Friday, December 29, 2023

यादें (रूप घनाक्षरी)



यादें (रूप घनाक्षरी)

जो पल बीत जाता है।
  सदा ही याद आता है।
     हंसाता औ रुलाता है।
       पल जाता है खास हो ।

कोई प्यार हो दिल में,
    परिवार  हो  दिल में,
      तकरार हो  दिल  में,
       तो याद का आभास हो।

किसी की याद आती है।
    दिल को भी रुलाती है।
        मन को भी सताती है।
            मन जाता उदास हो।

कभी हम अकेले में,
     खड़े बाजार-मेले में,
        खाते समोसे ठेले में,
          लगता कोई पास हो।
    
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, December 28, 2023

ईश वंदना (सोरठा)

ईश वंदना (सोरठा)

करूं नमन जगदीश, मैं चरण में शीश नवा।
मुझको दें आशीष, दुर्बलता मेरी  हटा।

दें दो अपना प्यार, सदाचार करना सिखा।
कभी न मानूं हार,अच्छी राह मुझे दिखा।

हो मुझसे जो भूल,माफ कर देना ईश्वर।
कभी नहीं हो चूक, दया सदा करो मुझपर।।

बढ़ा सद्बुद्धि नाथ, हम भला सब काम करें।
कोई रहे अनाथ,सारा दुःख उसका हरें।।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

आपसे मिलना मिलाना रह गया (गज़ल)

आपसे मिलना मिलाना रह गया 

आपसे मिलना मिलाना रह गया,
साल में भी पास आना रह गया।।

याद आती बचपना के दिन सभी,
बाल मन अपना पुराना रह गया।।

आपसे मिलने की अब फुर्सत नहीं।
आपसे  करना  बहाना  रह गया।

दूरियांँ  हैं  जानते  हैं हम सभी,
दूर हूँ यह भी बताना रह गया।।

दूरियों  को  दूर  करना  भूल है,
भूल  कोई आजमाना रह गया।

आप  आए पास मेरे थे कभी,
साथ में कुछ पल बिताना रह गया।।

सब ठगे - से देखते ही रह गये,
आपका घर छोड़ जाना रह गया।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, December 26, 2023

नन्हे तरु की विनती (विजात छंद)

नन्हे तरु की विनती 
(विजात छंद)

लगा है द्वार में ताला।
लगा है जंग भी काला।

सुनाता हूंँ कहानी मैं।
बता बातें पुरानी मैं।

कभी उद्यान था अंदर।
बड़ा अच्छा यहांँ मंजर।

सभी घुमने यहाँ आते।
घड़ी भर बैठ सुस्ताते।

सुहानी भोर जब होती।
चमकती ओस की मोती।

महकती फूल की क्यारी।
तितलियांँ रंग की प्यारी।

किशोरी झूलती झूले।
मनाती आसमां छू लें।

समय लड़के बिताते थे
यहाँ उद्धम मचाते थे।

मनुज ने पेड़ को काटा।
धरा मरुभूमि में पाटा।

उड़ा मैं बीज तरुवर का।
छुपाया अंश तरुवर का।

जनम लेकर उदर ताले।
ललक जीने हृदय पाले।

मनुज मुझको बचा ले तू।
मुझे अपना बना ले तू।

सदा ही काम आऊंगा।
खुशी तेरी मनाउँगा।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, December 25, 2023

नेह-स्पंदित (गज़ल)

नेह स्पंदन (गज़ल)

तुम न मानो पर तुम्हीं से प्यार है।
तुम पे ही जीवन मेरा न्योछार है।

तुम हमारे दिल में बसते हो सदा,
तेरे दिल में ही ,मेरा घर - बार है।

जब भी तुम संग में मेरे रहते प्रिय,
मुझको तो यह, रंगीं लगे संसार है।

तुम हो जब नजरें उठाकर देखते,
लगता जहां का, मिल गया प्यार है।

दिल में होता नेह-स्पंदित सदा,
मन में होता, प्रेम का संचार है।

तुम रहो तो बात सब प्यारा लगे,
तुम से ही यह शोभता श्रृंगार है।

हम जहां में साथ ही जीते रहें,
साथ ही मरना हमें स्वीकार है।
        सुजाता प्रिय'समृद्धि'नेह स्पंदन (गज़ल)

तुम न मानो पर तुम्हीं से प्यार है।
तुम पे ही जीवन मेरा न्योछार है।

तुम हमारे दिल में बसते हो सदा,
तेरे दिल में ही ,मेरा घर - बार है।

जब भी तुम संग में मेरे रहते प्रिय,
मुझको तो यह, रंगीं लगे संसार है।

तुम हो जब नजरें उठाकर देखते,
लगता जहां का, मिल गया प्यार है।

दिल में होता नेह-स्पंदित सदा,
मन में होता, प्रेम का संचार है।

तुम रहो तो बात सब प्यारा लगे,
तुम से ही यह शोभता श्रृंगार है।

हम जहां में साथ ही जीते रहें,
साथ ही मरना हमें स्वीकार है।
        सुजाता प्रिय'समृद्धि'

Saturday, December 23, 2023

गीता जयंती (दोहा)

गीता  जयंती (दोहा)

गीता पढ़कर पाइए, श्रीकृष्ण का ज्ञान।
सबपर कृपा है जिनका,प्रभु हैं कृपा-निधान।।

गीता में है उल्लिखित,अंत काल उपदेश।
जीवन में अपनाइए, भगवन का संदेश।।

गीता सुनकर अंत में, मुक्ति पाते वृद्ध।
अंत काल में आत्मा,सुन लो होता शुद्ध।

           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

वैदिक गणित (मन हरण घनाक्षरी)

वैदिक गणित

वैदिक गणित ज्ञान,
गणना होता आसान,
वैदिक गणित सीखें,
बच्चों को सिखाइए।

सोलह इसके सूत्र,
तेरह हैं उप-सूत्र,
गणित होगा सरल,
सूत्रों को अपनाइए ।

गणितीय संक्रियाएं,
पद्धतियाँ अपनाएं,
सरल रूप में सदा,
गणित को बनाइए।

समय बचता सदा,
तनाव घटता सदा,
छोटी-छोटी विधियों को,
आप समझाइए।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, December 12, 2023

स्वास्थ्य (सवैया)

स्वास्थ्य (सवैया)

ध्यान धरो निज सेहत का सब,
           ठंड बड़ी पड़ती अब भाई।
ओढ़ सदा दिन शालु लगा तन,
              रात हुई तब ओढ़ रजाई।
देह रखो अपना गरमाकर,
             ठंडक से न करो अगुवाई।
ताप जरा तन को लगने दें,
           धूप दिखे जब आँगन आई।

जो तन आप रखो अति पावन,
         रोग भला उसमें कब आता।
धूप उगे जब ठंडक में तब,
             तेल लगाकर रोज नहाता।
ठंडक से तब दूर रहें वह
       गूड़ व अदरक जो जन खाता।
दूध पिये घृत डाल मिलाकर,
          कास घटाबत हो सुखदाता।

              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, December 9, 2023

राम-राज्य की कामना

राम-राज्य की कामना

अगर कहीं मिल जाएँ राम,तो मैं ऐसा वर माँगू।
परस्पर प्रेम जहाँ होता था, उनके घर-सा घर माँगू।

चौदह वर्ष वनवास मिले,तब भी मन विचलित न हो।
पिता की आज्ञा पालन करें, कभी मन चिंतित न हो।

विमाता की निर्णय को भी ,रखूँ अपने सिर-आंँखों।
रख चरण-रज शीष सदा,सह लूँ कष्ट वन में लाखों।

सदा साथ हो लक्ष्मण भाई,संकट आँधी तूफान में।
जीवन-साथी सीता संग हो,वन के खुले आसमान में।

भरत रक्षा करे राज्य का, शत्रुघ्न भातृत्व भावों का।
फूट नहीं हो भाई -भाई में, दूरी हो सभी दुर्भावों का।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, November 29, 2023

मैं तेरा बाप (लघुकथा)

मैं तेरा बाप (लघुकथा)

एक घंटा में परीक्षा की पुस्तिका जमा कर निखिल अपने दोस्तों के साथ सिनेमा हॉल पहुंँच गया।सीट पर बैठने ही जा रहा था कि बगल की सीट पर बैठे व्यक्ति ने घबराहट पूर्ण लहज़े में पूछा - "तुम इतनी जल्दी यहाँ कैसे पहुंच  गए ? क्या परीक्षा अधूरी छोड़ आये ?"
"मैं परीक्षा अधूरी छोड़ आऊँ या पूरी ! इसे पूछने वाले आप कौन होते हैं ?" 
चटाक S S S......
तीव्र ध्वनि के साथ एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर लगा।वह गाल सहलाता हुआ अंधेरे में उस शख्स का चेहरा देखने लगा। क्या सचमुच......
हाँ-हाँ सचमुच! उसकी नजरें धोखा नहीं खा सकती।अंँधेरे में भी अपने पिता को पहचान सकता हूँ। आखिर उन्हें समझ आ ही गया कि मैं पूरी नहीं लिखता हूँ , इसलिए उत्तीर्ण नहीं होता। इसलिए आज मुझे परीक्षा-भवन तक छोड़कर समय बिताने के लिए सिनेमा देखने आ गये।'हम कितना भी अपने माता-पिता से झूठ बोलें सच्चाई उनके समझ में आ ही जाती है।' कितना भी नजरें बचाकर गलत रास्ते पर चलें,उनकी नजरें उन्हें देख ही लेती है।अब झूठ की चादर हट चुकी थी उसके नीचे के चिथड़े तोसक पर उसके बाप की नजरें पड़ चुकी थी।उन नजरों में प्यार के शैलाब की जगह नफरत और अविश्वास की ज्वार उठा रहे थे।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, November 17, 2023

छठ व्रत गीत

छठ व्रत गीत 

चार दिवस के छठे के वरतिया,
चहुं दिशी भरल हुलास छठी मैया,
लोग के मन विश्वास छठी मैया,
पूरन करिहें आस।

पहिला दिवस व्रती नहाय खाय,
गंगआ-जल करें स्नान छठी मैया,
कद्दू -दाल भात खाय ।

दूसर दिवस करें सांझ के खड़नमा,
केला-पात भोग लगावें छठी मैया,
धूप ओ दीप जलाए।

तीसर दिवस देने सांझ के अरगिया,
पग-पग दण्डवत देई छठी मैया,
अस्तगामी सुरुज मनाय।

चौथ दिवस भिनसार अरगिया,
सूप लेके पनिया में ठाढ़ छठी मैया,
उदीयमान से माँगे आशीर्वाद।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, November 16, 2023

समय (द्रुतविलावल छंद)


       समय 
समय से जगते रहना सदा।
समय से सब काम करो सदा।।
समय का तज मोह जिया करो।
समय से तुम रोज पिया करो।।

समय का पहरा जब भी लगे।
समय से सब लोग तभी जगे।।
समय का करता जब सामना।
समय से सब पूरन कामना।।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, November 9, 2023

दीपक (हाइकु)

दीपक (हाइकु)

  दीपक प्यारा
करता उजियारा
 है कोना-कोना।

   तम हरता
जगमग करता
 लगे सलोना।

    आ चलें हम
मिटा देने को तम
   दीप जलाएँ।

    दीप लेकर
पंक्तियाँ बनाकर
    घर सजाएँ

  दीप जलें हैं
चहुं ओर सजे हैं
  सुखी जीवन 

   घर आँगन
दीपक से रोशन 
   हर्षित मन 

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, November 8, 2023

मधुसूदन से प्रार्थना

भजन

मेरे अंतस के अवगुण को,हटा दो आज मधुसूदन।
मेरे उर में तू सद्गुण ,को बसा दो आज मधुसूदन।
बसा दो आज मधुसूदन, बसा दो आज मधुसूदन।
मेरे अंतर के.......................
मुझे सब लोग कहते हैं,बुरी है तू,बुरी है तू।
अगर मुझमें बुराई है,हटा दो आज मधुसूदन।
मेरे अंतर के ......................
विनय तुझसे यही केशव,कभी सत्पथ से ना भटकूं।
सदा सन्मार्ग पर चलना,सिखा दो आज मधुसूदन।
मेरे अंतर के................
सदा जग-प्राणि के हित में,करें सब काज हे माधव!
मेरे मन में सफल-ज्योति,जला आज मधुसूदन।
मेरे अंतर में ...............
सदा मैं दीन-दुखियों के,दुःख को दूर कर डालूँ।
सदा सबको सुखी करना,सिखा आज मधूसुदन।
मेरे अंतस के...............
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'


सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

दीप ज्योति (चौपाई)

दीप ज्योति (चौपाई)

देख आज दीवाली आयी।
दीप ज्योति है जगमगायी।।

प्रकाशित है घर और आँगन।
चहुं दिशा लग रहा मनभावन।।

जगमग-जगमग दीप जलें हैं।
पंक्ति बद्ध सब ओर सजे हैं।।

दीप ज्योति जला लो भाई।
लक्ष्मी मातु मना लो भाई।।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, November 7, 2023

दीपोत्सव (सवैया)



दीपोत्सव (सवैया)

दीप जला घर आँगन में तुम,
         आज सभी खुश होकर भाई।
राम-सिया घर आज पधारे,
              नाचत गावत देत बधाई।।
आज यहाँ सबका मन हर्षित,                       
            देख अमावस रात मिताई।
धूम मची चहुं ओर तभी अब,
         खाबत है सब साथ मिठाई।।

नाम जपो रघुनाथ भजो सब,
           तीर चला दस मस्तक छेदे।
काल कराल घमंड मिटाकर,
             जीत गए लंका गढ़ भेदे।।
पुष्पक बैठ उड़े रघुनंदन, 
          रावण राज विभीषण को दे।
चौदह साल बिताकर वापस,
            आज पधारे रहे मन मोदे।।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, November 6, 2023

दीपमालिका (दोहे)



दीपमालिका (दोहे)

सजी है दीपमालिका,घर आँगन और द्वार।
जगमग जगमग कर रही, रोशन है संसार।।

दीपमालिका देख लगे,सजे हुए हैं फूल।
भीनी-भीनी महक भी,देता मन अनुकूल।।

दीप उजाला कर रहा,हो जाए तम दूर।
मिट गया अंधेर यहाँ, रोशनी है भरपूर।।

दीपों की लड़ियांँ कहे,एकता रखो पास।
मन का तिमिर दूर करो, हृदय में रख उजास।।

दीपों से सीखें सभी, पर-हित का अहसास।
स्वयं है जलकर देता, दूसरों को प्रकाश।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

कर्ज (दोहे)



कर्ज (दोहे)

