Saturday, July 30, 2022

दारू न पीना

कभी ग़म भुलाने को,तू दारू न पीना।
दिल को जलाकर तू घुट-घुट न जीना।
कभी ग़म भुलाने को.............
ग़म का भुलावा तो, है इक बहाना।
इसके बहाने ना तुम,गले गम लगाना।
मदिरा को अपना तू,मानो कभी ना।
कभी ग़म भुलाने को............. 
माना के वह तेरे, मन में बसी है।
कोई सुंदरी से भी,ज्यादा हसीं है।
सजनी से ज्यादा,ना होगी हसीना।
कभी ग़म भुलाने को.............
नाहक हो अपने,तू तन को जलाते।
खुद पीते हो और दूसरे को पिलाते।
इसी के लिए क्या बहाते हो पसीना।
कभी ग़म भुलाने को.............
सुनो तुम यह दारू, है जानलेवा।
नशेबाजों को यह लगती है मेवा।
हाथ लगे तो,यह लगता नगीना।
कभी ग़म भुलाने को..........
नशा करना है,मानसिक बीमारी।
इसकी चपेट में , है दुनिया सारी।
लाइलाज है ठीक होता कभी ना।
कभी गम भुलाने को...........

सुजाता प्रिय समृद्धि

Friday, July 29, 2022

दुश्मन नशा

‌          दुश्मन नशा

भैया जीवन के लिए नशा दुश्मन से बढ़कर है।
नशा करने से होता, जनों का जीवन बदतर है ।
मत खाओ तू खैनी गुटका,यह कैंसर का घर है।
असमय जनों का जान है लेता,यह ऐसा जहर है।
बीबी -बच्चों का दायित्व, भी तो तेरे ऊपर है।
भैया जीवन के लिए................
मत पीओ सिग्रेट - बीड़ी, इसके धूएँ में जहर है।
जान-बूझ क्यों पीते भैया,इसको हर पहर है।
इसके धूएँ से धुंधला, होकर जीवन बदतर है।
भैया जीवन के लिए........
मत पीओ तुम दारु-ताड़ी,आंत को यह जलाता है।
धीमा-धीमा असर दिखाता,फिर घातक बन जाता है।
इससे अच्छा तो पीना,सादा पानी सक्कर है।
भैया जीवन के लिए..............
मत खाओ तुम भांग,पान-मसाला भ्रष्ट करता दिमाग।
अफीम -चरस ना मुँह लगाना,जाग भाई जाग।
ड्रग्स का सेवन ना करना,तन को करता बंजर है।
भैया जीवन के लिए..............
सदा नशे से दूर रहो तुम, इसमें है तेरी भलाई।
नशे का पैसा भी बचेगा, जीवन होगा सुखदाई।
भैया मन में ले संकल्प,नशे का त्याग बेहतर है
भैया जीवन के लिए.............
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, July 27, 2022

सावन महीना (कजरी )



          सावन महीना
हरि बोलो ! सावन महीना पावन, मनमा हरसे हरि बोलो।
हरि बोलो ! रिमझिम रिमझिम, मेघा बरसे हरि बोलो।

गड़-गड़, गड़ -गड़ बोले बदरिया।
चम-चम,चम-चम चमके बिजुरिया।
हरि बोलो !अजब आवाज आबे, अम्बर से हरि बोलो।
हरि बोलो!सावन महीना...........

वर्षा की देखो है बुंदे ये न्यारी।
लगती है यह हर जन को प्यारी।
हरि बोलो ! कड़क -कड़क कर,बदरा गरजे हरि बोलो।
हरि बोलो!सावन महीना .........

धरती पर छायी है हरियाली।
हरी- भरी है पेड़ों की डाली।
हरि बोलो ! खेतों की क्यारी में, पौधे लरजे हरि बोलो।
हरि बोलो !सावन महीना...........

       सुजाता प्रिय समृद्धि

Tuesday, July 26, 2022

तुझको मेरा प्रणाम



               तुझको मेरा प्रणाम

आजादी के दीवाने ! तुझको मेरा प्रणाम।
बारम्बार प्रणाम तुझको, बारम्बार प्रणाम।
प्रणाम- प्रणाम -प्रणाम, प्रणाम- प्रणाम -प्रणाम।

तूने ऐसा कदम उठाया,भागे अँग्रेज यहाँ से।
जिधर घूम तुम धूम मचाये भागे वे वहाँ से।
अँग्रेजी शाशन का तुमने,कर दिया काम तमाम।
बारम्बार प्रणाम तुझको..............

