Friday, July 25, 2025

प्रदीप छंद

तुम जग के हो पालक भोला, तिरछी तेरी चाल है।
जटे में तेरे गंगा शोभे,चंदा तेरे भाल है।
ललाट शोभे रोली -चंदन, भभूत तेरे गाल है।
कान में लटका बिच्छू -गोजर,गले सर्प की माल है।
हाथ में लेते त्रिशूल-डमरू, दूर भागता काल है।
मुट्ठी बांध कमण्डल रखते,तन पर मृग की छाल है।
भांग-धथुरा भोग तुम्हारा,खाते भरकर थाल है।
पीते हो तुम विष का प्याला,
बसहा पर चढ़ विचरण करते,
तीन लोक की रक्षा करने,आते बनकर ढाल हैं।
भूत-प्रेत तेरे संग रहते, नाचते देकर ताल हैं।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

3 comments:

  1. बेहतरीन पंक्तियाँ, जय शिवशंकर 🙏जय भोलेनाथ 🙏

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  2. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर ।

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