Thursday, September 30, 2021

नदिया की धार



कल-कल करती बहती जाती,नदिया की धार रे।
संगीत सुनाती ऐसी जैसे,भौरे करें गूंजार रे।

तेज चाल से बढ़ती जाती,मन में लेकर शान।
चलना ही है काम इसका, इस पर इसे गुमान।
जरा न रुकती,जरा न थकती,चलती मन को मार रे।
संगीत सुनाती.....................
दोनों कूल में देख उठी है कैसी आज उफान।
ऐसा लगता आज है आया सागर में तूफान।
आज है जैसे बनकर आई यह धरती की हार रे।
संगीत सुनाती...................
कभी थिरकती,कभी मचलती,मन में ले गुमान।
झूमती-गाती इठलाती-सी चल रही सीना तान।
कभी भंवर बन नाच दिखाती,सौ-सौ ठूमके मार रे।
संगीत सुनाती...................
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, September 29, 2021

घर का जोगी



घर का जोगी

होली का त्योहार निकट है। सभी घरों में जोर-शोर से तैयारियां चल रही है। कपड़ों एवं रंग-गुलाल के साथ-साथ पकवानों एवं लजीज व्यंजनों की भी सूची बन रही है।
रंजना ने अपनी सहेलियों से मालपुआ की बात छेड़ी।
रजनी ने कहा-पुआ तो हम सभी घरों में खाते हैं।पर, समृद्धि भाभी जैसा लजीज और खास्ता पुआ किसी का नहीं होता।
रंजना की भाभी ने कहा-अपना-अपना हूनर है, वरना मेवे मलाई तो सभी डालते हैं। किन्तु क्या चीज कितनी मात्रा में डालना है यह सभी को अंदाज नहीं होता।
रंजना ने कहा-चलो हमलोग समृद्धि भाभी से ही पूछ लें।
फिर क्या था, सभी चल पड़ी समृद्धि भाभी के घर।संयोग से समृद्धि भाभी घर में अकेली थी। उन्होंने सबका बड़े प्यार से स्वागत किया।
उनकी व्यवहार कुशलता की तारीफ सभी ने किया। फिर मिलने आने का मकसद भी बता दिया।
समृद्धि भाभी ने माल पुए को खास्ता करने के गुर्र सभी को दिल खोलकर बताया।
होली के दिन सभी संध्या को रंग-गुलाल ले एक-दूसरे के घर चल पड़े। बहुत ही सुंदर संयोग था जब समृद्धि भाभी रंजना के घर पहुंची तो उसकी सहेलियां भी वहां मौजूद थीं। सभी ने एक-दूसरे को गुलाल लगाया।
रंजना की भाभी ने गरम-गरम माल पुआ लाकर सभी को परोसा।
समृद्धि भाभी की सासु मां ने उन्हें फटकारते हुए कहा-लो खाओ पुआ।देखो कितना बढ़िया बना है।यह तो बढ़िया पुआ बना ही नहीं पाती है।
समृद्धि भाभी की ननद ने छुटते ही कहा-मैं तो पहले ही बोली थी कि रंजना या उसकी भाभी से पुछकर बनाइएगा। लेकिन इन्हें पूछने में अपमान लगता है।अरे! सीखने में कैसा संकोच ?
दूसरी ननद ने हां -में-हां मिलाते हुए कहा-ऐसे लोग कभी सीख नहीं पाते।
सासु मां ने हाथ नचाते हुए कहा-क्या करोगी ?सबके किस्मत अच्छे नहीं होते। मैं तो तरस कर ही रह गयी कि मेरे घर कोई अच्छा व्यंजन बने।
रश्मि कहना चाहती कि हमलोग ने तो इन्हीं से सीखा पुआ बनाना। लेकिन रंजना ने उसे चुप रहने का इशारा किया।वह नहीं चाहती थी कि समृद्धि भाभी को और भी खरी-खोटी सुनाना पड़े।
रंजना की सभी सहेलियां समृद्धि भाभी का उदास और रुआंसा चेहरा देख सोंच रही थी-
सारे मुहल्ले में समृद्धि भाभी सर्व गुण संपन्न और निपुण हैं। लेकिन घर के लोग उसे फुहड़ और बेबकूफ समझते हैं।इसे ही कहते हैं -घर का जोगी जोगड़ा आन गांव के सिद्ध।
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, September 25, 2021

