Thursday, February 20, 2025

ओ माँझी

ओ माँझी

ओ मांझी ! ओ मांझी!
आजा मेरे प्यारे देश में। 
बार-बार मैं तुझे बुलाऊँ,
 विनती के संदेश में। 
ओ मांझी! ओ मांझी! 

इस देश की है नाव पुरानी। 
पुरवाई बहती बड़ी तुफानी। 
क्या बैठा रहेगा तू जग में? 
बस पत्थर के वेश में। 
ओ मांझी! ओ मांझी! 

तुझ बिन नाव डगमग डोले। 
तुम न आते,न कुछ ही बोले। 
पतवार तेरे हाथ में है तो, 
बैठा क्यों परदेश में? 
ओ मांझी! ओ मांझी ! 

भाई-बंधु आपस में झगड़े। 
कोई दुर्बल है,तो कोई तगड़े। 
क्या बोलोगे नहीं कभी तुम, 
जन-मन के इस क्लेश में। 
ओ मांझी! ओ मांझी! 

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

No comments:

Post a Comment