Wednesday, July 29, 2020

मेरी बगिया में छाई बहार तुमसे

मेरी बगिया में छाई बहार तुमसे।
पिया मेरा है सोलह श्रृंगार तुमसे।।

जब माथे पर बिंदिया सजाऊँ।
तेरे मुखड़े को हँसता मैं पाऊँ।
माँग सिंदूर में सजा प्यार तुमसे।।
पिया मेरा .................

जब आँखों में कजरा लगाऊँ।
जैसे नजरों में तुझको बसाऊँ।
अखियों की कजरे की धार तुमसे।।
पिया मेरा......................

जब होठों पर लाली लगाऊँ।
तेरे होठों को मुस्काता पाऊँ।
मेरे गालों पर लाली का प्यार तुमसे।।
पिया मेरा.....................

जब हाथों में मेंहदी रचाऊँ।
कलाईयों में चूड़ियाँ सजाऊँ।
मेरे कंगने में खनके गुंजार तुमसे।
पिया मेरा....................
,
जब पाँवों ने आलते लगाऊँ।
और अँगूठे में बिछुवे सजाऊँ।
मेरे पायल में गूँजे झंकार तुमसे।
पिया मेरा........................
       सुजाता प्रिय'समृद्धि'
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Saturday, July 25, 2020

गज़ल

तुम आ रहे हो,ये खबर हो गई।
रास्तें में तेरी, यह नजर हो गई।

सुबह से खड़ी थी,राहों में तेरी,
खड़ी ही रही,  दोपहर हो गई।

तब से खड़ी थी, शाम ढले तक,
शाम ढली  राह, बेनजर हो गई।

रात कटी अब, तारों को गीनते,
इंतजार करते,अब सहर हो गई।

फिर से ये नजरें,लगीं राह तकने,
तकते-हुए फिर,इक पहर हो गई।

आखिर को तुम,आ ही गए अब,
तेरी-मेरी अब इक, डगर हो गई।

तुझको 'प्रिय'यह,बता दूँ अभी मैं,
कि अब मैं तेरी, हमसफर हो गई।

     सुजाता प्रिय'समृद्धि'
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Thursday, July 23, 2020

रिमझिम रिमझिम आई बरसात

रिमझिम रिमझिम आयी बरसात।
मीठी  फुहारों  की  लायी सौगात।
रिमझिम-रिमझिम.................

झूम-झूमकर झूमे रे बदरिया।
काली-काली बिखरी कजरिया।
लहर-लहर लहराई ।
आसमान में छाई।
हवा के झोंके को लेकर साथ।
मीठी फुहारों की लायी सौगात।
रिमझिम-रिमझिम...............

चम-चम चमके बिजुरिया ।
कड़-कड़ कड़के बदरिया।
रूई - जैसी वह लरजे।
गड़-गड़,गड़-गड़ गरजे।
सखी -घन से कुछ करती बात।
मीठी फुहारों की लायी सौगात।
रिमझिम-रिमझिम...............

टप-टप,टप-टप टपके।
लप-लप,लप-लप लपके।
इधर-उधर कभी भटके।
और मारे सौ-सौ झटके।
धूम मचाती दिन और रात।
मीठी फुहारों की लायी सौगात
रिमझिम-रिमझिम..................
     सुजाता प्रिय'समृद्धि'
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Wednesday, July 22, 2020

वृद्धाआश्रम ( लघु कथा )

