आया बंदर
कूद- कूदकर आया बंदर।
मेरी मधु बगिया के अंदर।।
आमों की डाली पर झूला।
अपनी करनी पर खूद फूला।।
चुटकियों में फूल मसलकर।
नन्हें- नन्हें पौध कुचलकर।।
सब तहस-नहस कर डाला।
पके फलों को तोड़ उछाला।।
बीच चबूतरे पर चढ़ बैठा।
थके देह को थोड़ा ऐठा।।
चोरी- चोरी चुपके- चुपके।
धीरे -से मैं पहूँची छुप के।।
लम्बी पूंछ उसकी झट पकड़ी।
हथेलियों में कसकर जकड़ी।।
बंदर बोला खीं- खीं करके।
पूछ छोड़ मैं भागी डर के।।
उछल कर बंदर आगे आया।
आँख दिखाकर मुझे डराया।।
चिल्लाई मैं माँ-माँ कहकर।
बंदर भागा तुरंत उछल कर।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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