सहयोग और समझदारी
दो बकरियाँ पतले पुल पर,
आमने- सामने आ रही थी।
कैसे रास्ता मैं पार करूँगी,
मन में सोंच घबरा रही थी।
जब दोनों पास आईं तब,
पहली बोली बहन नमस्ते।
उन बकरियों- सा नहीं करेंगे,
मरी गिरकर जो लड़ते लड़ते।
दूसरी बोली बहन बता दो।
तुमने क्या सोचा है उपाय।
रास्ता दोनों को मिल जाए,
जान भी दोनों की बच जाय।
पहली बोली- मैं बैठती हूँ,
तुम मेरी पीठ पर चढ़कर।
पार कर जा रास्ता अपना,
चली जाऊँगी मैं भी उठकर।
ऐसे उन्होंने सहयोग देकर,
एक-दूजे की जान बचाई।
समझदारी से काम किया,
नहीं किया उन्होंने लड़ाई।
राह बनाना जिस तरह से,
बुद्धिमानी का होता काम।
रास्ता देना भी उसी तरह
समझदारी का होता नाम।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
No comments:
Post a Comment