गाँधी की आँधी चली तो उड़े यहाँ से फिरंगी।
सिर पर पाँव रखकर भागी उनकी सेना सतरंगी।
फिर यहाँ आने की उसने लिया कभी ना नाम।
बारम्बार प्रणाम तुझको.............

भारत पर शासन करते थे,अँग्रेज यहाँ कुटनीति से।
प्रबुद्ध जनों को ज्ञात हुआ जब छलियों की राजनीति से।
अपनी रणनीति से उसको भगा दिया सरेआम।
बारम्बार प्रणाम तुझको............

उनकी मनमानी से पीड़ित हो जब वीर भारत के जागे।
पश्चिम के गोरे-छलिये तब,टिके नहीं उनके आगे। 
आजादी के विगुल के आगे टिके नहीं इक शाम।
बारम्बार प्रणाम तुझको.............
                     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

आजादी कैसे मिलती है।

आजादी कैसे मिलती है

आजादी कैसे मिलती है,पूछो तुम उन वीरों से।
जिन्होंने अपना सिर टकराया, गुलामी की जंजीरों से।
जिन्होंने अपना सिर..........
अथक परिश्रम और प्रयास से आजादी दिलवाई थी।
अपने जीवन का दांव लगा, दुश्मन को धूल चटाई थी।
कितने युद्ध किया था उसने पूछो उन रणधीरों से।
जिन्होंने अपना सिर................
आजादी की खातिर जिसने,अपना खून बहाया था।
भारत को आजाद कराने,अपना सिर कटवाया था।
जीवन के अंतिम छण तक,डटे रहेे,डरे नहीं बलवीरों से।
जिन्होंने अपना सिर...............
सीने पर गोली खायी थी और अपमान के घूँट पीये।
बाँध कफ़न भीड़ गये थे उनसे, कहते हुए हम बहुत जिये।
अपनी ज़िद पर अड़े हुए,पार गये लकीरों से।
जिन्होंने अपना सिर ................
कितने बंकर उड़ा दिये थे,कितनी सेना मारी थी।
मत पूछो इनके आगे दुश्मन की सेना भारी थी।
कितने चौकी ध्वस्त किये थे,पूछो
किन तदवीरों से।
जिन्होंने अपना सिर...............
चढ़ गये फाँसी हँसते-हँसते, तनिक नहीं वे घबराये।
भारत माँ की रक्षा की कसम नहीं टूटने पाये।
इसलिए हंँसकर प्राण गंवाई थी,पूछो इन प्राचीरों से।
जिन्होंने अपना सिर..............
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, July 24, 2022

आजाद देश में जन्म लिया है

आजाद देश में जनम लिया हैं

आजाद देश में जनम लिया है,इसका है गुमान हमें।
आजाद देश के वासी हैं हम,इसका स्वाभिमान हमें।

अपनी इस आजादी को हम, कभी नहीं मिटने देंगे।
भारत की इस थाती को हम,
कभी नहीं लुटने देंगे।
अमिट धरोहर है अपना यह इसपर है अभिमान हमें।
आजाद देश के वासी हैं हम.......
हमारी पावन धरती पर अब कोई आँख उठाएगा।
चूर करेंगे स्वप्न उसके हम, हाथ मलकर रह जाएगा।
मक्कारी और गद्दारी की हो गयी अब पहचान हमें।
आजाद देश के वासी हैं हम........
मन में इच्छा यही हमारी देश रहे आजाद मेरा।
धन-जन और संसाधन से देश रहे आवाद मेरा।
दुनिया इसका अनुसरण करती,इसका है अभिमान हमें।
आजाद देश के वासी हैं हम........
पहन सदा ही शान करे यह गंगा-यमुना की माला।
ऊँचा सीना सदा ही रखे, हिमालय पर्वतमाला।
जिसके कारण है मिलता, सदा जग में पहचान हमें।
आजाद देश के वासी हैं हम........
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, July 21, 2022

मेघा (जलहरण घनाक्षरी)



मेघा ( जलहरण घनाक्षरी )

