Thursday, October 26, 2023

अनुराग (सवैया)

अनुराग (सवैया)

जो मन में अनुराग धरो तुम 
                 चाहत जो तुमको वह पाओ।
जो मन चाह रहा उसको अब 
                 पाकर संग खुशी अपनाओ।।
रे मन मौज करो न अभी तुम 
                 जाकर आज यही समझाओ।
जाग अभी तुम ऐ मन मूरख
                 सोबत हो अब नींद भगाओ।।

जो मन ने तुमको समझा यह 
                     बात वही सच है यह जानो।
उद्यम जो करते जुगती कर
                   सिद्ध करें सब कारज जानो।।
सोच मनोरथ पूर्ण करे वह 
                       साधन तो उसने यह मानो।
ध्यान रहे जिसके मन में यह 
                       ले अनुराग लगा यह मानो।।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, October 25, 2023

दशहरा

जय माता दुर्गा जया
विजय दिला विजया


दशहरा (मनहरण घनाक्षरी )

बुरा पर अच्छाई की।
     झूठ पर सच्चाई की।
          हार पर विजय की।
                जीत है दशहरा।

दुर्गुण पर गुण की।
      अधर्म पर धर्म की।
         अज्ञान पर ज्ञान की।
                जीत है दशहरा।

घृणा पर सप्रेम की।
      विषम पर सम की।
        दुख पर समृद्धि की।
                जीत है दशहरा।

पापियों पर पुण्य की।
      छलावे पर क्षमा की।
        क्रोधियों पर शांति की।
                   जीत है दशहरा।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, October 23, 2023

जय माँ सिद्धिदात्री

जय मांँ सिद्धिदात्री

जय माता सिद्धिदात्री,आई  तेरे द्वार।
उड़हुल फूलों की बना,लाई हूँं मैं हार।।

मुझको माँ वरदायिनी,दे दो अपना प्यार।
बच्चों को तो चाहिए,माँ का प्यार- दुलार।।

मुझको माता अम्बिके,सिद्धि कर दे प्रदान।
दुष्ट ना आए पास माँ, दो निर्भय का दान।।

सिद्धिदात्री भगवती, सिद्ध करो सब काज।
लिए मनोरथ द्वार मैं,आयी हूँ माँ आज।।

तुझसे माँ विनती करूँ,जोड़ूँ अपने हाथ।
तेरे चरण में अम्बे,झुका रही हूँ माथ।।

शुद्ध रहे अंतःकरण,सुंदर रहे विचार।
मन से हर दुर्भावना ,हर लो सभी विकार।।

हाथ जोड़ हे भगवती,करती हूँ प्रणाम।
पूर्ण कर मनोकामना,पूर्ण करो सब काम।

सब लोग का पाप हरो,कर दे माँ उपकार।
हम भलाई करें सदा,सुखी रहे संसार।

पापी दुराचारी के,हर लो सारे पाप।
सुख और समृद्धि रहे,आये ना संताप।।

      सुजाता प्रिय समृद्धि

Sunday, October 22, 2023

माता महागौरी (सायली छंद)

माता महागौरी (सायली छंद)

जय
माँ महागौरी
गौरवर्ण का रूप
शोभता है
तेरा।

दया
करो माँ
अपने भक्तों पर
कष्ट हरो
मेरा।

वृषभ
पर आरूढ़
हो तुम समस्त 
संसार में
घूमती।

चार
भुजाएंँ हैं
तुम्हारे तुम माँ
अन्नपूर्णा हो
भगवती।

कर
रहे हम
भक्त जन माँ
देख तेरी
आराधना।

सत्य
मन से
नित्य करते हैं
तेरी सेवा
साधना।

माते
निर्मल मन
तुम्हारा है अम्बे
तुम बड़ी 
करुणामयी

पूर्ण
करती हो
मनोकामना मांँ तू
है बड़ी 
ममतामई 

प्राणी
जन के
दूर करती हो
सभी पाप
माँ।

दिल 
से तुमको
जो भी पुकारे
हरती संताप
माँ।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, October 21, 2023

