जटे में तेरे गंगा शोभे,चंदा तेरे भाल है।
ललाट शोभे रोली -चंदन, भभूत तेरे गाल है।
कान में लटका बिच्छू -गोजर,गले सर्प की माल है।
हाथ में लेते त्रिशूल-डमरू, दूर भागता काल है।
मुट्ठी बांध कमण्डल रखते,तन पर मृग की छाल है।
भांग-धथुरा भोग तुम्हारा,खाते भरकर थाल है।
पीते हो तुम विष का प्याला,
बसहा पर चढ़ विचरण करते,
तीन लोक की रक्षा करने,आते बनकर ढाल हैं।
भूत-प्रेत तेरे संग रहते, नाचते देकर ताल हैं।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
सुन्दर
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियाँ, जय शिवशंकर 🙏जय भोलेनाथ 🙏
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ।