Tuesday, June 30, 2020

चलता चल ( प्रेरणा गीत )

चलता चल,चलता चल।
ओ राही तू चलता चल।
सोंच-सोंच और समझकर,
संभल-संभल कर चलता चल।

कई मुश्किलें, कई अटकलें ,
जीवन में आते हैं।
लेकिन जीवन की बाधाओं से,
वीर न घबराते हैं।
खम से ठेल विघ्न और बाधा,
हर मुश्किल से लड़ता चल।
चलता चल................

राह नहीं है छोटा भाई,
बहुत दूर चलना है।
चल-चल कर ही इस राह की
दूरी कम करना है।
तय करने मंजिल की दूरी,
कदम-कदम तू बढ़ता चल।
चलता चल.................

आँधी और हिमपात से लड़कर,
जलधारा में थमकर।
तूफानों में अडिग खड़ा हो,
बौछारों को सहकर।
चट्टानों को रौंद कदम से,
पर्वत-पर्वत चढ़ता चल।
चलता चल..........
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित

Monday, June 29, 2020

देखते-देखते ( गज़ल )


क्या अजब हो गया देखते-देखते।
क्या गजब हो गया देखते-देखते।

जिसकी आगोश में है सारा जहाँ,
कोरोना  छा गया देखते- देखते।

चैन अमनों-चमन का है लुट गया,
है त्राहिमां मच गई देखते- देखते।

हम अपने ही घर में हैं कैद पड़े,
नजरबंद हो गए देखते-देखते।

मुफ्त जानें गई बेकसूरों की यहाँ।
काल बन छा गया देखते-देखते।

जो लगते थे स्वस्थ्य-निरोगी यहाँ,
वे ही फना हो गए देखते-देखते।

मन में है अजब भय समाया हुआ,
घबराया है दिल देखते- देखते।

जाने कब-तक रहेगी इसकी कहर।
है यह डर सता रहा देखते-देखते।

हे ईश्वर है बस अब तेरा आसरा,
दुःख हर ले जरा देखते- देखते।

आशा की किरण मन में है जगी,
तू दुआ बन के आ देखते- देखते।
                   सुजाता प्रिय
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

आधुनिकता की होड़ में पर्यावरण की सुरक्षा कैसे करें

यह सच है कि आज हमारा समाज आधुनिकता के दौर से गुजर रहा है।हम गाँव की अपेक्षा शहरों मे रहना अधिक पसंंद करते हैं।छोटे घरों की अपेक्षा आलिशानों में रहने में गर्व महसूस करते हैं।निकट स्थानों में भी वाहनों द्वारा ही जाना चाहते हैं।सच पूछें तोआधुनिकता के इस होड़ में हम प्रकृति का दोहन करने लगते हैं जिससे हमारा पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है ।
अब हमें सचेत होना होगा।पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए।हम आधुनिक बनकर भी पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं।
हमारी पहली कोशिश होनी चाहिए की भवन-निर्माण के समय अकारण पेड़ -पौधे को नष्ट न करें।अपने घरो में पेड़-पौधों के लिए भी थोड़ा स्थान रखें।गमलों में भी छोटे-छोटे पेड़-पौधे एवं फूल लगाकर हरियाली बढ़ायें।
  नदी तालाबों ,जलाशयों जंगल मैदानों का अतिक्रमण कर गृह निर्माण न करें।वल्कि उनकी साफ-सफाई तथा रख-रखाव की जिम्मेदारी व्यक्तिगत या सामुहिक रूप से लें।
निकट के हाट- बाजार,मंदिर,विद्यालय आदि स्थानों पर वाहन से न जाकर पैदल जाने की आदत डालें ।इस प्रकार हम स्वस्थ्य भी रहेंगे औरवाहनों से निकलने वाले धूएँ से हमारा वायु भी प्रदूषित होने से बचेगा।
हम अपने घरों को तो साफ-सुथरा   रख लेते हैं लेकिन घर के कूड़े-कचरे सड़कों तथा नदी-तालाबों में फैला देते हैं।इन आदतों में सुधार लाना होगा।
यूं कहें जल,जंगल और जमीन की सुरक्षा कर ही हम पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं।सच्चे अर्थों में पर्यावरण की सुरक्षा और संतुलन ही हमारी सच्ची आधुनिकता होगी।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, June 26, 2020