माता कालरात्रि (विजात छंद)

माता कालरात्रि (विजात छंद)

भयानक रूप धरकर माँ।
गदह का पीठ चढ़ाकर माँ।
पधारीं आज सब देखो।
नजर चरणा सभी लेखो।।

कहाती काल रात्रि माँ।
शुभानी वर प्रदात्री माँ।।
गले नर मुण्ड की माला।
वदन पूरा लगे काला।।

बिखेरी बाल मुखड़े पर।
डरे सब लोग देखे सर।।
उगलती आग सांसों से।
गरम वायु उच्छवासों से।।

लगाओ भोग गुड़ का जब।
खुशी से झूमती माँ तब।।
सभी को वर बहुत देती।
सभी संताप हर लेती।।

  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, October 20, 2023

जय माता कात्यायनी



जय माता कात्यायनी ( विजया घनाक्षरी)

जय माता कात्यायनी,
शीघ्र हो फलदायिनी,
दुर्गा का षष्ठम रूप 
भक्त जनों को है भायी।

महिमा तेरी अनूप,
समझे न देवा- भूप,
ले कर बालिका रूप,
कात्यायन घर आयी।

है चार भुजाओं वाली,
ले कमल फूलों वाली 
कात्यायन की बिटिया,
कात्यायनी कहलायी।

आया है कैसा संयोग 
लगाओ मधु का भोग 
होबे नहीं चर्मरोग,
माता को बहुत भायी।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

स्कंदमाता (मतगयंद सवैया)

पंचम रूप स्कंदमाता (मतगयंद सवैया)
२११ २११ २११ २११ २११ २११ २११ २२

आज लगे धरती यह सुंदर होबत है जग में जगराता।
पंचम रूप धरी जननी जग में कहते इनको जगमाता।
मात रची तुम सृष्टि सजाकर जीव सभी जनको यह भाता।
नाम जपे जग में सब लोग यहां कहते इनको जय माता।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, October 18, 2023

जय माँ कूष्माण्डा (चौपाई

जय माँ कूष्माण्डा (चौपाई)

जय जय जय कुष्मांडा माता।
चतुर्थ रूप यह तेरा भाता।।

हाथ में धनुष-बाण विराजे।
कमण्डल कलश व कमल साजे।।

करती हो तुम सिंह सवारी।
महिमा तेरी है अति न्यारी।।

फल मेवे का भोग लगाऊँ।
भजन-कीर्तन-आरती गाऊँ।।

 मनोकामना पूर्ण करें तू।
सबकी झोली मातु भरे तू।।

सब पर माया करने वाली।
सबकी झोली भरने वाली।।

शरणागत की सुरक्षा करती।
सारे दुखड़े तुम  माँ हरती।।

जो जन तेरे पग में आता।
मनचाहा फल तुझसे पाता।।

           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, October 17, 2023

माँ चंद्रघंटा

माँ चंद्रघंटा

माँ चंद्रघंटा
धर शांति का रूप
करती रक्षा।

अनुशासन
न्याय कर भक्तों को 
देती सुरक्षा।

स्वर्णिम रूप
चढ़ सिंह वाहन
तुम घूमती

धारण कर
लाल वस्त्र भक्तों को
देती सुमति

तीसरा नेत्र
कपाल के बीच में
है विराजता

समदृष्टि से
देख जीवों को लिए 
प्रेम साजता

अपने आठ
हाथों में आठ वस्तु
रखती मात

दो हाथों से तू
भक्त जनों को देती
हो आशीर्वाद 

सर्वोच्च सुख
संतति शांति और 
देती हो ज्ञान ।

संतुष्ट करती 
धन-संपत्ति,समृद्धि
कर प्रदान 

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, October 16, 2023

हे ब्रह्मचारिणी माता (दोहे)

