Wednesday, July 28, 2021

भोले बाबा की नगरी (गीत)



बड़ा ही पावन लागे जी,
भोले बाबा की नगरी।
अति मन-भावन लागे जी,
भोले बाबा की नगरी।

शिवशंकर के सामने देखो,
पार्वती मंदिर है।
दोनों के मंदिर का देखो,
गठबंधन सुंदर है।
सदा यहां सावन लागे जी,
बोले बाबा.................

इस नगरी में एक जगह ही,
बड़े -बड़े मंदिर हैंं।
हर मंदिर में हर देवों की,
प्रतिमा लगी सुंदर हैं।
मन को रिझावन लागे जी,
भोले बाबा.................

त्रिशूल हर मंदिर में होता,
पर यहां देख पंचशूल है।
हर मंदिर नुकिला होता,
पर यहां प्रतिकूल है।
बात सुहावना लागे जी,
भोले बाबा..................

द्वादश ज्योतिर्लिंग में भाई,
एक यहां का लिंग है।
मनोरथ पूर्ण होता लोगों का,
मनोकामना ज्योतिर्लिंग है।
मन को लुभावन लागे जी,
भोले बाबा ..................

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
          स्वरचित, मौलिक

Monday, July 26, 2021

बाबा बम भोले



देवों के देव महान, बाबा बम भोले।
करते हैं कल्याण, बाबा बम भोले।

मस्तक चंदन-भस्म लगाए,
खाते भंग को छान,बाबा बम भोले।

जटा में गंगा,बाल पर चंदा,
रखते विराजमान,बाबा बम भोले।

नाग की माला,बाघ की छाला,
पहनकर करते शान, बाबा बम भोले।

हाथ में त्रिशूल,डमरू शोभे,
कमण्डल में है धान,बाबा बम भोले।

सदा ही करते बैल सवारी,
इनकी है पहचान,बाबा बम भोले।

कैलाश गिरी पर रहने वाले,
फिरते सदा मशान,बाबा बम भोले।

बाबा हैं भोले भंडारी,
कर ले इनका ध्यान, बाबा बम भोले।

ब्रह्मा-विष्णु, कार्तिक-गणपति,
सब करते सम्मान, बाबा बम भोले।

शिवशंकर हैं औघड़ दानी,
देते हैं वरदान, बाबा बम भोले।
         
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, July 24, 2021

गुरु मां



गुरु मां

मां की गोद से उतर हम बच्चे विद्यालय जाते हैं।
मां के रूप में वहां गुरु मां को पाते हैं।

दिन भर गुरु मां हमें, प्यार से हैं सम्हालतीं।
गुरु बन गुण के सांचे में, हमको हैं ढालतीं।
तभी तो घर से बाहर रहकर भी हम ना घबराते हैं।
मां के रूप में वहां .....................
मानवता का पाठ पढ़ाती,दुलार हमें हैं देतीं।
पढ़ा-लिखा, गुणवान बना, संस्कार हमें हैं देतीं।
मार्गदर्शन लक्ष्य पाने का,हम उनसे पाते हैं।
मां के रूप में............. ‌‌
बच्चों पर मां की तरह, प्यार लुटाती हैं।
इसीलिए तो शिक्षिका गुरु मां कहलातीं है।
बच्चे भी आदर करते,और प्यार लुटाते हैं।
मां के रूप में..................
        सुजाता प्रिय समृद्धि

Wednesday, July 21, 2021

बरसात की फुहार में

बरसात की फुहार में (गीतिका छंद)

चल रे साथी हम नहाए, बरसात की फुहार में।
आज तक हम हैं नहाए, इस नदी की धार में।
तन को अपने हम हैं धोते,मन नहीं धोते कभी।
मन को तुम मैला न रखना, बात मानो यह सभी।
मन हमारा साफ हो तो, बात सब प्यारा लगे।
दूर होताी संताप सारा ,जंग हमें न्यारा लगे।
दिल में कोई कपट नहीं हो,जीवन उसी का नाम है।
सबसे तुम मिलाप रखो,यह मेरा पैगाम है।
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                   स्वरचित, मौलिक

करें हम धान की रोपाई



आ सखी शुभ घड़ी आई।
करें हम धान की रोपाई।
खेतबा में झूम-झूम के।

आया नक्षत्र शुभ-शुभ आद्रा।
नभ में छाया था काला बदरा।
किए हम खेत की जोताई।
करें हम धान की रोपाई।
खेतबा में..................