गज़ल

ना ही रहने को आलिशान घर चाहिए।
ना ही बसने को बड़ा-सा शहर  चाहिए।

जिसकी गलियों में कूड़े की ढेर न हो,
हमको गंदगी से परे वो नगर चाहिए।

जिसमें छल - कपट का निवास न हो,
मुहब्बत से भरा हमें वो जिगर चहिए।

जिसकी नजरों में हर चीज प्यारा लगे,
परखने वालों की ऐसी नजर चाहिए।

जिसे सुनकर दिल में उमंग भर उठे,
मुझको सुनने को ऐसी खबर चाहिए।

बेखटक पहुँचाए जो मंजिल हमें,
वह सीधी, सरल- सी डगर चाहिए।

जो कर दूसरे की सेवा को तत्पर रहे,
स्वयंसेवकों का ऐसा ही कर चहिए।

जो दूसरे का हित में जीये उम्र भर,
दिल वालों को लम्बी उमर चाहिए।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

आत्मनिर्भर भारत के सपने एवं चुनौतियाँ

  अँग्रेजी दास्ता से मुक्त होने के बाद हमारा देश भारत आत्म-निर्भर हो हर क्षेत्र में अपनी जिम्मेदारियों को बड़ी संजीदगी से निभाता चला गया।अपनी विशालता को अक्षुण बनाए रखने के लिए विकास के सपने देखने लगा । उन सपनों को साकार करने के लिए बहुत सारे कल-कारखानें , शिक्षण-संस्थानों एवं बहुउद्येशी कंपनियों एवं परियोजनाओं का संचालन-परिचालन का काम सुचारू रूप से करने के लिए कृतसंकल्प हो उठा।देशवासियों के सुख वैभव के लिए अनेकों निर्माण योजनाएँ चलाए और कामयाबी भी मिली।अपितु अभी भी भारत के सम्मुख कुछ चुनौतियाँ विराजमान हैं जिसमें सर्वप्रमुख है शिक्षा -यहाँ प्रतिभा की कमी नहीं  किन्तु शिक्षण-संस्थानों एवं शिक्षकों के आभाव के कारण या तो उनकी प्रतिभा कुण्ठित हो जाती है या फिर विश्व गुऱु कहलाने वाला भारत के होनहारों को उच्च शिक्षा एवं रोजगार के लिए विदेशी शिक्षण-संस्थानों एवं कंपनियों की शरण लेना पड़ता है।
दूसरी प्रमुख समस्या बेरोजगारी की है । मजदूर वर्ग अपने राज्य को छोड़ दूसरे राज्यों के प्रवासी हो जाते हैं ।अगर विदेशी उत्पादों के आयात रोककर अपने शहर अथवा राज्यों में ही छोटे-छोटेे कल-कारखानें खोलकर रोजगार उपलब्ध कराया जाए तो वे दूसरे राज्यों एवं देशों मे पलायन न करें।छोटे-छोटे इलेक्ट्रॉनिक सामानों के लिए हम चीन जैसे मतलबी और धोखेवाज देशों पर निर्भर न होकर अपने ही देश में उनका निर्माण कार्य करें।दुख उस समय सबसे ज्यादा होता है जब दीपावली के दीये मोमबत्तियाँ स्वस्तिक-झालर एवं सजावट के अन्य सामान भी 'मेड इन चाइना' होते हैं।इस प्रकार देश वासियों की प्रतिभा को पंगू बनाकर हम विदेशी उत्पादों पर निर्भर हो जाते हैं।अगर उन सामानों का निर्माण-कार्य  अपने देश में प्रारम्भ किया जाए तो देश वासियों को रोजगार भी उपलब्ध होगा और हमारा देश आत्म निर्भर बन एक एक सशक्त ऱाष्ट्र के रूप में उभर कर दुनियाँ के समक्ष शान से खड़ा होगा।
कौशल विकास के लिए लघु-उद्योग,कुटीर उद्योग घरेलु उत्पादों को बढ़ाबा देना एवं बाजार उपलब्ध कराना प्राथमिक जिम्मेदारियों की श्रेणी में रखना होगा।इन छोटे-छोटे उद्योगों 'द्वारा भी लोगों को रोजगार मिलेंगे और जरूरत के छोटे-छोटे सामान भी उपलब्ध होंगे। चीनी एप के बंद होने से देश वासियों में जो खुशी है , उससे कई गुना खुशियाँ स्वदेशी सामानों का निर्माण एवं इस्तेमाल से मिलेगा। स्वदेशी अपनाना आज भारत के लिए महत्वपूर्ण एवं सर्वप्रमुख चुनौती बनकर खड़ी है।
      सुजाता प्रिय'समृद्धि'

