Friday, February 28, 2020

प्रभु आज पकड़ पतवार इसकी

मेरी नैया डगमग डोले रे,
प्रभु आज पकड़ पतवार इसकी।
लहरों में खा हिचकोले रे,
प्रभु आज पकड़ पतवार इसकी।

बड़ी तेज बहे जलधार रे।
मेरी नैया पड़ी मजधार रे।
कभी तेज चले कभी हौले रे,
प्रभु आज पकड़ पतवार इसकी।

प्रभु आज तू दे दो सहारा।
मुझे दिखता नहीं किनारा।
मन भेद ये अपना खोले रे,
प्रभु आज पकड़ पतवार इसकी।

हम जीवन की नाव चलाएँ।
तुफान न कोई भी आए ।
मेरा मन तुझसे यह बोले रे,
प्रभु आज पकड़ पतवार इसकी।
               सुजाता प्रिय

Tuesday, February 25, 2020

ओ माँझी आजा मेरे प्यारे देश में

ओ माँझीs s s s s, ओ माँझी।
ओ माँझीs s s s s,
आजा मेरे प्यारे देश में।
बार-बार मैं तुझे बुलाऊँ,
विनती के संदेs s श में।
ओ माँझीs s s s s,
आजा मेरे प्यारे देश में।

भँवर बीच मेरी नाव पुरानी।
पुरवाई चलती तुफानी।
निर्मोही बन जग में है बैठा,
तू पत्थर के वेश में।
ओ माँझीs s s s s ,
आजा मेरे प्यारे देश में।

तुम बिन नैया डगमग डोले।
ना तू आए, ना कुछ बोले।
हाथों में पतवार तुम्हारे,
तू  बैठा  परदेश  में।
ओ माँझी s s s s s ,
आजा मेरे प्यारे देश में।

भाई -बंधु आपस में झगडे़।
इक है दुर्वल, दूजे हैं तगड़े़।
क्या बोलोगे नहीं कभी तू,
जन-मन के इस क्लेश में।
ओ माँझी s s s s s s ,
आजा मेरे प्यारे देश में।
      सुजाता प्रिय

Friday, February 21, 2020

विरह वेदना

विरह से व्याकुल हृदय को,
प्यार का पैगाम दे दो।
वेदना की श्रृंखला को,
आज कुछ विराम दे दो।

वेदना से क्या कहूँ,
यह दिल बड़ा बेचैन है।
दिन नहीं कटता यहाँ,
कटता नहीं अब रैन है।
अहसास हो कुछ आस का,
तुम ऐसी कोई शाम दे दो।

मन में विरह की वेदना,
पल-पल मुझे झकझोरती।
राग और रंगिनियाँ भी,
आज है मुख मोड़ती।
हर सके संताप उर का,
तुम ऐसा कोई जाम दे दो ।

विरह में तुम भी जलोगे,
तुम इसे मत भूलना।
तेरा हृदय पाषाण है,
गुमान में मत फूलना ।
प्यार है या हार है यह,
कुछ तो इसका नाम दे दो।
             सुजाता प्रिय

Friday, February 14, 2020

मेरी कलम

कलम मेरी मेरा हथियार।
मेरे हाथ का तेज तलवार ।

बड़ी तेज है इसकी  धार।
विफल न होता इसका वार

जब करती है यह प्रहार।
बंदूकधारी भी जाता हार।

दूर देश भेजती समाचार।
सुलझाती है हर कारोबार।

ज्ञानी इसको करते स्वीकार।
ज्ञान से यह भरती है भंडार।

जन-जन में लाती संस्कार।
मानता इसको सारा संसार।

जीवन का अनमोल उपहार।
मुझको है इस अस्त्र से प्यार।
              सुजाता प्रिय

पुलवामा के शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि


पुलवामा में शहीद भारत के वीर,
तुम को शत-शत बार नमन।
अश्रुपुरित हैं आँखें आज ,
चढ़ाते तुझको श्रद्धा- सुमन।

सान्त्वना तेरे माता-पिता को,
जिन्होंने अपने थे खोये लाल ।
अपने दिल पर धीरज धरकर,
कहते बेटा उन्नत कर गया भाल ।

धीरज तुम्हारे भाई-बहनों को,
सहोदर जिनको छोड़ गया।
कितनी थीं उम्मीदें उससे,
फर्ज से मुखड़ा मोड़ गया।

गहरी संवेदना उस वनिता से,
प्रीतम जिसका बिछड़ गया।
देश की रक्षा करते-करते,
प्राण गवां वह किधर गया ?

