Sunday, October 30, 2022

छठ गीत ( मगही भाषा)

छठ गीत (मगही भाषा)

       
सूप लेके वरती नदिया खड़ी है।
भोर पहर के शुभ-शुभ घड़ी है।
उगहू सूरुज देवा अरगा के बेर।
आज उगे में तू काहे कइला देर।

बटिया भेटैलइ निरधन गे वरती।
ओकरा देबे लगलूं धन गे वरती।
बटिया भेटैलइ अंधरा गे वरती।
ओकरा देबेे लगलूं नैना गे वरती।

ओकरे में होलै उगते हमरा देर।
होई गैले आबे में अरगा के बेर।
मांगू -मांगू वरती जे फल मांगू।
देबै सबकुछ तोही आज मांगू।

तोरे दिहल सूरुज धन-संपतिया।
एक हमें मांगियो देवा संततिया। 
मंगिया के सेनुर अचल रहे देवा।
जिनगी भर करब तोर सूरुज सेवा।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, October 24, 2022

पति पत्नी

पति-पत्नी

आपस में विश्वास बनाकर।
एक-दूजे का साथ निभाकर।।
जीवन पथ पर बढ़ते जाते।
अंत-काल तक साथ निभाते।।

कभी-कभी तकरार भी होता।
पर आपस में प्यार भी होता।।
जो आती सुख-दुख की बारी।
दोनों ही बन जाते अधिकारी।।

माता-पिता की सेवा हैं करते ।
परिजनों के संताप-दुःख हरते।।
पाल-पोसकर बच्चों को पढ़ाते।
माता-पिता का कर्तव्य निभाते।।

प्यार के रंग में रंगती है जोड़ी।
लड़ाई-खिचाई भी होती थोड़ी।। 
पत्नी सयानी और पति सयाना।
दोनों मिल कर हैं एक समाना।।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, October 23, 2022

गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा

किए इंद्र अतिवृष्टि,
   मझधार पड़ी सृष्टि,
    है आपकी कृपा दृष्टि,
         कृपा अब कीजिए ।

रक्षा हेतु दीनानाथ,
    गोवर्धन लिए हाथ,
     नवाऊँ आपको माथ,
           आशीर्वाद दीजिए।

 केशव कृष्ण मुरारी,
    गोवर्धन गिरधारी,
       सबके संकट हारी,
         कृपा अब कीजिए।

करते आपकी पूजा,
  आप सब नहीं दूजा,
     करते सदा ही रक्षा,
        धन-धान्य दीजिए।

 सुजाता प्रिय समृद्धि

Saturday, October 22, 2022

धन के देव कृपा करना

धन के देव कुबेर कृपा करना।
दुःख-दारिद्र सभी संकट हरना।
अपनी जरूरतों को पूरी करें,
मेरी झोली में इतना धन भरना।
बड़े से बड़े काम करना हो तो,
नहीं पड़े मुझको कभी डरना।
छोटी-सी विनती लेकर आई हूंँ,
इसे तू अपने अंतस में धरना।
जरुरत पर धन देने में से दव,
ना झिझकना ना ही मुकरना।

