Wednesday, December 28, 2022

मच्छर की आत्मकथा

मच्छर की आत्मकथा

 उपवन में सुक्ष्म जीव विचरण कर रहे थे। उड़ने वाले जीव भी पंख फैलाकर इधर-उधर उड़ रहे तितलियों और मधुमक्खियों के साथ-साथ मक्खी-मच्छर भी भिन- भिन, भुन-भुन कर रहे थे। तितलियांँ अपने से छोटे जीवों से उनका परिचय पूछ रहीं थीं।जब मक्खी, मधुमक्खी ने अपना परिचय दे दिया तो मच्छर ने भी आत्मकथा सुनाना प्रारंभ किया।
  मैं मच्छर हूँ । निम्न कोटि की श्रेणी का एक नन्हा कीट। प्रकृति ने हमें दो पंख प्रदान किये ।जिससे उड़कर कहीं भी जा सकता हूंँ। गीत-संगीत हेतु ध्वनि भी प्रदान किया । जिससे भुन-भुन की आवाज कर गीत-संगीत से वातावरण गुंजायमान कर लोगों नींद उड़ाता हूंँ। भोजन मैं कभी नहीं करता।बस पेय पदार्थ ही मझको पसंद है। कभी-कभी पत्तियों का रस भी चूस कर काम चलाता हूंँ।लेकिन मुझे सबसे ज्यादा पसंद है जीवों के रक्त। अगर मानव- रक्त की प्राप्ति हो तो सोना में सुगंध ।रक्त -शोसन हेतु ईश्वर ने मुझे डंक भी दिया।चुपके से जीवों के शरीर में  उसे चुभोकर खून चूस  लेता हूँ ।पसंद का आहर पाकर जी लेता हूँ।लेकिन भगवान का भी अत्याचार कहो। सभी जीवो में श्रेष्ठ मानवों को बना दिया। बुद्धि-विवेक का सारा खजाना उन्हीं में भर दिया।नित नए -नए आविष्कार कर मुझसे अपनी  रक्षा करते हैं । कहीं उनके जागृत अवस्था में रक्त चूसने जाओ तो वे अपनी बड़ी- बड़ी हथेलियों के चाँटे से मेरी चटनी बनाकर देखेंगे कि मैंने उनका कितना खून चूसा ? कभी- कभी तो कुछ ऐसे चिपचिपे पदार्थ का लेपन कर लेंगे शरीर में, कि खून चूसने जाओ तो मुँह का जायका ही बिगड़ जाता है।या फिर अपने इर्द-गिर्द ऐसी अगरबत्तियाँ  जलाकर रकते हैं, जिसके धुएँं इतने जहरीले लगते है कि क्या कहूँ। बड़ी तेजी से वहाँ से भागना पड़ता है ।एक डिबिया में पता नहीं किस समंदर का पानी भरकर बिजली की स्वीच में लगा देते हैं जिससे न तो धुआं उठता है ना महक । लेकिन  उसके निकट जाने से दम घुटने लगता है ।वहांँ जाना मतलब जान गवाना।इससे तो अच्छा मच्छरदानी नामक ओहार था। जिसमें जब जी चाहे  उनके अंदर जाते समय चुपके से चले जाते थे। कहीं मच्छरदानी थोड़ा सा बिस्तर के दवाब से ऊपर हो जाता था तो  पौ बारह। अंदर जाकर जी भर खून चूसो। कहीं नींद में किसी के हाथ-पाँंव मच्छरदानी की जाली में सट गया तो बाहर से ही रक्त- पान का मजा ले लो ।कहीं उसमें छोटा -सा भी छिद्र हो गया तो समझो मदिरालय का प्रवेश द्वार खूल गया। लेकिन अब तो लगता है कि हमारा नामों- निशान मिटाकर ही रहेंगे मानव ।आज तो बड़ी-बड़ी गाड़ियों से गहरी और जानलेवा धुएंँ का गुब्बारा उड़ा कर नदी- नाला,कूड़ा -कचरा सभी जगह से हमारा नाश कर रहे हैं।
           सुजाता प्रिय समृद्धि
               

Sunday, December 18, 2022

कल हाथ पकड़ना मेरा (कविता)

कल हाथ पकड़ना मेरा

चलो सड़क मैं  पार करा दूंँ।
साथ चल विद्यालय पहुंचा दूँ।।
लाठी टेक मैं अब चलता हूंँ।
इसके बिन चलने से डरता हूंँ।।
तुझे अकेला छोड़ ना सकता।
पोता तुझसे मुख मोड़ सकता।।
आज तुम्हारा मैं हाथ पकड़ता।
कसकर मैं मुट्ठी में हूंँ जकड़ता।। 
विद्यालय का यह लम्बा रास्ता।
ऊपर से पीठ पर भारी बस्ता।।
कल ज्यादा मैं बूढ़ा हो जाऊँ।
लम्बी सड़क पर चल ना पाऊँ।।
इस तरह हाथ पकड़ना तू मेरा।
घुमा-फिरा ,वापस लाना डेरा।।
इस जीवन का भी चक्र यही है।
बच्चा-बूढ़ा बनाना क्रम सही है।। 
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, December 16, 2022

भगवान ( हाइकु )



भगवान 

    हे भगवान 
दया निधान आप
   कृपा करिए।

    हम उदास 
लेकर आए आस
    दुख हरिए।

 हे सर्वव्यापी 
हरते हैं संताप 
दया कीजिए।

     हम आपके
 शरण में हैं आए 
    वर दीजिए।

  शिवा आपके 
नहीं कोई सहारा 
 कहांँ मैं जाऊंँ।

   कौन हारेगा
दुखड़ा अब मेरा 
  किसे बताऊँ।

      दूर कर दें
मेरी भव बाधा को
   आप मिटाएंँ।

    बीच भँवर
मेरी अटकी नैया
   पार लगाएंँ।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, November 21, 2022

रुपिया से बड़ा परिवार ( मगही भाषा)

रुपिया से बड़ा परिवार (मगही भाषा)

सुना भाई हो!रुपया से बड़ा परिवार।
हाँ परिवार से बड़ा नै रुपिया
हजार।
सुना भाई हो...........
जेकरा घर-परिवार बड़ा है ऊ बड़का धनवान।
जेकर परिवार में मिल्लत है ऊ बड़का गुणवान।
सुना भाई हो !परिवार के तू रखिहा सम्हार।
सुना भाई हो !......................
बड़ा-बुढ़ा से परिवार शोभे,सुना तनी भैया।
जेकर घर दादा-दादी,चाचा-चाची
बापू-मैया।
सुना भाई हो !जेकर घर हो आपस में प्यार।
सुना भाई हो !...............
भाय-बहिनिया मिलके खाय-खेले साथ।
घूमे-फिरे,पढ़े-लिखे,जाय पकड़ के हाथ।
सुना भाई हो !बाल-बुतरु करें गुलजार।
सुना भाई हो !..............
आपस में सब सुख-बाँटे,बटाबे सबके हाथ।
दूध-मिठाई,चूड़ा-भुज्जा,खाथिन सभे साथ।
सुना भाई हो ! रहे उनकर घर में बहार।
सुना भाई हो ! ...................
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, November 20, 2022

दोहे शब्द आधारित



दोहे (शब्द आधारित)

 कलम, गीत, संगीत,काव्य सृजन (दोहा)

विद्वानों के हाथ का,कलम बड़ा हथियार।
कलम चलाते वे सदा,बनते  रचनाकार।।

गीत सदा मन मोहता,गाते जाओ गीत।
सुनने में प्यारा लगे,लेता है मन जीत।।

संगीत की धुन सुन कर,मन में उठे तरंग।
सुनते सब मन मुग्ध हो,थिरक रहे सब संग।।

कवियों के काव्य सदा, मुखरित करते भाव।
भाव सदा प्यारा लगे,हो जाता संभाव।।

कवि गीत का सृजन करें,कथा- कहानी रोज।
रहता मन उमंग भरा,उनके मन में ओज।।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, November 18, 2022

मेहनत (सायली छंद)

         मेहनत (सायली छंद )
     मेहनत                  मेहनत 
    करना है              को मुकाम 
धर्म हमारा हम       बना  कर  हम 
 मेहनत करते           आगे बढ़ते 
      जाएंँ।                   जाएँ।

   मेहनत                  मेहनत 
 करना पड़े             करके हम 
कभी तो हम       निज मंजिल की
 तनिक नहीं            राहें गढ़ते
   घबराए।                जाएँ।

   मेहनत               मेहनत
 करने वाले          की पतवार 
ही जीवन में       पकड़ कर हम
  सदा पाते           पा   सकते 
   मंजिल।             किनारा।

     मेहनत                 मेहनत 
  करने वालों             की नौका
 के जीवन में          से  दूर  रहती
  नहीं आती।             दुःख की
   मुश्किल।                 धारा।

   मेहनत                  मेहनत
 करने वाले             जीवन का
जग में सदा          सच्चा साथी है 
   सुखी हैं               सदा  साथ
     होते।                  निभाता।

   मेहनत                  मेहनत
  दिन  भर               संग  तुम 
कर रात्रि में          कर लो दोस्ती 
अच्छी नींद             सदा रखो
    सोते।                   नाता।
       सुजाता प्रिय समृद्धि

Thursday, November 17, 2022

मेरी मर्जी (लघुकथा)


          मेरी मर्जी (लघुकथा)

 संदीप का मन भूख से व्याकुल हो रहा था।ऐसे में मम्मी का मुँहतोड़ जवाब सुन मन बड़ा विचलित हो जाता। अब उसमें हिम्मत नहीं थी कि फिर पूछे भोजन कब बनाओगी ? दोपहर से कई बार पूछ लिया भोजन कब बनाओगी ?भोजन में क्या-क्या बनाओगी ? इन सभी सवालों का बस एक ही जवाब होता 'मेरी- मर्जी' । सुबह के नाश्ते के बाद तो कुछ खाने नहीं मिला। ना ही कहीं डब्बे में कुछ रखा मिल रहा,ना ही फ्रीज में कुछ बचा-खुचा है। आखिर खाऊँ-तो क्या खाऊँ ? उससे पूछूंगा तो बस एक ही जवाब देगी  'मेरी मर्जी'। रोज तो ऐसा नहीं करती थी। सभी चीज समय पर बनाकर स्वयं ही पूछा करती थी खाना परोसूँ ? खाना कब खाइएगा ? नाश्ता कब करेंगे ? लेकिन,आज घर में अकेला हूंँ तो चादर तान कर सोई है।ना बनाती है,ना खिलाती है,ना पूछने आती है।
पूछने पर भी यही जवाब देती है कि 'मेरी मर्जी'।आखिर कहांँ से सीखा उसने यह 'मेरी मर्जी?
वह मन-ही-मन झूंझला उठा ।मुझसे। अनायास उसके मुँह से निकल पड़ा।मन ने तुरंत स्वीकार किया । हांँ-हांँ मुझ से ही सीखा है।यह मेरा ही तकिया कलाम है।

 शादी के इतने साल बीत गए।वह बेचारी हमेशा पूछती है कि -आप क्या खाएंँगे  ? कब खाएँंगे ? क्या पहनेंगे ?कब आएगे? कब जाएँगे बगैरा-बगैरा।और मेरा जवाब होता है- 'मेरी मर्जी' । अब उसे गुस्से के बजाय अपनी गलती का एहसास हो रहा था।
 ओह मैं इतने वर्षों से उसे 'मेरी मर्जी' का जवाब दे रहा हूंँ,तो उसे कैसा लगता होगा । अपने जवाब को सुनकर कुछ घंटों में ही जब मैं परेशान हो गया।
रोज वह मजबूर थी ।मांँ- पिताजी के लिए तथा बच्चों के लिए उसे भोजन बनाना था । लेकिन आज बच्चे भी मांँ-पिताजी के साथ गांँव चले गए । आज ना उसे बच्चों के लिए खाना बनाना है,और ना माँ- पिताजी के लिए । इसलिए उसने मेरी मर्जी को अपनी मर्जी बना ली और मुझे .................।
अब वह 'मेरी मर्जी' की अकड़ भूलकर पम्मी को हाथ पकड़ कर उठाते हुए कहा- उठ पम्मू !आज तुम अपनी मर्जी का ही कुछ बनाकर खिला दे । पेट में चूहे कूद रहे हैं यार ! अब मैं तुम्हें कभी भी 'मेरी मर्जी' कह कर नहीं सताऊंँगा।हाथ जोड़ता हूँ, कान पकड़ता हूंँ।
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, November 16, 2022

बड़े चलो बढ़े चलो (देशभक्ति गीत)

बढ़े चलो बढ़े चलो

बढ़े चलो बढ़े चलो,वीर तुम बढ़े चलो।
सतत मन में धैर्य ले,धीर तुम बढ़े चलो।
बढ़े चलो बढ़े चलो...................
रक्षा की आस ले,बुला रही मांँ भारती।
त्रस्त मन की वेदना,ले तुझे गुहारती।
रख मन में चेतना गंभीर तुम बढ़े चलो।
बढ़े चलो बढ़े चलो...................
देश के लिए जीओ,देश के लिए मरो।
सामने हो काल तो,वीर तुम नहीं डरो।
रख मन में हौसले,तूफान से लड़े चलो।
बढ़े चलो बढ़े चलो...................
शत्रुओं से ले बचा,आज अपने देश को।
कृपाण से उतार दे,कपटियों के वेश को।
इंतकाम ही मुकाम है, सास्ते गढ़े चलो‌।
बढ़े चलो, बढ़े चलो....................
उपद्रवियों को रोक दे, तलवारों की नोंक से।
देश को उजाड़ने,जो आ रहे हैं झोंक से।
कदम नहीं बढ़ा सकें,काल बन अड़े चलो।
बढ़े चलो बढ़े चलो..................

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, November 15, 2022

बढ़े चलो साथियों

बढ़े चलो साथियों

बढ़े चलो साथियों ! तुम बढ़े चलो।
निज मंजिल के रास्ते को गढ़े चलो। बढ़े चलो.....