संतुष्ट भाव से रहें, नहीं लीजिए कर्ज।
जितना कर्जा खाइए,बढ़ता जाता मर्ज।।

कर्ज लोगों को करें,जीवन में कंगाल।
कर्ज न कोष भर सकता,चुकता ले खंगाल।।
     
किनारा कर्ज से करें,रहिए इससे दूर।
कर्ज लेकर न खाइए,चुकाना है जरूर ।।

कर्जा लेते लोग हैं, हरदम मुँह को घाल।
कर्ज चुकाने की घड़ी,मन में उठे मलाल।।

कर्जा लेने से रहें,मन में सदा विषाद।
कर्जा से झोली कभी, होय नहीं आवाद।।

               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, November 3, 2023

शब्द आधारित ( दोहे)

फूल भ्रमर गुलशन कली काँटे

उपवन में खिले हुए, सुंदर फूल हजार।
कह रहे सीखो हँसना, धरती कर गुलजार।।

रस लोलुप भ्रमर यहाँ,भुन-भुन गाता गान।
फूल-फूल पर बैठ कर,करता है रसपान।।

गुलशन देख महक रहा, फूल खिले चहुं ओर।
फूलों की खुशबू यहाँ, लेकर आता भोर । 

डाली में सुंदर कली, रही हवा संग डोल।
आगत दिन में मैं यहाँ,खिलूँ पंखुड़ी खोल।

काँटें रक्षा करें सदा,रह फूलों के पास।
काँटों के संग रहते,देते सदा सुवास।।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, October 26, 2023

अनुराग (सवैया)

अनुराग (सवैया)

जो मन में अनुराग धरो तुम 
                 चाहत जो तुमको वह पाओ।
जो मन चाह रहा उसको अब 
                 पाकर संग खुशी अपनाओ।।
रे मन मौज करो न अभी तुम 
                 जाकर आज यही समझाओ।
जाग अभी तुम ऐ मन मूरख
                 सोबत हो अब नींद भगाओ।।

जो मन ने तुमको समझा यह 
                     बात वही सच है यह जानो।
उद्यम जो करते जुगती कर
                   सिद्ध करें सब कारज जानो।।
सोच मनोरथ पूर्ण करे वह 
                       साधन तो उसने यह मानो।
ध्यान रहे जिसके मन में यह 
                       ले अनुराग लगा यह मानो।।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, October 25, 2023

दशहरा

जय माता दुर्गा जया
विजय दिला विजया


दशहरा (मनहरण घनाक्षरी )

बुरा पर अच्छाई की।
     झूठ पर सच्चाई की।
          हार पर विजय की।
                जीत है दशहरा।

दुर्गुण पर गुण की।
      अधर्म पर धर्म की।
         अज्ञान पर ज्ञान की।
                जीत है दशहरा।

घृणा पर सप्रेम की।
      विषम पर सम की।
        दुख पर समृद्धि की।
                जीत है दशहरा।

पापियों पर पुण्य की।
      छलावे पर क्षमा की।
        क्रोधियों पर शांति की।
                   जीत है दशहरा।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, October 23, 2023

जय माँ सिद्धिदात्री

जय मांँ सिद्धिदात्री

जय माता सिद्धिदात्री,आई  तेरे द्वार।
उड़हुल फूलों की बना,लाई हूँं मैं हार।।

मुझको माँ वरदायिनी,दे दो अपना प्यार।
बच्चों को तो चाहिए,माँ का प्यार- दुलार।।

मुझको माता अम्बिके,सिद्धि कर दे प्रदान।
दुष्ट ना आए पास माँ, दो निर्भय का दान।।

सिद्धिदात्री भगवती, सिद्ध करो सब काज।
लिए मनोरथ द्वार मैं,आयी हूँ माँ आज।।

तुझसे माँ विनती करूँ,जोड़ूँ अपने हाथ।
तेरे चरण में अम्बे,झुका रही हूँ माथ।।

शुद्ध रहे अंतःकरण,सुंदर रहे विचार।
मन से हर दुर्भावना ,हर लो सभी विकार।।

हाथ जोड़ हे भगवती,करती हूँ प्रणाम।
पूर्ण कर मनोकामना,पूर्ण करो सब काम।

सब लोग का पाप हरो,कर दे माँ उपकार।
हम भलाई करें सदा,सुखी रहे संसार।

पापी दुराचारी के,हर लो सारे पाप।
सुख और समृद्धि रहे,आये ना संताप।।

      सुजाता प्रिय समृद्धि

Sunday, October 22, 2023

माता महागौरी (सायली छंद)

माता महागौरी (सायली छंद)

जय
माँ महागौरी
गौरवर्ण का रूप
शोभता है
तेरा।

दया
करो माँ
अपने भक्तों पर
कष्ट हरो
मेरा।

वृषभ
पर आरूढ़
हो तुम समस्त 
संसार में
घूमती।

चार
भुजाएंँ हैं
तुम्हारे तुम माँ
अन्नपूर्णा हो
भगवती।

कर
रहे हम
भक्त जन माँ
देख तेरी
आराधना।

सत्य
मन से
नित्य करते हैं
तेरी सेवा
साधना।

माते
निर्मल मन
तुम्हारा है अम्बे
तुम बड़ी 
करुणामयी

पूर्ण
करती हो
मनोकामना मांँ तू
है बड़ी 
ममतामई 

प्राणी
जन के
दूर करती हो
सभी पाप
माँ।

दिल 
से तुमको
जो भी पुकारे
हरती संताप
माँ।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, October 21, 2023

माता कालरात्रि (विजात छंद)

माता कालरात्रि (विजात छंद)

भयानक रूप धरकर माँ।
गदह का पीठ चढ़ाकर माँ।
पधारीं आज सब देखो।
नजर चरणा सभी लेखो।।

कहाती काल रात्रि माँ।
शुभानी वर प्रदात्री माँ।।
गले नर मुण्ड की माला।
वदन पूरा लगे काला।।

बिखेरी बाल मुखड़े पर।
डरे सब लोग देखे सर।।
उगलती आग सांसों से।
गरम वायु उच्छवासों से।।

लगाओ भोग गुड़ का जब।
खुशी से झूमती माँ तब।।
सभी को वर बहुत देती।
सभी संताप हर लेती।।

  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, October 20, 2023

जय माता कात्यायनी



जय माता कात्यायनी ( विजया घनाक्षरी)

जय माता कात्यायनी,
शीघ्र हो फलदायिनी,
दुर्गा का षष्ठम रूप 
भक्त जनों को है भायी।

महिमा तेरी अनूप,
समझे न देवा- भूप,
ले कर बालिका रूप,
कात्यायन घर आयी।

है चार भुजाओं वाली,
ले कमल फूलों वाली 
कात्यायन की बिटिया,
कात्यायनी कहलायी।

आया है कैसा संयोग 
लगाओ मधु का भोग 
होबे नहीं चर्मरोग,
माता को बहुत भायी।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

स्कंदमाता (मतगयंद सवैया)

पंचम रूप स्कंदमाता (मतगयंद सवैया)
२११ २११ २११ २११ २११ २११ २११ २२

आज लगे धरती यह सुंदर होबत है जग में जगराता।
पंचम रूप धरी जननी जग में कहते इनको जगमाता।
मात रची तुम सृष्टि सजाकर जीव सभी जनको यह भाता।
नाम जपे जग में सब लोग यहां कहते इनको जय माता।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, October 18, 2023

जय माँ कूष्माण्डा (चौपाई

जय माँ कूष्माण्डा (चौपाई)

जय जय जय कुष्मांडा माता।
चतुर्थ रूप यह तेरा भाता।।

हाथ में धनुष-बाण विराजे।
कमण्डल कलश व कमल साजे।।

करती हो तुम सिंह सवारी।
महिमा तेरी है अति न्यारी।।

फल मेवे का भोग लगाऊँ।
भजन-कीर्तन-आरती गाऊँ।।

 मनोकामना पूर्ण करें तू।
सबकी झोली मातु भरे तू।।

सब पर माया करने वाली।
सबकी झोली भरने वाली।।

शरणागत की सुरक्षा करती।
सारे दुखड़े तुम  माँ हरती।।

जो जन तेरे पग में आता।
मनचाहा फल तुझसे पाता।।

           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, October 17, 2023

माँ चंद्रघंटा

माँ चंद्रघंटा

माँ चंद्रघंटा
धर शांति का रूप
करती रक्षा।

अनुशासन
न्याय कर भक्तों को 
देती सुरक्षा।

स्वर्णिम रूप
चढ़ सिंह वाहन
तुम घूमती

धारण कर
लाल वस्त्र भक्तों को
देती सुमति

तीसरा नेत्र
कपाल के बीच में
है विराजता

समदृष्टि से
देख जीवों को लिए 
प्रेम साजता

अपने आठ
हाथों में आठ वस्तु
रखती मात

दो हाथों से तू
भक्त जनों को देती
हो आशीर्वाद 

सर्वोच्च सुख
संतति शांति और 
देती हो ज्ञान ।

संतुष्ट करती 
धन-संपत्ति,समृद्धि
कर प्रदान 

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, October 16, 2023

हे ब्रह्मचारिणी माता (दोहे)

हे माता ब्रह्मचारिणी, जोडूं अपने हाथ।
मैया सभी झुका रहे, चरणों में अब माथ।
 
सब भक्तों को भा रहा,तेरा सुंदर रूप।
ममता की तुम हो धनी, दिव्य तेरा स्वरूप।।

हाथ कमण्डलु शोभता, मुखड़े पर है तेज।
स्वेत वासना अम्बिके, रही आशीष भेज।।

ब्रह्माण्ड में विराजती, दया भाव ले साथ।
दुखी जनों के पास जा,सिर पर रखती हाथ।।

लिखें माता की महिमा, प्राचीन साधु-संत।
सर्वव्यापी माता का, नहीं है आदि-अंत।।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, October 15, 2023

जय माँ शैलपुत्री ( पिरामिड)

जय माँ शैलपुत्री
हे 
माता
प्रथम
शैलपुत्री
तेरी महिमा
है अपरम्पार
देखो जरा निहार 
भक्त खड़े हैं द्वार 
झुका कर शीश
हाथों को जोड़
नमस्कार
करने
आये
हैं।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, October 14, 2023

नजरिया (विजया घनाक्षरी)

विजया घनाक्षरी ८,८,८,८ (३२ वर्णी घनाक्षरी)

नजरिया

समय - समय  पर,
  जगह - जगह  पर,
    ज़माने में है लोगों की
       बदलती   नजरिया।

निज  बारी  में अलग,
   दूजा  बारी  में अलग,
      परिस्थितियांँ देख है,
          सम्हलती  नजरिया।

किसी की साकारात्मक,
   किसी की नाकारात्मक,
      किसी की विचारात्मक,
          है  पलती  नजरिया।

बात हो कोई पक्ष में,
   या हो कभी  विपक्ष में,
       फैसले  समकक्ष  में,
           न  टलती  नजरिया।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, October 12, 2023

मेरा दोष (लघुकथा)

मेरा दोष (लघुकथा)
घर वालों की उपेक्षा और फटकार सुन नंदनी का मन लहू-लुहान हो उठता। मन की वेदना अंखियों में छलकने लगती। जिसे छिपाने के प्रयास में नजरें शुन्य की ओर फेरना पड़ता। परन्तु उस शुन्य के बीच भी कई प्रश्न चिन्ह उभर उठते। आखिर मेरे बात- विचार, व्यवहार में क्या त्रुटियांँ रह गयी ? जिसके कारण सभी मुझसे रूष्ट रहते हैं ? मेरे लिए सभी लोग के चेहरे पर असंतुष्टि के भाव दिखते हैं ? 
उसने मन-ही-मन अपने सारे क्रिया-कलापों, कर्तव्यों, बोली -व्यवहारों पर गहनता से विचार किया । नहीं उसने अपनी बोली-व्यवहारों में कोई कमी नहीं रहने दी।
फिर वह उन क्षणों का अध्ययन करने लगी जिस क्षण में लोग उसपर नाराज होते हैं। प्रथम क्षण वह था जब लोग उसे सुंदर अथवा शालीन कह देते। दूसरा- समझदार और बुद्धिमान कहते, इमानदार और व्यवहार-कुशल कह देते। आकर्षक व्यक्तित्व की धनी कहते। ईश्वर प्रदत्त इन्हीं गुणों तथा कुछ अपने सुविचारों, सद्व्यवहारों के कारण भले लोगों के बीच उसकी लोकप्रियता और प्रसिद्धि के कारण कुछ लोग, विशेष कर परिजनों की आँखों की किरकिरी बनी हुई थी। ईर्ष्या की भावना से ग्रस्त हो वे सभी उसका अपमान, अवहेलना और तिरस्कार करते हैं।आज उसकी अच्छाईयांँ ही उसके दुःख का कारण बन गयी ,जिसे वह चाहकर भी दूर नहीं कर सकती।
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, October 11, 2023

श्रद्धा कर्म (कहानी)

श्रद्धा कर्म
आज स्वर्गीय पूर्णिमा देवी जी का बरहमा है।सात गाँव की भोज-व्यवस्था।एक सौ एक ब्राह्मणों का वस्त्र -छंदा सहित भोज ।दूर-दूर के नाते-रिश्तेदार न्योते पर पधारे हैं।अपना घर तो क्या आस-पड़ोस के घरों में भी मेहमान भरें हैं।सभी के रहने एवं खाने-पीने की उत्तम व्यवस्था।भोज के सारे भोजन पूर्णिमा देवी के पसंद के बनाए जा रहे हैं।सेजदान का कार्यक्रम चल रहा है। बड़ी बहू ने सुंदर सा दीवान पर मुलायम तोसक तकिया,मसनद और सुंदर कीमती चादर लगवाते हुए कहा -मांँ जी को दीवान का बहुत शौक था इसलिए मैंने दीवान बनाया। बड़े बेटे ने श्रद्धा पूर्वक सोने की अंगूठी चढ़ाते हुए कहा-माँ ने अपने सारे गहने बेचकर मुझे इंजीनियरिंग पढ़ाया इसलिए मैंने माँ के लिए यह अँगूठी खरीदी है।   
   मंझली बहू उसपर कीमती श्रृंगार-प्रशाधन रखते हुए कहा-माँजी को सजने-संवरने का बहुत शौक था। इसीलिए मैंने श्रृंगार के सारे सामान दिए हैं।मंझला बेटा नोटों से भरा बटुआ रखते हुए कहा -माँ-ने घर-खर्चे में कटौती कर मुझे शिक्षा दिलवाई इसलिए एक महीना का पगार मैं माँ के नाम दान करता हूंँ।
    सभी के मुँह से वाह-वाही सुन बेटियांँ भी कहाँ चुकने वाली थी। बड़ी बेटी  पायल और बिछिया तथा छोटी बेटी मंगलसूत्र और सिंदूर की डिबिया चढ़ाती हुईं बोली माँ ने हम दोनों की शादी में खेत,आधा घर और बगीचे बेचकर दोनों दामाद इंजिनियर लाया हमलोग ने भी माँ के लिए यह सामान लाया है।
उनकी ननद, देवरानी,बहनें,भाभी अन्य रिश्तेदारों के तरफ से भी कपड़े, श्रृंगार -प्रसाधन मिठाइयांँ,फल मेवे इत्यादि चढ़ाएं जा रहे थे।
उनके सबसे छोटे बेटे के पास जाकर चाचाजी ने सलाह देते हुए कहा -बेटा तुम भी अपनी कमाई का कुछ अंश माँ के नाम दान कर दो ,माँ को स्वर्ग में सुख मिलेगा। लेकिन वह अफसोस भरी नजरों से सारे सामानों को देखता रहा।
    क्यों तुम नहीं दोगे कुछ ? बड़े भाई ने प्रश्न किया तो पिताजी ने कहा नहीं।
क्यों नहीं ? दोनों बड़े भाइयों के मुँह से एक साथ निकाला।
क्योंकि यह श्राद्ध कर्म में नहीं श्रद्धा कर्म में विश्वास करता है।
     श्रद्धा कर्म ?
हाँ श्रद्धा-कर्म ।तुम्हारी माँ ने दुःख सहकर, जमीन-जायदाद,जेवर गहने बेचकर तुमलोग को पढ़ाया-लिखाया, अच्छे घर में ब्याह किया   इसलिए तुम सभी ने मरने के बाद दिखावा करने हेतु इतने सारे सामान दान किया। लेकिन जब इतने दिनों से माँ बीमार थी तो इलाज करवाने का भी समय और पैसे नहीं थे तुमलोगों के पास।माँ के अंतिम दर्शन करने हेतु भी नहीं आ सके। लेकिन मेरा यह बेटा सीमित कमाई में भी अपनी माँ का इलाज-पानी सेवा -सुश्रुषा बड़ी श्रद्धा और प्रेम से किया। जिंदगी भर तुम्हारी माँ टूटी खाट पर सोती रही और उसपर से ही गिरने से कमर की हड्डियां टूट गयीं तब कोई उसे एक खाट-चौकी तक नहीं दिया यही एक महीने की वेतन उस दिन दिया होता तो शायद उसका अच्छे-इलाज हो गया होता।यही मेवे-फल उस दिए होते तो जीते जी उसकी आत्मा तृप्त होती।अब मरने के बाद इन सामानों को दान को ढकोसला और दिखाबा करने से क्या लाभ ? "यदि किसी को ज्यादा श्रद्धा और प्रेम दिखाना है तो उसके जीवन में करो मरने के बाद  वह व्यक्ति स्वयं इस आकांक्षाओं से मुक्त हो जाता है।सारे दान-दक्षिणा, भोज-भात लोग समाज के दिखाबे के लिए करते हैं।" इसलिए मान करो दान नहीं।श्रद्धा में विश्वास करो श्राद्ध में नहीं।
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'श्रद्धा कर्म
आज स्वर्गीय पूर्णिमा देवी जी का बरहमा है।सात गाँव की भोज-व्यवस्था।एक सौ एक ब्राह्मणों का वस्त्र -छंदा सहित भोज ।दूर-दूर के नाते-रिश्तेदार न्योते पर पधारे हैं।अपना घर तो क्या आस-पड़ोस के घरों में भी मेहमान भरें हैं।सभी के रहने एवं खाने-पीने की उत्तम व्यवस्था।भोज के सारे भोजन पूर्णिमा देवी के पसंद के बनाए जा रहे हैं।सेजदान का कार्यक्रम चल रहा है। बड़ी बहू ने सुंदर सा दीवान पर मुलायम तोसक तकिया,मसनद और सुंदर कीमती चादर लगवाते हुए कहा -मांँ जी को दीवान का बहुत शौक था इसलिए मैंने दीवान बनाया। बड़े बेटे ने श्रद्धा पूर्वक सोने की अंगूठी चढ़ाते हुए कहा-माँ ने अपने सारे गहने बेचकर मुझे इंजीनियरिंग पढ़ाया इसलिए मैंने माँ के लिए यह अँगूठी खरीदी है।   
   मंझली बहू उसपर कीमती श्रृंगार-प्रशाधन रखते हुए कहा-माँजी को सजने-संवरने का बहुत शौक था। इसीलिए मैंने श्रृंगार के सारे सामान दिए हैं।मंझला बेटा नोटों से भरा बटुआ रखते हुए कहा -माँ-ने घर-खर्चे में कटौती कर मुझे शिक्षा दिलवाई इसलिए एक महीना का पगार मैं माँ के नाम दान करता हूंँ।
    सभी के मुँह से वाह-वाही सुन बेटियांँ भी कहाँ चुकने वाली थी। बड़ी बेटी  पायल और बिछिया तथा छोटी बेटी मंगलसूत्र और सिंदूर की डिबिया चढ़ाती हुईं बोली माँ ने हम दोनों की शादी में खेत,आधा घर और बगीचे बेचकर दोनों दामाद इंजिनियर लाया हमलोग ने भी माँ के लिए यह सामान लाया है।
उनकी ननद, देवरानी,बहनें,भाभी अन्य रिश्तेदारों के तरफ से भी कपड़े, श्रृंगार -प्रसाधन मिठाइयांँ,फल मेवे इत्यादि चढ़ाएं जा रहे थे।
उनके सबसे छोटे बेटे के पास जाकर चाचाजी ने सलाह देते हुए कहा -बेटा तुम भी अपनी कमाई का कुछ अंश माँ के नाम दान कर दो ,माँ को स्वर्ग में सुख मिलेगा। लेकिन वह अफसोस भरी नजरों से सारे सामानों को देखता रहा।
    क्यों तुम नहीं दोगे कुछ ? बड़े भाई ने प्रश्न किया तो पिताजी ने कहा नहीं।
क्यों नहीं ? दोनों बड़े भाइयों के मुँह से एक साथ निकाला।
क्योंकि यह श्राद्ध कर्म में नहीं श्रद्धा कर्म में विश्वास करता है।
     श्रद्धा कर्म ?
हाँ श्रद्धा-कर्म ।तुम्हारी माँ ने दुःख सहकर, जमीन-जायदाद,जेवर गहने बेचकर तुमलोग को पढ़ाया-लिखाया, अच्छे घर में ब्याह किया   इसलिए तुम सभी ने मरने के बाद दिखावा करने हेतु इतने सारे सामान दान किया। लेकिन जब इतने दिनों से माँ बीमार थी तो इलाज करवाने का भी समय और पैसे नहीं थे तुमलोगों के पास।माँ के अंतिम दर्शन करने हेतु भी नहीं आ सके। लेकिन मेरा यह बेटा सीमित कमाई में भी अपनी माँ का इलाज-पानी सेवा -सुश्रुषा बड़ी श्रद्धा और प्रेम से किया। जिंदगी भर तुम्हारी माँ टूटी खाट पर सोती रही और उसपर से ही गिरने से कमर की हड्डियां टूट गयीं तब कोई उसे एक खाट-चौकी तक नहीं दिया यही एक महीने की वेतन उस दिन दिया होता तो शायद उसका अच्छे-इलाज हो गया होता।यही मेवे-फल उस दिए होते तो जीते जी उसकी आत्मा तृप्त होती।अब मरने के बाद इन सामानों को दान को ढकोसला और दिखाबा करने से क्या लाभ ? "यदि किसी को ज्यादा श्रद्धा और प्रेम दिखाना है तो उसके जीवन में करो मरने के बाद  वह व्यक्ति स्वयं इस आकांक्षाओं से मुक्त हो जाता है।सारे दान-दक्षिणा, भोज-भात लोग समाज के दिखाबे के लिए करते हैं।" इसलिए मान करो दान नहीं।श्रद्धा में विश्वास करो श्राद्ध में नहीं।
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

बालिका दिवस (हाइकु)

बालिका दिवस (हाइकु)

     मनाते हम                  करो प्रतिज्ञा 
बालिका दिवस ले      बालिकाओं की लज्जा 
     मन उमंग।                नहीं हो भंग।

     संतति यह            बालिकाओं के 
भी तो हमारी ही है     जीवन में भर दें
     हमारा अंग।            अनेक रंग।

   सिखाते सदा            किसी हाल में 
उनको हैं संस्कार      अन्याय न हो पाये
     बहुत ढंग।               इनके संग।

   ऊँची उड़ान            करें न कोई 
भरकर बालिका      उन्हें  राह  चलते 
    करती दंग।         कभी भी तंग।

 तो क्यों बालिका         न मानवता 
निज रक्षा के लिए     हो कभी शर्मसार 
    लड़ती जंग।            न बदरंग ।  

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, October 10, 2023

मन-दर्पण (दोहे)

मन-दर्पण (दोहे)

दर्पण में सब देखिए,अपना रुप स्वरूप।
क्या दिखता यह रूप है,इस जग के अनुरूप।।

मन के दर्पण में जरा, देखें आप निहार।
अपने सुंदर रूप में, कर लें आप सुधार।।

त्वचा को लीप-पोतकर,निखार लिए रंग।
मन तो मैला ही रहा,दिखता है बदरंग।।
 
कान में पहने झुमके,इत-उत मारे डोल।
शोभा कानों की बढ़ा, सुनकर अच्छे बोल।।

नयनों में काजल लगा,सुंदर करते आप।
नजरों में समता भरो,मन को कर निष्पाप।।

नाक में नथ पहन लिए, बहुत बड़ा आकार।
गंध की पहचान नहीं,नथिया है बेकार।।

होठ को तो रंग लिए,लेपन लाली नाम।
बोली मीठी है अगर,लाली का क्या काम।।
      
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

अभी तक तुम तैयार नहीं हो पायी (दोहे)

कहते हो तुम झिड़क कर,हुई नहीं तैयार।
समय निकलने का हुआ, दर्पण रही निहार।।

जाने का तो शौक है,पर करती हो देर।
ऊँची जूती ढूंढती,तुम जाने के बेर।।

इसीलिए तो मैं नहीं, लेकर जाता  साथ।
देरी करती तुम भला,कौन भुकाता माथ।।

पर क्या जानो तुम पिया,हम नारी की पीर।
सारे काम मैं करती,हो रहे तुम अधीर।।

तुमको लाकर दूँ सदा, कपड़े-जूते  पास।
इठलाते हो पहनकर, करते हो उपहास।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, October 9, 2023

निवास (दोहे)

मेरे दिल में लीजिए, ईश्वर आप निवास।
मन में मेरे है लगा,बस इतनी -सी आस।।

करती हूँ आराधना,हाथ जोड़कर आज।
शीश नवाकर कह रही,रख लो मेरी लाज।।

लेकर आई हूँ प्रभु मैं,आज आपके पास।
पूर्ण करें मन-कामना मन में है विश्वास।


Saturday, October 7, 2023

मेरे मन मंदिर में (घनाक्षरी)

मेरे मन-मंदिर में

ईश्वर का निवास है,
    और प्रेम का बास है,
        भरा हुआ उल्लास है,
            मेरे  मन - मंदिर में।

रहती सेवा-साधना,
   और सच्ची आराधना,
         मेल-मिलाप भी घना,
               मेरे  मन- मंदिर में।

प्रेम और  सद्भाव  है,
   दुष्प्रेम का आभाव है,
        न  कोई दुराभाव है,
             मेरे मन - मंदिर में।

सभी के लिए समता,
    सभी जीवों से ममता,
          प्यार नहीं है  कमता,
                मेरे  मन- मंदिर में।

               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, October 6, 2023

नदी की व्यथा (कविता)

नदी की व्यथा

कल- कल करती बहती नदिया।
   जन- जन से यह कहती नदिया।
      कूड़े -  कचरे मुझमें मत डालो।
         हे मानव जन ! मुझे बचा लो।

मुझमें तुम नाले बहा रहे हो।
   मुझमें  गंदगी  फैला  रहे हो।
      मूर्ति-विसर्जन मुझमें करते हो।
          फूल-अर्पण मुझमें करते हो।

पशुओं को मुझमें नहलाते हो।
   लाशों  को मुझमें ही दहाते हो।
      उद्योगों के अपशिष्ट फेंकते हो।
        मेरा  दुःख तुम नहीं देखते हो।

हो रहा है जल प्रदूषित मेरा।
   विषैले जीव ले रहे हैं बसेरा।
     घट रही है देख पवित्रता मेरी।
        विलुप्त हो रही अस्मिता मेरी।

मुझसे ही है तुम सबका जीवन।
   मुझसे है खेती,वन और उपवन।
      अपने जन को तुम  समझा लो।
         मानव तू मेरा अस्तित्व बचा लो।
            
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, October 4, 2023

देवों पर श्रद्धा (हाइकु)

देवों पर श्रद्धा

    जिनका मन              सोने के दीये
श्रद्धा से भरा होता      गाय का घृत डाल 
   होते महान।              कर जलाते।

   भगवान को             भगवान की
पूजते हैं श्रद्धा से      सुमंगली-आरती
   करते ध्यान।            गुनगुनाते।

   गंगा जल से                हाथ जोड़ते 
देवताओं को सदा       शीश को झुकाकर 
   हैं नहलाते।                करें प्रणाम।

   रेशमी वस्त्र                  मानते सदा 
फूलों की माला गले      ईश के चरणों को 
   हैं पहनाते।                 अपना धाम।

ललाट पर                 देवों के प्रति 
चंदन का तिलक      हमारे मन में भी
    फिर लगाते।         श्रद्धा जरूरी।

   श्रद्धा से भोग               श्रद्धा रखिए 
फल मिश्री मेवे का।       देव मनोकामना 
   उन्हें चढ़ाते।                 करेंगे पूरी।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, September 29, 2023

पिता से अमीर (मनहरण घनाक्षरी)

पिता से अमीर

मिले पिताजी का प्यार,
पल में करें दुलार,
जगत में कोई नहीं,
पिता से अमीर है।

पिताजी से ही गांँव है,
पिता सुख की छांव है,
पिता जैसे जीवन की,
बहता समीर है।

पिता  सुबह - शाम है,
पिताजी को प्रणाम है,
दिखाते हर दिशा की,
पिता ही लकीर है।
 
पिता दिखाते राह हैं,
मन में जो भी चाह है,
साथ देने बालकों को,
मन से अधीर हैं।
 
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

उम्मीद (मनहरण घनाक्षरी)



उम्मीद (मनहरण घनाक्षरी)

मिले नहीं सफलता, मिल कभी विफलता,
निराशा पास आये तो,मन से निकालिए।

दुखी परेशान मन,विचलित हो अगर,
उम्मीद रख टाल दें,मन को संभालिए।
 
उम्मीद से बड़ा नहीं, सहारा है कोई कहीं
मनोबल रखें सदा, उम्मीद मत टालिए।

उम्मीद का आसमान,झुके नहीं बात मान,
पूर्ण होगा मनोरथ, उम्मीद तो पालिए।

   सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, September 26, 2023

मरणोपरांत (लघुकथा)

