हरियाली  ला दे।
                 रोटी के बदले घास खिला दे।
                 और थोड़ा- सा जल पिला दे।
                 हम  गऊओं  का  पेट भरेगा।
                तुम को भी कुछ पुण्य मिलेगा ।
                        सुजाता प्रिय