         सुजाता प्रिय समृद्धि

Friday, October 21, 2022

माटी का दीया

माटी का दीया

माटी की गुथाई करते समय फिसलकर गिर जाने के कारण पिताजी के हाथ में चोट लग गयी और पिताजी चाक चलाने में असमर्थ हो गये।नेहा ने अपने भाई बहनों को अपनी एक योजना बताई। नक्काशी दार सांँचों में तो दीये बनाये जा सकते हैं।सभी भाई-बहनों ने मिलकर ढेर सारे दीये, खिलौने और मूर्तियांँ बनाये। उन्हें पकाकर रंग-रोगन कर सजाया और बाजार में बेचने बैठे।खिलौने और मूर्तियांँ तो जल्द ही बिक गये, लेकिन दीये........।जब बाजार में चीन-निर्मित बिजली से जलने वाले सुंदर दीपों की लड़ियांँ उपलब्ध है तो भला इन माटी के दीयों को कौन पूछता है ? तेल-बाती डालकर जलाओ और जरा-सी हवा तेज चली कि बुझ गया।भला इन झंझटों में कौन पड़े।
     संध्या अपने परम यौवन प्राप्त कर चुकी थी। अंधकार ने अपना साम्राज्य स्थापित करना प्रारंभ कर दिया। फूल-रंगोलियों से सभी लोग अपने घर सजाकर  दीये जलाने और पूजन की तैयारी में लग गये। नेहा भाई बहनों को बाजार की दुकान में छोड़कर घर आ गयी। क्योंकि मांँ बीमार और पिता लाचार थे।घर में भी पूजन करना और दीये जलाने हैं।अचानक बिजली आई और जोरदार धमाके के साथ गुल हो गई।पूरा मुहल्ला अंधकार के आगोश में समा गया।यह विद्युत-ट्रासफर्मर जलने की आवाज थी। सभी जानते थे कि इस इलाके में नये ट्रांसफर लगने में पंद्रह-बीस दिनों से कम नहीं लगते। पास-पड़ोस के लोग नेहा के घर दीये लेने दौड़ पड़े कहीं सारे दीये बिक ना जायें। विद्युत के बिना तो चीन के दीये नहीं जगमगाएंगे। नेहा के घर और बाजार के सारे दीए बिक चुके थे।वह अपने माता-पिता और भाई बहनों के साथ अपने घर में लक्ष्मी जी की पूजा कर माटी के दीये जलाने और खुशियांँ मनाने में लगी थी।यह उन्हीं की कृपा थी कि उसके बनाए सारे खिलौने और दीये बिक गए।वह जोर से बोल उठी लक्ष्मी माता की जय।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                 स्वरचित, मौलिक

Tuesday, October 18, 2022

कार्तिक मास की महिमा

कार्तिक मास की महिमा

पावन मास कार्तिक का शुभ-आगमन पर सभी के मन में हर्षोल्लास भर उठा है।शरद की शीतलता लिए कोमल वायू के झोंके चित को शांति प्रदान कर रहा है।इस मास का नाम शंकर-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय एवं कृतिका नक्षत्र के नाम पर पड़ा।हम सभी जानते हैं कि मनभावन कार्तिक मास का हमारे जीवन में विशेष महत्व रहा है।पाचन शक्ति को बढ़ाने वाला यह मास सबको भाता है।वर्षा ऋतु के अंत के साथ बरसाती बीमारियों का भी अंत होने लगता है।सूर्य की किरणों की कोमलता सबके मन को भाता है।इस माह में प्रातः-स्नान का बड़ा वैज्ञानिक महत्व है।धान,मकई मड़ुआ गुड़ जैसे स्वास्थ्य-बर्धक फसलों का आगमन घर में होने लगता है।इस माह में अनेक उत्तम व्रत एवं त्योहार मनाए जाते हैं। यों कहें कार्तिक मास त्योहारों का ही महीना है। धनतेरस, दीपावली , गोवर्धन पूजा भाई-दूज,दवात पूजा, चार दिवसीय छठ पूजा, गोपाष्टमी, देवोत्थान एकादशी , तुलसी विवाह इत्यादि अनेक उत्तम व्रत एवं त्योहार इसी महीने में मनाया जाता है।इस प्रकार कार्तिक महीने का हमारे जीवन में बड़ा ही महत्व है।यूँ कहें कार्तिक मास की महिमा अपरम्पार है।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, October 16, 2022

आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया

आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया

आमदनी है पाँच सौ,खर्चा करो हजार।
सोचो तेरे जेब की,कितना होगा भार।।

सदा पड़ोसी-दोस्त से,लेना होगा कर्ज।
कर्ज लेने वाले तुम,सदा रहोगे मर्ज।।

कुछ भी लेने के लिए,जाओगे बाजार।
नगद नदारद होयगा,लेना पड़ा उधार।।

अपनी जेब की जिसको,तनिक नहीं हो भान।
समय पड़े तो लोग से,लेना पड़ता दान।।

दिखावे हेतु जो सदा,बनते लोग अमीर।
उनका कहीं-ना-कहीं,लुटता सदा ज़मीर।।

धरा से पांव छोड़कर,उड़ते हैं आकाश।
मुसीबत लगती आ गले,खतरे आते पास।।

अपनी बड़ाई के लिए,करो न ऊंँची बात।
सब लोगों को ज्ञात है,क्या तेरी औकात।।

सुजाता प्रिय समृद्धि

वचन पालन


वचन पालन 
पिता ने बिटिया का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा -"बेटी ऐशु! मेरे बाद घर की पूरी जिम्मेदारी तुम्हारी है। मैंने यह घर सिर्फ तुम्हारे लिए बनवाया है।जीवन में कभी भी मेरा घर,अपनी कलम और पुस्तक का साथ मत छोड़ना।मेरे बाद ये तुम्हारा सहारा बनेगा।
वचन देते समय बारह वर्षीय बेटी यह पता नहीं था कि एक दिन बाद ही उसकी अनपढ़ मांँ और तीन छोटी बहनों की जिम्मेदारी उसके कोमल कंधे पर छोड़कर पिताजी सदा के लिए चले जाएँगे।बस एक ईश्वर,एक आराध्य और आधार के रूप में सदा उसके साथ रहेंगे।अब जीवन के छिनते आसमान रुपी पिता के साथ वैभव पूर्ण जीवन यापन करने वाली नन्हीं परी को जीवन आभाव भूख, गरीबी लाचारी में बीतने लगा।उसके कंधे पर चार लोगों की जिम्मेदारियां थी।वह कड़ी मेहनत करने लगी। पढ़ाई के पाठों को प्रत्येक पंक्ति और शब्द कंठस्थ करने लगी।इस प्रकार अपनी में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर पुरस्कृत होती गयी। पिता के घर में रह उनकी यादों में ‌मन में उत्पन्न भावों और विचारों को कोई सुनने वाला था बस उसके कागज कलम।मन के उफानों से उत्पन्न शब्दों के चमकीले मोतियों को पंक्तियों के धागों में पिरोकर काव्य-मालिका गूंथती और पिता के आशीर्वाद स्वरूप पुरस्कार प्राप्त करती।कवि सम्मेलनों में प्रतिभागिता, ओर महान् कवियों के सानिध्य एवं आशीर्वाद ने काफी प्रेरित किया। विद्यालय में प्रधानाचार्या और बैंक मैनेजर के रूप में कार्य रूपी तप करते हुए जननी तथा सहोदराओं की शिक्षा -दीक्षा और पाणिग्रहण संस्कार के  यज्ञ कर पिता को दिए गए वचन को पूरी सत्य एवं निष्ठा के साथ कर पूर्णाहुति दी।
              सुजाता प्रिय समृद्धि

Saturday, October 15, 2022

शिव पार्वती (चौपाई)

शिव पार्वती ( चौपाई )

बैठीे शिव-संग पार्वती माँ। 
हरती सबकी मूढ़ मती मांँ।।
हाथ जोड़कर भक्त खड़े हैं ।
नतमस्तक ले आस खड़े हैं।।
हे शिव-शंकर हे बम भोला।
आज आइए मेरे टोला।।
जग प्राणी के कष्ट मिटाने।
जग से सब संताप हटाने।। 
त्राहिमाम करता जग सारा।
चहुं ओर फैला अँंधियारा।।
हर-हर-हर भोले त्रिपुरारी।
सब संकट तुम हरो हमारी।।
दया करो तुम हे नागेश्वर।
हे शिव-शंकर, हे परमेश्वर।।
आती जग में विपदा भारी।
त्रस्त है जिससे दुनिया सारी।।
पीकर तूने विष का प्याला।
सारे जग का बन रखवाला।।
आज नाथ तू हमें बचा लो।
सारे दुख को दूर भगा दो।।
जमा करो अपराध हमारा।
भूल-चूक जो भी हो सारा।।
शिव भोले कि सुनो भवानी।
सारे जग की तुम हो रानी।
सुनो -सुनो हे शैल-किशोरी।
तुम तो मन की हो अति भोरी।। 
चल भक्तों की सुध-बुध लेने। 
सुख व समृद्धि उनको देने।। 
यह जग है मेरी ही माया।
हमने रची जीव की काया।। 
हमें इनकी है रक्षा करना।
इनके सब कष्टों को हरना।।

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, October 12, 2022

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (देव घनाक्षरी)


 
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

राज-दुलारी बेटियांँ,
  पिता को प्यारी बेटियांँ,
     माता को प्यारी बेटियांँ,
          चलती मटक-मटक।