Wednesday, June 24, 2020

हम दो, हमारे दो ( लघु-कथा )

आज अर्चना का मन बड़ा बेचैन था।उसकी माँ की तवियत ज्यादा खराब है।लेकिन मोहन को छुट्टी नहीं।वह अकेली चली जाती।लेकिन दोनों बच्चों की परीक्षा चल रही है। उन्हें वह ले भी नहीं जा सकती।ना ही छोड़ सकती है।
मोहन अकेले उन्हें सम्हाल नहीं सकते।किसके पास उन्हें छोड़कर जाए।पिछली बार जब वह खुद बीमार पड़ी थी तो मोहन ने पड़ोस में उन्हें छोड़ दिया था।उन्होंने उन्हें ठीक से खिलाया-पिलाया।किन्तु उनके बच्चों ने उन्हें जाने कैसी-कैसी गंदी हरक्कतें , शैतानियाँ एवं गालियाँ  सिखा दी।इसीलिए जब मोहन का एक्सीडेण्ट हुआ तो उन्हें घर में ही एक कमरे में बंद कर चली गई ।लेकिन जब वापिस आई तो देखी उतनी देर में उन्होंने कितने सारे सामान तोड़-फोड़ डाले।शरीर में कितनी जगह चोटें लगा ली।आपस में लड़कर एक-दूजे का शारीरिक नुकसान भी कर लिया।
     काश कोई घर में उन्हें देख-भाल करने वाला होता।
पर कोई देख-भाल करने वाला होता कैसे ? उसकी अंतरात्मा ने उससे पूछते हुए याद दिलाया। तुम तो किसी को अपने साथ रहने नहीं देती।अभी भी घर से आते वक्त मोहन साथ में अपनी माँ को लाना चाहता था तो तुमने उसेे मना करते हुए कहा था हमारे घर में बस हम दो , हमारे दो ही रहेंगे। कभी भी माँ-पिताजी या कोई परिवार का सदस्य आ गया तुम्हारी तवियत बिगड़ जाती है या खाना बनाना भूल जाती हो।पिछली बार पिताजी आए थे तो उन्हें बार-बार मैगी खाने दे देती थी।जबकि तुम्हें पता है कि उन्हें मैंगी नहीं पसंंद।
लेकिन उनके रहने पर मुझे अतिरिक्त जिम्मेदारियाँ निभानी पड़ती है।फिर बच्चे उनसे चिपके रहते हैं और समय पर पढ़ाई -लिखाई नहीं कर पाते।उसने अपने आप से कहा।
तो फिर तुम्हारी मदद कोई कैसे कर सकता है। तुम एकल परिवार में रहोगी तो बच्चों को संयुक्त परिवार की सुरक्षा कैसे मिलेगी ?
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

हम सैनिक भारत देश के

हम सैनिक भारत देश के।
हाँ सैनिक भारत देश के।

बर्दी हमारी खाकी रंग की।
पैरों में बूट सिर पर है टोपी।
एकरूपता की शान लिए हम,
लगते हैं अच्छे यह वेश में।
हम सैनिक भारत देश के।

जब भी मुख हम खोलते।
भारत की जय हम बोलते।
महा मंत्र है यही हमारा ,
जपते जय-जय देश की।
हम सैनिक भारत देश के।

बढ़ते जाते हम सीना तान।
हथेली पर हम रखकर जान।
जान की अपनी दे कुर्वानी,
रक्षा करते हम देश की।
हम सैनिक भारत देश के।

कदम न अपना रूकने देंगे।
झंडे को हम ना झुकने देंगे।
माँ की रक्षा करते जाएँ,
हम सारे दुश्मन देश से।
हम सैनिक भारत देश के।
    सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
        स्वरचित

रथ-यात्रा पर रोक

रथ-यात्रा पर भी रोक है।
हा यह कैसा संयोग है।
मानव जन की मनमानी का,
लगता जैसे यह भोग है।

चपेट में जिसकी दुनियाँ सारी।
कर दिया सबका जीना भारी।
हे भगवान,कर कल्याण,
छाया यह कैसा रोग है।

मिटा दो जन के सारे पाप।
दूर करो सबके संताप।
कृपा करो हे कृपा निधान।
भयभीत यहाँ सब लोग हैं।
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, June 22, 2020

हम शरण में आपके कब से खड़े

हम शरण में आपके कब से खड़े।
आपके चरणों में आकर हैं पड़े।।

परमेश्वर हम आपकी संतान हैं।
मेरे सिर पर आपका वरदान है।।

गुण-सुबुद्धि आप हमको दीजिए।
हे प्रभो कल्याण हमारा कीजिए।।

सबके उर में आपका ही प्यार है।
सारे जग के आप पालनहार हैं।।

आप हममें ऐसी कुछ शक्ति भरें।
दुखियों के दुखड़े सारे हम हरें।।

तेरे चरणों में हम झुकाए माथ हैं।
हम अधम के आप ही तो नाथहैं।।
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
      स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

Sunday, June 21, 2020

धरती की चिट्ठी वर्षा के नाम

आषाढ़ शुक्ल,दिनांक द्वितीया
    बादलों से बने घर के पते पर।
       सूर्य किरण की तप्त कलम से,
           कड़ी धूप की तपते पन्नें पर।

अपने गरम कर-कमलों से,
    धरती ने लिखी एक चिट्ठी।
        रूठी वर्षा को मनाने को,
         लिखकर बातें मीठी-मीठी।

हे प्रिय सहेली बरखा रानी,
   तुम्हें मेरा पहुँचे शुभ-प्यार।
       बहुत दिन हुए तुमसे मिले,
          मिला न तेरा कोई समाचार।

समय निकाल मिलने आओ,
    मैं राह तुम्हारी हूँ देख रही।
        नयन बिछा राहों में मैं तेरी,
           चहुँ ओर नजरें हूँ फेक रही।

सावन की सौगात देने को,
     सखी तुम्हें आना ही होगा।
        बादल-बिजली घोर-घटा को,
            अपने संग लाना  ही होगा।

झम-झम पानी की बुँदी भी,
    लेकर आना अपने साथ में।
        फुहारों की रसभरी मिठाई,
            संदेशा लाना तुम  हाथ में।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
  स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