हे माता ब्रह्मचारिणी, जोडूं अपने हाथ।
मैया सभी झुका रहे, चरणों में अब माथ।
 
सब भक्तों को भा रहा,तेरा सुंदर रूप।
ममता की तुम हो धनी, दिव्य तेरा स्वरूप।।

हाथ कमण्डलु शोभता, मुखड़े पर है तेज।
स्वेत वासना अम्बिके, रही आशीष भेज।।

ब्रह्माण्ड में विराजती, दया भाव ले साथ।
दुखी जनों के पास जा,सिर पर रखती हाथ।।

लिखें माता की महिमा, प्राचीन साधु-संत।
सर्वव्यापी माता का, नहीं है आदि-अंत।।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, October 15, 2023

जय माँ शैलपुत्री ( पिरामिड)

जय माँ शैलपुत्री
हे 
माता
प्रथम
शैलपुत्री
तेरी महिमा
है अपरम्पार
देखो जरा निहार 
भक्त खड़े हैं द्वार 
झुका कर शीश
हाथों को जोड़
नमस्कार
करने
आये
हैं।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, October 14, 2023

नजरिया (विजया घनाक्षरी)

विजया घनाक्षरी ८,८,८,८ (३२ वर्णी घनाक्षरी)

नजरिया

समय - समय  पर,
  जगह - जगह  पर,
    ज़माने में है लोगों की
       बदलती   नजरिया।

निज  बारी  में अलग,
   दूजा  बारी  में अलग,
      परिस्थितियांँ देख है,
          सम्हलती  नजरिया।

किसी की साकारात्मक,
   किसी की नाकारात्मक,
      किसी की विचारात्मक,
          है  पलती  नजरिया।

बात हो कोई पक्ष में,
   या हो कभी  विपक्ष में,
       फैसले  समकक्ष  में,
           न  टलती  नजरिया।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, October 12, 2023

मेरा दोष (लघुकथा)

मेरा दोष (लघुकथा)
घर वालों की उपेक्षा और फटकार सुन नंदनी का मन लहू-लुहान हो उठता। मन की वेदना अंखियों में छलकने लगती। जिसे छिपाने के प्रयास में नजरें शुन्य की ओर फेरना पड़ता। परन्तु उस शुन्य के बीच भी कई प्रश्न चिन्ह उभर उठते। आखिर मेरे बात- विचार, व्यवहार में क्या त्रुटियांँ रह गयी ? जिसके कारण सभी मुझसे रूष्ट रहते हैं ? मेरे लिए सभी लोग के चेहरे पर असंतुष्टि के भाव दिखते हैं ? 
उसने मन-ही-मन अपने सारे क्रिया-कलापों, कर्तव्यों, बोली -व्यवहारों पर गहनता से विचार किया । नहीं उसने अपनी बोली-व्यवहारों में कोई कमी नहीं रहने दी।
फिर वह उन क्षणों का अध्ययन करने लगी जिस क्षण में लोग उसपर नाराज होते हैं। प्रथम क्षण वह था जब लोग उसे सुंदर अथवा शालीन कह देते। दूसरा- समझदार और बुद्धिमान कहते, इमानदार और व्यवहार-कुशल कह देते। आकर्षक व्यक्तित्व की धनी कहते। ईश्वर प्रदत्त इन्हीं गुणों तथा कुछ अपने सुविचारों, सद्व्यवहारों के कारण भले लोगों के बीच उसकी लोकप्रियता और प्रसिद्धि के कारण कुछ लोग, विशेष कर परिजनों की आँखों की किरकिरी बनी हुई थी। ईर्ष्या की भावना से ग्रस्त हो वे सभी उसका अपमान, अवहेलना और तिरस्कार करते हैं।आज उसकी अच्छाईयांँ ही उसके दुःख का कारण बन गयी ,जिसे वह चाहकर भी दूर नहीं कर सकती।
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, October 11, 2023

श्रद्धा कर्म (कहानी)

