Sunday, December 29, 2024

बिन पानी सब सून

बिन पानी सब सून

जल संकट आ गया सखी री! घट रहा धरा पर पानी। 
जी भर इसे बर्बाद किये हम, करते आये मनमानी। 
बाल्टी भर पानी से रूमाल धोते, पांच बाल्टी से चादर। 
नल खोल जल खूब बहाये, इसका किया निरादर। 
अलग- अलग बर्तन में खाते, बहुत हाथ धोते थे। 
पानी आया है देख मगन हो, नल चला सोते थे। 
आज देख कुएं सुख रहें हैं, घटे जलाशय के स्तर। 
हैण्डपम्प भी जल विहिन हैं, तालाबों की हालत बदतर। 
नदियाँ बन गयीं सकते नाले, झील बने चारागाह। 
झरनों ने अपने दम तोड़, हाहाकार मचा है राह। 
नहरों का नाम- निशान मिटा है, मिट गया डोभा- पोखर। 
बैल बकरियाँ प्यासे घूमते, दिखता नहीं है आहर। 
जल हीन धरा सिसक रही है, धूल- धुसरित है गंगा। 
चित्कार कर रही मही, जल के कारण होता दंगा। 
मन में चिंतन कर देख सखी री! बिन पानी सब सुन। 
पानी बिन न अन्न उपजेंगे, खिलेंगे नहीं प्रसून। 
पानी का बचत करना ही इस समस्या का हल है। 
जल संचय हम करते जाए, यदि जीना हमें कल है। 
आओ यह संकल्प करें,बचत करना है पानी का। 
बस थोड़ा कंजूसी कर लो,जरुरत नहीं दानी का। 
हम न काटेंगे पेड़ों को, खूब सिरे पेड़ लगाएं। 
जल का स्रोत यही है,बहनों!समझें और समझाएँ। 
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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