बहुत मुश्किल से राजू बाबूजी को वृद्धाआश्रम में रहने के लिए मनाया । माँ के गुजरने के बाद वे अकेलापन महसूस कर रहे थे।
उनकी देख-भाल का जिम्मा अब उसके और उसकी पत्नी पर आ गया था।उसके कार्यालय और बेिट्टु के विद्यालय के लिए नास्ता-खाना तैयार करने के साथ-साथ बाबूजी के लिए भी चाय नास्ते की व्यवस्था करनी पड़ती।सौम्या परेशान हो जाती।
वह रोज राजू को उलाहने देती हुई बोलती- बाबूजी ने तो नाक में दम कर दिया है।समय पर चाय नास्ता और भोजन चाहिए।कुछ करना-धरना तो है नहीं।अखवार- टी०वी० से चिपके रहना।रोज पार्क में टहलना जरूरी है। घुटने का दर्द का बहाना बनाकर व्हील चेयर खरीदबा लिए।एक कमरे को अलग से दखल किए रहते हैं।एक-आध घंटा विट्टु को पढाते हैं तो लगता है कितना बड़ा काम करते रहे हैं ।तुरंत चाय की फरमाईश।
पत्नी की बात सुन-सुन कर उसे भी बाबूजी का साथ रहना नागवार लगने लगा।एक दिन उसने बाबु जी को वृद्धाआश्रम में रहने की सलाह दी।
बाबूजी ने कहा- मैं तुमलोग को छोड़ कर कहीं नहीं जाउँगा।इस घर में मेरी आत्मा बसती है। इस घर में तुम्हारी माँ की यादें बसी है।तुम्हारा बचपन बसा हुआ है।बहुत मुश्किल से दो-दो पैसे जोड़कर मैने इस घर को बनाया है।इसकी एक-एक ईंट से मुझे लगाव है।

राजू ने कहा- आप वहाँ रहने लगेंगे , तो आपको वहाँ भी मन लगेगा।हमउम्रों का साथ होगा।फिर धीरे-धीरे इस घर से लगाव खत्म हो जाएगा।
आखिर कार बाबूजी मान गए।
उन्हें लेकर राजू वृद्धाआश्रम पहुँचा।बगल में अपना प्रारंभिक विद्यालय देख बाबुजी से पूछा- याद है बाबूजी !बचपन में आप रोज इसी विद्यालय में मुझे पढ़ने के लिए पहुँचाने आते थे ?
बाबुजी ने रुआंसे से स्वर में कहा।हाँ बेटा ! और यह भी याद है कि यह वृद्धाआश्रम आश्रम पहले अनाथालय हुआ करता था।और इस अनाथालय से मैं और तुम्हारी माँ तुम्हें अपने साथ ले गए थे। जब यहाँ के सारे बच्चों को निःसंतान दम्पति ले गए तो यहाँ वृद्धाआश्रम चलाया जाने लगा।उस दिन मैं नहीं सोंचा था कि जिसे मैं यहाँ से निकालकर प्यार से पाल-पोष कर, पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाऊँगा,वह एक दिन मुझे यूँ अनाथों की तरह मेरे घर से निकालकर यहीं पहुँचा  देगा।

यह सुन राजू के पैरों के तले से जमीन खिसक गई।वह जड़वत बाबूजी का व्हील चेयर पकड़े खड़ा रहा।
          सुजाता प्रिय'समृद्धि'
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Saturday, July 18, 2020

कोरोना काल में साहित्योदय

छत के मुंडेरे के पास बैठ सुमित्रा जी आसमान में छाई लालिमा को अपलक निहार रही थीं।सुर्योदय से पूर्व जागने की आदत उन्हें बचपन से थी।सुबह रसोई का काम निपटाकर तैयार हो विद्यालय के लिए प्रस्थान करती।
पेशे से शिक्षिका सुमित्रा जी को विद्यालय से आने के पश्चात गरीब और अनाथ बच्चो को सुशिक्षित और संस्कारित करने में बड़ा आनंद आता।सच पूछें तो यही उनका सांध्य-आराधन था।लॉक डाउन के कारण ना तो विद्यालय जाना था, ना ही बच्चों को पढ़ना था।परिवार के लोग सुबह देर से जागते।
किसी को कहीं जाना नहीं।रसोई की भी कोई जल्दी नहीं।सुबह उठकर थोड़ी देर छत पर टहलने लगीं।अकेले में आसमान-सूरज, पेड-पौधे़,पशु-पक्षियों ,नदी-तालाबों इत्यादि को देख मन में अनेक प्रकार के सुविचारों का उदय होता।कई दिनों तक उन विचारों को मथने के बाद उन्होंने उन्हें लिपिबद्ध करने की ठानी।और कोरोना-काल की विषमताओं और गरीबों की दयनीय दसा का सजीव चित्रण कर अनेकानेक कविता और कहानियों का रूप देने लगी।दैनिक मजदूरी या व्यापार कर कमाने वाले तथा प्रवासी मजदूरों की दयनीय स्थितियों एवं मजबूरियों को अपनी लेखनी 'द्वारा खूब उकेरा।अपनी रचनाओं 'द्वारा जन-जागरण करना अब उनकी दिनचर्या हो गई थी।सभी ने उन्हें उनकी इस प्रसंशनीय कार्य के लिए खूब सराहा। इस प्रकार लॉक डाउन न सिर्फ सभी लोगों को कोरोना से संक्रमित होने से बचाया,अपितु साहित्य प्रेमियों के मन में साहित्य को उदय कर सम्पूर्ण समाज में साहित्यिक सेवा करने का सुनहरा अवसर प्रदान किया।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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गज़ल

