Saturday, January 30, 2021

गांधी के विचार



कहते थे गांधी बारम्बार।
सादा जीवन उच्च विचार।

अहिंसा ही जीवन का सार।
कर इसको मन से स्वीकार। ‌

सच्चाई है  तेरा  हथियार।
और मिथ्या  है तेरी  हार।

कभी नहीं तुम हिम्मत हार।
यही है जीवन का आधार।

करो नहीं तुम अत्याचार।
हाथ नहीं  लेना  तलवार।

तुझपर है माता का भार।
भारत मां से करना प्यार।

   सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
      स्वरचित, मौलिक

Friday, January 29, 2021

इसे कहते हैं मानवता



अपना सामान समेटता हुआ मनोज उठ खड़ा हुआ।बस उसके गांव पहुंच चुकी थी।वह बस रोकने के लिए कहता इससे पहले ही बस रुक गई।कण्डक्टर ने कहा-बस आगे नहीं जाएगी। सड़क पर एक ट्रक पलट गया है। यात्री कम ही बचे थे। सभी जल्दी-जल्दी उतरने लगे।वे बोल रहे थे अब तो हमें अपने गांव तक पैदल ही जाना होगा। अभी कोई सवारी भी नहीं मिलेगी।शाम हो गई थी । अंधियारा छाने लगा था। मनोज अपना गांव पहुंच चुका था, इसलिए उसे कोई चिंता नहीं थी। बस से उतरा तो देखा एक युवती बस से उतरकर पगडंडियों पर चली जा रही थी। अचानक वह खेतों की ओर उतरकर चलने लगी। मनोज ने उसे टोकते हुए कहा-आप उस ओर क्यों जा रही हैं ? 
युवती ने तिरछी नजरों से उसे देखते हुए कहा- आपको मतलब ।
वह निरुत्तर हो गया।फिर भी संयत स्वर में कहा- मतलब तो कुछ नहीं।पर, मैं आपको सचेत कर रहा हूं कि आप जिस ओर जा रही हैं उधर पानी का जमाव था इसलिए वहां दलदल है। आपके पांव उधर धंस सकते हैं और आप नाहक परेशानी में पड़ जाएंगी।
अब युवती कुछ शांत हुई सहमकर रुक गई।
मनोज ने पूछा- आपको किसके घर जाना है ?
उसने नदी के उस पार वाले गांव की ओर इशारा करते हुए कहा- मुझे उस गांव में जाना है इसलिए सोची इधर से तिरछा चली जाऊं तो जल्दी पहुंचूंगी।
मनोज ने कहा -अंधियारे में अकेली नदी पार करना ठीक नहीं। पांच मिनट रुकिए । सामने मेरा घर है।सामान रखकर आता हूं तो साथ चलूंगा। युवती असमंजस की स्थिति में खड़ी रही।
वह जल्द ही अपने घर से वापस आ गया।अब उसके हाथ में टार्च था और उसके साथ दो अन्य लड़के भी थे।जब वे युवती के पास पहुंचे तो वह झिझकती हुई उनके साथ चल दी। रास्ते भर वह डरी सहमी सी रही यह उसके चेहरे से साफ झलक रहा था।नदी जल विहीन थी जल्द ही वे उसके गांव पहुंच गए।
अब वह तेजी से अपने घर की ओर बढ़ी जा रही थी।जब वे उसके घर के निकट पहुंचे तो उसके घर वाले उसी ओर आ रहे थे उसे लेने।उन्हें पता चल चुका था कि सड़क जाम है।
युवती ने उन्हें बताया कि किस तरह सड़क जाम रहने के कारण उसे दूसरे गांव में उतरना पड़ा। और अकेली देखकर वे उसे साथ छोड़ने आए।
सारी बातें सुनकर अनायास उनके मुंह से निकल पड़ा-"इसे कहते हैं मानवता"
उन्होंने मनोज तथा उसके भाइयों की खूब सराहना की फिर उन्हें रोककर चाय-नाश्ते के लिए कहा ।लेकिन उसने कहा- देर होने से मेरे घर के लोग भी चिंतित होंगे।वह उन्हें नमस्कार करता हुआ वापस चल पड़ा।
सभी लोग उसे प्रसंशा भरी निगाहों से देख रहे थे।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित, मौलिक

Wednesday, January 27, 2021

फेकनी। ( लघु कथा )