जागो-जागो ऐ इंसान

जागो-जागो ऐ इंसान

मत कर मानव झूठी शान,धरा रह जाएगा गुमान।
जरा तू मेरी भी तो मान,जागो-जागो ऐ इंसान।
छल-छद्दम से दो पैसे जब, हाथ कभी पा जाते हो।
तुझ-सा बड़ा न कोई प्राणी,ऐसी अकड़ दिखाते हो।
तू है बहुत बड़ा नादान,जागो-.......
धन-दौलत का गर्व क्यों करते,इसका कोई मोल नहीं।
साथ न तेरे जाएगा यह,जाएगा तू छोड़ यहीं।
गर्व क्यूं करता है इंसान,जागोे.......
लाख जतन से महल बनाया,सब सुविधाओं से भरपूर।
खोल न पाते मन की खिड़की,खुली हवा से रहते दूर।
डाला ख़तरे में क्यों जान,जागो......
क्यों इठलाता रे मन-मुरख इस माटी की मूरत पर।
अस्थि-मज्जा से बने वदन पर, सुंदर गोरे सूरत पर।
यह तो ईश्वर का वरदान जागो.......
रूप का मत अभिमान करो, यह तो कल ढल जाना है।
ईश्वर की रचना सब सूरत,अपना न ताना-बाना है।
मत कर इस पर तू अभिमान, जागो..........
बोली एक अमोल रतन है,इसे समझ ना पाते हो।
तीखी बोली बोल जहां में, कड़वाहट भर जाते हो।
क्यों है इससे तू अंजान,जागो........
                                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, September 24, 2021

दादी मां की शिक्षा

दादी मां ने हमें सिखाया, प्यार सभी से करना।
मिल-जुलकर सभी से रहना,आपस में न लड़ना।

नये-नये पकवान बनाकर दादी हमें खिलाती।
दूध,छाछ अमझोरा,सत्तु, लस्सी हमें पिलाती।
कहती कोल्ड्रिंक्स न पीना घड़े का पानी पीना।
मिल-जुल-कर ...............
दादी मां अपने विस्तार पर, साथ हमें सुलाती।
दादा जी संग घूमने जाती, साथ हमें ले जाती।
ट्रैफिक का नियम बताती,कहती बायें चलना।
मिल-जुलकर ............
दादी मां हमको रोज सुनाती, प्यार भरी कहानी।
फिर अंत में शिक्षा दे कहती,करना ना मनमानी।
सदा बड़ों का कहना मानो, खूब पढ़ाई करना।
मिल-जुलकर .............
मां-पिताजी के गुस्से से, दादी मां है हमें बचाती।
फिर प्यार से गोद बिठाकर,हमको है समझाती।
अच्छे बच्चे ज़िद न करते, शैतानी न तुम करना।
मिल-जुलकर .................
                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, September 23, 2021

सरस्वती वंदना

मां शारदे ! मां शारदे!
अज्ञानता से उबार दे।
मां शारदे................
तेरे शरण में हम हैं आयें,
लेकर बहुत विश्वास मां।
तेरे चरण में सिर नवायें,
रखकर हृदय में आस मां।
मेरी मूढ़ता को दूर कर दे,
मन-ज्ञान को तू निखार दे।
मां शारदे!...................
दिल में विराजे तू सदा,
 मन में बसा तेरा रूप है।
हर भाव में,हर बात में,
हर वाणी तेरा स्वरूप है।
मन-वचन को स्वच्छ रखूं,
सुंदर सदा तू विचार दे।
मां शारदे!...................
तेरे धवल वसन-स्वरूप-सा,
अंत:करण मेरा रहे।
हर जीव के खातिर हृदय में,
इंसाफ का डेरा रहे।
हर पुण्य कर्मों को करें हम,
तुम इसे विस्तार दे।
मां शारदे!....................
स्वरचित, मौलिक
सुजाता प्रिय'समृद्धि'