मुझे जो मुहब्बत तुम्हारी मिलेगी।
तो दौलत दुनिया की सारी मिलेगी।

मुझे आज तुमसे मुहब्बत हुई है,
सुना दूँ खबर तुमको प्यारी मिलेगी।

तेरी आस में दिल व्याकुल है कितना,
मैं सोची न थी बेकरारी मिलेगी ।

आशा का दीपक जलाया है दिल में,
लौ इसकी हरदम जारी मिलेगी

मेरी ख्वाहिशों को जो पूरा करोगे,
तो समृद्ध प्यार की क्यारी मिलेगी।
     सुजाता प्रिय'समृद्धि'

Friday, July 17, 2020

पृथ्वी बनी पटरानी

पृथ्वी बनी पटरानी,
बनी सारे जगत की ऱानी।
लगती बड़ी ही सुहानी,
बनी सारे जगत की रानी।

हरी मखमल की चोली पहनी।
चुनरी का रंग हुआ धानी,
बनी सारे जगत की रानी।
पृथ्वी बनी---------------

पेड़-पौधों से अंग सजा है।
लताओं की हार बड़ी शानी,
बनी सारे जगत की रानी।
पृथ्वी बनी---------------

ताल-तलैया लबा-लब भरा है।
नदियों में भर गया पानी,
बनी सारे जगत की रानी।
पृथ्वी बनी------------------

मोर,पपीहा वन में नाचे।
चिड़ियाँ बोले मीठी वाणी,
बनी सारे जगत की रानी।
पृथ्वी बनी---------------
सुजाता प्रिय'समृद्धि'

Thursday, July 16, 2020

झूला लगा कदम की डाली

झूला लगा कदम की डाली,
झूल रही मैं मधुवन में ।
चलती मधुर-मधुर पुरवाई,
मस्ती छाई तन-मन में।

आया सावन बड़ा सुहावन,
हरियाली छाई।
देख घटा का रूप सलोना,
मन में मैं हरषाई।
नभ की छटा बड़ी मनभावन,
खुशियाँ' लायी जीवन में।
झूला लगा कदम की डाली,
झूल रही मैं मधुवन में।

ओ रे साजन तू भी आजा,
संग-संग हम झूलें।
दोनो मिलकर पेंग बढ़ाकर,
गगन को जा छू लें।
चल अम्बर में विचरण कर लें,
उमंग लेकर चितवन में।
झूला लगा कदम की डाली,
झूल रही मैं मधुवन में।

         सुजाता प्रिय'समृद्धि'
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Sunday, July 12, 2020

अभिशाप ना कहो

छोटे- छोटे दुःखों को संताप ना कहो।
जिंदगी' वरदान है अभिशाप ना कहो।

समझो कभी ना ये कि भार है ये जिंदगी।
ईश्वर का दिया हुआ उपहार है ये जिंदगी।
कभी भी तुम इसको  श्राप   ना कहो।
जिंदगी वरदान है अभिशाप ना कहो।

हालात को सुधारकर जिंदगी सवार लो।
मेहनत के  कूचे से इसको  निखार लो।
भूले से भी इसको  तू पाप ना कहो।
जिंदगी वरदान है अभिशाप ना कहो।
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, July 11, 2020

