Friday, January 31, 2020

बारात वसंत की

मौसम की पालकी पर सज सँवरकर ।
आया है वसंत देखो जी दुल्हा बनकर।

नव पल्लवों ने वंदनवार सजाए।
मंजरियों ने स्वागत द्वार सजाए।

कोयल गा रही स्वागत गान।
भौंरों  ने  मीठे  छोड़े  तान।

पंखुड़ियों  की घुंघट डाल।
फूलों ने पहनाये जयमाल।

पलास सिर पर तिलक लगाकर।
नव कोंपलों से लाया परछकर ।

बेला - जूही औ चंपा-चमेली ।
आगे बढ़कर करी ठिठोली।

चिड़ियाँ चहकी कलियाँ महकी।
चली हवा कुछ बहकी-बहकी।

पत्ते बजा रहे हैं झूमकर ताली।
थिरक-थिरक कर डाली-डाली ।

जन-जन का अब मन है हर्षित।
सरस-सलिल जीवन है पुलकित।
                       सुजाता प्रिय

अभी न होगा मेरा अंत

अंत सुनिश्चित है जग वालों ,
पर,अभी न होगा मेरा अंत।
अभी-अभी तो आया हूँ मैं,
संग में लेकर खुशियाँ अनंत।

तरुओं की जर्जर काया को,
हमको तरुण बनाना है।
पतझड़ से खाली डाली में,
नव पल्लव भर जाना है।
पल्लवों के ऊपर मंजरियों का,
झालर हमें सजाना है।
उस झालर के बीच हमको,
टिकोलियाँ लटकाना है।
नंदन-कानन सजाने आया मैं,
शुभ भावों का शुभेच्छु संत
अभी बहुत से जप-तप करना,
अभी न होगा मेरा अंत।

अभी रंगीन तितलियों को,
फूलों पर मड़राना है
अभी तो नीड़ में अकुलाती,
चिड़ियों को चहकाना है।
अभी तो भौंरों को संगीत का,
सुंदर तान बजाना है
कोयल के प्यारे गीतों को,
पंचम सुर में गाना है।
जीव-जगत मनुहार है करता,
अभी न जाओं तुम वसंत।
इसलिए तो कहता हूँ मैं,
अभी न होगा मेरा अंत।

अभी तो खेतों की क्यारी में,
हरियाली भर जाना है
सरसों  की पीली कलियों से
धरती हमें सजाना है।
रवि फसल के छिमियों में,
अन्न के दाने भर जाना है।
लताओं में लटकी फलियों को,
सुमधुर सरस कर जाना है
चमक धरा जब मुस्काएगी,
मुस्काएगा दिग-दिगंत ।
अभी-बहुत ही काम है करने,
अभी न होगा मेरा अंत।
             सुजाता प्रिय

Tuesday, January 28, 2020

क्षमा प्रार्थना

हे ज्ञान दायिनी प्यारी माता,
क्षमा करो अपराध ।
कला ज्ञान-विज्ञान विधाता,
क्षमा करो अपराध।

क्षमा करो मैं जग-प्राणि के,
अवगुण चित में लाती हूँ।
गुण का आदर कर नहीं पाती,
ईर्ष्या से भर जाती हूँ।
जल-भुनकर मैं मन में अपने,
भर लेती हूँ विषाद,
मेरा क्षमा करो अपराध।

कंठ दिया मुझे शब्द दिया,
पर मधुर वचन न बोलूँ मैं।
वाणी दो ऐसी माँ मुझको,
जब भी मुख को खोलूँ मैं।
स्वर में पहले मधुरस घोलूँ
फिर मैं बोलूँ बात,
मेरा क्षमा करो अपराध।

मुझ दुष्टा को हे जग द्रष्टा,
ज्ञान की राह दिखाना माँ।
जब मैं भटकूँ हाथ पकड़कर,
सत-पथ पर ले आना माँ।
ज्ञान-गुरू बन सर पर मेरे,
रखा हरदम हाथ।
मेरा  क्षमा करो अपराध।

क्षमा,दया,तप त्याग की माता,
दे करके वरदान।
मन में ऐसी लगन लगा दे,
करूँ मैं जन कल्याण।
सारा जग रोशन कर डालूँ,
सत्य का देकर साथ।
मेरा क्षमा करो अपराध।
             सुजाता प्रिय

