जय माँ शारदे 🙏🙏
संस्कार (लघुकथा)
मन बहुत घबराता है सिम्मी की......!
काहे खातिर.........?
तुम तो कुछ समझती ही नहीं। अरे हमारी बेटियांँ जवान हो गई। आजकल के छोरों के रंग-ढंग तो देख ही रही हो । छोकरियों को देखते ही किस कदर.........
।
उनकी नादानियों की सजा हम अपनी बिटिया को क्यों..........
अरे हम उन मनचलों को रोक नहीं सकते । पर,अपनी बिटिया को तो घर में सुरक्षित.........।
हांँ-हांँ बेटियाँ ही ना बलि का बकरा हो सकती.......।
बेटों को तो छुट्टा साढ़..........
अरे हम यह नहीं कहते कि बेटों को.....
पर बिटिया को समझ कर घर में...........
हमें बिटिया को समझा कर घर में नहीं.........
बेटों को समझाकर बाहर भेजना है कि लड़कियों के साथ किसी भी तरह की.............. पाप है जैसे तुम्हारी मांँ-बहन की आबरू है ।वैसे ही पराई लड़कियों और........।
अपनी मांँ- बहन की तरह अन्य लड़कियों की सुरक्षा भी तुम्हारी........।
तब देखना हमारी बिटिया भी सुरक्षित और बेटे भी व्यवहारिक और समझदार..........।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
संदेशात्मक लघुकथा।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ मार्च २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत -बहुत धन्यवाद श्वेता
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