Tuesday, October 7, 2025

गणेश वंदना

गौरी मां के नंदना को बार-बार वंदना।
बार-बार वंदना,हजार बार-बार वंदना।
गौरी मां के नंदना................
माथे मुकुट शोभे,गले में मोती माला।
अंग पीताम्बर  है कांधे पर दुशाला।
हाथ गौरी सुत का शोभ रहा कंगना।
गौरी मां के नंदना.............
एक दांत,चार हाथ, वदन बड़ा भारी।
सूप-कान, सूढ-नाक, मूष है सवारी।
लिडार पर देखो,चमक रहा चंदना।
गौरी माँ के नंदना...............
लड्डू-मोदक खाते हैं,



Sunday, September 28, 2025

माता कात्यायनी

जय माता कात्यायनी ( विजया घनाक्षरी)

है चार भुजाओं वाली,
    ले  कमल फूल वाली,
       कात्यायन की बिटिया,
            कात्यायनी कहलाई ।

जय माता कात्यायनी,
      शीघ्र हो फलदायिनी,
          दुर्गा  का  षष्ठम रूप,
              लेकर है माता आयी।

महिमा   तेरी  अनूप,
    समझे  न देवा- भूप,
        ले कर बालिका रूप,
            कात्यायन घर आयी।

सुनो दुनिया के लोग,
    रलगाओ मधु का भोग, 
          होबे    नहीं   चर्मरोग,
               माताजी है बतलाई।

                     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, September 21, 2025

जनम लिए नन्द लाल (श्रीकृष्ण भजन )

जन्म लिए नंद लाल,बधाई  भारत को।
यशोमती के लाल,बधाई..................
यमुना तट पर,सुबह-सबेरे,
मुरली-धुन में राग बिखेरे, 
छेङे सुर-लय-ताल,बधाई..................
गैया चराकर वन-उपवन में,
भरे जन-जन के वे मन में,
गौ पालन की चाल,बधाई..................
अर्जुन के सारथी बनकर, 
गीता का उपदेश सुनाकर,
मन से संदेह निकाल,बधाई................
भरी सभा में चिर को बढाए।
वे द्रौपदी की लाज बचाए।
सुनकर उनकी हाल, बधाई...............
गिरी उठाकर छत्र बनाए।

Thursday, September 18, 2025

अम्बे माँ की चुनरिया

लहर -लहर लहराए रे अम्बे माँ की चुनरिया।
मैया की चुनरी में गोटा लगा है,हाँ गोटा लगा है।
मोती की लरियांँ सजाओ रे अम्बे माँ.........
मैया की चुनरी में सितारा जड़ा है,हाँ सितारा जड़ा है।
लड़का भी उसमें बिठाओ रे, अम्बे माँ........
मैया की चुनरी में मोती लगा है,हाँ मोती लगा है,
घुंघरू भी उसमें लगाओ रे, अम्बे माँ.........
मैया की चुनरी में प्रेम भरा है, हाँ प्रेम भरा है।
ममता का मिलता छांँव रे, अम्बे माँ............

अम्बे गीत (मैया जी की चुनरी/

मैयाजी की चुनरी हवा में लहराए रे।
जैसे विजयी झंडा गान फहराए रे।
मैया जी की चुनरी........
सोने की सुराही में गंगाजल भरा है।
मैया जी को मधुरस बहुत मन भाए रे।
मैया जी की चुनरी............
सोने की थाली में दाख -छुहारा,
मैया जी को नारियल का भोग बड़ा भाए रे।
मैया जी की चुनरी........
बेली-चमेली का माला बना है,
मैं जी को उड़हुल का फूल बड़ा भाए रे।
मैया जी की चुनरी.......
कंचन थाल कपूर की बाती,
मैया जी को सब मिली आरती उतार रे।
मैया जी की चुनरी ......
मैया बैठी है बाघ के ऊपर,
भक्तों को देख कर बाघ शरमाय रे।
मैया जी की चुनरी..........

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जय अम्बे (मगही गीत)

लेके हमें पूजा के थरिया,अइली अम्बे माँ के दुअरिआ।
रहे ले मैया के बनैया,मैया के भावे ने कोठा-अटरिया।
आज मैया के हई पुजनिया,सांंझ पहर के गेली बजरिया,
मैया ले रैली हरियर अंँगिया, ओढ़े लगी वाली चुनरिया।
हाथ ले लैली चूड़ी-मुनरिया,पांँव ले लैली बिछिया पायलिया।
गले में हरबा लैली हजरिया,कान में झुमका 
नारियल केला भोग लगैली, काजू-किशमिश दाख छोरियां।
चरण में मैया के माथे नवैली,हमरा पर मैया फेरा नजरिया।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, September 17, 2025

माँ दुर्गा जगतारिणी (धनुष वर्णाकार पिरामिड)

माँ 
दुर्गा 
आईं हैं 
आज मेरे 
आँगन देखो 
चरणों में माँ के
सब शीश नवाओ
मंगल आरती गाओ
माँ से सब माँग लो
शुभ आशीर्वाद 
हम सबको 
रख माता 
सुख से
हमें
माँ
हम
सबको 
सुख देती 
सुख करनी 
संकट हरनी
हे माता जगदम्बे 
हमारा कष्ट मिटाओ 
हे कष्ट निवारिणि 
दुख उबारिणी 
जगतारिणी 
भक्तों को माँ
आज तू
वर
दो।



Tuesday, September 16, 2025

अम्बे गीत (झन झन झंकारें पैजनियां मैया )

झनझन झंकारे पैजानिया मैया की,
    ‌                         झनझन झंकारे ना ।झन......
खन-खन कंगना खनके मैया के
                              खन-खन खनके ना।झन.......
जब मेरी मैया बाग में आती।
फूल खिले भंवरा गुंजारे,
                      मैया को सजाबे संवारे ना।झन......
जब मेरी मैया मंदिर में आती।
घंटी बजा आरती गावे,
                       मैया को भक्त पुकारे ना ।झन.......
जब मेरी मैया पनघट पर आती।
धार बहे दोनों किनारे,
                        मैया के चरण पखारे ना।झन.....
जब मेरी मैया भक्त घर जाती।
मखमल के आसन लगावे,
                         मैया को भोग लगाबे ना।झन....
जब मेरी मैया बालक पास जाती।
झूम-झूम के ताली बजाबे,
                          मैया से आशीष मांँगे ना।झन.....
जब मेरी मैया कन्या पास जाती।
मैया चरणों में झुककर,
                          मैया से सुंदर वर मांँगे ना।झन.....

मांँ अम्बे गीत (आजा आजा माँ)

मन मंदिर से, दिल के घर से,तुझको तेरा भक्त पुकारे।
आजा आजा मांँ ! तुझको तेरा.......
दर्शन दे दो,निर्भय कर दो,कष्ट  हमारे ले लो सारे।
आजा-आजा मांँ! तुझको तेरा.........
फूल बिछाऊंँ मैया राह में तेरी,बेली-चमेली और उड़हुल की।
दाख- छुहारे भोग लगाऊंँ,दीप जलाऊंँ घृत-गुग्गुल की।
भक्ति-भाव से भजन करूंँ मैं,सुर-लय-ताल मिलाकर सारे।
आजा आजा मांँ! तुझको.....
आजा मैया ! शेरोंवाली। भर दो मेरी झोली खाली।
आकर मन अंधकार मिटा दो,हे मांँ दुर्गे ज्योता वाली।
नजर उठाकर देखो मैया ! कब से खड़  हूंँ तेरे द्वारे।
आ जा,आ जा मांँ...........
दया करो तुम हे जगदंबे ! सुन लो मेरी विनती अम्बे
निज भक्तों पर दया तू करती,हे जगजननी ! हे अवलम्बे!
तेरी दया का आस ले दिल में,देख रही हूंँ सपने प्यारे।
आ जा,आजा मांँ


........

Monday, September 15, 2025

माता पटन देवी

माता खोलो न कपाट,          मांँगे बाल -नारी -नर,
    तेरा  भक्त  जोहे  वाट,          मैया सुख का दो वर,
      सारे विघ्न  दो मांँ काट,         धन - सम्पत्ति दो भर
         भक्त   खङे   तेरे  द्वार।         माता  भरो न भंडार। 

पटना की महारानी,              सारे   परिवार साथ,
   पटनदेवी   भवानी,              माता  जोडकर हाथ, 
      तेरी दुनिया दिवानी,               हम  झुकाकर  माथ,
          लाज रखो इस बार।              खङे लगा के कतार। 

 तेरे  नाम  का   नगर,            निर्बुद्धि और  निर्धन,
      किसी को न यहांँ डर,           दुखी-रोगी-मूढ-जन,
          सब  दुख  लेती   हर,            ले विकृत तन - मन,
             माता  कर   उपकार।             कर  रहे  हैं पुकार।

 मेरी विनती है आज,             माता दया का दो दान
      रख माता मेरी लाज,             रखो  सबका  मां मान,
          सब  पूरा करो काज,             कर दो माता कल्याण,
             दो  संकट  से उबार।              दो मांँ जीवन संवार। 
                                    सुजाता प्रिय समृद्घि



अजगर

पथ पर अजगर, सरपट चलकर, 
कर-कर हङबङ,कर-कर सर-सर।

बढ़ अब झटपट, मत कर हट-हट।
रह अब सट-सट,झट चल पथ पर।

चल अब बढ़ चल,डग भर झटझट, 
बढ-बढ डग भर,चल-चल पथ पर।

चल अब डर मत,मत चढ छत पर,. 
इत-उत मत कर बढ़-चल पथ पर। 
              सुजाता प्रिय समृद्धि

Saturday, September 13, 2025

राम-श्याम भजन (सीता संग राम को)

सीता संग राम को मन-मन भजिए।
राधा संग श्याम को मन-मन भजिए।
भज मन राम राम भज मन श्याम-श्याम 
राम -श्याम,राम-श्याम संग संग भजिए।
त्रेता में अवतार लिए राम,
द्वापर में जन्म लिए श्याम, 
कौशिल्या के लाल दशरथ जी के नंदन। 
देवकी के लाल,वसुदेव सुत वंदन। 
कौशिल्या संग दशरथ को मन-मन भजिए।
देवकी संग दशरथ को मन-मन भजिए।
राम संग लक्षमण को मन-मन भजिए ।
श्याम संग बलराम को मन-मन भजिए ।
राम राम राम राम राम राम भजिए ।
श्याम श्याम श्याम श्याम श्याम श्याम भजिए ।
करेंग  उद्धार राम-श्याम,राम श्याम भजिए ।

Thursday, September 11, 2025

अम्बे गीत (जय माँ अम्बे)

जय मांँ अम्बे, जय जगदम्बे,सुन लो विनती आज।
शरण में आई हूंँ।
 मैं तेरी दासी,दर्शन प्यासी, बहुत उदासी आज।
 शरण में आई हूंँ।
कष्ट हरो मांँ भक्त जनों के जीवन आज सुधारो। 
अष्ट भुजा मांँ दुख- सागर से नैया पार उतारो ।
सुनो मांँ नैया पार उतारो ।
सब सुख करनी,सब दुख हरनी उतारो तरणी आज 
शरण में .........
संकट हरणी नाम तुम्हारा,सबके संकट हरती।
महिमा तेरी बड़ी निराली,सबको समृद्ध करती ।
हांँ हांँ मांँ सबको समृद्ध करती।
बिगड़ी बनाओ, पाप मिटाओ, कर दो कृपा आज।
 शरण में............
 तेरे सिवा नहीं कोई मेरा किसके द्वार मैं जाऊंँ।
 हे जगतारणी तू बतला दे,किसको व्यथा सुनाऊँ।
कहो मांँ किसको व्यथा सुनाऊँ।
 सब दुःख हरनी, सब सुख करनी हे कष्टहरनी आज। शरण में आई हूंँ।
जय मांँ अम्बे.......

Wednesday, September 10, 2025

माँ अम्बे गीत (राग काफी )

तेरे द्वार खड़ी हूँ मैया।२
लेकर आस कड़ी हूँ मैया।
तेरे द्वार........
मेरा दुःख तुम दूर करो माँ।
आकर मेरे कष्ट हरो माँ।
तेरे चरण पड़ी हूँ मैया।
लेकर आस..........
तेरे द्वार.................
हे जगदम्बे मुझको उबारो।
नैया मेरी पार उतारो।
भँवर बीच डरी हूँ मैया।
लेकर आस......
तेरे द्वार............
तुम बिन कोई राह न सूझे।
पंथ सभी लगते अनबूझे।
जो मैं राह धरी हूँ मैया।
लेकर आस......
तेरे द्वार............
हे जगजननी मातु भवानी।
तुम -सा कोई नहीं है दानी।
दान से झोली भरी हूँ मैया।
लेकर आस...........
तेरे द्वार........