Saturday, January 25, 2020

भारत माता गीत

नित्य नवाते भारत माँ,हम शीश तुम्हारे चरणों में।
माँ शीश तुम्हारे चरणों में।।
नित्य सेवा करके पाते हैं,आशीष तुम्हारे चरणों में ।
आशीष तुम्हारे चरणों में।।

हिमालय तेरा मुकुट बना।
गंगा-यमुना तेरी माला।
पायल बनकर झंकार रहा,है हिंद तुम्हारे चरणों में।
माँ हिंद तुम्हारे चरणों में।

जब तक सूरज और चाँद रहे।
जब तक गंगा की धार रहे।
धरती पर तेरी शान रहे, रहे जीत तुम्हारे चरणों में।
रहे जीत तुम्हारे चरणों में।

तू विश्व विजेता बन जाये।
फिर विश्व गुरू- बनकर छाये।
और विश्व शिरोमणि कहलाये,रहे प्रीत तुम्हारे चरणों में,
रहे प्रीत तुम्हारे चरणों में।
              सुजाता प्रिय

Friday, January 24, 2020

माचिस की छोटी तीली हूँ

माचिस की छोटी ती्ली हूँ,
लती और जलाती हूँ।
तम हर लेना काम है मेरा,
सबको यही सिखलाती हूँ।

रात अँधेरे में मैं जलती,
अँधेरा को दूर भगाती हूँ।
लालटेन मोमबत्तियाँ जला,
घर रोशन कर जाती हूँ।

रसोई घर में जाकर जलती,
चुल्हे में आग सुलगाती हूँ।
स्वादिष्ट भोजन बनबाकर,
सबकी भूख मिटाती हूँ।

मंदिर-मंदिर में जलकर,
धूप - कपूर जलाती हूँ।
दीपक-आरती में अपनी,
भूमिका सदा निभाती हूँ।

कुम्भकार के आवे में जल,
मिट्टी-पात्र पकबाती हूँ।
कारखाने में जलकर,
उपयोगी सामान बनबाती हूँ।

लोहर-सोनार घर जलकर,
भट्ठी मैं फुकबाती हूँ।
विभिन्न वस्तुएँ और गहने,
सबके लिए गढ़बाती हूँ।

कितना गिनाऊँ छोटी होकर ,
काम बड़े कर जाती हूँ।
पुरातन काल से छोटे-बड़े,
सबको सदा ही भाती हूँ।
                सुजाता प्रिय

Wednesday, January 22, 2020

मुझमें तुझमें है फर्क यही

मैं भूल न पाती हूँ तुझको,
तुम याद कभी ना करते हो।
मैं दूर नहीं होती तुझसे ,
तुम पास आने से डरते हो।

तुम राजा अकड़ विचारों के,
मैं कोमल दिल की रानी हूँ।
तुम शान और गुमान लिए,
मैं केवल स्वाभिमानी हूँ

मैं सुंदर फूल हूँ बगिया में,
तुम भौंरा बन मड़राते हो।
रसपान मेरा कर लेने को,
तुम बेध मुझे उड़ जाते हो।

तुम बन ऊँचे आकाश खड़े,
मैं सहनशील इक धरती हूँ।
तुम क्रोधित हो गरजते हो,
मैं सबकी पीड़ा हरती हूँ।

मैं कल-कल बहती नदिया हूँ,
तुम ऊँचे पर्वत से झरते हो।
मैं शांत- चित इक झील बनी,
तुम समंदर बन उमड़ते हो।

अपने जीवन की नदिया में,
मैं पार लगाती नैया हूँ ।
तुम यदा-कदा पतवार पकड़,
कहते हो मैं खेबैया हूँ।

गर फर्क हमारा मिट जाए,
दिल का प्रसून कुछ खिल जाए,
तब लक्ष्य हमारा पूरा हो,
फिर मंजिल अपनी मिल जाए।
                   सुजाता प्रिय

Saturday, January 18, 2020

मानवता के दीप जला दें

मानवता के दीप जला दें,
हम ऐसा इंसान बनें।
चहुँ दिशा में ध्वज लहराएँ,
ऐसा कीर्तिवान बनें।

हम सम्यक दुःख बाँट सकें।
हम सम्यक सुख बाँट सकें।
हर प्राणि को खुश कर जाएँ
हम ऐसा गुणवान बनें।।चहु......

हम पर सब विश्वास करें।
हम भी सबसे आस करें।
ऐसा हो एहसास दिलों में,
हम पर ही इमान बने।।चहु......