सहानुभूति है मुन्ने-मुन्नी से,
कहते थे पापा जल्दी आना।
काश्मीर के बाजार से तुम,
छोटी-सी गुड़िया लाना।
       सुजाता प्रिय

Tuesday, February 11, 2020

होली तब और अब

हमारा देश भारत 'त्योहारों का देश' के नाम से विश्व विख्यात है ।आदिकाल से ही यहाँ अनेकानेक त्योहार मनाए जाते हैं।यहाँ मनाये जाने वाले हर त्योहार का उद्वेश्य समाज के हर वर्ग के लोगों में आपसी भाईचारा, प्रेम ,एकता एवं सद्भावना को बढ़ावा देना है ।उन त्योहारों में से दूसरा सर्वप्रमुख त्योहार है 'होली'। जिसे हम हिन्दु संस्कृति के अनुसार वर्ष के प्रथम दिवस के रूप में मनातेे हैं ।
बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में-
यह पर्व बुराईयाँ नष्ट कर अच्छाईयों का समावेश करता है ।यह पर्व हमें यह संदेश देती है कि बुराई पर अच्छाई की विजय अवश्य होती है।होलिका दहन से संबंधित एक अत्यंत पौरानिक कथा प्रचलित है।असुर राजा हिरण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानते थे,किन्तु उनका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। हिरण्यकश्यप ने पुत्र प्रहलाद को भगवान की भक्ति से विमुख करने की बहुत कोशिश की।जब वह नहीं माना तो वह अपनी बहन होलिका जिसे यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में प्रवेश करने पर भी नहीं जल पाएगी।हिरण्यकश्यप ने होलिका की गोद में बैठाकर प्रहलाद को चिता में जला देना चाहा किन्तु बालक की रक्षा स्वयं भगवान ने की और होलिका जलकर राख हो गई।इस प्रकार बुराई के ऊपर अच्छाई और विश्वास की विजय हुई ।तब से हमारे यहाँ होलिका जलाने की प्रथा चल पड़ी।
सभी की खुशहाली की कामना-
पहले गाँव अथवा मुहल्ले में बहुत ही निष्ठापूर्वक एवं विश्वास के साथ सभी लोग मिलकर धूम-धाम से फाल्गुन मास की पूर्णिमा अर्थात् होली के एक दिन पूर्व होलिका दहन की तैयारी करते थे।टोले मुहल्ले के बच्चे घर-घर घूमकर होलिका दहन के लिए यह कामना करते हुए इंधन माँगते थे कि आपके दरवाजे सोने के हों । अर्थात् आपके घर में सुख समृद्धि का वास हो  और आपके घर परिवार के दुख-दारिद्र का नाश हो इसलिए आप हमें होलिका दहन के लिए इंधन दें।इस तरह से लोग बहुत सारे इंधन इकट्ठा कर भगवान की महिमा का गुणगान करने वाले गीत - भजन गाते,ढोल - बाजे बजाते हुए होलिका दहन करने जाते थे।वहाँ पंडितों द्वारा विधिवत मंत्रोचारण के साथ होलिका दहन होता था सभी लोग एकजुट होकर संकल्प करते कि अपने मन से  बुराई का त्याग एवं अच्छाई को ग्रहन करूँगाऔर अच्छे कर्मों तथा विचारों का पालन करूँगा।प्रसाद के रूप में चने और गेहूँ की हरी बालियाँ लौंग -इलायची तथा नीम की पत्तियों को उस अग्नि में पकाकर खाया जाता था।जिसका वैज्ञानिक महत्व था।पूरा टोले महल्ले के लोग नीम की पत्तियों को पकाते थे तो उसकी महक वायु मण्डल में फैलकर चैत मास में उत्पन्न होने वाले विषाणु को नष्ट कर वातावरण को शुद्ध करते थे। इस प्रकार मौसम के बदलाव से होनेवाली रोगों से बचने का उपाय भी हो जाता था और लोग  स्वस्थय के प्रति सचेत भी हो जाते थे।
लेकिन अब होलिका दहन मात्र औपचारिकता  अथवा मन बहलाव के लिए किया जाता है।अबके बच्चे घर-घर जाकर इंधन माँगने के बजाए किसी की झाड़ियाँ , लकड़ियाँ आदी बिना मांगे पूछे उठा ले जाते हैं। कहीं-कहीं तो यह भी सुनने को मिलता है कि मुहल्ले के उद्दण्ड लड़के ने किसी की कुर्सी ,चारपाई, फाटकों तथा काम में आनेवाली जरूरी वस्तुओं को भी अग्नि के हवाले कर दिया। उनके इस तरह के कुकृत्तय का दुष्प्रभाव समाज की भावी पीढ़ियों पर भी पड़ता है । इस प्रकार से हम बुराई के दहन के बदले बुराई को ग्रहण कर लेते हैं।लड़कों के माता-पिता तथा अभिभावकों को उनके मन से इन दुर्व्यवहारों को दूर करने के लिए प्रेरित करना होगा।
एकरूपता एवं सामंजस्य सीने का प्रयास-