देखो बादल आया है,
आसमान में छाया है।
सबका जी हर्षाया है,
गरज-गरज कर।

सावन की बहार है,
बादलों के पार है।
पड़ रही फुहार है,
झमक -झमक कर।

बरस रहा जोर से,
देखो तो चारों ओर से।
छाकर घनघोर से,
टपक-टपक कर।

मेघा जब भी आती है।
सभी जनों को भाती है।
नयी उमंग लाती है।
हरस-हरस कर।

सुजाता प्रिय समृद्धि

Wednesday, July 20, 2022

उतावलापन (लघुकथा)

उतावलापन (लघुकथा)

सावन आने के पहले से ही महेशजी और उनकी पत्नी चित्रा अत्यंत उत्साहित थे। प्रत्येक वर्ष सावन महीने में वे दोनों कांवर लेकर पैदल जल चढ़ाने बैजनाथ धाम अवश्य जाते थे। इस बार भी जाना है । दोनों ने तैयारी शुरू कर दी। दोनों ने गेरूए रंग के नये कपड़े,कांवर इत्यादि खरीदे। बच्चों के लिए घर में छोड़ने हेतु जरूरी सामान खरीदे कर रख दिया। देखभाल के लिए दादा-दादी हैं ही।निश्चित तिथि को रात्रि के रेल- गाड़ी से सुल्तानगंज के लिए चल दिए। गाड़ी सुबह सही समय पर पहुंची।वे काफी खुश थे कि सुबह में ही जल लेकर चल देंगे। लेकिन जब गंगा किनारे नहाने पहुंचे।बैग में देखा तो उसमें उनके कपड़ों की जगह बेटे -बेटियों के कपड़े रखे थे। चित्रा ने बैग को अच्छी तरह से देखा तो सारा माजरा समझ में आ गया। उन्होंने नये बैग में नये कपड़े रखे थे। लेकिन महेश जी उतावलेपन में पुराने बैग जिसमें चित्रा बच्चों के नये और अच्छे कपड़े रखी थी, उसे उठा लिया लाने के लिए। चित्रा भी इतनी उतावली थी कि यह ध्यान नहीं दे पायी कि उन्होंने पुराना बैग उठा रखा है।
अब स्नान से पूर्व दोनों मिलकर फिर से कपड़े तथा यात्रा में प्रयुक्त होने वाले जरूरी सामानों को खरीदारी की।फिर स्नानादि कर जल लेकर बाबा बैद्यनाथ धाम के लिए चल पड़े।
उतावलेपन के कारण सारे सामान दोबारा खरीदने का मलाल मन में अलग से रहा, साथ में पूरी यात्रा वे बारी-बारी से बच्चों के कपड़े से भरे बैग को भी ढोते रहे।
         सुजाता प्रिय समृद्धि

Tuesday, July 19, 2022

दहलीज (लघुकथा)



दहलीज (लघुकथा)

सास के उलाहने -तानों, ननदों के दुर्व्यवहारों, देवर की अकड़ और शराबी पति की बदसलूकियों से परेशान शोभा ने फैसला लिया  कि आज वह यह घर छोड़ देगी।जिस घर में मान-सम्मान नहीं, प्यार-मुहब्बत नहीं,उस घर में रहने से क्या फायदा।उसने अपना पर्स उठाया और सोचा दो घंटे में मायके पहुंच मांँ को इनका रवैया बताऊंगी। फिर जो होना होगा सो होगा। फिर इस घर में वापस नहीं आना।पति और ससुर जी आफिस,देवर ननद सभी कालेज।सासु माँ की खर्राटे की गूंज सुनते ही वह बाहर के कमरे में आ गयी।अभी सुनहरा मौका है जाने का। जैसे ही कमरे की दहलीज लाँंघी उसे माँ जी द्वारा दिलवाया गया वह वचन याद पड़ गया , जब पहली बार इस घर में प्रवेश करते हुए इस दहलीज के अंदर कदम रखी थी। बोलो बहू ! "घर के इस दहलीज से कभी वापस नहीं जाऊँगी।"उसने सोचा,ना जाने कैसे -कैसे वचन दिलवाये जाते शादी के वक्त।उन वचनों का क्या ? जो वर-कन्या को बोलने कहा जाता है बोल देते हैं।
"बहू जरा पानी पिलाना " सासु माँ की आवाज आयी। पानी दे ना दे उन्हें?वह असमंजस की स्थिति में खड़ी हो गयी। तभी शादी के समय अपनी माँ द्वारा माँ जी को बोली गयी यह बात उसे याद आयी-"आज से मेरी शोभा आपके घर की शोभा है।अब आप ही इसकी माँ हैं।" उसने सोचा मैंने भी तो अपनी माँ से कम सम्मान उन्हें नहीं दिया।बहू !माँ जी ने फिर पुकारा।दिल ने कहा माँ जी को पानी दो।अगले ही पल वह मन में दृढ़ निश्चय कर बुदबुदा उठी।हाँ मैं इस दहलीज को छोड़कर नहीं जाऊँगी।सभी मुझे परेशान करते हैं तो करें। मैं उनके व्यवहारों की अनदेखी करूँगी या फिर उन्हें अपने अनुकूल ढाल लूंगी।इस दृढ़ वचन का संकल्प ले वह दहलीज के अंदर जाकर माँ जी को पानी देने लगी।
             सुजाता प्रिय समृद्धि