भूखे को इक रोटी दे दें।
और प्यासे को पानी दें।
जरुरतमंदों को बाँट सकें कुछ,
हम ऐसा धनवान बनें।।चहु......
             सुजाता प्रिय

Friday, January 17, 2020

ज्ञान पिपासा

जिसके मन में ज्ञान पिपासा।
ज्ञान की जिसे है अभिलाषा।

ज्ञानामृत उसके घर बरसेगा।
ज्ञान पान कर मन हरषेगा।

घट ज्ञान का कभी न भरता।
ज्ञान को ना कोई भी हरता।

जग सूना है बिना ज्ञान के।
घटता है यह बिना दान के।

उतना बाँटो जितना पाओ।
देने में कभी ना सकुचाओ।

अगर ज्ञान की प्यास तुझे है।
ज्ञानी बनने की आस तुझे है।

अज्ञानी को तुम बाँटो ज्ञान।
पाओगे तुम जग में सम्मान।
               सुजाता प्रिय

Tuesday, January 14, 2020

मेरा नाम पतंग है

ना पंछी हूँ ना तितली हूँ,
मैं आसमान में उड़ती हूँ।
दूर - दूर तक  घूमती हूँ,
जब चाहूँ वापस मुड़ती हूँ।

ना विमान हूँ ना तुफान हूँ,
फिर भी भागी फिरती हूँ।
ना पंख हैं ना पाँव है,
जब चाहूँ उठती-गिरती हूँ।

ना हड्डी ना पसली मेरी,
ना मांस-खून ना चमड़ी है।
ना हाथ-मुँह है,ना पेट है,
मोल मेरा बस दमड़ी है।

अन्न-जल कुछ ना चाहिए,
ना खाती ना पीती हूँ।
ना सांस लेती,उछ्वास लेती,
हैरत है कैसे जीती हूँ।

ना कोयला , ना पेट्रोल चाहिए,
ना बिजली से चलती हूँ ।
ना भाप, ना गैस चाहिए,
निराधार मैं पलती हूँ।

उड़ूँ मचलकर, जैसे नभचर,
नन्हीं नटखट, करती छटपट।
रंग-विरंगी, मन- मतंगी,
हटपट-झटपट भागूँ सरपट।

देश-विदेश में पहचान मेरा,
जन-जन मेरे संग हैं।
मन में सबके भरूँ उमंग,
मेरा नाम पतंग है।
    सुजाता प्रिय

Saturday, January 11, 2020

बोली की चोट

बोली ऐसी बोलिए लगे न दिल पर चोट।
घाव घनेरी ना करे,रहे न दिल में खोट।

बोली से न मारिए,कभी किसी को शूल।
जब मुख को खोलिए झड़ता जाए फूल।

बोली तो पत्थर बनकर,चोट करे भरपूर।
बोली से ही दिल टूटता, होकर चकनाचूर।

चोट सदा तूम बेचते, बोली में क्यों ढाल।
बोली सुनकर जन के, मन में रहे मलाल।

टूटे दिल के टुकड़े को, सके न कोई जोड़।
जोड़ सके तो जोड़ ले, उसमें रहेगा जोड़।

बोली की एक चाशनी,सबके मन को भाय।
दिल के छाले को भरे ,बोली मरहम लगाय।

विनती है कर जोड़कर,मीठी बोली बोल।
सुनकर कड़वी ना लगे ,मन में ले तू तोल।
                          सुजाता प्रिय

Tuesday, January 7, 2020

नानी का भजन

मेरी नानी को गुजरे सैंतीस साल गुजर गए।तब मैं छोटी थी ।मेरी नानी बहुत अच्छा भजन गाती थीं ।बहुत सारे भजनों का अर्थ तब समझ नहीं पाती थी लेकिन बड़े होने पर उन भजनों का अर्थ समझ में आया।सचमुच कितना यथार्थपूर्ण और स्वार्थ से भरे असमाजिक ढोंग तथा दिखावे को आईना दिखाता नानी का यह भजन।

जगदीश गुण गाये नहीं,
गायक हुए तो क्या हुआ।

गंगा नहाए हर्ष से,
पर मन तो मैला ही रहा,
धोया न उस मन मैल को,
गंगा नहाए क्या हुआ।

खाया नमक निज सेठ के ,
चाकरी जो न कर सके,
चाकर नहीं वह चोर है,
खाया नमक तो क्या हुआ।