श्रद्धा कर्म
आज स्वर्गीय पूर्णिमा देवी जी का बरहमा है।सात गाँव की भोज-व्यवस्था।एक सौ एक ब्राह्मणों का वस्त्र -छंदा सहित भोज ।दूर-दूर के नाते-रिश्तेदार न्योते पर पधारे हैं।अपना घर तो क्या आस-पड़ोस के घरों में भी मेहमान भरें हैं।सभी के रहने एवं खाने-पीने की उत्तम व्यवस्था।भोज के सारे भोजन पूर्णिमा देवी के पसंद के बनाए जा रहे हैं।सेजदान का कार्यक्रम चल रहा है। बड़ी बहू ने सुंदर सा दीवान पर मुलायम तोसक तकिया,मसनद और सुंदर कीमती चादर लगवाते हुए कहा -मांँ जी को दीवान का बहुत शौक था इसलिए मैंने दीवान बनाया। बड़े बेटे ने श्रद्धा पूर्वक सोने की अंगूठी चढ़ाते हुए कहा-माँ ने अपने सारे गहने बेचकर मुझे इंजीनियरिंग पढ़ाया इसलिए मैंने माँ के लिए यह अँगूठी खरीदी है।   
   मंझली बहू उसपर कीमती श्रृंगार-प्रशाधन रखते हुए कहा-माँजी को सजने-संवरने का बहुत शौक था। इसीलिए मैंने श्रृंगार के सारे सामान दिए हैं।मंझला बेटा नोटों से भरा बटुआ रखते हुए कहा -माँ-ने घर-खर्चे में कटौती कर मुझे शिक्षा दिलवाई इसलिए एक महीना का पगार मैं माँ के नाम दान करता हूंँ।
    सभी के मुँह से वाह-वाही सुन बेटियांँ भी कहाँ चुकने वाली थी। बड़ी बेटी  पायल और बिछिया तथा छोटी बेटी मंगलसूत्र और सिंदूर की डिबिया चढ़ाती हुईं बोली माँ ने हम दोनों की शादी में खेत,आधा घर और बगीचे बेचकर दोनों दामाद इंजिनियर लाया हमलोग ने भी माँ के लिए यह सामान लाया है।
उनकी ननद, देवरानी,बहनें,भाभी अन्य रिश्तेदारों के तरफ से भी कपड़े, श्रृंगार -प्रसाधन मिठाइयांँ,फल मेवे इत्यादि चढ़ाएं जा रहे थे।
उनके सबसे छोटे बेटे के पास जाकर चाचाजी ने सलाह देते हुए कहा -बेटा तुम भी अपनी कमाई का कुछ अंश माँ के नाम दान कर दो ,माँ को स्वर्ग में सुख मिलेगा। लेकिन वह अफसोस भरी नजरों से सारे सामानों को देखता रहा।
    क्यों तुम नहीं दोगे कुछ ? बड़े भाई ने प्रश्न किया तो पिताजी ने कहा नहीं।
क्यों नहीं ? दोनों बड़े भाइयों के मुँह से एक साथ निकाला।
क्योंकि यह श्राद्ध कर्म में नहीं श्रद्धा कर्म में विश्वास करता है।
     श्रद्धा कर्म ?
हाँ श्रद्धा-कर्म ।तुम्हारी माँ ने दुःख सहकर, जमीन-जायदाद,जेवर गहने बेचकर तुमलोग को पढ़ाया-लिखाया, अच्छे घर में ब्याह किया   इसलिए तुम सभी ने मरने के बाद दिखावा करने हेतु इतने सारे सामान दान किया। लेकिन जब इतने दिनों से माँ बीमार थी तो इलाज करवाने का भी समय और पैसे नहीं थे तुमलोगों के पास।माँ के अंतिम दर्शन करने हेतु भी नहीं आ सके। लेकिन मेरा यह बेटा सीमित कमाई में भी अपनी माँ का इलाज-पानी सेवा -सुश्रुषा बड़ी श्रद्धा और प्रेम से किया। जिंदगी भर तुम्हारी माँ टूटी खाट पर सोती रही और उसपर से ही गिरने से कमर की हड्डियां टूट गयीं तब कोई उसे एक खाट-चौकी तक नहीं दिया यही एक महीने की वेतन उस दिन दिया होता तो शायद उसका अच्छे-इलाज हो गया होता।यही मेवे-फल उस दिए होते तो जीते जी उसकी आत्मा तृप्त होती।अब मरने के बाद इन सामानों को दान को ढकोसला और दिखाबा करने से क्या लाभ ? "यदि किसी को ज्यादा श्रद्धा और प्रेम दिखाना है तो उसके जीवन में करो मरने के बाद  वह व्यक्ति स्वयं इस आकांक्षाओं से मुक्त हो जाता है।सारे दान-दक्षिणा, भोज-भात लोग समाज के दिखाबे के लिए करते हैं।" इसलिए मान करो दान नहीं।श्रद्धा में विश्वास करो श्राद्ध में नहीं।
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'श्रद्धा कर्म
