Thursday, September 5, 2024

वायु (कविता)

वायु 

न ही रूप है  न  रंग है।
   न आकार है  न अंग है ।
      पर हवा हमारे जीवन में-
       रहता सदा सदा ही संग है।

पांच महाभूतो में एक है।
   उपयोग इसके अनेक हैं।
      हर जगह काम आता है-
         कार्य  इसके अनेक हैं।

हवा  हमारा  जीवन है।
   इससे हमारा तन मन है 
       इसके बिन चूल्हे में भी-
          जल न  पाता इंधन है ।

आओ इसे बचाएं हम।
   धरा पर वृक्ष लगाए हम।
       सांस  संवारन वायु को -
          मिलके स्वच्छ बनाएँ हम।

इसके दम पर जीते हम।
   हर पल हैं वायु पीते हम।
      अगर हमें न मिलता वायु-
         रह जाते सदा ही रीते हम।

                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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