पिताजी आप पर अभिमान है

पिताजी आप पर अभिमान है।
आपकी हर कीर्ति पर शान है।

बस आप ही तो वह व्यक्ति हैं।
जो हमको देते हरदम शक्ति हैं।

पाल - पोषकर हमें बड़ी किया।
सद्गुणऔर शिक्षा है हमें दिया।

हर अच्छी राह हमें दिखाया है।
अनुशासन में रहना सिखाया है।

आज मैं आपसे बहुत ही दूर हूँ।
मिलने-जुलने से भी मजबूर हूँ।

आपका अनूठा-अनुपम प्यार।
याद आ रहा मुझको बारम्बार।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, June 20, 2020

तेरी प्रतिक्षा में

सुरमयी गोधुली बेला तक,
यह आस लिए मैं खड़ी रही।
तुम आओगे, तुम आओगे,
विश्वास लिए मैं अड़ी रही।

आँखों के पल्ले फिहकाकर
,तकती रही मैं राह तेरी।
जाने कहाँ तुम भटक गए,
मन में उठती परवाह तेरी।

वह शाम ढली,अब रात भई,
लेकिन अब तक तुम ना आए।
चंदा की चमक, तारे की टिमक,
कुछ भी मुझको अब ना भाए।

तेरी प्रतिक्षा में खड़े-खड़े ,
जी उकताया सा-लगता है।
आशंकित दिल बेचैन ये मन,
कुछ धबराया-सा लगता है।

बस एक झलक की चाहत है,
हो रहा है अब चंचल चितवन।
व्याकुल हृदय कमज़ोर हुआ,
रुक ना जाए अब यह धड़कन।

अब भी समय है,तुम आ जाओ,
कुछ देर हुई कोई बात नहीं।
कुछ ना लाना, बस तुम आना,
हो मेरे लिए  सौगात तुम्हीं।
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