Wednesday, September 22, 2021

मुफ्त में सब्जी



मुफ्त में सब्जी

पत्नी बोली सुनो पिया जी!तुमको अकल नहीं है।
मोल-भाव कर सब्जी लेने का,कोई नकल नहीं है।
बिक्रेता जितना दाम बताता है,उतने में तू लेते हो।
अपनी कमाई का मोटा हिस्सा बेकार गवां देते हो।
बड़े ही तुम हो सीधे- सादे ,और बड़े हो तुम भोले।
दो रुपए तुम दाम घटाओ,जितना भी विक्रेता बोले।
चले पिया जी सब्जी लाने, पाकर पत्नी से शिक्षा।
प्रिया ने जितना पाठ पढ़ाया था,देने उसकी परीक्षा।
पत्नी जी की पसन्द की, वे सभी सब्जियां लाने।
हर सब्जी के दामों में,वे लगे दो-दो रुपए घटवाने।
एक बूढ़ी सब्जी वाली, जो दिखती चेहरे की भोली।
मुट्ठी भर धनिया-पत्ती का वह, दाम दो रुपए बोली।
पति महोदय हंसकर बोले,मुफ्त में दो धनिया पत्ती।
बूढ़ी सब्जी वाली के चेहरे पर,साफ दिखी आपत्ति।
अपनी आंख नचाकर पूछी,क्या तेरे मुंह हैं चिकने?
सब्जियां दान करने ना रखी, रखी हूं यहां मैं बिकने।
पति महोदय हंसकर बोले, क्यों गुस्सा करती माई।
दो रुपए दाम घटाने को,प्यारी पत्नी है मुझे सिखाई।
दो रुपए की धनिया पत्ती का, दाम बता क्या होगा?
दो रुपए कम करने पर, यह मुफ्त में ही तो होगा।
सब्जी वाली हंस कर बोली- सुन मेरा बेटा ! भोला।
उस दिन तुम आकर,यहां पर मुफ्त में भरना झोला।
जिस दिन सब्जी बेचने बैठेगी,यहां तुम्हारी घरवाली।
सब्जियों से भरकर ले जाना, घर अपना झोला खाली।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, September 19, 2021

मुहब्बत की बरसात हो (ग़ज़ल)

जिंदगी में मुहब्बत की बरसात हो।
मुहब्बत ही हमारा बस सौगात हो।

मुहब्बत का बादल , छाये गगन में,
गरज के साथ मुहब्बत का प्रपात हो।

मुहब्बत की धरा पर,गिरे बूंद बनकर,
दिन में शुरू हो गिरना तो फिर रात हो।

मुहब्बत के जल से , भरे ताल पोखर,
झर-झर झरनों से यूं झंझावात हो।

मुहब्बत की नदी में,बहे धार बनकर,
दूर -सुदूर तक यही जलजात हो।

मुहब्बत की धारा,बहे अब निरंतर,
समंदर से उसकी ,तब मुलाकात हो।

समंदर से मुहब्बत उड़े भाप बनकर,
मेघों का रूप ले , फिर बरसात हो।
      सुजाता प्रिय'समृद्धि'

Saturday, September 18, 2021

मासूम सवाल

मासूम सवाल

अम्मा चंदा क्या होता?अम्मा सूरज क्या होता?
अम्मा नदिया क्या होती?अम्मा पर्वत क्या होता?

अम्मा दीदी क्या होती?अम्मा भैया क्या होता?
अम्मा अम्मा क्या होती,अम्मा बाबा क्या होता?

नन्ही-सी बिटिया का प्यारा मासूम सवाल।
क्या कहूं कितना मेरे मन को कर गयी निहाल।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

मां का रूप

मां का रूप

मां का है रूप अनूप,जाने रंक धनी और भूप।
मां सुखदाता का रूप जाने........
मां महागौरी,मां महाकाली,मां ही ज्योतावाली।
मां ही शारदा,मां ही लक्ष्मी,बल-बुद्धि देने वाली।
मां अद्भुत-अपूर्व अनूप जाने........
मां बच्चे को जन्म है देती,पालन पोषण करती।
दूध पिलाकर भूख मिटाती,सारे दुखड़े हरती।
मां समस्त सिद्धि-स्वरूप जाने.................
मां की महिमा बड़ी निराली, जिसका कोई छोर नहीं।
मां की ममता लूट सके जो,ऐसा डाकू चोर नहीं।
बदल सके ना मां का रूप जाने......
मां सुख करनी, संकट हरनी,मां ही सुख की छाया।
मां ममता की सुंदर मूरत,जिसमें है बसती माया।
मां सुबह की कोमल धूप,जाने........
मां गर्मी में शीतल छाया,जाड़े में है अंगीठी।
वर्षा में छतरी बन जाती,जिसकी छाया मीठी।
मां हर ऋतु के अनुरूप जाने.......
मां ठंडा जल भी हमें पिलाती, लगता अमृत जैसा।
शर्बत-छाछ जो घोल पिलाती, कहीं न मिलता वैसा।
मां मीठे जल का कूप, जाने .......
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, September 15, 2021

मामी जी का 'और बताओ' (हास्य-व्यंग्य)



कालेज से आते प्यास से व्याकुल,पहुंची मामी पास।
बोली- मामीजी ! पानी दीजिए,लगी है जोर से प्यास।

मामी ने पूछा और बताओ,अब क्या है हाल तुम्हारा?
सब ठीक-ठाक कहकर उनसे पानी मांगी मैं दोबारा।

उठते मामी पूछी- और बताओ,मां-पिताजी हैं कैसे ?
तिलमिला कर मैं बोली-सब ठीक ही हैं पहले जैसे।

मामी ने पूछा-और बताओ,पढ़ाई कैसी चल रही है?
मैंने कहा- खूब अच्छे से, धीरे- धीरे निकल रही है।

मामी कदम बढ़ाते पूछा-और बताओ,दीदी कहां है?
मैं बोली-कहीं मुम्बई के आगे, मेरे जीजाजी जहां हैं।

मामी बोली-और बताओ,बहन को नहीं तुम मानती।
और बताओ,बहन कहां रहती है इतना नहीं जानती।

फिर वह पूछी कि और बताओ,भाई क्या कर रहा है?
मैंने कहा-ग्रेजुएशन कर,नौकरी का फार्म भर रहा है।

मामी पूछी और बताओ,फार्म भरता या पढ़ता भी है?
और बताओ,भावी जीवन की राह कोई गढ़ता भी है?

और बताओ,तुम अपने दादा और दादी का समाचार।
बोली मैं दादाजी तो ठीक हैं,पर दादी है थोड़ी लाचार।

पुनः मामी ने पूछा-और बताओ,पास-पड़ोस का हाल।
मामी की तकिया कलाम प्रश्नों से हुआ हाल मेरा बेहाल।

मैं बोली कि सब सानंद है,अब मैं तो घर को चलती हूं।
मामी ने कहा-और बताओ,रुक जाओ पकौड़े तलती हूं।

मैं बोली-बस मांगी थी पानी,नहीं पकौड़े की मुझको चाह।
मामी ने कहा-और बताओ,बिना खाए-पीए पकड़ ली राह।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, September 14, 2021

बदमाश बहू। ( लघुकथा )


तुम्हें परिवार के लोगों के साथ इतना बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए रिदीमा ! एकांत देखकर रेशमी ने अपनी नवेली देवरानी को समझाते हुए कहा।

लेकिन उनलोग हमारे साथ कितना अच्छा व्यवहार करते हैं?रिदीमा ने जेठानी से प्रश्न किया।

लेकिन हम बहू हैं। हमें ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। उन्हें भी बुरा लगेगा और दूसरे लोग भी हमारी शिकायत करेंगे।
मुझे दूसरों की परवाह नहीं।उनका तो काम है बातें बढ़ाना।रही बात घर बालों की तो उन्हें एक बदमाश बहू की आवश्यकता है। अच्छे व्यवहार करने वाले को ये बहुत प्रताड़ित करते हैं।रिदीमा ने दृढ़ता से कहा।आप तो सभी से अच्छा व्यवहार करतीं हैं, सबसे मीठा बोलती हैं,सबका ख्याल रखती हैं।बदले में आपको क्या मिलता है। सिर्फ दुत्कार, फटकार, तिरस्कार । कोई भी आपसे अच्छा से नहीं बोलता।हर वक्त सभी आपको प्रताड़ित और अपमानित करते हैं।हर जगह आपकी शिकायत होती है।यह क्या है ? अच्छी बहू होने का पुरस्कार ?
अपने लिए किसी के मन में प्यार और सहानुभूति पाकर रेशमी का मन भर आया। छलछलाती आंखों से रिदीमा को निहारते हुए कहा-यदि तुम मेरे साथ किए गए दुर्व्यवहारों को दूर करना चाहती हो बस इतना करो कि उनके साथ दुर्व्यवहार करना छोड़ दो।मेरे साथ उनके द्वारा किए गए सारे दुर्व्यवहार और प्रताड़ना तुम्हारी सहिष्णुता और प्यार से धुमिल हो जाएगा।
हां बहू ! उन पर नजरें रख रही और छुपकर उनकी बात सुन रही सासु-मां ने प्रकट होते हुए कहा।
अब ना हम तुम लोग के साथ दुर्व्यवहार करेंगे।ना तुम हमारे साथ। तुम्हारे दुर्व्यवहारों से चार महीने में हमारी हालत खराब हो गई तो चार साल से हमारे दुर्व्यवहार झेल रही बड़ी बहू का दिल कितना बेचैन होता होगा ?
तुम मेरी बदमाश बहू नहीं हो,बल्कि अच्छी बहू हो जो हमारी आंखें खोल दी।
 रश्मि ने देखा दरवाजे के पास उसके साथ दुर्व्यवहार करने वाले देवर -ननद भी अपनी आंखों में पश्चाताप के आंसू लिए खड़े थे।
ससुरजी ने बढ़ते हुए कहा-हां बहू तुमने ठीक कहा। आज समाज को तुम्हारे जैसी बदमाश बहू की नितांत आवश्यकता है। तुमने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाकर और उसका प्रतिकार कर एक सशक्त बहू का फर्ज निभाया है।
तुम्हारे मन में यह हौसला तो है कि ईंट का जवाब पत्थर से देकर दुर्व्यवहार करने वाले को समझाया। वरना बड़ी बहू तो सद्व्यवहार करते-करते थक गई।किसी को इसकी अच्छाइयां समझ नहीं आई।
रेशमी पहली बार अपने ऊपर ससुराल वालों द्वारा किए अन्याय के लिए ग्लानि देख रुआंसी हो उठी। उसने कृतज्ञता भरी दृष्टि से देखते हुए बढ़ कर रिदीमा को गले लगाते हुए कहा-अब तुम भी सबके साथ अच्छा व्यवहार करना रिदीमा।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, September 13, 2021

हिन्द की शान है हिन्दी

हिंदी की शान है हिन्दी

हिन्द की जान है हिंदी,और पहचान है हिन्दी।
लगता देवों के मन से,मिला वरदान है हिन्दी।

भारत मां के माथे की,चमकती-सी है यह बिंदी,
इसकी आन है हिन्दी,इसका प्राण है हिन्दी।

लिपि देवनागरी इसकी,सहजता से समझ आती,
पुरातन भाषा संस्कृत की,सुनो संतान है हिन्दी।

बड़ी ही है सरल भाषा,बड़ा आसान उच्चारण,
खुले मन से इसे बोले,तो लगती शान है हिन्दी।

जब हम बोलते हिंदी,मधुर झंकार करती है,
हमारी गीतों की लगती,सुर-लय-तान है हिन्दी।

करें हिन्दी में हम लेखन,करें हिन्दी में हम गायन,
हम हिन्दी को अपनाएं,यही अभियान है हिन्दी।

कहे कितना बारम्बार,किसी को क्या सुनाएं हम,
हमारे देश का जग में,किया उत्थान है हिन्दी।

हिन्द के कोने-कोने में,बोली जाती यह भाषा,
हमारे देश का गौरव,हमारा मान है हिन्दी।

हमारी है ये जनभाषा,सभी जन शान से बोलें,
हमारी राष्ट्रीय भाषा,अलग पहचान है हिन्दी।

हमारी कामना इतनी,बने यह विश्व की भाषा,
हमारी आन है हिन्दी, और अभिमान है हिन्दी।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, September 10, 2021

गणपति वंदन



गणपति तुम्हारे मंदिर में हम,भजन सुनाने आए हैं।
श्रद्धा की छोटी फुलवारी का,पुष्प चढ़ाने आए हैं।

मस्तक तेरे मुकुट विराजे,सिंदूर शोभे भाल में,
कानों में है कुण्डल तेरे, हार पहनाने आए हैं।

कांधे में है जनेऊ-माला,पीताम्बर है अंग में,
उसके ऊपर रेशम का हम,वस्त्र ओढ़ाने आए हैं।

एक दन्त गजवदन तुम्हारा,लम्बोदर पर सूढ़ है।
लड्डू-मोदक तुमको भाता,भोग लगाने आए हैं।

धूप-दीप,कर्पूर जलाकर,आरती तेरी गाएं हम,
भक्ति-भाव को मन में रख,शक्ति पाने आए हैं।

पार्वती ने तुझे बनाया , शंकर मार- जिलाया है,
तेरी उत्पत्ति- की कथा,दुनिया को सुनाने आए हैं।

तीन लोक कह मात-पिता की परिक्रमा तूने कर डाली।
प्रथम पुज्य तू देव तेरा हम,पूजन करने आए हैं।

बच्चों को बल-बुद्धि देते,भक्तजनों को यश-वरदान,
मन में ऐसी आशा लेकर,हम तुझे मनाने आए हैं।

निर्विघ्न हर काम हो मेरा,विघ्न विनाशक हे भगवान,
दे दो यह वरदान हमें ,यह विनती करने आए हैं।

महाकाय स्वरूप तुम्हारा, दुर्गुण दूर भगाते हो,
तेरे इस स्वरूप को भगवन,ध्यान लगाने आए हैं।

हाथों में कुल्हाड़ी लेकर,भव-बंधन को काट रहे।
हाथ उठा आशीष हो देते,उसको पाने आए हैं।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, September 8, 2021

हरितालिका तीज (गीत)

हरितालिका तीज

लोटा में गंगा जल भर कर
पूजा की थाली हाथ में।
करें सखी शिव-शंकर पूजा,
गौरी मां के साथ में।

बालू की तीन मूर्ती बनाकर,
गंगा जल स्नान करो।
गौरी को ओढ़ाओ लाल चुनरिया, 
भोला के पीताम्बर जी।

गौरी के माँग में सिंदूर लगाकर,
भोला के सिर में चंदन जी।
गौरी के सिर पर टीका बिंदी,
भोला के वेलपत्र जी।

गौरी कोे चमेली फूल चढाओ,
भोला को धतुरा -आँक जीे।
गौरी के खिलाओं पूड़ी गुझिया,
भोला को भाबे भांग जी।

वंदन-कीर्तन आरती गाओ,
बजा-बजा के ताल जी।
दोनो के चरण में शीश नवाकर,
मांगो सभी वरदान जी।

       सुजाता प्रिय'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

हम मां का कहना माने तो.........