आज स्वर्गीय पूर्णिमा देवी जी का बरहमा है।सात गाँव की भोज-व्यवस्था।एक सौ एक ब्राह्मणों का वस्त्र -छंदा सहित भोज ।दूर-दूर के नाते-रिश्तेदार न्योते पर पधारे हैं।अपना घर तो क्या आस-पड़ोस के घरों में भी मेहमान भरें हैं।सभी के रहने एवं खाने-पीने की उत्तम व्यवस्था।भोज के सारे भोजन पूर्णिमा देवी के पसंद के बनाए जा रहे हैं।सेजदान का कार्यक्रम चल रहा है। बड़ी बहू ने सुंदर सा दीवान पर मुलायम तोसक तकिया,मसनद और सुंदर कीमती चादर लगवाते हुए कहा -मांँ जी को दीवान का बहुत शौक था इसलिए मैंने दीवान बनाया। बड़े बेटे ने श्रद्धा पूर्वक सोने की अंगूठी चढ़ाते हुए कहा-माँ ने अपने सारे गहने बेचकर मुझे इंजीनियरिंग पढ़ाया इसलिए मैंने माँ के लिए यह अँगूठी खरीदी है।   
   मंझली बहू उसपर कीमती श्रृंगार-प्रशाधन रखते हुए कहा-माँजी को सजने-संवरने का बहुत शौक था। इसीलिए मैंने श्रृंगार के सारे सामान दिए हैं।मंझला बेटा नोटों से भरा बटुआ रखते हुए कहा -माँ-ने घर-खर्चे में कटौती कर मुझे शिक्षा दिलवाई इसलिए एक महीना का पगार मैं माँ के नाम दान करता हूंँ।
    सभी के मुँह से वाह-वाही सुन बेटियांँ भी कहाँ चुकने वाली थी। बड़ी बेटी  पायल और बिछिया तथा छोटी बेटी मंगलसूत्र और सिंदूर की डिबिया चढ़ाती हुईं बोली माँ ने हम दोनों की शादी में खेत,आधा घर और बगीचे बेचकर दोनों दामाद इंजिनियर लाया हमलोग ने भी माँ के लिए यह सामान लाया है।
उनकी ननद, देवरानी,बहनें,भाभी अन्य रिश्तेदारों के तरफ से भी कपड़े, श्रृंगार -प्रसाधन मिठाइयांँ,फल मेवे इत्यादि चढ़ाएं जा रहे थे।
उनके सबसे छोटे बेटे के पास जाकर चाचाजी ने सलाह देते हुए कहा -बेटा तुम भी अपनी कमाई का कुछ अंश माँ के नाम दान कर दो ,माँ को स्वर्ग में सुख मिलेगा। लेकिन वह अफसोस भरी नजरों से सारे सामानों को देखता रहा।
    क्यों तुम नहीं दोगे कुछ ? बड़े भाई ने प्रश्न किया तो पिताजी ने कहा नहीं।
क्यों नहीं ? दोनों बड़े भाइयों के मुँह से एक साथ निकाला।
क्योंकि यह श्राद्ध कर्म में नहीं श्रद्धा कर्म में विश्वास करता है।
     श्रद्धा कर्म ?
हाँ श्रद्धा-कर्म ।तुम्हारी माँ ने दुःख सहकर, जमीन-जायदाद,जेवर गहने बेचकर तुमलोग को पढ़ाया-लिखाया, अच्छे घर में ब्याह किया   इसलिए तुम सभी ने मरने के बाद दिखावा करने हेतु इतने सारे सामान दान किया। लेकिन जब इतने दिनों से माँ बीमार थी तो इलाज करवाने का भी समय और पैसे नहीं थे तुमलोगों के पास।माँ के अंतिम दर्शन करने हेतु भी नहीं आ सके। लेकिन मेरा यह बेटा सीमित कमाई में भी अपनी माँ का इलाज-पानी सेवा -सुश्रुषा बड़ी श्रद्धा और प्रेम से किया। जिंदगी भर तुम्हारी माँ टूटी खाट पर सोती रही और उसपर से ही गिरने से कमर की हड्डियां टूट गयीं तब कोई उसे एक खाट-चौकी तक नहीं दिया यही एक महीने की वेतन उस दिन दिया होता तो शायद उसका अच्छे-इलाज हो गया होता।यही मेवे-फल उस दिए होते तो जीते जी उसकी आत्मा तृप्त होती।अब मरने के बाद इन सामानों को दान को ढकोसला और दिखाबा करने से क्या लाभ ? "यदि किसी को ज्यादा श्रद्धा और प्रेम दिखाना है तो उसके जीवन में करो मरने के बाद  वह व्यक्ति स्वयं इस आकांक्षाओं से मुक्त हो जाता है।सारे दान-दक्षिणा, भोज-भात लोग समाज के दिखाबे के लिए करते हैं।" इसलिए मान करो दान नहीं।श्रद्धा में विश्वास करो श्राद्ध में नहीं।
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