रास्ते के पेड़


वर्षों बाद महेश बाबु गाँव आ रहे हैं। उन्हें फोन पर ही खबर मिली थी कि ग्रामीण सड़क योजना के तहत उनके गाँव तक पक्की सड़क बन गई है।गाँव जाने वाली बस में सफर कर उन्हें जो सुकून मिल रहा था वह सुकून कभी मुम्बई में  विदेशी कार में घूमने में भी नहीं मिला।पहले तो  गाँव से शहर तक बैलगाड़ी अथवा घोड़ागाड़ी पर सवार हो कच्चे रास्ते से आना जाना होता था।
रास्ते में आने वाले गाँव में बस को रोककर यात्रियों  को उतारते हुए बस आगे बढ़ी जा रही थी।उन्हें अंदाज हो रहा था कि अब उनका गाँव निकट है और वे जल्द ही अपने गाँव उतरने वाले हैं।लेकिन यह क्या बिना किसी की आज्ञा के बस रुक गई।उन्होंने देखा वहाँ कोई गाँव नहीं, कोई पड़ाव नहीं।
तभी कंडक्डर  ने कहा सभी यात्री गण उतर जाएँ।बस आगे नहीं जाएगी।क्योकि बीच सड़क पर एक काटा गया पेड़ गिर पड़ा है।दूर गाँव के यात्री गण बस वाले को कोसने हुए भाड़े वापसी की बात करने लगे।
महेश बाबु सोंचने लगे जितनी देर बहस करूँगा उतनी देर में तो पैदल घर पहुँच जाउँगा।रास्ते में जान- पहचान वाले एवं मित्रों से बात- मुलाकात भी होगी।बस से उतरकर वे अपना विदेशी सुटकेश लिए गाँव की ओर बढ़ चले।सुंदर साफ-सुथरा पथ देख उनका मन प्रफुल्लित हुआ जा रहा था।लेकिन गाँव में भी फागुन की कड़कती धूप से वे हतप्रभ थे।गर्मी से परेशान हो उन्होंने अपना कोट खोलकर कंधे पर रख लिया।
पसीने पोछते हुए सोंचे किसी पेड़ कीे छाया में ठहरकर थोड़ी देर सुस्ता लूँ ।फिर आगे बढ़ूँगा।किन्तु यह देख उनका मन विचलित हो उठा।रास्ते के किनारे के सभी पेड़ गायब थे।बहुत दूर तक नजरेंदौड़ाने पर एक पेड़ं दिखा।जिसे वह पहचान रहे थे ।इसी आम के पेड़ में बचपन में झूला लगाकर दोस्तों के संग झूलते थे।आम के टिकोले का स्वाद उन्हें आज भी याद है । सड़क बनने की खुशी से ज्यादा दुःख उन्हें पेड़ों के काटे जाने  का हुआ। क्यों उन छायादार वृक्षों को काटा गया ।क्या था उनका कसूर।इसलिए तो फागुन माह में भी इतनी गर्मी लग रही। पढ़-लिखकर भी लोग पेड़-पौधों के लिए इतने बेरहम क्यों हो गए।आखिर क्यों उन्हें नष्ट कर प्राकृतिक आपदाओं को आमंत्रित कर रहे हैं?
   सुजाता प्रिय 'समृद्धि'राँची
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Friday, July 10, 2020

सावन का महीना ( लघु कथा )