पहली वर्षा में बोया बिचड़ा।
जनम वह मोरी बन निकला।
हरी-हरी खेतों में लहराई।
करें हम धान की रोपाई।
खेतबा में................

झम-झम,झम-झम पानी बरसे।
मनमा हर जन-जन का हरसे।
मन में धरा भी मुस्काई।
करें हम धान की रोपाई।
खेतबा में................
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित

Tuesday, July 20, 2021

वो अजनबी ( लघुकथा )



वो अजनबी

रागिनी समय से पूर्व साक्षात्कार के लिए पहुंच गई थी‌। देर ना हो इसलिए भाई ने स्कूटी से पहुंचा दिया था। तीन लोगों के बाद उसका नम्बर आने वाला था।उसने सोचा साक्षात्कार में मांगे गए सारे कागजात एक बार फिर से यथास्थान रख लूं। साथ लाई फाइल को खोला।पर यह क्या? फ़ाइल से सारे कागजात गायब ।उसे पूरी तरह याद है। उसने सारे मूल प्रमाणपत्रों एवं छाया प्रति को इस थैली नुमा फाइल में रखा था। फिर वे गायब कैसे हुए। उसने खाली फाइल को पलटकर देखा। फाइल एक किनारे से फटी थी।उसे समझते देर नहीं लगी कि सारे कागजात इसी ओर से कहीं गिर पड़ा।उसे अपने-आप पर बहुत झुंझलाहट हुई क्यों उसने फटी फाईल की ओर ध्यान नहीं दिया। कहां गिरे होंगे सारे कागजात ? उसके तो प्राण छूटने लगे। 
मिस रागिनी वर्मा ! गार्ड ने उसे पुकारा।
वह रुआंसी हो उसे देखने लगी।
 आपसे कोई मिलने आया है। 
वह बाहर दौड़ पड़ी शायद उसका भाई उसे वापस ले जाने आया। ठीक ही है चली जाएगी।अब यहां उसका काम ही क्या ?
लेकिन जब वह बाहर पहुंची तो एक अजनबी लड़के को साइकिल पकड़े खड़ा देख ठिठक कर बोली क्या है ? 
बहन जी !आपके ये कागजात स्टेशन रोड में गिरे मिले। मैंने देखा इसमें आपका इस संस्थान में आज का साक्षात्कार पत्र भी है सो मैं इसे आप तक पहुंचाने आ गया। रागिनी के मुंह से बोल नहीं फुट रहे थे। 
मिस रागिनी वर्मा !अंदर उसे पुकारा गया ।शायद साक्षात्कार के लिए उसका नम्बर आ गया था। उसने एक कृतज्ञता भरी दृष्टि उस अजनबी पर डाली और साक्षात्कार के लिए चल दी। साक्षात्कार के बाद उसे नौकरी मिली।रोज आंफिस काम करने आने लगी।रोज उसकी निगाहें उस अजनबी को ढूंढती कि एक बार उससे मुलाकात हो जाए। लेकिन वह कहीं नहीं दिखा और रागिनी को आज तक अफसोस है कि उस अजनबी महामानव को कृतज्ञता के रूप में धन्यवाद तक नहीं बोल सकी।
                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                  स्वरचित, मौलिक

Monday, July 19, 2021

कुंडलियां छंद


विधा-कुण्डलिया छंद

मत कर मानव तू अभिमान।
धरा रह जाएगा यह गुमान।
धन-दौलत का दंभ न करना।
किसी की दौलत मत तू हरना।
मत कर कभी तू झूठी शान ।
भाई रे यह कहना मेरा मान।

अहंकार मत करना तू भाई।
थोड़ी दौलत तूने है कमाई।
किसी को क्या तुम दे पाते हो।
अकड़ क्यूं झूठी दिखलाते हो।
खुद पर अब तू है क्यूं  हैरान।
बहुत है जग में जन धनवान।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, July 18, 2021

हंसने की मनाही है




                  1.
👷‍♂️लड़की के पिता- मेरी बेटी इतनी अच्छी और नेक है कि आपके घर को स्वर्ग बना देगी।

👨‍🔬लड़के के पिता-इसलिए तो मुझे अपने बेटे की शादी आपकी लड़की से नहीं करनी।

👷‍♂️लड़की के पिता-आखिर क्यों  ?

