केशव हमें उबारो।
जीवन आज सवारो।
विकल है अंतर्मन ।
मैं तो हूंँ तेरी दासी ।
तेरे दर्शन की प्यासी।
बैठी हूंँ आज उदासी।
तड़पता मेरा मन।
मन के क्लेश मिटा दो।
संकट से तू बचा दो।
बेड़ा को पार लगा दो।
बिखर न जाए धन।
सुनो अब अंतर्यामी।
तुम्हारी मैं अनुगामी ।
तुमहो सब के स्वामी।
बचाओ अब जीवन।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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