आपका पुकारु नाम क्या है गीताजी?
सावित्री देवी ने पड़ोस में रहने वाली गीता  से पूछा।
फेकनी। उसने झट से जवाब दिया।
यह भी कोई नाम होता है? उनके मुंह से अनायास निकल पड़ा।
हां !क्यों नहीं  ? जब मुझे फेंक दिया गया तो फेकनी ही नाम पड़ेगा न। उसने  वेबाकी से कहा।
फेंक दिया गया ! कौन फेंका आपको ?
शायद जिसे बेटी नहीं चाहिए थी । गीता आक्रोशित स्वर में बोली।
उसकी आवाज ने एकदम से सावित्री देवी का मन झकझोर दिया।
आपको फेंक दिया गया तो आप कैसे  अभी जिंदा हो ?
फेकनी ने बताया मुझे रेलवे स्टेशन के निकट झाड़ियों में फेंक दिया गया था। मेरे पालक पिताजी को मुझे देख कर दया आ गई और उन्होंने अपनी गोद में मुझे उठा लिया और घर ले आए। मां को तीन बेटे थे।मुझ बेटी को पाकर खुश होकर मुझे पवित्र नाम गीता दिया।और बड़े लाड़-प्यार से पाला-पोसा ।
पर पास-पड़ोस के लोग मेरी इस सच्चाई से वाकिफ थे। इसलिए मुझे फेकनी ही पुकारते थे। और यही मेरा पुकरु नाम रह गया । इसी नाम से मुझे सभी जानते हैं।
  वाह !बहुत अच्छे हैं आप के माता-पिता। और आपके ससुराल वाले कैसे हैं?
वे भी बहुत अच्छे हैं। गीता ने बताया।
आपकी इस बात को वे जानते हैं ?
हां इस बात के कारण ही तो उन्होंने मुझे अपनी बहु बनाया।
क्या sssssss ! इस बात के कारण ?
सावित्री देवी का मुंह आश्चर्य से खुला-का -खुला रह गया।
 गीता ने बताया-मेरे बारे में लोग परिवार को पता था ।इसलिए कोई मुझसे शादी नहीं करना चाहता था।  इस बात की जानकारी जब पिताजी के दोस्त को हुई तो उन्होंने मेरे ससुराल का पता बताते हुए कहा -शायद वहां आपका काम बन जाए।जब पिताजी वहां पहुंचे तो मेरी सास ने बेझिझक मेरे पिताजी को बताया कि वह किसी प्राइवेट अस्पताल में नर्स हैं। वहां किसी कुंवारी कन्या ने एक बच्चे को जन्म दिया था और लोक-लाज के भय से एक रात चुपके से अपनी मां के साथ भाग गई।जब बच्चे को कोई नहीं ले गया तो उन्होंने उसे लाकर उनका नाम कर्ण रखा, पाला-पोसा और पढ़ा-लिखाकर बड़ा किया। नौकरी भी लग गई। लेकिन उसकी शादी में भी इसी बात की अड़चन थी। और हम दोनों तिरस्कृत बच्चों का विवाह हो गया । अब हमारे दोनों बच्चों का विवाह में भगवान जाने क्या होगा?
    सावित्री देवी ने गीता को सांत्वना देते हुए कहा - धन्य हैं आपके माता-पिता और सांस श्वसूर जो अपलोग को इतने लाड़-प्यार से पाला - पोसा।अगर आज समाज में आपके पालक माता- पिता और सांस ससुर जैसे अच्छे लोग हैं तो भविष्य में भी रहेंगे। आपके बच्चों का विवाह भी ऐसे ही संपन्न हो जाएगा।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित , मौलिक
 
सच्ची घटना पर आधारित 🙏🙏

Monday, January 25, 2021

गणतंत्र दिवस ( देशभक्ति गीत )



आज आनंद, आनंद,आनंदम।
आज आनंद, आनंद,आनंदम।

आज देखो है भाई छब्बीस जनवरी,
सारे देश में झंडे की धूम मची।
आज आनंद-----------------

गणतंत्र-दिवस हमारा राष्ट्रीय पर्व है।
अपने गणतंत्र देश पर हमें गर्व है।
आज आनंद-----------------

इसी दिन संविधान अपना था लागू हुआ।
जैसे पूर्ण स्वाधीनता की हुई रक्षा।
आज आनंद---------------------

धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है भारत मेरा।
समानता इसके आंचल में बसा।
आज आनंद----------------