Monday, July 18, 2022

शिव (दोहा)

जय माँ शारदे
शिव ( दोहा )
शिव देवों के देव हैं, चरणों में प्रणाम।
हर-हर,शिव-शिव बोल तू,जपते जाओ नाम।।

सबका ये संकट हरे,सब के पालनहार।
जग वालों पर हैं सदा, करते वे उपकार।।

मस्तक पर चंद्रमा,जटा गंग की धार।
बाघम्बर ओढ़े,वंदन,गले सर्प की हार।।

एक हाथ त्रिशूल है, कमण्डल दूजे हाथ।
नत्मस्तक होकर सदा, भक्त झुकाते माथ।।

मंदिर में विराजते, पार्वती के संग।
सारा जग घूमते,चढ़ बसहा के अंग।।

खाते हैं भांग चबा, लगाते हैं विभूत।
कार्तिक और गणपति, दोनों इनके पूत।।

पहला सोमवार (भोजपुरी भाषा)

पहला सोमवार बा (भोजपुरी भाषा)

सावन के बहार बा,पहला सोमवार बा,
भोला बाबा के धेयान लगाबा,सबके बेड़ा पार बा।

गंगाजल भोला पर चढ़ावा,हर-हर,बम-बम बोल के।२
चंदन  घीस-घीस लगावा,जी भर मननमा खोल के।
बाबा ही आधार बा,हमरा के आसार बा,
भोला बाबा के धेयान लगाबा,सबके बेड़ा पार बा।

आँक-धथुरा फूल चढाबा,और चढ़ाबा बेलपत्तर।
भांग पतैया पीस चढ़ाबा,और चढ़ाबा तू इत्तर।
नैया मझधार बा,बाबा खेवन हार बा,
भोला बाबा के धेयान लगाबा,सबके बेड़ा पार बा।

धूप-दीप नैवेद्य चढ़ाबा,जराबा,घी के बाती जी।
भजन आरती सब मिली गाबा,जागा सारी राती जी।
बाबा के दरबार बा,गूंजत जय जय कार बा।
भोला बाबा के धेयान लगाबा,सबके बेड़ा बा।

भोला बाबा औघड़दानी,सब जन के वर देबेे ला।
बाबा उनकर आस पुरैहें,जे इनखा के सेबे ला।
महिमा अपार बा,जानत संसार बा,
बोला बाबा धेयान लगाबा सबके बेड़ा पार बा।
           सुजाता प्रिय समृद्धि

Saturday, July 16, 2022

सावन ( सायली छंद )



सावन 
है आया
नभ में देखो
है बादल
छाया।

टपक
टपक कर
बरसता है पानी
सबका मन
हरसाया।

वन 
उपवन में
झूमते हैं पादप
हरियाली है
छायी।

बयार
चले अब
ठंडी -ठंडी यह
सबको है
भायी।

नयी
उमंग है
नयी तरंग है
सबके जीवन
में।

नव
उल्लास है
नव परिहास है
सबके मन
में।

भरे
हुये हैं
कूप ताल तलैया
नदिया और
पोखर।

तैर
रहे हैं
अब सारे जलचर
बहुत खुश
होकर।

सुजाता प्रिय समृद्धि

Friday, July 15, 2022

आ गेलै सावन ( मगही गीत )