बालिका दिवस (हाइकु)

बालिका दिवस (हाइकु)

     मनाते हम                  करो प्रतिज्ञा 
बालिका दिवस ले      बालिकाओं की लज्जा 
     मन उमंग।                नहीं हो भंग।

     संतति यह            बालिकाओं के 
भी तो हमारी ही है     जीवन में भर दें
     हमारा अंग।            अनेक रंग।

   सिखाते सदा            किसी हाल में 
उनको हैं संस्कार      अन्याय न हो पाये
     बहुत ढंग।               इनके संग।

   ऊँची उड़ान            करें न कोई 
भरकर बालिका      उन्हें  राह  चलते 
    करती दंग।         कभी भी तंग।

 तो क्यों बालिका         न मानवता 
निज रक्षा के लिए     हो कभी शर्मसार 
    लड़ती जंग।            न बदरंग ।  

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, October 10, 2023

मन-दर्पण (दोहे)

मन-दर्पण (दोहे)

दर्पण में सब देखिए,अपना रुप स्वरूप।
क्या दिखता यह रूप है,इस जग के अनुरूप।।

मन के दर्पण में जरा, देखें आप निहार।
अपने सुंदर रूप में, कर लें आप सुधार।।

त्वचा को लीप-पोतकर,निखार लिए रंग।
मन तो मैला ही रहा,दिखता है बदरंग।।
 
कान में पहने झुमके,इत-उत मारे डोल।
शोभा कानों की बढ़ा, सुनकर अच्छे बोल।।

नयनों में काजल लगा,सुंदर करते आप।
नजरों में समता भरो,मन को कर निष्पाप।।

नाक में नथ पहन लिए, बहुत बड़ा आकार।
गंध की पहचान नहीं,नथिया है बेकार।।

होठ को तो रंग लिए,लेपन लाली नाम।
बोली मीठी है अगर,लाली का क्या काम।।
      
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

अभी तक तुम तैयार नहीं हो पायी (दोहे)

