कौए की नादानी
एक कौआ प्यास से व्याकुल
मुश्किल से पानी पाया।
घडे़ में थोड़ा पानी देख,
उसके मन में आया।
मेरे पूर्वज बड़े मूर्ख थे जो,
कठिन परिश्रम करते थे।
एक-एक कंकड़ लाकर,
घडे़ में डाला करते थे।
मैं तो एक बड़ा-सा पत्थर,
उठाकर घड़े में डालूँगा।
थोड़ी-सी मेहनत कर ही,
मैं पानी को पा लूंगा।
जोर लगा बड़ा-सा पत्थर,
चोंच में उसने उठाया।
झट जाकर उसने उसको,
घडे़ के अंदर गिराया।
भारी पत्थर से घटतल टूटा,
लगा पानी अब बहने।
प्यासा कौआ अति विकल हो,
लगा चोंच रगड़ने।
इसीलिए करो सब काम,
थोड़ा तुम सोंच-समझकर,
बड़े-बुजुर्गों के अनुभव का,
पूरा लाभ लेकर।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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