तेरी चुनरी माँ

तेरी चुनरी मांँ! कि आय हाय तेरी चुनरी माँ।

 तेरी चुनरी लाल मैया,तेरे अंग में शोभे।
तेरी चोली हरी मैया,उसके संग में शोभे।
चमक उसमें शोभे रे,शोभे रे,शोभे,
लगा गोटा मांँ !कि आय हाय लगा गोटा मांँ।
तेरी चुनरी माँ....
तेरे मांग में सिंदूर और टीका शोभे।
तेरे माथे में मैया, तेरी बिंदिया शोभे।
नासिका में शोभे रे,शोभे रे,शोभे
तेरी नथिया माँ! कि आय-हाय तेरा नथिया माँ.....
तेरी चुनरी माँ
तेरे दोनों कानों में, स्वर्ण झुमका शोभे।
तेरे दोनों हाथों में,खनक कंगना शोभे।
तेरे गले में शोभे रे,शोभे रे शोभे बड़ा माला मां
कि आय-हाय...........
तेरे दोनों पांवों में,तेरा पायल शोभे।
तेरे पायल की घूंघरू,रुनुक झुन-झुन बोले
संग उसके बोले रे बाजे रे बोले रे बोले तेरी बिछुआ माँ
कि आय हाय तेरी बिछुआ मां
तेरी चुनरी मांँ

अम्बे गीत (तुम हो कहाँ)

ढूंढ रही तुझे कब से मैं मैया !
तुम हो कहांँ तुम हो कहांँ ।
आकर दर्शन दे दो हे मैया,
तुमहो कहांँ...........
मैं हूंँ मैया दासी तुम्हारी ।
तेरे दरश को फिरूँ मारी-मारी । 
एक झलक दिखला हे मैया 
तुमहो कहांँ.............
 हे मांँ अंबे दया करो अब।
आकर संकट मेरा हरो सब।
दुष्ट जनों से बचा लो हे मैया,
तुम हो कहांँ...............
कलुष मिटा दे मेरे मन से ।
कष्ट हटा दो अब जीवन से।
सच्ची राह दिखा मुझे मैया !
तुम हो कहांँ.............
आलोकित कर मेरा जीवन।
निर्मल मनको हो निरोग रहे मन,
अन्न-धन-जन का वर दो हे मैया!
तुम हो कहांँ

Tuesday, September 9, 2025

माँ दुर्गा जगतारिणी (धनुष वर्णाकार पिरामिड)

माँ 
दुर्गा 
आईं हैं 
आज मेरे 
आँगन देखो 
चरणों में माँ के
सब शीश नवाओ
मंगल आरती गाओ
माँ से सब माँग लो
शुभ आशीर्वाद 
हम सबको 
रख माँ
सुख 
से
माँ
अम्बे 
सबको 
सुख देती 
सुख करनी 
संकट हरनी
हैं माता जगदम्बे 
हेकष्ट निवारिणि 
दुख उबारिणी 
जगतारिणी 
भक्तों को माँ
आज तू
वर
दो।



महाबली हनुमान (हरि गीतिका छंद)

महाबली हनुमान का नित ध्यान सब मिल कीजिए।
 उनके चरणों में शीश रख आशीष भी कुछ लीजिए।।
निज भक्त के संताप को पल में मिटाते हैं प्रभु ।
दुख वेदना हर कर हृदय में सुख-चैन लाते हैं प्रभु।।
माँ अंजनी के पुत्र हैं बल बुद्धि ज्ञान अपार है।
पवन पिता से हैं बली महिमा अपरंपार है।।
शरण इनके जो भी जाता हर लेते उसकी कूमती।
ज्ञान-बुद्धि-विवेक देते भर देते उनमें सुमति।।
श्री राम के दरबार में हैं दूत बनकर राजते ।
निजी कृति से दरवार में मन कर शोभते।
राम की सेवा करते सब लोग के मन मोहिते।
             सुजाता प्रिय समृद्धि 

सरस्वती वंदना (माँ शारदे)

सरस्वती वंदना 
मां शारदे मां शरदे मां शारदे  अज्ञानता से उबार दे।
तेरे शरण में हम हैं आए,लेकर बहुत विश्वास माँ। 
तेरे चरणों में हम सिर नवाएँ, रखकर हृदय में आस माँ।
मेरी मूढ़ता को दूर कर दो, ज्ञान को तू निखार दे।
माँ शारदे......
दिल में विराजे तू सदा, मन में सदा तेरा रूप है।
हर भाव में हर बात में, वाणी में तेरा स्वरूप है।
मन-वचन को मैं स्वच्छ रखूं सुंदर सदा तू विचार दो 
माँ शारदे.......
तेरे धवल वसन और हार जैसा अंत:करण मेरा रहे।
हर जीव की खातिर हृदय में, इंसाफ का डेरा रहे।
हर पूण्य कर्मों को करें हम,इसमें सदा विस्तार दे।
माँ शारदे मां शारदे.....
मेरे जिगरी में माँ सरस्वती,मन में यही है कामना।
पर भ्रष्ट हो जब मन मेरा तब तुम ही मुझको थामना।
कभी भूल से कोई भूल हो तो,से माँ! उसे तू सुधार लें।
माँ शारदे मां शारदे 🙏🙏🙏🙏🙏

माता रानी से विनती (मैया इंसाफ करो)

मैया इंसाफ करो ! मेरी ग़लती माफ करो।
मेरी ग़लती माफ करो,सब मेरा श्राप हरो।
हे माँ अम्बे!जय जगदम्बे,जय जगजननी माता।
हे काली कल्याणी माता, दुःख हरनी सुख दाता।
तू मेरा पाप हरो। मेरी ग़लती........
भूल-चूक मेरी से माता! मन से तुम विसराओ।
मैं दुखियारी,शरण तिहारी, मुझको गले लगाओ।
दिल अपना साफ करो, मेरी ग़लती..........
मेरे मन के कुविचारों को,पर में दूर भगाओ।
सुविचारों और सुकृतियो से,मन मेरा भर जाओ।
मेरा मन संताप हरो,मेरी ग़लती................
कभी किसी से द्वेष नहीं हो,ऐसा हो मन मेरा।
प्रेम और सद्भावना आकर मन में डाले डेरा।
इतना तो आप करो। मेरी ग़लती.....

         सुजाता प्रिय समृद्धि 

ओ शेरोंवाली माँ (अम्बे गीत)

ओ शेरोंवाली माँ !तुझको ढुंढूँ मैं कहाँ?
मेरी विनती है पास मेरे आ जा s s s s
माँ आ के दरस दिखला जा।
ओ शेरोंवाली माँ.......
मैं कब से खड़ी, राहों में तेरी, राहों में तेरी।
माँ तू ही बता,तू कहाँ हो खड़ी,कहाँ हो खड़ी।
वो पहाड़ों वाली माँ! मुझको ढूंढूं मैं कहाँ
मेरी विनती है....
माँ आ के दरस.....
मेरी प्यासी नजर , ढूंढती है इधर,और उधर।
माँ तुम ही बता आती न नजर,न  नजर।
तुमको देखूं मैं कहाँ ? आ जाओ तुम यहांँ।
मेरी विनती है.....
माँ आ के दरस......
तेरी पूजा करूँ, फूलों को चढ़ा,हां माँ हम चढ़ा।
तेरी आरती करूँ, और करूं वंदना, हां वंदना।
तुझको चुनरी ओढ़ा,खूश होऊं मैं यहांँ
मेरी विनती है पास मेरे....
माँ आके .......
चरणों में तेरे, मैं आकर पड़ी,हूँ पड़ी।
वर दे दो मुझे, मैं जिद पर अड़ी हूँ अड़ी।
वर देने वाली माँ, तुझको ढुंढूँ मैं कहाँ?
मेरी विनती है........ 
माँ आके .........
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

अम्बे गीत (मां तेरे मंदिर में)

भक्त जन करे पुकार ,मांँ तेरी मंदिर में ।
गूंजे जय जय कार मां तेरी मंदिर में।
 मैया के माथे में मुकुट विराजे ।
शोभे बिंदिया लाल मां तेरे माथे में ।
भक्ति जन करे पुकार......
मैया के नाक में नथिया शोभे।
शोभे कुंडल लाल मां तेरे कानों में।
भक्त जन करे पुकार..........
मैया कलाई में चूड़ा शोभे,
 शोभै मुनरी लाल मां तेरी उंगली में।
भक्त जन करे पुकार........
मैया के पांँव में बिछुआ शोभे
शोभे  करता लाल माँ तेरे चरणों में ।
भक्त जन करे पुकार ......
मैया के अंग में चोली शोभे,
शोभे चुनरी लाल माँ तेरे अंगों में 
भक्त जन करे पुकार.......
मैया जी बैठी हैं शेर के ऊपर,
शोभे त्रिशूल ढाल माँ तेरे हाथों में 
भक्त जन करे पुकार.....

जगदम्बे गीत (माँ जगजननी को)

बोल (सौ साल पहले हमें तुमसे प्यार था)

माँ जग जननी को, भक्तों से प्यार था,२
आज भी है और कल भी रहेगा।
निज भक्तों से माँ को, बड़ा ही दुलार था२
आज भी है और कल भी रहेगा।
माँ जगजननी को.......
जो मैया के दर जाता,मांँ उसकी झोली भरती है।
जो दुख और चिंता से व्याकुल, उसका संकट हरती है। शेरों वाली मैया के भक्त हजार थे ।
आज भी है ..........
मांँ के नैनों में देखो, छवि भक्तों की बसी प्यारी ।
मांँ का हर रूप है न्यारा,इसकी ममता है न्यारी ।
मैया जी को बेटों पर सदा ही दुलार था ।
आज भी है............
 सुन विनती मांँ अम्बे हमें बल बुद्धि दो इतनी।
 मैं सबको सुख पहुंचाऊँ सहायता चाहे जो जितनी। 
 युग-युग पहले माँ का,सजा दरबार था।
 आज भी है..............

अम्बे गीत ( मन मंदिर में)

मांँ अम्बे गीत 
मां मंदिर से,दिल के घर से,तुझको तेरा भक्त पुकारे ।आजा-आजा मांँ ! तुझको तेरा भक्त पुकारे।
आजा -आजा माँ .........
 फूल बिछाऊँ माँ राहों में तेरी,बेली-चमेली और उड़हुल की।
दाख -छुहारा भोग लगाऊँ,दीप जलाऊँ,घृत गुंगूल की।
भक्ति -भाव से भजन करूँ मैं,सुर लय ताल मिलाकर न्यारे।
आजा -आजा माँ...........
आजा मैया शेरोंवाली,भर दे मेरी झोली खाली।
आकर मन अंधकार मिटा दे,से माँ दुर्गे,ज्योतावाली।
नज़र उठाकर देखो मैया ! कब से खड़ी हूँ तेरे द्वारे।
आजा -आजा माँ..........
दया करो तुम हे जगदम्बे,सुन लो मेरी विनती अम्बा।
निज भक्तों पर दया तू करती,से जगजननी से अबलमबा।
तेरी दया का इस ले दिल में,देख रही हूँ सपने प्यारे।
आजा -आजा माँ.............
जग का सब संताप मिटा दो,रोग शोक को दूर भगा दो।
हे माँ दुर्गा दुर्गति नाशिनी मन में यह विश्वास जगा दो।
कृपा करो तुम हे माँ अम्बे !कब से खड़ी हूँ शरण तुम्हारे।
आजा -आजा माँ...............

Wednesday, September 3, 2025

शिव शंकर का नाम

जप लो शिव शंकर का नाम 
बनेंगे बिगड़े सारे काम। 
लोटा में गंगाजल भर,शिव को स्नान कराओ।
चंदन-कुमकुम माथ लगाओ तन विभूत लगाओ।
ओढा दो इनको ओs s s s s s s s
ओढा  दो  तन पर तू बाघम्बर, पहना दो मृग चाम। 
जो मन......
बेली चमेली फूल चढ़ाओ,बेलपत्र चढ़ाओ। 
भाग धतुरा तोङ तोङ कर शिव को भोग लगाओ।
और चढ़ाओ ओ s s s s s s s
और चढ़ाओ फल और-मेवा, मिश्री और बादाम 
जपो मन .......
शिव-शंकर हैं औढर दानी सभी जन को वर देते हैं।
जो जन दुख में उन्हें पुकारे,उनका दुख हर लेते हैं।
संकट  में जो ओs s s s s s s
संकट में जो उन्हें पुकारे,लेते उनको थाम।
जपो मन.............
           सुजाता प्रिय  'समृद्धि'




Tuesday, September 2, 2025

प्रणाम (दोहे)

प्रणाम (दोहे )

जिनके मन में प्रेम  है,करते वही प्रणाम। 
बङे जनों को करें,प्रणाम सुबह-शाम।।

प्रणाम सिखाता लोग को,अनुशासन का भाव 
प्रणाम वही जन करते,जिनका सरल स्वभाव। ।
बडों के लिए  जिनके मन में ,हो आदर का भाव ।

प्रणाम देता शीतलता,मिटाता मन का कशोभ।
सम्मान देते लोग को,रखें न मन में लोभ।।

नम्र करते हैं सदा,झुककर सदा प्रणाम। 

शीश नवागुरु जनों को ,सुबह शाम। 
प्रणाम मिटाता है सदा,मन के सारे क्रोध।।
क्मा
क्षमा-भाव आता सदा,मिटता मन प्रतिशोध। ।
प्रणाम टालता है सदा,अंतर का अहंकार। 
प्रणाम वे जन करते,जिनका श्रेष्ठ  विचार। 
प्रणम्य भाव  से दिखता मानव का व्यवहार। 
मन में लाता नम्रता,सभी श्रेष्ठ संस्कार। ।

