Sunday, April 7, 2024

चैत्र नववर्ष (गीत )

चैत्र नववर्ष ( गीत)

नाचो-गाओ,खुशी मनाओ,नव वर्ष हमारा आया।
भारत के जन-जन में देखो,हर्ष नया है छाया।

चैत मास का प्रतिपदा को हमारा प्रारंभ होता वर्ष।
हिंदी वर्ष का प्रथम तिथि यह स्वीकार हमें सहर्ष।
हम हिंदू हैं,हिंदुस्तान पर सदा ही हमको माया।
भारत के जन-जन में देखो हर्ष नया है छाया।

देव महेश ब्रह्मा विष्णु देवी गौरी  शारदा सीता।
पूज्य ग्रंथ है महाभारत,रामायण और गीता।
हर वासी के हाथों में भगवा झंडा लहराया।
भारत के जन-जन में देखो हर्ष नया है छाया।

नित उठ हम सूर्य नमन कर प्रारंभ करते कार्य।
रात्रि में विश्राम से पहले चंद्र नमन अनिवार्य।
आसमान में सदा ही रहता हिंदी बादल छाया।
भारत के जन-जन में देखो हर्ष नया है छाया।

संकल्प हमारा हम करेंगे भारत का उत्थान।
सब मिलकर जय हो भारत का, गाएंँगे जयगान ।
सदा प्रफुल्लित हो देश हमारा कंचन-सी हो काया।
भारत के जन-जन में देखो हर्ष नया है छाया‌।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, March 21, 2024

सखी आओ खेलें होली

सखी आओ खेलें होली

सखी आओ खेलें हम होली,
आ कर लें खूब ठिठोली।
भरे खुशियों से हम झोली,
आ कर लें.........
भूल शिकबे-गिले,आ गले मिले,
हम बोलें प्यार की बोली,
आ कर लें खूब ठिठोली।
सखी......
तुझे रंग लगाएँ, गुलाल लगाएँ ,
बना मुखड़े पर तेरे रंगोली।
आ कर..
रंग प्यार के लगाएँ, रंग प्रीत लगाएँ।
अब रूठो नहीं हमजोली!
आ कर लें...............
तेरा लहंगा भिगाऊँ,तेरी चुनरी भिंगाऊँ,
भिंगाऊँ मैं तेरी चोली।
आ कर लें.......
संग-संग हम नाचें,संग-संग हम गाएँ,
बनाकर सखियों की टोली,
आ कर लें
सखी.........

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

कवि और कविता

कवि और कविता (मनहरण घनाक्षरी)

कविता लिखते कवि,
दिखती है प्यारी छवि,
चमकता जैसे रवि,
सुर-लय-छंद में।

पिरोते भावों के मोती,
दिखा साहित्य की ज्योति,
साहित्य के बीज बोती,
मुक्त स्वर- छंद में।

बनाते माला शब्दों के, 
लेखन प्यारे पदों के,
प्यारे औ न्यारे पद्यों के,
कुछ है स्वछंद में।

सजाते कागज की क्यारी,
लिखते कविता प्यारी,
सभी लेखों से न्यारी 
सरल वे बंध में 
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, March 16, 2024