यद्यपि यह त्योहार रंगों के त्योहार के रूप में जाना जाता है।फिर इस त्योहार का हमारी संस्कृति में एक अलग पहचान और महत्व है।रंग लगाने की प्रथा भी एक महान उद्वेश्य से ही प्रचलित हुई।कहते है भगवान श्रीकृष्ण जब बाल रूप में थे तब उनके हृदय में अपने साँवले स्वरूप से  खीज और अपनी प्रिय सखी राधा के श्वेत वर्ण से बड़ी ईर्ष्या  उत्पन्न हो गई ।उनहोंने माता यशोदा से कोई सरल सा उपाय पूछा कि- किस प्रकार मैं प्यारी राधा को अपने रंग में रंग लूँ ? माता यशोदा ने मजाक में कह दिया - जा तू राधा को अपने शरीर जैसा रंग लगा दे ।माता की आज्ञा पालन करते हुए श्रीकृष्ण ने राधा को अपने जैसा रंग लगा दिया।तब से आपसी प्रेम और सद्भावना के प्रतीक के रूप में  इस विशेष दिवस को रंग लगाने की प्रथा प्रचलन में आ गई।रंग में विभिन्न प्रकार के रंगों के रंग एवं गुलाल प्रयुक्त करने का उद्वेश्य लोगों में  एकरूपता एवं समरसता लाना ही है।मानव को हर रंगों में रंग जाने अर्थात् हर परिस्थितियों को हँसते-हँसते स्वीकार करने के लिए प्रेरित करना है।
भारत की पौरानिक संस्कृति के परिचायक -
यह त्योहार भारतीय संस्कृति के परिचायक के रूप में भारत देश के सम्पूर्ण हिस्से में मनाया जाता है।इस दिन सभी लोग अपने गिले-शिकवे,वैर-भाव,मनमुटाव-नाराजगी,कपट-कटुताओं को भूलकर तथा उसे दूर करने के उद्वेश्य से मित्रों एवं परिजनों के घर जाकर उनके गले मिलते हैं और मन से उनको दूर कर आपसी भाईचारा,प्यार तथा मेल- मिलाप बढ़ाते हैं।आज के दिन लोग सामाजिक भेद-भाव को निराकरण कर परस्पर प्रेम भाव संभाव स्थापित करते हैं।यह पर्व होलिका दहन के दूसरे दिन अर्थात् चैत्र मास के कृष्ण प्रतिपदा यानी साल के प्रथम दिवस को मनाया जाता है।इसी दिन से हमारा नववर्ष प्रारम्भ होता है।
आज के आधुनिक युग में त्योहारों का महत्व घटता जा रहा है।अब अधिकांश जगहों में खाना पूर्ति के लिए लोग पर्व मनातेे हैं।पहले मिट्टी से भी होली खोलने की प्रथा थी।अपनी धरती की सोंधी मिट्टी का तिलक लगाने में लोग गर्व अनुभव करते थे।बच्चों के लिए इस दिन का विशेष महत्व था त्योहारों में छुट्टियाँ होती थी।बाजार से तरह -तरह की पिचकारियाँ और गुब्बारे लाकर अपने मित्रों के साथ होली खोलने का आनंद उठाते थे।एक दूसरे के घर जाकर पकवान और मिठाईयाँ खाते थे।आजकल लोग बाजार से बनी मिठाईयाँ और फलों से ही काम चलाते हैं।किसी के घर जाने की अपेक्षा अपने ही घर में टी०वी० पर कार्यक्रम देखने में मशगूल रहते हैं।लोग आकर घर न गंदी कर दें। रंग अबीर न लगा दें इसलिए दरवाजे बंद ही रखते हैं।अगर कोई परिवार रिस्तेदार आ भी गया तो उसका स्वागत रूखे ढंग से ही करते हैं।
अब निजि कंपनियों ने नौकरी करने वाले लोगों अवकाश नहीं मिलता । नौकरी पेशा लोग परिवार से दूर रहते हैं और वे परिवार के पास जा नहीं पाते ।एकाकीपन के कारण से भी लोग त्योहारों के प्रति उदासिन हो गये हैं।
पहले लोग प्राकृतिक रंगों का उपयोग करते थे।
जैसे पीले रंग के लिए हल्दी,पलास के फूलों को निचोड़कर लाल रंग ,चुकंदर को पीसकर गुलाबी रंग तथा सेम तथा पालक की पत्तियों को पीसकर हरा रंग बनाते थे जो किसी भी हाल में नुकसानदेह नहीं होता था।अबीर भी असली तथा सुगंधित होता था। परंतु आज की भाग - दौड़ वाली व्यस्ततम जीवन शैली ने बाजार से नकली रंग- अबीर लेने पर लोगों को मजबूर कर दिया है । रंग में मिले हानिकारक रासायनिक तत्व त्वचा को प्रभावित करता है।वैसे भी लोगों को रंग लगाने का सही तरीका नहीं पता होता है।त्वचा पर जोर से रंग गुलाल रगड़ते हुए लगाते है जिससे त्वचा या तो छिल जाती है या फिर जलन उत्पन्न करती है।इसलिए रंग-गुलाल लगाते समय भी मन में परस्पर कोमल भाव रखना चाहिए।लगाने वाले भी सावधानी पूर्वक लगाएँ और लगाने वाले भी बिना खुशी-खुशी  शांतिपूर्वक लगवा लें।वर्ष भर में एक ही दिन तो इतना सुंदर और सुनहरा अवसर प्राप्त होता है।जब हम दोस्तों रिस्तेदारों के समीप होते हैं।
           सुजाता प्रिय

