अकड़
दो बकरियाँ पतले पुल पर,
आमने सामने आ रही थीं।
मैं तो उसे रास्ता नहीं दूंगी,
सोंच दोनों इठला रही थी।
पहली बोली बायें हट कर,
तुम पहले मुझको जाने दे।
दूसरी बोली मै नहीं हटती,
पहले मुझको तुम जाने दे।
पहली बकरी अकड़ दिखा,
बीच रास्ते पर खडी़ रही।
दूजी भी क्या कम थी उससे,
अपनी जिद्द पर अड़ी रही।
पहली बकरी ताव में आकर,
सींग घुमा दूसरी को मारी।
दूसरी भी गुस्से में आकर,
दे दूलत्ती पहली को मारी।
लड़ते-लड़ते दोनों गिर गई,
नहर के बहते जलधार में।
डूब मरीं वे आन-शान में,
उनकी जान गयी बेकार में।
सुन बच्चों!अकड़ दिखाकर।
लड़- झगड़ मत देना जान।
समझदारी से ही काम लेना
बुद्धिमानी की होती पहचान।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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