बढ़ना ही है धर्म तुम्हारा,जल्दी-जल्दी बढ़ा कदम।
सबसे आगे बढ़ सकते हो,सोच नहीं हो किसी से कम।
पर्वत भी हो राह में,उस पर चढ़े चलो।बढ़े चलो.....

मत घबरा तू बाधाओं से,सफलता का यह साधन है।
करता चल संघर्ष सदा तो,कठिन नहीं यह जीवन है।
हिम्मत कर तूफानों से भी,लड़े चलो।बढ़े चलो.....

श्रेय पथ पर बढ़ते जाओ, अनुगामी स्वयं बनकर।
लेकर साहस दृढ़ हृदय से,विश्वास की डोर पकड़ कर।
जीवन को स्वर्णिम तीलियों से,मढ़े चलो।बढ़े चलो.....

विघ्न पराजित होंगे तेरे,दृढ़ निश्चय के आगे।
नतमस्तक होगी सफलता,जब तेरा मन जागे।
सफल जीवन का मंत्र है यह,पढ़े चलो।बढ़े चलो.....
                             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, November 11, 2022

देश प्रेम (हरिगीतिका छंद)

देश प्रेम 

हमको अपने देश से कभी,प्यार ना मन में घटे।
किसी हाल में किसी बात से,प्रेम बादल ना छटे। ‌

देश हमारा,प्यारा जग में,मान भी जग  में बढ़े।
आजाद रहे आवाद रहे, उच्च-शिखर हरदम चढ़े।

धन-धान्य से परिपूर्ण हो, सुख-समृद्धि हरदम रहे।
हर हाल में खुशहाल हो,हर होंठ हँंसी हर पल रहे।

हर गाँव के, हर खेत में,उपजे फसल  प्रकार के।
हर वृक्ष के,हर डाल में,फल लगे हर आकार के।

मानवों को मानव के लिए,प्रेम का व्यवहार हो।
किसी हाल में किसी लोग पर,कभी न अत्याचार हो।

हर लोग में मिल्लत रहे, प्रेम सह समभाव हो।
जाति-वर्ण के वास्ते ना , कोई दुराभाव हो।

है कामना हर जन्म में,इस देश के बासी रहें।
इस पुण्य भूमि में जीएँ,इसी के अभिलाषी रहें।

                  सुजाता प्रिय समृद्धि

भारत का संदेश

भारत का संदेश 

भारत अपना देश,जिसका प्यारा यह संदेश,
                                 आगे बढ़ते जाओ।
 लेकर मन में विश्वास,कर सफलता की आस,
                                 रास्ता गढ़ते जाओ।

 भारत प्यारा,देश हमारा , यहाँं के हम हैं बासी।
सुख-वैभव की चाह नहीं है,रक्षा के अभिलाषी।
पहनकर सैनिक का वेश, बचा लो अपना देश,
                              दुश्मन से लड़ते जाओ।

इसकी वायु में सांँस लेकर, ही तो हम जीते हैं।
इसका खाते अन्न-फल,हम इसका पानी पीते हैं।
प्यारा यह उपहार,इससे मिलता है हयको प्यार,
                                 प्यार तो करते जाओ।

इस धरती की रक्षा करना, है धर्म हमारा भाई।
इसकी ममता के आँंचल में,हम लेते हैं अंगड़ाई।
कर लो इससे प्यार,हमारा यह सुंदर है संसार।
                                     ऊपर चढ़ते जाओ।

जीवन धन्य होगा कर,इस पर प्राण निछावर।
इसका मस्तक ऊंँचा कर दें, हिमालय के बराबर।
हम सब मिलकर साथ,नवाते जाओ अपना माथ,
                                 नमन सब करते जाओ।

 सुजाता प्रिय समृद्धि

Thursday, November 10, 2022

भारत माँ के बच्चे हम (बाल गीत)



भारत माँं के बच्चे हम
हैं नन्हे अच्छे सच्चे हम।

भारत मां के बच्चे हम।
मिलता सबका प्यार हमें।
खुशियों का उपहार हमें।
हसगुल्लों के लच्छे हम।

नहीं किसी से डरते हम।
प्यार सभी से करते हम।
सचमुच मन के अच्छेहम।
भारत माँं के बच्चे हम।

भारत मांँ की खातिर हम।
मर मिटने को आतुर हम।
नहीं  किसी से कच्चे हम।
भारत मांँ के बच्चे हम।

फूलों-सा महकते हम।
किसी से न बहकते हम।
खाते कभी न गच्चे हम।
भारत माँ के बच्चे हम।

रहते हरदम हँंसते हम।
धोखे में ना फँंसते हम।
चक्रव्यूह खुद रच्चे हम।
भारत माँ के बच्चे हम।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, November 9, 2022

सूरज (बाल गीत)


सूरज 

सुबह सवेरे आया सूरज।
थोड़ा सा अलसाया सूरज।।

हंसकर हमें हंसाया सूरज।
नई उमंगे लाया सूरज ।।

किरण फेंक मुस्काया सूरज।
संपूर्ण जगत में छाया सूरज।।

सोतों को जगाया सूरज ।
दया-प्रेम उपजा या सूरज।।

कलियों को खिलाया सूरज।
भटकों को राह दिखाया सूरज।।

हर प्राणी को भाया सूरज।
 दिन भर जगमगाया सूरज।।

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, November 8, 2022

दहेज ना चाही (भोजपुरी भाषा)



दहेज ना चाही (भोजपुरी भाषा)

कैलन दहेज समाज में तबाही।
बेटा बियाह में दहेज ना चाही।

जब हम बेटी के बियाह कईनी।
दहेज जुटाबे में की दिन बितैनी।
लोग परिवार से कईनी उगाही।
बेटा बियाह में दहेज ना चाही।

बेटी के बाप के खून नै चूसब।
उनका से तनी धन नहीं झूसब।
बनाइब न उनका कर्जा के राही।
बेटा बियाह में दहेज ना चाही।

करब ना बियाह में कोनो दिखावा। 
अमीर बने के हम झूठा भुलावा।
देबे जो समधी तो करब मनाही।
बेटा बियाह में दहेज ना चाही।

सादगी से बेटा के बियाह रचाइब।
लक्ष्मी बहुरिया के घर में ढुकाइब।
माने में उनका ना करब कोताही।
बेटा बियाह में दहेज ना चाही।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, November 4, 2022

सरस्वती वंदना (मगही भाषा )



सरस्वती वंदना ( मगही भाषा )

वीणा बाजे रे, सरस्वती माय के द्वार में।
मनमा नाचे रे, उहे वीणा के झंकार में।

रोज मैया के ध्यान लगैबै,चरनियां में सिर नवा के।
मैया हमरा देथिन आशीष,अपने दुनु हथ उठा के।
हमर आस पुरैहा मैया,विद्या-बुद्धि वरदान दे।
जीवनमा संवरे रे, मैया के दुलार में।
वीणा बाजे ये,................

मैया रानी,तू हा वरदानी,हमरा तू वरदान दा।
हम मुरख-अज्ञानी मैया,हमरा सच्चा ज्ञान दा।
विद्या दायिनी मैया मोरी,इहे हमर अरमान है।
झूम-झूमके नाचूँ रे, मैया तोहर प्यार में
वीणा बाजे रे,.....................

सरस्वती मैया,होबा सहैया,पढ़ें लिखे के बेर में।
आखर एक समझ न आबे,गीत-कवित के ढेर में।
जड़मति हमर हर ला मैया,जग में थोड़ा मान दा,
विनती गाऊँ रे, मैया के अलार में।
वीणा बाजे रे.............
           सुजाता प्रिय समृद्धि

Thursday, November 3, 2022

गरीब का बुढ़ापा



    गरीब का बुढ़ापा

मुट्ठी भर दाने है खाना।
उसको मुझे है पकाना।
चुल्हे इसी से है जलाना।
उसके लिए ईंधन लाना।

पापी पेट का सवाल है।
अब जीना यहाँ मुहाल है।
ठंड से बुरा अब हाल है।
किसी को नहीं मलाल है।

लाठी बुढ़ापे का सहारा है।
ठंड में आग ही हमारा है।
इसके सिवा नहीं चारा है।
लाठी और आग सहारा है।

बुढ़ी हूँ किस्मत की मारी ।
लकड़ियाँ बिनना लाचारी।
हूँ बस दुःख की अधिकारी।
ढोती पीठ पर बोझा भारी।

पल सुबह का, या शाम का।
समय न मिलता विश्राम का।
नहीं लेनेकभी नाम राम का।
जपना मन में हरि-नाम का।
        सुजाता प्रिय समृद्धि

Wednesday, November 2, 2022

गणेश वंदना (विजया घनाक्षरी )



     गणेश वंदना 

गणपति गणेश जी, 
   पिताजी हैं महेश जी,
        माता जी हैं दुर्गेश्वरी,
              कर जोड़ है नमन।

भाल पर सिंदूर है,
     हाथ कमल फूल है,
           मूष पर बैठ कर, 
               करते जग गमन।

मुख में है एक दाँंत,
     और शोभे चार हाथ,
           सेवक झुकाए माथ,
               रोग को करें शमन।

बालकों को हैं तारते,
        दुख से हैं उबारते,
            बुद्धि बल निखारते,
                    सँवारते हैं चमन।
            सुजाता प्रिय समृद्धि

Sunday, October 30, 2022

छठ गीत ( मगही भाषा)

छठ गीत (मगही भाषा)

       
सूप लेके वरती नदिया खड़ी है।
भोर पहर के शुभ-शुभ घड़ी है।
उगहू सूरुज देवा अरगा के बेर।
आज उगे में तू काहे कइला देर।

बटिया भेटैलइ निरधन गे वरती।
ओकरा देबे लगलूं धन गे वरती।
बटिया भेटैलइ अंधरा गे वरती।
ओकरा देबेे लगलूं नैना गे वरती।

ओकरे में होलै उगते हमरा देर।
होई गैले आबे में अरगा के बेर।
मांगू -मांगू वरती जे फल मांगू।
देबै सबकुछ तोही आज मांगू।

तोरे दिहल सूरुज धन-संपतिया।
एक हमें मांगियो देवा संततिया। 
मंगिया के सेनुर अचल रहे देवा।
जिनगी भर करब तोर सूरुज सेवा।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, October 24, 2022

पति पत्नी

पति-पत्नी

आपस में विश्वास बनाकर।
एक-दूजे का साथ निभाकर।।
जीवन पथ पर बढ़ते जाते।
अंत-काल तक साथ निभाते।।

कभी-कभी तकरार भी होता।
पर आपस में प्यार भी होता।।
जो आती सुख-दुख की बारी।
दोनों ही बन जाते अधिकारी।।

माता-पिता की सेवा हैं करते ।
परिजनों के संताप-दुःख हरते।।
पाल-पोसकर बच्चों को पढ़ाते।
माता-पिता का कर्तव्य निभाते।।

प्यार के रंग में रंगती है जोड़ी।
लड़ाई-खिचाई भी होती थोड़ी।। 
पत्नी सयानी और पति सयाना।
दोनों मिल कर हैं एक समाना।।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, October 23, 2022

गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा

किए इंद्र अतिवृष्टि,
   मझधार पड़ी सृष्टि,
    है आपकी कृपा दृष्टि,
         कृपा अब कीजिए ।

रक्षा हेतु दीनानाथ,
    गोवर्धन लिए हाथ,
     नवाऊँ आपको माथ,
           आशीर्वाद दीजिए।

 केशव कृष्ण मुरारी,
    गोवर्धन गिरधारी,
       सबके संकट हारी,
         कृपा अब कीजिए।

करते आपकी पूजा,
  आप सब नहीं दूजा,
     करते सदा ही रक्षा,
        धन-धान्य दीजिए।

 सुजाता प्रिय समृद्धि

Saturday, October 22, 2022

धन के देव कृपा करना

धन के देव कुबेर कृपा करना।
दुःख-दारिद्र सभी संकट हरना।
अपनी जरूरतों को पूरी करें,
मेरी झोली में इतना धन भरना।
बड़े से बड़े काम करना हो तो,
नहीं पड़े मुझको कभी डरना।
छोटी-सी विनती लेकर आई हूंँ,
इसे तू अपने अंतस में धरना।
जरुरत पर धन देने में से दव,
ना झिझकना ना ही मुकरना।

         सुजाता प्रिय समृद्धि

Friday, October 21, 2022

माटी का दीया

माटी का दीया

माटी की गुथाई करते समय फिसलकर गिर जाने के कारण पिताजी के हाथ में चोट लग गयी और पिताजी चाक चलाने में असमर्थ हो गये।नेहा ने अपने भाई बहनों को अपनी एक योजना बताई। नक्काशी दार सांँचों में तो दीये बनाये जा सकते हैं।सभी भाई-बहनों ने मिलकर ढेर सारे दीये, खिलौने और मूर्तियांँ बनाये। उन्हें पकाकर रंग-रोगन कर सजाया और बाजार में बेचने बैठे।खिलौने और मूर्तियांँ तो जल्द ही बिक गये, लेकिन दीये........।जब बाजार में चीन-निर्मित बिजली से जलने वाले सुंदर दीपों की लड़ियांँ उपलब्ध है तो भला इन माटी के दीयों को कौन पूछता है ? तेल-बाती डालकर जलाओ और जरा-सी हवा तेज चली कि बुझ गया।भला इन झंझटों में कौन पड़े।
     संध्या अपने परम यौवन प्राप्त कर चुकी थी। अंधकार ने अपना साम्राज्य स्थापित करना प्रारंभ कर दिया। फूल-रंगोलियों से सभी लोग अपने घर सजाकर  दीये जलाने और पूजन की तैयारी में लग गये। नेहा भाई बहनों को बाजार की दुकान में छोड़कर घर आ गयी। क्योंकि मांँ बीमार और पिता लाचार थे।घर में भी पूजन करना और दीये जलाने हैं।अचानक बिजली आई और जोरदार धमाके के साथ गुल हो गई।पूरा मुहल्ला अंधकार के आगोश में समा गया।यह विद्युत-ट्रासफर्मर जलने की आवाज थी। सभी जानते थे कि इस इलाके में नये ट्रांसफर लगने में पंद्रह-बीस दिनों से कम नहीं लगते। पास-पड़ोस के लोग नेहा के घर दीये लेने दौड़ पड़े कहीं सारे दीये बिक ना जायें। विद्युत के बिना तो चीन के दीये नहीं जगमगाएंगे। नेहा के घर और बाजार के सारे दीए बिक चुके थे।वह अपने माता-पिता और भाई बहनों के साथ अपने घर में लक्ष्मी जी की पूजा कर माटी के दीये जलाने और खुशियांँ मनाने में लगी थी।यह उन्हीं की कृपा थी कि उसके बनाए सारे खिलौने और दीये बिक गए।वह जोर से बोल उठी लक्ष्मी माता की जय।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                 स्वरचित, मौलिक

Tuesday, October 18, 2022

कार्तिक मास की महिमा

कार्तिक मास की महिमा

पावन मास कार्तिक का शुभ-आगमन पर सभी के मन में हर्षोल्लास भर उठा है।शरद की शीतलता लिए कोमल वायू के झोंके चित को शांति प्रदान कर रहा है।इस मास का नाम शंकर-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय एवं कृतिका नक्षत्र के नाम पर पड़ा।हम सभी जानते हैं कि मनभावन कार्तिक मास का हमारे जीवन में विशेष महत्व रहा है।पाचन शक्ति को बढ़ाने वाला यह मास सबको भाता है।वर्षा ऋतु के अंत के साथ बरसाती बीमारियों का भी अंत होने लगता है।सूर्य की किरणों की कोमलता सबके मन को भाता है।इस माह में प्रातः-स्नान का बड़ा वैज्ञानिक महत्व है।धान,मकई मड़ुआ गुड़ जैसे स्वास्थ्य-बर्धक फसलों का आगमन घर में होने लगता है।इस माह में अनेक उत्तम व्रत एवं त्योहार मनाए जाते हैं। यों कहें कार्तिक मास त्योहारों का ही महीना है। धनतेरस, दीपावली , गोवर्धन पूजा भाई-दूज,दवात पूजा, चार दिवसीय छठ पूजा, गोपाष्टमी, देवोत्थान एकादशी , तुलसी विवाह इत्यादि अनेक उत्तम व्रत एवं त्योहार इसी महीने में मनाया जाता है।इस प्रकार कार्तिक महीने का हमारे जीवन में बड़ा ही महत्व है।यूँ कहें कार्तिक मास की महिमा अपरम्पार है।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, October 16, 2022

आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया

आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया

आमदनी है पाँच सौ,खर्चा करो हजार।
सोचो तेरे जेब की,कितना होगा भार।।

सदा पड़ोसी-दोस्त से,लेना होगा कर्ज।
कर्ज लेने वाले तुम,सदा रहोगे मर्ज।।

कुछ भी लेने के लिए,जाओगे बाजार।
नगद नदारद होयगा,लेना पड़ा उधार।।

अपनी जेब की जिसको,तनिक नहीं हो भान।
समय पड़े तो लोग से,लेना पड़ता दान।।

दिखावे हेतु जो सदा,बनते लोग अमीर।
उनका कहीं-ना-कहीं,लुटता सदा ज़मीर।।

धरा से पांव छोड़कर,उड़ते हैं आकाश।
मुसीबत लगती आ गले,खतरे आते पास।।

अपनी बड़ाई के लिए,करो न ऊंँची बात।
सब लोगों को ज्ञात है,क्या तेरी औकात।।

सुजाता प्रिय समृद्धि

वचन पालन


वचन पालन 
पिता ने बिटिया का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा -"बेटी ऐशु! मेरे बाद घर की पूरी जिम्मेदारी तुम्हारी है। मैंने यह घर सिर्फ तुम्हारे लिए बनवाया है।जीवन में कभी भी मेरा घर,अपनी कलम और पुस्तक का साथ मत छोड़ना।मेरे बाद ये तुम्हारा सहारा बनेगा।
वचन देते समय बारह वर्षीय बेटी यह पता नहीं था कि एक दिन बाद ही उसकी अनपढ़ मांँ और तीन छोटी बहनों की जिम्मेदारी उसके कोमल कंधे पर छोड़कर पिताजी सदा के लिए चले जाएँगे।बस एक ईश्वर,एक आराध्य और आधार के रूप में सदा उसके साथ रहेंगे।अब जीवन के छिनते आसमान रुपी पिता के साथ वैभव पूर्ण जीवन यापन करने वाली नन्हीं परी को जीवन आभाव भूख, गरीबी लाचारी में बीतने लगा।उसके कंधे पर चार लोगों की जिम्मेदारियां थी।वह कड़ी मेहनत करने लगी। पढ़ाई के पाठों को प्रत्येक पंक्ति और शब्द कंठस्थ करने लगी।इस प्रकार अपनी में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर पुरस्कृत होती गयी। पिता के घर में रह उनकी यादों में ‌मन में उत्पन्न भावों और विचारों को कोई सुनने वाला था बस उसके कागज कलम।मन के उफानों से उत्पन्न शब्दों के चमकीले मोतियों को पंक्तियों के धागों में पिरोकर काव्य-मालिका गूंथती और पिता के आशीर्वाद स्वरूप पुरस्कार प्राप्त करती।कवि सम्मेलनों में प्रतिभागिता, ओर महान् कवियों के सानिध्य एवं आशीर्वाद ने काफी प्रेरित किया। विद्यालय में प्रधानाचार्या और बैंक मैनेजर के रूप में कार्य रूपी तप करते हुए जननी तथा सहोदराओं की शिक्षा -दीक्षा और पाणिग्रहण संस्कार के  यज्ञ कर पिता को दिए गए वचन को पूरी सत्य एवं निष्ठा के साथ कर पूर्णाहुति दी।
              सुजाता प्रिय समृद्धि

Saturday, October 15, 2022

शिव पार्वती (चौपाई)

शिव पार्वती ( चौपाई )

बैठीे शिव-संग पार्वती माँ। 
हरती सबकी मूढ़ मती मांँ।।
हाथ जोड़कर भक्त खड़े हैं ।
नतमस्तक ले आस खड़े हैं।।
हे शिव-शंकर हे बम भोला।
आज आइए मेरे टोला।।
जग प्राणी के कष्ट मिटाने।
जग से सब संताप हटाने।। 
त्राहिमाम करता जग सारा।
चहुं ओर फैला अँंधियारा।।
हर-हर-हर भोले त्रिपुरारी।
सब संकट तुम हरो हमारी।।
दया करो तुम हे नागेश्वर।
हे शिव-शंकर, हे परमेश्वर।।
आती जग में विपदा भारी।
त्रस्त है जिससे दुनिया सारी।।
पीकर तूने विष का प्याला।
सारे जग का बन रखवाला।।
आज नाथ तू हमें बचा लो।
सारे दुख को दूर भगा दो।।
जमा करो अपराध हमारा।
भूल-चूक जो भी हो सारा।।
शिव भोले कि सुनो भवानी।
सारे जग की तुम हो रानी।
सुनो -सुनो हे शैल-किशोरी।
तुम तो मन की हो अति भोरी।। 
चल भक्तों की सुध-बुध लेने। 
सुख व समृद्धि उनको देने।। 
यह जग है मेरी ही माया।
हमने रची जीव की काया।। 
हमें इनकी है रक्षा करना।
इनके सब कष्टों को हरना।।

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, October 12, 2022

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (देव घनाक्षरी)


 
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

राज-दुलारी बेटियांँ,
  पिता को प्यारी बेटियांँ,
     माता को प्यारी बेटियांँ,
          चलती मटक-मटक।

घर-आँगन की शोभा,
  मायका की होती शोभा,
      ससुराल की भी शोभा,
           चलती छमक-छमक।

बेटी लक्ष्मी सरस्वती, 
  शक्ति माया व पार्वती,
       दुर्गा काली भगवती,
         मत तू इसको झटक।

बेटियों को बचाइए,
    मन से ना दुराइए,
        इसे खूब पढ़ाइए,
         जनम लेते ना पटक।

         सुजाता प्रिय समृद्धि

Friday, October 7, 2022

मैं तुम्हारी राज हूँ

मैं तुम्हारी राज हूँ

तुम मेरे सरताज हो और, मैं तुम्हारी राज हूँ।
तुम ही मेरे हमसफर हो, मैं तेरी हमराज हूँ।

तुम बसे मन में मेरे,कैसे यह बतलाऊँ मैं,
तुम दिल की धड़कनें,जिसकी मैं आवाज हूँ।

मन है करता तेरे संग,आसमां में उड़ चलूँ,
तुम जहां तक पर फैलाओ, मैं वहीं अंदाज हूँ।

तुम अगर हो साथ तो,डर नहीं मुझको कोई,
तुम मेरे रखवाले हो और,मैं तुम्हारी लाज हूँ।

सज रही महफ़िल यहांँ,गायकी के वास्ते,
तुम मेरी संगीत बन जा, मैं तुम्हारी साज हूँ।

हो रहा है गान अब, हम भी मिलकर गाएँंगे,
आ तू मेरी गीत बन जा, मैं तेरी आवाज़ हूंँ।

देखो अब सारे जहां में, प्यार का सम्राज्य है,
तुम यहांँ सम्राट बन जा, मैं तुम्हारी ताज हूंँ।

खुशनुमा लगता जहां है,जब तुम्हारा साथ हो,

एक -दूजे के लिए हम, ज़हान से टकरायेंगे,
तुम पे है अभिमान मुझको, मैं तुम्हारी नाज हूँ।

हम नहीं बिछड़े कभी,मन में ऐसी कामना,
संग मेरे हर कल रहोगे,संग तुम्हारे आज हूँ।

              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                 रांची, झारखण्ड

Thursday, October 6, 2022

जय माँ सिद्धिदात्री

जय मां सिद्धिदात्री

जय माता सिद्धिदात्री,आई  तेरे द्वार।
उड़हुल फूलों की बना,लाई हूँं मैं हार।।

मुझको माँ वरदायिनी,दे दो अपना प्यार।
बच्चों को तो चाहिए,माँ का प्यार- दुलार।।

मुझको माता अम्बिके,सिद्धि कर दे प्रदान।
दुष्ट ना आए पास माँ, दो निर्भय का दान।।

शुद्ध रहे अंतःकरण,सुंदर रहे विचार।
मन से हर दुर्भावना ,हर लो सभी विकार।।

हाथ जोड़ हे भगवती,करती हूँ प्रणाम।
पूर्ण कर मनोकामना,पूर्ण करो सब काम।

सब लोग का पाप हरो,कर दे माँ उपकार।
हम भलाई करें सदा,सुखी रहे संसार।

पापी दुराचारी के,हर लो सारे पाप।
सुख और समृद्धि रहे,आये ना संताप।।

      सुजाता प्रिय समृद्धि

Wednesday, October 5, 2022

निर्बल का बल


अत्याचार का अंत

दशहरे का समय था।श्रद्धालु गन माता की पूजा-पाठ में व्यस्त थे। दुर्गा मंडप में दुर्गा पाठ हो रहा था। फल-फूल ,माला तथा धूप- दीप से माता रानी का दिव्य मंडप आच्छादित था।कोई भी मनुष्य अनायास कलश तक जा कर पूजा-पाठ में बिघ्न ना डाले, इसके लिए मांँ की प्रतिमा के आगे बाँस का घेरा बना दिया गया था। फिर भी कुछ प्राणी ऐसे थे जिन्हें किसी प्रकार से रोका नहीं जा सकता था ।जैसे -चूहे,चीटियाँ आदि।वे जब चाहे पूजन सामग्री को गिरा देते, तोड़ देते,खा लेते तथा उठाकर ले जाते। प्रसाद चढ़ा नहीं कि चींटियों के दल ने हमलावरों की तरह आ घेरा। चूहों को फल उठाकर भागने की हड़बड़ी रहती। बताशे-मिश्री चींटियों को ज्यादा पसंद आती।कलश पर डाले गये अक्षत पर तो अपना एकाधिकार समझतीं। एक दिन की बात है चींटियों ने जब भर पेट भोजन कर लिया तो सोचा क्यों ना कुछ भोजन अपने घर भी ले जाऊंँ। लेकिन माता की पीढ़ी इतनी ऊँची थी कि चींटियों के लिए मुँह में वजन लेकर उतरना और अपने बिल तक ले जाना कठिन काम लग रहा था।अंतत: सभी चीटियों ने मिलकर विचार किया-क्यों ना हम चावल,मिश्री तथा बतासे के टुकड़ों को पहले पीढ़ी पर से नीचे गिरा दें फिर नीचे से उन्हें उठाकर बिल तक ले जाया जाएँ।यह सोंच चींटियों ने चावल को मुँह में पकड़कर नीचे गिराना शुरू किया। उनकी इस प्रक्रिया को एक चूहा बड़ी दिलचस्पी से देख रहा था।उसके मन में शरारत सुझी।उसने झट से चींटियों द्वारा गिराए गए चावल को उठाकर खा लिया। चूहे की इस हरकत से चीटियों को बहुत दुःख हुआ। लेकिन करे तो क्या ?बेचारी इस आस में चावल नीचे गिराती कि शायद चूहा चावल नहीं खाए।लेकिन चूहे को तो बहुत मजा आ रहा था ।आए दिन चूहा चीटियों को इसी प्रकार तंग करने लगा। बिचारी चींटियांँ भी कब तक सहन करतीं ? उसके अत्याचारों से परेशान होकर सभी चींटियों ने ले यह निर्णय लिया कि उस चूहे को सबक सिखाया जाए ।लेकिन अपनी तुलना उस भारी-भरकम शरीर वाले चूहे से कर घबरा उठीं। फिर भी अपनी रक्षा और न्याय लिए उन्हें कुछ तो करना ही ‌था।एक दिन कुछ विचार कर उन्होंने मंडप के नीचे चावल नहीं गिराया ।बस प्रसाद में चढ़ने बतासे और मिश्रियाँ खाती रहीं। चूहे ने जब देखा कि मंडप के नीचे चावल नहीं गिरा हुआ है तो उसके मन में जिज्ञासा जागी कि क्या चींटियांँ किसी दूसरे रास्ते से अपना भोजन ले जा रही हैं ? यह सोच वह मंडप पर चढ़ आया। उसने देखा कि माता की प्रतिमा के सामने चढ़ाये गये प्रसाद को चीटियाँं आराम से खा रही हैं। उसके मन में शरारत नाच उठा। उसने सोचा मैं इतना बड़ा हूंँ। आखिर ये छोटी चीटियांँ मेरा क्या बिगाड़ सकतीं हैं ? यह सोच उसने झट चींटियों द्वारा खाये जा रहे बतासों को उठा लिया।फिर क्या था। चींटियांँ तो इसी ताक में थीं ही।उन्होंने एक साथ चूहे पर हमला कर दिया।उसके भारी-भरकम शरीर पर चढ़कर उसे काटना शुरू किया।चूहा दर्द से छटपटाने लगा । गुस्से में चींटियों ने उसे इतना काटा कि उसके प्राण पखेरू उड़ गये। पूजा कर रहे पुरोहित जी  ने चूहे द्वारा चींटियों को परेशान करने और चींटियों द्वारा अपने अधिकारों और न्याय के लिए लड़ते देख माता के भक्तों से कहा जो कोई भी दुष्ट प्राणी माता के सामने उसके प्यारे जीवों को कष्ट देता है तो माता रानी अपने भक्तों को अत्याचारियों से लड़ने के लिए इसी प्रकार शक्ति प्रदान करती हैं।
माता रानी की जय🙏🙏🙏🙏🙏