Thursday, June 18, 2020

चल छोटू

,
राय बहादूर सिंह जी पत्नी के साथ बस डिपो में उतरे।पत्नी को सामान देखने के लिए कहकर रिक्शे की तलाश करने चले।रिक्शे तो उन्हें कई मिले लेकिन भाड़ा ही अत्यधिक बोल रहा था।कई रिक्शे वाले को मनुहार किया- बाबु इतनी दूर से आया हूँ।बस वाले ने भी बोरियों के अलग से भाड़ा ले लिया।उन्हें तो तुमलोग जानते ही हो कितने बेरुखे और दवंग होते हैं।पर ,तुम तो समझदार हो।बस बजरंगी चौक तक ही तो जाना है।भारी सामान हैं इसलिए ।नहीं तो हम दोनों पैदल ही टहलते हुए चल देते।
किन्तु कोई भी रिक्शावाला तीस रुपये से कम में चलने को तैयार नहीं हुआ।
सिंह जी बीस से बढ़कर पचीस पर आ गए।फिर भी वे नहीं माने ।
उन्होंने इधर-उधर नजरें दौड़ाई।एक भोला- सा तेरह चौदह वर्षीय बालक पुराना जर्जर-सा रिक्शा थामें बेचारगी का भाव लिए खड़ा था ।
चल छोटू! सिंह जी ने बड़े प्यार से उसे पुचकारते हुए बुलायाा।
बेचारा बालक,रिक्शा चालक! तो जैसे उनकी आज्ञा रूपी पुकार का इंतजार कर रहा था।झट रिक्शा लिए बढ़ चला।सोंचा पचीस तक तो उन्होंने स्वयं देने की बात कही है।नहीं तो बीस तो अवश्य देंगे।इयलिए भाड़े पर कोई चर्चा नहीं की।दूसरे रिक्शा-चालक ने थोड़ा ऐतराज जताते हुए कहा- भाड़ा पहले ही तय कर लो ।लेकिन उनके  साथी रिक्शा-चालक ने इशारे से उसे रोक लिया ।शायद उसे उस बालक की दीनता पर तरस आ रहा था।उसने फुसफुसाते हुए कहा-जाने दो बीस रुपये ही सही कुछ तो कमाएगा।
उस छोटे-से रिक्शा-चालक ने सिंह जी की अनाज से भरी बोरियों को उठाने में अपनी पूरी शक्ति लगा दी पर बोरियाँ उससे ना हिली।दूसरे रिक्शा-चालक ने दया भाव से बोरियाँ चढा़ने में उसकी मदद की।दोनों पति-पत्नी तो पहले ही बैठ चुके थे।बोरियों के ऊपर उनके दोनों बैग रखकर वह रिक्शा चलाने लगा।
रास्ते में उसके टूटे-फूटे रिक्शे के लिए उन्होंने उसे खूब जली-कटी  सुनायी । नया रिक्शा खरीद लेने की सलाह भी दी।रिक्सशा चलाने के ढंग को अल्हड़पन बताया।और जाने क्या-क्या दोषारोपण किया।
बात-बात में उन्होंने यह भी जान लिया कि उसका बाप महीने भर से बीमार है।जिस कारण मजबूर हो वह विद्यालय जाना छोड़ कर रिक्शा चला रहा है ताकि घर में भोजन का प्रबंध , पिता का उपचार और रिक्शा-मालिक का किराया भुगतान हो ।
उसकी बातों को सुन उन्होंने अपनी अमीरी दर्शाते हुए कहा- हम तो घर से चना-मसूर ले आये घर की चीज है।खरीदने पर कितने पैसे लगते हैं।
यही बजरंगी चौक है दादाजी! बालक ने रिक्शा रोकते हुए कहा।
थोड़ा गली में घुसा दे बाबु ! थोड़ा-ही दूर है उनहोंने दुलारते हुए कहा।ठीक है आपलोग उतर जाइए।उधर बहुत चढ़ाव है।
अरे हमलोग कहाँ उतरेंगे बे्टा! अभी तुमने ही न दादाजी कहा।उमर का ख्याल करो ।तुम्हारे जैसा बच्चा थोड़े न हूँ कि जब चाहूँ चढ़ूँ जब चाहूँ उतारूँ।
वह जोर लगाकर रिक्शा चलाया। पर, चढान में चलाना मुश्किल लग रहा था।
सिंह जी की पत्नी ने सुझाव दिया- जरा उतर कर खींच बेटा!
वह उतर कर खींचने लगा ।कुछ देर में थक कर बोला अब मुझसे नहीं चलेगा।
सिंह जी ने कहा -जरा और जोर लगाकर खींच ना बेटा! भारी सामान है कैसे ले जाउँगा?
लड़के ने जोर लगाकर खींचते हुए कहा दादाजी आप उतरकर पीछे से ठेल दें तब चला जाएगा।
सिंह जी ने आँखें तरेरते हुए कहा- मैं ठेलूँ ? बोलने का तम्मीज नहीं है।बड़ा-छोटा का ख्याल नहीं मुझे रिक्शा ठेलने कहता है।मारूँगा दो चाँटे खीचकर गाल में तो मुँह घूम जाएगा।मैं इतने बड़े पद पर रहा हूँ ।कोई मुझे आज तक मेरा अपना काम तक करने को नहीं कहा और यह बालिस्त भर का छोकरा मुझे रिक्शा ठेलने को कहता है।तुम्हारे जैसे बच्चे का पूरा खानदान मेरी जी हुजूरी करता आया है। खुद तनिक जोर लगाकर खींचेगा तो नहीं चलेगा।
बेचारा डर से जैसे- तैसे रिक्शा खींचते रहा।
बीच-बीच में दोनों कभी ललकारते ,कभी खीजते हुए कहते क्या बच्चा है ? एक रिक्शा भी नहीं खींच सकता।
पत्नी ने कहा जमाना खराब है लोग मुफ्त में पैसा लेना जानते हैं।गली केलोग तमाशवीन बने उस बालक के जोर-आजमाइस को देखते रहे और वह बेचारा अँगुल - अँगुल भर रिक्शा खींचत हुए लगभग सौ मीटर की दूरी तय किया ।
हुएँ उचका पर चढ़ाकर रोक दे। अचानक सिंहजी ने एक ओर इशारा करते हुए कहा तो बेचारे की जान-में-जान आई।एक बार पूरी ताकत लगाकर रिक्शा खींचते हुए ऊपर चढ़ाया और हाँफता हुआ रोक दिया ।जैसे रेस का निशान पार कर गया हो ।चेहरे से टपकते पसीने को पोछते हुए सामान उतारने लगा। स्वागत में खड़े उनके नौकर  ने मिलकर बोरियाँ उतारी।जब सारा सामान उतर गया तो  सिंहजी ने झट उसके हाथ में दस रुपये का नोट थमाकर गेट में घुसने लगे ।
इतने में क्या होगा दादाजी कम-से-कम बीस रुपये तो दिजिए।
क़्यों नहीं होगा बच्चा है ज्यादा पैसा लेकर क्या करेगा।उनकी पत्नी ने डाँटते हुए कहा।जा बिस्कुट- लेमनचूस खरीदकर खा ले।
दस रुपये और दिजिए दादाजी! पिताजी की दवा भी लाना है।
क़्यों दूँ उस समय तुमने बात क़्यों नहीं किया।मैं तो तुम्हें छोटा समझकर ही लाया।चल भाग यहाँ से नहीं तो पिटाओगे।
बेचारा छोटा रिक्शा- चालक अपनी छोटी कमाई हाथ में लिए सोंच रहा था कैसे इतने में सारे काम होंगे? वह सिंह जी के विशाल भवन को निहार रहा था। आँखों के अस्क गालों के स्वेद से मिलकर धारा- प्रवाहित हो रहा था।जिसे पोछकर विराम देने का हौसला उसमें नहीं था।
                सुजाता प्रिय'समृद्धि'
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Wednesday, June 17, 2020