नारी पराई संग ले,
मोटर पे चढ़ बाबू बने।
घर की त्रिया रोती रही
बाबू बने तो क्या हुआ।

जीते जी माँ-बाप की
सेवा से जो मुख मोड़ते,
मरने के बाद श्राद्ध और
तर्पण किए तो क्या हुआ।
        सुजाता प्रिय(नानी से सुना हुआ भजन)

Monday, January 6, 2020

पूस की बरसात

सावन में बर्षा ले आती,
रिमझिम-सी सौगात।
हा़य वेदर्दी बड़ी सताती,
पूस की बरसात।

फैली धुंध कोहरे की,
आसमान में बदली छाई।
समा जाने को रूह में तत्पर,
ठंढी हवा बहती हरजाई ।
झम-झम-झम मेघ बरसते
दिखा रहे हैं औकात।
हाय वेदर्दी बड़ी सताती
पूस की बरसात।

बादलों की ओढ़ रजाई,
सो गया ठिठुर मार्तंड।
आगोश में सभी को ले,
यह भीषण ठंढ प्रचंड ।
काँप रहे सब थर-थर,
ओढ़ कमली बाँध गात।
हाय वेदर्दी बड़ी सताती,
पूस की बरसात।

भींग गई लकड़ियाँ सारी,
अलाव जलाना नामुमकिन।
रात्री में बरसते ओस,
सीतलहरी का प्रकोप दिन।
काटे नहीं कटती है,
ठंढ की यह लम्बी रात।
हाय वेदर्दी बड़ी सताती,
पूस की बरसात।
       सुजाता प्रिय

Friday, January 3, 2020

ऐसी दुआ दे


जगप्राणि को प्रीत सीखा दे।
हे जगदीश्वर एेसी दुआ दे।।

जन के दुःखों का अँधेरा मिटा दे।
जग में सुखों का सवेरा जगा दे।
इस धरती का जन-जन सुखी हो।
हे जगदीश्वर  ऐसी दुआ दे।।

जन के दिलों में समता जगा दे।
भेद भुलाकर विषमता भगा दे।
कटुताओं को जड़ से मिटा दे।
हे जगदीश्वर एेसी दुआ दे।।

हमें ऐसी बुद्धी दो हे परमेश्वर।
आपस में हम रहें मिलजुलकर ।
नफरत दिलों से सदा ही दुरा दे।
हे जगदीश्वर ऐसी दुआ दे।।

कोई किसी की न करे अब बुराई।
बुराई के बदले भी करें हम भलाई।
यह रीत सबके मन में समा दे।
हे जगदीश्वर ऐसी दुआ दे ।।
              सुजाता प्रिय

Wednesday, January 1, 2020

रमिया के सपने

रमिया आज फूले न समाई।
महीने भर की मिली कमाई।

चार घर चुल्हे-चौका करती।
झाड़ू-पोछा कर पानी भरती।

कपड़े धोती औ बर्तन धोती।
तड़के जगती देर से सोती।

हाथ में अपने लेकर पगार।
पहुँची जब वह अपने द्वार।

बच्चे पेट पकड़कर बैठे थे।
भूखे मुँह फुलाकर रूठे थे।

गई रसोई के अंदर वह जब।
याद आया यह उसको तब।

आटे-चावल औ दाल नहीं है।
नमक-तेल का  हाल यही है।

दौड़ी-दौड़ी वह गई बाजार।
उसमें खतम हो गए हजार।

सोची कल बाजार जाऊँगी।
अपने कुछ शौक पुराऊँगी।

सितारें वाली मैं साड़ी लूँगी।
सिंदूर , बिंदी औ चूड़ी लूँगी।

मुन्नी की किताब-कॉपी लूँगी ।
मुन्ने की चप्पल- टोपी  लूँगी।

हरिया  दारू पीकर आया ।
आँखें तरेर कर वह गुर्राया ।

झोंटे खींच-खींचकर पीटा।
पटक भूमि पर उसे घसीटा।

पूछा वह गंदी गाली देकर।
कहाँ गई थी तू पैसे लेकर।

मेरे घर में है बस मेरी तूती।
तू है बस मेरे पैरों की जूती।

सारी कमाई रख मेरे हाथ।
तब रखूगाँ तुझको मैं साथ।

रमिया के हो गए सपने चूर।
शौक-मौज सब हुए काफूर।
                    सुजाता प्रिय