सुजाता प्रिय समृद्धि

Monday, September 1, 2025

सुबह का भूला

रक्षाबंधन का दिन। रोली अक्षत फल-मिठाइयों के साथ सुंदर राखी रख सुनीता थाली सजा रही है। पड़ोसी सुशील बाबू के द्वारा अपने लिए छोटी बहना का संबोधन और आंखों में स्नेह युक्त प्यार देख सुनीता का मन आत्म-विभोर हो उठता। लेकिन कहीं-न-कहीं उनका चेहरा जाना-पहचाना लगना उसे विचलित कर देता।आखिर कहांँ देखा है उन्हें ? 
बातों-बातों में उनसे ही कह डाला  -"भैया ! ऐसा लगता है कि मैंने कहीं आपको देखा है !" लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया कि वह उसे जानते हैं ।खैर जो हो एक बडे-भाई का प्यार और आशीर्वाद पाकर ही वह धन्य थी। अपने भाई तो उससे छोटे ही थे। उतनी दूर से रक्षाबंधन पर्व में आ भी नहीं सके।
     तभी ममेरे भाई निखिल ने कॉल कर बताया कि तुम्हारी राखी मुझे मिल गई।।कभी वहांँ आउँगा, तो तुम्हारे लिए उपहार लेकर आउँगा। वह ठुनकती हुई बोली -आप मुझे हमेशा यही कहकर तो ठगते हैं । कभी आते तो है नहीं।"
     उन्होंने कहा- "आऊंँगा ! हो सकता है, जल्दी आ जाऊँ। अब तो मेरा दोस्त भी तुम्हारे शहर में रहने लगा । उसके बेटे का विवाह होने वाला है तीन महीने बाद ।"
"कौन दोस्त ?" 
"एक सुशील नाम का दोस्त मेरी शादी में अपनी मांँ के साथ आया हुआ था ।"
नाम सुनते ही सुशील बाबू का चेहरा उसके आंखों के सामने घूम गया। इनके बेटे का विवाह भी तीन महीने बाद है।अब उसे समझ आया की सुशील बाबू का चेहरा उसे जाना-पहचाना क्यों लगता था ।आज से पच्चीस साल पुर्व  उसके ममेरे भाई की शादी में भैया का यह दोस्त अपनी मांँ के साथ आया हुआ था। भैया ने जब उसका परिचय करवाया तो उसने बड़े भाई के दोस्त के नाते उसे नमस्कार किया। परंतु जब-तक वह शादी मे रही, सुशील अजीब-सी प्यास भरी नजरों से उसे देखता रहता।  कभी -भी उन्हें भैया कह कर संबोधित कर लिया तो उसके चेहरे पर नागवारी के भाव स्पष्ट दृष्टिगोचर हुआ दिखता था ।
 शादी खत्म होने पर वह अपने घर आ गई। लेकिन सुशील की नजरों का मैलापन याद कर उसका मन कसैला हो जाता। फिर उसकी भी शादी हो गई और समय के साथ वह उन कड़वाहटों को भूल गई ।
आज वही सुशील उसे भाई का प्यार उड़ेल रहा है। अब वह उसके उन भावों को याद रखें या आज के ? जिन भावों की आकांक्षा वह पच्चीस साल पूर्व सुशील बाबू से करती थी, वह आज प्राप्त हो रहा है।अंत में उसने यह निर्णय किया कि "अतीत की कड़वाहटों को भूल हमें वर्तमान की मृदुलता में जीना चाहिए।" लेकिन उनके उन व्यवहारों को माफ कर देना क्या न्याय-संगत होगा ?  दिल ने कहा -"जाने दो कम- से -कम अब तो समझ आया ।"
     फिर वह सुधीर बाबू को राखी बांँधने के लिए थाल सजाने लगी।
                      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, August 29, 2025

मां जगदम्बे गीत

आस धरी अईली दुअरिया केबङिया खोला हे मैया।
केबङिया खोला हे मैया,तनी एने फेरा नजरिया,
केबङिया खोला हे मैया.....
गंगाजल स्नान करन को,भरी-भरी लैलूं गगरिया,
केबङिया......
सेनुर-टिकुली,बाली-लहठी,लैली लाली चुनरिया,
केबङिया.............
बेली-चमेली,उङहुल कलिया, तोड़ी-तोडी लैलूं डलिया
केबङिया..........
गङी-छुहाङा, दाखिल मुनक्का,भरी-भरी लैलूं थरिया
केबङिया..........
धूप-दीप-कर्पूर जलाऊं,सभे मिली सांझ के बेरिया, 
केबङिया,..............
मैया अइहा हमर दुअरिया,अपराध से बाढ़ूं डगरिया,
केबङिया...............
मैया अपन भक्त  समझ के,मन से दिया आशीषिया 
केबङिया.............

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, August 25, 2025

मैया शेरोंवाली

मैया शेरावाली मुझको तेरा प्यार चाहिए ।
प्यार चाहिए मांँ दुलार चाहिए ।
मैया शेरावाली .............
कब से खड़ी हूंँ द्वार तुम्हारे,नयन उठा कर देखो।
हाथ में लाई खाली झोली,हूंँ खड़ी फैला कर देखो।
भर दो झोली मेरी आशीष हजार चाहिए ।
मैया शेरावाली..........
 ले मनोरथ मन में खड़ी हूंँ, माँ कामना पुरी कर दो।
 काज हमारा आज के दिन माँ,है बड़ी जरूरी कर दो।
 सारे दुखड़े हरो माँ,मुझे बाहर चाहिए ।
मैया शेरावाली .........
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

जय मां अंम्बे

अम्बे मेरा जहां में,बस आपका सहारा।
तेरे बिना है माता ,दिखता नहीं किनारा।।
मेरा काम आज अटका,उसे पूर्ण कर   दो माता।
मेरी बिगङी तुम बना दो,हे पहाङों वाली माता।
जीवन  मेरा संवारो,देकर  मुझे सहारा।
अम्बे मेरा जहां में..............
मां मुझको आज थामों,मैं लङखङा रही हूं।
जो पथ सुगम था मेरा, उसको भूला रही हूं।
सत्पथ मुझे दिखाओ,मैं दास हूं तुम्हारा.
अम्बे मेरा...........
मां देखो  मेरी कश्ती,मझधार में खङी  है।
सब राह भूल बैठी, तुफान में अङी है।
पतवार बहकी जाती,बङी तेज जल की धारा.
अम्बे मेरा .........

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, August 19, 2025

मेरी मटकी से

कान्हा माखन न चुरा मेरी मटकी से।
मटकी से छीके लटकी से।
कान्हा माखन न  .....
कह दूंगी यशोदा मैया से जाकर,
तू तो बडा है माखन  चोर। 
छीके से उतारकर माखन ,
खाया मेरी मटकी फोड़।
दधी खाया तूने छोटी लुटकी से।
कान्हा माखन न ..........
तूमने भी खाया बलराम को खिलाया,
बाल सखा संग राधा को खिलाया,
किया तुमने लड़ाई  मेरी छुटकी से।
कान्हा माखन न...........
ताली बजाकर बाल सखा संग, 
हमें चिढ़ाकर गाया गीत। 
कहा-तूमने मुझको है हराया,
तेरे साथियों की हो गई  जीत।
तूने ताल मिलाया दे दे चुटकी से।
कान्हा माखन न .............
              सुजाता प्रिय  'समृद्धि'

मधुमास मनोहर

आया सखी मधुमास मनोहर 
फूलों से सज गया बाग-फुलवारी,
पेड़ सजा है पलाश-गुलमोहर ।
कोयल गाती पंचम सुर में,
भँवरे छेड़े तान मनोहर ।
नहीं सुहाता बिस्तर रजाई,
अंग नहीं दुशाला और दोहर।
गाते सभी मिल फाग के गाने।
ऐसे लगे सब गा रहे सोहर।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

पावन मधुमास

लेकर संग में खुशियां खास।
आया है पावन मधुमास।
आया है........ 
दिशा-दशा वासंती छाई।
बागों में कलियां मुस्काई।
झूम-झूम नव कोमल पत्ते,
हर्षित हो करता परिहास।
आया है............
फूल खिले हैं फुलवारी में।
गमलों और छोटी क्यारी में।
बागों में छाई है हरियाली,
वन उपवन खिल गया पलास।
आया है..............
भौंरा गाये, कोयलिया कूके।
बुझे दिलों में जीवन फूंके।
उड़ी तितलियांं उसकी चिड़िया,
सबके मन को आया रास।
आया है..................
सब जीवों का मन हर्षित है।
सरस-सलिल जीवन पुलकित है।
पवन के कोमल झोंके ले आया,
खुशहाली का देने आस।
आया है...................
रंग-रंगीला आया फाग।
छेड़ जोशीला सुंदर राग।
जन-जीवन को देने आया,
सौगातों की झोली पास।
आया है........
आने वाला है नववर्ष।
सबके मन में भरने हर्ष।
संग में आँचल भरकर लाया,
उत्साह, उमंग और उल्लास।
आया है................
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'


श्रीराम जन्म

जन्म लिए रघुराई सखी री दशरथ भवन में।
अंगना में बाजे बधाई सखी री दशरथ भवन में।
कौन मांँ के राम,कौन माँ भरत,कोन मातु के लखन -शत्रुधन भाई सखी री दशरथ भवन में।
कौशिल्या माँ के राम कैकेई मां के भरत,
सुमित्रा मां के लखन -शत्रुधन भाई सखी री-
दशरथ भवन में ।
के रे लुटावे अनधन सोनमा,
केरे लुकास हाथ कंगना सखी री,
दशरथ भवन में..........

लेकर आंक -धथूरा हार

लेकर आंक -धथूरा हार।
चलो सभी शंकर के द्वार।
शंकर हैं औढरदानी।
दुनिया उनकी दिवानी।
मांग लो वर मन मानी।
वर देंगे हमको दानी।
शंकर जो करें विचार।
हो जाएगा बेड़ा पार।
बाबा के दर जाएँगे।
गंगा जल चढ़ाएंगे।
गीत -भजन हम गाएँगे।
बाबा को मनाएंगे।

भोला बाबा हैं दिगम्बर

भोले बाबा है दिगंबर,तन पर ओढ़े हैं बाघाम्बर
इनके वस में धरती अम्बर सभी जानते।
इनके मस्तक पर है चंदा,जटे से बहती गंगा,
इनका मन है बड़ा चंगा सभी जानते।
भोले बाबा हैं.........
जो बाबा के शरण में आता, झोली भर कर जाता।
जो बाबा का ध्यान लगाता, मन चाहा वर पाता।
बाबा मेरे औढरदानी ये तो बहुत बड़े वर दानी 
वर देते हैं मनमानी सभी जानते।
भोले बाबा हैं दिगम्बर........

घन

आसमान में घन है।
हरस रहा मन है।
जैसे मिलता धन है।
खन-खन खनकता।

छा रहा है अंधकार, 
गरजता बारम्बार, 
जैसे उद्देश्य पुकार, 
धम-धम धमकता।

दामिनी भी है संग  में,
आज बड़  उमंग में,
तङित सोने रंग में,
चम-चम  चमकता। 

खुश आज  वर्षा रानी।
बरसा रही है पानी,
बन आज  महारानी,
 छम-छम छमकता।

सुजाता प्रिय  समृद्धि

पत्थर के गुरु लेकर दृढ़ विश्वास हृदय में,पहुंँचा एकलव्य द्रोण के पास। नतमस्तक हो बोला-गुरुवर !धनुर्विद्या की ले आया हूंँ आस।।कृपया चलाना धनुष सिखा दें,मुझको आप प्रसाद स्वरूप।छोटे-छोटे कुछ नियम बता दें,मुझ छोटे-बालक अनुरूप।पूछा-गुरुवर ने,हे अनुगामी! तुम किस कुल के बालक हो।कौन तुम्हारे मात-पिता हैं ,बोल तुम किसके पालक हो।बोला-एकलव्य,हाथ जोड़,जंगल की कुटिया में रहता हूँ।छोटे कुल का बालक हूंँ, रूखी-सूखी खाकर पलता हूंँ।बोले गुरुवर- मैं तो केवल,राजकुमारों को देता हूंँ शिक्षा। छोटे कुल के बालक हो तो,मत माँगो तुम मुझसे भिक्षा।।विदीर्ण हृदय से दृढ़ संकल्प लें,एकलव्य आ अपने घर।प्रतिमा, गुरु की एक बनाया,काट-तरास कर एक पत्थर।नित्य चरण-रज शीष लगता,हाथ जोड़कर मूर्ति के पास। स्वनिर्मित धनुष-वाण ले,दृढ़ मन से नित्य करता अभ्यास।एक सुबह जब कर रहा था,अभ्यास वह तीर चलाने का।एक स्वान आ लगा भौंकने,किया प्रयास बड़ा मनाने का।बहुत उसे पुचकार मनाया,लेकिन बात न माना वह कुत्ता। जितना उसको शांत कराता,उतनी-ही जोर से था भूंकता। भटक रहा था ध्यान एकलव्य का,केंद्रित न कर पाता मन। सहन न कर पाया अपराध, तिरंदाजी के अभ्यास विरुद्ध ।कुशलता से तीर चला,कर दिया स्वान का कंठ अवरुद्ध।*****************************************नगर -गाँव से दूर अरण्य में,जाकर गुरुवार द्रोणा चार्य। राजकुमारों को धनुष सीखने का,कर रहे थे पुनीत कार्य। भांँति-भाँति के गुर्र वे गहराई से,शिष्यों को सिखला रहे थे। बारीकी से तीरंदाजी के कुछ,करतब उन्हें बतला रहे थे। रोमांचित हो सब सीख रहे थे,तिरंदाजी का यह रूप नया।नई रीति से और नई नीति से नए नियम व स्वरूप नया ।इसी समय कहीं से भगता,उनका कुत्ता आ गया सिर टेक।सभी शिष्य और गुरु ने देखा,उसके कंठ में समाये थे तीर अनेक।गुरु-शिष्य सब हुए अचंभित, तीरंदाज की कुशलता पर।रक्त का एक भी बूंद न बहा था,स्तब्ध थे इस सफलता पर।बस उसका कंठ अवरुद्ध था,ताकि वह भौंक नहीं पाए। अभ्यास करने वाले को,ध्यान भटका कर रोक नहीं पाए। चल पड़े गुरुवर शिष्यों को ले,ढूंढने उस धनुर्धारी को। जिसने उनको दिखलाया था,तीरंदाजी की कलाकारी को।*******************************************तन्मयता से अभ्यास वह,कर रहा था तीर चलाने का ।अलग-अलग अंदाज में ,निशाना वह वहांँ लगाने का।ध्यान भंग कर गुरुवर ने पूछा,कौन तुम्हारे गुरु है तात। कौन तुमको तीर चलाने की,यह विद्या देते हैं सौगात।कहा एकलव्य ने विनीत भाव से,मैंने गुरु आपको माना। प्रत्यक्ष नहीं तो,मूर्त रूप दे,प्रसाद-स्वरूप हर गुण जाना।वृक्ष के नीचे रखी उनकी प्रतिमा,उन्हें इशारे से दिखाया।नतमस्तक हो प्रणाम कर, उठा चरण रज शीश लगाया।आपकी ही मूर्ति में शीश नवाकर नित्य अभ्यास करता हूंँ।ज्ञान कोष भरता हूँ।बोले गुरुवर-हे शिष्य! गुरु स्वरूप प्रतिमा तूने बनाया।गुरु मानकर मुझको मेरी हर विधा को तूमने जाना ।धनुर्विद्या में तुम सफल हुए अब गुरु दक्षिणा की बारी है। अब मांगता हूँ जो दान मैं, तेरे लिए नहीं देना वह भारी है।खुश होकर बोला एकलव्य, गुरुवर अधोभाग हमारा है।गुरुदक्षिणा देने का अवसर आया यह सौभाग्य हमारा है।मुझ निर्धन बालक से गुरुवर आज आप जो मांगेंगे। यदि वह मेरे पास हुआ तो आप पल भर में पाएंगे। बोले गुरुवर हे वत्स! वह चीज तुम्हारे पास है।उस छोटी-सी चीज दक्षिणा में लेने की आस है।अपने दाहिने हाथ का अंगूठा आज मुझे दो दान में।झुका मस्तक एकलव्य गुरु के चरणों मेंउसने जो प्रण ठाना था।दिया वचन जो गुरुवर को उसको आज निभाना था।झट खडग ले काट अंगुष्ठा गुरु के चरणों में चढ़ा दिया।बढ़ा दिया।