यहां जाति और धर्म का भेद नहीं।
नहीं है निर्बल कमजोर कोई कहीं।
आज आनंद---------------------

हम घर-घर तिरंगा फहराते चलें।
भारत माता को शीश नवाते चलें।
आज आनंद------------------
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
         स्वरचित, मौलिक
       🙏🙏🙏🙏🙏

बिटिया का संदेश



बैठी थी इक ठांव मैं अपने,
                       बिखरे पन्ने लेकर जीवन के।
लाख कोशिश कर भी मैं, 
                   सुलझा न पाई उलझन मन की।
जीवन पथ की बाधाओं को, 
                         कविताओं में बांध रही थी।
हकीकत में जो सध न पाया, 
                         कहानियों में साध रही थी।
असफलताओं से टूटे मन को,
                       निराशाओं से हताश मन को।
सांत्वना दें रही थी अपने, 
                        मुरझाए हुए  निराश मन को।
वहीं पर छोटी बिटिया मेरी, 
                         खिलौने लेकर खेल रही थी।
क्यारी में खिले गुलाब पर, 
                        नजरें अपनी वह फेर रही थी।
लक्ष्य बनायी फूल तोड़ना,
                       वह हाथ बढ़ाती वह बारम्बार।
पकड़ी उसने फूल की डाली,
                          मुंह से निकल पड़ी चित्कार।
कोमल कर में चुभ गये कांटे,
                        नयनों में उसके भर गये पानी।
होंठ फुलाकर बिलख उठी वह,
                            लेकिन उसने हार न मानी।
हाथ बढ़ाई पुनः एक बार वह,
                                आये कुछ पत्ते हाथ में।
सफलता की किरण मिलीउसे, 
                                कुछ आशा के साथ में।
एक बार फिर बढ़ चली, 
                       पुनःउठकर वह फूलों की ओर।
अपने नन्हे कदम बढ़ाकर, 
                          हाथ से  डाली पकड़ मरोड़।
बढ़ा दूसरा हाथ झट अपने, 
                             फूल को उसने तोड़ लिया।
असफलताओं को मार तमाचे,
                              जवाब उसे मुंहतोड़ दिया ‌।
इस तरह मुक भाषा में उसने, 
                             यह संदेशा हमको दे डाला।
बाधाओं से हरदम लड़ना, 
                                 पड़े क्यों ना विष-प्याला।
असफलता अगर मिले कभी तो,
                                   मन को न निराश करो।
सफलता संमुख होगी मेहनत से,
                                  मन में यह विश्वास धरो।
                        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                          स्वरचित, मौलिक

Saturday, January 23, 2021

भाग ले कोरोना



लॉक डाउन लगा हुआ है,
               हम बंद पड़े हैं घर में।
बोर हो रहे कमरे के अंदर,
                पड़े - पड़े बिस्तर में।
इस  रोग  की यही दवा है , 
                दूर  रहें  हम जन से।
मिलना-जुलना कुछ दिन छोड़ें, 
               मित्रों औ परिजन से।
जनता कर्फ्यु लगा था उस दिन,
                ऐसे ही उकताए थे ।
कैरम - लूडो खेल घर में,
          दिनभर समय बिताए थे।
शाम के पाँच बजते ही हम, 
                  खूब बजाए ताली।
दीदी- मुन्ना दोनों मिलकर , 
       .          बजा रहे थे थाली।
सब लोगों के हाथ में टुन-टुन , 
                  बज रही थी घंटी।
शंख नाद कर उठे जोर से, 
              छत पर अंकल-अंटी।
दादाजी ने बालकनी में, 
                 ढोलक खूब बजाई।
एकता का संदेश सभी ने, 
                     एकजूट हो गाई।
सभी घरों से ऐसी-ही ,
               झंकार सुनाई दी थी।
भाग-भाग तू ऐ कोरोना! 
              दुत्कार सुनाई दी थी।
संगठन में शक्ति बहुत है , 
           हमसब संगठित होकर।
सारे नियमों का पालन कर, 
            लड़ें आपदा से डटकर।
एक मत हो सारे मानव,
            कोरोना का नाश करेंगे।
इसे हराकर फिर से हमसब,
                  सुख से बास करेंगे।
कोरोना से युद्ध हमारा,
                तब-तक रहेगा जारी।
जब-तक इसके प्रकोप से ना,
                मुक्त हो दुनियाँ सारी।
कोरोना को दूर भगाने को,
                    सब हो जा तैयार।
सब हो जा तैयार साथियों!
                    सब हो जा तैयार।
                                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, January 22, 2021