आ गेलै सावन हे सखिया

देखा आ गेलै सावन हे सखिया।
इस महीना है पावन हे सखिया।

जल्दी से केसिया चोटी बना ला।
मथबा में सेनुर-टिकुली लगा ला।
करूँ मेंहदी लगावन हे सखिया।
देखा आ गेलै सावन, हे सखिया।

अब खेतबा में भर गेलै पानी हे।
 केयरिया  के रंग होलै धानी हे।
क्या धान रोपावन हे सखिया।
देखा आ गेलै सावन हे सखिया।

सब मिलके बगिया में जैबै से सखी।
संग मिलके गीतिया गइवै हे सखी।
करूं झूला झूलावन हे सखिया।
देखा आ गेलै सावन हे सखिया।
         सुजाता प्रिय'समृद्धि'
               स्वरचित

Thursday, July 14, 2022

मेला (सायली छंद )



सायली छंद

           मेला

शहर 
के बाहर 
कितना बढ़िया देखो 
लगा है 
मेला।

मेले 
के पास 
भांति -भांति का 
लगा  है 
ठेला।

उन 
ठेले में 
चाट-पकौड़े गुपचुप 
लगे हुए 
हैं।

रंगीन 
आइस्क्रीम औ 
शरबत से ठेले 
सजे हुए 
हैं।

मेला 
हम जाएंगे 
खूब मिठाई खाएंगे 
संगी-साथी 
संग।

खूब 
घूमेंगे-फिरेंगे 
मौज-मस्ती करेंगे 
और मचाएंगे 
हुड़दंग।

हम 
तरह-तरह 
के झूले में 
साथ-साथ 
झूलेंगे।

और 
पेंग बढ़ाकर
 साथ-साथ हम, 
आसमान को 
छुएंगे।

सीटी 
और बाजे 
भी हम लाएंगे 
सब मिलकर 
बजाएंगे।

मेले 
घूमने की 
खुशियांँ में हम 
प्यारा गीत 
गाएँगे।
           सुजाता प्रिय समृद्धि

अमानत (लघुकथा)मगही भाषा



अमानत (लघुकथा)
(मगही भाषा)

सहोदरी चाची आउर दिनेसर चच्चा पाँच महीना पर घूर के गाँव अइलथिन।बथान के खूंट्टा देखके उनकर मनमा बड़ी दुखी हो गेलै। गैया बछड़ा बिनु सब सुन लग रहलै। लेकिन मन में धिरीज धर के सोचलथिन ऐसने आफते आ गेलै तो कि करतिए हल।दूर शहर में बेटा के एक्सिडेंट के समाचार सुनके गाय-गोरू के होस करने रहलै ।सब छोड़ छाड़ के चल गेलिऐ।इस सब सोचते घरबा घुसे लगलथिन तो रधबा के मैया पर नजरिया पड़लै।देहिया में आग लग गेलै।दिनेसर चच्चा से भुनभुना के कहलथिन वसुदेबा के चिट्ठी पहुंचलै हल कि रधबा के मैया बाबु हमर सभे गैया बछड़बा के हथिया के अपन गोशलबा में बांध लेलकै।रुक तनी खा-पीके असथीर होबे दे तब तोर झखुरबा खीच खींच के मार हिऔ।आफत पड़ला पर थोड़ा दिन घर छोड़े के मतलब इ थोड़े होब हकै कि सब कुछ कोय लूट लेय।चीज वस्तु के तो घर में रखके ताला मार देलिऐ।बाकी जीब-जानवर बंद थोड़े कैल जा हकै। बोलते बोलते हाथ मुंह धोके जैसे ओसरा पर ऐलथिन रधबा के मैया भर कटोरा दही अउर थरिया में आठ-दस गो रोटी लेके ऐलै अउर चौकिया पर रख के उनका गोड़ लगे लगलै।कहल जा हकै कि भुक्खल आदमी के गोस्सा भोजन देखें शांत हो जा हकै।से सहोदरी चाची अउर दिनेसर चच्चा के हालत भी ओइसने हो गेलै।झट से दूधा नहैइहा,पूता फरिहा के आशीर्वाद देके चौकिया पर भोजन जिमे बैठ गेलथिन।तब वे रधबा माथबा पर मटुकी लेके अउर ओकर बाबु हथबा में थैला लेके अएलथिन।इस कि है रे रमेशर?दिनेश्वर चच्चा अचरज से पुछलथिन।इस तोहफे अमानत है चच्चा।तोहर गैया के दूध-दही अउर गैइठा बेचके जे पैसा होलै आउर थोड़े घी होलै।अर्से तोर गोशलबा में तोहर अमानत गैया बछड़बा के बांध देबै।सहोदरी चाची मथबा झुका के पछताय लगलथिन।इस हमर गाय-गोरू के समहार के रखलकै अउर हमें..........दिनेशर चच्चा कहलथिन घीया कहे ले देलहीं रे।बाल बुतरुअन खैते हल अउर पैसों तो भी तोरे होतै।तोहनी के मेहनत के कमाई हमें काहे लेबै।इस तोर अमानत हकौ।तू समय अमानत के सम्हार के रखलहीं इहे बहुत हकै।
        सुजाता प्रिय समृद्धि