Monday, August 18, 2025

भोला बाबा हैं दिगम्बर

भोले बाबा हैं दिगम्बर,तन पे ओढें हैं बाघम्बर, 
इनके बस में धरती-अम्बर सभी जानते।
इनके मस्तक पर है चंदा,जाए से बहती गंगा,
इनका मन है बङा चंगा,सभी जानते।

जो बाबा की शरण में आता,झोली भरकर जाता।
जो बाबा का नाम है लेता,मनचाहा वर पाता।
बाबा मेरे औढर दानी,ये तो बहुत बड़े  वरदानी।
वर देते हैं वरदानी, सभी जानते। 

भोला मेरे जग में नामी,हैं भोले अन्तर्यामी। 
ब्रम्हांड समूचा इनके वश में,ये तीन लोक के स्वामी।
डम-डम डमरू रोज बजाते,भूतो को संग नचाते,
भक्तों के कष्ट मिटाते, सभी जानते।

भांग-धथुरा खानेवाले,बाबा भोले-भाले।
सब देवों के देव हैं भोला,मन के बड़े निराले।
इनके गले सर्प की माला,इनके कर में त्रिशूल भाला,
भोला पीते विष का प्याला, सभी जानते।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, August 17, 2025

महाबली हनुमान (हरि गीतिका छंद )

महाबली हनुमान का नित ध्यान सब मिल कीजिए।
उनके चरण में शीश रख आशीष भी कुछ लीजिए।।
निज भक्त के संताप को फल में मिटाते हैं प्रभु ।
दुख- वेदना हरकर हृदय में सुख-चैन लाते हैं प्रभु ।।
माँ अंजनी के पुत्र हैं बल बुद्धि -ज्ञान अपार है।
पवन पिता सम हैं बली,महिमा अपरंपार है ।
शरण इनके जो भी जाता,हर लेते उसकी कुमति।
ज्ञान-बुद्धि-विवेक देते ,भर देते उनमें सुमति।
श्रीराम के सेवक अनूपम दुनिया कहती भक्त हैं।
करते सदा ही आज्ञा पालन, भक्ति में अनुरक्त हैं।।
अतुल तेज प्रताप है,बल बुद्धि अपरम्पार है।
दुख की घड़ी जो शरण आता करता सदा उपकार हैं।।
हैं भक्त वत्सल दीनबंधु सबपर दया करते सदा।
सब कष्ट हर निज भक्त के संताप को हरते सदा।
भूत-प्रेत पिशाच इनका नाम सुनकर काँपते।
पाताल,धरती और अम्बर,एक पग में नापते।
 श्री राम के दरवार में हैं दूत बनकर बिराजते।
                                              राज्य।।
पवनपुत्र हनुमान का गुणगान सब मिल गाइए।

निज कीर्ति से दरवार हैं  दूत बन कर सोभते ।
श्रीराम की सेवा करें वे,सब लोग के मन मोहते
                     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

महाबली हनुमान (हरि गीतिका छंद )

महाबली हनुमान का नित ध्यान सब मिल कीजिए।
उनके चरण में शीश रख आशीष भी कुछ लीजिए।।
निज भक्त के संताप को फल में मिटाते हैं प्रभु ।
दुख- वेदना हरकर हृदय में सुख-चैन लाते हैं प्रभु ।।
माँ अंजनी के पुत्र हैं बल बुद्धि -ज्ञान अपार है।
पवन पिता सम हैं बली,महिमा अपरंपार है ।
शरण इनके जो भी जाता,हर लेते उसकी कुमति।
ज्ञान-बुद्धि-विवेक देते ,भर देते उनमें सुमति।
 श्री राम के दरवार में हैं दूत बनकर बिराजते।
                                              राज्य।।

निज कीर्ति से दर वारियों के मन कर सोहर ।
श्रीराम की सेवा करते सब लोग के मन मोहते
                     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, August 16, 2025

राधा (देव घनाक्षरी)

पहन   चुनरी   चोली,
राधा सखियों से बोली,
मत  कर   तू  ठिठोली ,
खटक-खटक-खटक्के ।

                                मधुबन     में     मुरारी ,
                                बजाते   बांसुरी  प्यारी,
                                जा की पायलिया भारी,
                                झनक - झनक -झनके।

कर   मैया   से   बहाना,
माखन -मिश्री   लेजाना,
कान्हा को मुझे खिलाना,
पकड़ -  पकड़    मटके।

                                  चल   तू   मेरे  संग  में,
                                  आज   मेरे   उमंग   में,
                                   रंग  जा   मेरे   रंग   में,
                                   पहर - पहर  -  झटके।

                                    सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, August 15, 2025

माखन चोर

सारे जगत में मच गया शोर
यशोदा तेरा लाला है माखन चोर।
यशोदा तेरा.......
सांवली सूरत,मोहनी मूरत ,
दिखता भोला, पर है चितचोर,
यशोदा तेरा लाला........
हाथ में कंगना,पांव पैजनियां,
माथे सोभता है पंख मोर 
यशोदा तेरा लाला.......
घर-घर से खाता है माखन चुराकर,
खा कर मटकी देता है फोड़ 
यशोदा तेरा लाला........
कदम पेड़ चढ़कर बांसुरी बजाता,
 जिसका धुन मन में मारे हिलोर,
 यशोदा तेरा लाला.........
पनिहारिन की फोड़े सिर गगरी 
राधा से करता है बलजोर,
यशोदा तेरा लाला............
यशोमती तेरा कान्हा है बड़ा नटखट,
जिस पर चलता नहीं तेरा जोर
यशोदा तेरा लाला.......
सुजाता प्रिय समृद्धि 

शिव शंकर बसहा वाला

पीकर भांग का प्याला, घूमने चले बसहा वाला।
झूम-झूम झूम-झूम झूम -झूमकर।
पीकर भांग.....
कमंडल में है भांग धतूरा,और आंक का फूल।
डम डम डमरू बजा रहे हैं,चमक रहा त्रिशूल ।
ओढ़ कर बाघ की छाला घूमने चले बसहा वाला।
झूम-झूम झूम-झूम झूम-झूम कर.....
पीकर भांग की प्याला......
धरती घूमे अंबर घूमे और घूमे पाताल ।
तीन लोक में घूम-घूमकर देखें दुनिया का हाल ।
पहनकर नाग की माला घूमने चले बसहा वाला।
पीकर भांग की प्याला....
सब जीवों पर दयाभाव से किया जो दृष्टिपात ।
बिन पूछे हीअंतर्यामी समझे दिल की बात।
संकट सब की हर डाला,घूमने चले......
पीकर भांग की प्याला.....
 सब लोगों के रोग हरे और हरे शोक-संताप। 
धन-दौलत से परिपूर्ण कर,हर लिए सबके पाप।
उद्धार पापियों का कर डाला।
घूमने चले बसहा वाला।
झूम-झूम झूम-झूम झूम-झूम झूम-झूम कर
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि '

जय महाकाल

भोला तेरे कमण्डल में.एक मुट्ठी धान है।
उसी धान से तुम भगवन पालते जहान है।
भोला तेरे कमण्डल में............
भोला तेरे मस्तक पर चमक रहा चांद है।
उसी चाँद से रोशन,धरा -आसमान है।
भोला तेरे कमण्डल में...........
भोला तेरे जटे में गंगा की धार है।
उसी जलधार से भोले बुझाते सबकी प्यास हैं।
भोला तेरे कमण्डल में .............
भोला जी के गले में, लिपट रहा नाग है,
उस नाग को देख भाग जाता काल है।
भोला तेरे कमण्डल में...................
भोला जी के अंग में बाघ की छाल है,
छाल पहन घूमता,अजब तेरी चाल है।
भोला तेरे कमण्डल में...................
भोला तेरे हाथ में, डमरू त्रिशूल है,
जिसकी झंकार से प्राणि दुःख जाता भूल है।
भोला तेरे कमण्डल में ................. ‍।
भोला तेरे संग में भूत-बैताल है।
इसलिए जग में तुम,कहाते महाकाल है।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'






जय भोलेनाथ

हर भोले, बम बम भोले ,
महिमा जिनकी अपार ऐसे शिव-शंकर भोले दानी ।
सब पाप हरे, संताप हरे,
सबको देते हैं तार,ऐसे शिव शंकर भोले दानी।
सर्पकी माला, बाघ की छाला,पहन चले त्रिपुरारी ।
भाल पर चंदा,जटे में गंगा महिमा जिनकी न्यारी।
हाँ-हाँ जी महिमा जिनकी न्यारी।
नैया बोले,आकर भोले,लगाएंगे उस पार ।
ऐसे शिव शंकर ..........
उन्होंने छोड़ा, हाथी-घोड़ा, करते वृषभ सवारी।
टूटी मड़ैया, फूस की छैया, फिर भी दानी भारी।
हाँ,हाँ शिव फिर भी दानी भारी।
शरण जो आता, सब कुछ पाता धन-वैभव अपार,
ऐसे शिव -शंकर दानी भारी।
डमरू डम डम,नाचे छम छम,पीकर भंग मतवाला।
इनका न कोई पता ठिकाना सबके हैं रखवाला।
जो मान करें,जो ध्यान करे,शिव करते उसका उद्धार 
ऐसे शिव शंकर दानी भारी।
                   सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 14, 2025

जय श्री कृष्ण ( कृपाण घनाक्षरी)

दयामय तारो- तारो।
     केशव  हमें  उबारो।
         जीवन आज सवारो।
             विकल है  अंतर्मन ।

              मैं तो हूंँ तेरी दासी ।
       तेरे दर्शन की प्यासी।
    बैठी हूंँ आज उदासी।
तड़पता    मेरा  मन।

मन के क्लेश मिटा दो।
    संकट  से  तू  बचा दो।
        बेड़ा को पार लगा दो। 
           बिखर  न  जाए  धन।

             सुनो अब अंतर्यामी।
         तुम्हारी मैं अनुगामी ।
    तुमहो सब के स्वामी।
बचाओ अब  जीवन।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

जय गणपति (विजया घनाक्षरी)

गणपति  को  नमन।
    कार्तिकेय को नमन।
        मांँ पार्वती को नमन।
            गौरी पति को नमन।

हरिविष्णु  को नमन।
    मात लक्ष्मी को नमन।
        सरस्वती  को   नमन।
            चक्र - ब्रह्म को नमन ।

रामचंद्र   को   नमन।
    सीता माता को नमन।
        लखन  जी  को नमन।
            हनुमान    को   नमन ।

बालकृष्ण को नमन।
    राधा प्यारी को नमन।
        गोप- गोपी को नमन।
            भक्त- लोग को नमन ।
           
                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

जीवन संदेश

वर्तमान में जी लो भाई बीते पल न याद करो
भावी दिन की चिंता में तुम समय नहीं बर्वाद करो।
माना बचपन के दिन थे प्यारे बहुत मौज हम करते थे।़ खेल -कूद कर समय बिताते खूब चौकड़ी भरते थे। बचपन बीता आई जवानी इसको तुम आवाद करो।
भावी दिन की चिंता में...............
देख जवानी लेकर आया बल-बुद्धि-विश्वास नया।
बाजू में ताकत,मन में हिम्मत,दिल में है उल्लास नया।
पराक्रम ओ हिम्मत से तुम
भावी दिन की चिंता में................
वृद्धावस्था से मत घबराओ इसमें भी है मौज बड़े ।कहानियां सुनने आएंगे नाती-पोतो की फौज बड़ी ।
उनके संग में बचपन जी लों जवानी को भी याद करो। भावी दिन की चिंता में,
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, August 13, 2025

