केवट की विनती (मगही भाषा)
पाँव न सटैहा,हो रघुरैया।
नारी न बन जाए कहीं मोर नैया।
पाँव न सटैहा......
तू जो पथलवा में पाँव सटैला।
पल भर में ओकरा तू नारी बनैला।
पैला जग में बडै़या हो रघुरैया।
पाँव न सटैहा .........
जब तोहें चढ़बा नैया में हमर।
चरण पखारे के दें दा तू अवसर।
नै लेबो हमें चरणा-धोलैया हो......
पाँव न सटैहा.......
पहले हम रामजी के पाँव पखारब।
और सीता मैया के चरण फखारव,
फखारब तब तोर लक्ष्मण भैया
पाँव न सटैहा...............
हँस कर रामजी नाव में बैठला।
लखन जी राम के पीछे बैठला।
संगबा में बैठली सीता मैया।
पाँव न सटैहा........
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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