Wednesday, July 13, 2022

गुरु को नमन



जब ज्ञान गुरु ने दिया हमको,
हम आज कहाते ज्ञानी हैं।
गुरु ज्ञान के आशीर्वचनों से,
हम बने स्वाभिमानी हैं।

बिन गुरु ज्ञान न पाते हम।
मूर्ख सदा ही रह जाते हम।
गुरु ज्ञान की राह दिखाई हमें,
फिर बोलो क्या हैरानी है।

हम मूरख और अज्ञानी थे।
अज्ञानतावश अभिमानी थे।
गुरु ज्ञान-नदी में डुबा हमको,
नहलाये वे ब्रह्म ज्ञानी हैं।

गुरु सच्ची राह दिखाते हैं ।
अज्ञानता को दूर भगाते हैं।
गुरु सच्चे साधक हैं जग में,
और अमृत उनकी वाणी है।

सिखाते हमको सदाचार गुरु।
किये हम पर यह उपकार गुरु।
है शीश झुकाके नमन उनको,
गुरु ज्ञान के बड़े ही दानी हैं।

सुजाता प्रिय समृद्धि

Tuesday, July 12, 2022

मानवता की जरूरत

मानवता की जरूरत

मानव समाज को मानवता की जरूरत है।
मानवता ही मानवों की सुंदर सूरत है।
मानवता को अपना ले अभी हे मानव जन-
नहीं तो हर जीवों में तू सबसे बदसूरत है।
               सुजाता प्रिय समृद्धि

Monday, July 11, 2022

ऋतु (सायली छंद)



 ऋतु (सायली छंद)

भारत 
देश में 
वर्ष में छः 
ऋतुएंँ होती
हैं।

हर 
ऋतु हर
दो महीने में 
ही बदलती 
है।

क्रमवार
एक-एक 
कर आती और 
चली जाती 
है।

और
हर ऋतु 
ही अपना-अपना 
रंग दिखाती
है।

ग्रीष्म 
और वर्षा 
के पहले सदा
आता है 
वसंत।

शरद, 
शिशिर के 
बीच में होता 
है सदा
हेमंत।

सुजाता प्रिय समृद्धि

Friday, July 8, 2022

गज़ल

ग़ज़ल

तुम जा रहे हो , ना अब बात होगी।
किसी मोड़ पर,फिर मुलाकात होगी।

विरहा की अग्नि से व्याकुल न होना,
प्यार के सावन की बरसात होगी।

अभी कुछ दिनों की दूरी है हमारी,
फ़िक्र ना करो हमसे फिर बात होगी।

तड़पाए भले यह दिन का उजाला,
खुशियों के पल से भरी रात होगी।

माना की आयी ये मुश्किल घड़ी है,
ढलने दो खुशियों की सौगात होगी।
       सुजाता प्रिय समृद्धि

Thursday, July 7, 2022

यह भारत की नारी है (चित्र आधारित रचना)

यह भारत की नारी है

पुरुषों से कदम मिलाकर चलती,वह भारत की नारी है।
हर पल पुरुषों का साथ निभाती वह भारत की नारी है।

घर का काम निपटाकर बाहर पुरुषों का साथ निभाती है।
पीठ पर बच्चे को बांँध कर,संग खेती करने जाती है।