चेत -चेत तू ऐ चीनियों

खबरदार ऐ चीनी सैनिक,
        आँखें हमें दिखाओ ना।
धोखे से हमला करने वाले,
         इतना तुम इतराओ ना।
हम भारत के वीर सिपाही,
        तुम्हें भगाकर दम लेंगे।
मेरी सीमा पर अगर रेंगे तो,
         हम तेरा फन कुचल देंगे।
इतिहास अगर दुहराओगे,
       उन्नीस सौ बासठ,सड़सठ का।
आठ अगर हम खड़े हुए तो,
     खून बहाएँगे तुम अड़सठ का।
गलवन से तुम कदम हटा लो,
         लेह और लद्दाख हमारा है।
भारत माँ के कंधे पर केवल,
   जन्मसिद्ध अधिकार हमारा है ।
चेत -चेत तू अब ऐ चीनियों,
            तेरा न यहाँ ठिकाना है।
नेस्तनाबुद तुझको करने को,
            हमने भी प्रण ठाना है।

      सुजाता प्रिय'समृद्धि'
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वैज्ञानिकों से विनती

हे! कम्प्युटर रोबोट बनाने वाले।
मशीनों से सब काम चलाने वाले।

एक  मशीनी नारी भी बना दे ।
करने उसको सब काम सिखा दे।

रिक्तियाँ नारियों की जो भर सके।
पुरुषों के सब दुखड़े वह हर सके।

जिसे लगे न कभी भूख-प्यास।
उसके दिल में ना हो कोई आस।

जिसे नहीं हो कभी कोई चाह।
ना हो उसकी अपनी कोई राह।

पाँव रहे उसके दो बड़े - बड़े।
आज्ञा पालन करने दौड़ पड़े।

हो उसके दो बड़े- बड़े हाथ ।
मेरे कामों  में  दे हरदम साथ।

दिन रात करती जाए सब काम।
कभी न चाहिए उसको आराम।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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Monday, June 15, 2020

,खून के बदले खून'(लघुकथा)