दशहरा (मनहरण घनाक्षरी )



दशहरा (मनहरण घनाक्षरी )

बुरा पर अच्छाई की।
     झूठ पर सच्चाई की।
          हार पर विजय की।
                जीत है दशहरा।

दुर्गुण पर गुण की।
      अधर्म पर धर्म की।
         अज्ञान पर ज्ञान की।
                जीत है दशहरा।

घृणा पर सप्रेम की।
      विषम पर सम की।
        दुख पर समृद्धि की।
                जीत है दशहरा।

पापियों पर पुण्य की।
      छलावे पर क्षमा की।
        क्रोधियों पर शांति की।
                   जीत है दशहरा।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, October 3, 2022

महागौरी (मगही भाषा)



महागौरी (मगही भाषा)

महागौरी अइली अँगना वर देबे।
वर देबे मैया वर देबे।
महागौरी अइली......

चरण पकड़ियो तोहर मैया सबके आस पुरैहा।
भूल-चूक हमनी के मैया मन से तू बिसरैहा।
सबके दुखबा अइली मैया हर लेबे।
महागौरी अइली अँगना......

शुभ-सौभाग तू दिहा मैया धरती के जन -जन के।
सुख-संपत्ति दिहा मैया आस पुरैहा मन के।
हमनी के अचरबा में आशीष मैया भर देबे।
महागौरी अइली अँगना...........

निरमल मन से मांगियो मैया,तोहरा से सुबुद्धि।
तनी ने मन में आबे दिहा, दुर्गुण औ दुरबुद्धि।
दुरभावना नै मनमा में हमर घर लेबे।
गौरी मैया अइली.............
     सुजाता प्रिय समृद्धि

Sunday, October 2, 2022

सप्तम माँ कालरात्रि



जय मां कालरात्रि

सप्तम रूप शोभिता,शुभ भाव धारिणी।
जयंती जयप्रदा तथा मां कालरूपिनी।।

कालिके,काली कालरात्रि,काल कपालिनी ।
कालिका कपालिके रकतपुष्प मालिनी।।

दुष्ट दलनकारिनी सदा ही सिंहवाहिनी।
भयं रूप भयंकरी भूतादि भयहारिणी।।

महा स्वरुप महाप्रदा गृहे-गृहे निवासिनी।
ददाति दानरूपिनी दारिद्र- दुखहारिनी।।

तंत्र-मंत्र से समस्त प्राणियों को तारिनी।
महारुपेण महाज्वला नमामि विंध्यवासिनी।।

आद्याशक्ति महाशक्ति मूलप्रकृति विश्वजननी।
त्रिगुणात्मिका ब्रह्मस्वरूप नित्य सनातिनी।।

सर्वस्वरूपा,सर्वेश्वरी,सत्य परमतेजस्वरूपिनी।
सर्वपूज्या सर्वमंगलकारी सर्वमंगल दायिनी ।।

विनय विवेक ले सदा हो कपालधारिनी।
भूत-प्रेत मिले कभी लगे उसे डरावनी।।

सर्वाबाधा विनाशिनी सर्वा,सर्वास्त्रधारिनी।
सर्वतेजोमयी माते समस्त कार्य कारिनी।।

खड़ाखड़ाती खड्ग ले खड़ी खप्पर धारिनी।
तंत्र- मंत्र धारिनी, सर्वत्र सिद्धि कारिणी।।



              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, October 1, 2022

षष्ठम देवी कात्यायनी

कात्यायनी माता(-सायली छंद)

       भक्तों 
     जनों की 
जयकार गूंँज रही 
  कात्यायनी माँ
        आईं ।

       माता 
     के मंदिर 
में देखो  कितनी 
    है खुशियांँ 
        छाईं ।

     जग 
  में विचरण 
करती हैं माता 
  होकर सिंह 
     सवार।

   चंद्रहास 
  धारण कर 
आईं हैं देखो
  हाथ लेकर 
    तलवार।

    अपने 
  सेवक को 
देती हैं माता
  बल-बुद्धि 
     ज्ञान।

    अपने 
भक्तजनों को 
माता सदा ही 
   करती  हैं 
    कल्याण।

      जो 
  जन निर्बल 
निर्धन हैं उन्हें 
  बनाती हैं 
   धनवान।

      करती
     हैं अभय 
हम सबको देकर 
    दीर्घायु का
      वरदान।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, September 30, 2022

पंचम देवी स्कंदमाता



पंचम देवी स्कंदमाता

सृष्टि की रचनाकर आओ हे स्कंदमाता।
नमन बारम्बार तुम्हें कार्तिकेय की माता।

तुम ही हो माँ बल-बुद्धि- विद्या स्मृति।
तेरे ही आशीष से माता,हम पाते हैं कीर्ति।

तुमसे समस्त सृष्टि में माँ आती है गति।
तेरी कृपा से ही पाते हैं हम मूढ़ सुमति।

तुम ही श्रद्धा तुम ही हो माता परम दयालु।
अपने भक्तों पर माता रहती तुम कृपालु।

तुम ही क्षमा तुम हो क्षुधा- तृष्णा- सज्जा।
तुम ही श्रद्धा -सुधा,रखती जन की लज्जा।

तुम ही में संसार समाया ,तुम ही से है शक्ति।
तुम्हारी पूजा सब जन करते मन में रख भक्ति।

तेरे मुखड़े पर शोभित है मातृत्व की कांति। 
उद्वेलित मन में तुम लाती हो माता शांति।

संसार की रानी तुम ही,हे जय जगदंबा माता।
तेरा आलोक सभी जनों को है राह दिखाता।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
जय माँ अम्बे,जय जगदम्बे,🙏🙏

Thursday, September 29, 2022

चतुर्थ देवी कूष्माण्डा माता

कुष्मांडा माता (कविता)
अष्ट भुजाओं वाली कुष्मांडा माता!
तेरी जय हो, जय हो, जय हो। 
करती है तुम सिंह सवारी माता!
तेरी जय हो,जय हो,जय हो।

चतुर्थ रूप यह तेरा मैया सब लोगों को है भाए। 
मुख मंडल पर दिव्य आलोक सदा ही सुख पहुंचाए।
उत्साह उमंग भरने वाली माता !
तेरी जय हो,जय हो, जय हो।

हाथों मैं है धनुष,बाण और गदा, चक्र।
कमंडल, कलश,कमल-पुष्प माला प्रवर। 
सबको देती वरदान तू माता ! 
तेरी जय हो,जय हो,जय हो।

विविध प्रकार फल भोग लगाएंँ हे कुष्मांडा माता।
शुद्ध मन से करें आराधना तुम ही हो सुख दाता।
मनोवांछित फल प्रदान तू करती माता।
तेरी जय हो,जय हो,जय हो ।

भक्त जनों पर सदा ही तेरी रहती कृपा दृष्टि।
तुम ही हो माँ जगत जननी रचने वाली सृष्टि।
तुम संसार चक्र चला जग प्रकाशित करती माता।
तेरी जय हो,जय हो,जय हो।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, September 27, 2022

माँ चंद्रघंटा (कृपाण घनाक्षरी)

मांँ चंद्रघंटा (कृपाण घनाक्षरी )

बात बहुत है गूढ़,
     पक्षिप्रवर गरूड़,
         पर होकर आरूढ़,
             माँ चंद्रघंटा घूमतीं।

आतीं हैं घर आँगन,
      देतीं हैं सुख-साधन,
            आपदा का निवारण,
                 दुःख सभी का सुनतीं।

करें हम आराधना,
      त्रि दिवस उपासना,
         शक्ति रूप की साधना,
               हो प्रसन्न माँ झूमती।

आद्याशक्ति दुर्गा माता,
      जग भर में विख्याता,
             शक्ति-संपत्ति दाता,
                 भक्तों को न भूलती।

               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

जय मैया चंद्रघंटा

जय मैया चंद्रघंटा

भैया चंद्रघंटा का रूप,तेरी महिमा अगम अनूप।
चाहे रंक धनी या भूप,सबको भाए तेरा रूप।
मैया चंद्रघंटा..........
पक्षिप्रवर गरूड़ पर आरूढ़ जग में विचरण करती।
उग्र कोप और रौद्र रूप में सबका चिंतन करती।
अपने भक्तों के अनुरूप,सबको भाये तेरा रूप।
मैया चंद्रघंटा.............
त्रिशूल गदा तुम हाथ में लेकर सबकी रक्षा करती।
जल में ठंडक,आग में गर्मी,तुम ही माता भरती।
विभिन्न रुप में शक्तिरूप,सबको भाये तेरा रूप।
मैया चंद्रघंटा..........
मुझ पर भी तुम दया करो मां,मैं भी तेरी बिटिया।
कभी तो मेरी सुध- बुध लेने, आओ मेरी कुटिया। 
तुम हो ममता का स्वरुप,सबको भाये तेरा रूप।
मैया चंद्रघंटा .................
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                    स्वरचित

द्वितीय माता ब्रह्मचारिणी (हाइकु)

माँ ब्रह्मचारिणी (हाइकु)

   ब्रह्मचारिणी 
माँं धारण करती 
   नथ-कुण्डल।

    कर कमलों
में अक्ष माला और
   है कमण्डल।

   वेद-पुराण 
उपनिषद  और 
 सभी ग्रंथों में।

   माँं की महिमा 
का विवरण लिखा 
   सब संतों ने।

 शक्ति-सृष्टि की 
मूल नाड़ी-चेतना 
   सर्वव्यापी है।

  दुर्गा माता की 
उपासना प्राचीन 
  व अनादि है।

   महाशक्ति मांँ
परमात्मा रूप में 
  अति सुशीला।

   विभिन्न रुप 
धर कर हैं करती 
  विविध लीला।

 मांँ आदिशक्ति 
परम  महाशक्ति 
  हैं दया शक्ति।

  ब्रह्म रूप में 
विचरण  करती 
 हैं माया शक्ति।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, September 26, 2022

मैया शैलपुत्री (मगही भाषा)

मैया शैलपुत्री (मगही भाषा)

हे शैलपुत्री मैयाजी तोहर महिमा अपरम्पार।
भक्तन के भीड़ देखा मैया,लगल है तोहर द्वार।

आधा चंदा के माथा पर तू धारण कैली मैया।
भोला बाबा ऐसन वृषभ सवारी तू कैली मैया।
शूल धारिणी मैया तोहर रूप के सभे निहार।
भक्तन के भीड़ देखा.............
अखिल व्रह्माण्ड के उत्पन्न तू ही कैली मैया।
चराचर जगत के पालन करे वाली तू ही मैया।
आदि शक्ति दुर्गा मैया, रूप में बड़ी निखार।
भक्तन के भीड़ देखा............
लक्ष्मी-सरस्वती,राधा-सीता,सब है तोहर रूप।
महामाया-माया, प्रकृति विद्या-अविद्या,आदि-अनूप।
जगदीश्वरी, महेश्वरी, परमेश्वरी नाम तिहार।
भक्तन के भीड़ देखा..........
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, September 25, 2022

बेटियांँ (दोहे)


बेटियाँ (दोहे )

बेटियों से दुर्भावना, क्यों करते हैं लोग।
जन्म लेते ही बेटियांँ,लगती कोईर्रट रोग।

बेटी रखती मान है, दोनों कुल-परिवार।
जग वालों को बेटियांँ, फिर लगती क्यूँ भार।

बेटियांँ भी होती है,मात-पिता का अंश।
फिर बेटी को देखकर, क्यों है मारे दंश।।

क्यों बेटी को देखकर, चुभता मन में शूल।
बेटी तो परिवार की, होती कोमल फ़ूल।।

बेटी लक्ष्मी -शारदा, दुर्गा की अवतार।
पढ़-लिख देखो बेटियांँ,कर रहीं रोजगार।।

बेटियाँ भी होती हैं,अपनी ही संतान।
उसको भी हमने जना, दिया  न कोई दान।।

पढ़ा लिखा काबिल बना,दो इसको सम्मान।
बिटिया हमको है दिया, ईश्वर ने वरदान ।।

बेटियों के विवाह में,लेते लोग दहेज।
बेटी पा न खुश रहते,रखते नहीं सहेज।।

बेटी को ना मानिए,कभी मही पर भार।
बेटी से घर शोभता, शोभित है संसार।।

बेटियों से होते हैं,जीवन का कल्याण।
कल की जननी है सुता,तू बात हमारी मान।।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, September 22, 2022

शांति की राह

शांति की राह

आशा का दीप जलाना है,
मानवता का पाठ पढ़ाना है।
जन को जन से मिल्लत हेतु,
शांति की राह बनाना है।

हम रहें आपस में मिल कर,
ना झगडे़ और फसाद करें।
झूठी अकड़ दिखाने को,
ना अपना धन बर्बाद करें।
जो अज्ञानी और बुजदिल हैं,
उन सबको यह समझाना है।
जन को जन से............
हम शांति से विचार करें,
हर प्राणी का अधिकार यहांँ।
हम करें नहीं अधिकार हनन,
हमें करना है उपकार यहाँ।
वे जन होते हैं महान बहुत,
जिन्होंने यह प्रण ठाना है।
जन को जन से..........
आपस के सारे झगड़े को,
हमको करना है निपटारा।
हम मिलकर ऐसा न्याय करें,
रहे ना कोई जन बेचारा।
हर मानव का सम्मान रहे,
हमें समता को अपनाना है।
जन को जन से..........

सजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, September 21, 2022

शिकायत



विषय -     शिकायत

किससे करूँ शिकायत,
             क्यूँ कर करूँ शिकायत।
शिकायत नहीं है करना, 
                मिलती रही हिदायत।

शिकायत तुझे है जिससे,
                वह कर्म ना करो तुम।
खुद को सुधारने का,
              यह मर्म चित धरो तुम।
शिकायत किसी की करना, 
              है आदत बुरी निहायत।
शिकायत नहीं है करना,
                मिलती रही हिदायत।

शिकायतों के कारण,
               जन ! जन से दूर होते।
अपनी बनाई गरिमा, 
              इज्ज़त भी आप खोते।
शिकायत अपनी सुन जन,
                करते  नहीं  रियायत।
शिकायत नहीं है करना, 
                मिलती रही हिदायत।

               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, September 19, 2022

इंद्रधनुष

इंद्रधनुष

इंद्रधनुष है छाया,
    मन में उमंग लाया,
       सबका मन लुभाया,
              देख रहे लोग हैं।

सात रंग हैं इसके,
    लोग दीवाने जिसके,
       थोड़ी देर में खिसके,
              ये कैसा संयोग है।

जीवन में हुलास है,
     मन में यही आस है,
          जीवन रंग पास है,
              मिटे शोक-रोग है।

जीवन में सात रंग,
     चल रहा संग-संग,
         भर जाएगा उमंग,
               सुंदर ये भोग है।

          सुजाता प्रिय समृद्धि

पितरों का आशीष

पितरों का आशीष (मनहरण घनाक्षरी )

पितृपक्ष चल रहा,
    दिन-दिन टल रहा,
       समय निकल रहा, 
          तर्पण तो कीजिए।

कीजिए आप तर्पण,
    पितरों को दे अर्पण,
       फल-फूल समर्पण,
           प्रसन्न हो कीजिए।

तृप्त हो पितृलोक,
    मिटाते हैं रोग-शोक,
       बढ़ा जीवन आलोक,
           श्रद्धा भाव दीजिए।

होकर अति प्रसन्न,
    पितर मन-ही-मन,
        देते अन्न-धन-जन,
          आशीष तो लीजिए।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, September 18, 2022

हिन्दी कविता (सायली छंद )

हिन्दी कविता ( सायली छंद )

     हिन्दी              हिन्दी
की कविताएंँ       कविता में 
बहुत सरल है    मधूरता का है 
समझना भी       अद्भुत रस
   आसान              शृंगार 

     सरल              ‌     इसी 
    रूप   के             कारण से
कारण ही इसको   कविता प्रेमी हैं 
   मिलता है           करते इससे 
    सम्मान ।              प्यार।

        हर                 हिन्दी
   कविता के          की कविता
अलग-अलग हैं   सम्पूर्ण जगत में 
    सदा होते         रखती अपनी
       रूप।                 शान।

        छंदों                हिन्दी 
     में चौपाई          की कविता 
दोहे-सोरठा-रोला  साहित्य क्षेत्र में 
    इसके रूप           रखती है 
       अनूप।             पहचान।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, September 16, 2022

पाती ढाई आखर की

पाती ढाई आखर की

ढाई आखर की पाती लिखकर,
            भेजूँ तुझको ओ हरजाई।
लिख निर्मोही कब आओगे,
           समझ न पाते प्रीत पराई।

इस ढाई आखर में छिपे हैं,
          जाने कितने कोमल भाव।
तेरे मन में मोल न इसका,
          भूल गए तुम खाकर ताव।
व्याकुल मन ये तड़प रहा है,      
              डस रही है यह तन्हाई।
लिख निर्मोही कब आओगे,
           समझ न पाते प्रीत पराई।

बहुत पढ़ें तुम पोथी-पुस्तक,
              पढ़ें ना ढाई आखर को।
गागर का तुम मोल न जाने,
                 ढूंढ रहे हो सागर को।
निज विरह में तड़पाते हो,
          तूने यह कैसी प्रीत लगाई।
लिख निर्मोही कब आओगे,
           समझ न पाते प्रीत पराई।

ढाई आखर में समाया,
           प्रेम,प्रीत और प्यार सुनो।
ढाई आखर में समाया,
             जीवों का व्यवहार सुनो।
देख हुआ व्याकुल मन मेरा,
     चंचल चितवन ने ली अंगड़ाई।
लिख निर्मोही कब आओगे,
           समझ न पाते प्रीत पराई।

          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

आशा का दीप जलाए रखना

आशा का दीप जलाए रखना

मन में विश्वास जगाए रखना।
आशा का दीप जलाए रखना।

माना तुझे असफलता मिली है।
जो तुम चाहे वो गुल ना खिली है।
मन का प्रसून खिलाए रखना।
आशा का दीप जलाए रखना।

विफलता भी तो होती वरदान है।
सफलता की राह करती प्रदान है।
मन के कोने को सजाए रखना।
आशा का दीप जलाए रखना।

आशा  जीवन का एक अंग है।
जीवन भर आशा चलती संग है।
हृदय में यह बात बसाए रखना।
आशा का दीप जलाए रखना।

अंत समय तक आस न खोना।
शायद लिखा हो सफल होना।
अंत तक आस लगाए रखना।
आशा का दीप जलाए रखना।
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, September 15, 2022

शिव दोहे



शिव ( दोहे )

शिव देवों के देव हैं, चरणों में प्रणाम।
हर-हर,शिव-शिव बोल ततू,जपते जाओ नाम।।

सबका ये संकट हरे,सब के पालनहार।
जग वालों पर हैं सदा, करते वे उपकार।।

मस्तक पर है चंद्रमा,जटा गंग की धार।
बाघम्बर ओढ़े वदन,गले सर्प की हार।।

एक हाथ त्रिशूल है, कमण्डल दूजे हाथ।
नत्मस्तक होकर सदा, भक्त झुकाते माथ।।

मंदिरों में विराजते, गौरी मांँ के संग।
सारा जग हैं घूमते,चढ़ बसहा के अंग।।

खाते सदा भांग चबा, लगाते हैं विभूत।
कार्तिक और गणपति हैं, दोनों इनके पूत।।

नंदी जिनके साथ हैं, भक्ति भाव के रूप।
मिले न ऐसा भक्त कभी,अनुपम रूप -अनूप।

शिव के कर में शोभता,सोने का त्रिशूल।
शिव शंकर संहारक हैं,यह मानव की भूल।

आपकी ज्योति पुंज से,जगमग है संसार।
ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं, महिमा  अपरम्पार।

इनके चरणों में सभी,सदा नवाओ माथ।
रहते अपने भक्त के,हर पल शंकर साथ।।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, September 14, 2022

मेरे इस नन्हें से दिल को

मेरे इस नन्हें से दिल को 

साजन तूने खूब सताया, मेरे इस नन्हें से दिल को।।
कैसा है तू समझ न पाया,मेरे इस नन्हें से दिल को।।

विरह में तेरे तड़प रहा है,होकर कितना व्याकुल।
तुझसे दूर न रह पाएगा,कहता है होकर आकुल।
ओ निर्मोही!खूब तड़पाया,मेरे इस नन्हें से दिल को।।

तड़पाना ही तुझे अगर था,फिर क्यों प्रीत लगाए ?
सोया था यह करवट लेकर,क्यों कर इसे जगाए ?
ना जाने तुम क्यों भाये थे,मेरे इस नन्हें से दिल को।।

संग ना रख पाया पल भर,तन्हा इसको छोड़ें क्यों?
प्यार में तेरे दीवाना था,टुकड़े- टुकड़े तोड़े क्यों?
इधर-उधर क्यों कर बिखराया,मेरे इस नन्हें से दिल को?

दिल मेरा इक छोटा पंछी,इत-उत थोड़ा उड़ता था।
अभी फुदकना ही सीखा था,ना कहीं वह मुड़ता था।
क्यों फांँसने को जाल बिछाया,मेरे इस नन्हें से दिल को ?

दाना डाला था इसे दिखाकर,गया बेचारा लालच में।
दो-चार दाने ही चुग पाया,फँसा जाल के आनन में।
धोखे देकर तूने फँसाया,मेरे इस नन्हें से दिल को।।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

हिन्दी (कृपाण घनाक्षरी)

हिन्दी (कृपाण घनाक्षरी )

हिन्दी हमारी शान है।
देश की पहचान है।
इसी से अभिमान है।
इसे मान बढ़ाइए।

हम हिन्दी में बोलते।
बोली में मिश्री घोलते।
हर भाषा से तोलते।
हिन्दी को अपनाइए।

सभी जनों को भाती है।
समझ जल्दी आती है।
नयी उमंग लाती है।
इसे मन बसाइए।

सब भाषा में प्यारी है।
लगती कैसी न्यारी है।
जैसे फूलों की क्यारी है।
बात तो मान जाइए।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, September 9, 2022

गुरु (दोहे)

गुरुजी देते हैं हमें, विद्या- बुद्धि व ज्ञान।
उनसे से हम  सीखते,साहित्य,व-विज्ञान।।

लक्ष्य-प्राप्ति के लिए, बतलाते हैं राह।
बिना गुरु के जीवन में, मिलता है ना थाह।।

अनगढ़ माटी शिष्य हैं, गुरु होते कुम्हार।
गढ़ते रख कर चाक पर,देत सुगढ़ आकार।।

पाते गुरु से ज्ञान हैं,मन में उच्च विचार।
गुरु ज्ञान के सागर हैं, करें ज्ञान विस्तार।।

गुरु अपने आदर्श से,देते सबको ज्ञान।
गुरु के गुणों को अपना,बनते लोग महान।।

शिक्षा की प्रसाद को पा,बन जाते गुणवान।
शिक्षक के गुण को अपना,बनते गुण की खान।।

गुरु ज्ञान की ज्योत जला, देते हमको ज्ञान।
प्रकाश देना ज्ञान का, शिक्षक की पहचान।।

चरण कमल में सिर नवा, गुरु को करें प्रणाम।
प्रथम देव गुरु आप हैं,मुख में जपते नाम।।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, September 6, 2022

करमा पूजा

करमा पूजा गीत (मगही भाषा)

आज सुदिन हइ करमा वरतिया,
लाइ दा हो भैया करमा के डालिया।

कैसे हमें लइबै बहिन करमा के डालिया,
नदिया में बहिन दोनो कुल पनिया।

नदिया में नाविक खेबै नैया,
ओही पर चढ़ भैया पार उतरिहा।
लाइ दा हो भैया करमा के डालिया।

लेलन सभे भैया कान्धे कुलहड़िया,
लाइ देलन भैया करमा के डालिया।

युग-युग बढ़े भैया तोहरी उमरिया,
भौजी के भैया बढ़े अहिवतिया।

लाई दा हो भैया .........

       सुजाता प्रिय समृद्धि
          स्वरचित

Monday, September 5, 2022

जय श्रीराम (दोहे)

जय श्रीराम

दशरथ जी के लालना,राम बड़े थे वीर।
जीवों पर करते दया,लड़ने में रणधीर।

मझली मांँ ने द्वेष से, दिलवाया वनवास।
पिता आज्ञा पालन को,धर मन चले हुलास।

मातु-पिता और गुरु के,चरणों में रख शीश।
गुरु जन को प्रणाम कर, लेकर वे आशीष।

लघु-भ्राता लक्ष्मण जी,जोड़ कर दोनों हाथ।
बोले भैया आपके, मैं भी चलता साथ।

त्याग राजसी वस्त्र को, पहने वलकल अंग।
माता सीता भी चली, ख़ुश हो उनके संग।

वन-वन भटके साथ वे, खाते मूल और कंद।
छोटी-सी कुटिया बना,रहते ले आनन्द।

कपटी रावण ले गया, सीता को हर साथ।
एक न माना वह उनकी, रोकर जोड़ी हाथ।।

विकल हो तब राम लखन,ढूंढे चारो ओर।
लेकिन सीता का वहाँ,मिला न कोई छोर।।

घायल जटायु तब मिला, बतलाया यह बात।
सीता के गहने दिखा, जोड़े दोनों हाथ।।

वानर सेना ले बढ़े, प्रभु लंका की ओर।
रावण से जाकर किया, युद्ध बड़े घनघोर।

सीता को ले पहुंचे, साथ अयोध्या धाम।
नगर वासी खुश होकर,जपे राम का नाम।।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'



                 सुजाता प्रिय'समृद्धि'
                   स्वरचित, मौलिक

Sunday, September 4, 2022

शिक्षक

                                 शिक्षक
                            ऐसे शिल्पकार
                     जो मंदिर उठाते ज्ञान के।
    शिक्षक   ऐसे   काष्ठकार जो , द्वार  बनाते   ज्ञान  के।      शिक्षक   ऐसे   मूर्तिकार जो,  मूरत बनाते   ज्ञान  के।
    शिक्षक   ऐसे   बुनकर हैं जो, वस्त्र  बनाते  ज्ञान  के।
    शिक्षक   ऐसे   स्वर्णकार जो, गहने  गढ़ते   ज्ञान  के।
    शिक्षक   ऐसे   माली हैं जो , फूल खिलाते  ज्ञान  के।
    शिक्षक   ऐसे   पंडित हैं जो , पूजन करते   ज्ञान  के।
    शिक्षक   ऐसे   त्रृषि-मुनि हैं जो, दीक्षा देते  ज्ञान  के।
    शिक्षक   ऐसे   दीपक हैं जो,ज्योत जलाते  ज्ञान  के।
    शिक्षक   ऐसे   मार्गदर्शक जो,राह दिखाते  ज्ञान  के।
    शिक्षक   ऐसे   अनुगामी जो,लक्ष्य दिलाते  ज्ञान  के।
    शिक्षक   ऐसे   रक्षक हैं जो,रक्षक हैं बनते  ज्ञान  के।
                          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                     स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
                  समस्त शिक्षकों को सादर समर्पित