जीओ भारत के वैज्ञानिक



जीओ देश के वैज्ञानिक ,
         भारत मां के सुपुत्र महान।
सबके संकट हरण किए तुम,
      बनकर कलियुग के हनुमान।

वन - पर्वत से खोज-ढूंढकर,
     आखिर संजीवनी ले ही आए।
ग्यारह महीने जांच-परखकर,
         कैविड 19 वैक्सीन बनाये।
कोरोना से रक्षा करने के लिए
           किया तूने पहला निर्माण।
जीओ देश के वैज्ञानिक,
          भारत मां के सुपुत्र महान।

फिर से नया इतिहास रचे तुम,
      समृद्ध भारत का मान बढ़ाये।
मेरा भारत अग्रणी सदा से,
         दुनिया को यह बात बताए।
आखिर वाजी तुमने ही मारी,
         तुमपर है हमको अभिमान।
जीओ देश के वैज्ञानिक,
          भारत मां के सुपुत्र महान।

कोरोना पर विजय पताका,
             तुमने ही पहले लहराये।
भारत मां के मानचित्र पर,
               बड़ी नाज से फहराये।
उपकार मानकर सारी दुनिया,
                 गाएगी तेरा गुणगान।
जीओ देश के वैज्ञानिक,
          भारत मां के सुपुत्र महान।  

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित, मौलिक

Tuesday, January 19, 2021

बगल वाली सुंदरी


सुनो सुहानी, एक पुरानी, सुना रही हूं घटना।
मैं अपने दीदी जीजा संग , जा रही थी पटना।

जनरल बोगी मैं हम दीदी के पास जाकर बैठे।
सामने वाली सीट पर जीजाजी भी आकर बैठे।

जीजा बोले -
बगल सीट की सुंदर रुमाल दिखाकर।
देखना बैठेगी मेरे साथ कोई सुंदरी आकर।

थोड़ी देर में एक आदमी सीट पर बैठने आया।
जीजाजी की बगल अपनी कुतिया को बैठाया।

जीजाजी का चेहरा हमको लगा देखने लायक ‌।
जीजाजी के संग बैठी सुंदरी लगी बड़ी सुखदायक।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
              स्वरचित, मौलिक

Monday, January 18, 2021

चिंता और चिंतन



चिंतन कर ले कभी-कभी पर,चिंता कभी न करना।
चिंतन कर तुम सुन ऐ प्राणि, अंधकार मन के हरना।

चिंता करने से चित हो जाता पानी-पानी भाई।
चिंतन करने से पा सकते होे जीवन की गहराई।
चिंता करने से मानव जन सफल कहां होते हैं।
चिंता करके केवल अपना सर्वस्व सदा खोते हैं।
चिंतन,मंथन और मेहनत से, तुम कभी मत डरना।
चिंतन कर लें कभी-कभी पर चिंता कभी न करना

चिंता मानव के तन को है दीमक बनकर खाता।
चिंता करनेवाला जीवन में कंकाल बन रह जाता।
चिंता मारता नहीं है लेकिन,बेमौत सुला देता है।
चिंता चिता बन मानवजन का सत्व जला देता है।
चिंता करके तुम भी देखो, बेमौत कभी मत मरना।
चिंतन कर लें कभी-कभी पर, चिंता कभी न करना।

चिंता करने से नहीं हम हैं पा सकते मंजिल को।
चिंतन की पतवार पकड़ कर,छू सकते साहिल को।
चिंता से चतुराई घटती है, पर चिंतन से बढ़ती है।
चिंतन करने वाले को अपनी मंजिल भी मिलती है।
चिंतन करके तुम भी देखो, राह नयी नित  गढ़ना।
चिंतन कर लें कभी-कभी,पर चिंता कभी न करना।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
      स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

