Saturday, December 7, 2024

बांझ (लघुकथा)

बांझ

तुम चुमापन करने लायक नहीं हो। तुझ मनहुस का साया भी किसी पर पड़ेगा वह भी नि: संतान रह जाएगा।अभी सगुन के लिए दुल्हन की गोद में बच्चा डाला जाता है वह दम भी तुममें नहीं है।सांस ने नफरत और घृणा से मुँह बनाकर अपनी शोले उगलती आँखों से देखते हुए कहा उसके हाथों से चावल छीन कर फेंक दिया। 
दीवार पर रचित सुंदर रंगोलीनुमा कोहबर के आगे बैठी नवेली देवरानी घूँघट की ओट से उसे देखने लगी। देवर सिर झुकाए बैठा था। 
मुहल्ले और परिवार की स्त्रियों की सहानुभूति पूर्ण नजरें देख रचना की सुंदर मुखड़े पर दुख, छोभ और अपमान के मिले जुले भाव उत्पन्न हुए।डबडबा आई सुन्दर नयनों से आसुओं की धार ढलक आई। 
  क्ष अचानक उसके चेहरे पर कुछ निर्णायात्मक भाव उभरे।फिर रणचंडी- सी हाथ उठाकर रोती हुई बोली- हाँ s s s मैं चुमापन करने लायक नहीं हूँ।
लेकिन होती ! यदि आप का बेटा नामर्द नहीं होता। आपके बेटे और घर की इज्जत की खातिर मैंने अपने मन से मातृत्व भाव को भी मार दिया। बहू की जगह मुझे ऐसा कलंकित नाम देकर प्रताड़ित किया सभी कुछ सहन किया।लेकिन भरे समाज में............ 
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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