कहते हो तुम झिड़क कर,हुई नहीं तैयार।
समय निकलने का हुआ, दर्पण रही निहार।।

जाने का तो शौक है,पर करती हो देर।
ऊँची जूती ढूंढती,तुम जाने के बेर।।

इसीलिए तो मैं नहीं, लेकर जाता  साथ।
देरी करती तुम भला,कौन भुकाता माथ।।

पर क्या जानो तुम पिया,हम नारी की पीर।
सारे काम मैं करती,हो रहे तुम अधीर।।

तुमको लाकर दूँ सदा, कपड़े-जूते  पास।
इठलाते हो पहनकर, करते हो उपहास।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, October 9, 2023

निवास (दोहे)

मेरे दिल में लीजिए, ईश्वर आप निवास।
मन में मेरे है लगा,बस इतनी -सी आस।।

करती हूँ आराधना,हाथ जोड़कर आज।
शीश नवाकर कह रही,रख लो मेरी लाज।।

लेकर आई हूँ प्रभु मैं,आज आपके पास।
पूर्ण करें मन-कामना मन में है विश्वास।


Saturday, October 7, 2023

मेरे मन मंदिर में (घनाक्षरी)

मेरे मन-मंदिर में

ईश्वर का निवास है,
    और प्रेम का बास है,
        भरा हुआ उल्लास है,
            मेरे  मन - मंदिर में।

रहती सेवा-साधना,
   और सच्ची आराधना,
         मेल-मिलाप भी घना,
               मेरे  मन- मंदिर में।

प्रेम और  सद्भाव  है,
   दुष्प्रेम का आभाव है,
        न  कोई दुराभाव है,
             मेरे मन - मंदिर में।

सभी के लिए समता,
    सभी जीवों से ममता,
          प्यार नहीं है  कमता,
                मेरे  मन- मंदिर में।

               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, October 6, 2023

नदी की व्यथा (कविता)

नदी की व्यथा

कल- कल करती बहती नदिया।
   जन- जन से यह कहती नदिया।
      कूड़े -  कचरे मुझमें मत डालो।
         हे मानव जन ! मुझे बचा लो।

मुझमें तुम नाले बहा रहे हो।
   मुझमें  गंदगी  फैला  रहे हो।
      मूर्ति-विसर्जन मुझमें करते हो।
          फूल-अर्पण मुझमें करते हो।

पशुओं को मुझमें नहलाते हो।
   लाशों  को मुझमें ही दहाते हो।
      उद्योगों के अपशिष्ट फेंकते हो।
        मेरा  दुःख तुम नहीं देखते हो।

हो रहा है जल प्रदूषित मेरा।
   विषैले जीव ले रहे हैं बसेरा।
     घट रही है देख पवित्रता मेरी।
        विलुप्त हो रही अस्मिता मेरी।

मुझसे ही है तुम सबका जीवन।
   मुझसे है खेती,वन और उपवन।
      अपने जन को तुम  समझा लो।
         मानव तू मेरा अस्तित्व बचा लो।
            
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, October 4, 2023

देवों पर श्रद्धा (हाइकु)

देवों पर श्रद्धा

    जिनका मन              सोने के दीये
श्रद्धा से भरा होता      गाय का घृत डाल 
   होते महान।              कर जलाते।

   भगवान को             भगवान की
पूजते हैं श्रद्धा से      सुमंगली-आरती
   करते ध्यान।            गुनगुनाते।

   गंगा जल से                हाथ जोड़ते 
देवताओं को सदा       शीश को झुकाकर 
   हैं नहलाते।                करें प्रणाम।

   रेशमी वस्त्र                  मानते सदा 
फूलों की माला गले      ईश के चरणों को 
   हैं पहनाते।                 अपना धाम।

ललाट पर                 देवों के प्रति 
चंदन का तिलक      हमारे मन में भी
    फिर लगाते।         श्रद्धा जरूरी।

   श्रद्धा से भोग               श्रद्धा रखिए 
फल मिश्री मेवे का।       देव मनोकामना 
   उन्हें चढ़ाते।                 करेंगे पूरी।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'