कुदाल चलाती,खेत कोड़ती,हल चलाकर खेत जोतती।
मेड़ बनाकर बीज बोती,एक-एक कर पौध रोपती।

भला कैसे गुजारा होगा अब, हाल बड़ा बदहाल है।
करे क्यूं न मजबूरी में, यह पापी पेट का संभाल है।

फिर भी जन हाथ उठाकर कहते हैं शक्तिहीना नारी है।
है केवल ममता की मूरत, कोमल अबला यह बेचारी है।
     सुजाता प्रिय समृद्धि

Tuesday, July 5, 2022

सबसे प्यारा भारत है



सबसे प्यारा भारत है 

सारा जग विचरण कर देखो,सबसे प्यारा भारत है।
करे न कोई तुलना इसकी,सबसे न्यारा भारत है।
करें ना.....
स्वच्छ यहाँ की जलवायु है,स्वच्छ यहाँ के बात-विचार।
स्वच्छ मन से हर मानव करते,हर प्राणी से हैं व्यवहार।
बड़े-बुजुर्गों का आदर और सेवा करता सारा भारत है।
करे न कोई तुलना इसकी............
अलग-अलग परिधान यहाँ के,अलग-अलग भोजन पकवान।
अलग-अलग बोली और भाषा,अलग-अलग गीतों के तान।
अनेकताओं में भी है एकता,जग उजियारा भारत है।
करे न कोई तुलना इसकी,...........
हिमालय से हिंदसागर तक भारत का विस्तार सुनो।
यहाँ सभी मिल-जुलकर रहते, जैसे एक परिवार सुनो।
जो देता सबको सुख-वैभव,हरता अंधियारा भारत है।
करें न कोई तुलना इसकी...........
यहाँ की मिट्टी के कण-कण में, फसलों का भंडार भरा।
यहाँ की नदियों और नहर में,अमृत का है उद्गार भरा।
जंगल और पहाड़ों से समृद्ध,यह देश हमारा भारत है।
करें न कोई तुलना इसकी...........
अंतर्कलह को दूर भगाता, आंतरिक सुख-स्वराज्य यहाँ।
पास-पड़ोस से मिलाप रखता,मेल-जोल कि राज्य यहाँ।
दुनिया के झगड़ों का भी,करता निपटारा भारत है।
करे न कोई तुलना इसकी...........
सदा रहा यह विश्व विजेता,सदा किया जग का कल्याण।
यहाँ सभी हैं पंडित ज्ञानी,देते आये हैं जग को ज्ञान।
विश्व गुरु यह सदा रहा ह ,आँखों का तारा भारत है।
करें न कोई तुलना इसकी...........
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
       स्वरचित, मौलिक

Monday, July 4, 2022

कारी बदरिया ( मगही भाषा )



छा गैलै कारी बदरिया,सुना हो सांवरिया।
दिनमा में होलै अंधरिया, सुना हो सांवरिया।

पूरुब दिशा में अइलै बदरिया।
लाली पर छैलै कजरिया,
सुना हो सांवरिया।

पच्छिम दिशा में अइलै बदरिया।
बिखर गेलै जैसे कजरिया,
सुना हो सांवरिया।

उत्तर दिशा से अइलै बदरिया।
भींजलै पोथी-पतरिया,
सुना हो सांवरिया।

दक्खिन दिशा में अइलै बदरिया।
सूझै ने कउनो डगरिया,
सुना हो सांवरिया।

उमड़ -घूमड़ के अइलै बदरिया,
चम-चम चमके बिजुरिया,
देखा हो सांवरिया।

सुजाता प्रिय समृद्धि

Saturday, July 2, 2022

जगन्नाथ भगवान



जगन्नाथ भगवान

जगन्नाथ भगवान,
है बारम्बार प्रणाम,
आई हूँ आपके धाम,
कृपा अब कीजिए।

आपके आपके पास,
हम सब दासी-दास,
लेकर मन उल्लास,
शरण में लीजिए।

सुनहरा यह संयोग,
मिलकर सारे लोग,
लगाने आए हैं भोग,
भोग आप कीजिए।

लेकर मन उमंग,
बजा करके मृदंग,
गायेंगे कीर्तन संग,
आशीष दीजिए।

सुजाता प्रिय समृद्धि