Tuesday, March 25, 2025

अंतिम प्रतिक्षा

अंतिम प्रतीक्षा 

मोबाइल से कहती थी
माँ मैं आ रही हूँ।
पहुंचती थी जब भी 
नहा-धोकर इंतजार 
करती मिलती थी माँ।
खबर आया माँ नहीं रही।
मैंने कहा आ रही हूँ।
पर रात में चलना मुश्किल 
रात की सारी गाड़ियाँ ...
सुबह पहली गाड़ी से चल
 दोपहर पहुंँच जाउँगी,
नियत समय पर पहुंँच गई,
भारी भीड़ भरी थी घर में 
भक्ति-गीतों का गायन।
बीच आंँगन में दक्षिण मुंँह 
कुर्सी पर सज-धजकर 
आंँखें मीचे बैठी, मेरी माँ 
आखिरी बार मेरी प्रतीक्षा 
कर रही थी ममत्व लिए।
लेकिन न कुछ बोल पाई 
न आशीष देने हाथ उठाई।
क्या जाने रुदन सुन रही थी 
लेकिन चुप भी नहीं करा पाई।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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