उठा अपने पंखों में फंसाया।
मोर के पास गया बन भोला।
मैं भी मोर हूं हँसकर बोला।
तुम तो हो कौआ बोला मोर।
मेरे पंखों के तुम तो हो चोर।
मेरा पंख चुरा तूने है लगाया।
मोर बन निकट मेरे तू आया।
सुनकर कौआ हुआ उदास।
चला कौआ, कौए के पास।
कौए बोले सुनो-सुनो ऐ मोर।
क्यों आये हो तुम मेरी ओर।
कौआ मोर का पंख हटाया।
रूप बदलने पर पछताया।
लालच में न रूप बदलता।
जाति में पहचान तो मिलता।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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