Friday, February 7, 2020

गुलाब की पंखुड़ियों के औषधीय गुण

आज हम लोग ' रोज डे ' मनातेे हैं।खूबसूरत गुलाबों को देख खुश हो जाते हैं ।उसकी सुगंध से सुवासित हो जाते हैं।वेलेंटाइन डे पर इसे प्रस्तुत कर प्यार का इजहार करने का प्रचलन चल पड़ा है । किसी की सुंदरता और कोमलता की उपमा गुलाबों से देते हैं। लेकिन प्रकृति ने गुलाब के रूप में हमें एक अनमोल औषधि प्रदान किया है,यह शायद ही लोग जानते हैं।आयुर्वेद में इसकी पंखुड़ियों का इस्तेमाल कर अपने शरीर के प्रत्येक अंग को स्वस्थय बनाने का विस्तृत उल्लेख किया गया है।
आइए जाने इसकी पंखुड़ियाँ किस प्रकार औषधी बनकर हमारे सभी प्रकार के रोगों का उपचार कर सकते हैं।
त्वचा का उपचार-
इसकी पंखुड़ियों को पीसकर विभिन्न वस्तुओं के साथ लगाने से त्वचा संबंधी बीमारियाँ दूर होती है तथा त्वचा में निखार आता है।
१ . दूध के साथ इसे पीसकर लगाने से त्वचा में निखार आता है और त्वचा सुंदर और सुकोमल होती है।आँखों के नीचे उभरे काले- घेरे को दूर किया जा सकता है।
२ . शहद के साथ इसे पीसकर लगाने से अनचाहे बाल निकल आते हैं और त्वचा सुंदर और साफ दिखने लगता है।
३ . चीनी के साथ लगाकर त्वचा में स्क्रब किया जाता है।
४. अखरोट के साथ लगाकर भी त्वचा को मुलयम कर सकते हैं।
५ . पानी में कुछ देर पंखुड़ियों को रखकर उस पानी से चेहरे धोने से चेहरे में ताजगी आती है।
६. निंबू के रस के साथ पीसकर लगाने सेे गर्दन और कोहनी में जमे मैल साफ हो जाते हैं तथा मृत त्वचा को हटाया जाता है।
७ . जैतून के तेल के साथ इसके रस को लगाने से चेहरे के दाने एवं झुर्रियाँ नष्ट होती है  ।कील मुहाँसे दूर होते हैं ।८ . मलाई में इसके रस को मिलाकर लगाने से होठ        चिकने और कोमल होते हैं ।
९. मोम के साथ इसके रस को लगाने से प्रेम की विवाइया भर जाती हैं
१०  नारियल तेल के साथ हथेलियों में लगाने से हथेलियों का फटना दूर होता है।