मरणोपरांत

छोटी भाभी को उलाहने और फटकार लगाने वाली अम्मा उनके द्बारा बनाए गए सजावट के सामानों को मुहल्ले की औरतों को दिखा रही थी।उनकी कलाकारी को देख सभी ने दाँतों तले अंँगुली दवा ली। शोकेस में करीने से रखें पेंटिंग्स को देख सभी हतप्रभ रह गई। कहा -"कसीदाकारी के ऐसे नमूने नहीं देखे।"
       रसोई में रखें अचार मुरब्बे को दिखाते हुए माँ ने कहा- "उसके जैसा स्वादिष्ट भोजन मेरे घर में कोई नहीं बना सकती।"
ईर्ष्या के भाव त्याग कर बड़ी भाभी ने कहा -"सचमुच उसे नमक-मसाले डालने का बड़ा अंदाज था।सभी चीजें संतुलित मात्रा में डालती थी। जितना सुंदर चेहरा था उससे भी ज्यादा सुंदर उसका दिल था।"
     सदा द्वेषपूर्ण व्यवहार करने वाली अमीशा की नजरें माला पहनी छोटी भाभी की तस्वीर पर जा टिकी। उनके खूबसूरत चेहरे पर स्निग्ध मुस्कान बिखरा था।जैसे कह रही हो -काश ! इतनी बड़ाई और सद्व्यवहार मुझे जीवन में मिले होते ?
              सुजाता प्रिय समृद्धि

श्याम संग खेलें होली (जलहरण घनाक्षरी)

श्याम संग खेलें होली
जलहरण घनाक्षरी,अंत में दो गुरु 

श्याम संग खेलें होली।
राधा सखियों से बोली।
आयी सभी हमजोली।
बनी सभी अति भोली।

रंग लाल - लाल डालो।
रंग पीला- पीला डालो।
मिला अंग में लगा लो।
कर लें संग में ठिठोली।

लगा कान्हा को गुलाल।
रंग  ललाट  व     गाल।
किया मुखड़े  को लाल।
आयी सखियों की टोली।

आयी कन्हैया की बारी।
भर  ली यों  पिचकारी।
कान्हा ने जो रंग डारी।
भींगी राधिका की चोली।

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

रेल बाल गीत

बन जाएंँ हम सब मिलकर रेल

आओ सब मिलकर खेलें खेल।
बन जाएँ हम सब मिलकर रेल।

लाल रंग का देखो है इंजन मेरा।
डब्बे बनकर हम लगा रहे फेरा।

हाथों से हम हैं डब्बों को जोड़ें।
एक -दूजे का हम साथ न छोड़ें।

पाँव चल रहा है पहिया बनकर।
पटरी पर चलता  दौड़ लगाकर।

छुक-छुक,छुक हम करते जाएँ।
दिल्ली -मुम्बई घुमकर आ जाएँ।

टिकट-विकट का काम नहीं है।
पैसे- कौड़ी भी का नाम नहीं है।

ऊं ऊं ऊं कर सीटियांँ भी बजाएँ।
स्टेशन आया हमसब रुक जाएँ।

   सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, September 25, 2023

हिन्दी हमारी पहचान है (मुक्तक)

हिन्दी हमारी पहचान है

हिन्दी हमारी शान है।
हिन्दी हमारा आन है।
हिन्दी सभी अपनाइए -
हिन्दी सदा पहचान है।

हिन्दी यहाँ अभिमान है।
हिन्दी में बसे प्राण है।
हिन्दी ने किया देश का -
सम्पूर्ण जग उत्थान है।

हिन्दी से  स्वाभिमान है।
भगवान का वरदान है।
हिन्दी बोलिए  प्रेम से-
हिन्दी से हिन्दुस्तान है।

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, September 23, 2023

राष्ट्र भाषा बने हिन्दी (गीतिका छंद)

राष्ट्र भाषा बने- हिन्दी (गीतिका छंद)

राष्ट्र भाषा बने- हिन्दी,करिए सब मिल कामना।
राष्ट्र गौरव को बढ़ाएं,मन में रखिए भावना।।
वार्ता करने किसी से,जब भी मुख को खोलिए।
नि:संकोच हो प्रत्येक जन से, हिंदी बोली बोलिए।।

हिंद की प्यारी है भाषा,इस पर हमें अभिमान है।
यह हमारी शान है और यही बनी पहचान है।।
मानिए यह सुगम भाषा,ईश का वरदान है।
उच्चारण इसके सुगम है, बोलना आसान है।।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, September 19, 2023

गणेश वंदना (विधाता छंद )

गणेश वंदना (विधाता छंद)

गजानन जी पधारो तुम,मुझे विश्वास तुम पर है।
अभी आजा हमारे घर, न तुझ बिन शोभता घर है।।

भला किसको बुलाऊंँ मैं,मुझे बस आस है तेरी।
जरा आकर नजर फेरो,करो ना आज तुम देरी।।

लगाकर कूश का आसन,बिठाऊँ आपको उसपर।
नहाकर साफ जल से मैं, सजाकर रेशमी चादर।।

लगाऊंँ भाल पर चंदन,चढ़ाऊँ पुष्प की माला।
लगाऊंँ भोग लड्डू का,पिलाऊँ दूध का प्याला।।

चरण तेरे पडूँ देवा,जरा मुझ पर दया करना।
अगर पथ में रुकावट हो,सुनो उसको अभी हरना।।

बना दो आज बिगड़ी तुम,मिटा दो वेदना मन की।
पकड़ पतवार हाथों से,उबारो नाव जीवन की।

मुझे आशीष दो इतना,सभी पूरे मनोरथ हों।।
मुझे मंजिल मिले मेरी,रुके कोई नहीं पथ हों।।

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

गणेश वंदना ( दोहा छंद)

गणेश वंदना ( दोहा छंद)

देव गणपति पधारिए,आज हमारे धाम।
चरणों में मस्तक नवा,करते हम प्रणाम।।

मन से लोग पुकारते, लेकर उनका नाम।
जीवन सदा संवारते,बनते बिगड़े काम।।

दीन-हीन जो लोग हैं, रखते उनकी लाज।
अपने भक्तों के सदा,सफल करें सब काज।

मूषक वाहन चढ़ सदा, करें भ्रमण चहुं ओर।
आपद-विपद सभी हरें,चाहे जितना घोर।।

विघ्नेश्वर-संकट हरण,सबके दीनानाथ।
अपने भक्तों के सदा,सिर पर रखते हाथ।।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, September 18, 2023

तीज

तीज का त्यौहार आया, निर्जला उपवास है।
व्रत रखती नारियों के,मन में बड़ा उल्लास है।।
बालू की त्रिमूर्ति बना कर बहुत विश्वास से।
पूजती सती-गौरी-शंकर,को वर की आस से।।

स्नान कर वस्त्राभूषण,पहना पुष्प की माल को।
सिंदूर-रोली को लगाकर,सजाती सबके भाल को।
गौरी शंकर को मनाती,करती मन से वंदना।
संग उनके हैं विराजे, कार्तिक गणपति नंदना।।

मेवा मोदक भोग है,संग रख मिष्ठान को।
कर आरती कर्पूर की,करती नमन भगवान को।।
मांगती वर ईश से, सौभाग्य की कर कामना।
हे प्रभु सौभाग्य दो,मन यही है भावना।।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, September 17, 2023

जय विश्वकर्मा भगवान (कविता)

जय विश्वकर्मा भगवान

आदि शिल्पी विश्वकर्मा नमन बारम्बार।
नमन बारम्बार तुझको नमन बारम्बार।

ध्यान धर तेरे चरण में,जोड़ूंँ अपने हाथ।
दण्डवत प्रणाम कर,झुकाऊँ अपना माथ।
श्रद्धा से तुमको चढ़ाएँ,हम पुष्प- हजार ।

तूने सिखाया है हमें,कला ज्ञान-विज्ञान।
तेरी ही माया से हम,करते नित अनुसंधान।
सारी सृष्टि में उद्योग के तुम हो रचनाकार।।

तेरी कृपा से ही हे स्वामी, कारखाने है बने।
आसान हुए काज सारे, निर्माण होते सौ गुणे।
तेरे ही आशीष से होता,सपने सभी साकार।

सड़क-पुल हमने बनाए,किये भवन निर्माण।
बाँध-रेल नौका बनाए,बनाए तोप विमान।
आत्मरक्षा करने के लिए,बनाये हम हथियार।
            
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, September 15, 2023

अभियंता दिवस (आलेख)



अभियंता दिवस

भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जन्मदिन पर उनको श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु हम सभी भारतवासी राष्ट्रीय अभियंता दिवस मनाते हैं।यह सच है कि एम विश्वेश्वरैया जी देश के महान अभियंता थे ।देश के विभिन्न परियोजनाओं के निर्माण में अपनी महती भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से ही हमारा देश बड़े -बड़े उद्योग चला रहा है।उनके बहुमुखी प्रतिभा को तथा देश के प्रति उनके योगदान एवं समर्पित भावना को नमन।
            इन महान अभियंता के साथ -देश के आदि शिल्पियों, अभियंताओं को भी नमन जिन्होंने अपने शिल्प कला का ऐसा छाप छोड़ा जिसका प्रमाण आज भी मौजूद है। भगवान विश्वकर्मा द्वारा बनाए गए भवनों, मंदिरों को हम आज भी देख रहे हैं।नल-नील द्वारा निर्मित समुंद्र पर बना पुल का अवशेष आज भी मौजूद है।
अन्य भी बहुत सारे वास्तुकार थे जिन्होंने अभियंत्रण की परंपरा चला दी। अभियंता दिवस पर सभी अभियंताओं को सादर वंदन-अभिनंदन

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, September 12, 2023

आ सुर मिला लें (गीत )

आ सुर मिला लें (गीत)

आ सुर मिला लें जरा,
      एक नए अंदाज में।
         साथ गुनगुना लें जरा,
              एक सुर के राग में।

सुर  को  सँवार लें,
   लय को निखार लें।
       बेसुरे   रागों   को,
         थोड़ा हम सुधार लें।
           सुर को सजा लें जरा,
               एक प्यारे अंदाज में।
                 साथ गुनगुना लें जरा,
                    एक  सुर के  राग में।

आ साथ मिलके हम,
      छेड़े आज सरगम।
        मधुर -मधुर तान दे,
            तरs रs तरम पम।
              दिल बहला लें जरा,
                  एक नए अंदाज में।
                    साथ गुनगुना लें जरा,
                        एक सुर के राग में।

मिल्लतों की  रीत  हो,
  सबको सबसे प्रीत हो।
      सबके सुरों में  आज,
         एकता  के  गीत  हो।
           एक लय में गा लें जरा,
               एक  नए  अंदाज  में।
                  साथ गुनगुना लें जरा,
                      एक  सुर  के राग  में।

                       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, September 8, 2023

शिव -पार्वती (विधाता छंद)

शिव पार्वती (विधाता छंद)

भवानी संग शिव-शंकर,चढे हैं वृषभ के ऊपर।
उतर कैलाश पर्वत से,मगन हो घूमते भू पर।

मिले जो भक्त राहों में,उसे वरदान देते हैं।
विनय कर जो बुलाते हैं,सभी की शुद्धि लेते हैं।

जटे में गंग की धारा,चमकता चांद है सिर पर।
विराजे कान में कुण्डल,अजब मुस्कान है मुख पर‌।

गले में नाग की माला,तिलक चंदन लगाए हैं
बढ़ी शोभा कमण्डल की,बदन में भस्म लगाए हैं।

लिए हैं हाथ में डमरू,बजाते डम डमा डम-डम।
थमा त्रिशूल है कर में, चमकता चम-चमा चम-चम।

फँसी नैया उबारेंगे,हमें बस आस है उनपर।
सदाशिव अब पधारेंगे,सदा विश्वास है उनपर।

यही आशीष दो सबको,सभी जन बकोई।

सुजाता प्रिय समृद्धि

Wednesday, September 6, 2023

मुस्कुराता चल (गीत)

मुस्कुराता चल

मुस्कुराता चल सदा तू,मुस्कुराता चल। 
मन से दुःख को दूर करने,मुस्कुराता चल।
मुस्कुराता चल सदा तू..........
मुस्कान वह हथियार है जो,दुःख को करता है पराजित।
उमंग को मन में है लाता,सुख से दुःख करता विभाजित।
मुस्कान है हथियार सुख का यह बताता  चल।
मुस्कुराता चल सदा तू......
मुस्कान है शृंगार तेरा,रह सदा तू सज-सँवर।
मुस्कान की उपचार से,दु:ख-दर्द होता बेअसर।
मन के छाले को छुपा लो,सुख दिखाता चल।
मुस्कुराता चल सदा तू,........
मुस्कुरा तू फूल जैसे,कर दंश भौरों का सहन।
शीत-ताप को अंग से लगा,मुस्कान की चोला पहन।
दुख से नहीं घबराएँगे हम, यह बताता चल। 
मुस्कुराता चल सदा तू........
देखना मुस्कान से दुःख भी सदा घबराएगा।
मुस्कान की आभा से डर,निकट न  तेरे आएगा।
मुस्कुरा कर तुम जहाँ से दुःख भगाता चल।
मुस्कुराता चल सदा तू............