शिव -पार्वती (चौपाई)

बैठी शिव संग पार्वती माँ। हरती सब की मूढ़ मति माँ।।
हाथ जोड़कर भक्त खड़े हैं। नतमस्तक ले आस खड़े हैं।।
हे शिव शंकर हे बम भोला। आज आइए मेरे टोला ।।
जग प्राणी के कष्ट मिटाने ।जग के सब संताप हटाने ।।
त्राहिमाम करता जग सारा। चहुं ओर फैला अँधियारा।।
हर-हर-हर भोले त्रिपुरारी। सब संकट तुम हरो हमारी ।।
दया करो तुम हे नगेश्वर। हे शिव शंकर हे परमेश्वर।।
 आई जग में विपदा भारी। त्रस्त है जिससे दुनिया सारी।।
पीकर तूने विष का प्याला । सारे जग का बन रखवाला।।
आज नाथ तू हमें बचा लो ।सारे दुख को दूरभाग दो ।
क्षमा करो अपराध हमारा। भूल-चूक जो भी हो सारा।।
 शिव बोले तुम सुनो भवानी।सारे जग की तुम हो रानी।।
 सुनो सुनो हे शैल किशोरी ।तुम तो मन की हो अति भोरी।
चल भक्तों की शुद्ध-बुद्ध लेने। सुख औ समृद्धि उनको देने।।
 यह जग है मेरी ही माया। हमने रची जीव की काया।
हमको इनकी रक्षा करना। इनके सब कष्टों को हरना।।

शिव दोहे

शिव देवों के देव हैं, चरणों में प्रणाम ।
हर हर बम-बम बोलकर,जपते जाओ नाम ।।

सबके ये संकट हरे,सबके पालनहार।
जग वालों पर वे सदा,करते हैं उपकार।।

मस्तक पर है चंद्रमा,जटे गंग की धार।
बाघम्बर ओढ़े बदन,गले सर्प की हार।।

एक हाथ त्रिशूल है,कमंडल दूजे हाथ ।
नतमस्तक होकर सदा,भक्त झुकाते माथ।।

मंदिर में विराजते,माँ गौरी के संग। 
सारा जग हैं घूमते, चढ़ बसहा के अंग।।

खाते भांग सदा चबा,लगाते हैं विभूत।
हैं कार्तिक और गणपति, दोनों इनके पूत।।

आदि औ अंत रहित हैं,महिमा अपरंपार।
 सृष्टि रचैया आप  हैं ,मान रहा संसार ।।

परमेश्वर व परमपिता,पर हित परमानंद।
आपके चरण में प्रभो,सबको है आनंद ।।

आपकी भक्ति की सदा,मन में इच्छा प्रबल।
जग की रक्षा कीजिए, जीव हैं सभी विकल।।

 डमरू आप बजाइए, नाद उठे सब ओर।
सब जन हर्षित हो यहांँ, नाच उठे मन मोर ।।

हे शंकर कैलाशपति, हे गौरी के नाथ।
हमारे गृह पधारिए, कार्तिक-गणपति साथ।।
                       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, August 12, 2025

चोर

बच्चों की उपस्थिति लेते ही कक्षाचार्य जी ने सभी बच्चों को अपने गृहकार्य की पुस्तिका जमा करने को कहा। रिंकू अपनी पुस्तिका के साथ एक सुंदर कलम  लेकर आगे बढ़ा ।सभी बच्चे चोर-चोर के नारे लगने लगे।
     रिंकू बड़ी मासूमियत से सहमते हुए कहा -आचार्य जी! आपकी कलम मैंने चोरी नहीं की। 
     उसका सहपाठी संजीव ने कहा तुमने चोरी की थी ।तभी तों डर से कल विद्यालय नहीं आया। कल आचार्य जी ने बताया की उनकी कलम गायब है।तो हम सब समझ गए कि उसे तुमने ही गायब किया है।
       नहीं मेरे दोस्त ! मैंने कलम चोरी नहीं की आचार्य जी ने पुस्तिका जांँच के बाद मेरी पुस्तिका में  स्वयं कलम छोड़ दी थी ।और,मैं कोई भय से विद्यालय नहीं आया। बल्कि कल मेरी तबीयत बिगड़ गई थी। शाम में कुछ  ठीक लगा तब गृह-कार्य करने गया। उनकी खुली कलम मेरी पुस्तिका में रखी थी।
 मैंने मांँ को बताया तो मांँ ने कहा- इस कलम को तुम आदर के साथ आचार्य जी को दे दो। "किसी व्यक्ति का सामान गलती से भी आ जाए ,तो उसे अपने पास नहीं रखना चाहिए ।" इसलिए मैं इसे आज लेते आया ।
  कक्षाचार्य जी ने झट कुर्ते की जेब में हाथ डाला और उसका ढक्कन निकालकर  कलम में लगाया । फिर मुस्कुराते हुए कहा- चोर रिंकू नहीं बल्कि भुलक्कड़ मैं स्वयं हूँ। क्योंकि अपनी कलम कहीं भी छोड़ देता हूंँ । सचमुच यह कलम मैं इसकी पुस्तिका में छोड़ दिया था और ढूंढते रहा तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारी मांँ को भी बहुत धन्यवाद देता हूंँ , जिन्होंने अपने बेटे को इतने अच्छे संस्कार दिए हैं कि "किसी का सामान गलती भी आ जाए तो उसे अपने पास नहीं रखना चाहिए।"
                           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

दोस्ती का फर्ज

चिड़िया औ चींटी में भाई दोस्ती थी गहरी।
एक-दूजे की रक्षा करते दोनों बनकर प्रहरी।
एक बार नदी में जा गिरी थी जब चींटी रानी।
नदी में बहुत तेज धार से, बह  रहा था पानी।
व्याकुल हो गयी चिड़िया चीटी को डूबते देख।
झट उठा एक बड़ा-सा पत्ता दी पानी में फेंक।
पत्ते पर बैठ चीटी रानी ने अपनी जान बचाई।
चिड़िया के उपकार से वह फूली नहीं समाई।
एक दिन की बात है, जंगल में शिकारी आया।
तीर चढ़ा धनुष पर चिड़िया  निशाना लगाया।
यह देख चीटी रानी अब मन- ही- मन घबराई ।
झट से जा शिकारी के पांव में, वह काट खाई।
तिलमिला उठा शिकारी,औ गया निशाना चूक।
तीर की आवाज सुन चिड़िया गई फुर्र से उड़।
                    सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, August 11, 2025

पत्थर के गुरु

पत्थर के गुरु 

लेकर दृढ़ विश्वास हृदय में,पहुंँचा एकलव्य द्रोण के पास। नतमस्तक हो बोला-गुरुवर !धनुर्विद्या की ले आया हूंँ आस।।
कृपया चलाना धनुष सिखा दें,मुझको आप प्रसाद स्वरूप।
छोटे-छोटे कुछ नियम बता दें,मुझ छोटे-बालक अनुरूप।
पूछा-गुरुवर ने,हे अनुगामी! तुम किस कुल के बालक हो।
कौन तुम्हारे मात-पिता हैं ,बोल तुम किसके पालक हो।
बोला-एकलव्य,हाथ जोड़,जंगल की कुटिया में रहता हूँ।
छोटे कुल का बालक हूंँ, रूखी-सूखी खाकर पलता हूंँ।
बोले गुरुवर- मैं तो केवल,राजकुमारों को देता हूंँ शिक्षा। छोटे कुल के बालक हो तो,मत माँगो तुम मुझसे भिक्षा।।
विदीर्ण हृदय से दृढ़ संकल्प लें,एकलव्य आ अपने घर।प्रतिमा, गुरु की एक बनाया,काट-तरास कर एक पत्थर।
नित्य चरण-रज शीष लगता,हाथ जोड़कर मूर्ति के पास। स्वनिर्मित धनुष-वाण ले,दृढ़ मन से नित्य करता अभ्यास।
एक सुबह जब कर रहा था,अभ्यास वह तीर चलाने का।
एक स्वान आ लगा भौंकने,किया प्रयास बड़ा मनाने का।
बहुत उसे पुचकार मनाया,लेकिन बात न माना वह कुत्ता। जितना उसको शांत कराता,उतनी-ही जोर से था भूंकता। भटक रहा था ध्यान एकलव्य का,केंद्रित न कर पाता मन। 
सहन न कर पाया अपराध, तिरंदाजी के अभ्यास विरुद्ध ।
कुशलता से तीर चला,कर दिया स्वान का कंठ अवरुद्ध।
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नगर -गाँव से दूर अरण्य में,जाकर गुरुवार द्रोणा चार्य। राजकुमारों को धनुष सीखने का,कर रहे थे पुनीत कार्य। भांँति-भाँति के गुर्र वे गहराई से,शिष्यों को सिखला रहे थे। 
बारीकी से तीरंदाजी के कुछ,करतब उन्हें बतला रहे थे। रोमांचित हो सब सीख रहे थे,तिरंदाजी का यह रूप नया।
नई रीति से और नई नीति से नए नियम व स्वरूप नया ।
इसी समय कहीं से भगता,उनका कुत्ता आ गया सिर टेक।
सभी शिष्य और गुरु ने देखा,उसके कंठ में समाये थे तीर अनेक।
गुरु-शिष्य सब हुए अचंभित, तीरंदाज की कुशलता पर।
रक्त का एक भी बूंद न बहा था,स्तब्ध थे इस सफलता पर।
बस उसका कंठ अवरुद्ध था,ताकि वह भौंक नहीं पाए। 
अभ्यास करने वाले को,ध्यान भटका कर रोक नहीं पाए। चल पड़े गुरुवर शिष्यों को ले,ढूंढने उस धनुर्धारी को। जिसने उनको दिखलाया था,तीरंदाजी की  कलाकारी को।
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तन्मयता से अभ्यास वह,कर रहा था तीर चलाने का ।
अलग-अलग अंदाज में ,निशाना वह वहांँ लगाने का।
ध्यान भंग कर गुरुवर ने पूछा,कौन तुम्हारे गुरु है तात। कौन तुमको तीर चलाने की,यह  विद्या देते हैं सौगात।
कहा एकलव्य ने विनीत भाव से,मैंने गुरु आपको माना। प्रत्यक्ष नहीं तो,मूर्त रूप दे,प्रसाद-स्वरूप हर गुण जाना।
वृक्ष के नीचे रखी उनकी प्रतिमा,उन्हें इशारे से दिखाया।
नतमस्तक हो प्रणाम कर, उठा चरण रज शीश लगाया।
आपकी ही मूर्ति में शीश नवाकर नित्य अभ्यास करता हूंँ।
ज्ञान कोष भरता हूँ।

बोले गुरुवर-हे शिष्य! गुरु स्वरूप प्रतिमा तूने बनाया।
गुरु मानकर मुझको मेरी हर विधा को तूमने जाना ।
धनुर्विद्या में तुम सफल हुए अब गुरु दक्षिणा की बारी है।
अब मांगता हूँ जो दान मैं, तेरे लिए नहीं देना वह भारी है।

Friday, August 8, 2025

सच्चा मित्र

हरी फसल देख हिरण ललचाता।
    खेतों में जाकर जी भरकर खाता।
        एक दिन किसान ने जाल बिछाया।
            लालची हिरण को उसमें फंसाया।

फंसकर जाल में हिरण पछताया।
    जोर - जोर से वह खूब चिल्लाया।
        कौआ  मित्र  तब उड़ कर  आया।
           किसान से बचने का उपाय बताया।

सुबह किसान जब खेत  में आया।
    हिरण को मरा वह जाल में पाया।
        क्योंकि,कौए को चोंच मारते देखा।
            निकाल जाल  से हिरण को फेंका।

सांस रोका था, हिरण अब  जागा।
    झट उठ -कर जान बचा वह भागा।
       ऐसे कौए ने हिरण की जान बचाई। 
           इस  तरह मित्रता थी उसने निभाई। 
                       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'


कौआ बदला रूप

एक कौआ ने मोर पंख पाया।
    उठा अपने पंखों में फंसाया।
        मोर के पास गया बन भोला।
            मैं भी मोर हूं हँसकर  बोला।

तुम तो हो कौआ बोला मोर। 
    मेरे पंखों के तुम  तो हो चोर।
          मेरा पंख चुरा तूने है लगाया।
              मोर बन निकट मेरे तू आया।

सुनकर कौआ हुआ उदास।
    चला  कौआ, कौए के पास। 
        कौए बोले सुनो-सुनो ऐ मोर। 
            क्यों आये हो तुम  मेरी ओर। 

कौआ मोर का पंख हटाया।
    रूप  बदलने पर पछताया।
        लालच में  न रूप  बदलता। 
            जाति में पहचान तो मिलता।

                      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 7, 2025

चिड़ियों की आपबीती

कटोरा में जल भरा हुआ है,आशिकी थोड़ा तो पीने।
जल विधि हम कृष्णा है आशिकी थोड़ा तो जीने।

उड़ती-फिरती  हम अंबर में बिपाशित मन से होकर व्याकुल।
दूर-दूर तक जल न दिखता, शुष्क मन से होकर आकुल।
कंठ को कुछ ठंढक पहुंचाएंँ आ सखी थोड़ा तो पीले।

कहांँ मिलेगा अब हमको पानी विलुप्त हुए अब ताल-तलैया।
नदिया बन गई सकरी नाली-सी तट-बंध पर बन गई मड़ैया।
छत पर यह थाल समंदर जैसा,आ सखी थोड़ा तो पीले।

नीड हमारा अभी दूर है नगर गांँव से दूर अरण्य में ।
अब तो सपना हुआ हमारा,नीड बनाना वन-उपवन में। वृक्ष बिना यह बस्ती सूनी आ सखी थोड़ा तो पीलें।

अब तो मानव जन गीत न गाते,आ री चिरैया मेरे आंँगन । मुन्नी-मुन्ना का मन बहलाओ, चहक-चहक कर गीत रिझाबन।
किसी को हमारी फिक्र नहीं है आ सखी थोड़ा तो जी लें।

अब तो मानव भूल गए हैं,छिटना छत पर चावल के दाने।
पशु-पक्षियों पर मोह घटा है,व्यस्त हुआ है अब उनका जीवन।
किसी को हम पर मोह नहीं है ,आ सखी थोड़ा तो जी लें।

पहले घर के रोशनदान में,हम अपना थे नीड़ बनाते।
मुन्ने-मुनिया के गिरे जूठन को,उठा चोंच से हम थे खाते। रोशनदान खिलौने से सजा है,आ सखी थोड़ा तो जी लें                               सुजाता प्रिया 'समृद्धि'

Tuesday, August 5, 2025

आनंद वन

आनन्द वन में हिंसक पशुओं का प्रवेश  वर्जित  था।इसलिए अन्य सभी पशु-पक्षी वहाँ  बड़े आनन्द से रहते थे।परंतु पास  के वन का एक भेड़िया  छुपाते-छुपाते वहाँ  प्रवेश कर जाता और अवसर  देख छोट-छोटे पशुओं को चट कर  जाता।इस कारण  सभी  छोटे-बड़े  पशुओं मे हड़कंप मच गया ।सभी पशुओं को अपनी जान बचाने की चिंता सताने लगी ।सभी अपनी गुफाओं एवं मांद में छुपे रहते ।तभी एक चतुर खरगोश ने सभी छोटे पशु-पक्षियों की एक सभा आयोजित की,और भेड़िया को पकड़ कर मारने की एक योजना बनाई ।दूसरे दिन योजनानुसार भेड़िया के आने वाले रास्ते में बड़ा-गड्ढा बनाया और वहांँ उसके ऊपर सूखी पत्तियां बिछा दी जिससे किसी को यह संदेह नहीं हो कि वहांँ गड्ढा है । फिर शाम ढलने से पहले पूरे वन में घूम-घूम कर यह घोषणा करने लगे कि - "डम डमा डम, डम डमा डम बंदरजी महाराज ! गिलहरी की शादी है,गीत गाने चलिए ।
           इस प्रकार वह वन के सभी पशुओं को बुलाया उधर भेड़िया उनकी घोषणा सुन फूला न‌ समाया ।उसने सोचा आज अच्छा अवसर है शादी में गीत गाने के लिए जाने वाले कुछ पशुओं को मार कर अथवा घायल कर दूं तो कुछ दिनों के लिए भोजन की व्यवस्था हो जाएगी।
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 नियत समय पर एक घने वृक्ष के नीचे कुछ पशु बैठकर अपनी-अपनी राग अलापने लगे। कुछ पशु टीले पर  उछल-उछल कर नाच रहे थे ।भेड़िया आव देखा- ताव। चुपके-चुपके छुपते-छुपाते हुए टिले की ओर बढा,  फिर उनके द्वारा खोदकर बनाए गए गड्ढे में गिरकर चिल्लाने लगा।उसे गड्ढे में गिरता देख कर आनंदवन के पशु एक साथ उस-पर टूट पड़े उसे नोच-खसोट कर इतना मारा कि वह चलने फिरने से भी लाचारहो गया उसकी यह दुर्दशा देख जंगल के अन्य बड़े-बड़े पशुओं ने भी आनंद वन की ओर आंँख उठाकर देखने की कोशिश नहीं की। अब आनंद वन के सभी पशु पक्षी फिर से आनंद के साथ रहने लगे ।
                   सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, August 4, 2025

उम्मीद का आकाश कभी झुकता नहीं

उम्मीद का आकाश  कभी झुकता नहीं है ।
हौसला हो मन  में तो कदम रुकता नहीं है।
दुनिया टिकी है उम्मीद पर,उम्मीद न छोड़ो।
उम्मीद ले कर्म करने से तू मुख नहीं मोड़ो।
हौसला  है मन में तो मेहनत न हो बेकार। ।
इच्छा की छेनी पर मेहनत की हथौङी मार।
मन  में रख विश्वास, पर्वत  में बनाओ राह।
पर्वत  को ढाओ धूल सम,मन में रख चाह।
मानव  तुम्हारे मन में यदि इच्छा रहे प्रबल। 
तो हर कठिन काम भी, हो जाता है सरल ।
                      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, August 3, 2025

जय मां दुर्गा

अपने भक्तों की विनती स्वीकार कर लो।
द्वार  तेरे  खड़ी हूं मां प्यार कर लो।
बेली-चमेली का माला बनाया,
उ उङहुल फूल  लगा है सिंगार कर लो.
द्वार तेरे ..............
दाख-मुनक्का का भोग लगाया,
संग नारियल-छुहाङा आहार कर लो।
द्वार  तेरे ...............
कंचन  थाली कपूर  की बाती,
आरती उतारें स्वीकार कर लो।
द्वार तेरे................
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

माता रानी की विनती

माता रानी की विनती 

करुँ नमन मैं बारंबार,कष्ट से दो मांँ उबार।
भँवर में नैना मेरी,कर दे माँ उस पार।।
निश दिन करुँ पुकार,हृदय से करुँ गुहार,
भंवर में नैया मेरी......
जीवन नैया तुम ही खेवैया,
अब तो पार करो हे मैया,
सारे जगत की तुम रखबैया,
तुझ बिन कोई नहीं खेबैया।
मुझ पर भी कर उपकार ।
दुनियाँ मेरी दे संवार,
भंवर में नैया मेरी......
बिगड़ी मेरी बना दो हे माता !
हे जग-जननी हे जगमाता।
द्वार तुम्हारे जो भी है आता।
पूर्ण मनोरथ सब सुख पाता।
आई हूंँ मैं तेरे द्वार, 
मुझको भी दे अपना प्यार ।
भंवर में नैया मेरी......
मांँ मैं तेरे चरणों की दासी।
आज मिटा दो सभी उदासी।
तेरी दया की मैं अभिलाषी।
तेरी कृपा की हूँ प्रत्याशी।
कर रही मैं पुकार,मेरी भी सुनो गुहार।
भँवर में नैया मेरी.......
आई हूँ मैं तेरे द्वार.......
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, July 30, 2025

शिव शंकर का ध्यान (महाश्रृंगार छंद )

तेरा मन होता है अधीर।
             जपो तुम शिव शंकर का नाम।।
चढ़ाओ शिव को गंगा नीर।
                      बनेंगे बिगड़े सारे काम।।

करो नित शिव का आलय साफ।
                   चढ़ाओ आक-धतूरा फूल।।
करेंगे भोला उसको माफ।
               हुआ जो जीवन में कुछ भूल।।

नहाकर हर-हर बम-बम बोल।
                   चढ़ाओ बेलपत्र तुम रोज।।
लगाओ चन्दन-रोली घोल।
               चढाओ कनेर कलियांँ खोज।।

लगाओ मेवा-मिश्री भोग।
            करो नित शिव-शंकर का ध्यान।।
मिटेंगे तेरे सारे रोग।।
                     करेंगे शिव तेरा कल्याण।।

चढ़ाओ शिव के माथे भांग।
                       जलाओ धूप दीप कर्पूर।।
अभय वर भोला से लो मांग।
                        जटाधर वर देंगे भरपूर।।

                    सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, July 27, 2025

शिव के मंदिर में भक्त हजार हैं

शिव के मंदिर में भक्त हजार हैं,
आज सोमवार है जी आज सोमवार है।
सभी मिलकर करते जयकार हैं,
आज सोमवार है जी.,,,,,,,,
आँक-धतुरा-भांग शिवजी को प्यारा है।
बेलपत्र ,सम्मी पत्र लगता उन्हें न्यारा है।
शिव जी के गले में सर्प की हार है।
आज सोमवार है जी....
शिवजी के मस्तक पर चमक रहा चाँद है।
डिम-डिम डमरू करता निनाद है।
इनके जटे से बहती जलधार है 
आज सोमवार है जी..........
औढरदानी शिव जी सभी को वर देते हैं।
भक्तों के दुखड़े सुन हर लेते हैं।
शिव जी को भक्तों से सुनो बड़ा प्यार है।
आज सोमवार है जी....
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, July 25, 2025

प्रदीप छंद

तुम जग के हो पालक भोला, तिरछी तेरी चाल है।
जटे में तेरे गंगा शोभे,चंदा तेरे भाल है।
ललाट शोभे रोली -चंदन, भभूत तेरे गाल है।
कान में लटका बिच्छू -गोजर,गले सर्प की माल है।
हाथ में लेते त्रिशूल-डमरू, दूर भागता काल है।
मुट्ठी बांध कमण्डल रखते,तन पर मृग की छाल है।
भांग-धथुरा भोग तुम्हारा,खाते भरकर थाल है।
पीते हो तुम विष का प्याला,
बसहा पर चढ़ विचरण करते,
तीन लोक की रक्षा करने,आते बनकर ढाल हैं।
भूत-प्रेत तेरे संग रहते, नाचते देकर ताल हैं।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, July 21, 2025

जागो भाई

जागो भाई (ताटंक छंद)
१६-१४ पर यति

हुआ सवेरा,मिटा अंधेरा, अब तुम जागो भाई रे !
देखो सूरज लेकर आया,यह रक्तिम तरुणाई रे।
कलरव करते पक्षिगण देखो,चहक-चहक कर गाते हैं।
मिश्री-सी मीठी बोली में, मधुर तान सुनाते हैं।
गौशाले में गैया प्यारी,चाट रही है बछड़े को।
खुश होकर वह देख रही है, उसके भोले नखड़े को।
मंदिर में बजते घंटारव, गूँज यहांँ तक आती है।
भक्त सभी मिल नाच रहे हैं, सखियाँ मंगल गातीं हैं।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, July 20, 2025

शंकर का दरवार (ताटक छंद)

शंकर का दरबार (ताटक छंद) १६,१३ पर यति

देखो लोगों कितना सुंदर, शंकर का दरबार है।
चमचम मानिक व मोतियों का, लटका बंदनवार है।।
देखो लोगों........
गले  शिव के सर्प की माला, त्रिशूल शोभे हाथ है।
फूल औ बेलपत्र चढ़ा है, चंदन कुमकुम माथ है।
मस्तक पर चन्द्रमा विराजे,जटा में गंग -धार है।।
चम-चम मानिक-मोतियों.............
भोग लगा है भांग-धथूरा, सुंदर सोने - थाल में।
बोल रहे सब हर-हर, बम-बम,एक सुर और ताल में।
भेद-भाव मन में ना कोई,हम सब शिव परिवार हैं।
चम-चम मानिक-मोतियों...............
नित्य यहांँ पर भक्त-लोग मिल, करते वंदन गान हैं।
ताल मिलाकर पूजन-अर्चन,करते एक समान हैं।
गाते सब मिल मंगल -वंदन, करते जय जयकार हैं।
चम-चम मानिक-मोतियों.................
ध्यान लगाकर जो जन आते, शंकर के दरबार में।
मनचाहा वर वे हैं पाते, शिव से पहली बार में।
शिव-शंकर हैं  औढरदानी, महिमा बड़ी अपार है।
चम-चम मानिक-मोतियों............
                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, July 19, 2025

संगति का फल। एक मेले में एक शिकारी दो तोते था बेच रहा। एक का दाम पचास रुपए,एक का केवल एक रुपैया । एक राजा अचरज से पूछा दाम में इतनी अंतर कैसे।शिकारी बोला-जांँच कर देखें,फिर दीजिएगा मुझको पैसे। राजा ने पहले लाकर दोनों तोते को आजमाया। बारी-बारी से अपने सायन-कक्ष में दोनों को रखवाया। नींद खुली तो पहला तोता चिल्लाकर था बोल रहा। उठ रे मूर्ख निकम्मा!आलसी जैसा पड़ा है क्या। चल जल्दी से नकाब लपेटकर दूर देश में जाओ। धनिकों को बंदूक दिखाकर खजाना लूट कर लाओ। दूसरे दिन दूसरे तोते की बड़ी कान में मधुर आवाज।सुप्रभातम सुप्रभातम भोर हुई उठिए महाराज। स्नान ध्यान कर जल्दी से आप सभा में जाएंँ। समस्या सुनकर जनमानस के समाधान कुछ बतलाएंँ। आकर शिकारी ने बोला दोनों तोता एक मांँ की हैँ संतान। दोनों की मीठी कड़वी बोली संगति का है परिणाम। पहले तोता डाकुओं के अड्डे के पास रहता था। दूसरा तोता एक मुनि के आश्रम के निकट रहता था । जब मैंने दोनों को पकड़ा और सुना दोनों की बोल। एक का दाम एक रुपैया रखा,दूसरे का मोल-अनमोल। सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, April 1, 2025

जगत जननी जगदम्बा (विधाता छंद आधारित)

जगत जननी  जगदम्बा 
विधा -विधाता छंद 

जगत जननी सुनो विनती,तिहारे द्वार आई हूँ।
चमेली फूल की अम्बे, बनाकर हार लाई हूंँ।।

उठाकर हाथ से माता,गले में डाल दूंँ तेरे।
सजा दूंँ हाथ में चूड़ा,जड़ा कंगन लगा घेरे।।

सितारे-मोतियों से मैं,सजाई चुन्नरी तेरी।
सजा दूँ आज सिर पर मैं,जगी इच्छा यही मेरी।।

सजाऊँ  मांग  में  टीका,लगाऊँ केश में गजरा।
सजाऊंँ माथ पर बिंदी,लगाऊँ आँख में कजरा।।

लगाऊँ भोग किसमिस का,सुगंधित खीर औ मेवा।
जलाऊँ स्वर्ण का दीपक,करूँ आठों पहर सेवा।।

उसी मंदिर सदा जाऊंँ, जहांँ मैया सदा राजे।
भजन औ आरती गाऊंँ, बजाऊँ ढोल औ बाजे ।।

चरण तेरे पकड़ अम्बे,नमन में हाथ जोड़ूंँ मैं।
मुझे वरदान ऐसा दो, ग्रहण से मुख न मोड़ूंँ मैं।।

                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, March 25, 2025

अंतिम प्रतिक्षा

अंतिम प्रतीक्षा 

मोबाइल से कहती थी
माँ मैं आ रही हूँ।
पहुंचती थी जब भी 
नहा-धोकर इंतजार 
करती मिलती थी माँ।
खबर आया माँ नहीं रही।
मैंने कहा आ रही हूँ।
पर रात में चलना मुश्किल 
रात की सारी गाड़ियाँ ...
सुबह पहली गाड़ी से चल
 दोपहर पहुंँच जाउँगी,
नियत समय पर पहुंँच गई,
भारी भीड़ भरी थी घर में 
भक्ति-गीतों का गायन।
बीच आंँगन में दक्षिण मुंँह 
कुर्सी पर सज-धजकर 
आंँखें मीचे बैठी, मेरी माँ 
आखिरी बार मेरी प्रतीक्षा 
कर रही थी ममत्व लिए।
लेकिन न कुछ बोल पाई 
न आशीष देने हाथ उठाई।
क्या जाने रुदन सुन रही थी 
लेकिन चुप भी नहीं करा पाई।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, March 19, 2025

स्वर्ण - विहान

हुआ सवेरा, छटा अँधेरा
     आया स्वर्ण- विहान। 
नीड़ में सोयी चिड़िया जागी, 
      गायी स्वागत- गान। 
 रंग - बिरंगे  फूल खिलें है, 
     मुख पर ले मुस्कान। 
रंग- बिरंगी उड़ी तितलियाँ,
      कर  रहे  रस  पान। 
कली- कली पर भौरें गाते। 
       छेड़ मनोहर तान।
गैया जागी बछड़ा जागा, 
    शोभ रहा है बथान। 
आओ हम सब भी कर लें, 
      कुछ नवल संधान। 

  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, March 15, 2025

वृद्ध दिवस

जय माँ शारदे 🙏🙏 

वृद्ध-दिवस (लघुकथा)

"कोई है "?
"बहू......"
"बेटी सुधी ..."
 "जरा मेरी करवट तो बदल दो ।" "एक ही करवट सोये.............."
क्या माँ ! हर समय कुछ न कुछ कहती रहती हो। तुम्हें तो पता ही है कि हमलोग वृद्धाश्रम जाने की तैयारी........"
"बेटी कोई तो मेरे पास......"
"कौन रहेगा माँ जी ?"आज वृद्ध दिवस है। थोड़ा वृद्धाश्रम के लोगों कों भोजन - वस्त्र भी तो दान कर दें।"
"थोड़ा हमें भी तो पुण्य कमाने का समय दें।"
"कुछ ओढ़ा दो बहू! ठंड......"
"कोई ठंड -वंढ नहीं...
जब से दान के कम्बल लाई हूँ।आपकी नजर.."
लेकिन यह उनके लिए है जिनके बच्चे मांँ-बाप को घर से......
आपको तो हमलोग घर में..."
"अरे जल्दी भी करो तुमलोग !
एक तो माँ को समझ नहीं है कि.......
" जब कोई अच्छे कार्य के लिए निकलते हैं तो यह अपना रोना.... ।"
और तुमलोग भी इनकी फिजूल की बातों में..........
बेटे-बहू,बेटियों को बाहर निकलते देख संकोच बस माँ कहने का साहस  भी नहीं जुटा पाई कि.......
पेट में ममोड़े उठे 
फिर...!!!
घर के मुख्य द्वार पर ताले लगाने की आवाज में माँ के  .......
फिर फाटक लगने और गाड़ी स्टार्ट..........
बेचारी माँ ने ......
अब मल के दुर्गंध और उससे हुए गीले कपड़ो के साथ ही दिन..........
किसी तरह टीवी का रिमोट हाथ लग गया।
......तिनके का सहारा ...
टीवी पर वृद्धाश्रम का समाचार... माँ वृद्धाश्रम के वृद्धों को भाँति-भाँति के भोजन- वस्त्र का दान ,प्यार दुलार मिलते देख सोच रही थी........काश..

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, March 9, 2025

हिंसक पर विश्वास नहीं



एक बार जंगल की राह में। 
एक बाघ था बंद पिंजरे में। 
राहगीरों को रोकर कहता। 
खोल दो कोई पिंजरा मेरा। 
बहुत दिनों से मैं हूँ भूखा। 
बिन खाये-ही मर जाऊंगा। 
पंडितजी को आ गयी दया। 
बोले-पर तेरा भरोसा क्या। 
पिंजरे से बाहर तू आओगे। 
झट मार  मुझको खाओगे। 
कहा बाघ विश्वास करो तुम। 
बेकार मुझसे नहीं डरो तुम। 
नहीं खाऊँगा  तुझको मार। 
मानूँगा जीवन भर उपकार।
मरते की जान तू बचाओगे। 
तुम पुण्य बहुत कमाओगे।
पंडितजी तब कर विश्वास। 
पहुँच गये  पिंजरे के पास। 
खोले पिंजरा हाथ बढ़ाकर।
निकल बाघ पिंजरे से बाहर। 
कहा-तुझे मैं अब खाउंँगा।
अपनी मैं भूख मिटाउँगा। 
पड़ी खतरे में उनकी जान। 
पछताये बाघ का कहना मान।। 
नजर घुमाई  इधर -उधर। 
एक गीदड़ आया नज़र।। 
पंडित जी ने उसे बुलाया। 
सारी बातों को समझाया।। 
बोला-गींदड़ विश्वास न होता। 
पिंजरे में भी बाघ है होता। 
शैतान बाघ ताव में आकर। 
दिखाया पिंजरे में घुसकर। 
कहा गीदड़ -पंडित जी से।
 पिंजरा बंद होता है कैसे? 
पंडितजी ने पिंजरा लगाया। 
गीदड़ को विश्वास दिलाया। 
कहा गीदड़ मुझे है विश्वास।
पिंजरे में बंद होता है बाघ। 
जैसे आपको धोखा देकर। 
निकला है पिंजरे से बाहर। 
वैसे ही इसे भी बहलाया। 
वापस पिंजरे में पहुँचाया। 
विश्वास न हिंसक पशुओं पर। 
खाएगा कैसे  धोखा देकर।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, March 7, 2025

होली गीत

जय माँ शारदे 🙏 🙏 

होली गीत होलास्टक हेतु 

मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री ! २
फूल -फूल पर भौर उड़त हैं,
बीतत फागुन मास सखी री!२

क्षीर समुंदर विष्णु जी बैठे,
शंख में टेरे तान सखी री !
ऐसे टेर सुनाबत विष्णु,
शंख से उड़त गुलाल सखी री !
उड़कर रंग गया लक्ष्मी की चुनरी,
और रंगा गोरे गाल सखी री!
मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री!

मधुवन में श्रीराम खड़े हैं,
धनुष से छोड़े तीर सखी री!
ऐसे तीर चलाबत रघुवर,
तीर से उड़त गुलाल सखी री !
उड़कर रंग गयी सीता की साड़ी,
और रंगा गोरे गाल सखी री।
मंद-मंद समीर चलत हैं ,
फूल खिले कचनार सखी री!

यमुना के तीर में कृष्ण कन्हैया,
वंशी में छेड़े तान सखी री!
ऐसे वंशी बजाए कन्हैया,
वंशी से उड़त गुलाल सखी री!
उड़कर रंग गयी राधा की चोली,
और रंगा गोरे गाल सखी री!
मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री!

कैलाश गिरी पर बैठ महादेव,
डम-डम डमरू बजाबे सखी री !
ऐसा डमरू बजाबे सदाशिव,
डमरू से उड़त गुलाल सखी री!
उड़कर रंग गया गौरा की चुनरी,
और रंगा गोरे गाल सखी री!
मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री 
फूल -फूल पर भौर उड़त हैं,
बीतत फागुन मास सखी री।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, March 6, 2025

संस्कार (लघुकथा)

जय माँ शारदे 🙏🙏 

संस्कार (लघुकथा)

मन बहुत घबराता है सिम्मी की......!
 काहे खातिर.........?
 तुम तो कुछ समझती ही नहीं। अरे हमारी बेटियांँ जवान हो गई। आजकल के छोरों के रंग-ढंग तो देख ही रही हो । छोकरियों को देखते ही किस कदर.........
उनकी नादानियों की सजा हम अपनी बिटिया को क्यों..........
अरे हम उन मनचलों को रोक नहीं सकते । पर,अपनी बिटिया को तो घर में सुरक्षित.........।
हांँ-हांँ बेटियाँ ही ना बलि का बकरा हो सकती.......।
बेटों को तो छुट्टा साढ़..........
अरे हम यह नहीं कहते कि बेटों को.....
पर बिटिया को समझ कर घर में...........
 हमें बिटिया को समझा कर घर में नहीं.........
बेटों को समझाकर बाहर भेजना है कि लड़कियों के साथ किसी भी तरह की.............. पाप है जैसे तुम्हारी मांँ-बहन की आबरू है ।वैसे ही पराई लड़कियों और........।
 अपनी मांँ- बहन की तरह अन्य लड़कियों की सुरक्षा भी तुम्हारी........।
 तब देखना हमारी बिटिया भी सुरक्षित और बेटे भी व्यवहारिक और समझदार..........।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, February 26, 2025

जाएँ बोल कहाँ हम

अंध कक्ष से झांक रही मैं,
               भारत का रूप निराला।
नव भारत के स्वतंत्र रूप में,
                 सबका मुंँह है काला।
भारत माँ बैठी सिसक रही 
                नहीं है कोई रखवाला।
रक्षक ही इसको लूट रहे,
                 करते गड़बड़-घोटाला।
एक स्तम्भ है बेकारी का,
               एक पूर्ण भ्रष्टाचारी का।
ये दोनों शक्ति भूज है,
            रिश्वतखोर अधिकारी का।
दोनों के बीच दबा हुआ है,
             हम नवयुवकों का गर्दन।
मन कुण्ठित जीवन असुरक्षित,
         बस रहा भविष्य का चिंतन।
नव भारत के नव वृंद हम,
                    छुपा रहे हैं मुखड़ा।
यहाँ सभी हैं एक सरीखे,
                   किसे सुनाएंँ दुखड़ा।
घोटाले कर लूट रहे हैं,
                   भारत माँ को रक्षक।
सिसक रही बैठी माँ मेरी,
                बेटे बन बैठे हैं भक्षक।
त्रस्त-भविष्य की असह पीड़ा से 
                      व्याकुल हो रहै हम।
भ्रष्ट हो गया अपना ही घर,
                   जाएँ और कहांँ हम।

                  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, February 20, 2025

श्रद्धा कर्म



श्रद्धा कर्म 

आज स्वर्गीय पूर्णिमा देवी जी का बारहमा ......।
सात गाँव की भोज व्यवस्था ........
एक सौ आठ ब्रहामणों का वस्त्र -छंदा सहित भोज........
 स्वजन तथा दूर-दूर के नाते-रिश्तेदार न्योते पर पधारे हैं।
     अपना घर तो क्या पास-पड़ोस के घरों में मेहमानों को ठहराया गया है।सभी के रहने एवं खाने पीने की उत्तम व्यवस्था.....भोज के सारे भोजन पूर्णिमा देवी के पसंद के बनाए जा रहे ............।

