Thursday, November 14, 2024

अधूरा ज्ञान

अधूरा ज्ञान 

कहा कबूतर,सुन भाई तीतर!
              पास मेरे तुम आओ ना।
कैसे घोंसला बनता है यह,
             मुझको जरा सीखाओ ना।
बोला तीतर सुनो कबूतर।
            तिनके चुन-चुनकर लाओ।
गोल-गोल सा उन्हें घुमाकर,
              एक -दूजे में अटकाओ।
थोड़ा समझकर,कहा कबूतर,
            हाँ-हाँ मैं सब समझ गया।
घोंसला पूरी कर लूंगा मैं,
              समझा आगे होगा क्या।
तिनके तीतर से ले कबूतर,
            लगा घोंसला स्वयं बनाने।
पर घोंसला बना न पाया,
          कहा तीतर को पुनः बताने।
कबूतर ने थोड़ा और बताया,
      कबूतर फिर बोला,समझ गया।
इसी तरह बार-बार पूछता,
          तुरंत कहता मैं समझ गया।
घोंसला बनाने के लिए तीतर ने,
         जब-जब उसको समझाया।
अधूरा ज्ञान पा हाँ कह देता,
         घोंसला कभी न सीख पाया।
कबूतर ही ऐसा पक्षी है जो,
           घोंसला नहीं बना पाता है।
अन्य प्राणियों के निवास में,
              वह जाकर रह जाता है।
जो जन ज्ञान अर्जित करने में,
               चित को नहीं लगाते हैं।
कभी-भी वे अपने जीवन में,
                सफल नहीं हो पाते हैं।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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