Saturday, September 3, 2022

एकता और अखंडता का रूप हिंदी

एकता और अखंडता का रूप हिंदी

देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी भाषा की जननी संस्कृत भाषा है।या यूँ कहें हिन्दी  संस्कृत भाषा का ही सरल रूप है।यह एक वैज्ञानिक भाषा है।इस भाषा में कोई उच्चारण दोष नहीं है।इस भाषा को लिखने में स्वरों के मेल के लिए वर्ण नहीं अपितु मात्राओं को प्रयोग में लाया जाता है।संस्कृत हर भाषा की जननी है तो हिन्दी सभी भाषाओं का प्रतिनिधित्व करती है।यह सहजता से समझी और सीखी जाने वाली सरल भाषा है।इसके हर अक्षर और अक्षरों के योग से निर्मित शब्दों में जो माधुर्य है वह किसी अन्य भाषा में नहीं। सच माने तो हिन्दी हमें एकाग्रता के साथ-साथ एकरूपता और अखण्डता  का भी पाठ पढ़ाती है। हिन्दी भारत की हर क्षेत्रिय भाषी लोगों को सहजता से समझ आती है। मान्यता यह भी है कि भारत में हजारों क्षेत्रीय भाषाओं की बोली प्रचलित हैं। हर कोश की दूरी पर भिन्न -भिन्न शब्द और उनके अलग-अलग अर्थ हैं जिन्हें दूसरे क्षेत्र के लोगों को समझना कठिन था ।इसलिए सभी भाषाओं को मिश्रित कर सरल भाषा 'हिंदी' का निर्माण हुआ और उसी भाषा को राजकीय और प्रशासनिक कार्यों में प्रयोग किया जाने लगा।इस प्रकार हिंदी देश की जन- भाषा के रूप में विकसित हुई और इसी कारण से हमारी हिन्दी भाषा को हमारे देश की राष्ट्रीय भाषा बनने का गौरव प्राप्त है।
भारत के हिन्दी साहित्यकार गण हिन्दी भाषा में अपनी बेजोड़ साहित्यिक सृजन कर इस भाषा को लोकप्रिय बनाते हुए 'समृद्धि' की ओर ले जाने का अथक प्रयास कर रहे हैं। इस भाषा में साहित्यारों 'द्वारा लिखे गए  लेख, निबंध, नाटक, कहानी, कविता, उपन्यास इत्यादि काफी सुंदर, सार्थक ,प्रेरक और आकर्षक होते हैं।
इस भाषा को विस्तार देने एवं समृद्ध बनाने में हमारे देश के फिल्म- जगत का योगदान भी सराहनीय है ।जो बड़े-बड़े फिल्म -उद्योग चलाकर देश-विदेश में हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार करने का प्रयास कर रहे हैं ।विदेशों में लोग भी बड़ी तन्मयता से  हिन्दी फिल्म देखते और पसंंद करते हैं।एक दिन ऐसा भी आएगा जब देश-विदेश में बोली जाने वाली हमारी हिन्दी सम्पूर्ण जगत में लोकप्रियता को प्राप्त कर अपना उच्च और श्रेष्ठतम स्थान प्राप्त करेगी। हिन्दी साहित्यकार इसे शीर्ष स्थान पर पहुंचाने के लिए सतत प्रयत्नशील हैं।एक दिन हमें यह सफलता प्राप्त हो कर ही रहेगी, ऐसा हम अपने मन में दृढ़ विश्वास लेकर निरंतर प्रयास कर रहे हैं। हमारी हिन्दी भाषा जल्द ही अखण्ड भारत का निर्माण कर  सम्पूर्ण जगत में अपना अलग पहचान बनाकर रहेगी।
       जय हिन्द,जय हिन्दी।
  🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
         मौलिक रचना

Friday, September 2, 2022

हिन्दी (दोहे)

हिंदी (दोहे)

सरल भाषा हिन्दी का,सदा करें सम्मान।
हिंदी में सब बोलिए, रखिए इसका मान।।

हिंदी देश की बिंदी, अद्भुत है श्रृंगार।
इस भाषा के प्यार को, जान रहा संसार।।

हिन्दी से हिन्दवासी,पाते हैं पहचान।
इस भाषा को बोलिए, मन में रखकर शान।।

इसके जैसी जगत में,नहीं है भाषा एक।
चाहे इसको परख लो,जग में नजरें फेंक।।

जो जन बोले प्रेम से,इस भाषा में बोल।
बोलने में मधुर लगे,जैसे मीठा घोल।।

हिन्दी में जो बाचते,गीता-वेद-पुराण।
उससे ना संसार में, ना है जीव महान।।

हिन्दी को बस मानिए, ईश्वर का उपहार।
इस भाषा को हर घड़ी, मिलता जाता प्यार।।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'


Thursday, September 1, 2022

हिंदी भाषा (सायली छंद)

हिंदी भाषा (सायली छंद)

  राष्ट्रीय                     बड़ी 
भाषा हिंदी             गतिशील है 
का हम सब          यह भाषा हिंदी 
मिल  मान             इसकी लिपि
  बढाएंँगे                    सुंदर

   सारी                     बहती 
भाषा छोड़             नदियों की
कर हम सब          धारा - सी  है
 हिंदी को               गति इसके
अपनाएंँगे                 अंदर

    देश                     इस
  में बोली               भाषा में 
यह जाती है         एक  रूपता है 
 जनता की            बहुत सुंदर 
   प्यारी                    भाषा

   सुत्र                    रहती
है सम्पर्क             थी अँग्रेजों
की लगती तो       को  भी  इसे
 कितनी  यह        बोलने   की
     न्यारी।            अभिलाषा 

    भाषा                 भावों 
का मूलाधार      की अभिव्यक्ति 
चक्र है  यह       सरलता से इसमें 
अक्षर इसके           हो पाती
    अच्छे                    है

   देवताओं                  इसी
   को प्यारा             कारण यह 
यह लिपि है     भाषा तो देवनागरी 
सत्य सनातन       लिपि कहलाती
   सच्चे                      है

        सुजाता प्रिय समृद्धि

कवि और कविता (मन हरण घनाक्षरी)



कवि और कविता (मनहरण घनाक्षरी)

कविता लिखते हैं कवि,
दिखती है प्यारी छवि,
चमकता जैसे रवि,
सुर-लय-छंद में।

पिरोते भावों के मोती,
दिखा साहित्य की ज्योति,
साहित्य के बीज बोती,
स्वरों के छंद में।

बनाते माला शब्दों के, 
लेखन प्यारे पदों के,
प्यारे औ न्यारे पद्यों के,
कुछ है स्वछंद में।

सजाते कागज की क्यारी,
लिखते कविता प्यारी,
सभी लेखों से न्यारी 
सरल बंध में 
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, August 21, 2022

तोहरा बारम्बार प्रणाम जी (मगही भाषा)



तोहरा बारम्बार प्रणाम जी
        (मगही भाषा)

भारत के स्वतंत्रता सेनानी तोहरा बारम्बार प्रणाम जी।
तोहरे चलते आज भारत के आजाद देश के नाम जी।

जान हथेली पर ले के दुश्मन से तू लड़ गेला।
बांध माथा पर कफन आंदोलन में पड़ गेला।
नै बुझला तू दिन-रात,ना बुझला तू शाम जी
तोहरे चलते आज भारत के आजाद देश के नाम जी।

देशबा लगी जान गवैला,तोहनी बड़ा महान।
तोहर लोहा मानs हकै समूचे हिंदूस्थान ।
तू भारत के हनुमान हा, औ तू ही हा राम जी।
तोहरे चलते आज भारत के आजाद देश के नाम जी।

हे भारत के वीर सुपुत्तर,तोहरा पूजूं देव समान।
भारत के सब जन के मन तोहरा लागी है सम्मान।
तू ही देश लगी कैला, पहलवानी के काम जी।
तोहरे चलते आज भारत के, आजाद देश के नाम जी।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, August 20, 2022

नशा शराब में होती तो

नशा शराब में होती तो

नशा शराब में होती तो नाचती बोतल ।
ठुमकती शराबियों संग झूमती बोतल।

शराब से भरी रहने पर उसकी हिफाजत है।
खत्म होते ही फेंकी जाती यही हिदायत है।
शराब खत्म होने पर भी घर में होती बोतल।

हो सके तो नशा का भूत मन से निकालो।
होश ना गंवाओ,अपने मन को संभालो।
शराब से भरकर कभी होश न खोती बोतल।

जब बोतल मदिरा से लबालब भरी होती ।
जागती खाली में और खाली में सदा सोती।
भरी में जागती और खाली में सोती बोतल।

फिर,शराबी क्यों झूमते हैं शराब को पीकर।
तड़प -तड़प कर और घुट-घुट जीकर।
खुश हो खिलखिलाती, तड़प कर रोती बोतल।

जिन्हें न फिक्र जीवन की नशा गले लगाते हैं।
नशा कर बीवी बच्चों पर सितम कितना ढाते हैं।
हैवानियत शराब में होती तो इमान खोती बोतल।

नशा मनोरोग है भाई!नशा कर पागल ना बनो।
नशा कर कभी भी निज तन- मन घायल ना करो।
शराब से भरी रहने पर तो घायल होती बोतल।

नशा कर तू कभी अपनी होश ना गवाओ जी।
कभी हाथ ना लगाओगे यह कसम खाओ जी।
बेहोशी शराब में होती तो बेहोश होती बोतल।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, August 19, 2022

जन्माष्टमी (हाइकु)

जन्माष्टमी (हाइकु)

   मंगल गाओ 
आज है शुभ दिन 
  शुक्ल अष्टमी 

  खुशी मनाओ 
कृष्ण जनम लिए 
   है जन्माष्टमी ।

     बाल रुप में 
हरि विष्णु जी लिए 
      हैं अवतार ।

    कर कमलों 
को जोड़कर मेरा 
   है नमस्कार।

    भक्त वत्सल 
हैं यशोदा के लाल 
     कृपा करते।

   भक्त जनों के 
संकट हारी स्वामी 
     दुःख हरते।

 जो चरणों में 
नमन है करता 
 सच्चे मन से।

 उनकी बाधा
हर लेते केशव
 हैं जीवन से।

  जब आतीं है 
बाधाएँं भक्तों पर 
  दौड़े हैं आते।

  पल भर में 
बाधाएंँ हैं हरते
 मन मुस्काते।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 18, 2022

यशोदा के लाल



यशोदा के लाल (मनहरण घनाक्षरी)

मोर मुकुट है माथ,सोने का कंगन हाथ,
तन पीताम्बर गाथ,गले बैजन्ती माल।

गोपियों को है बुलात,बांँसुरी रोज बजाता,
मीठी धुन है सुनाता,बैठ कदम डाल।

गैया को है चराता,और माखन चुराता,
खाता और खिलाता,करता है बबाल।

करता है खटपट, लड़ता है झटपट,
बड़ा ही है नटखट,यशोदा तेरा लाल।
         सुजाता प्रिय समृद्धि

बाल श्रीकृष्ण के अलौकिक कार्य

जय माँ शारदे
बाल श्रीकृष्ण के अलौकिक कार्य

 नटखट श्रीकृष्ण बाल रुप से ही लीला रुपी बाल  सुलभ कर्म दिखाने लगे थे।एक बार माता यशोदा ने मिट्टी खाते हुए उन्हें टोका-फिर मिट्टी खायी तूने ?उन्होंने ना में सिर हिलाया। माता ने परीक्षण हेतु कहा -मुँह खोलो। जब श्री कृष्ण ने अपना मुंँह खोला तो उनके मुँह में संपूर्ण ब्रहमांड देखकर माता यशोदा से चकित रह गई ।
जब श्री कृष्ण घुटने और पंजे के बल चलने लगे तो माता यशोदा इस डर से कि वह बाहर ना चला जाए उन्हें डोरी के सहारे ओखली में बाँंध दिया। लेकिन श्री कृष्ण ओखली के साथ खिसकते हुए जंगल जा पहुंचे जहांँ नारद द्वारा शापित दो ऋषि वृक्ष रूप में पास-पास खड़े थे। कृष्ण उन वृक्षों के बीच से घुसकर चले गए तो ओखली दोनों वृक्ष के तने में अटक गई। बालक श्रीकृष्ण ने ओखली इतनी जोर से खींची की दोनों वृक्ष ही उखाड़ गए और दोनों ऋषि शाप मुक्त हो मानव रूप को प्राप्त किए।
एक बार बालक श्रीकृष्ण माता यशोदा से हट कर बैठे -मांँ ! मुझे चंदा दे दो मैं उससे गेंद खेलूंगा। उनके हठ से परेशान यसोदा माँ ने उन्हें बहलाने हेतु थाली में पानी रख उसमें चंद्रमा की परछाई दिखाई और कहा ले चंदा।श्री कृष्ण ने परछाई रूपी चंद्रमा को उठाकर अपने सिर पर धारण कर लिया ।जिसे देख माता यशोदा घबरा गई। 
बालक श्रीकृष्ण पालने में सो रहे थे।तभी कंस द्वारा भेजी गई उसकी मुंँह-बोली बहन पूतना राक्षसी ने उन्हें मारने हेतु यशोदा मां का रूप धारण कर उन्हें उठाकर अपना विश लगा दूध पिलाना शुरू किया । भगवान कृष्ण ने उसके दूध के साथ उसके शरीर के रक्त भी चुस-चुसकर पी गये। इस प्रकार पूतना राक्षसी को अपने प्राण गवांने पड़े।
 श्री कृष्ण बाल-सखा के साथ खेल रहे थे तभी उनका गेंद यमुना नदी में गिर गया।सभी बालक डर गए कि यमुना नदी में कालिया नामक नाग रहता है जिससे आज तक कोई नहीं बच सका।कृष्ण ने अपना गेंद लेने हेतु यमुना नदी में कूद पड़े।नागराज कालिया से भयंकर युद्ध हुआ। उन्होंने उसे नथ कर उसके फण पर बड़ा मनमोहक नृत्य किया।अंत में नागराज ने उनसे शमा याचना की और उनका गेंद वापस किया। सभी बच्चे उनके इस दुस्साहस से खुश हो गए।इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने बाल्य काल से ही अच्छे और अनोखे कार्य किया।सभी मिल बोलिए-बालक श्री कृष्ण की जय।🙏🙏