घर-आँगन की शोभा,
  मायका की होती शोभा,
      ससुराल की भी शोभा,
           चलती छमक-छमक।

बेटी लक्ष्मी सरस्वती, 
  शक्ति माया व पार्वती,
       दुर्गा काली भगवती,
         मत तू इसको झटक।

बेटियों को बचाइए,
    मन से ना दुराइए,
        इसे खूब पढ़ाइए,
         जनम लेते ना पटक।

         सुजाता प्रिय समृद्धि

Friday, October 7, 2022

मैं तुम्हारी राज हूँ

मैं तुम्हारी राज हूँ

तुम मेरे सरताज हो और, मैं तुम्हारी राज हूँ।
तुम ही मेरे हमसफर हो, मैं तेरी हमराज हूँ।

तुम बसे मन में मेरे,कैसे यह बतलाऊँ मैं,
तुम दिल की धड़कनें,जिसकी मैं आवाज हूँ।

मन है करता तेरे संग,आसमां में उड़ चलूँ,
तुम जहां तक पर फैलाओ, मैं वहीं अंदाज हूँ।

तुम अगर हो साथ तो,डर नहीं मुझको कोई,
तुम मेरे रखवाले हो और,मैं तुम्हारी लाज हूँ।

सज रही महफ़िल यहांँ,गायकी के वास्ते,
तुम मेरी संगीत बन जा, मैं तुम्हारी साज हूँ।

हो रहा है गान अब, हम भी मिलकर गाएँंगे,
आ तू मेरी गीत बन जा, मैं तेरी आवाज़ हूंँ।

देखो अब सारे जहां में, प्यार का सम्राज्य है,
तुम यहांँ सम्राट बन जा, मैं तुम्हारी ताज हूंँ।

खुशनुमा लगता जहां है,जब तुम्हारा साथ हो,

एक -दूजे के लिए हम, ज़हान से टकरायेंगे,
तुम पे है अभिमान मुझको, मैं तुम्हारी नाज हूँ।

हम नहीं बिछड़े कभी,मन में ऐसी कामना,
संग मेरे हर कल रहोगे,संग तुम्हारे आज हूँ।

              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                 रांची, झारखण्ड