👨‍🔬लड़के के पिता-क्योंकि वह मेरे घर को स्वर्ग बना देगी, और हम सभी स्वर्गवासी हो जाएंगे।😭

                2.
🤷‍♀️भाभी-यहां तो बहुत मच्छर है।
👩‍💼ननद-लेकिन पहले यहां मच्छर नहीं था।
🤷‍♀️भाभी-मैं तो जब से आई हूं तब से यहां ऐसे ही बहुत मच्छर देख रही हूं।
 👩‍💼ननद-वह तो आपके आने पर ही हो गया। उसके पहले नहीं था।
🤷‍♀️भाभी-तो क्या इस घर में इतनी सारी मच्छरदानियां लोग आपलोग से बचने के लिए लाए थे  ?🤣
                 3.
🧑‍🦲भिखारी-दे दाता के नाम तुझको अल्ला रखें।

👨‍🦰दाता-दो रुपए का नोट बढ़ाते हुए, यह लो।

🧑‍🦲भिखारी-भीख मांगने का कटोरा हटाते हुए, ऐ बाबू साहब दो रुपए क्या देते हो? भीखमंगा समझ रखा है क्या ?🤪

                       4.
🧒रघु अपने दोस्त से-क्या बताऊं यार मेरे दादा जी बहुत बलिष्ठ थे। उनके कलेजे का वजन दस किलो ग्राम था।
👦दोस्त-तुम्हारे दादाजी अपना कलेजा रोज तौलते थे क्या?

🧒रघु -वे उसे तौलेंगे क्यों ?

👦दोस्त-फिर तुमलोग को दादाजी के कलेजे का वजन कैसे पता चला ?😍
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, July 16, 2021

महकिया माटी के (मगही भाषा )



कोई भूल न पाबे रेss,महकिया माटी के।
मोर मन भाबे रेss,महकिया माटी के।

सोंधी-सोंधी खुशबू लुटाबे रे माटी।
हमरा के बड़ी मन भावे रे माटी।
मनमा में बसाबूं रेss,महकिया
माटी के।
मोर मन भाबे रेss,.............

सबसे सुनर हमर गांव के माटी।
राज्य के माटी औ देश के माटी।
कहुं न पाबुं रे महकिया माटी के।
मोर मन भाबे रेss,............

खेतबा-पथार में शोभे रे माटी।
अन्न-धन-सोना उगले ये माटी।
खलिहान में भावे रेss,महकिया माटी के
मोर मन भाबे रेss,.............

हमर माटी के है रूप निराली।
बलुआही-चिकनी-गोरी-काली।
सब रंग में भावे रेss, महकिया माटी के।
मोर मन भाबे रेss, ...... .....
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'        
        स्वरचित, मौलिक

Monday, July 12, 2021

मां का आंचल

मां का आंचल

जिससे हम पाते शीतल छाया।
जिसमें बसती है  ममता माया।
जो ढककर रखती  मेरी काया।
जिसका सुगंध है मन को भाया।
वह मेरी मां का आंचल है।

जिसमें हर फूलों की महक है।
जिसमें चांद तारे-सी चमक है।
पायल की घुंघरू-सी छनक है।
हाथों की कंगने  की खनक है।
वह मेरी मां का आंचल है।

जो हमको प्यार से  सहलाता।
हवा में उड़ कर मन बहलाता
अंक में भरकर है हमें झुलाता।
हर पल है जो हमको लुभाता।
वह मेरी मां का आंचल है।