Tuesday, January 12, 2021

हमारी गीता सभी धार्मिक ग्रंथों की नींव है


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आज से १२८ वर्ष पूर्व  १८९३ ई० में स्वामी विवेकानंद जी  विश्व धर्म सम्मेलन में अपने देश भारत के हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व करने अमेरिका के शिकागो नामक शहर में पहुंचे तो जानबूझ कर उन्हें अपने धर्म के बारे में बोलने के लिए सबसे अंत में अवसर दिया गया। 
इस बात की परवाह नहीं करते हुए उन्होंने अपने भाषण के प्रारंभ में वहां की जनता को संबोधित करते हुए कहा -मेरे प्यारे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों! 
इस बात पर सभागार मिनटों तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजती रही। उनके द्वारा दिया गया यह भाषण पूरी दुनिया में ऐतिहासिक भाषण बन गया।भाषण के बाद अन्य धार्मिक  गुरुओं ने हिन्दू धर्म को नीचा दिखाते हुए विवेकानंद जी से अनेक प्रश्न करने लगे।
 उन्होंने पूछा - आपको अपनी संस्कृति और भाषा के बारे में क्या कहना है ?
विवेकानंद ने तपाक से जवाब दिया - मुझे क्या कहना ? सभी जानते हैं हमारी संस्कृति सभी संस्कृतियों का मस्तक है और हमारी भाषा संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। 
तो लोगों ने वहां एक के ऊपर एक रखी विश्व के सभी धार्मिक ग्रंथों (जिसे उन्होंने ही इस प्रकार से रखा था) को  इंगित करते हुए कहा- तो आपके द्वारा लाया गया यह धार्मिक ग्रंथ 'गीता' सभी ग्रंथों के नीचे क्यों रखा है।
विवेकानंद जी ने उत्तर देते हुए कहा - क्योंकि हमारा धार्मिक ग्रंथ 'गीता' सभी धार्मिक ग्रंथों की नींव है। 
उस धार्मिक गुरु ने स्वामी विवेकानंद जी का अपने देश की संस्कृति  साहित्य ,भाषा एवं धर्म के प्रति निष्ठा और समर्पण देख सम्मान से सिर झुका लिया।🙏

            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
              स्वरचित, मौलिक

Wednesday, January 6, 2021

मुखड़े पर मुखौटा



आगत युग में नारियों को,
         अपना रूप बदलना होगा।
अपने सुंदर मुखड़े पर हमें,
       अलग मुखौटा रखना होगा।

जगह-जगह पर गिद्ध खड़े हैं,
                 नयन उठाकर देखो।
नोच-खसोट खाने को आतुर,
             जिधर भी नजरें फेंको।
उनको मार भगाने हमको,
               तुरंत सम्हलना होगा।
अपने सुंदर मुखड़े पर हमें,
       अलग मुखौटा रखना होगा।

बहुत बनी हम शील अहिल्या, 
                  बनी द्रौपदी-सीता।
बहुत बनी सुंदर-सुकोमल,
                सुहृदया - सुपुनीता।
सती अनुसूया के पथ पर,
         अब हमको चलना होगा।
अपने सुंदर मुखड़े पर हमें,
     अलग मुखौटा रखना होगा।

उस मुखौटे पर दृढ़ता के,
             छलकाना होगा पानी।
रणचंडी बन रचनी होगी,
        वीरता की अलग कहानी।
अब मन से कोमलता तजकर,
                क्रूरता धरना होगा।
अपने सुंदर मुखड़े पर हमें,
      अलग मुखौटा रखना होगा।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
        स्वरचित, मौलिक

Friday, January 1, 2021

🙏🙏नव संकल्प 🙏 🙏



नये साल का नया सवेरा ,
         खुशियां लेकर आया है।
नई उम्मीदें मन में जागी,
          उर में आनंद समाया है।

सुख-समृद्धि,औ सौभाग्य से,
          आंगन सबका भर जाए।
नई सुबह में नये प्रसून ,
            नित आंगन में मुस्काए।

सुबह सुनहरी,रंगीन दुपहरी,
           सुरमई संध्या- रैन मिले। 
भोजन-वसन-आवास मिले,
         जीवन में सुख-चैन मिले।

धन-दौलत का अंबार रहे,
         सुख-साधन अपार मिले।
खुशियों की बारिश में भींगे,
        हंसी की बहती धार मिले।

नई उमंग,नव उत्साह ले,
          जीवन की शुरुआत करें।
छोड़ सभी अब गिले-शिकवे,
             प्रेम-भाव की बात करें।

आस नयी, विश्वास नया,
             मन में ले उल्लास नया।
नई उम्मीद ले कदम बढ़ाएं,
          काम करें कुछ खास नया।

नया साल में नयी सोंच हो,
        ईश्वर दो बस इतना वरदान।
नयी रीति से सब काम करें,
       सदा करें हम जन-कल्याण।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
   स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित