Tuesday, August 5, 2025
आनंद वन
आनन्द वन में हिंसक पशुओं का प्रवेश वर्जित था।इसलिए अन्य सभी पशु-पक्ष वहाँ बड़े आनन्द से रहते थे।परंतु पास के वन का एक भेड़िया छुपाते-छुपाते वहाँ प्रवेश कर जाता और अवसर देख छोट-छोटे पशुओं को चट कर जाता।इस कारण सभी छोटे-बड़े पशुओं मे
Monday, August 4, 2025
उम्मीद का आकाश कभी झुकता नहीं
उम्मीद का आकाश कभी झुकता नहीं है ।
हौसला हो मन में तो कदम रुकता नहीं है।
दुनिया टिकी है उम्मीद पर,उम्मीद न छोड़ो।
उम्मीद ले कर्म करने से तू मुख नहीं मोड़ो।
हौसला है मन में तो मेहनत न हो बेकार। ।
इच्छा की छेनी पर मेहनत की हथौङी मार।
मन में रख विश्वास, पर्वत में बनाओ राह।
पर्वत को ढाओ धूल सम,मन में रख चाह।
मानव तुम्हारे मन में यदि इच्छा रहे प्रबल।
तो हर कठिन काम भी, हो जाता है सरल ।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Sunday, August 3, 2025
जय मां दुर्गा
अपने भक्तों की विनती स्वीकार कर लो।
द्वार तेरे खड़ी हूं मां प्यार कर लो।
बेली-चमेली का माला बनाया,
उ उङहुल फूल लगा है सिंगार कर लो.
द्वार तेरे ..............
दाख-मुनक्का का भोग लगाया,
संग नारियल-छुहाङा आहार कर लो।
द्वार तेरे ...............
कंचन थाली कपूर की बाती,
आरती उतारें स्वीकार कर लो।
द्वार तेरे................
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
माता रानी की विनती
माता रानी की विनती
करुँ नमन मैं बारंबार,कष्ट से दो मांँ उबार।
भँवर में नैना मेरी,कर दे माँ उस पार।।
निश दिन करुँ पुकार,हृदय से करुँ गुहार,
भंवर में नैया मेरी......
जीवन नैया तुम ही खेवैया,
अब तो पार करो हे मैया,
सारे जगत की तुम रखबैया,
तुझ बिन कोई नहीं खेबैया।
मुझ पर भी कर उपकार ।
दुनियाँ मेरी दे संवार,
भंवर में नैया मेरी......
बिगड़ी मेरी बना दो हे माता !
हे जग-जननी हे जगमाता।
द्वार तुम्हारे जो भी है आता।
पूर्ण मनोरथ सब सुख पाता।
आई हूंँ मैं तेरे द्वार,
मुझको भी दे अपना प्यार ।
भंवर में नैया मेरी......
मांँ मैं तेरे चरणों की दासी।
आज मिटा दो सभी उदासी।
तेरी दया की मैं अभिलाषी।
तेरी कृपा की हूँ प्रत्याशी।
कर रही मैं पुकार,मेरी भी सुनो गुहार।
भँवर में नैया मेरी.......
आई हूँ मैं तेरे द्वार.......
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Wednesday, July 30, 2025
शिव शंकर का ध्यान (महाश्रृंगार छंद )
तेरा मन होता है अधीर।
जपो तुम शिव शंकर का नाम।।
चढ़ाओ शिव को गंगा नीर।
बनेंगे बिगड़े सारे काम।।
करो नित शिव का आलय साफ।
चढ़ाओ आक-धतूरा फूल।।
करेंगे भोला उसको माफ।
हुआ जो जीवन में कुछ भूल।।
नहाकर हर-हर बम-बम बोल।
चढ़ाओ बेलपत्र तुम रोज।।
लगाओ चन्दन-रोली घोल।
चढाओ कनेर कलियांँ खोज।।
लगाओ मेवा-मिश्री भोग।
करो नित शिव-शंकर का ध्यान।।
मिटेंगे तेरे सारे रोग।।
करेंगे शिव तेरा कल्याण।।
चढ़ाओ शिव के माथे भांग।
जलाओ धूप दीप कर्पूर।।
अभय वर भोला से लो मांग।
जटाधर वर देंगे भरपूर।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Sunday, July 27, 2025
शिव के मंदिर में भक्त हजार हैं
शिव के मंदिर में भक्त हजार हैं,
आज सोमवार है जी आज सोमवार है।
सभी मिलकर करते जयकार हैं,
आज सोमवार है जी.,,,,,,,,
आँक-धतुरा-भांग शिवजी को प्यारा है।
बेलपत्र ,सम्मी पत्र लगता उन्हें न्यारा है।
शिव जी के गले में सर्प की हार है।
आज सोमवार है जी....
शिवजी के मस्तक पर चमक रहा चाँद है।
डिम-डिम डमरू करता निनाद है।
इनके जटे से बहती जलधार है
आज सोमवार है जी..........
औढरदानी शिव जी सभी को वर देते हैं।
भक्तों के दुखड़े सुन हर लेते हैं।
शिव जी को भक्तों से सुनो बड़ा प्यार है।
आज सोमवार है जी....
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Friday, July 25, 2025
प्रदीप छंद
तुम जग के हो पालक भोला, तिरछी तेरी चाल है।
जटे में तेरे गंगा शोभे,चंदा तेरे भाल है।
ललाट शोभे रोली -चंदन, भभूत तेरे गाल है।
कान में लटका बिच्छू -गोजर,गले सर्प की माल है।
हाथ में लेते त्रिशूल-डमरू, दूर भागता काल है।
मुट्ठी बांध कमण्डल रखते,तन पर मृग की छाल है।
भांग-धथुरा भोग तुम्हारा,खाते भरकर थाल है।
पीते हो तुम विष का प्याला,
बसहा पर चढ़ विचरण करते,
तीन लोक की रक्षा करने,आते बनकर ढाल हैं।
भूत-प्रेत तेरे संग रहते, नाचते देकर ताल हैं।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Monday, July 21, 2025
जागो भाई
जागो भाई (ताटंक छंद)
१६-१४ पर यति
हुआ सवेरा,मिटा अंधेरा, अब तुम जागो भाई रे !
देखो सूरज लेकर आया,यह रक्तिम तरुणाई रे।
कलरव करते पक्षिगण देखो,चहक-चहक कर गाते हैं।
मिश्री-सी मीठी बोली में, मधुर तान सुनाते हैं।
गौशाले में गैया प्यारी,चाट रही है बछड़े को।
खुश होकर वह देख रही है, उसके भोले नखड़े को।
मंदिर में बजते घंटारव, गूँज यहांँ तक आती है।
भक्त सभी मिल नाच रहे हैं, सखियाँ मंगल गातीं हैं।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Sunday, July 20, 2025
शंकर का दरवार (ताटक छंद)
शंकर का दरबार (ताटक छंद) १६,१३ पर यति
देखो लोगों कितना सुंदर, शंकर का दरबार है।
चमचम मानिक व मोतियों का, लटका बंदनवार है।।
देखो लोगों........
गले शिव के सर्प की माला, त्रिशूल शोभे हाथ है।
फूल औ बेलपत्र चढ़ा है, चंदन कुमकुम माथ है।
मस्तक पर चन्द्रमा विराजे,जटा में गंग -धार है।।
चम-चम मानिक-मोतियों.............
भोग लगा है भांग-धथूरा, सुंदर सोने - थाल में।
बोल रहे सब हर-हर, बम-बम,एक सुर और ताल में।
भेद-भाव मन में ना कोई,हम सब शिव परिवार हैं।
चम-चम मानिक-मोतियों...............
नित्य यहांँ पर भक्त-लोग मिल, करते वंदन गान हैं।
ताल मिलाकर पूजन-अर्चन,करते एक समान हैं।
गाते सब मिल मंगल -वंदन, करते जय जयकार हैं।
चम-चम मानिक-मोतियों.................
ध्यान लगाकर जो जन आते, शंकर के दरबार में।
मनचाहा वर वे हैं पाते, शिव से पहली बार में।
शिव-शंकर हैं औढरदानी, महिमा बड़ी अपार है।
चम-चम मानिक-मोतियों............
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Saturday, July 19, 2025
संगति का फल। एक मेले में एक शिकारी दो तोते था बेच रहा। एक का दाम पचास रुपए,एक का केवल एक रुपैया । एक राजा अचरज से पूछा दाम में इतनी अंतर कैसे।शिकारी बोला-जांँच कर देखें,फिर दीजिएगा मुझको पैसे। राजा ने पहले लाकर दोनों तोते को आजमाया। बारी-बारी से अपने सायन-कक्ष में दोनों को रखवाया। नींद खुली तो पहला तोता चिल्लाकर था बोल रहा। उठ रे मूर्ख निकम्मा!आलसी जैसा पड़ा है क्या। चल जल्दी से नकाब लपेटकर दूर देश में जाओ। धनिकों को बंदूक दिखाकर खजाना लूट कर लाओ। दूसरे दिन दूसरे तोते की बड़ी कान में मधुर आवाज।सुप्रभातम सुप्रभातम भोर हुई उठिए महाराज। स्नान ध्यान कर जल्दी से आप सभा में जाएंँ। समस्या सुनकर जनमानस के समाधान कुछ बतलाएंँ। आकर शिकारी ने बोला दोनों तोता एक मांँ की हैँ संतान। दोनों की मीठी कड़वी बोली संगति का है परिणाम। पहले तोता डाकुओं के अड्डे के पास रहता था। दूसरा तोता एक मुनि के आश्रम के निकट रहता था । जब मैंने दोनों को पकड़ा और सुना दोनों की बोल। एक का दाम एक रुपैया रखा,दूसरे का मोल-अनमोल। सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Tuesday, April 1, 2025
जगत जननी जगदम्बा (विधाता छंद आधारित)
जगत जननी जगदम्बा
विधा -विधाता छंद
जगत जननी सुनो विनती,तिहारे द्वार आई हूँ।
चमेली फूल की अम्बे, बनाकर हार लाई हूंँ।।
उठाकर हाथ से माता,गले में डाल दूंँ तेरे।
सजा दूंँ हाथ में चूड़ा,जड़ा कंगन लगा घेरे।।
सितारे-मोतियों से मैं,सजाई चुन्नरी तेरी।
सजा दूँ आज सिर पर मैं,जगी इच्छा यही मेरी।।
सजाऊँ मांग में टीका,लगाऊँ केश में गजरा।
सजाऊंँ माथ पर बिंदी,लगाऊँ आँख में कजरा।।
लगाऊँ भोग किसमिस का,सुगंधित खीर औ मेवा।
जलाऊँ स्वर्ण का दीपक,करूँ आठों पहर सेवा।।
उसी मंदिर सदा जाऊंँ, जहांँ मैया सदा राजे।
भजन औ आरती गाऊंँ, बजाऊँ ढोल औ बाजे ।।
चरण तेरे पकड़ अम्बे,नमन में हाथ जोड़ूंँ मैं।
मुझे वरदान ऐसा दो, ग्रहण से मुख न मोड़ूंँ मैं।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Tuesday, March 25, 2025
अंतिम प्रतिक्षा
अंतिम प्रतीक्षा
मोबाइल से कहती थी
माँ मैं आ रही हूँ।
पहुंचती थी जब भी
नहा-धोकर इंतजार
करती मिलती थी माँ।
खबर आया माँ नहीं रही।
मैंने कहा आ रही हूँ।
पर रात में चलना मुश्किल
रात की सारी गाड़ियाँ ...
सुबह पहली गाड़ी से चल
दोपहर पहुंँच जाउँगी,
नियत समय पर पहुंँच गई,
भारी भीड़ भरी थी घर में
भक्ति-गीतों का गायन।
बीच आंँगन में दक्षिण मुंँह
कुर्सी पर सज-धजकर
आंँखें मीचे बैठी, मेरी माँ
आखिरी बार मेरी प्रतीक्षा
कर रही थी ममत्व लिए।
लेकिन न कुछ बोल पाई
न आशीष देने हाथ उठाई।
क्या जाने रुदन सुन रही थी
लेकिन चुप भी नहीं करा पाई।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Wednesday, March 19, 2025
स्वर्ण - विहान
हुआ सवेरा, छटा अँधेरा
आया स्वर्ण- विहान।
नीड़ में सोयी चिड़िया जागी,
गायी स्वागत- गान।
रंग - बिरंगे फूल खिलें है,
मुख पर ले मुस्कान।
रंग- बिरंगी उड़ी तितलियाँ,
कर रहे रस पान।
कली- कली पर भौरें गाते।
छेड़ मनोहर तान।
गैया जागी बछड़ा जागा,
शोभ रहा है बथान।
आओ हम सब भी कर लें,
कुछ नवल संधान।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Saturday, March 15, 2025
वृद्ध दिवस
जय माँ शारदे 🙏🙏
वृद्ध-दिवस (लघुकथा)
"कोई है "?
"बहू......"
"बेटी सुधी ..."
"जरा मेरी करवट तो बदल दो ।" "एक ही करवट सोये.............."
क्या माँ ! हर समय कुछ न कुछ कहती रहती हो। तुम्हें तो पता ही है कि हमलोग वृद्धाश्रम जाने की तैयारी........"
"बेटी कोई तो मेरे पास......"
"कौन रहेगा माँ जी ?"आज वृद्ध दिवस है। थोड़ा वृद्धाश्रम के लोगों कों भोजन - वस्त्र भी तो दान कर दें।"
"थोड़ा हमें भी तो पुण्य कमाने का समय दें।"
"कुछ ओढ़ा दो बहू! ठंड......"
"कोई ठंड -वंढ नहीं...
जब से दान के कम्बल लाई हूँ।आपकी नजर.."
लेकिन यह उनके लिए है जिनके बच्चे मांँ-बाप को घर से......
आपको तो हमलोग घर में..."
"अरे जल्दी भी करो तुमलोग !
एक तो माँ को समझ नहीं है कि.......
" जब कोई अच्छे कार्य के लिए निकलते हैं तो यह अपना रोना.... ।"
और तुमलोग भी इनकी फिजूल की बातों में..........
बेटे-बहू,बेटियों को बाहर निकलते देख संकोच बस माँ कहने का साहस भी नहीं जुटा पाई कि.......
पेट में ममोड़े उठे
फिर...!!!
घर के मुख्य द्वार पर ताले लगाने की आवाज में माँ के .......
फिर फाटक लगने और गाड़ी स्टार्ट..........
बेचारी माँ ने ......
अब मल के दुर्गंध और उससे हुए गीले कपड़ो के साथ ही दिन..........
किसी तरह टीवी का रिमोट हाथ लग गया।
......तिनके का सहारा ...
टीवी पर वृद्धाश्रम का समाचार... माँ वृद्धाश्रम के वृद्धों को भाँति-भाँति के भोजन- वस्त्र का दान ,प्यार दुलार मिलते देख सोच रही थी........काश..
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Sunday, March 9, 2025
हिंसक पर विश्वास नहीं
एक बार जंगल की राह में।
एक बाघ था बंद पिंजरे में।
राहगीरों को रोकर कहता।
खोल दो कोई पिंजरा मेरा।
बहुत दिनों से मैं हूँ भूखा।
बिन खाये-ही मर जाऊंगा।
पंडितजी को आ गयी दया।
बोले-पर तेरा भरोसा क्या।
पिंजरे से बाहर तू आओगे।
झट मार मुझको खाओगे।
कहा बाघ विश्वास करो तुम।
बेकार मुझसे नहीं डरो तुम।
नहीं खाऊँगा तुझको मार।
मानूँगा जीवन भर उपकार।
मरते की जान तू बचाओगे।
तुम पुण्य बहुत कमाओगे।
पंडितजी तब कर विश्वास।
पहुँच गये पिंजरे के पास।
खोले पिंजरा हाथ बढ़ाकर।
निकल बाघ पिंजरे से बाहर।
कहा-तुझे मैं अब खाउंँगा।
अपनी मैं भूख मिटाउँगा।
पड़ी खतरे में उनकी जान।
पछताये बाघ का कहना मान।।
नजर घुमाई इधर -उधर।
एक गीदड़ आया नज़र।।
पंडित जी ने उसे बुलाया।
सारी बातों को समझाया।।
बोला-गींदड़ विश्वास न होता।
पिंजरे में भी बाघ है होता।
शैतान बाघ ताव में आकर।
दिखाया पिंजरे में घुसकर।
कहा गीदड़ -पंडित जी से।
पिंजरा बंद होता है कैसे?
पंडितजी ने पिंजरा लगाया।
गीदड़ को विश्वास दिलाया।
कहा गीदड़ मुझे है विश्वास।
पिंजरे में बंद होता है बाघ।
जैसे आपको धोखा देकर।
निकला है पिंजरे से बाहर।
वैसे ही इसे भी बहलाया।
वापस पिंजरे में पहुँचाया।
विश्वास न हिंसक पशुओं पर।
खाएगा कैसे धोखा देकर।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Friday, March 7, 2025
होली गीत
जय माँ शारदे 🙏 🙏
होली गीत होलास्टक हेतु
मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री ! २
फूल -फूल पर भौर उड़त हैं,
बीतत फागुन मास सखी री!२
क्षीर समुंदर विष्णु जी बैठे,
शंख में टेरे तान सखी री !
ऐसे टेर सुनाबत विष्णु,
शंख से उड़त गुलाल सखी री !
उड़कर रंग गया लक्ष्मी की चुनरी,
और रंगा गोरे गाल सखी री!
मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री!
मधुवन में श्रीराम खड़े हैं,
धनुष से छोड़े तीर सखी री!
ऐसे तीर चलाबत रघुवर,
तीर से उड़त गुलाल सखी री !
उड़कर रंग गयी सीता की साड़ी,
और रंगा गोरे गाल सखी री।
मंद-मंद समीर चलत हैं ,
फूल खिले कचनार सखी री!
यमुना के तीर में कृष्ण कन्हैया,
वंशी में छेड़े तान सखी री!
ऐसे वंशी बजाए कन्हैया,
वंशी से उड़त गुलाल सखी री!
उड़कर रंग गयी राधा की चोली,
और रंगा गोरे गाल सखी री!
मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री!
कैलाश गिरी पर बैठ महादेव,
डम-डम डमरू बजाबे सखी री !
ऐसा डमरू बजाबे सदाशिव,
डमरू से उड़त गुलाल सखी री!
उड़कर रंग गया गौरा की चुनरी,
और रंगा गोरे गाल सखी री!
मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री
फूल -फूल पर भौर उड़त हैं,
बीतत फागुन मास सखी री।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Thursday, March 6, 2025
संस्कार (लघुकथा)
जय माँ शारदे 🙏🙏
संस्कार (लघुकथा)
मन बहुत घबराता है सिम्मी की......!
काहे खातिर.........?
तुम तो कुछ समझती ही नहीं। अरे हमारी बेटियांँ जवान हो गई। आजकल के छोरों के रंग-ढंग तो देख ही रही हो । छोकरियों को देखते ही किस कदर.........
।
उनकी नादानियों की सजा हम अपनी बिटिया को क्यों..........
अरे हम उन मनचलों को रोक नहीं सकते । पर,अपनी बिटिया को तो घर में सुरक्षित.........।
हांँ-हांँ बेटियाँ ही ना बलि का बकरा हो सकती.......।
बेटों को तो छुट्टा साढ़..........
अरे हम यह नहीं कहते कि बेटों को.....
पर बिटिया को समझ कर घर में...........
हमें बिटिया को समझा कर घर में नहीं.........
बेटों को समझाकर बाहर भेजना है कि लड़कियों के साथ किसी भी तरह की.............. पाप है जैसे तुम्हारी मांँ-बहन की आबरू है ।वैसे ही पराई लड़कियों और........।
अपनी मांँ- बहन की तरह अन्य लड़कियों की सुरक्षा भी तुम्हारी........।
तब देखना हमारी बिटिया भी सुरक्षित और बेटे भी व्यवहारिक और समझदार..........।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Wednesday, February 26, 2025
जाएँ बोल कहाँ हम
अंध कक्ष से झांक रही मैं,
भारत का रूप निराला।
नव भारत के स्वतंत्र रूप में,
सबका मुंँह है काला।
भारत माँ बैठी सिसक रही
नहीं है कोई रखवाला।
रक्षक ही इसको लूट रहे,
करते गड़बड़-घोटाला।
एक स्तम्भ है बेकारी का,
एक पूर्ण भ्रष्टाचारी का।
ये दोनों शक्ति भूज है,
रिश्वतखोर अधिकारी का।
दोनों के बीच दबा हुआ है,
हम नवयुवकों का गर्दन।
मन कुण्ठित जीवन असुरक्षित,
बस रहा भविष्य का चिंतन।
नव भारत के नव वृंद हम,
छुपा रहे हैं मुखड़ा।
यहाँ सभी हैं एक सरीखे,
किसे सुनाएंँ दुखड़ा।
घोटाले कर लूट रहे हैं,
भारत माँ को रक्षक।
सिसक रही बैठी माँ मेरी,
बेटे बन बैठे हैं भक्षक।
त्रस्त-भविष्य की असह पीड़ा से
व्याकुल हो रहै हम।
भ्रष्ट हो गया अपना ही घर,
जाएँ और कहांँ हम।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Thursday, February 20, 2025
श्रद्धा कर्म
श्रद्धा कर्म
आज स्वर्गीय पूर्णिमा देवी जी का बारहमा ......।
सात गाँव की भोज व्यवस्था ........
एक सौ आठ ब्रहामणों का वस्त्र -छंदा सहित भोज........
स्वजन तथा दूर-दूर के नाते-रिश्तेदार न्योते पर पधारे हैं।
अपना घर तो क्या पास-पड़ोस के घरों में मेहमानों को ठहराया गया है।सभी के रहने एवं खाने पीने की उत्तम व्यवस्था.....भोज के सारे भोजन पूर्णिमा देवी के पसंद के बनाए जा रहे ............।
सेज दान का कार्यक्रम........। बड़ी बहू ने सुंदर सा दीवान पर मुलायम तोसक- तकिया,मसनद और सुंदर कीमती चादर लगवाते हुए कहा -"मांँ जी को दीवान का बहुत शौक था इसलिए मैंने दीवान......।"
बड़े बेटे ने श्रद्धा पूर्वक सोने की अंगूठी चढ़ाते हुए -"माँ ने अपने सारे गहने बेचकर मुझे इंजीनियरिंग पढ़ाया इसलिए मैंने माँ के लिए यह अँगूठी खरीदी है।"
मंझली बहू कीमती श्रृंगार-प्रशाधन रखते हुए -"माँ जी को सजने-संवरने का बहुत शौक था। इसीलिए मैंने श्रृंगार...... ।"
मंझला बेटा नोटों से भरा बटुआ रखते हुए -" माँ-ने घर-खर्चे में कटौती कर मुझे शिक्षा दिलवाई इसलिए एक महीना का पगार मैं माँ के नाम..........।"
सभी के मुँह से वाह-वाही सुन बेटियांँ भी कहाँ चुकने वाली थीं। बड़ी बेटी पायल और बिछिया तथा छोटी बेटी मंगलसूत्र और सिंदूर की डिबिया चढ़ाती हुईं बोली -"माँ ने हम दोनों की शादी में खेत,आधा घर और बगीचे बेचकर दोनों दामाद इंजिनियर लाया हमने भी माँ के लिए यह सामान..........."
उनकी ननद, देवरानी,बहनें,भाभी व अन्य रिश्तेदारों के तरफ से भी कपड़े, श्रृंगार -प्रसाधन मिठाइयांँ,फल मेवे इत्यादि.........।
उनके सबसे छोटे बेटे के पास जाकर चाचाजी ने सलाह देते हुए कहा -"बेटा ! तुम भी अपनी कमाई का कुछ अंश माँ के नाम दान कर दो ,माँ को स्वर्ग में सुख मिलेगा।"
लेकिन वह अफसोस भरी नजरों से दान के सारे सामानों को देखता रहा।
" क्यों तुम नहीं दोगे कुछ ?"
बड़े भाई ने प्रश्न किया तो पिताजी ने कहा -"नहीं!"
"क्यों नहीं ?" दोनों बड़े भाइयों के मुँह से एक साथ निकाला।
"क्योंकि यह श्राद्ध कर्म में नहीं श्रद्धा कर्म में ...............।"
"श्रद्धा कर्म ?"
"हाँ श्रद्धा-कर्म ।तुम्हारी माँ ने दुःख सहकर, जमीन-जायदाद,जेवर गहने बेचकर तुमलोग को पढ़ाया-लिखाया, अच्छे घर में ब्याह किया इसलिए तुम सभी ने मरने के बाद दिखावा करने हेतु...........।
लेकिन जब इतने दिनों से माँ बीमार थी तो इलाज करवाने का भी समय और पैसे नहीं थे.....।माँ के अंतिम दर्शन.......
लेकिन मेरा यह बेटा सीमित कमाई में भी अपनी माँ का इलाज-पानी ,सेवा -सुश्रुषा बड़ी श्रद्धा और प्रेम से किया। जिंदगी भर तुम्हारी माँ टूटी खाट पर सोती रही और उसपर से ही गिरने के कारण उसकी कमर की हड्डियां टूट गयीं तब कोई उसे एक खाट-चौकी तक नहीं दिया ।यही एक महीने का वेतन उस दिन दिया होता तो शायद उसका अच्छे-से इलाज....
यही मेवे-फल उस दिए होते तो जीते जी उसकी आत्मा तृप्त होती।अब मरने के बाद इन सामानों को दान का ढकोसला और.............. ? "यदि किसी को ज्यादा श्रद्धा और प्रेम दिखाना है तो उसके जीवन में करो , मरने के बाद वह व्यक्ति स्वयं इस आकांक्षाओं से मुक्त हो जाता है।सारे दान-दक्षिणा, भोज-भात लोग समाज के दिखाबे के लिए करते हैं।" इसलिए -"मान करो दान नहीं।श्रद्धा में विश्वास करो श्राद्ध में नहीं।"
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
ओ माँझी
ओ माँझी
ओ मांझी ! ओ मांझी!
आजा मेरे प्यारे देश में।
बार-बार मैं तुझे बुलाऊँ,
विनती के संदेश में।
ओ मांझी! ओ मांझी!
इस देश की है नाव पुरानी।
पुरवाई बहती बड़ी तुफानी।
क्या बैठा रहेगा तू जग में?
बस पत्थर के वेश में।
ओ मांझी! ओ मांझी!
तुझ बिन नाव डगमग डोले।
तुम न आते,न कुछ ही बोले।
पतवार तेरे हाथ में है तो,
बैठा क्यों परदेश में?
ओ मांझी! ओ मांझी !
भाई-बंधु आपस में झगड़े।
कोई दुर्बल है,तो कोई तगड़े।
क्या बोलोगे नहीं कभी तुम,
जन-मन के इस क्लेश में।
ओ मांझी! ओ मांझी!
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Wednesday, February 19, 2025
मैं तेरी हमराज़ हूँ ( गज़ल )
तुम मेरे सरताज हो और मैं तुम्हारी लाज हूंँ।
तुम ही मेरी जिंदगी हो, मैं तेरी हमराज हूंँ।
सज रही महफ़िल यहांँ,गायकी के वास्ते,
तुम मेरी संगीत बन जा,मैं तुम्हारी साज हूंँ।
हो रहा है गान अब, हम भी मिलकर गाएंँगे,
तुम हमारी गीत बन जा, मैं तेरी आवाज़ हूंँ।
मेरे सुर में सुर मिला, साथ सरगम लो बजा,
तुम मेरे आलाप हो और,मैं तेरी अंदाज हूँ।
देखो अब सारे जहांँ में, प्यार का सम्राज्य है,
तुम यहांँ सम्राट बन जा, मैं तुम्हारी ताज हूंँ।
मेरे मन में उठ रही,पूरी कर दो कामना
तुम मेरे मन भेद रख लो,मैं तुम्हारी राज हूँ।
खुशनुमा लगता जहां,जब तुम्हारा साथ हो,
संग मेरे हर कल रहोगे,संग तुम्हारे आज हूंँ।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Tuesday, January 28, 2025
चोट )लघुकथा/
चोट (लघुकथा)
पत्नी की तीखी बोली से संजीव का मन बड़ा आहत था। इतनी बेरूखी से सबके सामने डांँटेगी । यह तो कभी उसने सोचा..........
क्या हो गया उसे ?
इतना भी नहीं सोंचा ऐसे अपमान भरे लहजे से मेरे दिल पर.......
यदि मैं सबके सामने उसे ऐसे ही...............?
करते तो हो........ हमेशा... .....
हर जगह.........हर समय
बडो़ं के सामने......
छोटों के............सहेलियों .......
पडोसियों........परिवारों ......
सहकर्मियों ..........नौकरों.....
उसने एक बार..........
अपमान से दिल लहू-लुहान........
लेकिन वह हमेशा अपमान का घूट पीती है ।तो........... ?
तेरे जैसा उसका दिल..........? नहीं- नहीं! मुझे भी........। उसके सम्मान का...............।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Monday, January 20, 2025
नृत्य गीत
नृत्य गीत
मोर नाचे, मोर नाचे, मोर नाचे।2
सर र सर र सर सर सर। 2
झूम-झूमकर, झूम-झूमकर, झूम-झूमकर।
मोर नाचे.............
भारत की भूमि पर मोर नाचे।
हिमालय की चोटी पर मोर नाचे।
मोर नाचे...........
ता ता थै थै, ता ता थै थै
ताक धिन धिना धिना
ता ता थै थै ता
गंगा की तट पर मोर नाचे।
शांति निकेतन पर मोर नाचे।
धिनकिट-धिनकिट धा
धा धा धिनकि धा
धा धा ,धा धा, धा
आम की डाली पर मोर नाचे ।
कमल के फूल पर मोर नाचे।
ता ता तैयम तै तै ता आम।
ता ता, ता ता, ता ता,ता
ताक तुन, धुन धुन धा।
शिशु मंदिर पर मोर नाचे।
माँ सरस्वती की वीणा पर मोर नाचे।
धा धिन, धिन धिन धा
धिन धिन, धिन धिन धा
तत् तत् थुन थुन दिग्दा दिग् दिग् तै
दिग्दा दिग् दिग् तै
दिग्दा दिग् दिग् तै 2
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Saturday, January 18, 2025
सात रंग है घोला
सात रंग है घोला
सात रंग की ओढ़ चुनरिया,
सात रंग का चोला।
भारत को रंगीन बनाने,
सात रंग है घोला।
हाँ जी हाँ हमने घोला,
मिलकर घोला, सात रंग है घोला।
रंग बैंगनी💜 कहता है
सारे प्राणी एक समान।
आसमानी रंग कहता है
स्वतंत्रता अपना है अभिमान।
भेदभाव मिटा देता है,
मिलकर रंग यह नीला 🔵।
भारत को रंगीन..............
हरा 💚 हरियाली फैलाता है,
केसरिया बल बन जाये।
लाल🔴 रंग है भारत माँ का
जग में मान बढ़ा जाए।
सुख-समृद्धि को सदा बढाए,
अपना रंग यह पीला💛।
भारत को रंगीन...........
सात रंग की............
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Thursday, January 16, 2025
रघुपति राघव राजा राम
रघुपति राघव राजा राम।
पतित पावन सीता-राम।
ईश्वर अल्लाह तेरे नाम।
सबको सुम्मति दो भगवान्।
गाँधी के हम तीन बंदर।
छल-कपट नहीं मन अंदर।
रघुपति...........
मुंह बंद हम अपना रखते।
बुरी बात हम कभी न कहते।
रघुपति............