सुजाता प्रिय समृद्धि

जनम लिये नन्दलाल ( श्रीकृष्ण जन्माष्टमी)

जनम लिये नन्दलाल बधाई भारत को।
नन्द के लाल, यशोदा के लालन,
मदन-मुरारी गोपाल बधाई भारत को।
जनम लिये नन्दलाल........
कंश-असूर को मार गिराए।
ध्रुव-प्रहलाद के प्राण बचाए।
बनकर रक्षापाल बधाई भारत को।
जनम लिये नन्दलाल.........
मुरली धुन पर राग सुनाये।
व्रजवासिन को आन रिझाये।
छेड़े सुर-लय-ताल बधाई भारत को।
जनम लिये नन्दलाल..............
गौ को चराकर वन-उपवन में।
भर दी जन-जन के वे मन में।
गो पालन की चाल, बधाई भारत को।
जनम लिये नन्दलाल.....
द्रौपदी की लाज बचाए।
हाथ उठाकर चीर बढ़ाए।
सभा में किये कमाल, बधाई भारत को।
जनम लिये......
अंगुली पर गिरि को उठाए।
व्रजवासियों को प्रलय से बचाए।
छत्र हम गिरी को सम्हाल बधाई भारत को
जनम लिये नन्दलाल.......
अर्जुन के सारथी बन कर।
गीता का उपदेश सुनाकर।
तोड़े माया जाल, बधाई भारत को।
जनम लिये नन्दलाल............
जो जन मन से आज बुलाते।
किसी रूप में दौड़े हैं आते।
हरते हैं दुःख-काल, बधाई भारत को।
जनम लिये नन्दलाल,...........
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, September 5, 2023

शिक्षक (दोहे )

शिक्षक देते हैं सदा, विद्या- बुद्धि व ज्ञान।
शिक्षक से हम सीखते,साहित्य, औ-विज्ञान।।

लक्ष्य-प्राप्ति के लिए, बतलाते हैं राह।
शिक्षक बिना जीवन में, मिलता कभी न थाह।।

हम माटी की लोय हैं,शिक्षक हैं कुम्हार।
गढ़ते हमको चाक पर,देते हैं आकार।।

शिक्षा की प्रसाद खिला,करते हैं गुणवान।
शिक्षकों के गुण अपना,बनता गुण की खान।।

ज्ञान की दीप को जला, देते हैं सद्ज्ञान।
राह दिखाना ज्ञान का, शिक्षक की पहचान।।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

शिक्षा से हम प्यार करते हैं (कविता)

शिक्षा से हम प्यार करते हैं

हम शिक्षक हैं, शिक्षा से हम प्यार करते हैं।
नयी पीढ़ी में,शिक्षा का विस्तार करते हैं।
.. 
साक्षरता अभियान चला, निरक्षरता को भगाते हैं।
विद्या है अनमोल रतन, सबको पाठ पढ़ाते हैं।
पूर्ण-साक्षरता के सपने हम साकार करते हैं।

शिक्षा की ज्योत जला,सबको राह दिखाते हैं।
निराशों को आस दिला,मन विश्वास जगाते हैं।
दिखा सफलता के पथ का, विस्तार करते हैं।

शिष्यों में छुपी प्रतिभा की पहचान करते हैं।
नये सिरे फिर उनमें नव-निर्माण करते हैं।
बढ़ा मनोबल हम उनमें निखार करते हैं।

शिक्षा की सेवा करने ,हर पल कदम बढ़ाते हैं।
ज्ञान किसी को देने में,तनिक नहीं घबराते हैं।
जीवन की हर चुनौतियांँ स्वीकार करते हैं।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, September 3, 2023

होनहार विद्यार्थी



      होनहार विद्यार्थी 

मन शरीर स्वस्थ रहें,
           सात्विक भोजन करते हैं।
स्वान निद्रा में सोते हैं,
             सुबह जाग कर पढ़ते हैं।
बगुले जैसा ध्यान लगाकर,
                 स्वाध्याय वे करते हैं।
जब-तक पाठ याद ना होता,
                  काक चेष्टा करते हैं।
बुरे- विचार मन में ना आए,
               अच्छी संगति करते हैं।
सबसे सीखते,सबको सिखाते,
                 ज्ञान अर्जन करते हैं।
घर में पाठ समझ न आता,
      विद्यालय की राह पकड़ते हैं।

         सुजाता प्रिय समृद्धि

प्रेम नगर का झूला रे

प्रेम नगर का झूला रे।

काहे की डांडी ?काहे की डोरी?
काहे का लटका झूला रे ?
प्यार की डांडी। प्रेम की डोरी।
प्रीत का लटका झूला रे।

कौन झूले को कस कर बांध्यो?
किसका बंधन खुला रे ?
विनम्र झूले को कस कर बांध्यो,
उद्दंड का बंधन खुला रे।

कौन झूले पेंग बढ़ाकर ?
कौन मद में फूला रे ?
संस्कारी झूले पेंग बढ़ाकर,
अहंकारी मद में फूला रे।

कौन झूले चाक-चौबंद हो ?
कौन सुध-बुध भूला रे ?
स्वार्थी झूले चाक-चौबंद हो,
नि:स्वार्थी सुध-बुध भूला रे।

कौन झूले को यत्न से राख्यो ?
कौन पड़ायौ धूला रे ?
समझदार झूले को यत्न से राख्यो।
नासमझ पड़ायौ धूला रे।

छलिया मन में कपट रख झूले,
मन में राखे शूला रे।
कहे 'समृद्धि' निष्कपट हो झूलो,
हृदय न राखों हुला रे।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, September 1, 2023

हम साथ-साथ रहें

हम साथ-साथ रहें ( मुक्तक)

भगवान आपके चरणों में झुका हमारा माथ है।
   हमारे सिर पर भी वर हेतु उठा आपका हाथ है।
       हे भगवान ! आपको हमारा  बारम्बार प्रणाम -
         आपका ही वरदान से आज हम सब साथ-साथ हैं।

हम सभी हैं साथ-साथ,हम साथ-साथ ही रहें।
   साथ-साथ रह दुनिया की अच्छाइयांँ गहें।
      हम साथ-साथ खाएंँ-पीएंँ , साथ ही जीयें-
         और साथ-साथ मिल सब सुख-दुख को सहें।

एकता का संदेश लेकर साथ आगे बढ़े।
   जीवन के सुगम राहों को हम मिलकर गढ़े।
      ज़मीं पर सफलता की बनाकर हम सीढ़ियाँं-
         आसमां तक हमसब साथ मिलकर ही चढ़ें।

भगवान! आपसे हमको,बस है इतनी आस।
  कठिनाइयाँ हमारे जीवन में,कभी न आए पास।
      विषमता को सुलझाएँ बस यही विनती है हमारी-
         मुश्किल का तम जब भी घिरे लाएँ नया उजास।

सच्चाई की डगर पर स्वामी सदा चलते जाएँ।
   हिम्मत से काम लेकर नित आगे बढ़ते जाएँ।
      सामना करें हर मुश्किल का इतना दें वरदान-
         विषम परिस्थितियों में हमरा मन नहीं घबराए।
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

भारत का संदेश

भारत का संदेश 

भारत अपना देश,जिसका प्यारा यह संदेश,
                                 आगे बढ़ते जाओ।
 लेकर मन में विश्वास,कर सफलता की आस,
                                 रास्ता गढ़ते जाओ।

 भारत प्यारा,देश हमारा , यहाँं के हम हैं बासी।
सुख-वैभव की चाह नहीं है,रक्षा के अभिलाषी।
पहनकर सैनिक का वेश, बचा लो अपना देश,
                              दुश्मन से लड़ते जाओ।

इसकी वायु में सांँस लेकर, ही तो हम जीते हैं।
इसका खाते अन्न-फल,हम इसका पानी पीते हैं।
प्यारा यह उपहार,इससे मिलता है हयको प्यार,
                                 प्यार तो करते जाओ।

इस धरती की रक्षा करना, है धर्म हमारा भाई।
इसकी ममता के आँंचल में,हम लेते हैं अंगड़ाई।
कर लो इससे प्यार,हमारा यह सुंदर है संसार।
                                     ऊपर चढ़ते जाओ।

जीवन धन्य होगा कर,इस पर प्राण निछावर।
इसका मस्तक ऊंँचा कर दें, हिमालय के बराबर।
हम सब मिलकर साथ,नवाते जाओ अपना माथ,
                                 नमन सब करते जाओ।

 सुजाता प्रिय समृद्धि

Tuesday, August 29, 2023

तिरंगा (दोहा छंद)

तिरंगा (दोहा छंद)

अमर तिरंगा ध्वज,भारत की पहचान ।
हम भारत के लोग को, इस झंडे पर  शान।।

तीन रंग का मान अब,समझ रहे सब लोग ।
तीन रंग काअर्थ है ,तभी मिला संयोग।।

*ऊपर रंग केसरिया, शक्ति का है प्रतीक।*
*सफेद रंग है बीच में,दें सच्चाई की सीख।*

*नीचे में है रंग हरा*, हरियाली की शान।
*बीच में यह चक्र सदा*, करता है गतिमान।

*इस तिरंगे पर ही तो*,हमको है अभिमान।
*इस झंडे की खातिर हम*, देंगे अपनी जान।।

जब तिरंगा लहराता, शोभित कर आकाश।
बढ़ती देश की समृद्धि, खुशियांँ आती पास।
 
जब-तक सूरज चाँद है, धरती गगन वितान।
तब-तक यह संसार में,रखे देश का मान।।

पकड़ तिरंगा हाथ में, बढ़ते वीर जवान।
देश की रक्षा के लिए,देते अपनी जान।।

नमन करें हम भारती, जोड़ कर अपने हाथ।
इस तिरंगे के आगे,झुका लें अपना माथ।।
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

रेशम की डोरी (लघुकथा)

रेशम की डोरी

कसीदाकारी की हुई चांँदी की सुंदर भारी राखियांँ संभालती हुई मिनाक्षी ने कहा -"सुनो जी !अब आपकी बहन नहीं आने वाली।उसे पता था कि मुझे भी अपने भाइयों को राखी बांँधने जाना है। फिर भी आने में इतनी देर की।हो सके तो मुझे स्टेशन का छोड़ दो। मैं स्वयं ही चली जाऊंगी ।
"लेकिन बच्चों का कल से टेस्ट है ?".. 
"इसीलिए ना तुम्हें छोड़ा है। तुम इनका टेस्ट दिलवाना मैं दो-तीन दिन बाद ही आउंगी ।सोचा था  दो-चार दिन तुम्हारी बहन को यहांँ रोककर आराम से मैके घूमुंगी।" फिर वह भाई-भाभियों को देने वाली महंगे संदेशों से भरा बड़े बैग को घसीटती हुई बाहर निकल गई । 
सुशील ने घड़ी देखी और मामले की गंभीरता को देखते हुए गाड़ी निकाल ली ।थोड़ी देर बाद ही वे स्टेशन पर थे। 
कुछ देर के इंतजार के बाद ट्रेन आई और मीनाक्षी उस पर सवार होकर अपने मायका चल दी।
 गाड़ी को प्लेटफार्म छोड़ते ही सुशील को ध्यान आया। सचमुच आज सुगंधा न आई और न ही फोन कर अपने आने अथवा नहीं आने की कोई सूचना ही दी।उसने फोन का नम्बर मिलाया पर फोन स्विच ऑफ।उसका मन परेशान हो उठा। आखिर बात क्या है ?
उसने दोनों बच्चों को गाड़ी में बैठाया और गाड़ी को सुगंधा के घर की ओर मोड़ ली।
उसके घर में लटक रहे ताले को देख कर उसका मन और भी घबरा उठा।
बगल वाले से जाकर पूछा तो पता ‌चला कि उन्हें गाड़ी वाले को सरकारी नर्सिंग होम ले चलने के लिए कहते सुना।
वहाँ पहुंच उसने सुगंधा सिन्हा का नाम लिया तो रिशेप्शनिष्ट ने कहा ग्यारह नम्बर कमरा।वहाँ जाकर देखा -सुगंधा बेड पर पड़ी थी और बेड के निकट पालने में फूल -सी सुंदर और कोमल बच्ची........
उसकी सासु माँ ने पुकारा -"देख बहू तेरे भैया अपनी भांजी को देखने आ गये।
भांजी ....? सुशील का मन खुशी से झूम उठा। मैंने कई बार फोन किया लेकिन...............
बहू की तबियत अचानक इतनी खराब हो गई कि हमें फोन बगैरह लेने-सुनने की सुध ही नहीं रही।
सुगंधा ने कहा -"भैया की राखी भी घर ही में रह गयी।"फिर उसने अपने हाथ में बंधी उस रेशम की डोरी को खोली जिसे सुबह पंडित जी ने सुरक्षा का आशीर्वाद-मंत्र पढ़ते हुए उसकी कलाई पर बाँधी थी।उसे खोल उसने झट उसके तीन टुकड़े कर डाले।
सासु-माँ ने कहा -क्यों थोड़ी इसे पूरा बाँध देती ?"
लेकिन उसने कहा - "एक डोरी मेरे भैया की और दो  इनकी।" उसका संकेत भतीजों की ओर था।
फिर उसने तीनों के दीर्घ और स्वस्थ जीवन की कामना के साथ बड़े प्यार से उनकी कलाइयों पर बांँध दी। सुशील ने उसे आशीष देते हुए अपने बेटों से कहा -"देखो आज तुम दोनों की भी 'राखी' बहना आ गयी।"
सभी नवजात बच्ची के नामकरण पर हँस पड़े । सुशील की नजरें अपने कलाई पर बंधी प्यारी डोरी पर ........
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, August 23, 2023

राखी और संदेश

राखी और संदेश

धागों का  त्योहार  आया।
बहना के मन प्यार आया।
कच्चे धागे की राखी बना।
बेटों के हाथ में दिया थमा।
धरा मांँ बोली कहना मान।
चढ़ जा जाकर तू चंद्रयान।
चंदा मामा को दे आ संदेश।
अब दूर नहीं मामा का देश।
हमेशा मिलने हम आयेंगे।
तेरे घर भी झंडा फहरायेंगे।
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, August 21, 2023

क्यों रूप बदलते चंदा मामा (कविता)

क्यों रूप बदलते चन्दा मामा


आंँगन में एक खाट पड़ी थी।
  उसके ऊपर इक टाट पड़ी थी।
     रात को उसपर मैं सो रही थी।
        मीठे -स्वप्नों में मैं खो रही थी।

चंदामामा आये हैं आंँगन मेरे।
   मेरी ओर अपना मुखड़ा फेरे।
      कर रहे हैं हंँस वे मुझसे बातें।
         शिकायत मेरी क्यों ना आते।

उसी समय टूट गई मेरी नींद।
   सुस्वप्न टूट जाने की मानिंद।
      ढूंढ़ी चंदा को मैंआँंखें खोल।
         इत-उत हथेलियों से टटोल।

अनायास ऊपर उठीं निगाहें।
   रुक गई  मेरी टटोलती बाहें।
     आसमांँ में  तारे विचर रहे थे।
        चम-चम करते निखर रहे थे।

   चंदामामा भी थे उनके साथ
      हंँस-हंँस उनसे कर रहे बात।
         चंँदामामा का देख आकार।
           मेरे मन में यह उठा विचार।

कहांँ छुपाया इन्होंने आधा अंग?
   किसी के प्रहार से हुए हैं भंग?
      एक रात देखी मैं हँंसियाकार।
          एक रात दिखते थे जैसे तार।

एक रात रूप था गोल-मटोल।
   आज मैं इनकी खोलूंगी पोल।
      मांँ से पूछा मैंने  इसका राज।
      चंँदामामा आधा क्यों है आज ?

