Monday, July 21, 2025

जागो भाई

जागो भाई (ताटंक छंद)
१६-१४ पर यति

हुआ सवेरा,मिटा अंधेरा, अब तुम जागो भाई रे !
देखो सूरज लेकर आया,यह रक्तिम तरुणाई रे।
कलरव करते पक्षिगण देखो,चहक-चहक कर गाते हैं।
मिश्री-सी मीठी बोली में, मधुर तान सुनाते हैं।
गौशाले में गैया प्यारी,चाट रही है बछड़े को।
खुश होकर वह देख रही है, उसके भोले नखड़े को।
मंदिर में बजते घंटारव, गूँज यहांँ तक आती है।
भक्त सभी मिल नाच रहे हैं, सखियाँ मंगल गातीं हैं।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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