कान बंद रखते हम भाई।
कभी न सुनते कोई बुराई।
रघुपति..............
आँखें बंद हम रखते हैं।
बुरा कभी नहीं देखते हैं
रघुपति...............
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Saturday, January 11, 2025
छोटा मुँह बड़ी बात
छोटा मुँह बड़ी बात
भाई मानो तुम मेरी बात।
मत कर छोटा मुंँह से बड़ी बात।
मत कर छोटा मुँह............
नहीं बडो़ से कभी मुंँह लगाना।
नहीं उनके आगे गाल बजाना।
बुरा मत बोलो कभी अठात।
मत कर छोटा मुंँह........
बड़े लोगों का मत करो निरादर।
मधुर बोली बोलो तुम सादर।
झूठ न दो किसी को मात।
मत कर छोटा मुँह........
तीखी बोली कभी न बोलो।
बोलने से पहले मन में तोलो।
दुखी न हो उनका ज्जबात ।
मत कर छोटा मुंँह..............
सुजाता प्रिय समृद्धि'
Tuesday, January 7, 2025
भगवान भला करना (माहिया छंद)
माहिया छंद
भगवान भला करना
मेरे संकट को
तुम आकर अब हरना।
तेरे दर आए हैं।
चाहत मन में हम
कुछ लेकर आए हैं।
दुनिया दीवानी है।
कुछ वर पाने की
मन अपने ठानी है।
तुम जग अधिकारी हो।
झोली भर मेरी,
तुम दानी भारी हो।
सब हाल सुनो मेरी।
मेरे दुःख हर लो
तुम करो नहीं देरी।
स्वीकार करो विनती।
भक्तों में अपने
मेरी तुम कर गिनती।
नित टेकूं सिर अपना।
पूरण कर दें तू
है मेरा जो सपना।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
गणेश वंदना
गणेश वंदना (हरि गीतिका छंद)
हे गजानन, चढ़ मूषक वाहन, गृह आप मेरे पधारिए।
प्रारंभ किया जो काज मैंने,आप उसको संवारिये।।
आये यदि कोई विघ्न तो,प्रभु आप उसको टालिए।
कोई बिगड़े बात तब,प्रभु आप उसको संभालिए।।
आपके चरणों में प्राणि,जब झुकाता माथ है।
आशीष हेतु आपका,उठता सदा ही हाथ है।
आप ही शुभ काज करते,आप दीनानाथ हैं।
जिनका न कोई साथ देता,आप उनके साथ है।
आपके पग को पकड़ हम,विनती करते आज हैं।
हम जो मुख से बोलते ,यह हृदय की आवाज है।।
अब आपके ही हाथ में ,भगवन् हमारी लाज है।
आपसे न है हमारा,छुपा हुआ कोई राज है।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Friday, January 3, 2025
गांधी जी के तीन बंदर
रघुपति राघव राजा राम।
पतित पावन सीता-राम।
ईश्वर अल्लाह तेरे नाम।
सबको सुम्मति दो भगवान्।
गाँधी के हम तीन बंदर।
छल-कपट नहीं मन अंदर।
रघुपति...........
मुंह बंद हम अपना रखते।
बुरी बात हम कभी न कहते।
रघुपति............
कान बंद रखते हम भाई।
कभी न सुनते कोई बुराई।
रघुपति..............
आँखें बंद हम रखते हैं।
बुरा कभी नहीं देखते हैं
रघुपति...............
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Thursday, January 2, 2025
नववर्ष
नववर्ष (सवैया छंद)
आगत का सब स्वागत ले कर,
आज सभी खुश होकर भाई।
मान अभी अपने मन में सब,
बीत गया अब ले अंगड़ाई।।
वर्ष नवीन अभी फिर सुंदर,
वर्ष यही अब हो सुखदायी।
ईश मना सब शीश झुकाकर,
मांँग सभी मन से वर भाई।।
मास बिता कर जो तुम बारह,
आगत वर्ष रखें पग प्यारे।
कर्म करो सब नेक तभी यह,
वर्ष हमार रहे सब न्यारे।।
नेक किये जब काम सभी तब,
साथ रहे सुर पांँव पसारे।
कर्म सभी चित में रखते तब,
ही खुश हैं भगवान हमारे।।
आ अब भूल गिले-शिकवे हम,
आपस में निज हाथ मिला लें।
जो जन रूठ गये उनको भी,
पास बुलाकर आस दिला लें।।
आज नया दिन है यह सुंदर,
प्यार भरा मधुमास मना लें।
हैं नव - रुप सजा यह सुंदर,
आ सबको हम पास बुला लें।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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