जो पंखा बन देता वायु झोंके।
धूल-गंदगी सब पड़ने से रोके।
मेरी आंसुओं को हरदम पोंछे।
मुत्र -पसीने को खुद में सोखे।
वह मेरी मां का आंचल है।

निंदिया आयी,आंखें झपकी।
जो देता जो प्यार की थपकी।
छोर- छोर उड़ आती लपकी।
हर कोने से है ममता टपकी।
वह मेरी मां का आंचल है।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
        स्वरचित, मौलिक

Sunday, July 11, 2021

नेग की परम्पराएं

-हंसी-मजाक एवं नेग लेने का रिवाज
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
हंसी-मजाक का रिवाज हमारी संस्कृति में माहौल को खुशनुमा बनाने में काफी सहायक रही है।
शादी में एक बहुत ही प्यारा रिवाज है द्वार-छेकाई का। जिसमें दालधोई मटकोड़ आदि की रस्में निभाकर वापस आने पर घर पुत्रियां द्वार घेरकर खड़ी होती हैं और सुंदर-सलोने गीत गाकर  नेग मांगती है। मां-चाची मौसी-मामी  थोड़े नोंक-झोंक, थोड़ी तकरार थोड़ी मनुहार और हंसी मजाक के बाद खुशी-खुशी उपहार एवं पैसे इत्यादि देती हैं।इसी प्रकार भांवर के लाबे बेचने का भी रस्म चलता है। शालियां दुल्हे के जूते छिपा कर भी कुछ उपहार प्राप्त कर लेती हैं।इस प्रकार हर विधि- विधान में नेग लेने और हंसी-मजाक कर शादी की खुशियों को बढ़ाने में इन छोटी छोटी रीति रिवाजों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, July 8, 2021

बिहार में बाढ़ (मगही गीत )



सुना-सुना भाई, सुना-सुना राही।
मचा देलकै बाढ़ बिहार में तबाही।

सुखाड़ हलै तो हमें पानी मांगलिऐ।
झम-झम बरसाबा भगवान के कहलिऐ।
बड़ी बरसैला अब अउरो न चाही।
मचा देलकै बाढ़ बिहार में तबाही।

नदी-नाला में उठल उफान है।
ताल-तलैया में मचल तुफान है।
सड़किया पर पनिया के धार बताही।
मचा देलकै बाढ़ बिहार में तबाही।

बढ़िया में बहलै मकान अउर झोपड़ी।
साग-सब्जी बहलै,सूप-दउरी-टोकरी।
कर न सकलिऐ कोय कौनो मनाही।
मचा देलकै बाढ़ बिहार में तबाही।

इनर भगवान के हमें पुजलिऐ।
मिश्री-बतासा  तुलसी चढैलिऐ।
अब बरसे में थोड़ा करहो कोताही।
मचा देलकै बाढ़ बिहार में तबाही।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
            स्वरचित, मौलिक

Tuesday, July 6, 2021

काव्यात्मक परिचय

जय मां वागीश्वरी 🙏
#साहित्य_संगम_संस्थान_झारखण्ड_इकाई
#दो

बिहार राज्य जन्मस्थान,नाम है सुजाता।
मुरली मनोहर पिताजी हैं, शकुंतला है माता‌।

ससुराल बिहार शरीफ नालंदा, रांची है निवास।
शंकर प्रिय पति परमेश्वर,जिनपर है विश्वास।

भाई-बहनों में बड़ी हूं,दो बेटियों की माता।
छोटा-सा परिवार यही, दिया है मुझे विधाता।

सिलाई-बुनाई, कढ़ाई-पेंटिग में रखती अभिरुचि।
संगीत-चित्रकारी, मूर्ति निर्माण में भी मेरी रुचि।

भावों के मनके गुथकर कविताएं मैं रचती हूं।
शिक्षाप्रद कहानियां-नाटक भी थोड़ा लिखती हूं ‌।

हर विधा की हूं मैं, छोटी-सी साहित्यकार ‌।
सभी साहित्यकार मित्रो को,मेरा नमस्कार ।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, July 2, 2021

ग़ज़ल (बड़ी सुंदर नजारे हैं )



