जय माँ शारदे 🙏🙏
वृद्ध-दिवस (लघुकथा)
"कोई है "?
"बहू......"
"बेटी सुधी ..."
"जरा मेरी करवट तो बदल दो ।" "एक ही करवट सोये.............."
क्या माँ ! हर समय कुछ न कुछ कहती रहती हो। तुम्हें तो पता ही है कि हमलोग वृद्धाश्रम जाने की तैयारी........"
"बेटी कोई तो मेरे पास......"
"कौन रहेगा माँ जी ?"आज वृद्ध दिवस है। थोड़ा वृद्धाश्रम के लोगों कों भोजन - वस्त्र भी तो दान कर दें।"
"थोड़ा हमें भी तो पुण्य कमाने का समय दें।"
"कुछ ओढ़ा दो बहू! ठंड......"
"कोई ठंड -वंढ नहीं...
जब से दान के कम्बल लाई हूँ।आपकी नजर.."
लेकिन यह उनके लिए है जिनके बच्चे मांँ-बाप को घर से......
आपको तो हमलोग घर में..."
"अरे जल्दी भी करो तुमलोग !
एक तो माँ को समझ नहीं है कि.......
" जब कोई अच्छे कार्य के लिए निकलते हैं तो यह अपना रोना.... ।"
और तुमलोग भी इनकी फिजूल की बातों में..........
बेटे-बहू,बेटियों को बाहर निकलते देख संकोच बस माँ कहने का साहस भी नहीं जुटा पाई कि.......
पेट में ममोड़े उठे
फिर...!!!
घर के मुख्य द्वार पर ताले लगाने की आवाज में माँ के .......
फिर फाटक लगने और गाड़ी स्टार्ट..........
बेचारी माँ ने ......
अब मल के दुर्गंध और उससे हुए गीले कपड़ो के साथ ही दिन..........
किसी तरह टीवी का रिमोट हाथ लग गया।
......तिनके का सहारा ...
टीवी पर वृद्धाश्रम का समाचार... माँ वृद्धाश्रम के वृद्धों को भाँति-भाँति के भोजन- वस्त्र का दान ,प्यार दुलार मिलते देख सोच रही थी........काश..
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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