मांँ बोली-निज धूरी पर चंदा घूमता।
   सूर्य-प्रकाश पा है चाँद चमकता रद्द ।
      प्रकाश उसपर जितनी दूर पड़ता।
        उतना ही अंग उसका हमें दिखता ।
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

मेरे मन की बात (कविता)

मेरे मन की बात

ऐसी इच्छा है कुछ मन में,जनहित ऐसे काम करें।
विचलित न हों कर्मपथ से,कभी नहीं विराम करें।।
जग-प्राणि के हित-साधक हो,काम वही करते जाएँ ।
जिससे जन रोशनी पाये,अहर्निश ज्योति जलाएँ ।।
भ्रष्टाचार मुक्त हो भारत,खोखला करे न देश को।
छद्म-रूप धर जो लूटता,उतारू उसके वेश को।।
भेद-भाव को दूर करें हम,जो देश का जंजाल है।
ऊँच-नीच और जाति-धर्म,मन का माया-जाल है।।
विदेशी वस्तुओं का प्रयोग,देश से दूर भगाएंँ हम।
स्वनिर्मित सामान बनाकर,स्वदेशी अपनाएँ हम।।
नव भारत के नववृंद में, नयी चेतना लाएँ हम।
विकास की सीढ़ी गढ़,ऊंँच शिखर चढ़ जाएंँ हम।।
दलगत राजनीति त्याग,शांति-सद्भाव बनाएँ हम।
समाजिक-समता बंधुत्व के,सुंदर भाव जगाएँ हम।।
दीन-दुखी,व असहायों को, सदा ही सुख पहुंचाएँ।
झूठ-विषमता को तज,सच्चाई का अलख जगाएँ।।
हमको अपने भारत को, विकसित राष्ट्र बनाना है।
भेद-भाव को दूर भागकर,समरसता अपनाना है।।
अर्थ-व्यवस्था ऐसी हो,गरीबी की रेखा मिट जाए।
अपना प्यारा देश फिर,सोने की चिड़िया कहलाए।।
जनकल्याण,राष्ट्र-हित में,अपना कर्तव्य निभाएंँ।
पुनः हमारा भारतवर्ष ,विश्वगुरू बन छा जाए।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 17, 2023

परी ने कहा (बाल गीत)

परी ने कहा
सपने में आई एक परी।
हाथ में ले जादू की छड़ी।

सुंदर सफेद पहने कपड़े ।
बाल थे उसके बहुत बड़े ।

सिर पर था चांँदी का ताज।
बड़ी मीठी उसकी आवाज।

बात-बात में यह कह दिया।
दुनिया की  मैंने सैर किया।

है दुनिया भर में देश अनेक। 
तेरा भारत है लाखों में एक
कहकर वह पीछे मुड़ गयी।
औ पंख फैलाकर उड़ गयी।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, August 16, 2023

हम भारत के लोग (रूप घनाक्षरी)

हम भारत के लोग (रूप घनाक्षरी छंद)

अलग है बोली भाषा,
  इच्छा और अभिलाषा,
     फिर भी रखते आशा,
         हम भारत के लोग।

अलग है परिधान,
  अलग है खान-पान,
     करें सबका सम्मान,
        हम भारत के लोग।

संस्कृति में अनेकता,
   रिवाजों में अनेकता,
      रखें मन में एकता,
          हम भारत के लोग।

हिंदू या मुसलमान,
  मुगल हो या पठान,
    करते सबका मान,
     हम भारत के लोग।
     
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, August 14, 2023

तिरंगा (दोहा छंद)



तिरंगा (दोहा छंद)

तीन रंग से है बना,भारत की पहचान ।
हम भारत के लोग को, झंडे पर है शान।।

तीन रंग का मान अब,समझ रहे सब लोग ।
तीन रंग काअर्थ है ,तभी मिला संयोग।।

ऊपर रंग केसरिया, शक्ति का है प्रतीक।
सफेद रंग है बीच में,दें सच्चाई की सीख।

नीचे में है रंग हरा, हरियाली की शान।
बीच में यह चक्र सदा, करता है गतिमान।

इस तिरंगे झण्डे पर,हमको है अभिमान।
इस झंडे की खातिर हम, देंगे अपनी जान।।
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, August 13, 2023

मेहनत गरीबों की

मेहनत गरीबों की 

नजर उठा कर देख लो मेहनत गरीबों की। 
कर्म क्षेत्र ही सदा रहा है जन्नत गरीबों की

दिनभर कड़ी मेहनत कर,पसीना बहाते हैं।
तब जाकर कहीं दो जून की,रोटी वे पाते हैं।
राई से भी सूक्ष्म होती है किस्मत गरीबों की।

कर्म ही तो है पूजा-व्रत-आराधना उनकी।
कर्म ही जप-तप है, सेवा-साधना उनकी।
भण्डार नहीं हो पाता है,उन्नत गरीबों की।

कर्म पथ पर चलते,कर सुख की कामना।
सुख की लालसा में,करते दुःख का सामना।
दुःख नहीं है छोड़ता,कभी संगत गरीबों की।

सह ह्रदय की वेदना, चलाते छेनीे-हथौड़ियां ।
जानते हैं तब मिलेगी,आज उनको कौड़ियाँ।
पेट की खातिर चलता,यह जुगत गरीबों की।

रोटियों की आस में, देख रहे हैं राह जो।
मिटा चुके हैं मन से, खिलौने की चाह जो।
मन मारना ही धर्म है,या अस्मत गरीबों की।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, August 12, 2023

हमारे पंच महाभूत

हमारे पंच महाभूत

पाँच तत्वों से यह बना वदन है।
  गगन,धरा,जल,अग्नि,पवन है।
    सदा हमारा ये हैं साथ निभाते।
      इनके बिना हम रह नहीं पाते।
        ये पाँच तत्व हैं गुणों से भरपूर।
          रह नहीं सकते हम इससे दूर।

धरती माँ हमको धारण करती।
  गोद बिठाकर हो पालन करती।
     दूध सम अपना जल पिलाती।
       कंद-मूल,अन्न-फल खिलाती।
        देती हो हम सबको तुम जीवन।
           हे माते!तुमको हमारा है वंदन।

आकाश पिता बन देता छाया।
  स्वस्थ्य-सुरक्षित,निरोगी काया।
    सूरज द्वारा देता ऊष्मा-प्रकाश।
      रजनी में चंद्रमा द्वारा दे उजास।
        शरद ऋतु में शीतलता है लाता।
          वर्षा में झमाझम पानी बरसाता।

जल ही जीवन है समझो भाई।
  इससे नहाते और करते सफाई।
    जल हमारा है स्वास्थ्य बढ़ाता।
      हर कामों में है यह काम आता।
       इसके बिना हम जी नहीं सकते।
          इसके बदले कुछ पी नहीं सकते।

वायु पीकर हम सांँस हैं लेते।
  इसके कारण ही तो हैं जीते।
    हमारे तन में फूंकता है प्राण।
     सदा बचाता जीवों की जान।
        स्वच्छ रखेंगे जब हम वायु।
          तब होंगे स्वस्थ और दीर्घायु।

अग्नि जग में प्रकाश फैलाता।
  अंधकार को यह है दूर भागता।
    भोजन को ऊष्मा देकर पकाता।
      सदा ही ठंड से वह हमें बचाता।
        बुरी वस्तुओं को सदा जलाता।
          इसके बिन जीवन चल न पाता।
         
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, August 11, 2023

यह कैसा इंसाफ (लघुकथा)

यह कैसा इंसाफ (लघुकथा)

 प्रतिमा देवी अपनी पड़ोसन से कह रहीं थीं - मुझे माँ-बाप ने अच्छे विद्यालय में नहीं पढ़ाया अच्छे घर ब्याह नहीं किया। सारे पैसे उन्होंने बेटों को पढ़ाने एवं नौकरी-धंधा में लगा दिया।तभी मैंने सोचा था कि अपनी बेटियों को अच्छी शिक्षा दिलवाऊँगी,अच्छे घर ब्याहूंँगी।मेरा सपना पूरा हो गया।मेरी दोनों बेटियांँ पढ़-लिखकर अच्छी नौकरियांँ कर रही हैं ।अच्छे घराने में ब्याह कर दिया। मेरी बेटियाँ सुख से है।बस मेरी सारी इच्छाएंँ पूरी हो गईं। मेरा जीवन सफल हो गया।
          उनकी बातें सुन बेटा हिमेश का मन कुढ़ उठा। मन-ही-मन सोचा बेटियों को तो तूने अच्छी शिक्षा दिलवाई,सारी इच्छाएं पूरी किये, मान-सम्मान दिया, अच्छे-अच्छे घर ब्याह किया लेकिन मुझे बेटे को ? मुझे यह कहकर सरकारी विद्यालय में पढ़ाया कि बेटियों की पढ़ाई व ब्याह करने हैं।उनका जीवन सुधारने का हर संभव प्रयास किया , लेकिन मेरे लिए कभी कुछ नहीं सोचा।सारे जमीन जायदाद,जएबर-गहने बेचकर उनका अच्छे घर ब्याह कर दिया। लेकिन मेरे रहने का ठौर नहीं। शिक्षा ऐसी दिलवाई जिससे आगे का कोई रास्ता नहीं है।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

हम भारत के वीर सिपाही

हम भारत के वीर सिपाही

हम भारत के वीर सिपाही बढ़ते जाएंँगे।
भारत माँ की रक्षा करने लड़ते जाएंँगे।

जिन राहों पर कदम बढाते।
मुसीबतों से हम न घबराते।
जब तक लक्ष्य नहीं पूरे हो-
पीछे लौटकर हम नहीं आते।
लक्ष्य की खातिर नयी राह,
सदा हम गढ़ते जाएंँगे।

हम पर्वत पर चढ़ने वाले।
आसमान से लड़ने वाले।
देश पर कोई नजर न डाले-
इसके हम तो हैं रखवाले।
देश में दुश्मन कदम बढ़ाए,
उससे हम लड़ते जाएगें ।

नदियों की हम धार बदल दें।
बादल की फुहार बदल दें।
बाजू की ताकत से अपनी-
समंदर का उद्गार बदल दें।
सोने की चिड़िया है भारत-
स्वर्ण-श्रृंखला मढ़ते जाएंँगे।

पत्थर को हम मोम बना दें।
अपनी उष्मा से पिघला दें।
मेहनत का हम दीप बनाकर,
प्रेम का उसमें ज्योत जला दें।
हरकर अँधेरे देश को रोशन,
हम सब करते जाएँगे।

हम चाहें संसार बदल दें।
दुनिया की आकार बदल दें।
देश की ऊपर उठने वाले-
दुश्मन की तलवार बदल दें।
काल बनकर सारे दुश्मन से,
हम सब लड़ते जाएँगे।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

दो निशाना (लघुकथा)

दो निशाना 

मानसी का मन बड़ा विचलित था। मन के कड़वाहटों को निकालने के लिए उसने दोहरी चाल चली।भाभी के साहित्य उपलब्धियों से मन में जितनी व्यग्रता उत्पन्न हुई,ननद को मिले पुरस्कारों को देख ईर्ष्या की अग्नि ज्वाला बनकर धधक उठी।किसे सुनाएंँ अपने मन की व्यथा ।हाँ ! एक रास्ता है। मोबाइल फोन उठाया और नम्बर......... जैसे ही भाभी ने फोन उठाया , प्रणाम के बदले बहुत ही तीखी आवाज में दाँत पीसते हुए कहा -"मन बहुत खुश है सम्मान पत्र प्राप्त कर ?"
भाभी ने कुछ कहना चाहा उससे पहले ही बोल पड़ी - "तारीफ है उस फोटोग्राफर का जो सम्मान- पत्र के साथ इतना सुंदर चित्र खींचा है"
 भाभी ने कुछ बोलना चाहा उससे पहले ही बोल पड़ी -"नहीं-नहीं बड़ा सुंदर बना दिया । जानती हैं दो दिन पूर्व मेरी ननद को भी पुरस्कार मिला है। विश्वास न हो तो फेसबुक पर देख लीजिए।फिर बिना कुछ कहे फोन काट दिया।उसकी बोली का तीखापन पिघले शीशे के समान उसके कर्णपटल पर पड़ा और मन मस्तिष्क में तिलमिलाहट पैदा कर दिया।पर वह बेपरबाही से ननद को....... ननद ने भी जल्दी की फोन उठा लिया।उसके प्रणाम के जवाब में वही कड़वी बोली - "कौन बनाया था तुम्हारे काव्य-पाठ का वीडियो ? बड़ा अच्छा बनाया।"
"धन्यवाद भाभी !"
"धन्यवाद तो उस वीडियोग्राफर को कहो।जिसने तुम्हारी ऐसी-वैसी रचना का विडियो ऐसा बनाया कि तुमने पुरस्कार भी पा लिया। वैसे मेरी भाभी भी बहुत अच्छा लिख लेती हैं। सुंदर काव्य -लेखन के लिए उन्हें सम्मानित किया गया है। देखना ना फेसबुक पर। सम्मान पत्र लेकर खड़ी हैं मंच पर। ठीक।और फोन...........
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

दृश्य सुहावना (हाइकु)



दृश्य सुहावन

फूलों की क्यारी
बहुत ही सुंदर
लगती प्यारी।

रंग-बिरंगी 
हैं कलियां मुस्काई
मन को भाई।

तितली आई
सुंदर-फूलों पर 
है मड़राई।

भौंरे हैं गाते,
सुंदर तान वह
 हमें सुनाते।

कोयल कूके
बुझ रहे मन में,
जीवन फूंके।

चीची चहकी
दाना चुगने वह
आई बहकी।

आम की डाली 
पर है तोता -मैना
रहे चहक कर।

पपीहा कूंजे
तीतर-बटेर की 
है बोली गूंजे।

नाच दिखाती
मोरनी झूम कर
पर फैलाती।

है सुहावन
बड़ी दृश्य बाग की
मनभावन।

सुजाता प्रिय समृद्धि
  स्वरचित, मौलिक

कर्मों का फल (लघुकथा)

कर्मों का फल
सोनिया को देखते ही शशिकला जी ने बुरा सा मुंँह बनाया और दूसरी ओर मुड़ गई।पोता मोनू ने कहा -"यहीं बैठो दादी देखो मेरी दादी भी यही हैं।हम यही पार्टी मनाएंँगे।”लेकिन शशिकलाजी मोनू को खींचती हुई दूसरी ओर मुड़ गई ।यह देख दमयंती जी ने पूछा -"क्यों पड़ोसन से कुछ कहा- सुनी हो गई है ?आपको देखते ही उधर चली गईं।सोनिया ने कहा- "कुछ कहा सुनी तो नहीं हुई है। बस मोनू को लेकर ही उनके मन में विषाद रहता है। वह मुझे अपनी दादी कहता है,और मेरे पास आता है तो उन्हें लगता है वह मेरे बहकावे मैं ऐसा करता है।" दमयंती जी ने कहा -"जब आप उसकी देखभाल करती हैं, खिलाती -पिलाती हैं, गोद लेकर घुमाती हैं,प्यार-दुलार करती हैं, तो नहीं देखती। इतना करने पर तो किसी को लगाव हो जाएगा। कहते हैं -'बच्चा प्यार का भूखा होता है' फिर उन्हें आपसे शिकायत कैसी?'सोनिया ने कहा यह सब मेरी किस्मत का दोष है। मैं जिसकी भलाई करती हूँ,वह मेरा दुश्मन बन जाता है ।दमयंती जी ने कहा -"जाने दीजिए,इसमें किस्मत की कोई बात नहीं अक्सर लोग किसी की अच्छाइयों से ईर्ष्या करते हैं ,और मन के जलन के कारण किसी को भला- बुरा कहते हैं ।कर्म का फल यहांँ नहीं मिलता ।ऊपर वाले सबके कर्मों को देखते हैं, और उसी अनुसार फल भी देते हैं। आपने अच्छे कर्म किया है तो फल भी अच्छा अवश्य मिलेगा।"दमयंती जी की बातें सुन सोनिया के मन को बड़ी तसल्ली मिली।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 3, 2023

सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य

सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य 

देश की रक्षा करना सभी देशवासियों का परम कर्तव्य है। देश की सीमा रक्षा करते हुए आज देश के अनेक वीर सपूत अपने प्राणों को न्योछावर कर रहे हैं।लेकिन इस विषय संकट की घड़ी में कुछ युवा शक्ति अपने उफनते लहू के जोश का गला घोट कर घर बैठने को मजबूर हो अपने मन में एक कचोटती भावना लिए कुछ करने से असमर्थ  विवशता से हाथ मलते हुए सोचते हैं कि काश ...................
आज देश को उस देश से ही लड़ना पर रहा है जो आजादी से पूर्व भारत भू का ही अंग था ।तो कल किसी अन्य पड़ोसी देशो से भी लड़ना सकता है ।आज हमारे दुश्मन हमारे वे भाई ही बन बैठे हैं, जो स्वतंत्रता की लड़ाई में हमारे हाथों में हाथ डाल कर हमारा साथ निभाए थे ।तो कल अन्यान्य देश से वासी भी हमारा दुश्मन बन सकते हैं। कभी भी ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है जब देश की रक्षा के लिए देशवासियों को अपने प्राणों  की आहुति देनी पड़े ।इसलिए युवाओं को हर क्षण अपनी मातृभूमि की रक्षा जैसे पुनीत कार्य के लिए तत्पर रहना होगा।और यह तभी संभव है जब देश का प्रत्येक युवा एक प्रशिक्षित सैनिक हो।जब- जब देश पर खतरे के बादल मंडराते हैं हर दिशा से युवा शक्ति की पुकार होने लगती है । इसलिए जिस प्रकार अन्य देशों में युवाओं के लिए अनिवार्य सैन्य -प्रशिक्षण की व्यवस्था है।उसी प्रकार अपने देश में भी शिक्षा के साथ-साथ देश के हर युवा को सैनिक प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से देनी चाहिए। ताकि जब कभी-भी देश को अपनी रक्षा के लिए अपने वीर सपूतों की आवश्यकता पड़े, वे बहादुरी पूर्क दुश्मनों से लोहा ले सकें ,और अपनी मातृ-भूमि की रक्षा कर अमर हो जाएंँ।
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

नकल पड़ोसन की (कहानी )

नकल पड़ोसन की 

   सुशीला के घर का संपूर्ण छत गर्म कपड़ों से भरा हुआ था ।ऐसी बात नहीं की जेठ की इस चिलचिलाती धूप और बेशुमार गर्मी में सुशीला के घर किसी को गर्म कपड़े पहनने का शौक चर्राया है,जिसके लिए उसकी तैयारी की जा रही है बस सुशीला की छोटी बेटी रश्मि ने कमरे को धोते वक्त यह ध्यान नहीं लिया की गट्ठरों में बंधे कंबल-रजाई भीग जाएंगे अंधाधुंध पानी छिड़कती गई कमरे में।
 सुशीला कमरे की सफाई से जितना खुश हुई,रजाई और कमलों को गीला देख उतना ही खीज उठी ।रश्मि को एक गरमा- गरम डांट सुनाई और रजाई- कम्बलों को गठरियों के बंधन से मुक्त कर उन्हें धूप में फैला दी। जब धुन सवार हो ही गया तो क्यों ना संदूक से भी सारे गर्म कपड़े निकाल कर थोड़ी धूप दिखा दी जाए। इस तरह सारे गर्म कपड़े छत पर सीखने डाल दिया।
उसकी नकलची पड़ोसन विमला की नजर जब इन कपड़ों पर पड़ी तो वह व्याकुल हो उठी।
रेखा ! बिंदु !  एक साथ अपनी दोनों बेटियों को पुकार कर बुला ली थोड़ी देर बाद विमला की पूरी छत गर्म कपड़ों से भर गयी ।
सुशीला की बेटी रजनी का ध्यान जब उस ओर गया तो वह मांँ को बुला लाई और विमला चाची के छत पर फैले कपड़ों को दिखाकर बोली - यदि मैं छत पर से कूद पड़ू तो चाची रेखा , बिंदु को भी छत पर से धकेल देंगी।
 यह सब छोड़ो भी कल मुझे लकड़ी से चाय बनाते देखी तो वह भी लकड़ी की दुकान से लकड़ियांँ मंगवा ली।मैं कोई मंगाने थोड़ी गई ।वह वह तो किबाड़ बनवाने से जो कटी-छटी लकड़ियांँ बच गयी ।उसी से बनाई थी । फिर दोनों मांँ बेटी के स्मृति-पटल पर विमला और उनकी बेटियों द्वारा नकल उतारने के कई प्रयत्न तेजी से विचरण करने लगे ।
सुशीला अपने लिए जैसी साड़ी व गहने खरीदती विमला भी अपने लिए ठीक वैसे ही कपड़े व गहने कपड़े खरीद लेती ।जैसे बर्तन और सामान सुशीला के घर रहते वैसे विमला के घर भी आ जाते ।
ऐसी बात नहीं की नकल उतारने की यह प्रवृत्ति सिर्फ विमला में थी ।उसकी बेटियांँ उससे दस कदम आगे ही थी। रजनी या रश्मि जिस प्रकार चोटियाँ गुथती दूसरे दिन रेखा और बिंदु भी ठीक वैसा ही चोटी बना लेती। जैसी चप्पलें और श्रृंगार प्रसाधन खरीदती, ठीक  वैसी की वैसी वे भी ले लेती।जिस किसी से ये दोस्ती करती उससे वे भी सांठगांठ करना प्रारंभ कर देती।
नकल उतारने के इस होड़ में ईश्वर ने भी उनकी पूरी मदद की थी सुशीला के दो बेटे और दो बेटियांँ थी तो विमला के भी। सुशीला के सास-श्वसूर जिंदा थे तो विमला के भी। यहांँ तक की किसी कारणवश सुशीला के साथ बेटी के घर गई हुई थी तो विमला भी लड़-झगड़ कर अपनी सास को उलाहना दे डाली कि क्या बेटे बहू ही सब दिन मांँ-बाप को रखें बेटियांँ नहीं रख सकती ? इस प्रकार विमला की सास भी अपनी बेटी के साथ जबरन उसके घर चली गई। एक बार सुशीला अपने पिताजी को कुछ दिनों के लिए लाई थी तो विमला भी अपने पिताजी को बुला ली। पिछली बार होली के अवसर पर सुशीला ने अपने भैया- भाभी को बुलाया तो दशहरे के अवसर पर विमला ने भी अपने भैया -भाभी को बुला लिया ।सुशीला कभी मायके जाती तो एक-दो दिन के अंतराल में विमला भी अपने मायका चल पड़ती।
 दोनों के पति नौकरी करते थे सुशीला के पति किसी निजी फर्म में थे उन्हें 8:00 बजे सुबह ही दफ्तर जाना रहता था।इसलिए वह सुबह जल्दी उठकर तैयार हो जाते थे।इस पर भी अक्सर विमला का अपने पति से तकरार चलते रहता। देखो तो एक आलोक बाबू है सात बजे तक नहा धोकर तैयार हो जाते हैं ।और एक तुम हो कि आठ बजे तक पलंग पर ही डटे रहते हो।  रोज के चख-चख से तंग आकर विमला के पति इंद्रदेव जी भी 8:00 बजे नहा धोकर नाश्ते की मांँग कर देते तो विमला घर में कोहराम मचा कर रख लेती। इंद्रदेव जी कहते - आलोक बाबू को सुबह 8:00 बजे खाना मिलता है मुझे क्यों नहीं ? विमला हाथ नचाती हुई कहती -हाय! उनकी तरह इतनी जल्दी खाना मांगते हो, सुविधाएं भी झूठा रखी है उनकी  तरह? वे तो एक स्लाटोव लाकर रख दिए हैं।चट-चट चार पम्प और फट से रोटी सब्जी बनाकर खिला  देती है ।
लेकिन तुम्हें तुम्हें तो दाल चाहिए सब्जी चाहिए भाजी चाहिए और जाने क्या-क्या चाहिए ।
अरे चाहिए,चाहिए तो मैं सारा सामान ला भी तो देता हूंँ। स्टोव की क्या जरूरत है? एक साथ दो बर्नर वाले गैस के चूल्हे हैं । फिर सुशीला बहन से दो घंटे ज्यादा समय भी तो मिल जाता है तुम्हें । इंद्रदेव जी खींजते हुए कहते।
        सुशीला का नाम आते ही विमला नागिन की तरह फुफकार उठती । बस-बस तुम मर्दों में यही तो बुराई है। दूसरों की बीवियां कितनी भी बेपरवाह और कामचोर हो सुघड़ लगती हैं और अपनी बीवी कितनी ही सुशील और कार्य कुशल हो फूहड़ लगती है।
और तुम औरतों में यह कमजोरी नहीं कि दूसरे के पति कितना भी निकम्मा आलसी और मक्कार क्यों ना हो महा विष्णु के अवतार लगते हैं और अपना पति कितना भी विद्वान और जागरूक क्यों ना हो जाहिल लगता है। फिर तो दोनों में काफी तू-तू मैं-मैं हो जाती। नतीजा विमला पलंग पर, और इंद्र देव जी बेटियों से कुछ रुखा- सुखा बनवा कर खा लेते या भूखे पेट को सहलाते हुए दफ्तर का रुख लेते और दूसरे दिन से 8:00 बजे तक पलंग पकड़े रहने का अपना पुराना रवैया अख्तियार कर लेते।
 पहनावे -ओढ़ावे के मामले में भी इंद्रदेव जी को कुछ यूं ही झेलना होता। जैसा कपड़ा आलोक बाबू पहनेंगे वैसा ही उन्हें भी पहनना पड़ता।सुशीला और उसकी बेटियांँ हमेशा आपस में बोलती चाची को तो हम लोग से अच्छे कपड़े और सामान लेने चाहिए,क्योंकि चाचा को पगार भी पिताजी से ज्यादा मिलती है साथ-साथ ऊपरी आमदनी भी है।
 कई दिनों से विमला के पैर में मोच पड़े हुए थे ।घरेलू उपचार से जब कोई लाभ नहीं हुआ तो घर के सदस्यों में विचार हुआ कि अस्पताल जाकर डॉक्टर को दिखाया जाए और सुशीला रिक्शे पर सवार हो अस्पताल चल दी। उसे जाते विमला का छोटा बेटा बिट्टू ने देख लिया ।दौड़ा हाँफ्ता घर पहुंँचा और विमला से बोला - माँ !जानती हो चाची बाजार गई हैं।
 किसने कहा ?
 किसी ने नहीं । मैंने स्वयं उन्हें रिक्शे पर जाते हुए देखा है । 
हाँ माँ ! यह कहता है सिट्टू ने कहा-अभी थोड़ी देर पहले जॉनी रिक्शा लेकर आ रहा था ।
 चाची अवश्य किसी विशेष काम से बाजार गई होगी। बिंदु ने आशंका व्यक्त की ।
और विशेष काम क्या ? दशहरा निकट आ गया है। कपड़े आदि लाने गई होंगी । रेखा ने अपनी समझदारी दर्शाते हुए बात स्पष्ट की।
हांँ ऐसा ही होगा । क्योंकि कल ही जैकी बोल रहा था अब के दशहरे में मैं फुल-पैंट सिलवा लूंँगा। बिट्टू ने रेखा की बातों की पुष्टि की ।
अरे हांँ, जैकी बोल रहा था, मेले जूते फट गए हैं नए जूते लाने मांँ को बोला हूंँ। नीतू ने भी अपनी तोतली बोली में कहा।
तब तो रजनी और रश्मि के भी कपड़े आयेंगे ? रेखा माँ की ओर देखती हुई संदेश-युक्त स्वर में बोली ।
 तो क्या करूंँ मैं भी चली जाऊंँ बाजार विमला ने सभी से मशविरा लिया ।
हांँ- हांँ क्यों नहीं ? सभी के मुंँह से लगभग एक साथ ही निकला । जब चाची आज ही कपड़े ले आएंगी, तो हम भी क्यों पीछे रहें भला ? हम लोग उनसे किस बात में कम हैं ?बिंदु चुटकी बजाती हुई बोल उठी।

लेकिन उतने पैसे तो पास में है नहीं ? मैं तो सोचती थी कि महीने की पगार मिलेगी तब ले आऊंँगी कपड़े और सामान। विमला ने आहें भरते हुए दुःखी स्वर में कहा।
     कहीं से रुपए का बंदोबस्त नहीं हो सकता ? बिंदु ने प्रश्न किया तो विमला को मानो अंधेरे में रोशनी मिल गई।
 हांँ- हांँ जा न गोलू की मांँ के पास हमारे चार हजार रुपए हैं और सोहन की मांँ को भी कहना दो चार दे दे। बहुत जरूरी काम है दस दिनों में पगार मिलेगी तब लौटा दूंगी ।
इतने पैसे से हो जाएंगे ? रेखा ने पूछा ।
क्यों नहीं होंगे बिंदु ने झट से कहा कुछ पैसे हम लोग भी दे देंगे । सभी को उनका सुझाव पसंद आया। सभी ने अपने अपने गुल्लक फोड़ डाले। विमला भी अपने बक्से से खोज-ढूंढ कर कुछ पैसे निकाल लाई। सभी के अठन्नी चवन्नी और सिक्के मिलाकर एक छोटी- मोटी पोटली तैयार हो गई ।
विमला ने तुरंत बिंदु को गोलू के घर और बिट्टू को सोहन के घर पैसे लाने भेज दिया ।