धरा पर आज है देखो, बड़ी सुंदर नजारे हैं।
यहीं पर चांद-सूरज हैं,यही टिमटिम सितारे हैं।

कहीं है बूंद शबनम का,कहीं श्रमकण टपकता है ‌।
कहीं बरखा की रिमझिम-सी बरसती अब फुहारें हैं।

कहीं हठखेलियां करते, गिलहरी- नेवले-दादूर,
कहीं कलरव से गुंजित कर,खग- कुल पर पसारे हैं।

चमन के फूल सब सुंदर, झूमते हैं महक देकर,
वहीं भौंरें - तितलियां भी,गाते गीत प्यारे हैं।

सजा हरियाली से देखो,यही का कोना-कोना है,
लताऐं डाल से लिपटी, झुमते वृक्ष कतारें हैं।

जल निर्झर से झर-झर कर,सुर संगीत की छेड़ा,
छलकते बर्षा के जल से,सरोवर के किनारे हैं।
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

पति-पत्नी

पति-पत्नी

आपस में विश्वास बनाकर।
एक-दूजे का साथ निभाकर।।
जीवन पथ पर बढ़ते जाते।
अंत-काल तक साथ निभाते।।

कभी-कभी तकरार भी होता।
पर आपस में प्यार भी होता।।
जो आती सुख-दुख की बारी।
दोनों ही बन जाते अधिकारी।।

प्यार के रंग में रंगती है जोड़ी।
लड़ाई-खिचाई भी होती थोड़ी।। 
पत्नी सयानी और पति सयाना।
दोनों मिल कर एक समाना।।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, July 1, 2021

धरती के भगवान (लघुकथा)



विद्या का मन बहुत घबरा रहा था। बेटा को कोरोना मरीजों के वार्ड में ड्यूटी पड़ी।मन की झुंझलाहट लंच बॉक्स पर निकाल रही थी । हरीश के लिए लंच बॉक्स में भूना हुआ बादाम भरती हुई वह सोच रही थी  इससे तो अच्छा था वह घर बैठ कर कोई बैंक बगैरह की नौकरी की तैयारी करता। बस इसके पिता जी को ही ज़िद थी कि एक ही बेटा है डाक्टर बनाऊंगा।अब देख लिया ना इतनी बड़ी आपदा पड़ी है।सभी लोग घर में सुरक्षित बैठे हैं और मेरे जिगर के टुकड़े को कोरोना बैरियर बना दिया। स्टुडेंट-लाइफ में ही इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी। क्या और चिकित्सक नहीं है। मेरे फूल से बच्चे को बीमारों की इलाज में झोंकना था।
         मां जल्दी दो ना मेरा लंच- बॉक्स हरीश ने तैयार होकर आते हुए बोला। हां ठीक है ।यह स्कूल वाला लंच-बाक्स । तुम्हारे हाथ का बना हुआ मजेदार गाना खाएं बगैर मुझे चैन नहीं।ऊपर से यह बचपन बाला लंचबॉक्स।मां के हाथ से लंचबॉक्स लेकर मां पिताजी के चरण-स्पर्श किए और हास्पीटल के लिए निकल पड़ा। मां जानती थी यह सब बातें वह उसे बहलाने के लिए बोल रहा है। मां का जी चाहा उसे पकड़ कर रोक ले। लेकिन तब तक वह बढ़ चला था।
             उसके मनोभावों को पढ़ते हुए शिखर जी ने कहा-क्यों मन छोटा करती हो विद्या !उसे कुछ नहीं होगा।उसे अस्पताल जाने से हम रोक भी नहीं सकते।
       चिकित्सक धरती के भगवान होते हैं। उन्हें बीमारों की इलाज कर उनकी जान बचाना होता है। चिकित्सक का यह पहला कर्तव्य है। उन्हें अपनी जान की परवाह नहीं होनी चाहिए। औरों की जान बचाना ही उसका पहला कर्म है हमारा आशीर्वाद है कि वह अपने कर्म-पथ पर हजारों बरस बना रहे। हां वना रहे मां ने भी अपने चिंतायुक्त हृदय को तसल्ली देते हुए कहा -
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'