    सेज दान का कार्यक्रम........। बड़ी बहू ने सुंदर सा दीवान पर मुलायम तोसक- तकिया,मसनद और सुंदर कीमती चादर लगवाते हुए कहा -"मांँ जी को दीवान का बहुत शौक था इसलिए मैंने दीवान......।"
 बड़े बेटे ने श्रद्धा पूर्वक सोने की अंगूठी चढ़ाते हुए -"माँ ने अपने सारे गहने बेचकर मुझे इंजीनियरिंग पढ़ाया इसलिए मैंने माँ के लिए यह अँगूठी खरीदी है।"   
   मंझली बहू कीमती श्रृंगार-प्रशाधन रखते हुए -"माँ जी को सजने-संवरने का बहुत शौक था। इसीलिए मैंने श्रृंगार...... ।"
मंझला बेटा नोटों से भरा बटुआ रखते हुए  -" माँ-ने घर-खर्चे में कटौती कर मुझे शिक्षा दिलवाई इसलिए एक महीना का पगार मैं माँ के नाम..........।"
    सभी के मुँह से वाह-वाही सुन बेटियांँ भी कहाँ चुकने वाली थीं। बड़ी बेटी  पायल और बिछिया तथा छोटी बेटी मंगलसूत्र और सिंदूर की डिबिया चढ़ाती हुईं बोली -"माँ ने हम दोनों की शादी में खेत,आधा घर और बगीचे बेचकर दोनों दामाद इंजिनियर लाया हमने भी माँ के लिए यह सामान..........."
उनकी ननद, देवरानी,बहनें,भाभी व अन्य रिश्तेदारों के तरफ से भी कपड़े, श्रृंगार -प्रसाधन मिठाइयांँ,फल मेवे इत्यादि.........।
उनके सबसे छोटे बेटे के पास जाकर चाचाजी ने सलाह देते हुए कहा -"बेटा ! तुम भी अपनी कमाई का कुछ अंश माँ के नाम दान कर दो ,माँ को स्वर्ग में सुख मिलेगा।"
 लेकिन वह अफसोस भरी नजरों से दान के सारे सामानों को देखता रहा।
   " क्यों तुम नहीं दोगे कुछ ?"
 बड़े भाई ने प्रश्न किया तो पिताजी ने कहा -"नहीं!"
     "क्यों नहीं ?" दोनों बड़े भाइयों के मुँह से एक साथ निकाला।
        "क्योंकि यह श्राद्ध कर्म में नहीं श्रद्धा कर्म में ...............।"
     "श्रद्धा कर्म ?"
"हाँ श्रद्धा-कर्म ।तुम्हारी माँ ने दुःख सहकर, जमीन-जायदाद,जेवर गहने बेचकर तुमलोग को पढ़ाया-लिखाया, अच्छे घर में ब्याह किया   इसलिए तुम सभी ने मरने के बाद दिखावा करने हेतु...........।
 लेकिन जब इतने दिनों से माँ बीमार थी तो इलाज करवाने का भी समय और पैसे नहीं थे.....।माँ के अंतिम दर्शन.......
 लेकिन मेरा यह बेटा सीमित कमाई में भी अपनी माँ का इलाज-पानी ,सेवा -सुश्रुषा बड़ी श्रद्धा और प्रेम से किया।    जिंदगी भर तुम्हारी माँ टूटी खाट पर सोती रही और उसपर से ही गिरने के कारण उसकी कमर की हड्डियां टूट गयीं तब कोई उसे एक खाट-चौकी तक नहीं दिया ।यही एक महीने का वेतन उस दिन दिया होता तो शायद उसका अच्छे-से इलाज....
यही मेवे-फल उस दिए होते तो जीते जी उसकी आत्मा तृप्त होती।अब मरने के बाद इन सामानों को दान का ढकोसला और.............. ?         "यदि किसी को ज्यादा श्रद्धा और प्रेम दिखाना है तो उसके जीवन में करो , मरने के बाद  वह व्यक्ति स्वयं इस आकांक्षाओं से मुक्त हो जाता है।सारे दान-दक्षिणा, भोज-भात लोग समाज के दिखाबे के लिए करते हैं।" इसलिए -"मान करो दान नहीं।श्रद्धा में विश्वास करो श्राद्ध में नहीं।"
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

ओ माँझी

ओ माँझी

ओ मांझी ! ओ मांझी!
आजा मेरे प्यारे देश में। 
बार-बार मैं तुझे बुलाऊँ,
 विनती के संदेश में। 
ओ मांझी! ओ मांझी! 

इस देश की है नाव पुरानी। 
पुरवाई बहती बड़ी तुफानी। 
क्या बैठा रहेगा तू जग में? 
बस पत्थर के वेश में। 
ओ मांझी! ओ मांझी! 

तुझ बिन नाव डगमग डोले। 
तुम न आते,न कुछ ही बोले। 
पतवार तेरे हाथ में है तो, 
बैठा क्यों परदेश में? 
ओ मांझी! ओ मांझी ! 

भाई-बंधु आपस में झगड़े। 
कोई दुर्बल है,तो कोई तगड़े। 
क्या बोलोगे नहीं कभी तुम, 
जन-मन के इस क्लेश में। 
ओ मांझी! ओ मांझी! 

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, February 19, 2025

मैं तेरी हमराज़ हूँ ( गज़ल )

तुम मेरे सरताज हो और मैं तुम्हारी लाज हूंँ।
तुम ही मेरी जिंदगी हो, मैं तेरी हमराज हूंँ।

सज रही महफ़िल यहांँ,गायकी के वास्ते,
तुम मेरी संगीत बन जा,मैं तुम्हारी साज हूंँ।

हो रहा है गान अब, हम भी मिलकर गाएंँगे,
तुम हमारी गीत बन जा, मैं तेरी आवाज़ हूंँ।

मेरे सुर में सुर मिला, साथ सरगम लो बजा,
तुम मेरे आलाप हो और,मैं तेरी अंदाज हूँ।

देखो अब सारे जहांँ में, प्यार का सम्राज्य है,
तुम यहांँ सम्राट बन जा, मैं तुम्हारी ताज हूंँ।

मेरे मन में उठ रही,पूरी कर दो कामना 
तुम मेरे मन भेद रख लो,मैं तुम्हारी राज हूँ।

खुशनुमा लगता जहां,जब तुम्हारा साथ हो,
संग मेरे हर कल रहोगे,संग तुम्हारे आज हूंँ।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, January 28, 2025

चोट )लघुकथा/

चोट (लघुकथा) 

पत्नी की तीखी बोली से संजीव का मन बड़ा आहत था। इतनी बेरूखी से सबके सामने डांँटेगी । यह तो कभी उसने सोचा.......... 
क्या हो गया उसे ?
 इतना भी नहीं सोंचा ऐसे अपमान भरे लहजे से मेरे दिल पर....... 
यदि मैं सबके सामने उसे ऐसे ही...............? 
करते तो हो........        हमेशा... .....
हर जगह.........हर समय 
बडो़ं के सामने...... 
छोटों के............सहेलियों .......
पडोसियों........परिवारों ......
सहकर्मियों ..........नौकरों..... 
उसने एक बार.......... 
अपमान से दिल लहू-लुहान........ 
लेकिन वह हमेशा अपमान का घूट पीती है ।तो........... ?
तेरे जैसा उसका दिल..........? नहीं- नहीं! मुझे भी........। उसके सम्मान का...............। 

  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, January 20, 2025

नृत्य गीत

नृत्य गीत

मोर नाचे, मोर नाचे, मोर नाचे।2
सर र सर र सर सर सर। 2
झूम-झूमकर, झूम-झूमकर, झूम-झूमकर। 
मोर नाचे............. 
भारत की भूमि पर मोर नाचे। 
हिमालय की चोटी पर मोर नाचे। 
मोर नाचे........... 
ता ता थै थै, ता ता थै थै
ताक धिन धिना धिना 
ता ता थै थै ता 
गंगा की तट पर मोर नाचे। 
शांति निकेतन पर मोर नाचे। 
धिनकिट-धिनकिट धा
धा धा धिनकि धा
धा धा ,धा धा, धा
आम की डाली पर मोर नाचे । 
कमल के फूल पर मोर नाचे। 
ता ता तैयम तै तै ता आम। 
ता ता, ता ता, ता ता,ता
ताक तुन, धुन धुन धा। 
शिशु मंदिर पर मोर नाचे। 
माँ सरस्वती की वीणा पर मोर नाचे। 
धा धिन, धिन धिन धा 
धिन धिन, धिन धिन धा
तत् तत् थुन थुन दिग्दा दिग् दिग् तै
दिग्दा  दिग् दिग् तै
दिग्दा दिग् दिग् तै 2

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, January 18, 2025

सात रंग है घोला

सात रंग है घोला 

सात रंग की ओढ़ चुनरिया, 
सात रंग का चोला। 
भारत को रंगीन बनाने, 
सात रंग है घोला। 
हाँ जी हाँ हमने घोला, 
मिलकर घोला, सात रंग है घोला। 
रंग बैंगनी💜 कहता है
सारे प्राणी एक समान। 
आसमानी रंग कहता है
स्वतंत्रता अपना है अभिमान। 
भेदभाव मिटा देता है, 
मिलकर रंग यह नीला 🔵। 
भारत को रंगीन.............. 
हरा 💚 हरियाली फैलाता है, 
केसरिया बल बन जाये। 
लाल🔴 रंग है भारत माँ का
जग में मान बढ़ा जाए। 
सुख-समृद्धि को सदा बढाए, 
अपना रंग यह पीला💛। 
भारत को रंगीन........... 
सात रंग की............ 
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, January 16, 2025

रघुपति राघव राजा राम

रघुपति राघव राजा राम। 
पतित पावन सीता-राम। 
ईश्वर अल्लाह तेरे नाम। 
सबको सुम्मति दो भगवान्। 

गाँधी के हम तीन बंदर। 
छल-कपट नहीं मन अंदर। 
रघुपति........... 
मुंह बंद हम अपना रखते।
बुरी बात हम कभी न कहते। 
रघुपति............ 
कान बंद रखते हम भाई। 
कभी न सुनते कोई बुराई। 
रघुपति.............. 
आँखें बंद हम रखते हैं। 
बुरा कभी नहीं देखते हैं
रघुपति............... 
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, January 11, 2025

छोटा मुँह बड़ी बात

छोटा मुँह बड़ी बात

भाई मानो तुम मेरी बात। 
 मत कर छोटा मुंँह से बड़ी बात। 
मत कर छोटा मुँह............
नहीं बडो़ से कभी मुंँह लगाना। 
नहीं उनके आगे गाल बजाना। 
बुरा मत बोलो कभी अठात। 
मत कर छोटा मुंँह........ 
बड़े लोगों का मत करो निरादर। 
मधुर बोली बोलो तुम सादर। 
झूठ न दो किसी को मात।
मत कर छोटा मुँह........
तीखी बोली कभी न बोलो। 
बोलने से पहले मन में तोलो।
दुखी न हो उनका ज्जबात । 
मत कर छोटा मुंँह..............
सुजाता प्रिय समृद्धि'

Tuesday, January 7, 2025

भगवान भला करना (माहिया छंद)

माहिया छंद 

भगवान भला करना 
मेरे संकट को
तुम आकर अब हरना।

तेरे दर आए हैं।
चाहत मन में हम
कुछ लेकर आए हैं।

दुनिया दीवानी है।
कुछ वर पाने की
मन अपने ठानी है।

तुम जग अधिकारी हो।
झोली भर मेरी,
तुम दानी भारी हो।

सब हाल सुनो मेरी।
मेरे दुःख हर लो
तुम करो नहीं देरी।

स्वीकार करो विनती।
भक्तों में अपने 
मेरी तुम कर गिनती।

नित टेकूं सिर अपना।
 पूरण कर दें तू
है मेरा जो सपना।


सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

गणेश वंदना

गणेश वंदना (हरि गीतिका छंद)

हे गजानन, चढ़ मूषक वाहन, गृह आप मेरे पधारिए।
प्रारंभ किया जो काज मैंने,आप उसको संवारिये।।
आये यदि कोई विघ्न तो,प्रभु आप उसको टालिए।
कोई बिगड़े बात तब,प्रभु आप उसको संभालिए।।

आपके चरणों में प्राणि,जब झुकाता माथ है।
आशीष हेतु आपका,उठता सदा ही हाथ है।
आप ही शुभ काज करते,आप दीनानाथ हैं।
जिनका न कोई साथ देता,आप उनके साथ है।

आपके पग को पकड़ हम,विनती करते आज हैं।
हम जो मुख से बोलते ,यह हृदय की आवाज है।।
अब आपके ही हाथ में ,भगवन् हमारी लाज है।
आपसे न है हमारा,छुपा हुआ कोई राज है।

गणपति गणराज के गुणगान सब मिल गाइए ।
मन समर्पित कर चरण में,शीश आप नवाइए।
कर सुवंदनन गौरी नंदन मन से इनको मनाइए।
प्रार्थना करिए हृदय से,आशीष उनका पाइए।
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, January 3, 2025

गांधी जी के तीन बंदर

रघुपति राघव राजा राम। 
पतित पावन सीता-राम। 
ईश्वर अल्लाह तेरे नाम। 
सबको सुम्मति दो भगवान्। 

गाँधी के हम तीन बंदर। 
छल-कपट नहीं मन अंदर। 
रघुपति........... 
मुंह बंद हम अपना रखते।
बुरी बात हम कभी न कहते। 
रघुपति............ 
कान बंद रखते हम भाई। 
कभी न सुनते कोई बुराई। 
रघुपति.............. 
आँखें बंद हम रखते हैं। 
बुरा कभी नहीं देखते हैं
रघुपति............... 
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, January 2, 2025

नववर्ष

नववर्ष (सवैया छंद)

आगत का सब स्वागत ले कर,
         आज सभी खुश होकर भाई।
मान अभी अपने मन में सब,
           बीत गया अब ले अंगड़ाई।।
वर्ष नवीन अभी फिर सुंदर,
           वर्ष यही अब हो सुखदायी।
ईश मना सब शीश झुकाकर,
           मांँग सभी मन से वर भाई।।

मास बिता कर जो तुम बारह,
             आगत वर्ष रखें पग प्यारे।
कर्म करो सब नेक तभी यह,
               वर्ष हमार रहे सब न्यारे।।
नेक किये जब काम सभी तब,
              साथ रहे सुर पांँव पसारे।
कर्म सभी चित में रखते तब,
           ही खुश हैं भगवान हमारे।।

आ अब भूल गिले-शिकवे हम,
          आपस में निज हाथ मिला लें।
जो जन रूठ गये उनको भी,
         पास बुलाकर आस दिला लें।।
आज नया दिन है यह सुंदर,
              प्यार भरा मधुमास मना लें।
हैं नव - रुप सजा यह सुंदर,
               आ सबको हम पास बुला लें।।

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'