बादल का इंसाफ

बादल का इंसाफ 

सूरज और पवन में भारी छिड़ी बहस एक बार।
दोनों स्वयं को ताकतवर कहते माने न कोई हार।
तब आसमान में बादल आया करने बीच-बचाव।
निज ताकत को सिद्ध कर लो बेकार दिखा न ताव।
सामने की पहाड़ी पर देखो बैठे हैं तपस्वी एक।
ठंडक से बचने की खातिर रखी है कंबल लपेट।
जो अपनी ताकत से उनका कंबल उतरवा देगा।
उसके सिर पर ताकतवर का मुकुट आज सजेगा।
पहले पवन ने अपनी ताकत की जोर लगायी।
साधु की कंबल उड़ाने के लिए अपनी गति बढ़ाई ।
पवन की गति बढ़ते ही तपस्वी ने हाथ बढ़ाया।
अपने तन पर कंबल को कसकर यूं लिपटाया। 
अब बारी सूरज की आई उसने अपनी ताप बढ़ाई
तपस्वी ने गर्मी से अकुल हो कंबल थोड़ी सरकाई।
फिर सूरज ने तीव्र गति से बढ़ा दी अपनी ताप।
तपस्वी को कंबल की गर्मी से हुआ अति संताप।
व्याकुल होकर झट उन्होंने अपना हाथ बढ़ाया।
अपने तन का कंबल को उन्होंने अलग हटाया।
अब तेज हवा के झोंके भी लग रही थी उनको प्यारी।
मोटा कंबल गर्मी के कारण लग रहा था भारी।
समझ न पाया पवन सूरज की यह योजना प्यारी।
सूरज अपनी जीत पर मंद-मंद मुस्काया। 
वह बादल के इंसाफ पर अपना शीश झुकाया।
पवन को अपनी ताकत का झूठा अहम समझ में आया।
अपने झूठे अहंकार पर वह मन-ही-मन पछताया।

सुजाता प्रिय समृद्धि

Friday, March 15, 2024

गणपति वंदन (चौपाई छंद)

गणपति वंदन (चौपाई छंद)

जय देवों के देव गणेशा।
पूजे ब्रह्मा-विष्णु-महेशा।।
पार्वती के दुलारे नंदन।
हाथ जोड़ करती हूँ वंदन।।

माथ सिंदूर मुकुट विराजे।
पीत वसन अंगों में साजे।।
मेरे गृह में आप विराजे।
मन मंदिर घंटा घन बाजे।।

लाल कमल का पुष्प चढ़ाऊँ।
लड्डू -मोदक भोग लगाऊँ।।
एकदंत गजवदन विनायक।
दरस आपका है सुखदायक।।

भक्त आपसे है वर पाता।
बालक जन के विद्या दाता।।

करते आप  मूषक सवारी।
हाथी सूंड वदन है भारी।।
प्रथम देव घट-घट के वासी।
भक्त जनों के हरें उदासी।।

जय जय जय हे गणपति देवा।
करुँ आपकी बहु विधि सेवा।।
चरण आपके शीश नवाऊँ।
सौभाग्य का आशीष पाऊँ।।

Saturday, February 10, 2024

प्रथम देव का पूजन कर लो

प्रथम देव का पूजन कर लो

मन-मंदिर में स्थापित करो,
  उनको प्रथम देव के रूप में।
        सारी सृष्टि से भी बढ़कर,
          है स्नेह जिनके स्वरूप में।

नमन करो माता-पिता को,
   जिनके चरणों में चारों धाम।
       जुगल कर-कमलों को जोड़,
          प्रेम -भाव से कर लो प्रणाम।

चरण-रज का तिलक लगा लो,
    सादर- सप्रेम झुका लो शीश।
       अभिनंदन कर स्नेह आदर से,
         आ पा लो प्यार भरा आशीष।

माता-पिता से ही हैं हम पाये,
   सम्पूर्ण जगत में देख पहचान।
       माता पिता के कारण ही तो,
          मिलता सभी जगह सम्मान।

पाल-पोष कर माता पिता ने,
    हमको बनाया है तेजस्वान ।
       पढ़ा-लिखा कर आज हमको,
         बनाया है जगती में गुणवान।

वात्सल्य का अमृत पान करा,
    तन- मन हमारा तृप्त किया।
      सेवा,त्याग औ समर्पण कर,
        जीवन यह है  झंकृत किया।

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, January 23, 2024

राम जन्म

जनम लिए रघुराई,अवध में बजती  बधाई।
शुभ-दिन,शुभ-घड़ी आयी,अवध में.......
राम जी जनमें,लखनजी जनमे
भरत-शत्रुघ्न भाई।
अवध में...........
पिता दशरथ का मन है हर्षित,
पुलकित है तीनों माई।
अवध में बजती......
धन्य धन्य भाग्य है राजा दशरथ के।
जीवन है सुखदायी।
अवध में बजती..........
भारतवर्ष की पुण्यभूमि यह,
चहुँ दिशी खुशियाँ है छाई,
अवध में बजती.............
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'