पढ़ाई करने के बाद राखी चहलकदमी करती हुई बाहर आई ।उसने देखा-सब्जी वाली बार-बार दादी से साग और बैंगन लेने के लिए मनुहार कर रही है।और दादी बार-बार उसे मना करते हुए बोल रही हैं- सावन में साग बैंगन नहीं खाना चाहिए।दादी 'द्वारा ली गई लौकी-झिंगी देखकर वह सोंच रही थी यह दादी की कौन-सी मान्यता है कि सावन में साग बैंगन नहीं खाना चाहिए।कल दही वाले को भी कह रही थी सावन में दही नहीं खाना है।पिताजी को मछली लाने से मना करते हुए बोलीं सावन में मांसाहार नहीं करना चहिए। सावन माह में इन वस्तुओं के सेवन पर पावंदी क्यों।आजकल दादी पूजा - पाठ भी विशेष रूप से करने लगीं हैं।भांग -धतुरे, वेलपत्र- आंक दूध -घृत, जाने क्या-क्या भोले बाबा पर चढ़ाती हैं।हर सोमवार को उपवास रखना।सुबह शाम भजन-आरती।फिर रक्षा बंधन का त्योहार की तैयारी भी  जोरों से चल रही है।राखी ,डाक आवागमन मिठाई उपहार इत्यादि में नाहक कितने पैसे खर्च हो जाते हैं लोगों के। उफ़ बेकार की फिजुलखर्ची।
उसे इस प्रकार उधेड़-बुन में पड़े देख आखिर दादाजी ने पूछ ही लिया- मेरी राखी बिटिया कुछ परेशान लग रही है।राखी ने उपरोक्त सभी बातों को दादाजी के समक्ष रखते हुए बोली- इन्हीं कारणों से तो लोग हिन्दु धर्म को ढकोसला कहते हैं।
दादाजी उसे अपने पास बैठाकर प्यार से समझाते हुए बोले-सावन मास बड़ा ही पावन मास है।इस महीने में व्रत- त्योहार का केवल धार्मिक महत्व ही नहीं अपितु वैज्ञानिक महत्व भी है।शिवलिंग पर दूध और जल के अभिषेक करने से वातावरण को शीतलता प्रदान होती है।भांग-धतुरे, आक - विल्वपत्र इत्यादि कीटाणु रोधक होते हैं।इन्हें चढा़ने से आस- पास पनपने वाले कीटाणुओं का नाश होता है।पूजा करने से लोगों का अंतःकरण भी शुद्ध होता है।
इस माह में साग- बैंगन और दही में कीटाणु जल्द पनपते हैं।जिन जीवों का मांस हम खाते हैं ,वे बरसात के कीटाणु जनित घास-पात खाकर पहले से ही रोग-ग्रस्त होते हैं  उनका मांस खाने से हमें भी संक्रमण का खतरा रहता है इसलिए इस महीने में लोगों को इन खाद्य पदार्थों का निषेध करना चाहिए।
इस माह के रक्षा बंधन पर्व की महिमा भी अलग है।यह पर्व भाई-बहन के पवित्र प्रेम और रिस्ते को द्योतक है। रक्षा बंधन के दिन ही तुम्हारा जन्म हुआ इसलिए हमने तुम्हारा नाम राखी रखा ।इस दिन भाई -बहन दूर-दूर से भी एक-दूसरे से मिलने और राखी बंधबाने आते हैं।यदि नहीं आ पाती हैं तो बहने डाक 'द्वारा भी राखी भेजती हैं।कितने प्यारे होते हैं वे पल ।पैसे खर्च होने की किसे परवाह ।मिठाई और उपहार तो मन का प्यार है।रिस्ते निभाने का महत्व सबसे ज्यादा होता है।
राखी दादाजी की बाते सुनकर बहुत खुश हुई। दादाजी भी सावन के महीने के महत्व को समझा कर काफी खुश हुए।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, July 9, 2020

पिछली बारिश में

याद है भैया ? पिछली बार ,
  कितनी तेज हुई थी बरसात।
      हम दोनों भाई विद्यालय से,
           लौट रहे थे सोनु के साथ।

सड़कों पर नदियों जैसी,
   बह रही थी पानी की धार।
       हम-तुम दोनों मस्ती करते,
            कर  रहे थे उसको पार।

मैंने पहन लिया बरसाती,
   तुम दोनों सिर पर छतरी तान।
      छप्प छप्पक पानी में चलते,
         मन में रखकर बड़ा गुमान। 

क्या दिन थे बारिश में भी,
   हम सब विद्यालय जाते थे।
      पढ़-लिख कर भींगते-भींगते,
           हम रोज घर को आते थे।

आज तो बस सपने जैसा,
    लगता है विद्यालय  जाना ।
       घर में रहकर खेलना-कूदना,
        उछल,उछल उद्धम मचाना।