Wednesday, August 17, 2022

भारत के गाँव



भारत के गाँंव 

जहांँ है होता भाईचारा,ऐसा सुंदर गांँव हमारा।
जहांँ गरीब-बेसहारों को सब मिल देते हैं सहारा।
ऐसा सुंदर गाँंव हमारा.......
साथ साथ निवास सभी के हिल-मिल रहते सब प्राणी।
यहांँ सभी मिल एक कूप से मिलकर भरते हैं पानी। 
सब मिल खाते,सब मिल पीते, ऐसा है गाँंव न्यारा।
ऐसा सुंदर गाँव हमारा.......
सबका होता ताल-तलैया सबका असर और पोखर।
नदियों में सब साथ नहाते बच्चे- बूढ़े खुश होकर।दोभे में होता सबका पानी सबका है इक धारा।
ऐसा सुंदर गाँव हमारा.........
हर घर में गौशाले होते,सबको मिलता है दूध दही।
गोबर से लिपते गलियांँ आँगन, पावन हो जाती है मही।
‌हर गांँव वृंदावन जैसा लगता है सदा उजियारा।
ऐसा सुंदर गाँव हमारा............
खेतों में हरियाली होती,फसलें लहलहाती है। 
वर्षा ऋतु में खेत हमारी दुल्हन सी सज जाती है।
मानव को अन्न धन मिलता,पशुओं को मिलता चारा।
ऐसा सुंदर गाँव हमारा........
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, August 15, 2022

आसमां पर शान से लहराए तिरंगा (गज़ल)



                गजल

आसमां पर शान से फिर आज लहराए तिरंगा।
इस जहां में मान गौरव आज ले आए तिरंगा। 

मेरा यह प्यारा तिरंगा सारे जग की शान है,
देश का सम्मान बनकर है सदा छाये तिरंगा।

तीन रंगो से है बना यह देश की पहचान है,
तीनों रंग का मान क्या है आज बतलाए तिरंगा।

संकल्प है किसी हाल में इसे न झुकने देंगे हम,
खड़ा हमेशा शान से यह जैसे  मुस्काए तिरंगा।

जब किसी जांबाज का जी,जां की खातिर डोलता,
लहर लहर लहरा कर उसमें है उमंग लाए तिरंगा।

हर शहर हर गाँव में,हर गली हर घर में देखो,
देश का हर जन अभिमान से फहराये तिरंगा।

जहाँ भी जाती नजर हमारी,यह वहांँ तक दिख रहा,
हर नज़र को आज दिखता और है भाये तिरंगा।
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

            सुजाता प्रिय समृद्धि

Saturday, August 13, 2022

शिव पार्वती वार्तालाप (दोहा )

शिव पार्वती वार्तालाप (दोहा )

सुनिए भोला आज मैं,पीसूंगी ना भांग।
रोज आपके भक्त जन,लाते इसको टांग।।

सुन लो प्यारी पार्वती,भांग पीस दो आज।
तुम ही तो हो जानती,भांग पीने की राज।।

भांग पीस-पीस कर हैं,थक गये मेरे हाथ।
इसे न छोड़ेंगे अगर, मैं न रहूंगी साथ।।

सुन लो पार्वती जरा,मान हमारी बात।
इस भांग को खाकर मैं, रहता हूंँ दिन-रात।।

आज भोलाजी खाइए,फल मेवा मिष्ठान।
आपको भी भाएगा, मुझे भी होगा त्राण।।

गौरा बता जरा मुझे, क्या करती तुम काज।
सदा बच्चों के संग में,घुमती सखी समाज।।

आप तो शम्भु भांग पी,रहते हैं मदहोश ।
सारा काम मैं करती,फिर भी मेरा दोष ।।

         सुजाता प्रिय समृद्धि

Thursday, August 11, 2022

कच्चे धागे

कच्चे धागे  (हाइकु)

   राखी का यह 
त्यौहार  है  बहन 
  भाई का प्यार।

   दोनों के बीच 
है नेह का प्यार है
    ये उपहार।

    दूर देश से 
बहनें  आकर  है 
  राखी बांधती।

 भाई के लिए 
ईश्वर  से  बहुत 
 सुख मांगती।

   जीयो ऐ भाई 
लाख   बरस  तुम 
   दुख ना मिले।

   सदा तुम्हारे 
जीवन में हे भाई 
  सुख ही मिले।

    रोली का यह 
लम्बा टीका तुमको 
    दीर्घायु करे।

  अक्षत का है 
कण-कण तुममें 
   अभय भरे।

     राखी का यह 
कच्चा सूता है पक्का 
    रिस्ता जोड़ता।

    बहन ना ही 
भूलती है ना भाई 
   मुख मोड़ता।

सुजाता प्रिय समृद्धि

Wednesday, August 10, 2022

अर्द्ध नारीश्वर

अर्धनारीश्वर (सायली छंद)

अजब 
रूप है 
तुम्हारा हे भोले 
शिव-शंकर
त्रिपुरारी।

आधा 
नर हो 
और आधा है 
दिखते तुम 
नारी।

आधे 
अंग में 
तुम तो अपना 
रूप है 
साजे।

आधे 
अंग में 
लगती हैं तेरे 
पार्वती मांँ 
विराजे।

बता 
कि कैसे 
तूने यह सुंदर 
रुप है 
बनाया।

नर 
औ नारी 
के वदन को 
एक शरीर 
समाया।

एक 
हाथ में 
रुद्राक्ष माला और 
त्रिशूल है 
शोभित।

एक 
हाथ में 
चूड़ियांँ और कंगन 
सुंदर फूल 
मोहित।

ऐसा 
अद्भुत यह 
रूप तुम्हारा सबके 
मन को 
भाये।

कैसे 
यह रूप 
धारण करते हो
समझ नहीं 
पाये।

नागेश्वर 
इसीलिए तुम 
हो सम्पूर्ण जगत 
के कहलाते 
अंतर्यामी।

महेश्वर 
तेरा है 
यह रूप निराला 
हे अर्धनारीश्वर 
स्वामी।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

आया राखी का त्योहार

लो आया राखी का त्योहार।
  लेकर भाई -बहन का प्यार।
    बाँध कलाई राखी के धागे।
      रख आरती की थाली आगे ।

भैया तुझसे  प्यार मैं माँगू।
    छोटा- सा उपहार मैं माँगू।
      मेरे लिए कुछ शर्त थी तेरी।
        माना थी रक्षाअस्मत कीमेरी।

कभी अकेली कहीं न जाऊँ।
  पढ़- लिखकर सीधे घर आऊँ।
    तन को वसन से पूरा ढककर।
        चलूँ  राह में नजर झुकाकर।

लो ,मैंने रख ली लाज तुम्हारी।
आई न इज्जत पर आँच तुम्हारी।
      इसके बदले  एक शर्त है मेरी।
          राखी पर यह एक अर्ज है मेरी।

जैसे करते थे तुम मेरी रक्षा।
  सब नारियों को देना सुरक्षा।
    दुःशासन तुम कभी न बनना।
      लाज किसी की कभी न हरना।

सदा सभी को केशव बनकर।
  रक्षा करना तुम चीर बढ़ाकर।
    नारियों का सम्मान तू करना।
      विनती करती है तुझसे बहना।
                    सुजाता प्रिय समृद्धि 

Tuesday, August 9, 2022

अँग्रेजों भारत छोड़ो तुम

अँग्रेजों भारत छोड़ो तुम

 बहुत लुटे सोने की चिड़िया को,
अंग्रेजों अब तो भारत छोड़ो तुम। 
बहुत चले अधर्म के पथ पर,
अब अपने पग को मोड़ो तुम ।

फूट डालकर हम भाई-भाई में,
बहुत किया तूने शासन।
मोह तज अब भाग चलो तुम, 
डोल रहा तेरा आसन।
समझ गए हम चाल तुम्हारी,
अब हमको मत फोड़ो तुम। 

आए थे व्यापारी बनकर,
करने लगे तुम हम पर राज।
हमारे सभी अधिकार छीन कर,
पहन लिए हुकूमत का ताज।
यहांँ की गद्दी से उतरो अब,
व्रिटेन से नाता जोड़ो तुम।

भारत हमारी मातृभूमि है,
इस पर अधिकार हमारा है। 
स्वतंत्रता है अधिकार हमारा,
हमने यहाँ तन-मन वारा है । 
हम सख्ती से तुम्हें हैं कहते, 
इस तख्ती से नाता तोड़ो तुम।

            सुजाता प्रिय समृद्धि

Monday, August 8, 2022

भूतबंगले के भूत

भूत बंगले के भूत (लघुकथा)

विद्यालय से वापस आ सागर ने जैसे ही दरवाजे पर कदम रखा धूएंँ की गंध से घबराकर जल्दी से अंदर आया।आंँगन में उसके पिताजी तेजी से सिर धुन रहे थे।नन्दकिशोर काका बड़े-से चिमटे को जमीन पर पटकते हुए कड़कती आवाज में पूछ रहे थे -बोल ! बोल तूने इसे कहाँ और क्यों पकड़ा।
 पिताजी दांँत पीसते हुए बोल रहे थे-भूत बंगला से । इसने मुझसे पांँच हजार रुपए कर्ज लिए थे, उसे वसूलने के लिए।
तो तू इसे कैसे छोड़ेगा ?
 छोड़ दूंँगा पहले बीस मुर्गे की बलि और पांँच हजार रूपए का चढ़ावा चढ़ा।
 अम्मा ने आगे बढ़कर सिर पटकते हुए कहा -दे दूँगी इनकी जान बख्श दीजिए। रुपए और मुर्गे से बढ़कर तो नहीं है जान।
ओझा बने नंदकिशोर काका पाँच हजार रुपए, बीस मुर्गा,सीधा-सेर का चावल, सिंदूर धूप-धूअन अगरबत्तियांँ आदि सुबह-सवेरे उनके घर पहुंँचाने का आदेश देकर चिमटे पटकते हुए अपनी झोली उठाकर चले गए। उसके पिताजी कटे वृक्ष की भाँति आँंगन में पड़े थे।
दूसरे दिन विद्यालय से लौटते समय दोस्तों ने सागर से पूछा-यार तेरी अम्मा ने चढ़ावे का पैसा और मुर्गे भिजवाया ?
 सौरभ ने कहा -हाँ मेरी दादी के पास ही तो अपने कंगन गिरबीं रखकर पैसे उधार लिए हैं।गौरव बोला -ये भूत बंगला के भूत भी न बहुत परेशान करते हैं लोगों को।आये दिन किसी-न-किसी को पकड़ते हैं।
 मुझे तो पता चला है कि पिंकू के पिताजी उनपर सवार थे।उन दोनों में गाढ़ी मित्रता थी। हो सकता है वे उनसे कर्ज लिए होंगे। सूरज ने कहा।
 रोशन ने कहा -लेकिन मुझे यह समझ नहीं आता कि जब सभी लोग जानते हैं कि उधर से जाने वाले को वहांँ के भूत पकड़ लेते हैं, तो लोग उधर से जाते क्यों हैं।हम बच्चों को तो उधर से जाना सख्त मना किया जाता है फिर........ 
पिंकू ने कहा -यार मुझे तो दाल में कुछ काला लगता है।भूत पैसे ,बकरे,मुर्गे और अनाज लेकर करते क्या हैं। अगर वे कर्ज वसूल सकते हैं तो क्यों नहीं अपने बच्चों का भरन-पोषण करते ।अगर सागर के पिताजी को पकड़ने वाले भूत मेरे पिताजी हैं तो वे मेरी तीन महीने की बकाया फीस उन वसूले हुये चढ़ाबे के पैसे से दे देते।और फिर इतने सारे लोग मिलकर भूत-बंगले में चढ़ाबा चढ़ाने क्यों जाते हैं।दोपहर से शाम तक वहाँ पूजा हवन होते रहते हैं।वहाँ से आने के बाद लोग बेहोशी की हालत में रात भर पड़े रहते हैं। मैं तो सोचता हूंँ कभी इनके द्वारा किए गए पूजन को देखूंँ।पर घर से आने तो मिलता नहीं।
 मैं तो कहता हूँ अभी चल। रोशन ने दृढ़ता से कहा।अभी पूजन हो रही है।
 जिज्ञासा वश सभी बच्चे डरते-सहमते तैयार हो गये।सभी भूत बंगले तक चलकर किसी तरह अंदर प्रविष्ट होनेे की कोशिश करने लगे और  छिपते-छिपाते।अंदर का नजारा देखने लगे। सहसा राहुल ने कहा -यार तुम अपनी अम्मा को यहाँ बुला ला।
सौरभ ने कहा -अपनी अम्मा को ही क्यों?हम सबकी अम्मा को यहाँ बु़ला ला। 
आवश्यक समझते हुए दो लड़के दौड़ पड़े गांँव की ओर। जल्द ही गाँव की सारी महिलाओं को लेकर वे वहांँ वापस पहुंँच गये।अब वे सभी चुपके से अंदर हो रही पूजन को फटी-फटी आँखों से देख रहीं थीं।बंगले के आँगन में दो-तीन लकड़ी के चुल्हे जल रहे थे ।मुर्गे पुलाव  बन रहे थे।पत्तल पर भुनें हुए मुर्गे रखे थे जिसे सभी लोग मजे ले-लेकर खा रहे थे।सभी के हाथ में शराब की बोतलें और गिलास थीं,जिसे आपस में टकराकर सभी हंँस-हँस कर पीते जाते और हंँसी-मजाक करते जाते। 
सागर के पिताजी की तो सभी लोग सराहना कर रहे थे-भूत-भरी का नाटक तो तूने बहुत अच्छा किया रे नागेश !इसी तरह हमेशा करियो। 
नागेश जी गर्व से सीना अकड़ाते हुए बोले-और आप भी तो बहुत ही अच्छे ओझा बनते हैं नंदा भैया!आपकी बातों से डरकर हमारी घरवाली तुरंत ही पैसे, मुर्गे ,बकरे दे देती हैं तभी तो हम शराब और शबाब का जश्न दो-तीन दिनों में ही कर पाते हैं। नहीं तो दस रुपए खैनी-बीड़ी के लिए भी मांँगो तो पचास तरह का भाषण देती है -खैनी मत खाओ, बीड़ी मत पीओ।यह जानलेवा है।गाँव के बीस-पचीस लोग नशे के कारण मारे क्या गये,हम सभी को संन्यासी जीवन जीना पड़ा।यह हमारा अच्छा तरीका है उनसे पैसे ऐंठने का। थोड़ी-सी बात क्या मान ली। महारानी एलिज़ाबेथ बनकर हम पर शासन करने लगी। शराब की नशे से लरजती आवाज में बोले तो सभी ने मिलकर एक साथ ठहाके लगाया।अभी ठहाके की गूंँज पूरी तरह समाप्त भी नहीं हुई थी कि हाथों में छड़ियांँ, कलछुल, बेलन, छोलनी इत्यादि रसोईघर में प्रयुक्त होने वाले हथियार लिए महिलाएँ अंदर प्रविष्ट हुईं और पुरुषों पर प्रहार करने लगीं। साथ ही बोल रहीं थीं आज तुम लोगों पर आने वाले भूत को उतार कर रहेंगी हम। तुमलोग को नशा करने पर हम पाबंदी क्या लगाईं तुम लोगों ने नया रास्ता अपना लिया।शर्म नहीं आती ।आप सबके घरों की हालत फटेहाल है। बच्चे के दूध में कटौती करनी पड़ती है। स्कूल में फीस जमा नहीं हो पाता। इलाज के पैसे नहीं, और आप लोग शराब- कबाब उड़ाते हैं।वह भी कर्ज-सूद करने के बाद।इस प्रकार आप लोग अपने ही घर को लूट रहे हैं। धिक्कार है ऐसी नशा की आदत पर।न अपनी जान की चिंता है,न बच्चों के जीवन का परवाह।सभी नशेबाज अपनी औरतों को रणचंडी के रूप में देख घबराकर भागने लगे। सागर की अम्मा ने बच्चों से कहा -देख लिया तुमने इस भूत बंगले के भूत को।इस बंगले के मालिक और उनके बेटों की जान भी नशे के कारण ही गया था।उनकी एक बहू जान दे दी दूसरी मायके चली गई। फिर इन्होंने इस बंगले को भूत बंगला का नाम देकर सभी डराना शुरू किया और इसे नशे का अड्डा बना लिया।अब यहाँ उन्हें हम नहीं आने देंगे।और यहाँ हमलोग नशा-मुक्ति केंद्र खोलेंगे और यहांँ से नशा मुक्ति पर अभियान चलायेगें।
सभी स्त्रियों और बच्चों के होंठों पर विजयी मुस्कान थी।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