हम मां का कहना माने तो

हम मां का कहना मानें तो,हर बात हमारी बन जाए।
हर खुशी मिलेगी जीवन की,मन- प्रसून सब खिल जाए।

मां के दिल में होती माया, है उसने गढ़ी हमारी काया।
उसकी आंचल की छाया,हर बच्चे को है मन भाया।
मां की आंचल की छांव तले,दिल को सुकून कुछ मिल जाए।
हम मां का...................
मां के मन में केवल ममता,है कहीं नहीं इसकी समता।
प्यार नहीं मन में कमता,वात्सल्य कभी नहीं थमता।
मां के हृदय की करुणा को,कोई पार नहीं पाने पाए।
हम मां का कहना.................
मां होती है नाराज नहीं,तीखी उसकी आवाज नहीं।
मातृत्व का कोई ताज नहीं, मां की लोरी में साज नहीं।
मां के चरणों की धूली से,मस्तक का चंदन बन जाए।
हम मां का कहना...................
मां से न कोई भूल होती,बात न उसकी फिजूल होती।
मां की कुछ उसूल होती,हर दुआ उसकी कुबूल होती।
मां सिखाया जो पाठ हमें, लक्ष्य हमें अब मिल जाए।
हम मां का कहना...................
मां देती है हमको शिक्षा,दे गुरु - जनों जैसी दीक्षा।
लेकर हमारी वह परीक्षा,करती है सदा ही समीक्षा।
इसमें अगर उत्तीर्ण हुए,जीवन में सफलता मिल जाए।
हम मां का कहना...................
                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, September 6, 2021

मेरी गुड़िया रूठी है

मेरी गुड़िया रूठी है

छोटा-सा लहंगा सिलबा दो मां!
                   मेरी गुड़िया रूठी है।
सुंदर-सा गहना गढ़बा दो मां!
                   मेरी गुड़िया रूठी है।

इसको न भाती है सुखी रोटी
     अभी तो है यह बहुत ही छोटी।
थोड़ा-सा हल्वा बनबा दो मां!
                  मेरी गुड़िया भूखी है।

अपना मुख न कभी खोलती।
       कुछ पूछूं तो यह नहीं बोलती।
अभी बोलना इसे न आता, 
                   मेरी गुड़िया छोटी है।

बस गुमसुम-सी मुझे देखती।
      मन ही मन जाने क्या सोचती।
शायद मेरी हर बातों को
                मानती यह तो झूठी है।

कैसे तू अम्मा मुझे खिलाती।
         रोज नहाती औ रोज पढ़ाती।
यह न पड़ती,ना ही खाती,
             इसकी हर बात अनूठी है।

तुझ-सा क्या मैं प्यार न देती।
           प्यारा-सा मैं उपहार न देती।
जन्मदिन इसका न आता,
                  मुंह फुला यह रूठी है।

मां इसको तुम जरा मना दे।
           मुझे मनाने का गुर्र सीखा दे।
चाहिए हार-कंगन झुमके,
                    चाहिए इसे अंगूठी है।

इसे चाहिए नया खिलौना,
           छोटा-सा गुड्डा बहुत सलोना।
जिसके संग यह ब्याह रचाएं, 
                       इसलिए तो रूठी है।

               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, September 5, 2021

शिक्षक (दोहा छंद)



शिक्षक हमको देते हैं, विद्या- बुद्धि और ज्ञान।
शिक्षक से हम सीखते,साहित्य,संस्कृति-विज्ञान।।

लक्ष्य-प्राप्ति के लिए, बतलाते हैं हमको  राह।
बिन शिक्षक के जीवन में, मिलता नहीं है थाह।।

हम माटी की अनगढ़ लोई,शिक्षक हैं कुम्भकार।
गढ़ते- घुमाकर चाक पर,देते  हैं सुगढ़ आकार।।

शिक्षा की प्रसाद खिला,बनाते हैं शिष्य गुणवान।
शिक्षक के गुण को अपना,बनता गुण की खान।।

निर्मल मन की दीप जला, देते हैं सदा वे ज्ञान।
ज्ञान प्रकाश फैलाना ही, शिक्षक की पहचान।।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'