दिमाग के लिए-
१इनकी पंखुड़ियों को नित्य सुंघने से तथा इसका रस को शरबत में मिलकर पीने से यादास्त मजबूत होती है तथा थकान दूर होता है।इसके पंखुड़ियों को सुंघने से तनाव तथा अवसाद दूर होता है ।
गर्मी से बचाव कर-
इसके शर्बत में इलायची तथा काली मिर्च मिलकर पीने से गर्मी तथा लू से बचा जा सकता है ।

खून संबंधी रोगों के लिए-
इलायची के छिलके के साथ गुलाब की पंखुड़ियों को पीसकर पीने से खून साफ होता है तथा  रक्तचाप कम किया जाता है ।

दिल संबंधी रोगों  के लिए-
दिल की बीमारी में इसकी शरबत पीना फयदेमंद है।

पेट संबंधी रोगों के लिए-
पाचन शक्ति बढ़ाने मेंभी  यह कैसी मददगार है।पेट साफ रखता है ।भुख न लगाने की समस्या भी दूर होती है।बदहजमी तथा कब्ज दूर होता है।हैजे से भी यह राहत दिलाते है और पेट का अल्सर नष्ट करता है।

मुख एवं गृवा संबंधी रोगों के लिए-
संतरे के रस में  इसके रस को पीने से गले एवं सीने का जलन दूर होता है और जी मिचलाना बंद होता है।खासी एवं स्कर्वी रोग में भी काफी प्रभावी है।इसके पंखुड़ियों को चबाकर खाने से पसीने तथा दाँतों की बदबू दूर होती है और मसूढ़ों से खून निकलना बंद हो जाता है । मुँह के छाले भी खत्म होते हैं।

स्त्री रोग संबंधी -
मासिक धर्म का दर्द भी इसके सेवन से दूर होता है।

नेत्रों रोग के लिए-
यह बैक्टिरिया रोधी है ।आँखों के हर रोग में इसका रस काफी प्रभावशाली ।यह नैनों को ठंढक पहुचा तू है तथा लाली दूर करती है ।

हड्डियों के लिए-
इसकी पंखुड़ियों को तेल ने गर्म कर लगाने से हड्डियों का दर्द दूर होता है ।पंखुड़ियों से बने गुलकंद खाने से हड्डियाँ मजबूत होती हैं।

सावधान- गुलाब के पंखुड़ियों के अनगिनत गुणों को जानने के बाद हमें लगता है कि इसमें केवल गुण- ही-गुण है ।यह नुकसानदेह नहीं है किन्तु 'अति सदैव वर्जते' एक दिन में एक फूल की पंखुड़ियों से ज्यादा नहीं खाना चाहिए।तब इसकी मात्रा अधिक हो जाएगी।
                     सुजाता प्रिय

Thursday, February 6, 2020

पदचाप सुनाई दी तेरी

आँख खुली और जागी मैं,
पदचाप सुनाई दी तेरी।
चिड़ियों के मीठे कलरव में,
सुप्रभात सुनाई दी तेरी।

मूंदकर आँखें उनींदी,
मैं अलसायी- सी सोयी थी।
भावी जीवन के खुशियों के,
मीठे स्वप्नों में खोयी थी।
तुम गाये उठ जा भोर भई,
आलाप सुनाई दी तेरी।

हौले से दस्तक दे नैनों के,
दरवाजे तुमने खुलबाये।
अपने आगमन की सूचना,
पदचापों से दे मुस्काये।
तुम कहे अब है बीत गई,
यह रात सुनाई दी तेरी।

मुझे पता है कि तुम रवि ही हो,
पदचापों से मैं जान गई।
तेरी आभा फैली दिशा-दिशा,
बिन देखे ही पहचान गई।
थे खुसुर-फुसुर कुछ बोल रहे,
वह बात सुनाई दी तेरी।

कपोलों पर तेरी लाली छाई,
ओढ़े चादर तुमने वासंती।
रंग पीला, कुछ नारंग लिए,
खिल गया फूल ज्यों वैजयंती
शांत-सुबह की संगीतों में,
यह थाप सुनाई दी तेरी।
                 सुजाता प्रिय