Thursday, October 6, 2022

जय माँ सिद्धिदात्री

जय मां सिद्धिदात्री

जय माता सिद्धिदात्री,आई  तेरे द्वार।
उड़हुल फूलों की बना,लाई हूँं मैं हार।।

मुझको माँ वरदायिनी,दे दो अपना प्यार।
बच्चों को तो चाहिए,माँ का प्यार- दुलार।।

मुझको माता अम्बिके,सिद्धि कर दे प्रदान।
दुष्ट ना आए पास माँ, दो निर्भय का दान।।

शुद्ध रहे अंतःकरण,सुंदर रहे विचार।
मन से हर दुर्भावना ,हर लो सभी विकार।।

हाथ जोड़ हे भगवती,करती हूँ प्रणाम।
पूर्ण कर मनोकामना,पूर्ण करो सब काम।

सब लोग का पाप हरो,कर दे माँ उपकार।
हम भलाई करें सदा,सुखी रहे संसार।

पापी दुराचारी के,हर लो सारे पाप।
सुख और समृद्धि रहे,आये ना संताप।।

      सुजाता प्रिय समृद्धि

Wednesday, October 5, 2022

निर्बल का बल


अत्याचार का अंत

दशहरे का समय था।श्रद्धालु गन माता की पूजा-पाठ में व्यस्त थे। दुर्गा मंडप में दुर्गा पाठ हो रहा था। फल-फूल ,माला तथा धूप- दीप से माता रानी का दिव्य मंडप आच्छादित था।कोई भी मनुष्य अनायास कलश तक जा कर पूजा-पाठ में बिघ्न ना डाले, इसके लिए मांँ की प्रतिमा के आगे बाँस का घेरा बना दिया गया था। फिर भी कुछ प्राणी ऐसे थे जिन्हें किसी प्रकार से रोका नहीं जा सकता था ।जैसे -चूहे,चीटियाँ आदि।वे जब चाहे पूजन सामग्री को गिरा देते, तोड़ देते,खा लेते तथा उठाकर ले जाते। प्रसाद चढ़ा नहीं कि चींटियों के दल ने हमलावरों की तरह आ घेरा। चूहों को फल उठाकर भागने की हड़बड़ी रहती। बताशे-मिश्री चींटियों को ज्यादा पसंद आती।कलश पर डाले गये अक्षत पर तो अपना एकाधिकार समझतीं। एक दिन की बात है चींटियों ने जब भर पेट भोजन कर लिया तो सोचा क्यों ना कुछ भोजन अपने घर भी ले जाऊंँ। लेकिन माता की पीढ़ी इतनी ऊँची थी कि चींटियों के लिए मुँह में वजन लेकर उतरना और अपने बिल तक ले जाना कठिन काम लग रहा था।अंतत: सभी चीटियों ने मिलकर विचार किया-क्यों ना हम चावल,मिश्री तथा बतासे के टुकड़ों को पहले पीढ़ी पर से नीचे गिरा दें फिर नीचे से उन्हें उठाकर बिल तक ले जाया जाएँ।यह सोंच चींटियों ने चावल को मुँह में पकड़कर नीचे गिराना शुरू किया। उनकी इस प्रक्रिया को एक चूहा बड़ी दिलचस्पी से देख रहा था।उसके मन में शरारत सुझी।उसने झट से चींटियों द्वारा गिराए गए चावल को उठाकर खा लिया। चूहे की इस हरकत से चीटियों को बहुत दुःख हुआ। लेकिन करे तो क्या ?बेचारी इस आस में चावल नीचे गिराती कि शायद चूहा चावल नहीं खाए।लेकिन चूहे को तो बहुत मजा आ रहा था ।आए दिन चूहा चीटियों को इसी प्रकार तंग करने लगा। बिचारी चींटियांँ भी कब तक सहन करतीं ? उसके अत्याचारों से परेशान होकर सभी चींटियों ने ले यह निर्णय लिया कि उस चूहे को सबक सिखाया जाए ।लेकिन अपनी तुलना उस भारी-भरकम शरीर वाले चूहे से कर घबरा उठीं। फिर भी अपनी रक्षा और न्याय लिए उन्हें कुछ तो करना ही ‌था।एक दिन कुछ विचार कर उन्होंने मंडप के नीचे चावल नहीं गिराया ।बस प्रसाद में चढ़ने बतासे और मिश्रियाँ खाती रहीं। चूहे ने जब देखा कि मंडप के नीचे चावल नहीं गिरा हुआ है तो उसके मन में जिज्ञासा जागी कि क्या चींटियांँ किसी दूसरे रास्ते से अपना भोजन ले जा रही हैं ? यह सोच वह मंडप पर चढ़ आया। उसने देखा कि माता की प्रतिमा के सामने चढ़ाये गये प्रसाद को चीटियाँं आराम से खा रही हैं। उसके मन में शरारत नाच उठा। उसने सोचा मैं इतना बड़ा हूंँ। आखिर ये छोटी चीटियांँ मेरा क्या बिगाड़ सकतीं हैं ? यह सोच उसने झट चींटियों द्वारा खाये जा रहे बतासों को उठा लिया।फिर क्या था। चींटियांँ तो इसी ताक में थीं ही।उन्होंने एक साथ चूहे पर हमला कर दिया।उसके भारी-भरकम शरीर पर चढ़कर उसे काटना शुरू किया।चूहा दर्द से छटपटाने लगा । गुस्से में चींटियों ने उसे इतना काटा कि उसके प्राण पखेरू उड़ गये। पूजा कर रहे पुरोहित जी  ने चूहे द्वारा चींटियों को परेशान करने और चींटियों द्वारा अपने अधिकारों और न्याय के लिए लड़ते देख माता के भक्तों से कहा जो कोई भी दुष्ट प्राणी माता के सामने उसके प्यारे जीवों को कष्ट देता है तो माता रानी अपने भक्तों को अत्याचारियों से लड़ने के लिए इसी प्रकार शक्ति प्रदान करती हैं।
माता रानी की जय🙏🙏🙏🙏🙏

दशहरा (मनहरण घनाक्षरी )



दशहरा (मनहरण घनाक्षरी )