ऑन लाइन टास्क बनाना,
    और घर में ही पढ़ना है। 
      बारिश की वह मस्ती बंद है,
             लॉक डाउन में रहना है।

   सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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Sunday, July 5, 2020

गुरु जी तुम्हारे चरणों में

आ० गुरुजी माधव सदाशिव राव गोलवलकर जी के लिए लिखी गई एक पुरानी रचना।

हम शीश नवाते हैं निशदिन
गुरु जी तुम्हारे चरणों में।।
विश्वास है मन में मिलेगा सदा,
आशीष तुम्हारे चरणों में।।

देश हमारा धन्य हुआ।
जहाँ है तेरा जन्म हुआ।
हमें मिलती रहे तेरी दिव्या प्रभा,
गुरु जी तुम्हारे चरणों में।।

विश्व में भारत बना महान।
तेरे कारण संघ की पहचान।
सबके मन में रहता है ध्यान,
गुरु जी तुम्हारे चरणों में।।

हिन्दुओं को किया तुमने संगठित।
जिनका था धर्म से मन विचलित।
सब आने लगे होकर प्रेरित,
गुरु जी तुम्हारे चरणों में।।
गुरु जी.......
    सुजाता प्रिय

Friday, July 3, 2020

मैं बस स्वराज्य चाहता

न राज न ताज चाहता।
भलाई का काज चाहता।

जन्मसिद्ध अधिकार है,
मैं बस स्वराज्य चाहता।

उन्मुक्त उड़ानें भर सकें,
मन यही आज चाहता।

विदेशी तज स्वदेशी ला,
देश मंत्र आज चाहता।

नफरत का वास न रहे,
देश वह समाज चाहता।

सबको जो सुलभ लगे,
वह रीत रिवाज चाहता।

श्रवण को जो प्रिय लगे,
वो मधुर आवाज चाहता।

लोकमान्य- सा जो बने,
देश पूत आज चाहता।

  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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सरहद के इस पार

सरहद के इस पार।
भूले-से भी कदम बढ़ाये,
खाओगे बड़ी मार।
सरहद के.......
हम सरहद के रखवाले हैं,
हम से पंगा मत लेना।
मुफ्त में जान गवाओगे तुम,
हम से दंगा मत लेना।
बचने की कोशिश तुम्हारी,
होगी सब बेकार।
भूले से भी..............
इस पर कदम बढ़ाने वाले,
तेरा सिर कुचल देंगे।
इधर कभी तुम आओगे तो,
चीटी-सा मसल देंगे।
लड़ना है तो जल्दी आ जा,
दिखा दें तेरी हार।
भूले से भी..........
यह सरहद भारत का भू है,
इस पर  नजर न तुम डालो।
इस पर अधिपत्य तुम्हारा होगा,
ऐसे मनसुबे मत पालो।
भारत माँ की रक्षा करने,
हैं हम खड़े तैयार।
भूले से भी...........
   सुजाता प्रिय'समृद्धि'
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Wednesday, July 1, 2020

बंद करो व्यापार चीनियों

बंद करो व्यापार चीनियों,
बंद करो व्यापार।
भारत से कारोबार चीनियों,
बंद करो व्यापार।

टीक-टॉक,शेयरिंग,यू सी ब्राउजर।
हम सब खुश हैं उन्हें हटा कर।
तेरे सभी सामानों का हम,
कर रहे बहिष्कार चीनियों,
बंद करो व्यापार।

तूने हम पर कर विश्वासघात।
अपने पैरों पर किए आघात।
दोस्त की खाल में दुश्मन हो,
तुम पर है धिक्कार चीनियों,
बंद करो व्यापार।

तूने किया जो हमसे वैर।
लेकिन तेरा अब नहीं खैर।
भारत में निर्यात का अपने
खोये सब अधिकार चीनियों,
बंद करो व्यापार।

हमें भारत का मान बढाना।
स्वदेशी वस्तुओं को अपनाना।
राष्ट्र की शान बढ़ाने हेतु,
हमसब हैं तैयार चीनियों,
बंद करो व्यापार।
    सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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