Friday, November 29, 2024

शरणागत की रक्षा

शरणागत की रक्षा

शरणागत की रक्षा करना,रीत हमारे देश की। 
अति पुरातन कथा सुनिए,उशीनगर नरेश की। 
शरणागत की.......... 
भरी सभा में सहमा हुआ और बहुत घबराया। 
एक कबूतर उड़ते हुए,शरण शिवि के आया।
गोद में आकर बैठ उनके, कपड़ों में मुँह छुपाया।
एक बाज फिर उड़ते हुए,उसके पीछे आया। 
राजा शिवि समझ न पाये,उसके रूप विशेष को। 
अति पुरातन कथा है......... 
कहा बाज ने यह कबूतर,आज मेरा भोजन है। 
इस कबूतर को क्यों राजन!देते आप शरण हैं? 
कहा शिवि ने- यह कबूतर तुम्हें कभी न दूँगा। 
देकर अपने शरणागत का,प्राण कभी न लूंगा।
शरणागत का प्राण हरना,न्याय नहीं प्रजेश की। 
अति पुरातन सत्य-कथा............ 
कहा बाज ने-यह कबूतर,अगर मुझे न देते ? 
इसे बचाकर मुझ भूखे का,प्राण आप हैं लेते। 
कहा शिवि ने- छोड़ दे, इसकी प्राण बच जाएगी। 
तेरी भूख तो किसी मांस को खाकर मिट जाएगी। 
तो बताओ फिर क्यों न मैं,हर लूँ इसके क्लेश को? 
अति पुरातन सत्य-कथा............ 
कहा वाज ने-मैं तो केवल,पवित्र मांस हूँ खाता। 
किसी प्राणी का पवित्र मांस दें,आप अगर हैं दाता। 
कहा शिवि ने-हर-एक प्राणी,है मेरे अधिन-शरण में। 
किसी प्राणी का प्राण मैं क्यों लूँ,सोचो अपने मन में। 
देता हूँ मैं इसके बराबर,अपने ही अंग विशेष को। 
अति पुरातन सत्य-कथा.......... 
आज्ञा देकर राजा शिवि ने झट एक तुला  मंगाई। 
एक पलड़े पर कबूतर,दूजे पर अपनी काट भुजा चढ़ाई। 
पाँव चढ़ाया,फिर भी कबूतर का पलड़ा टिका भूमि पर। 
खा ले समूचा काटकर मुझको,वे चढ़ बैठे पलड़े पर। 
भरी सभा ने चकित हो देखा,उनके न्याय विशेष को। 
अति पुरातन सत्य-कथा............ 
बाज इंद्र बन और कबूतर अग्निदेव बन हुए प्रकट। 
हाथ जोड़कर राजा शिवि से बोले होकर नतमस्तक। 
हमने तो आपकी धर्म-परीक्षा हेतु यह रुप बनाया। 
बहुत सुना था आज है देखा,आप हैं कितने न्यायी।
कटे अंग को पुनः जोड़,आशीष दिये वे धर्मी नरेश को। 
अति पुरातन सत्य-कथा ........ 
                     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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