बुरा पर अच्छाई की।
     झूठ पर सच्चाई की।
          हार पर विजय की।
                जीत है दशहरा।

दुर्गुण पर गुण की।
      अधर्म पर धर्म की।
         अज्ञान पर ज्ञान की।
                जीत है दशहरा।

घृणा पर सप्रेम की।
      विषम पर सम की।
        दुख पर समृद्धि की।
                जीत है दशहरा।

पापियों पर पुण्य की।
      छलावे पर क्षमा की।
        क्रोधियों पर शांति की।
                   जीत है दशहरा।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, October 3, 2022

महागौरी (मगही भाषा)



महागौरी (मगही भाषा)

महागौरी अइली अँगना वर देबे।
वर देबे मैया वर देबे।
महागौरी अइली......

चरण पकड़ियो तोहर मैया सबके आस पुरैहा।
भूल-चूक हमनी के मैया मन से तू बिसरैहा।
सबके दुखबा अइली मैया हर लेबे।
महागौरी अइली अँगना......

शुभ-सौभाग तू दिहा मैया धरती के जन -जन के।
सुख-संपत्ति दिहा मैया आस पुरैहा मन के।
हमनी के अचरबा में आशीष मैया भर देबे।
महागौरी अइली अँगना...........

निरमल मन से मांगियो मैया,तोहरा से सुबुद्धि।
तनी ने मन में आबे दिहा, दुर्गुण औ दुरबुद्धि।
दुरभावना नै मनमा में हमर घर लेबे।
गौरी मैया अइली.............
     सुजाता प्रिय समृद्धि

Sunday, October 2, 2022

सप्तम माँ कालरात्रि



जय मां कालरात्रि

सप्तम रूप शोभिता,शुभ भाव धारिणी।
जयंती जयप्रदा तथा मां कालरूपिनी।।

कालिके,काली कालरात्रि,काल कपालिनी ।
कालिका कपालिके रकतपुष्प मालिनी।।

दुष्ट दलनकारिनी सदा ही सिंहवाहिनी।
भयं रूप भयंकरी भूतादि भयहारिणी।।

महा स्वरुप महाप्रदा गृहे-गृहे निवासिनी।
ददाति दानरूपिनी दारिद्र- दुखहारिनी।।

तंत्र-मंत्र से समस्त प्राणियों को तारिनी।
महारुपेण महाज्वला नमामि विंध्यवासिनी।।

आद्याशक्ति महाशक्ति मूलप्रकृति विश्वजननी।
त्रिगुणात्मिका ब्रह्मस्वरूप नित्य सनातिनी।।

सर्वस्वरूपा,सर्वेश्वरी,सत्य परमतेजस्वरूपिनी।
सर्वपूज्या सर्वमंगलकारी सर्वमंगल दायिनी ।।

विनय विवेक ले सदा हो कपालधारिनी।
भूत-प्रेत मिले कभी लगे उसे डरावनी।।

सर्वाबाधा विनाशिनी सर्वा,सर्वास्त्रधारिनी।
सर्वतेजोमयी माते समस्त कार्य कारिनी।।

खड़ाखड़ाती खड्ग ले खड़ी खप्पर धारिनी।
तंत्र- मंत्र धारिनी, सर्वत्र सिद्धि कारिणी।।



              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, October 1, 2022

षष्ठम देवी कात्यायनी

कात्यायनी माता(-सायली छंद)

       भक्तों 
     जनों की 
जयकार गूंँज रही 
  कात्यायनी माँ
        आईं ।

       माता 
     के मंदिर 
में देखो  कितनी 
    है खुशियांँ 
        छाईं ।

     जग 
  में विचरण 
करती हैं माता 
  होकर सिंह 
     सवार।

   चंद्रहास 
  धारण कर 
आईं हैं देखो
  हाथ लेकर 
    तलवार।

    अपने 
  सेवक को 
देती हैं माता
  बल-बुद्धि 
     ज्ञान।

    अपने 
भक्तजनों को 
माता सदा ही 
   करती  हैं 
    कल्याण।

      जो 
  जन निर्बल 
निर्धन हैं उन्हें 
  बनाती हैं 
   धनवान।

      करती
     हैं अभय 
हम सबको देकर 
    दीर्घायु का
      वरदान।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'