अंतिम संदेश ( लघुकथा)

अंतिम संदेश
बच्चन मोची अपनी लुगाई कजरी के साथ बस्ती के घर-घर घूम रहा था ।लोग उन्हें देखकर कह रहे थे जो बच्चनमा कभी किसी के आगे हाथ नहीं पसारा,आज बेचारे को घर-घर जाकर मांगना पड़ रहा है ।किसी ने भुनभुनाते हुए कहा -जब सारी कमाई खत्म हो गयी।तब माँगने चला।यही बात पहले मानता तो कुछ हाथ में होता। जब डॉक्टर ने कैंसर का संदेह कह बड़े अस्पताल में जांँच कराने कहा था, तभी टोले के लोगों ने चंदा उगाही कर पैसे इकट्ठे करने को कहा- तो नहीं माना। कहा-ढोल- नगाड़े और जूते की दुकान बेच दूंगा लेकिन माँगूंगा नहीं ।अरे कर्जा-उधारी और सूद पर कुछ दिन के लिए पैसे लेना कोई गुनाह थोड़े ही होता है ।अब सब धन स्वाहा हो गया तब मांगने आया है। चलो कुछ तो इकट्ठा कर हम लोग दिलबा दें उसकी इलाज खातिर।  लेकिन जब वे वहाँ पहुंचे तो देखा वहाँं का नजारा ही कुछ और है। कजरी बच्चन के मुँह के घाव सभी को दिखाकर सभी से गिड़गिड़ाते हुए विनती कर रही है - हे बाबू-भैया !आप लोग को मैं हाथ जोड़ती हूँ,पाँव पड़ती हूंँ। आप लोग खैनी,गुटका,तिरंगा आदि खाना छोड़ दें ।आप अपने बच्चन -भाई का हाल तो देख ही रहे हैं इनके मसूड़े में कितना बड़ा घाव हो गया है।डॉक्टर ने कहा है- यह खैनी- गुटका खाने के कारण हुआ है ।खैनी में मिले चूने मसूड़े और गालों की चमड़ी को गलाकर उसमें सड़न पैदा करते हैं ।फिर धीरे-धीरे इतना विकराल और विभत्स रूप ले लेता है।इस विकराल घाव को ही "कैंसर"के नाम से जाना जाता है।यह घाव घातक ही नहीं, जानलेवा है। इसके होने पर शायद ही कोई बच पाता है। इसकी इलाज में सारा धन-दौलत खत्म हो गया।इनकी तो जान जाएगी ही, बच्चों का जीना भी भारी हो जाएगा।अब ये 'कुछ दिनों के मेहमान है' इतना कह वह सुबक-सुबक कर रोने लगी। सभी लोग उसकी मदद के लिए रुपए-अनाज इत्यादि देने आते,तो बच्चन हाथ जोड़कर विनती भरे लहजे में सबसे कहता हमें कोई मदद नहीं चाहिए। मैं आप सभी की सलामती के लिए दुआ करता हूंँ बस इतनी दया हमपर करिये कि अब आपलोग  पान-बीड़ी, खैनी -गुटका ना खाइए । किसी प्रकार नशा ना करिए। क्योंकि 'नशा नाश का घर है।'इससे जान-माल सब नष्ट हो जाता है।इस तरह वे रोज  गाँव के नुक्कड़ पर तथा अन्य गांँव जाकर लोगों को जागरूक करने हेतु अपने ज़ख्म दिखाता और अपना यह अंतिम संदेश दुहराता।फिर एक दिन अपनी पत्नी और चार बच्चों को अनाथ छोड़.......................
         सुजाता प्रिय समृद्धि

Saturday, August 6, 2022

पार्वती का श्रृंगार

पार्वती ने किया सिंगार, भोला मुग्ध हुए।

मांग में भरकर भखरा सिंदूर,
बिंदिया चमकदार भोला मुग्ध हुए।
पार्वती ने किया शृंगार ........
कान में पहनी मोती का झुमका,
गले नौलक्खा हार ,भोला मुग्ध हुए।
पार्वती ने किया शृंगार..........
हाथ में पहनी जड़ाऊ कंगन,
शंखा -पोला डाल भोला मुग्ध हुए।
पार्वती ने किया शृंगार.......... 
पांव में पहनी पांजेब-बिछिया,
 जिसकी मधुर झंकार भोला मुग्ध हुए
पार्वती ने किया शृंगार.......
अंग में पहनी लाली चुनरिया,
चोली चमकदार भोला मुग्ध हुए।
पार्वती ने किया शृंगार.......
बाल में से शोभे बेली- चमेली,
 अद्भुत गजरे-हार भोला मुग्ध हुए।
पार्वती ने किया शृंगार...........

 सुजाता प्रिय समृद्धि

Friday, August 5, 2022

जीवन के रंग अनोखे

जीवन के रंग अनोखे

         जीवन के रंग अनोखे,
        कुछ हल्के,कुछ चोखे।

कभी उजाला धूम मचाए,
         कभी अंधियारा है छाये।
कभी विभिन्न रंगों में रंग कर,
               जीवन रंगीन बनाये।
 रंगीनियों के मोहजाल में,
          फँस खाये सौ-सौ धोखे।

         जीवन के रंग अनोखे 

कभी पहेली बन उलझाता,
      कभी सीधी-सी राह दिखाता।
कभी टूटते अंतर्मन में ,
          आस की बूंदें है टपकाता। 
कभी विचलित होते मन में,
             लाता उल्लास के झोंकें।

      जीवन के रंग अनोखे।

उम्मीदों के महल बना कर, 
          उसमें रहना हमें सिखाता।
विश्वास के दरवाजे पर,
            हौसले से मिलन कराता।
रंग बिरंगी कोठरियों के,
                    खोल यहांँ झरोखे।

       जीवन के रंग अनोखे।

सुजाता प्रिय समृद्धि

Thursday, August 4, 2022

बाबा बम भोले

देवों के देव महान, बाबा बम भोले।
करते हैं कल्याण, बाबा बम भोले।

मस्तक चंदन-भस्म लगाए,
खाते भंग को छान,बाबा बम भोले।

जटा में गंगा,बाल पर चंदा,
रखते विराजमान,बाबा बम भोले।

नाग की माला,बाघ की छाला,
पहनकर करते शान, बाबा बम भोले।

हाथ में त्रिशूल,डमरू शोभे,
कमण्डल में है धान,बाबा बम भोले।

सदा ही करते बैल सवारी,
इनकी है पहचान,बाबा बम भोले।

कैलाश गिरी पर रहने वाले,
फिरते सदा मशान,बाबा बम भोले।

बाबा हैं भोले भंडारी,
कर ले इनका ध्यान, बाबा बम भोले।

ब्रह्मा-विष्णु, कार्तिक-गणपति,
सब करते सम्मान, बाबा बम भोले।

शिवशंकर हैं औघड़ दानी,
देते हैं वरदान, बाबा बम भोले।
         
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, August 3, 2022

काश! मैंने कह दिया होता



काश मैंने कह दिया होता

सामने कुर्सी पर दो महिलाएंँ साथ-साथ बैठी थीं। रमेश बाबू दोनों को बारी-बारी से देख रहे थे। दोनों में कितना अंतर है । एक सुंदर, शांत, समझदार, सहनशील,शालीन, मृदुभाषी ।ना कोई नाज नखरे ना कोई शान- घमंड ।दूसरी दिखने में साधारण अशांत,उदंड,बाचाल,नासमझ, नखरेबाज और घमंडी। पहली महिला उसके दोस्त की पत्नी और दूसरी उनकी स्वयं की पत्नी। वे यादों के भंँवर में गोते लगाने लगे। जब उनकी नौकरी लगी थी, पहली महिला के परिजन उनके घर उनसे विवाह का प्रस्ताव लेकर आए थे। उनके घर वालों को लड़की तो भाई लेकिन दान-दहेज ? ना -ना -ना !हम कोई फ़क़ीर घर में बेटे की शादी नहीं करेंगे ।इतने कम में हम क्यों बेटे का विवाह करें ?कोई मेरा बेटा भागा तो नहीं जा रहा ।साइत अच्छा कहें या किस्मत खराब। अगले महीने ही दूसरा परिवार आया और मुँह- मांगी दहेज देने को तैयार हो गया। अब ढेर किस बात की ? सभी ने तुरंत हामी भर् दी।खुशखबरी रमेश बाबू के कानों तक भी पहुंची। संयोग से वे दोनों लड़कियों को जानते थे ।दोनों उनके ही कॉलेज में पढ़ती थी दोनों ही अपने-अपने गुण-दोषों के कारण चर्चित थीं। वे दोनों की तुलना करने लगे ।जमीन- आसमान का अंतर । पहली दुःख-पीड़ा में भी मुस्कुराने वाली। दूसरी घमंड से बरसने-गरजने वाली ।जी में आया -अपने परिवार को कह दें कम दहेज भी लाती है तो पहली लड़की से ही हमारा विवाह करें ।लेकिन कहे तो कैसे ? कहीं इसका कुछ दूसरा अर्थ ना निकल जाए कि साथ में पढ़ती थी .................... फिर  पैसे कम देंगे तो शादी का सारा खर्च कैसे चलेगा ? लोग सरस्वती और शक्ति से ज्यादा महत्व तो लक्ष्मी को ही देते हैं । सो रमेश बाबू के साथ भी ऐसा ही हुआ। आखिर वे उन धनाढ्य की बेटी के साथ बंध गए ।कुछ ही दिनों में पता चला पहली लड़की की शादी उसके बचपन के मित्र लखन से हुई ।दहेज कम देने के कारण प्राइवेट में काम करने वाला लड़का अजीत से उसकी शादी हो गई।
आज उनकी शादी के 25वीं वर्षगांठ है ।मोहल्ले में रहने के कारण अजीत और उसकी पत्नी  भावना भी आमंत्रण पर पधारे। उनकी पत्नी रजनी भावन को जानती थी । इसलिए दोनों साथ -साथ बैठकर बातें करने लगीं। रमेश जी भावना को देख सोच रहे थे । काश मैंने कह दिया होता ,उस दिन अपने परिवार से कि मुझे भावना ही पसंद है ।लोग बातें बनाते, पैसे कम मिलते,लेकिन जीवन तो सुखमय होता। भावना मुहल्ले की सबसे अच्छी और समझदार बहू कहलाती है।और रजनी उफ़ sssss मेरे साथ -साथ मेरे घर वालों और बच्चों के नाक में भी.......................
              सुजाता प्रिय समृद्धि

Tuesday, August 2, 2022

नागपंचमी (हाइकु)



 नागपंचमी (हाइकु)

    नागपंचमी
है आज चलें हम
   पूजा करने।

    नागदेवता
विराजमान देखो
    दुःख हरने

   मंदिर में जा
नागदेवता को हैं
   शीश नवाएँ

    नागदेवता
से हम सब मिल
  आशीष पाएँ

  नागदेवता
हम मानव पर
  देते हैं प्यार

    सुखी रखते
अपने आशीष से
   सारा संसार 

  हम आपको
बारंबार प्रणाम 
   कर रहे हैं

   आप हमारे
जगत के दुखड़े
    हर रहे हैं 
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'