दोनों जल्द ही रूपए लेकर आ गए। रुपयों का बंदोबस्त विमला जल्दी से तैयार हो गई ।
बिट्टू ने कहा जॉनी का फूल पैंट सिलवाएगा। इसलिए मेरा भी फूल-पेंट सिला देना ।
 जैकी के नए जूते आएंगे सौ मेरे लिए भी लेते आना बिट्टू के बोलते ही निट्भीटू भी बोल पड़ा ।
और देखना न माँ चाची कौन-कौन सी दुकान जाती है उसी दुकान में जाकर तुम उन्हीं के जैसे कपड़े और सामान ले लेना बिंदु बोली ।
अरे सारे सामान लाऊंगी कैसे ? थैले-वैले भी दोगी या यूं ही ले आऊंगी । सुशीला क्या पाँच थैले से कम थोड़े  ही ले गई होगी और तू टुकुर-टुकुर देख क्या रहा है ? जैकी उसे रिक्शा ला कर दिया तू नहीं ला सकता ? वह बिट्टू को घूरती हुई बोली तो वह उछलता हुआ दौड़ पड़ा रिक्शा लाने।
तब- तक बिंदु और रेखा खोज -ढूंढ़ कर दो-चार थैले जुटा लिए।
इधर ऊपर वाले भी अपनी चांँद-सूरज जैसी बड़ी-बड़ी आंँखों से सारा तमाशा देख रहे थे। उन्होंने सोचा यह सच्चे मानव ही तो मुझ पर पूर्ण विश्वास कर कहते हैं- "जैसा मन में ध्यान ।
वैसा पूरा करें भगवान।"
इनके अआगे तो आना ही पड़ेगा ,स्वयं पर विश्वास बनाए रखने के लिए। वे शरारत से मुस्कुराए और एमवस्तु के भाव से आंखें बंद कर ली ।
बाहर रिक्शे की झनझनाहट हुई ।सभी ने झांँक कर देखा बिट्टू रिक्शा लेकर आ गया। जल्दी करो रेखा और बिंदु ने एक साथ कहा।
 विमला जल्दी से चप्पल पहन कर चल पड़ी।एक तो चप्पल भींगा हुआ,दूसरा वर्षा से आँगन में काई की फिसलन।पैर ऐसा फिसला कि धड़ाम से आंगन में चारों खाने चित गिरी ।
सभी बच्चे पकड़ कर उसे उठाए ।पर उई माँ कहती हुई फिर से गिर पड़ी। शायद पैर की कोई हड्डी टूट गई थी ।
किसी प्रकार सहारा देकर सभी ने उसे रिक्शा पर चढ़ाया।
थैला घर में ही पड़ा रह गया ।रेखा के माँ के साथ अस्पताल जाने के लिए रिक्शे पर बैठ गई और बिट्टू को पिताजी को बुलाने के लिए दफ्तर भेज दी।
 बिंदु और बिट्टू दरवाजे पर खड़े चाची की तरह मांँ को भी रिक्शे पर जाते देख रहे थे।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, August 1, 2023

प्रेम का दीप (गीत)

प्रेम का दीप

का दीप मन में जलाते चलो।
घर-घर से अंँधेरा भगाते चलो।

हम जिधर भी चले तम उधर दूर हो।
रोशनी पास आने को मजबूर हो। 
अपनी मेहनत से तुम जगमगाते चलो।
घर-घर से अंँधेरा............
हर मानव में आए नयी चेतना।
दूर हो अज्ञानता का अँधेरा घना। 
मानवों को मानवता सिखाते चलो।
घर- घर से अँधेरा.............
भेद-भाव का कोई भरम न रहे।
जीवों के लिए हम बेरहम न रहें
अन्याय को मन से मिटाते चलो।
घर-घर से अंधेरा.........
चांँद सूरज से रौशन है सारा जहाँ।
कटुता का अँधेरा क्यों छाया यहाँ।
विषमता को मन से हटाते चलो।
घर-घर से अंधेरा........
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, July 26, 2023

अपमान (रोला छंद )

अपमान (रोला छंद)

मत कर तू अपमान,किसी की सुन ले भाई।
कर सबका सम्मान, इसी में  है चतुराई।।
जिनका हो अपमान, सदा मन उनका रोता।
दिल ही नहीं दिमाग, सदा है आहत होता।।

अपमान जहाँ हो जाय,दुःख है आता मन पर।
उनके दिल की हाय,अहो लगता जीवन भर।।
हरदम रखना ध्यान, न अपमान किसी की हो।
न सम्मान की आस,अब कभी भी फीकी हो।।

            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, July 21, 2023

कुण्डलियाँ

प्रेम का कोमल बंधन,सब लोगों को भाय।
इस बंधन को तोड़कर,पल भर रहा न जाय।।
पल भर रहा न जाय,यह बंधन अति प्यारा। 
नहीं कभी टूटता,जानता है जग सारा।।
प्रेम के बंधन का,साथ हम सदा निभाए।
बंधन में जो रहे, प्यार में बंधता जाए।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, July 20, 2023

गुरु वंदना (दोहे)

गुरु वंदना

प्रातः उठकर कीजिए,गुरुवर को प्रणाम।
गुरु के श्री चरणों में,बसता गुण का धाम।।
पाकर गुरु-आशीष हम,पाते मन को चैन।
उनके ज्ञान प्रकाश से,खुलता सबका नैन।।
गुरु-ज्ञान ही आज है,जीवन का आधार।
ज्ञान-नौका चढ़ लगता,सबका जीवन पार।।
गुरुजी को ही याद कर,करें प्रारंभ काज।
सफल सदा ही आप हो,सुख से रहे समाज।।
नमन करें कर जोड़ कर,रख मन में सम्मान।
जब आरंभ काम करें,कर लें गुरु का ध्यान।।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'गुरु वदन

Wednesday, July 19, 2023

बलम परदेसिया,( हास्य )

बलम परदेसिया 

हमें अकेला छोड़ गांँव में,गए बलम परदेश।
पाती लिखकर रोज भेजते,मुझको यू संदेश।

मैं तो यहांँ कमाता हूंँ प्यारी,रुपए बीस हजार।
आकर तुम्हें घुमाऊंँगा,ले जाकर मीना बाजार।

मैं बिचारी,विरह की मारी,लगी देखने सपने।
शायद आने वाले हैं,अच्छे दिन कुछ अपने।

आए प्रीतम बैठ पलंग पर,सुलगाये सिगरेट।
 मुंँह से धुआंँ उड़ा कर बोले,सुन बुद्धु दी ग्रेट।

रोटी-भात मुझे न भाता,खिला पिज्जा-बर्गर।
 गुटका-खैनी,पान-मसाला खाता हूंँ,जी भर कर।

भूल गए कमीज व कुर्ते,भूल गये गमछी-धोती।
आधी टांग की पैंट पहन-कर,टांग दिखाते मोटी।

खड़ा किए जुल्फी अपनी,आधा जेल लगाकर।
आधा सिर चिकना करवाये,उस्तरे से मुड़ाकर।

लस्सी-शरबत छोड़,पीते कोल्ड ड्रिंक्स गटगट।
चूरमा चबेना भूल गए,खाते हैं वे मैगी चटपट।

नमस्कार-प्रणाम करना भूले,बोलते हाय-हैलो।
गाय-भैंस को देख बोलते,हाऊ आर काउ-बफैलो।

हाय विधाता मैं क्या जानूँ ,जाएंँगे बलम परदेस।
सुसंस्कार को भूलकर वे, बनाएंँगे गीदड़ वेश।

            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, July 16, 2023

लक्ष्य के लिए (गीतिका छंद मुक्तक)

लक्ष्य (गीतिका छंद मुक्तक )
लक्ष्य पाने के लिए तुम, सत्य पथ पर बढ चलो।
राह में पर्वत भी आए,हौसला ले चढ़ चलो ।
दृढ़ता से बढ़ा कदम,भटको नहीं तुम राह में -
राह कोई ना दिखे तो,नव राह तुम गढ़ चलो।

चाह रखो अपने मन में, राह भी मिल जाएगी।
दृढ़ निश्चय मन में रख,चट्टान भी हिल जाएगी।
ठेल कदमों से उसे तुम,दूर कर दो राह से-
पत्थरों पर सफलता की,कलियाँ खिल जाएगी।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, July 12, 2023

गज़ल (विधाता छंद आधारित)

गज़ल  (विधाता छंद आधारित)

गरीबों की कमाई पर,जमाने की नजर क्यों है।
जरा इतना बता कोई,जमाना बेअसर क्यों है।

भरें वो जान दे पानी,उसे तुम शान से पीते,
मगर तुम शान को तजकर,न बनते हमसफ़र क्यों है।

अगर हम दे नहीं सकते किसी को भी दमड़ी,
किसी के हाथ की कौड़ी,झपटने की समर क्यों है।

गरीबी आज है उनमें,फकीरी है जमाने में,
कभी नजरे घुमा देखो,जमाना बेनजर क्यों है।

अभी सोचो सभी मन में,गरीबी रोग ना कोई,
अमीरों का लहू इतना,हुआ अब बेअसर क्यों है।

सुनों बुजदिल हमारी भी, जहांँ में राह काफी है,
इबादत आज तू तज कर,पकड़ते यह डगर क्यों है।

करो विश्वास खुद पर तुम, खजाना लूट मत लाओ,
हटा लो हाथ तुम अपने,खड़ा तुम इस कदर क्यों है।

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, July 11, 2023

हाय रे जिंदगानी

हाय रे जिंदगानी

हाय -हाय रे जिंदगानी कभी हँसे,कभी रोये।
किस्मत की कहानी कभी पाये,कभी खोये।।
हाय-हाय रे जिंदगानी........
लाख कोई भरा रहे धन वैभव से।
नींद न आये चोर-डाकू के भय से।
लूटने के भय से दिन रात नहीं सोये।
हाय-हाय रे जिंदगानी.........
कोई भरा है यहाँ पूरा परिवार से।
चिंता सताबे रोजी -रोजगार की।
भर आँखों में पानी,कभी हंसे कभी रोये।
हाय-हाय रे जिंदगानी.........
भिक्षुक बेचारा,किस्मत का मारा।
झोली फैला कर,फिरे मारा-मारा।
दो पैसे दो दानी,कह नैना भिंगोयो।
हाय-हाय रे जिंदगानी..........
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, July 10, 2023

मैं तुम्हारी राज हूँ

मैं तुम्हारी राज हूँ

तुम मेरे सरताज हो और, मैं तुम्हारी राज हूँ।
तुम ही मेरे हमसफर हो, मैं तेरी हमराज हूँ।

तुम बसे मन में मेरे,कैसे यह बतलाऊँ मैं,
तुम दिल की धड़कनें,जिसकी मैं आवाज हूँ।

मन है करता तेरे संग,आसमां में उड़ चलूँ,
तुम जहां तक पर फैलाओ, मैं वहीं अंदाज हूँ।

तुम अगर हो साथ तो,डर नहीं मुझको कोई,
तुम मेरे रखवाले हो और,मैं तुम्हारी लाज हूँ।

सज रही महफ़िल यहांँ,गायकी के वास्ते,
तुम मेरी संगीत बन जा, मैं तुम्हारी साज हूँ।

हो रहा है गान अब, हम भी मिलकर गाएँंगे,
आ तू मेरी गीत बन जा, मैं तेरी आवाज़ हूंँ।

देखो अब सारे जहां में, प्यार का सम्राज्य है,
तुम यहांँ सम्राट बन जा, मैं तुम्हारी ताज हूंँ।

खुशनुमा लगता जहां है,जब तुम्हारा साथ हो,

एक -दूजे के लिए हम, ज़हान से टकरायेंगे,
तुम पे है अभिमान मुझको, मैं तुम्हारी नाज हूँ।

हम नहीं बिछड़े कभी,मन में ऐसी कामना,
संग मेरे हर कल रहोगे,संग तुम्हारे आज हूँ।

              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                 रांची, झारखण्ड

गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा

किए इंद्र अतिवृष्टि,
   मझधार पड़ी सृष्टि,
    है आपकी कृपा दृष्टि,
         कृपा अब कीजिए ।

रक्षा हेतु दीनानाथ,
    गोवर्धन लिए हाथ,
     नवाऊँ आपको माथ,
           आशीर्वाद दीजिए।

 केशव कृष्ण मुरारी,
    गोवर्धन गिरधारी,
       सबके संकट हारी,
         कृपा अब कीजिए।

करते आपकी पूजा,
  आप सब नहीं दूजा,
     करते सदा ही रक्षा,
        धन-धान्य दीजिए।

 सुजाता प्रिय समृद्धि

Sunday, July 2, 2023

सीख (कहानी)

सीख
रश्मि नित पढ़ाई करने के बाद अपनी सहेलियों के साथ खेलने में मग्न हो जाती।आजकल उसका मुख्य खेल था तितली पकड़ना। उसकी फुलवारी में रंग-बिरंगे फूल खिलते ।उन फूलों का रस चूसने के लिए उन पर रंग-बिरंगी तितलियाँ मंडराती रहती।वे फूलों पर बैठती नहीं कि बच्चे दवे पांँव चल पड़ते उन्हें पकड़ने।थोड़ी-सी कोशिश के बाद किसी के साथ में नीली,तो किसी के हाथ में पीली। किसी के हाथ में हरी,तो किसी के हाथ में लाल और किसी के हाथ में काली तितली आ जाती। फिर क्या ! अपनी-अपनी तितलियों के पंख पीछे कर किसी कुशल प्रतिभागियों से एक-दूसरे से लड़ाते।माता पिता के लाख मना करने पर भी अपने इस प्रिय खेल को नहीं छोड़ते। एक दिन जब रश्मि तितली पकड़ रही थी तो उसके पिताजी ने भरे प्यार से उसे अपने पास बुलाया और बिना कुछ बोले उसके दोनों हाथ पीठ की ओर घुमाकर पकड़ लिए। रश्मि कुछ समझी नहीं।उसने कहा-पिताजी!मेरे हाथ छोड़िए,मैं खेलने जाउंँगी।लेकिन पिताजी ने उसके हाथ नहीं छोड़ा।उसकी मांँ ने खाना खाने के लिए उसे पुकारा। फिर भी पिताजी उसके हाथ में नहीं छोड़े। बाहर फेरी वाले ने आवाज लगाई। रश्मि का मन फेरी वाले का सामान देखने के लिए ललक उठा।बहुत करने पर भी पिताजी ने हाथ नहीं छोड़े। इतनी देर तक हाथ पीछे बंधे रहने से उसके हाथ में दर्द होने लगा।रश्मि ने गिड़गिड़ाते हुए कहा -हे मेरे हाथ छोड़ दें बहुत दर्द हो रहा है। पिताजी ने उसके घर छोड़ दिया।फिर उसके हाथ में पकड़े तितली की ओर इशारा करते हुए कहा-देखो बेटा!जिस प्रकार हाथ पीछे करने से तुम्हारे हाथ दुखने लगे,उसी प्रकार तितलियों के पंख पीछे करने से उन्हें दर्द का एहसास होता होगा। इतनी देर मैंने तुम्हारे हाथ बकड़े तो तुम्हें खेलने का मन करने लगा,भूख लगी, फेरी वाले का सामान देखने का मन करने लगा।तो सोचो तुम लोग इतनी देर तक तितलियों को पकड़े रहते हो,तो क्या इस बीच  उनका मन कहीं जाने या घूमने का नहीं करता होगा ? उन्हें भी भूख लगी लगती होगी। पिताजी ने उसे समझाते हुए कहा ।अकारण किसी को बंधनों में नहीं जकड़ना चाहिए। स्वतंत्रता हर प्राणी का जन्मसिद्ध अधिकार है। हर प्राणी अपना जीवन अपने तरीके से जीने के लिए स्वतंत्र हैं। सबकी इच्छाएं अलग-अलग होती हैं ।रश्मि को सीख मिल गयी। उसने किसी भी जीव को कष्ट नहीं देने का संकल्प लिया।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'