बचपन से ही महेश और रोहन के बीच प्रगाढ़ मित्रता थी।रहते तो दोनों एक ही कस्वे में थे।लेकिन दोनों के घरों के बीच काफी दूरी थी।फिर भी उन्हें एक-दूसरे से मिले बिना चैन नहीं।
लेकिन,'कभी-कभी खुबियाँ भी अभिशाप बन जाती हैं।'
ऐसी ही कुछ बातें उनकी मित्रता में भी ग्रहण लगा गई।क्योंकि महेश एक कुशल कलाकार था।उसे लेखन,गायन ,वादन ,चित्रकारी,नृत्य इत्यादि में महारत हासिल थी।रोहन उससे उन कलाओं को सीखता और उसकी सराहना भी खूब करता।किन्तु जब महेश को उसकी कलाओं के लिए प्रसिद्धि मिलने लगी तो रोहन के मन में ईर्ष्या अपना फन फैलाने लगा।वह महेश से चिढ़ने लगा और बात-बात में उसे बेवकूफ बनाकर उसका मजाक उड़ाने लगा।सराहना की जगह उसका अपमान और दुष्प्रचार करने लगा।
इस बात से दोनों मित्रों में हमेशा कहा-सुनी होने लगी। बात इतनी बढ़ गई कि दोनों के मन में प्यार की जगह कड़वाहट ने ले ली।रोहन हमेशा ताक मे रहता कि किस तरह उसे नीचा दिखा कर अपमानित करें। एक बार काव्य गोष्ठी में जब उसे सम्मानित किया गया , तब रोहन चिढ़कर महेश को भला बुरा कहने लगा।दोनों में तू-तू ,मैं-मैं होते-होते हाथा-पाई होने लगी।मौका देखकर रोहन महेश को उठाकर पत्थर पर पटक दिया।महेश का सिर जख्मी हो गया और काफी खून बहने लगा।उसे कई दिनों तक अस्पताल में इलाजरत रहना पड़ा।
इस घटना से महेश के मन में रोहन के प्रति नफरत और बदले  की आग धधक उठी।उसके अन्तर्मन में हमेशा यह विचार कौंधता - खून का बदला खून से लेना है ।लेकिन स्वभावतः वह अपने मन के कुविचारों का दमन कर देता।
कुछ दिन बाद वह किसी खास रोगी से मिलने अस्पताल गया तो देखा रोहन को स्ट्रेचर पर लेटाकर इमरजेंसी बार्ड में ले जाया जा रहा है ।पीछे से डॉक्टरों की टीम दौड़ी जा रही है।उसने पूछ-ताछ की तो पता चला कार दुर्घना में वह बुरी तरह धायल हो चुका है।उसी समय नर्स ने आकर उसके परिजनों से कहा।तुरंत खून का इंतजाम करिए नहीं तो उनको बचा पाना मुश्किल हो जाएगा।खून ज्यादा बह गया है।और ब्लड बैंक में उनके ग्रुप का खून नहीं है।
यह सुनकर महेश का मन विचलि हो उठा।उसे विद्यालय का वह दिन याद आया जब दोनों का ब्लड ग्रुप एक रहने के कारण उनके दोस्त उन्हें 'खून का दोस्त' बुलाते थे।
उसके मन में 'खून के बदले खून' का विचार फिर कौंध गया।वह रोहन 'द्वारा दिए गए जख्म को सहलाते हुए बुदबुदाया - हाँ मै खून का बदला खून से ही लूँगा। वह तेजी से रोहन के परिजनों एवं नर्सों के निकट जाकर बोला मेरा और रोहन का खून एक ही ग्रुप का है ।कृपया आप मेरा खून उसे चढ़ाकर मेरे दोस्त की जान बचा दें। नर्स उसे लेकर आगे बढ़ गई।रोहन के परिजन महेश की महानता देख हतप्रभ रह गए ।
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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